Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
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HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers
अध्याय संबंधी महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ/शब्दावली
HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास InText Questions and Answers
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 157)
प्रश्न 1. यदि एक ‘लक्षण-A’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि के 10 प्रतिशत सदस्यों में पाया जाता है तथा ‘लक्षण-B’ उसी समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है, तो कौन-सा लक्षण पहले उत्पन्न हुआ होगा?
उत्तर- लक्षण-B’ अलैंगिक प्रजनन वाली समष्टि में 60 प्रतिशत जीवों में पाया जाता है। यह लक्षण-A’ प्रजनन वाली समष्टि से 50 प्रतिशत अधिक है इसलिए ‘लक्षण-B’ पहले उत्पन्न हुआ होगा।
प्रश्न 2. विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी स्पीशीज का अस्तित्व किस प्रकार बढ़ जाता है?
उत्तर- विभिन्नताओं के उत्पन्न होने से किसी जाति (species) की उत्तरजीविता की सम्भावना बढ़ जाती है। जाति की उत्तरजीविता का आधार वातावरण में घटने वाला प्राकृतिक चयन ही होता है। समय के साथ उनमें जो प्रगति की प्रवृत्ति दिखाई देती है उसके साथ उनके शारीरिक अधिकल्प में जटिलता की वृद्धि भी हो जाती है। विभिन्नताएँ जैव विकास का आधार हैं।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 161)
प्रश्न 1. मेण्डल के प्रयोगों द्वारा कैसे पता चला कि लक्षण प्रभावी अथवा अप्रभावी होते हैं?
उत्तर- मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के दो विपर्यासी लक्षणों को चुना, जैसे कि मटर के लम्बे पौधे जो लम्बे पौधों को उत्पन्न करते थे तथा बौने पौधे जो बौने पौधों को ही उत्पन्न करते थे। जब मेण्डल ने लम्बे पौधे तथा बौने पौधे के बीच संकरण कराया तो प्रथम संतति (F) में सभी पौधे लम्बे थे। इससे स्पष्ट हो गया कि पौधे के लम्बेपन का लक्षण बौनेपन लक्षण पर प्रभावी हो गया तथा बौनापन अप्रभावी होने के कारण छिपा रह गया।
जब F1 पीढ़ी के पौधों में मेण्डल ने स्वपरागण होने दिया और इससे प्राप्त बीजों को उगाने पर देखा कि लम्बे और बौने पौधे 3 : 1 के अनुपात में उत्पन्न हुए। इस प्रयोग से ज्ञात हो गया कि लक्षण प्रभावी एवं अप्रभावी होते हैं। उपर्युक्त विवरण के आधार पर ही मेण्डल का प्रथम नियम, प्रभाविता का नियम स्थापित हुआ।
प्रश्न 2. मेण्डल के प्रयोगों से कैसे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं? [CBSE 2015]
उत्तर- मेण्डल ने अपने प्रयोगों में दो जोड़ी विपर्यासी (contrasting) लक्षणों का चयन किया, जैसे-पीले एवं गोल तथा हरे एवं झुर्शीदार बीज वाले पौधे। जब उन्होंने पीले एवं गोल (RRYY) बीज वाले पौधे का क्रॉस हरे एवं झुर्शीदार (rryy) बीज वाले पौधे के साथ कराया तो प्रथम पुत्री पीढ़ी में सभी पौधे पीले तथा गोल बीज वाले थे। जब F, पीढ़ी के पौधों के बीच उन्होंने स्वपरागण होने दिया तो F, पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे उत्पन्न हुए-
- पीले एवं गोल बीज वाले,
- पीले एवं झुरींदार बीज वाले,
- हरे एवं गोल बीज वाले,
- हरे एवं झुर्रादार बीज वाले।
F2 पीढ़ी में उपर्युक्त पौधों का अनुपात 9: 3:3:1 था। इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि बीजों के रंग एवं आकृति की वंशानुगत पीढ़ी एक-दूसरे से प्रभावित नहीं होती। ये लक्षण स्वतन्त्र रूप से वंशानुगत होते हैं। इसे मेण्डल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम भी कहते हैं।
प्रश्न 3. एक ‘A’ रुधिर वर्ग वाला पुरुष एक स्त्री जिसका रुधिर वर्ग ‘0’ है से विवाह करता है। उनकी पुत्री का रुधिर वर्ग ‘0’ है। क्या यह सूचना पर्याप्त है? यदि आपसे कहा जाए कि कौन-सा विकल्प लक्षण-रुधिर वर्ग ‘A’ अथवा ‘0’ प्रभावी लक्षण है? अपने उत्तर का स्पष्टीकरण दीजिए। .
उत्तर- ‘A’ तथा ‘0’ रुधिर वर्ग में कौन-सा लक्षण प्रभावी है, यह बताने के लिए यह सूचना कि पुत्री का रुधिर वर्ग ‘O’ है, पर्याप्त नहीं है। रुधिर वर्ग का निर्धारण रुधिर में उपस्थित प्रतिजन (Antigen) तथा प्रतिरक्षी (antibody) की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर किया जाता है। ‘A’ रुधिर वर्ग में ‘A’ प्रतिजन व ‘b’ प्रतिरक्षी पाया जाता है, जबकि ‘O’ रुधिर वर्ग में कोई प्रतिजन नहीं पाया जाता परन्तु ‘a’ एवं ‘b’ दोनों प्रतिरक्षी अवश्य पाए जाते हैं। al, a तथा a° जीन प्रतिजन के लिए उत्तरदायी होते हैं।
a bb क्रमशः a° पर प्रभावी होते हैं।’A’ रुधिर वर्ग वाले पुरुष की जीन संरचना a° a° तथा ‘0’ रुधिर वाली स्त्री की जीन संरचना a° a° होने पर पुत्री पिता से a° तथा माता से a° जीन अर्थात् दोनों सुप्त जीन प्राप्त करने के कारण ‘O’ रुधिर वर्ग वाली होती है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि ‘A’ प्रभावी होगा।
प्रश्न 4. मानव में बच्चे का लिंग निर्धारण कैसे होता है
उत्तर- मानव में उपस्थित लिंग गुणसूत्रों (Sex chromosomes) द्वारा बच्चे के लिंग का निर्धारण किया जाता है
- पुरुषों में दोनों लिंग गुणसूत्रों में से एक गुणसूत्र X तथा दूसरा गुणसूत्र Y होता है।
- स्त्री में दोनों लिंग गुणसूत्र समान अर्थात् XX होते
- पुरुष दो प्रकार के शुक्राणु उत्पन्न करते हैं। आधे शुक्राणु X गुणसूत्रों को तथा आधे शुक्राणु Y गुणसूत्रों को धारण करते हैं।
- स्त्री में केवल एक अण्डाणु बनता है, जिसमें X गुणसूत्र होता है।
- जब X गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु (X) में संलयन करता है तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़की (XX) होती है।
- जब Y गुणसूत्र युक्त शुक्राणु, अण्डाणु (X) से संलयन करता है तो उत्पन्न होने वाली सन्तान लड़का (XY) होता है।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 165)
प्रश्न 1. वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है?
उत्तर- किसी एक विशेष लक्षण वाले व्यष्टि जीवों की समष्टि में संख्या निम्नलिखित तरीकों से बढ़ सकती है-
(i) यदि व्यष्टि में विशिष्ट लक्षण पर्यावरण के अनुकूल हो और इसका प्राकृतिक चयन होता रहे तब इस लक्षण वाले जीवों की संख्या समष्टि में बढ़ सकती है। उदाहरणार्थ, लाल शृंग की समष्टि में हरे रंग वाले भृग का उत्पन्न होना। पक्षी हरे रंग के भंगों को पत्तियों के बीच में पहचान नहीं पाते हैं और भंग शिकार होने से बच जाते हैं, जबकि लाल भुंग आसानी से पहचाने जा सकते हैं और पक्षियों के शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार हरे रंग के ,गों की संख्या समष्टि में बढ़ जाती है।
(ii) आकस्मिक दुर्घटना के कारण जब किसी समष्टि के अत्यधिक सदस्य समाप्त हो जाते हैं तो जीन पूल (gene pool) सीमित रह जाता है। इससे समष्टि का रूप बदल जाता है। इसे जीनी अपवहन (Genetic Drift) कहते हैं। ऐसा प्रायः महामारियों, परभक्षण, प्रलय आदि के कारण होता है।
प्रश्न 2. एक एकल जीव द्वारा उपार्जित लक्षण सामान्यतया अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते, क्यों ?
उत्तर- उपार्जित लक्षणों के प्रभाव केवल कायिक कोशिकाओं पर ही होते हैं अर्थात् इनका समावेशन आनुवंशिक पदार्थ (डी. एन. ए.) में नहीं होता है। आनुवंशिक पदार्थ में होने वाले परिवर्तन ही अगली पीढ़ी में वंशानुगत हो सकते हैं, अतः उपार्जित लक्षण सामान्यतया अगली पीढ़ी में वंशानुगत नहीं होते हैं।
प्रश्न 3. बाघों की संख्या में कमी आनुवंशिकता की दृष्टि से चिन्ता का विषय क्यों है ? ..
उत्तर- बाघों की संख्या में लगातार हो रही कमी यह दर्शाती है कि बाघ प्राकृतिक चयन में पिछड़ रहे हैं अर्थात् उनमें प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन नहीं हो रहे हैं जो कि समष्टि में इनकी संख्या बढ़ा सके। छोटी समष्टि पर दुर्घटनाओं का प्रभाव अधिक पड़ता है जिससे जीवों की आवृत्ति प्रभावित हो सकती है। अतः बाघों की घटती संख्या चिन्ता का विषय है क्योंकि इनका प्रकृति के अनुकूल परिवर्तन न कर सकने के कारण बाघों की प्रजाति कभी भी विलुप्त हो सकती है। बाघों के संरक्षण हेतु टाइगर प्रोजेक्ट के अन्तर्गत इन्हें सुरक्षित राष्ट्रीय उद्यानों में रखा गया है।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 166)
प्रश्न 1. वे कौन से कारक हैं, जो नई स्पीशीज के उद्भव में सहायक हैं?
उत्तर- नई जाति के उद्भव (speciation) में निम्नलिखित कारक सहायक हैं-
- लैंगिक प्रजनन के फलस्वरूप उत्पन्न परिवर्तन,
- दो उपसमष्टियों का एक-दूसरे से भौगोलिक पृथक्करण। इसके कारण समष्टियों के सदस्य परस्पर प्रजनन नहीं कर पाते हैं।
- आनुवंशिक अपवहन।
- प्राकृतिक चयन।
प्रश्न 2. क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं ?
उत्तर- जाति उद्भव (speciation) में भौगोलिक पृथक्करण (Geographical isolation) ही प्रमुख कारण है। विशेष रूप से अलैंगिक जनन करने वाले पादपों में एक जीवधारी भौतिक परिस्थितियों में जीवित रहता है परन्तु कुछ जीवधारी यदि निकटवर्ती भौगोलिक पर्यावरण में विस्थापित हो जाते हैं जिनमें विभिन्न भौतिक परिवर्तनीय लक्षण हों तो वे जीवित नहीं रहेंगे। यदि जीवित रह रहे जीवधारियों में अलैंगिक जनन होता है तत्पश्चात् वे अन्य पर्यावरण में विस्थापित होते हैं तो भी भिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में जीवित नहीं रह पाएँगे।
प्रश्न 3. क्या भौगोलिक पृथक्करण स्वपरागित स्पीशीज के पौधों के जाति उद्भव का प्रमुख कारण हो सकता है? क्यों या क्यों नहीं?
उत्तर- नहीं, क्योंकि अलैंगिक जनन के लिए दूसरे जीव की आवश्यकता नहीं है। यह एकल जीव द्वारा ही सम्पन्न होता है। अतः भौगोलिक पृथक्करण का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 171)
प्रश्न 1. उन अभिलक्षणों का एक उदाहरण दीजिए जिनका उपयोग हम दो स्पीशीज के विकासीय सम्बन्ध निर्धारण के लिए करते हैं?
उत्तर- लगभग 2000 वर्ष पूर्व जंगली बन्दगोभी को खाद्य पौधे के रूप में उगाया जाने लगा था, यह एक कृत्रिम चयन था न कि प्राकृतिक चयन। इसलिए कुछ किसानों का अनुमान था कि इस गोभी में पत्तियाँ आपस में निकट होनी चाहिए। अतः उन्होंने परस्पर संकरण द्वारा उस बंदगोभी को प्राप्त किया जिसका हम आजकल प्रयोग करते हैं। कुछ किसानों ने पत्तियों को पुष्पों के निकट प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। अतः उन्होंने प्रयास करके इस प्रकार का पौधा प्राप्त किया। इस पौधे को आधुनिक फूलगोभी का नया नाम दिया गया। इस प्रकार बन्दगोभी एवं फूलगोभी दोनों निकट स्पीशीज हैं जो उद्विकास से विकसित स्पीशीज हैं।
प्रश्न 2. क्या एक तितली और चमगादड़ के पंखों को समजात अंग कहा जा सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर- ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न होते हैं, समजात (homologous) अंग कहलाते हैं। चूँकि तितली एवं चमगादड़ के पंखों के कार्य (उड़ना) तो समान हैं लेकिन उनकी उत्पत्ति एवं मूल रचना समान नहीं है अतः ये समजात अंग नहीं हैं। ये समवृत्ति अंग है।
प्रश्न 3. जीवाश्म क्या हैं? वह जैव-विकास प्रक्रम के विषय में क्या दर्शाते हैं?
उत्तर- प्राचीनकाल के जीवों के अवशेष, जो प्राचीन काल में पृथ्वी पर पाये जाते थे, किन्तु अब जीवित नहीं हैं, जीवाश्म कहलाते हैं। ये अवशेष प्राचीन समय में मृत जीवों के सम्पूर्ण, अपूर्ण, अंग या अन्य भाग के अवशेष या उन अंगों के ठोस मिट्टी, शैल तथा चट्टानों पर बने चिन्ह होते हैं जिन्हें पृथ्वी को खोदने से प्राप्त किया गया है।
ये चिन्ह इस बात का प्रतीक हैं कि ये जीव करोड़ों वर्ष पूर्व जीवित थे लेकिन वर्तमान में विलुप्त हो चुके हैं-
- जीवाश्म उन जीवों के पृथ्वी पर अस्तित्व की पुष्टि करते हैं।
- इन जीवाश्मों की तुलना वर्तमान काल में उपस्थित समतुल्य जीवों से कर सकते हैं।
इनकी तुलना से अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्तमान में उन जीवाश्मों के जीवित स्थिति के काल के सापेक्ष क्या विशेष परिवर्तन हुए हैं, जो जीवधारियों को जीवित रखने के प्रतिकूल हो गए हैं।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 173)
प्रश्न 1. क्या कारण है कि आकृति, आकार, रंग-रूप में इतने भिन्न दिखाई देने वाले मानव एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं?
उत्तर- मानव में आकृति, आकार, रंग-रूप आदि भिन्नता का कारण भौतिक पर्यावरण के कारकों से भौतिक लक्षणों में होने वाले परिवर्तन हैं। उनकी जैविक संरचना के लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है इसीलिए उनके अंगों में कोई परिवर्तन नहीं आता। परन्तु भौगोलिक परिस्थितियों में परिवर्तनों के कारण उनके आकार, रंग तथा दिखाई देने वाली आकृति में परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं, जबकि वे एक ही स्पीशीज के सदस्य हैं।
प्रश्न 2. विकास के आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी में किसका शारीरिक अभिकल्प उत्तम है? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- जीवाणु, मकड़ी, मछली तथा चिम्पैंजी आदि में उद्विकास के आधार पर इनके शरीरों में जीवधारियों के वंशों की विविधता के अस्तित्व के लक्षण विद्यमान होते हैं। यद्यपि चिम्पैंजी का शारीरिक अभिकल्प अन्य की अपेक्षा अधिक विकसित है; लेकिन अन्य जीवाणु, जैसे-मकड़ी, मछली आदि के अभिकल्पों को अविकसित नहीं कहा जा सकता ये शरीर की प्रतिकूलता को अनुकूलता में परिवर्तित कर देते हैं, जैसे-गर्म झरने, गहरे समुद्रों के गर्म स्रोत तथा अन्टार्कटिका में बर्फ आदि में उपस्थित जीवधारियों के लक्षण जो उन्हें उत्तरजीविता के योग्य बनाते हैं। जैव विकास के आधार पर यह इनकी विशेषतायें हैं। अभिकल्प को उत्तम या अधम नहीं कहा जा सकता।
HBSE 10th Class Science अनुवांशिकता एवं जैव विकास Textbook Questions and Answers
पाठ्य-पुस्तक के अभ्यास के प्रश्न
प्रश्न 1. मेण्डल के एक प्रयोग में लम्बे मटर के पौधे जिनके बैंगनी पुष्प थे, का संकरण बौने पौधों जिनके सफेद पुष्प थे, से कराया गया। इनकी संतति के सभी पौधों में पुष्य बैंगनी रंग के थे, परन्तु उनमें से लगभग आधे बौने थे। इससे कहा जा सकता है कि लम्बे जनक पौधों की आनुवंशिक रचना निम्न थी –
(a) TT WW
(b) TT ww
(c) Tt WW
(d) Tt Ww.
उत्तर- (c) Tt WW
प्रश्न 2. समजात अंगों का उदाहरण है –
(a) हमारा हाथ तथा कुत्ते का अग्रपाद
(b) हमारे दाँत तथा हाथी के दाँत
(c) आलू तथा घास के उपरिभूस्तारी
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर- (d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 3. विकासीय दृष्टिकोण से हमारी किससे अधिक समानता है
(a) चीन के विद्यार्थी
(b) चिम्पैंजी
(c) मकड़ी
(d) जीवाणु।
उत्तर- (b) चिम्पैंजी
प्रश्न 4. एक अध्ययन से पता चला कि हल्के रंग की आँखों वाले बच्चों के जनक (माता-पिता) की आँखें भी हल्के रंग की होती हैं। इसके आधार पर क्या हम कह सकते हैं कि आँखों के हल्के रंग का लक्षण प्रभावी है अथवा अप्रभावी? अपने उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त परिस्थिति में नेत्रों का हल्का रंग प्रभावी लक्षण है। अत: यह लक्षण जनकों से भावी पीढ़ी की सन्तानों में स्थानान्तरित हो सकता है। प्रभावी लक्षण उसी अवस्था में अथवा कुछ परिवर्तन के साथ भावी पीढ़ी में चले जाते हैं। इनमें अप्रभावी लक्षण भी उपस्थित होते हैं। ये अप्रभावी लक्षण प्रभावी लक्षणों की अनुपस्थिति में सन्तान में प्रदर्शित हो सकते हैं।
प्रश्न 5. जैव विकास तथा वर्गीकरण का अध्ययन क्षेत्र किस प्रकार परस्पर संबंधित है?
उत्तर- दो जातियों के बीच जितने अधिक अभिलक्षण समान होंगे उनका सम्बन्ध भी उतना ही निकट का होगा। जितनी अधिक समानताएँ उनमें होंगी उनका उद्भव भी निकट अतीत में समान पूर्वजों से हुआ होगा। उदाहरण के लिए; एक भाई एवं बहिन अति निकट सम्बन्धी हैं। उनसे पहली पीढ़ी में उनके पूर्वज समान थे अर्थात् वे एक ही माता-पिता की सन्तान हैं। लड़की के चचेरे/ममेरे भाई बहिन भी उनसे सम्बन्धित हैं लेकिन उसके अपने भाई से कम निकट का सम्बन्ध है। इसका मुख्य कारण है कि उनके पूर्वज समान हैं, अर्थात् दादा-दादी जो उनसे दो पीढ़ी पहले के हैं, न कि एक पीढ़ी पहले के। अब हम इस बात को भली प्रकार समझ सकते हैं कि जाति/जीवों का वर्गीकरण उनके विकास के सम्बन्धों का प्रतिबन्ध है।
प्रश्न 6. समजात तथा समरूप अंगों को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर- समजात अंग-ऐसे अंग जो उत्पत्ति एवं मूल रचना में समान होते हैं तथा जिनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं, समजात अंग कहलाते हैं। उदाहरण-घोड़े के अग्रपाद, चमगादड़ एवं पक्षी के पंख, मनुष्य के हाथ आदि। समरूप अंग-ऐसे अंग जिनकी उत्पत्ति तथा मूल रचना भिन्न-भिन्न होती हैं किन्तु कार्य समान होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं।
उदाहरण-तितली के पंख एवं चमगादड़ के पंख, आदि।
प्रश्न 7. कुत्ते की खाल का प्रभावी रंग ज्ञात करने के उद्देश्य से एक प्रोजेक्ट बनाइए।
उत्तर- माना कुत्ते की त्वचा का काला रंग (W), भूरे रंग (w) पर प्रभावी लक्षण है। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-
अत: F2 पीढ़ी में तीन कुत्ते काले एवं एक कुत्ता भूरा है। यह प्रोजेक्ट दर्शाता है कि काला रंग भूरे पर प्रभावी है।
प्रश्न 8. विकासीय सम्बन्ध स्थापित करने में जीवाश्म का क्या महत्त्व है?
उत्तर- जीवाश्म विकास के पक्ष में प्रमाण उपलब्ध कराते हैं। ये किसी जीव के विकास काल की सापेक्ष जानकारी एवं विकास की विलुप्त कड़ियों की भी जानकारी प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स नामक जीवाश्म में पक्षियों एवं सरीसृपों दोनों के गुण पाये जाते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है। अतः जीवाश्म विकास की कड़ियों को खोलने में सहायक हैं। जीवाश्मों की आयु का निर्धारण चट्टान में पाये जाने वाले रेडियोधर्मी तत्वों और इसके रेडियोधर्मिताविहीन समस्थानिक तत्वों के अनुपात से किया जाता है।
प्रश्न 9. किन प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीवन की उत्पत्ति पदार्थों से हुई है?
उत्तर- हम जानते हैं कि अनेकों अकार्बनिक पदार्थ तथा कार्बनिक पदार्थ विशिष्ट परिस्थितियों में मिलकर जीन का निर्माण करते हैं जो आनुवंशिकता की इकाई हैं। हाल्डेन तथा मिलर एवं यूरे ने अपने प्रयोग द्वारा प्रयोगशाला में यह सिद्ध कर दिया कि प्रारम्भिक जीव की उत्पत्ति अकार्बनिक पदार्थों से हुई। अकार्बनिक अणुओं से कुछ जटिल कार्बनिक अणुओं का संश्लेषण हुआ जिसके फलस्वरूप वे सरल कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हुये तथा अमीनों अम्ल जैसे पदार्थों का निर्माण हुआ जो जीवन का आधार होते हैं।
प्रश्न 10. अलैंगिक जनन की अपेक्षा लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं, व्याख्या कीजिए। यह लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों के विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर- लैंगिक जनन की प्रक्रिया में संयुग्मन करने वाले युग्मक (gametes) विभिन्न जनकों से आते हैं। इनके मिलने से युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है। युग्मनज से सम्पूर्ण संतति जीव विकसित होता है। युग्मकों का निर्माण डी. एन. ए. के प्रतिकृतिकरण के द्वारा सम्भव होता है और डी. एन. ए. के प्रतिकृति होने के समय इसमें अनेक विभिन्नताएँ उत्पन्न हो जाती हैं जो नये जीव में वंशानुगत होती हैं। इसीलिए लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न विभिन्नताएँ अधिक स्थायी होती हैं।
अलैंगिक जनन में उत्पन्न विभिन्नताएँ जीव के जनन द्रव्य में न होकर केवल प्लाज़्मा द्रव्य में होती हैं अतः ये स्थायी नहीं होती हैं। यदि किसी प्रकार की विभिन्नता उत्तम है तो यह जीव के विकास व उत्तरजीविता के अधिक अवसर प्रदान करेगी। यह नयी स्पीशीज के उद्भव का मुख्य कारक है।
प्रश्न 11. संतति में नर एवं मादा जनकों द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की भागीदारी किस प्रकार सुनिश्चित की जाती है?
उत्तर- सामान्यतया विकसित जीवधारियों की कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों के दो जोड़े होते हैं। इसे 2n से प्रदर्शित करते हैं और ऐसी कोशिकाओं को द्विगुणित कहते हैं। द्विगुणित जनन कोशिकाओं में युग्मक निर्माण के समय अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। इसके फलस्वरूप अगुणित (n) युग्मकों का निर्माण होता है।
संतति निर्माण के समय जनक युग्मक मिलकर द्विगुणित युग्मनज (Zygote) बनाते हैं। युग्मनज से सन्तान का विकास होता है। इसमें एक युग्मक माता (मादा) से तथा दूसरा युग्मक पिता (नर) से आता है। अतः स्पष्ट है कि सन्तान की उत्पत्ति में नर एवं मादा द्वारा आनुवंशिक योगदान में बराबर की हिस्सेदार होती है तथा ये युग्मक ही आनुवंशिक पदार्थ का वहन करते हैं।
प्रश्न 12. केवल वे विभिन्नताएँ जो किसी एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी होती हैं, समष्टि में अपना अस्तित्व बनाए रखती हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों एवं क्यों नहीं ? |
उत्तर- हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं क्योंकि जो विभिन्नताएँ एकल जीव (व्यष्टि) के लिए उपयोगी हैं, वे वर्तमान पर्यावरण के अनुकूल हैं और प्राकृतिक चयन द्वारा अपने अस्तित्व को बनाये रखती हैं। ये विभिन्नताएँ समय व्यतीत होने के साथ-साथ समष्टि की मुख्य विशेषता के रूप में स्थापित हो जाती हैं। जीवधारी इन विभिन्नताओं के कारण स्वयं को वातावरण से अनुकूलित किए रहते हैं। यह जीवधारी सफल होते हैं और अपनी संतति को निरन्तर सृष्टि में बनाये रखते हैं।
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (Very short Answer Type Questions)
बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions)
1. जब मटर के लम्बे पौधे का संकरण बौने पौधे के साथ कराया जाता है तो प्रथम पुत्रीय पीढ़ी में उत्पन्न पौधे होंगे –
(A) सभी लम्बे पौधे
(B) सभी बौने पौधे
(C) आधे लम्बे तथा आधे बौने पौधे
(D) तीन पौधे लम्बे तथा एक पौधा बौना।
उत्तर- (A) सभी लम्बे पौधे।
2. निम्न में से परीक्षण संकरण (Test cross) है –
(A) Tt xTt
(B) TT xTt
(C)TT x TT
(D) Tt x TT.
उत्तर- (D) Tt x TT.
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
प्रश्न 1. जैव विविधता क्या है? इसके विभिन्न स्तर कौन से हैं ?
उत्तर- जैव विविधता (Biodiversity)-पृथ्वी पर जन्तुओं एवं पेड़-पौधों की लाखों प्रजातियाँ पायी जाती हैं। इन सभी में संरचनात्मक एवं क्रियात्मक अन्तर पाए जाते हैं, इन अन्तरों को ही जैव विविधता कहते हैं।
जैव विविधता के विभिन्न स्तर निम्नलिखित हैं-
- आनुवंशिक विविधता
- प्रजाति विविधता
- पारितान्त्रिक विविधता।।
प्रश्न 2. जीवों में विभिन्नताएँ किस प्रकार उत्पन्न होती हैं
उत्तर- जीवों में विभिन्नताएँ निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती हैं
- अन्तर्निहित प्रवृत्ति-लैंगिक जनन के दौरान पैतृक गुणसूत्र एवं मातृक गुणसूत्रों के बीच जीन विनिमय होता है इस दौरान युग्मक बनते समय कुछ परिवर्तन उत्पन्न हो जाते हैं इसलिए लैंगिक जनन में विविधता अन्तर्निहित हो जाती है।
- DNA की प्रतिकृति बनाने में उत्परिवर्तन-DNA की प्रतिकृति बनते समय इसमें कुछ त्रुटि रह जाती है। इसके फलस्वरूप संतति जीव में अत्यधिक विविधता उत्पन्न होती
प्रश्न 3. आनुवंशिकता की परिभाषा लिखिए। आनुवंशिकता के सम्बन्ध में मेण्डल का क्या योगदान है?
उत्तर-
जीव-विज्ञान की वह शाखा जिसमें एक जीव के लक्षणों का उसकी संतति में वंशागत होने तथा उसमें उत्पन्न विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है। ग्रेगर जॉन मेण्डल ने मटर के पौधों पर अपने प्रयोग किये तथा वंशागति के नियम प्रतिपादित किए। उन्होंने अपने कार्यों को सन् 1866 में “ब्रुन सोसाइटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री” में प्रकाशित कराया। मेण्डल के कार्यों के आधार पर उन्हें आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है।
प्रश्न 4. मेण्डल के कार्य का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर- आस्ट्रिया के निवासी ग्रेगर जॉन मेण्डल (18221884) ने गिरजाघर के उद्यान में मटर के पौधों पर अनेकों प्रयोग किये। उन्होंने मटर के सात जोड़ी विपर्यासी लक्षणों को चुना, जैसे-पौधे की ऊँचाई, पुष्प का रंग, बीज की आकृति, पुष्पों की स्थिति, बीजों का रंग, फली का आकार, तथा फली का रंग। मेण्डल ने विभिन्न गुणों के पौधों के बीच संकरण के प्रयोग किये तथा तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पौधों में पाये जाने वाले लक्षणों का नियन्त्रण विशेष इकाइयों (कारक) द्वारा होता है। ये कारक ही बाद में ‘जीन’ कहलाए। मेण्डल के योगदान के आधार पर इन्हें आनुवंशिकी का पिता या जनक कहते हैं।
प्रश्न 5. मेण्डल के आनुवंशिकता के प्रभाविता (प्रबलता) के नियम को समझाइए।
उत्तर- प्रभाविता का नियम-जब एक जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता है तो प्रथम पीढ़ी में इनमें से केवल एक लक्षण परिलक्षित अथवा प्रकट होता है तथा दूसरा छिप जाता है। प्रकट होने वाला लक्षण प्रभावी तथा छिपा हुआ लक्षण अप्रभावी होता है। समयुग्मजी समयुग्मजी पैतृक (शुद्ध लंबे पौधे) ।
प्रश्न 6. उस पादप का नाम लिखिए जिसका उपयोग मेण्डल ने अपने प्रयोगों में किया था। जब उन्होंने लम्बे और बौने पादपों का संकरण कराया तो उन्हें F1, और F2, पीढ़ियों में संततियों के कौन से प्रकार प्राप्त हुए? F2 पीढ़ी में उन्हें प्राप्त पौधों में अनुपात लिखिए। (CBSE 2019)
उत्तर- मेण्डल ने अपने प्रयोगों में मटर (pisum sativum) के पादप का उपयोग किया। F1 पीढ़ी में सभी पादप लम्बे तथा F2 पीढ़ी में लम्बे तथा बौने दोनों प्रकार के पादप प्राप्त हुए। चूँकि F2 पीढ़ी में 3 पादप लम्बे तथा 1 पादप छोटा प्राप्त हुआ इसलिए F2 पीढ़ी में प्राप्त पादपों का अनुपात 3 : 1 है। .
अथवा
प्रत्येक का एक-एक उदाहरण देते हुए उपार्जित और आनुवंशिक लक्षणों के बीच दो अन्तरों की सूची बनाइए।
उत्तर-
उपार्जित लक्षण | आनुवंशिक लक्षण |
(i) ये लक्षण जीव द्वारा अपने जीवनकाल में अपने शरीर में विकसित किये जाते हैं। | ये लक्षण जीव को अपने माता-पिता से आनुवांशिक रूप में प्राप्त होते हैं। |
(ii) ये लक्षण जनन कोशि- काओं के जीनों में परिवर्तन नहीं लाते हैं। | ये लक्षण जनन कोशि काओं के जीनों में परिवर्तन लाते हैं। |
(iii) उदाहरण : लम्बे समय तक भूखे रहने के कारण शरीर के भार में कमी होना। | उदाहरण : बालों का रंग, आँख की पुतली का रंग। |
प्रश्न 7. किसी एकल जीव द्वारा अपने जीवनकाल में उपार्जित लक्षण अगली पीढ़ी में वंशानुगत क्यों नहीं होते? व्याख्या कीजिए। (CBSE 2020)
उत्तर- एक जीव के ऐसे लक्षण (अथवा विशेषता) जो वंशानुगत नहीं होते परंतु वातावरण की प्रतिक्रियास्वरूप उसके द्वारा अपने जीवनकाल में उपार्जित किए जाते हैं, उपार्जित लक्षण कहलाते हैं। जीव के उपार्जित लक्षण उसकी भावी पीढ़ियों में वंशानुगत नहीं होते क्योंकि ये लक्षण उस व्यक्ति या जीव की जनन कोशिकाओं के डी.एन.ए. में परिवर्तन नहीं ला पाते।
उदाहरण : एक खिलाड़ी द्वारा अपने खेल को खेलने के लिए अपनी मांसपेशियों को विशेष प्रकार से तैयार करना। ऐसे लक्षणों को उपार्जित लक्षण कहते हैं।
प्रश्न 8. किसी दिए गए हरे तने वाले गुलाब के पौधे को GG से दर्शाया गया है तथा भूरे तने वाले गुलाब के पौधे को gg से दर्शाया गया है। इन दोनों पौधों के बीच संकरण कराया गया है।
(a) नीचे दिए गए अनुसार अपने प्रेक्षणों की सूची बनाइए :
(i) इनकी F1 संतति में तने का रंग,
(ii) यदि F1 संतति के पौधों का स्व:परागण कराया जाए तो F2 संतति में भूरे तने वाले पौधों की प्रतिशतता,
(iii) F2 संतति में GG और Gg का अनुपात।
(b) इस संकरण की जांच के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है?
उत्तर-
(a)
(i) F1 संतति में तने का रंग हरा होगा।
(ii) F2 संतति में भूरे तने वाले पौधे की प्रतिशतता 25% होगी।
(iii) F2 संतति में GG और Gg का अनुपात 1 : 2 होगा।
(b) इस संकरण के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकालते हैं कि गुलाब के पौधे में तने का हरे रंग का लक्षण प्रभावी लक्षण है जबकि तने के भूरे रंग का लक्षण अप्रभावी लक्षण है। ये दोनों लक्षण एक-दूसरे में समाते नहीं हैं परन्तु अगली संतति में एक-दूसरे से अलग-अलग हो जाते हैं।
प्रश्न 9. एक जीनी वंशागति तथा बहुजीनी वंशागति में अन्तर लिखिए।
उत्तर- एक जीनी वंशागति तथा बहुजीनी वंशागति में अन्तर-
एक जीनी वंशागति | बहुजीनी वंशागति |
1. एक जोड़ी जीन के माध्यम से एक जीनी वंशागति बनती है। | 1. अनेक जोड़ी जीनों के माध्यम से बहुजीनी वंशागति बनती है। |
2. जनक स्पष्टतः दो लक्षण प्ररूपी वर्गों के अन्तर्गत आते हैं। | 2 शद्ध नस्ल वाले नक दो लक्षण प्ररूपी वर्गों के अन्तर्गत आते हैं। |
3. प्रथम पीढ़ी की सभी संततियों में केवल प्रभावी लक्षण दिखाई देते हैं क्योंकि एक जीन पूर्ण रूप से दूसरे जीन पर प्रभावी होते हैं। | 3. प्रथम पीढ़ी की संततियाँ किसी भी जनक के साथ मिलती-जुलती नहीं होती वरन् उनमें मध्यवर्ती लक्षण दिखाई देते हैं। |
प्रश्न 10. पौधों में मात्रात्मक वंशागति सम्बन्धी एक उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- इसके लिए नर एवं मादा पौधों या पुष्पों का चयन किया जा सकता है। कृत्रिम परागण द्वारा उनके निषेचन का नियन्त्रण भी किया जा सकता है। प्रत्येक संकरण से असंख्य संततियाँ उत्पन्न होती हैं। अतः परिणामों का सांख्यिकीय विश्लेषण करना आसान हो जाता है। गेहूँ के दानों का रंग गहरे लाल रंग से सफेद रंग के बीच मध्यवर्ती रंग, तीन जोड़ी जीनों के कारण उत्पन्न होता है।
प्रश्न 11. नयी जाति (स्पीशीज़) के उद्भव में कौन-से कारक सहायक हैं? समझाइए।
उत्तर- नयी जाति के उद्भव में निम्नलिखित कारक सहायक हैं-
- लैंगिक प्रजनन के फलस्वरूप उत्पन्न परिवर्तन
- आनुवंशिक अपवहन
- प्राकृतिक चयन
- दो उपसमष्टियों का एक-दूसरे से भौगोलिक प्रथक्करण। इसके कारण समष्टियों के सदस्य परस्पर प्रजनन नहीं कर पाते।
प्रश्न 12. बहुभुक्षण (Starvation) के कारण यदि किसी प्राणी के भार में अत्यधिक कमी आ जाती है तो क्या इस कारण से उसकी अगली पीढ़ी पर इसका कोई विपरीत प्रभाव पड़ेगा? क्यों?
उत्तर- यदि बहुभुक्षण (भोजन की कमी) के कारण किसी प्राणी के भार में अत्यधिक कमी आ जाती है तो उसकी अगली पीढ़ी पर इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि इसका प्रभाव केवल कायिक ऊतकों पर ही होगा और कायिक ऊतकों पर होने वाले परिवर्तन लैंगिक कोशिकाओं के DNA में वंशागत नहीं होते हैं। अत: बहुभुक्षण का अगली पीढ़ी पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।
प्रश्न 13. उत्परिवर्तन किसे कहते हैं? ये जैव विकास में किस प्रकार सहायक हैं?
उत्तर- जीवों में अकस्मात् लक्षणों में होने वाले परिवर्तनों को उत्परिवर्तन कहते हैं। उत्परिवर्तन वंशागत होते हैं तथा इनके द्वारा नई-नई जातियों की उत्पत्ति होती है। ह्यूगो डी वीज के उत्परिवर्तन सिद्धान्त के अनुसार नई जातियों की उत्पत्ति छोटी-छोटी क्रमिक भिन्नताओं के कारण नहीं होती बल्कि उत्परिवर्तन के फलस्वरूप नई जातियों की उत्पत्ति होती है। जैव विकास का मूल आधार विभिन्नताएँ होती हैं। विभिन्नताएँ पर्यावरण के प्रभाव से या जीन ढाँचों में परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। ह्यूगो डी वीज ने. वंशागत विभिन्नताओं की उत्पत्ति का मूल कारण उत्परिवर्तन को बताया। अत: उत्परिवर्तन जैव विकास में सहायक होते |
प्रश्न 14. डार्विन कौन थे? उन्होंने जैव विकास के अध्ययन के सम्बन्ध में क्या योगदान दिया ?
उत्तर- चार्ल्स डार्विन (1809-1882) ब्रिटेन के एक प्रसिद्ध प्रकृतिवादी वैज्ञानिक थे। उन्होंने 22 वर्ष की उम्र में बीगल नामक जहाज पर विभिन्न देशों के विभिन्न जीवजन्तुओं का अध्ययन किया। उन्होंने विकास के सम्बन्ध में प्राकृतिक वरण (Natural selection) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। उन्होंने 1859 में जैव विकास के सम्बन्ध में एक लेख अपनी पुस्तक प्राकृतिक वरण द्वारा जातियों की उत्पत्ति में प्रकाशित किया।
प्रश्न 15. “अध्ययन के दो क्षेत्र-‘विकास’ और ‘वर्गीकरण’ परस्पर जुड़े हैं।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- जीवों का वर्गीकरण उनकी कुछ मिलती-जुलती समानताओं तथा अंतरों पर आधारित है। जीवों की समानता उनके समूह निर्माण में सहायक है। समूहों से उनका वर्गीकरण सरलता से किया जा सकता है। कुछ जीवों में कुछ आधारभूत विशेषताएँ समान हो सकती हैं। दो संततियों में जितनी विशेषताएँ समान होंगी, वे संततियाँ उतनी ही निकटता से एक-दूसरे से संबंधित होंगी। जितना निकट संबंध उन दोनों संततियों में होगा उससे उनके एक ही पूर्वज के होने का प्रमाण मिलेगा। अतः हम यह कह सकते हैं कि संततियों का वर्गीकरण उनके जैव-विकासीय संबंधों को दर्शाता है।
प्रश्न 16. समजात संरचनाएँ क्या होती हैं? कोई उदाहरण दीजिए। क्या यह आवश्यक है कि समजात संरचनाओं के पूर्वज सदैव ही समान हों? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- समजात संरचनाएँ-वे अंग जो मूल रूप से अलग-अलग जीवों में एक जैसी संरचना वाले होते हैं, परन्तु उनमें उनके कार्य अलग-अलग होते हैं, समजात संरचनाएँ कहलाती हैं।
उदाहरण-मनुष्य की बाज, मेंढक की अगली टांगें, घोड़े की अगली टांगें आदि।हाँ, यह आवश्यक है कि समजात संरचनाओं वाले विभिन्न प्रकार के जीवों के पूर्वज सदैव समान होते हैं क्योंकि ऐसे जीव जैव विकास होने के कारण एक -दूसरे से अलग प्रकार के जीव बन गए, परन्तु अपने समान पूर्वजों के समजात अंगों को उसी रूप में अपनी अगली पीढ़ियों में ले जाते चले गए हैं।
प्रश्न 17. (a) निम्नलिखित का समजात अंग और समरूप अंग में वर्गीकरण कीजिए :
(i) ब्रोकोली और पत्तागोभी
(ii) अदरक और मूली
(iii) पक्षी की अग्रबाहु और छिपकली की अग्रबाहु
(ii) चमगादड़ के पंख और पक्षी के पंख।
(b) उस प्रमुख लक्षण का उल्लेख कीजिए जो दिए गए अंगों के युगल का वर्गीकरण समजात अथवा समरूप अंगों में करता है।
उत्तर-
(a)
- ब्रोकोली और पत्तागोभी समजात अंग हैं।
- अदरक और मूली समरूप अंग हैं।
- पक्षी की अग्रबाहु और छिपकली की अग्रबाहु समजात अंग हैं।
- चमगादड़ के पंख और पक्षी के पंख समरूप अंग हैं।
(b) यदि दो अलग-अलग जीवों में किसी अंग की मूल संरचना एक जैसी होती है, परन्तु वह कार्य अलग करते हैं तो वे समजात अंग होंगे। यदि दो अलग-अलग जीवों में किसी अंग की मूल संरचना अलग-अलग है, परन्तु वह अंग उन जीवों में कार्य एक जैसा करते हैं तो वे समरूप अंग होंगे।
प्रश्न 18. “व्यक्ति-वृत्त में जाति-वृत्त की पुनरावृत्ति होती है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- जीवधारी के भ्रूणीय परिवर्तन के समय उसके विकास क्रम की पुनरावृत्ति होती है अतः इसे पुनरावृत्ति का सिद्धान्त (Recapitulation theory) कहते हैं। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अर्नेस्ट हेकल ने किया। इसके अनुसार, जीवधारी व्यक्ति वृत्त (भ्रूणीय विकास) में पूर्वजों के विकासीय इतिहास को दोहराता है। उदाहरण के लिए, किसी स्तनधारी भ्रूण के परिवर्तन के समय भ्रूणावस्था पहले मछली से, फिर उभयचर से तथा उसके बाद सरीसृप से मिलती है। हेकल के अनुसार, प्रत्येक जीव भ्रूण परिवर्तन या व्यक्ति वृत्त मे जाते-वृत्त की पुनरावृत्ति करता है। इस सिद्धान्त को हैकल का प्रजाति-आवर्तन नियम भी कहते हैं।
प्रश्न 19. समजात तथा समवृत्ति अंगों में उदाहरण सहित अन्तर लिखिए।
उत्तर- समजात तथा समवृत्ति अंगों में अन्तर-
समजात | समवृत्ति अंग |
(i) ये अंग उत्पत्ति तथा मूल रचना में एक समान होते है। | ये अंग उत्पत्ति तथा मूल रचना में भिन्न होते हैं। |
(ii) इन अंगों की कार्यिकी आकारिकी में अन्तर होता हैं। | इन अंगों की कार्यिकी समान होने के कारण ये समान दिखाई देते हैं। |
(ii) इनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं। | इनके कार्य समान हो सकते हैं। |
उदाहरण-मेंढ़क के अग्र पाद, पक्षी के पंख तथा मनुष्य के हाथ। | उदाहरण-पक्षी तथा कीट के पंख। |
प्रश्न 20. समजात तथा समवृत्ति अंगों के चित्र द्वारा उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
प्रश्न 21. आर्कियोप्टेरिक्स को सरीसृप तथा पक्षी वर्ग के बीच की कड़ी क्यों माना जाता है?
उत्तर- आर्कियोप्टेरिक्स में सरीसृप तथा पक्षियों दोनों के लक्षण समान पाये जाते थे। इसलिए इसे संयोजक कड़ी माना जाता है।
यह लक्षण निम्न प्रकार से हैं सरीसृपों के लक्षण-
- इनकी पूँछ लम्बी होती थी।
- जबड़े में दाँत उपस्थित थे।
- लम्बे नुकीले नखरयुक्त तीन उँगलियाँ थीं।
- शरीर छिपकली के समान था।
पक्षियों के गुण –
- शरीर पर पंख उपस्थित थे
- चोंच उपस्थित थी।
- अग्र पाद पक्षियों की भाँति थे।
प्रश्न 22. गोभी का रूपान्तरण विभिन्न सब्जियों में कैसे हुआ? समझाइए।
उत्तर- लगभग 2000 वर्ष पूर्व से ही मनुष्य जंगली गोभी को एक खाद्य पौधे के रूप में उगाता रहा है। जंगली गोभी से ही मनुष्य ने चयन द्वारा विभिन्न सब्जियों को विकसित किया है। यह वास्तव में प्राकृतिक वरण न होकर कृत्रिम चयन था। कुछ किसान चाहते थे कि इसकी पत्तियाँ पास-पास हों, फलस्वरूप पत्ता गोभी का कृत्रिम चयन किया गया। कुछ किसान पुष्पों की ऊँचाई को रोकना चाहते थे अतः फूल गोभी विकसित हुई। कुछ ने फूले हुए तने के भाग का चयन किया जिससे गाँठ गोभी विकसित हुई। इसके अलावा कुछ लोगों ने चौड़ी पत्तियों का चयन किया जिससे ‘केल’ नामक सब्जी की उत्पत्ति हुई। .विकास को प्रगति के समान नहीं मानना चाहिए।
प्रश्न 23. क्या ऐसा मानना उचित होगा कि मानव का विकास चिम्पैंजी से हुआ?
उत्तर- नहीं, यह मानना उचित नहीं है। बहुत समय पूर्व मानव और चिम्पैंजी के पूर्वज एक समान थे या एक ही थे। वे पूर्वज न तो मानव जैसे थे और न ही चिम्पैंजी जैसे। एक ही पूर्वज से आदि मानव और आदि चिम्पैंजी का विकास हुआ था। समय एवं परिस्थितियों के अनुसार आदि मानव से आधुनिक मानव और आदि चिम्पैंजी से आधुनिक चिम्पैंजी का विकास हुआ।
प्रश्न 24. जैव विकास हुआ है इसे निम्नलिखित द्वारा कैसे प्रमाणित किया जा सकता है? प्रत्येक का एक उदाहरण भी दीजिए :
(a) समजात अंग;
(b) समरूप अंग;
(c) जीवाश्म
उत्तर-
(a) समजात अंग-वे अंग जिनकी मूल संरचना अलग-अलग जीवों में एक जैसी होती है परन्तु इनका इन जीवों में कार्य भिन्न-भिन्न होता है।
उदाहरण-मनुष्य की बांहे, घोड़े व शेर आदि की अगली टांगें एक-दूसरे के समजात अंग हैं। इनके बुनियादी ढाँचे से पता चलता है कि ये एक ही पूर्वजों से विकसित हुए हैं।
(b) समरूप अंग-वे अंग, जो अलग-अलग जीवों में कार्य तो एक जैसा करते हैं परन्तु उनकी मूल संरचना एक-दूसरे से भिन्न होती है, समरूप अंग कहलाते हैं।
उदाहरण-पक्षियों, चमगादड़ों तथा कीटों के पंख समरूप अंग हैं। इन अंगों के अध्ययन से पता चलता है कि इनमें तो समानता है परन्तु इनके डिज़ाइन और संरचना बहुत अलग है।
(c) जीवाश्म-लुप्त हुए जीवों के अंगों के कुछ अवशेष अथवा चट्टानों पर पाये जाने वाले उनके अंगों के छाप जीवाश्म कहलाते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन से जैव विकास होने के प्रमाण मिलते हैं तथा यह पता चलता है कि सरल जीवों से ही जटिल जीवों का विकास हुआ है। उदाहरण-आर्कियोप्टेरिक्स जीवाश्म के अध्ययन से यह ज्ञात हुआ कि उसमें कुछ गुण सरीसृप वर्ग के तथा कुछ गुण पक्षी वर्ग के विकसित हुए थे। इससे पता चलता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है।
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
निबन्धात्मक प्रश्न [Essay Type Questions]
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 9 अनुवांशिकता एवं जैव विकास
→ आनुवंशिकी (Genetics)-जीवविज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवधा यों के आनुवंशिक लक्षणों एवं विभिन्नताओं का अध्ययन करते हैं, आनुवंशिकी कहलाती है।
→ आनुवंशिकता (Heredity)-जीवों में जनकों (parents) के लक्षणों का सन्तान (offsprings) में वंशानुगत स्थानांतरण होना, आनुवंशिकता कहलाता है।
→ लक्षण (Traits)-जीवधारियों में जो भिन्न-भिन्न गुण विद्यमान होते हैं, लक्षण कहलाते हैं। ये लक्षण दो प्रकार के होते हैं
- प्रभावी लक्षण-ऐसे लक्षण जो प्रथम पुत्री पीढ़ी में दिखाई देते हैं या प्रकट होते हैं, प्रभावी लक्षण कहलाते हैं, जैसे-लम्बापन मटर के पौधे का प्रभावी लक्षण है।
- अप्रभावी लक्षण-ऐसे लक्षण जो प्रथम पीढ़ी में छिपे रहते हैं अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं, जैसे-बौनापन मटर के पौधे का अप्रभावी लक्षण है।
→ विविधता (Diversity)-संसार में लगभग 10 लाख प्रकार के प्राणी तथा लगभग 3,43,000 पादप प्रजातियाँ पायी जाती हैं। ये सभी संरचनात्मक एवं क्रियात्मक रूप से एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। इसे जैव विविधता (Bio – diversity) कहते हैं। जीवधारियों में यह विभिन्नताएँ उनकी आनुवंशिक संरचना के कारण होती हैं।
→ वंशागति के नियम (Laws of Heredity)-आस्ट्रिया के निवासी ग्रेगर जॉन मेण्डल (G. J. Mendel) ने वंशागति के तीन नियम प्रस्तुत किये-
I . प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)-इसके अनुसार जब एक जोड़ी के विपरीत लक्षणों को ध्यान में रखकर क्रॉस कराया जाता है तो पहली पीढ़ी में उत्पन्न होने वाला लक्षण प्रभावी (dominant) होता है तथा दूसरे लक्षण जो छिपे रहते हैं अप्रभावी होते हैं।
II युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation)इस नियम के अनुसार संकर F1 पीढ़ी के पौधों में दोनों विपरीत लक्षण जोड़े में विद्यमान रहते हैं। ये लक्षण F2 पीढ़ी में पृथक् हो जाते हैं अतः इसे पृथक्करण का नियम भी कहते हैं।
III. स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)-इसके अनुसार दो जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले दो पौधों के बीच संकरण कराने पर इन लक्षणों का पृथक्करण स्वतन्त्र रूप से होता है तथा एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति को प्रभावित नहीं करती है। जीन (Gene) मेण्डल के अनुसार आनुवंशिक कारकों को जीन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, आनुवंशिक लक्षणों का नियन्त्रण करने वाली इकाई को जीन कहते हैं।
→ गुणसूत्र (Chromosomes)-जीवधारियों में पायी जाने वाली विशेष संरचनाएँ जो जीन्स का वहन करती हैं, गुणसूत्र न कहलाती हैं।
→ जीनोम (Genome)-किसी जीवधारी के गुणसूत्रों के एक अगुणित समुच्चय (haploid set) को जीनोम कहते हैं।
→ प्लाज्मोन (Plasmone)- केन्द्रक के बाहर कोशिका द्रव्य में पाये जाने वाले आनुवंशिक पदार्थ को प्लाज्मोन (plasmone) या प्लाज्मोजीन (Plasmogene) कहते हैं|
→ एलील (Allele)-जीन्स का वह जोड़ा जिसमें एक लक्षण के दो रूप होते हैं एलील कहलाता है।
→ उत्परिवर्तन (Mutation)-जीवों में अकस्मात् विकसित लक्षणों का परिवर्तित होना उत्परिवर्तन कहलाता है।
→ समयुग्मजी (Homozygous) कारकों के सजातीय जोड़े में दोनों कारकों में जब समान गुण पाए जाते हैं तो यह जोड़ा समयुग्मजी कहलाता है, (जैसे-TT)।
→ विषमयुग्मजी (Heterozygous)-यदि जीन्स के किसी जोड़े में दो विपर्यासी (अलग-अलग) लक्षणों वाले। । कारक होते हैं तो वह विषमयुग्मजी कहलाता है, (जैसे Tt)।
→ दर्शरूप (Phenotype)-वे लक्षण जो दिखाई देते हैं, फीनोटाइप कहलाते हैं।
→ लक्षण रूप (Genotype)-जीव का आनुवंशिक संगठन लक्षण रूप जीनोटाइप कहलाता है।
→ सहलग्नता (Linkage)-जब दो या दो से अधिक जीन्स एक ही गुणसूत्र पर तथा एक-दूसरे के पास स्थित होते हैं, तब यह स्वतन्त्र अपव्यूहन नहीं दिखाते, बल्कि यह साथ-साथ वंशानुगत होते हैं, इस लक्षण को सहलग्नता कहते |
→ दैहिक गुणसूत्र (Autosomes)-दैहिक लक्षणों का जीन्स को धारण करने वाले गुणसूत्र दैहिक गुणसूत्र कहलाते हैं।
→ लिंग गुणसूत्र (Sex chromosomes)-नर या मादा लक्षणों का निर्धारण करने वाले जीन्स को धारण करने वाले गुणसूत्रों को लिंग गुणसूत्र कहते हैं।
→ समलिंगी गुणसूत्र (Homologous chromosomes)-गुणसूत्रों का वह जोड़ा जिसमें माता-पिता से एक-एक गुणसूत्र प्राप्त होता है तथा दोनों में समान गुण होते हैं, समलिंगी गुणसूत्र कहलाते हैं।
→ विषमलिंगी गुणसूत्र (Heterosomes)-गुणसूत्रों का वह जोड़ा जिसमें से एक गुणसूत्र में नर लक्षण तथा दूसरे में , मादा लक्षण होते हैं, विषमलिंगी गुणसूत्र कहलाते हैं।
→ लिंग निर्धारण (Sex determination)-वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति का लिंग निर्धारित किया जाता है, लिंग , निर्धारण कहलाता है। पुरुष के लिंग गुणसूत्रों में एक X तथा दूसरा Y होता है। स्त्री के दोनों लिंग गुणसूत्र X X होते हैं। जब पुरुष का X गुणसूत्र (शुक्राणु) मादा के अण्डाणु से निषेचन करता है तो होने वाली भावी सन्तान लड़की होती है। यदि पुरुष का Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु मादा के अण्डाणु से निषेचन करता है तो भावी सन्तान लड़का होता है। इसी प्रक्रिया को लिंग निर्धारण कहते हैं।
→ विकास (Evolution)-पृथ्वी पर करोड़ों वर्ष पहले उपस्थित सरलतम जीवों से आधुनिक विशालतम जीवों के निर्माण की प्रक्रिया जैव विकास कहलाती है। जैव विकास के सम्बन्ध में समय-समय पर अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं-
- जीवाश्मों से प्रमाण,
- भूण विज्ञान से प्रमाण,
- संयोजक कड़ियों से प्रमाण,
- अवशेषी अंगों से प्रमाण। |
→ जीवाश्म (Fossils)-जीवधारियों के परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स , एक जीवाश्म है। जीवाश्म के अध्ययन से उनकी संरचना और विकास का ज्ञान होता है।
→ भ्रूण विज्ञान (Embryology)-अनेक जीवधारियों में भ्रूण अपने पूर्वजों के लक्षण दर्शाते हैं। इससे इनके पूर्वजों के । बारे में ज्ञान होता है।
→ संयोजन कड़ी (Connecting link)-अनेक ऐसे जीवधारी हैं जिनमें दो वर्गों के लक्षण उपस्थित होते हैं। उदाहरण के लिए; आर्कियोप्टेरिक्स में सरीसृप तथा पक्षी दोनों के लक्षण होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पक्षियों का विकास सरीसृपों से हुआ है।
→ समजात अंग (Homologous organs)-वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न होते हैं। समजात अंग कहलाते हैं।
→ समवृत्ति अंग (Analogous organs)-वे अंग जिनकी उत्पत्ति और मूल रचना भिन्न होती है, लेकिन कार्य समान होते हैं, समवृत्ति अंग कहलाते हैं।
→ अवशेषी अंग (Vestigial organs)–ऐसे अंग जो किसी जीवधारी के पूर्वजों में क्रियाशील थे किन्तु अब उनकी सन्तानों में केवल अवशेष के रूप में शेष बचे हैं अवशेषी अंग कहलाते हैं। अवशेषी अंगों से विकास की पुष्टि होती।
→ डार्विनवाद (Darwinism) डार्विन के अनुसार –
- किसी भी जनसमुदाय के बीच प्राकृतिक विविधता होती है। कुछ व्यक्तियों में दूसरे की अपेक्षा अधिक अनुकूल विविधताएँ होती हैं।
- जीवधारियों में सन्तान उत्पत्ति की अत्यधिक क्षमता होती है, किन्तु फिर भी इनकी संख्या नियन्त्रित रहती है।
- एक ही जाति के सदस्यों के बीच तथा भिन्न-भिन्न जातियों के बीच आवास, भोजन एवं प्रजनन के लिए संघर्ष होते हैं, जिन्हें जीवन संघर्ष कहते हैं।
- जनसंख्याओं के अन्तर्गत जीवित रहने के लिए संघर्ष में जो व्यष्टि सफल होती है वही जीवित रहती है। इसे प्राकृतिक वरण (Natural selection) या योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the fittest) कहते हैं।
→ लैमार्कवाद (Lamarckism)-लैमार्क के अनुसार-
- जीवधारियों में लगातार बढ़ने की प्रवृत्ति होती है।
- जीवों पर वातावरण में होने वाले परिवर्तनों का सीधा प्रभाव पड़ता है।
- अंगों के उपयोग तथा अनुप्रयोग से अंग क्रमशः विकसित या विलुप्त हो जाते हैं।
- अपने जीवन काल में जीव जिन लक्षणों को उपार्जित करता है। यह उनकी वंशागति होती है।
→ आनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material)-DNA जीवधारियों का आनुवंशिक पदार्थ होता है। प्रत्येक डी. एन. ए. अणु का निर्माण अनेक इकाइयों द्वारा होता है जिन्हें न्यूक्लिओटाइड कहते हैं। प्रत्येक न्यूक्लिओटाइड तीन विभिन्न अणुओं का बना होता है।
ये निम्न प्रकार है –
- डी-ऑक्सी राइबोज शर्करा का एक अणु
- फास्फोरिक अम्ल का एक अणु, तथा
- एक नाइट्रोजनी क्षारक।
ये निम्न प्रकार के होते हैं-
(a) प्यूरीन – एडेनीन तथा ग्वानीन।
(b) पिरिमिडीन-साइटोसीन, थाइमीन तथा यूरेसिल।
डी. एन. ए. के अणु में दो पॉली न्यूक्लिओटाइड शृंखलाएँ होती हैं।
→ लिंग प्रभावित लक्षण (Sex influenced characters)- प्रत्येक लक्षण के लिए जीन्स उत्तरदायी होते हैं, जैसे- मनुष्य में गंजापन एक आनुवंशिक लक्षण है। इसकी आनुवंशिकी अलिंगी गुणसूत्र पर स्थित जीन्स की एक जोड़ी द्वारा नियन्त्रित होती है। जीन की होमोजाइगस प्रभावी (BB) में गंजापन स्त्री एवं पुरुष दोनों में विकसित होता है। जीन की हेटरोजाइगस अवस्था (Bb) में गंजापन केवल पुरुषों में प्रदर्शित होता है। इस अवस्था में यह नर हार्मोन से प्रभावित होता है। जीन की होमोजाइगस सुप्त (bb) अवस्था में गंजापन प्रदर्शित नहीं होता है।