भारत का भौगोलिक स्वरूप
भारत का भौगोलिक स्वरूप
भारत का भौगोलिक स्वरूप
भारत का भौगोलिक स्वरूप
◆ भारत का विशाल क्षेत्र भौतिक दृष्टि से सर्वत्र समान नहीं है, बल्कि इसके संरचना में काफी विविधता पायी जाती है।
◆ देश के कुल क्षेत्रफल के 10.7% भाग पर उच्च पर्वत श्रेणियों का विस्तार पाया जाता है जिनकी ऊँचाई समुद्र तल से 2,135 मीटर या उससे अधिक है।
◆ समुद्र से 305 से 915 मीटर तक ऊँचाई वाले पठारी भाग का विस्तार भी देश के 27.7% क्षेत्र पर है जबकि शेष 43.0% भाग पर विस्तृत मैदान पाये जाते हैं।
◆ भौतिक संरचना की दृष्टि से भारत को सामान्यत: चार भौतिक या प्राकृतिक भागों में बाँटा गया है, जो इस प्रकार है- 1. उत्तर का पर्वतीय प्रदेश 2. उत्तर का विशाल मैदान 3. प्रायद्वीपीय पठार 4. समुद्रतटीय मैदान।
1. उत्तर का पर्वतीय प्रदेश
◆ इस प्रदेश को हिमालय पर्वतीय प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है, जो देश की उत्तरी सीमा पर एक चाप (Arc) के आकार में 5,000 किमी की लंबाई में फैला है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। इसका उद्गम पामीर की गाँठ से हुआ है।
◆ भू-वैज्ञानिकों के मतानुसार जहाँ आज हिमालय पहाड़ हैं, वहाँ टेथिस नामक उथला समुद्र था।
◆ हिमालय की उत्पत्ति के सम्बन्ध में आधुनिक सिद्धान्त प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics) है।
◆ अरावली की पहाड़ियाँ राजस्थान राज्य में है तथा इसका विस्तार दिल्ली तक है। यह सबसे पुरानी चट्टानों से बनी है। इसकी सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर स्थिर गुरु शिखर है। इसकी ऊँचाई 1, 722 मीटर है।
◆ भौतिक दृष्टि से हिमालय पर्वत में चार समानांतर श्रेणियाँ मिलती हैं, जो निम्न है –
(i) ट्रांस अथवा तिब्बत हिमालय श्रेणी
◆ यह सबसे उत्तर में स्थित है।
◆ इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 3,100 से 3,700 मीटर तक है।
◆ यह श्रेणी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों तथा उत्तर दिशा में भू-आवेष्ठित झीलों से निकलने वाली नदियों के बीच जल विभाजक की भूमिका निभाती है।
(ii) महान अथवा वृहत् अथवा आंतरिक हिमालय श्रेणी
◆ यह हिमालय पर्वतमाला की प्रमुख तथा सर्वोच्च श्रेणी है। इसकी औसत ऊँचाई 6,000 मीटर है।
◆ इस श्रेणी में विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ पायी जाती हैं जिनमें प्रमुख है- माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर), नंदा देवी (7,817 मीटर), नंगा पर्वत ( 8, 126 मीटर), गोसांई थान (8,013 मीटर), कंचनजंघा (8,598 मीटर ), मकालू (8,481 मीटर), अन्नपूर्णा (8,078 मीटर), मनसालू (8, 156 मीटर), हरामोश (7397 मीटर) तथा धौलागिरि (8, 172 मीटर ) । इनमें कंचनजंघा, नंगा पर्वत और नंदा देवी भारत की सीमा में है और शेष नेपाल में है।
◆ इसी श्रेणी में भारत के प्रमुख दर्रे अवस्थित हैं।
◆ दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) को नेपाल में सागरमाथा व चीन में क्योमोलांगमा कहते हैं।
◆ भारत में हिमालय की सबसे ऊँची चोटी कंचनजंघा (8,598 मीटर) सिक्किम में स्थित है।
◆ सिंधु, सतलज, दिहांग, गंगा, यमुना तथा इनकी सहायक नदियों की घाटियाँ इसी श्रेणी में स्थित है।
(iii) लघु अथवा हिमालय श्रेणी
◆ इस श्रेणी की औसत ऊँचाई 1,828 से 3,000 मीटर तक है ।
◆ इस श्रेणी में नदियों द्वारा 1000 मीटर से भी अधिक गहरे खड्डों अथवा गार्जो का निर्माण किया गया है।
◆ यह श्रेणी मुख्यत: छोटी-छोटी पर्वत श्रेणियों जैसे- धौलाधार, नागटीबा, पीरपंजाल, महाभारत तथा मसूरी का सम्मिलित रूप है।
◆ इस श्रेणी के निचले भाग में देश के प्रसिद्ध पर्वतीय स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान जैसे- शिमला, मसूरी, नैनीताल, चकराता, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि अवस्थित हैं।
◆ इस श्रेणी के ढलानों पर मिलने वाले छोटे-छोटे घास के मैदानों को जम्मू-कश्मीर में मर्ग (जैसे- सोनमर्ग, गुलमर्ग आदि) तथा उत्तराखंड में बुग्याल एवं पयार कहा जाता है।
(iv) उपहिमालय या शिवालिक श्रेणी
◆ हिमालय की सबसे दक्षिण में स्थित इस श्रेणी को बाह्य हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। इसकी औसत ऊँचाई 1000 मीटर तक है।
◆ इसका विस्तार पाकिस्तान के पोटवार पठार से पूर्व में कोसी नदी तक है।
◆ गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) के समीप इसे डूंडवा श्रेणी तथा पूर्व की ओर चूरियामूरिया श्रेणी के स्थानीय नाम भी पुकारा जाता है।
◆ यह हिमालय पर्वत का सबसे नवीन भाग है।
◆ इस श्रेणी में मिट्टी और कंकड़ से बने ऊँचे मैदान मिलते हैं जिन्हें दून या द्वारा कहते हैं, जैसे- देहरादून, हरिद्वार।
◆ इस श्रेणी के बाद भारत के विशाल मैदान की शुरुआत होती है।
नोट: भारत की सबसे ऊँची पर्वत चोटी K-2 या गॉडविन ऑस्टिन है (ऊँचाई 8,611 मीटर) जो कि काराकोरम श्रेणी में स्थित है। यह पाक अधिकृत कश्मीर (POK) में है तथा वृहत हिमालय के उत्तर में स्थित है।
हिमालय का प्रादेशिक विभाजन
प्रादेशिक भाग का नाम | लंबाई (किमी में) | विस्तार |
पंजाब हिमालय | 560 | सिंधु एवं सतलज नदियों के मध्य |
कुमायूँ हिमालय | 320 | सतलज एवं काली नदियों के मध्य |
नेपाल हिमालय | 800 | काली एवं तिस्ता नदियों के मध्य |
असम हिमालय | 720 | तिस्ता एवं दिहांग नदियों के मध्य |
2. उत्तर का विशाल मैदान
◆ भारत का यह विशाल मैदान विश्व के सबसे अधिक उपजाऊ व घनी आबादी वाले भूभागों में से एक है। इसे गंगा का मैदान भी कहते हैं ।
◆ इस विशाल मैदान का निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाये गये निक्षेपों से हुआ है।
◆ यह मैदान धनुषाकार रूप में 2414 किमी की लंबाई में देश के 7.5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर फैला हुआ है।
◆ प्रादेशिक दृष्टि से उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा तथा असम में इसका विस्तार है।
◆ इस मैदान को मुख्यतः पश्चिमी तथा पूर्वी दो भागों में बाँटा जाता है।
◆ पश्चिमी मैदान का अधिकांश भाग वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पड़ता है जबकि इसका कुछ भाग पंजाब व हरियाणा राज्यों में भी मिलता है। इसका निर्माण सतलज, व्यास तथा गवी एवं इनकी सहायक नदियों द्वारा किया गया है।
◆ पूर्वी मैदान का विस्तार उत्तरप्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में है। इस मैदान में धरातलीय भू-आकृति के आधार पर बांगर तथा खादर नामक दो विशेष भाग मिलते हैं। बांगर ( Banger) प्राचीनतम संग्रहीत पुरानी जलोढ़ मिट्टी के उच्च मैदानी भाग हैं, जहाँ कभी भी नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता। खादर (Khadar) की गणना नवीनतम कछारी भागों के रूप में की जाती है। यहाँ पर प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुँचने एवं नई मिट्टी का जमाव होने से वे काफी उपजाऊ माने जाते हैं।
◆ उत्तर के विशाल मैदान से सम्बन्धित दो प्रमुख शब्दावलियाँ हैं- भावर तथा तराई। ये अवसादी जमाव की विशेषताओं की परिचायक भी हैं।
◆ भावर (Bhavar) क्षेत्र हिमालय तथा गंगा के मैदान के बीच पाया जाता है जिसमें पर्वतीय भाग से नीचे आने वाली नदियों ने लगभग 8 किमी की चौड़ाई में कंकड़ों एवं पत्थरों का जमाव कर दिया है। इस पथरीले क्षेत्र में हिमालय से निकलने वाली नदियाँ प्राय: विलीन हो जाती हैं और केवल कुछ बड़ी नदियों की धारा ही धरातल पर प्रवाहित होती दिखायी पड़ती हैं।
◆ तराई (Traai) क्षेत्र भावर के नीचे सामानांतर स्थित है, जिसकी चौड़ाई 15 से 30 किमी तक पायी जाती है। भावर प्रदेश में विलीन हुई नदियों का जल तराई क्षेत्र में ऊपर आ जाता है। यह वास्तव में निम्न समतल मैदानी क्षेत्र है, जहाँ नदियों का जल इधर-उधर फैल जाने से दलदलों का निर्माण होता है।
3. प्रायद्वीपीय पठार
◆ गंगा के विशाल मैदान के दक्षिण से लेकर कन्याकुमारी तक त्रिभुजाकार आकृति में लगभग 16 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर प्रायद्वीपीय पठारी भाग फैला हुआ है। यह देश के सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। इस पर प्रवाहित होने वाली नदियों ने इसको कई छोटे-छोटे पठारों में विभाजित कर दिया है।
◆ मालवा का पठार मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में है। यह ज्वालामुखीय चट्टानों से निर्मित है। इससे बेतवा, पार्वती, नीवज, काली सिंध, चंबल तथा माही नदियाँ निकलती है।
◆ विंध्याचल का पठार झारखंड, उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य में है। यह परतदार चट्टानों का बना है। विंध्याचल पर्वतमाला उत्तर भारत को दक्षिण भारत से अलग करता है।
◆ मैकाल पठार छत्तीसगढ़ में है। मैकाल पहाड़ी का सर्वोच्च शिखर अमरकंटक (1036 मीटर) है। यह पुरानी चट्टानों से निर्मित एक ब्लॉक पर्वत है। इसके पश्चिम की ओर से नर्मदा नदी, उत्तर की ओर से सोन नदी और दक्षिण की तरफ से महानदी निकलती है।
◆ छोटानागपुर स्थित रांची का पठार सम्प्राय मैदान का उदाहरण है। छोटानागपुर पठार को भारत का रूर भी कहा जाता है, क्योंकि खनिज भंडार की दृष्टि से यह भारत का सबसे सम्पन्न प्रदेश है।
◆ सतपुड़ा की पहाड़ियाँ मध्यप्रदेश राज्य में है। ये ज्वालामुखीय चट्टानों से निर्मित हुई है। इनकी सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ (1350 मीटर) है, जो महादेव पर्वत पर स्थित है। इसके पूर्वी हिस्से से ताप्ती नदी निकलती है।
◆ पश्चिमी घाट पर्वतमाला ताप्ती नदी के मुहाने से लेकर कुमारी अंतरीप तक लगभग 1600 किमी में विस्तृत है। इसकी औसत ऊँचाई 1200 मीटर है। पश्चिमी घाट से उत्तर में गुजरात के सौराष्ट्र प्रदेश में गिर की पहाड़ियाँ मिलती है जो एशियाई सिंह के लिए विख्यात है।
◆ दक्कन का पठार महाराष्ट्र राज्य में है। यह ज्वालामुखीय बेसाल्ट चट्टानों से बना है। यह काली मिट्टी का क्षेत्र है। इसके पश्चिमी हिस्से में सह्याद्रि की पहाड़ी है, जिसे पश्चिमी घाट भी कहते हैं, सह्याद्रि की सबसे ऊँची चोटी काल्सुबाई है। इस पठार के पूर्वी भाग को विदर्भ कहा जाता है।
◆ धारावाड़ का पठार कर्नाटक राज्य में है। यह परिवर्तित चट्टानों से बना है। इस पठार के पश्चिमी भाग में बाबाबुदन की पहाड़ी तथा ब्रह्मगिरी की पहाड़ी है।
◆ नीलगिरि की पहाड़ी तमिलनाडु में है, जो एक ब्लॉक पर्वत है। यह मुख्यतः चारनोकाइट पठार से बनी है। इसकी सबसे ऊँची चोटी डोडाबेट्टा (2637 मीटर) है जो दक्षिण भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी है। ‘उटकमंड या ऊटी’ इसी पहाड़ी पर है।
◆ तमिलनाडु राज्य में नीलगिरि के दक्षिण भाग में पाल घाट दर्रा है। पाल घाट दर्रा (Pal Ghat Gap) पश्चिम एवं पूर्वी घाट का मिलन स्थल है अर्थात् पूर्वी घाट एवं पश्चिमी घाट के मिलन स्थल पर नीलगिरि पहाड़ी स्थित है।
◆ दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुडी (2695 मीटर) है। यह अन्नामलाई की पहाड़ी पर स्थित है।
नोट : अनाईमुड़ी तीन पहाड़ियों का केन्द्र बिन्दु है। यहाँ से तीन पहाड़ी शृंखलाएँ तीन दिशाओं में जाती है। दक्षिण की ओर इलायची (कार्डेमम) की पहाड़ियाँ, उत्तर की ओर अन्नामलाई की पहाड़ियाँ तथा उत्तर-पूर्व की ओर पालनी की पहाड़ियाँ हैं। प्रसिद्ध पर्यटक स्थल ‘कोडायकनाल’ पालनी पहाड़ी में स्थित है, जो कि तमिलनाडु में है।
◆ पूर्वी घाट पर्वतमाला शृंखलाबद्ध रूप में नहीं मिलती क्योंकि महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नदियों ने इसे जगह-जगह पर काट दिया है।
◆ पूर्वी घाट की सबसे ऊँची चोटी ओडिशा की अरोयाकोंडा चोटी (विशाखापत्तनम चोटी) है।
◆ पूर्वी घाट को सबसे उत्तरी भाग में उत्तरी पहाड़ी (उत्तरी सरकार), मध्य में कुडप्पा पहाड़ी और दक्षिण में तमिलनाडु पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।
◆ नल्लामल्ला, एर्रामल्ला, वेलीकोंडा व पालकोंडा कुडप्पा पहाड़ी के अंतर्गत एवं शेवराय व जवादी तमिलनाडु पहाड़ियों के अन्तर्गत आते हैं।
◆ पूर्वी घाट की औसत ऊँचाई 600 मीटर है, यद्यपि दक्षिण में बिलगिरी श्रेणी के निकट यह सर्वाधिक उँचाई प्राप्त करती है।
पश्चिमी घाट के दर्रे
दर्रा | ऊँचाई (मीटर) | स्थिति एवं महत्त्व |
थाल घाट | 580 | नासिक एवं मुम्बई के बीच का सम्पर्क मार्ग |
भोर घाट | 520 | मुम्बई एवं पुणे के बीच का सम्पर्क मार्ग |
पाल घाट | 530 | कोयंबटूर एवं कोचीन के बीच का सम्पर्क मार्ग |
सिनकोट | 280 | त्रिवेन्द्रम एवं मदुरै के बीच का सम्पर्क मार्ग |
4. समुद्रतटीय मैदान
◆ दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठारी भाग के दोनों ओर पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट पर्वतमालाओं एवं सागर तट के बीच समुद्रतटीय मैदानों का विस्तार है। स्थिति के आधार पर इन्हें पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्र तटीय मैदानों में विभाजित किया जाता है।
(i) पूर्वी समुद्र तटीय मैदान
◆ पूर्वी समुद्र तटीय मैदान पश्चिम बंगाल से कुमारी अंतरीप तक मिलता है। इसकी चौड़ाई पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक है।
◆ इस पर प्रवाहित होने वाली नदियों – महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि ने विस्तृत डेल्टा का निर्माण किया है।
◆ इस पर चिल्का तथा पुलीकट जैसी विस्तृत झीलें भी पायी जाती है।
◆ इसके उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार तथा दक्षिणी भाग को कोरोमंडल तट के नाम से जाना जाता है।
◆ पूर्वी समुद्र तटीय मैदान को निम्न भागों में बाँटा गया है –
(a) कन्याकुमारी से कृष्णा डेल्टा तक का तट कोरोमंडल तट।
(b) कृष्णा डेल्टा से गोदावरी डेल्टा तक का तट गोलकुंडा तट |
(c) कृष्णा डेल्टा से लेकर उत्तरी तटीय भाग को उत्तरी सरकार तट कहा जाता है।
◆ भारत के पूर्वी तट पर स्थित प्रमुख बंदरगाह हैं- पारादीप (ओडिशा), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), विशाखापत्तनम (आंध्रप्रदेश), चेन्नई, तूतोकोरिन एवं एन्नौर (तमिलनाडु)।
◆ विशाखापत्तनम बंदरगाह डॉल्फिन नामक चट्टान के पीछे सुरक्षित है।
◆ पूर्वी तट पर स्थित प्रमुख लैगून हैं- पुलिकट (चेन्नई, तमिलनाडु), चिल्का (पुरी, ओडिशा) तथा कोलेरू (आंध्रप्रदेश ) ।
◆ पुलिकट एक वलयाकार प्रवाल झील (Atoll Lagoon) है जो श्रीहरिकोटा दीप द्वारा समुद्र से विलग है।
(ii) पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान
◆ पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान का विस्तार गुजरात में कच्छ की खाड़ी से लेकर कुमारी अंतरीप तक पाया जाता है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी है। इस मैदान की सर्वाधिक चौड़ाई नर्मदा तथा ताप्ती नदियों के मुहानों के समीप 80 किमी तक मिलती है।
◆ इस मैदान का ढाल पश्चिम की ओर अत्यधिक तीव्र है, जिस पर तीव्रगामी नदियाँ प्रवाहित होती हैं।
◆ इस मैदान को निम्न भागों में बाँटा गया है –
(a) गुजरात का मैदान – गुजरात का तटवर्ती क्षेत्र।
(b) कोंकण तटगुजरात से गोवा तक का तटीय क्षेत्र ।
(c) कन्नड़ / केनरा तट – गोवा से कर्नाटक के मंगलौर तक का तटीय क्षेत्र ।
(d) मालाबार तट – मंगलौर से कन्याकुमारी तक का तटीय क्षेत्र ।
◆ भारत के पश्चिमी तट पर स्थित प्रमुख बंदरगाह हैं- कांडला (गुजरात), मुंबई (महाराष्ट्र), मार्मागोवा (गोवा), मंगलौर (कर्नाटक), कोच्चि (केरल), न्हावासेवा (महाराष्ट्र) ।
◆ मालाबार तट पर अनेक पश्च जल है, जिसे स्थानीय भाषा में कयाल (Kayal) कहते हैं।