PSEB 9th Class Hindi Grammar अपठित गद्यांश
PSEB 9th Class Hindi Grammar अपठित गद्यांश
PSEB 9th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश
अपठित गद्यांश ऐसे गद्यांश को कहते हैं जो विद्यार्थी की पाठ्य-पुस्तकों से संबंधित नहीं होता है। विद्यालय में अध्ययन करते हुए विद्यार्थी की पाठ्य-पुस्तकों तथा पाठ्येत्तर सामग्री, जैसे-समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, इंटरनेट के लेख आदि के माध्यम से अपने ज्ञान में वृद्धि करते हैं। पाठ्येत्तर सामग्री में अपठित गद्यांश के माध्यम से विद्यार्थी में अर्थग्रहण तथा अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास किया जाता है। इसके अंतर्गत परीक्षा में ऐसे अवतरण दिए जाते हैं, जिन्हें विद्यार्थी की पाठ्य-पुस्तकों से नहीं लिया जाता। परीक्षक विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर के अनुरूप अपठित गद्यांशों का चयन समाचार-पत्र, पत्रिका, पाठ्येत्तर पुस्तकों आदि से करते हैं। विद्यार्थी को अपठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर उसी अवतरण में से चयनित कर अपनी भाषा में लिखते होते हैं। अपठित गद्यांश में निम्नलिखित प्रश्न पूछे जाएँगे:
(क) पहले तीन प्रश्न गद्यांश की विषय-वस्तु से संबंधित होंगे।
(ख) चौथा प्रश्न गद्यांश में से दो कठिन शब्दों के अर्थ लिखने का होगा।
(ग) पाँचवाँ प्रश्न गद्यांश का शीर्षक/केंद्रीय भाव लिखने का होगा।
अपठित गद्यांश के प्रश्नों का उत्तर देते समय निम्नलिखित तथ्यों का ध्यान रखिए:
दिए गए गद्यांश को अत्यंत सावधानी से पढ़ना चाहिए। यदि एक बार पढ़ने से गद्यांश में व्यक्त भाव स्पष्ट न हों तो उसे फिर से पढ़ना चाहिए।
- गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर अपनी भाषा में संक्षिप्त रूप से लिखें।
- गद्यांश में से पूछे गए कठिन शब्दों के अर्थ सोच-समझ कर लिखने चाहिए।
- गद्यांश के मूलभाव को समझकर उसका शीर्षक लिखिए।
- शीर्षक संक्षिप्त, सटीक तथा गद्यांश के भावानुरूप हो।
- सावधानीपूर्वक पढ़ने और सोचने से गद्यांश के सभी प्रश्नों के उत्तर दिए गए अवतरण से ही मिल जाते हैं।
विद्यार्थियों के अभ्यास के लिए यहाँ अपठित गद्यांशों के कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं।
निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर इनके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
पाठ्य-पुस्तक के उदाहरण
1. सभ्य आचरण और व्यवहार ही शिष्टाचार कहलाता है। जीवन में शिष्टाचार का बहुत महत्त्व है। बातचीत करते समय सभी को.एक-दूसरे से शिष्टाचार से बात करनी चाहिए। छोटों को बड़ों से और बड़ों को छोटों से बात करते समय !’ शिष्टाचार का ध्यान रखना चाहिए। शिष्टाचार का पालन करने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती। शिष्ट व्यक्तियों से जब कोई ग़लती हो जाती है तो वे खेद प्रकट करते हैं और सहज ही अपनी ग़लती स्वीकार करते हैं। विद्यार्थी-जीवन। में तो शिष्टाचार का और भी अधिक महत्त्व होता है क्योंकि यही शिक्षा जीवन का आधार बनती है। स्कूल की प्रार्थनासभा में पंक्ति में आना-जाना, कक्षा में शोर न करना, अध्यापकों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना, सच बोलना, सहपाठियों से मिलजुल कर रहना, स्कूल को साफ-सुथरा रखना, .स्कूल की संपत्ति को नुकसान न पहुँचाना व छुट्टी के समय : धक्कामुक्की न करना शिष्ट बच्चों की निशानी है। ऐसे बच्चों को सभी पसंद करते हैं।
प्रश्न 1.
शिष्टाचार किसे कहते हैं?
उत्तर:
अच्छे आचार-व्यवहार को शिष्टाचार कहते हैं।
प्रश्न 2.
शिष्ट व्यक्तियों से जब कोई ग़लती हो जाती है तो वे क्या करते हैं?
उत्तर:
शिष्ट व्यक्तियों से जब कोई गलती होती है तो वे अपनी ग़लती मानकर क्षमा माँग लेते हैं।
प्रश्न 3.
कैसे बच्चों को सभी पसंद करते हैं?
उत्तर:
अच्छे चाल-चलन तथा व्यवहार का जो बच्चे पालन करते हैं उन्हें सभी पसंद करते हैं।
प्रश्न 4.
‘सभ्य’ और ‘खेंद’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
सभ्य-अच्छे आचार-विचार वाला, शिष्ट। खेद-दुःख, रंज।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
सदाचार।
2. आसमान बादल से घिरा ; धूप का नाम नहीं, ठंडी पुरवाई चल रही है। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है – यह कौन है। यह पूछना न पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अंगुली एक-एक धान के पौधे को, पंक्तिबद्ध, खेत में बिठा रही है। उनका कंठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर। बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं ; मेड़ पर खड़ी औरतों के होठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं ; हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं ; रोपनी करने वालों की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती हैं। बालगोबिन भगत का यह संगीत है या जादू।
प्रश्न 1. कौन-सी स्वर तरंग लोगों के कानों में झंकार उत्पन्न कर देती है?
उत्तर:
बालगोबिन भगत जब गाते थे तो उनके गायन की स्वर तरंग लोगों के कानों में झंकार उत्पन्न कर देती थी।
प्रश्न 2.
गीत गाते समय बालगोबिन भगत क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
बालगोबिन भगत अपने खेत में धान की रोपनी करते हुए गीत गा रहे थे।
प्रश्न 3.
बालगोबिन भगत के संगीत का वहाँ उपस्थित लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
भगत का संगीत सुनकर खेलते हुए बच्चे झूम उठते थे, मेड़ पर खड़ी महिलाएँ गुनगुनाने लगती थीं और हलवाहे पैरों से ताल देने लगते थे।
प्रश्न 4.
‘हलवाहे’ तथा ‘मेड़’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
हलवाहे हल चलाने वाले। मेड़ खेतों की सीमा सूचक मिट्टी की ऊँची रेखा की सीमा।
प्रश्न 5.
इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
संगीत का जादू।
3. पहले खेल कूद को लोग पढ़ाई में बाधा मानते थे। ऐसी मानसिकता सचमुच ग़लत थी। अब लोगों की मानसिकता में परिवर्तन आया है। लोग जान चुके हैं कि पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी जीवन में विशेष महत्त्व है। खेलों से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है। उसमें चुस्ती और फुर्ती आती है। पसीना बह जाने से शरीर की गंदगी बाहर निकलती है और रक्त का संचार बढ़ जाता है। शरीर के साथ-साथ खेलों का बुद्धि पर भी प्रभाव पड़ता है। कहा भी गया है, “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।” शिक्षा का उद्देश्य है-विद्यार्थी की बहुमुखी प्रतिभा का विकास करना। खेलें शिक्षा के इस उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक बनती हैं। खेल के मैदान में विद्यार्थी अनुशासन, समय का पालन, सहयोग, सहनशीलता, नेतृत्व, दृढ़ता, दल-भावना आदि गुणों को सहज ही सीख जाता है। इन सब बातों को देखते हुए ही सरकारें भी खिलाड़ियों को अधिकाधिक सुविधाएँ देने में प्रयासरत हैं।
प्रश्न 1.
खेलों के बारे में लोगों की पहले क्या मानसिकता थी?
उत्तर:
खेलों को पढ़ाई में बाधा माना जाता था।
प्रश्न 2.
खेलों से हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
हमारा शरीर स्वस्थ और चुस्त-दुरूस्त रहता है।
प्रश्न 3.
सरकारें खिलाड़ियों के लिए क्या कर रही हैं?
उत्तर:
खिलाड़ियों को सरकार अधिक-से-अधिक सुविधाएँ देने की कोशिश कर रही है।
प्रश्न 4.
‘बाधा’ और ‘नेतृत्व’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बाधा-अड़चन। नेतृत्व-सरदारी।
प्रश्न 5.
इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
शिक्षा में खेलों का महत्त्व।।
4. हिमराशि और हिमपात बड़े सौन्दर्य की वस्तु हैं, पर इनके दर्शन करने का आनंद सभी नहीं ले सकते। हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून से मसूरी जैसी हिमपात की भूमि दूर नहीं है, पर हमारे लोगों को प्रायः उसके सौन्दर्य को नेत्रों द्वारा पान करने की लालसा नहीं होती। आज यातायात सुलभ है। रेडियो वाले शाम को ही लोगों को सूचित कर देते हैं कि मसूरी में बर्फ फुट-दो-फुट पड़ी हुई है, कल बड़ा सुंदर समाँ होगा, तो कितने ही लोग यहाँ आ सकते हैं। दिल्ली से कार द्वारा आने से पाँच घंटे से ज्यादा नहीं लगेंगे। सहारनपुर से दो घंटे भी नहीं, और देहरादून से तो पौन घंटा ही। अब लोगों में कुछ रुचि जगने लगी है और हिमपात देखने के लिये वे सैंकड़ों की तादाद में आते हैं। ग्रीष्म में आनंद लूटने के लिए अधिक लोग यहाँ आते हैं। वही बात हिमदर्शन के लिये भी लोगों में आ सकती है, पर हिम का दर्शन साधारण आदमी के बस की बात नहीं है। नीचे का आपका ओवरकोट यहाँ की सर्दी को रोक नहीं सकता। यहाँ और मोटा गरम स्वैटर चाहिए। चमड़े की जर्सी या फतुई अधिक सहायक हो सकती है। मोटे कोट-पैंट के अतिरिक्त मोटा ओवरकोट, पैरों में मोटा ऊनी मोज़ा और फूल बूट चाहिए। कान और सर ढकने के लिये चमड़े या ऊन की टोपी और हाथों में चमड़े के दस्ताने भी चाहिए।
प्रश्न 1.
‘नेत्रों द्वारा पान करना’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘नेत्रों द्वारा पान करना’ का अर्थ ‘किसी दृश्य को मन से जी भर कर देखना’ होता है।
प्रश्न 2.
मसूरी में बर्फ पड़ने की सूचना कौन दे देता है?
उत्तर:
रेडियो द्वारा मसूरी में बर्फ पड़ने की सूचना शाम को ही दे दी जाती है।
प्रश्न 3.
मसूरी में किस ऋतु में अधिक लोग आनन्द लूटने जाते हैं?
उत्तर:
मसूरी में ग्रीष्म ऋतु में आनन्द लूटने अधिक लोग आते हैं।
प्रश्न 4.
‘हिमपात’ और ‘मोज़ा’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
हिमपात-पाला पड़ना, बर्फ गिरना। मोज़ा-जुराब।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
मसूरी में हिमपात।
अभ्यास
1. जगदीश चंद्र बसु जीव-विज्ञान के साथ-साथ अन्य विषयों गणित, संस्कृत, लैटिन आदि में भी असाधारण थे। इसी कारण उन्हें कॉलेज में छात्रवृत्ति भी मिली। उन्हें सन् 1884 में कैम्ब्रिज से प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की उपाधि मिली। इसके बाद वे स्वदेश लौट आए। यहाँ आकर कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हुए। इस कॉलेज में भारतीय अध्यापकों को अंग्रेज़ी अध्यापकों की अपेक्षा कम वेतन मिलता है। जगदीश चंद्र बसु बड़े स्वाभिमानी थे। उन्होंने इस बात का विरोध किया। वे तीन साल तक इस कॉलेज में अध्यापन व अनुसंधान कार्य करते तो रहे परन्तु बिना वेतन के। अन्त में उनकी काम के प्रति निष्ठा और उत्साह देखकर कॉलेज के संचालकों को उनके प्रति अपनी राय बदलनी पड़ी और पूरा वेतन दिया जाने लगा। अतः भारतीय अध्यापकों के प्रति इस कॉलेज में जो ग़लत रवैया था, उसको उन्होंने सर्वथा बदल दिया।
प्रश्न 1.
जगदीश चंद्र बसु को कॉलेज से छात्रवृत्ति क्यों मिली?
उत्तर:
जगदीश चंद्र बसु जीव-विज्ञान के साथ-साथ अन्य विषयों गणित, संस्कृत, लैटिन आदि में भी असाधारण थे इसलिए उन्हें कॉलेज में छात्रवृत्ति मिली थी।
प्रश्न 2.
जगदीश चंद्र बसु किस विषय के प्रोफेसर नियुक्त हुए?
उत्तर:
जगदीश चंद्र बसु भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हुए थे।
प्रश्न 3.
जगदीश चंद्र बसु को पूरा वेतन क्यों दिया जाने लगा ?
उत्तर:
जगदीश चंद्र बसु कम वेतन न लेकर तीन वर्षों तक बिना वेतन लिए निष्ठापूर्वक अपना कार्य करते रहे जिससे प्रभावित होकर कॉलेज संचालकों ने उन्हें पूरा वेतन दिया।
प्रश्न 4.
‘असाधारण’ तथा ‘अनुसंधान’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
असाधारण-विशेष। अनुसंधान-खोज।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
जगदीश चंद्र बसु का स्वाभिमान।
2. संसार में ऐसे-ऐसे दृढ़ चित्त मनुष्य हो गए हैं जिन्होंने मरते दम तक सत्य की टेक नहीं छोड़ी, अपनी आत्मा के विरुद्ध कोई काम नहीं किया। राजा हरिश्चंद्र के ऊपर इतनी-इतनी विपत्तियाँ आईं, पर उन्होंने अपना सत्य नहीं छोड़ा। उनकी प्रतिज्ञा यही रही–
“चंद्र टरै, सूरज टरै, टरै जगत् व्यवहार।
पै दृढ़ श्री हरिश्चंद्र को, टरै न सत्य विचार।”
महाराणा प्रतापसिंह जंगल-जंगल मारे-मारे फिरते थे, अपनी स्त्री और बच्चों को भूख से तड़पते देखते थे, परंतु उन्होंने उन लोगों की बात न मानी जिन्होंने उन्हें अधीनतापूर्वक जीते रहने की सम्पति दी, क्योंकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिन्ता जितनी अपने को हो सकती है, उतनी दूसरे को नहीं। एक बार एक रोमन राजनीतिक बलवाइयों के हाथ में पड़ गया। बलवाइयों ने उससे व्यंग्यपूर्वक पूछा, “अब तेरा किला कहाँ है ?” उसने हृदय पर हाथ रखकर उत्तर दिया, “यहाँ।” ज्ञान के जिज्ञासुओं के लिए यही बड़ा भारी गढ़ है।
प्रश्न 1.
संसार में किन लोगों ने मरते दम तक सत्य का साथ नहीं छोड़ा?
उत्तर:
जो लोग दृढ़ चित्त के होते हैं, वे मरते दम तक सत्य का साथ नहीं छोड़ते हैं।
प्रश्न 2.
महाराणा प्रताप सिंह ने अपनी स्त्री और बच्चों को भूख से तड़पते देखकर भी लोगों की बात क्यों नहीं मानी ?
उत्तर:
महाराणा प्रताप सिंह ने लोगों की बात इसलिए नहीं मानी क्योंकि वे किसी की अधीनता में जीना नहीं चाहते थे तथा उन्हें अपनी मर्यादा की चिंता थी।
प्रश्न 3.
राजा हरिश्चंद्र की क्या प्रतिज्ञा थी?
उत्तर:
राजा हरिश्चंद्र की यह प्रतिज्ञा थी कि चाहे सूर्य, चंद्रमा और संसार का व्यवहार बदल जाए परन्तु हरिश्चंद्र अपने सत्य की टेक से नहीं टरै गा।
प्रश्न 4.
‘सम्मति’ तथा ‘मर्यादा’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सम्मति-राय, सलाह। मर्यादा-नियम, सीमा।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
आत्मविश्वास।
3. वल्लभभाई की विलायत जाकर बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने की इच्छा आरंभ से ही थी। वे अपनी प्रैक्टिस में से कुछ रुपया भी इसके निमित्त बचाकर रखने लगे और इस संबंध में उन्होंने एक विदेशी कंपनी से पत्र-व्यवहार भी जारी रखा। जब विदेशी कंपनी ने उनकी विदेश-यात्रा की स्वीकृति का पत्र उन्हें भेजा तो वह पत्र उनके बड़े भाई के हाथ पड़ गया। अंग्रेजी में दोनों का नाम वी. जे. पटेल होने के कारण यह गड़बड़ी हो गई। विट्ठलभाई ने जब वल्लभभाई से कहा कि मैं तुमसे बड़ा हूँ, मुझे पहले विदेश जाने दो, तो वल्लभभाई ने न केवल उन्हें जाने की अनुमति दी, बल्कि उनके ख़र्च का उत्तरदायित्व भी अपने ऊपर ले लिया। इस घटना के तीन वर्ष बाद जब सन् 1908 में बड़े भाई विलायत से वापस लौट आए, तभी वल्लभभाई सन् 1910 में विलायत जा सके। बड़े भाई के लिए इतना त्याग करना उनके व्यक्तित्व की विशालता का परिचायक है।
प्रश्न 1.
वल्लभभाई की विलायत जाकर कौन-सी परीक्षा पास करने की इच्छा थी?
उत्तर:
वल्लभभाई की विलायत जाकर बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने की इच्छा थी।
प्रश्न 2.
विदेशी कम्पनी द्वारा विदेश यात्रा की स्वीकृति का पत्र भेज देने पर भी वल्लभभाई विदेश क्यों नहीं गये?
उत्तर:
वल्लभभाई विदेश इसलिए नहीं गए क्योंकि उनसे पहले उनके बड़े भाई विट्ठलभाई विदेश जाना चाहते है।
प्रश्न 3.
वल्लभभाई विदेश कब गये?
उत्तर:
वल्लभभाई सन् 1910 में विदेश गये।
प्रश्न 4.
‘निमित्त’ तथा ‘अनुमति’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
निमित्त-कारण। अनुमति-आज्ञा।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
वल्लभभाई का त्याग।
4. यह संसार क्षण-भंगुर है। इसमें दुःख क्या और सुख क्या? जो जिससे बनता है, वह उसी में लय हो जाता है-इसमें शोक और उद्वेग की क्या बात है? यह संसार जल का बुदबुदा है, फूटकर किसी रोज़ जल में ही मिल जायेगा, फट जाने में ही बदबदे की सार्थकता है। जो यह नहीं समझते, वे दया के पात्र हैं। रे मूर्ख लड़की, तू समझ। सब ब्रह्माण्ड ब्रह्मा का है और उसी में लीन हो जायेगा। इससे तू किस लिए व्यर्थ व्यथा सह रही है। रेत का तेरा भाड़ क्षणिक था, क्षण में लुप्त हो गया, रेत में मिल गया। इस पर खेद मत कर, इससे शिक्षा ले। जिसने लात मारकर उसे तोड़ा है, वह तो परमात्मा का केवल साधन मात्र है। परमात्मा तुझे नवीन शिक्षा देना चाहते हैं। लड़की, तू मूर्ख क्यों बनती है ? परमात्मा की इस शिक्षा को समझ और परमात्मा तक पहुंचने का प्रयास कर।
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार यह संसार क्या है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार यह संसार क्षण-भंगुर है।
प्रश्न 2.
लड़की को किस बात पर खेद था?
उत्तर:
लड़की को इस बात का खेद था कि उस का रेत का भाड़ लात मार कर तोड़ दिया गया था।
प्रश्न 3.
लेखक ने किसे परमात्मा का केवल साधन मात्र कहा है?
उत्तर:
लेखक ने परमात्मा का केवल साधन मात्र उसे कहा है जिसने लात मार कर लड़की के बनाए हुए रेत के भाड़ को तोड़ दिया था।
प्रश्न 4.
‘क्षणिक’ और ‘नवीन’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
क्षणिक-एक क्षण रहने वाला। नवीन-नया, ताज़ा।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
‘संसार की क्षणभंगुरता’।
5. सन् 1908 ई० की बात है। दिसंबर का आखीर या जनवरी का प्रारंभ होगा। चिल्ला जाड़ा पड़ रहा था। दोचार दिन पूर्व कुछ बूंदा-बाँदी हो गई थी, इसलिए शीत की भयंकरता और भी बढ़ गई थी। सांयकाल के साढ़े तीन या चार बजे होंगे। कई साथियों के साथ मैं झरबेरी के बेर तोड़-तोड़कर खा रहा था कि गाँव के पास से एक आदमी ने ज़ोर से पुकारा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र ही घर लौट जाओ। मैं घर को चलने लगा। साथ में छोटा भाई भी था। भाई साहब की मार का डर था इसलिए सहमा हुआ चला जाता था। समझ में नहीं आता था कि कौन-सा कसूर बन पड़ा। डरते-डरते घर में घुसा। आशंका थी कि बेर खाने के अपराध में ही तो पेशी न हो। पर आँगन में भाई साहब को पत्र लिखते पाया। अब पिटने का भय दूर हुआ। हमें देखकर भाई साहब ने कहा-“इन पत्रों को ले जाकर मक्खनपुर डाकखाने में डाल आओ। तेज़ी से जाना, जिससे शाम की डाक में चिट्ठियाँ निकल जाएँ। ये बड़ी ज़रूरी हैं।”
प्रश्न 1.
शीत की भयंकरता और क्यों बढ़ गयी थी ?
उत्तर:
शीत की भयंकरता और इसलिए बढ़ गयी थी क्योंकि दिसंबर के अंत या जनवरी के प्रारंभ में चिल्ला जाड़ा पड़ रहा था और दो-चार दिन पहले बूंदा-बाँदी भी हो गई थी।
प्रश्न 2.
लेखक को घर किसने बुलाया था?
उत्तर:
लेखक को घर उसके भाई ने बुलाया था।
प्रश्न 3.
लेखक को घर जाने में किसका डर सता रहा था?
उत्तर:
लेखक को घर जाने में भाई साहिब की मार का डर सता रहा था।
प्रश्न 4.
‘आशंका’ तथा ‘भय’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
आशंका-संदेह। भय-डर।
प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
भाई का भय।
अपठित गद्यांश के अन्य उदाहरण
1. शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन व्यक्ति को व्यावहारिक बनाना है, न कि शिक्षित होने के नाम पर अहं और गर्व का हाथी उसके मन मस्तिष्क पर बाँध देना। हमारे देश में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जो शिक्षा-नीति और पद्धति चली आ रही है वह लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी है। उसने एक उत्पादन मशीन का काम किया है। इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि इस देश की अपनी आवश्यकताएं और सीमाएं क्या हैं ? इनके निवासियों को किस प्रकार की व्यावहारिक शिक्षा की ज़रूरत है। बस सुशिक्षितों की ही नहीं, साक्षरों की एक बड़ी पंक्ति इस देश में खड़ी कर दी है जो किसी दफ्तर में क्लर्क और बाबू का सपना देख सकती है। हमारे देशवासियों को कर्म का बाबू बनाने की आवश्यकता है न कि कलम का बाबू-क्लर्क। अत: सरकार को आधुनिक शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन को समझने की आवश्यकता है।
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता से पहले कैसी शिक्षा नीति थी?
उत्तर:
स्वतन्त्रता से पहले शिक्षा नीति ऐसी थी जिससे क्लर्क और बाबू बनाये जा सकें।
प्रश्न 2.
देश को कैसी शिक्षा की आवश्यकता है?
उत्तर:
देशवासियों को कर्म की शिक्षा देने की आवश्यकता है जिससे देशवासी कर्मशील बन सकें।
प्रश्न 3.
सुशिक्षित और साक्षर में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
सुशिक्षित वे होते हैं जो व्यावहारिक जीवन में शिक्षा का उचित उपयोग कर सकें जबकि साक्षर केवल पढ़ालिखा तथा व्यवहार ज्ञान से शून्य व्यक्ति होता है।
प्रश्न 4.
इन शब्दों का अर्थ लिखें: व्यावहारिक, अहं और गर्व।
उत्तर:
व्यावहारिक = व्यवहार में आने या लाने योग्य। अहं = अभिमान, अहंकार। गर्व = घमण्ड।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
शिक्षा का प्रयोजन।
2. आजकल भारत में अधिक आबादी की समस्या ने गम्भीर रूप धारण कर लिया है। इस अनावश्यक रूप से बढी आबादी के कारण कई प्रकार के प्रदूषण हो रहे हैं। जीवन में हवा, पानी ज़रूरी है पर पानी के बिना हम अधिक दिन नहीं जी सकते। वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण भी है जिसका औद्योगिक विकास तथा जनवृद्धि से घनिष्ठ सम्बन्ध है। कारखानों से काफ़ी मात्रा में गन्दगी बाहर फेंकी जाती है। स्रोतों, नदियों, झीलों और समुद्र के जल को कीटनाशक, औद्योगिक, अवशिष्ट खादें तथा अन्य प्रकार के व्यर्थ पदार्थ प्रदूषित करते हैं। बड़े नगरों में सीवर का पानी सबसे बड़ा जल प्रदूषण है। प्रदूषित जल के प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं जैसे हैज़ा, टाइफायड, पेचिश, पीलिया आदि। यदि सागर, नदी और झील का पानी प्रदूषित हो गया, तो जल में रहने वाले प्राणियों को भी बहुत अधिक क्षति पहुंचेगी।
प्रश्न 1.
भारत की सबसे गम्भीर समस्या क्या है ?
उत्तर:
अधिक आबादी की समस्या भारत की सबसे गम्भीर समस्या है।
प्रश्न 2.
जल प्रदूषित कैसे होता है ?
उत्तर:
कारखानों से निकलने वाली गन्दगी, औद्योगिक-अवशिष्ट खादें, कीटनाशक आदि व्यर्थ पदार्थ जल को प्रदूषित करते हैं।
प्रश्न 3.
प्रदूषण से प्राणियों की क्षति कैसे होती है ?
उत्तर:
प्रदूषण से हैज़ा, पेचिश, पीलिया आदि बीमारियाँ हो जाती हैं। जल में रहने वाले प्राणियों को भी क्षति होती
प्रश्न 4.
इन शब्दों का अर्थ लिखें : घनिष्ठ, सम्बन्ध, औद्योगिक।
उत्तर:
घनिष्ठ = गहरा। सम्बन्ध = साथ जुड़ना। औद्योगिक = उद्योग सम्बन्धी।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
जल प्रदूषण।
3. जब मक्खन शाह का जहाज़ किनारे लगा तो अपनी मनौती पूर्ण करने के लिए गुरु जी के सम्मुख उपस्थित हुआ। वह गुरुघर का भक्त छठे गुरुजी के काल से ही था। इससे पूर्व कश्मीर के रास्ते में मक्खन शाह की अनुनय पर गुरुजी टांडा नामक गाँव गये थे जो कि जेहलम नदी के किनारे बसा हुआ था। सर्वप्रथम वह अमृतसर गया, जहाँ उसे गुरुजी के दिल्ली में होने की सूचना प्राप्त हुई। दिल्ली में पहुंचकर, गुरु हरिकृष्ण के उत्तराधिकारी का समाचार बाबा के बकाला में रहने का मिला। यहाँ पहुंचकर उसने विभिन्न मसन्दों को गुरु रूप धारण किया हुआ पाया। मक्खन शाह का असमंजस में पड़ना उस समय स्वाभाविक ही था। व्यापारी होने के कारण उसमें विवेकशीलता एवं सहनशीलता भी थी। उसने चतुराई से वास्तविक गुरु को ढूंढ़ने का प्रयास किया। इसके लिए उसने चाल चली। उसने सभी गुरुओं के सम्मुख पाँचपाँच मोहरें रखकर प्रार्थना की। उसे दृढ़ विश्वास था कि सच्चा गुरु अवश्य उसकी चालाकी को भांप लेगा, परन्तु किसी भी पाखण्डी ने उसके मन की जिज्ञासा को शान्त नहीं किया।
प्रश्न 1.
मक्खन शाह के अनुनय पर गुरुजी कहाँ गए थे?
उत्तर:
मक्खन शाह के अनुनय पर गुरुजी टांडा नामक गाँव गए थे।
प्रश्न 2.
उसने सच्चे गुरु की खोज के लिए कौन-सी चाल चली ?
उत्तर:
उसने सबके सामने पाँच-पाँच मोहरें रखीं।
प्रश्न 3.
पाखण्डी कौन थे?
उत्तर:
सभी पाखण्डी थे।
प्रश्न 4.
इन शब्दों का अर्थ लिखें-विवेकशीलता, दृढ़ विश्वास।
उत्तर:
विकेकशीलता = समझदारी। दृढ़-विश्वास = पक्का विश्वास।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
विवेकशीलता।
4. सहयोग एक प्राकृतिक नियम है, यह कोई बनावटी तत्व नहीं है। प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक व्यक्ति का काम आन्तरिक सहयोग पर अवलम्बित है। किसी मशीन का उसके पुर्जे के साथ सम्बन्ध है। यदि उसका एक भी पुर्जा खराब हो जाता है तो वह मशीन चल नहीं सकती। किसी शरीर का उसके आँख, कान, नाक, हाथ, पांव आदि पोषण करते हैं। किसी अंग पर चोट आती है, मन एकदम वहाँ पहुँच जाता है। पहले क्षण आँख देखती है, दूसरे क्षण हाथ सहायता के लिए पहुँच जाता है। इसी तरह समाज और व्यक्ति का सम्बन्ध है। समाज शरीर है तो व्यक्ति उसका अंग है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अंग परस्पर सहयोग करते हैं उसी तरह समाज के विकास के लिए व्यक्तियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है। शरीर को पूर्णता अंगों के सहयोग से मिलती है। समाज की पूर्णता व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति, जो जहाँ पर भी है, अपना काम ईमानदारी और लगन से करता रहे, तो समाज फलता-फूलता है।
प्रश्न 1.
समाज कैसे फलता-फूलता है?
उत्तर:
समाज व्यक्तियों के आपसी सहयोग से फलता-फूलता है।
प्रश्न 2.
शरीर के अंग कैसे सहयोग करते हैं?
उत्तर:
शरीर के किसी अंग पर चोट लगने पर सबसे पहले मन पर प्रभाव पड़ता है, फिर आँख उसे देखती हैं और हाथ उसकी सहायता के लिए पहुँच जाता है। इस प्रकार शरीर के अंग आपस में सहयोग करते हैं। .
प्रश्न 3.
समाज और व्यक्ति का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
समाज रूपी शरीर का व्यक्ति एक अंग है। इस प्रकार और व्यक्ति का शरीर और अंग का सम्बन्ध है।
प्रश्न 4.
इन शब्दों का अर्थ लिखें-अविलम्ब, अनिवार्य।
उत्तर:
अविलम्ब = तुरन्त, बिना देर किए। अनिवार्य = ज़रूरी, आवश्यक।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
सहयोग।
5. लोग कहते हैं कि मेरा जीवन नाशवान है। मुझे एक बार पढ़कर लोग फेंक देते हैं। मेरे लिए एक कहावत बनी है “पानी केरा बुदबुदा अस अखबार की जात, पढ़ते ही छिप जात है, ज्यों तारा प्रभात।” पर मुझे अपने इस जीवन पर भी गर्व है। मर कर भी मैं दूसरों के काम आता हूँ। मेरे सच्चे प्रेमी मेरे सारे शरीर को फाइल में क्रम से सम्भाल कर रखते हैं। कई लोग मेरे उपयोगी अंगों को काटकर रख लेते हैं। मैं रद्दी बनकर भी ग्राहकों की कीमत का एक तिहाई भाग अवश्य लौटा देता हूँ। इस प्रकार महान् उपकारी होने के कारण मैं दूसरे ही दिन नया जीवन पाता हूँ और अधिक जोर-शोर से सजधज के आता हूँ। इस प्रकार एक बार फिर सबके मन में समा जाता हूँ। तुमको भी ईर्ष्या होने लगी है न मेरे जीवन से। भाई ! ईर्ष्या नहीं स्पर्धा करो। आप भी मेरी तरह उपकारी बनो। तुम भी सबकी आँखों के तारे बन जाओगे।
प्रश्न 1.
अखबार का जीवन नाशवान कैसे है?
उत्तर:
इसे लोग एक बार पढ़ कर फेंक देते हैं। इसलिए अखबार का जीवन नाशवान है।
प्रश्न 2.
अखबार क्या-क्या लाभ पहुंचाता है?
उत्तर:
अखबार ताजे समाचार देने के अतिरिक्त रद्दी बन कर लिफाफ़े बनाने के काम आता है। कुछ लोग उपयोगी समाचार काट कर फाइल बना लेते हैं।
प्रश्न 3.
यह किस प्रकार उपकार करता है?
उत्तर:
रद्दी के रूप में बिक कर वह अपना एक-तिहाई मूल्य लौटा कर उपकार करता है।
प्रश्न 4.
इन शब्दों का अर्थ लिखें-उपयोगी, स्पर्धा।
उत्तर:
उपयोगी = काम में आने वाला। स्पर्धा = मुकाबला।
प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त ‘शीर्षक’ दीजिए।
उत्तर:
‘अखबार’।
6. नर की शक्ति है। वह माता, बहन, पत्नी और पुत्री आदि रूपों में पुरुष में कर्त्तव्य की भावना सदा जगाती रहती है। वह ममतामयी है। अतः पुष्प के समान कोमल है। किन्तु चोट खाकर जब वह अत्याचार के लिए सन्नद्ध हो जाती है, तो वज्र से भी ज्यादा कठोर हो जाती है। तब वह न माता रहती है, न प्रिया, उसका एक ही रूप होता है और वह है दुर्गा का। वास्तव में नारी सृष्टि का ही रूप है, जिसमें सभी शक्तियाँ समाहित हैं।
प्रश्न 1.
नारी किस-किस रूप में नर में शक्ति जगाती है?
उत्तर:
नारी नर में माता, बहन, पत्नी और पुत्री के रूप में शक्ति जगाती है।
प्रश्न 2.
नारी को फूल-सी कोमल और वज्र-सी कठोर क्यों माना जाता है?
उत्तर:
ममतामयी होने के कारण नारी फूल-सी कोमल है और जब उस पर चोट पड़ती है तो वह अत्याचार का मुकाबला करने के लिए वज्र सी कठोर हो जाती है।
प्रश्न 3.
नारी दुर्गा का रूप कैसे बन जाती है?
उत्तर:
जब नारी अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए वज्र के समान कठोर बन जाती है तब वह दुर्गा बन जाती है।
प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
ममतामयी = ममता से भरी हुई। सन्नद्ध = तैयार, उद्यत।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
नारी: नर की शक्ति।
7. चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कुंजी है। जो मनुष्य अपने चरित्र-निर्माण की ओर ध्यान देता है, वही जीवन में विजयी होता है। चरित्र-निर्माण से मनुष्य के भीतर ऐसी शक्ति जागृत होती है, जो उसे जीवन संघर्ष में विजयी बनाती है। ऐसा व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। वह जहाँ कहीं भी जाता है, अपने चरित्र-निर्माण की शक्ति से अपना प्रभाव स्थापित कर लेता है। वह सहस्रों और लाखों के बीच में भी अपना अस्तित्व रखता है। उसे देखते ही लोग उसके व्यक्तित्व के सामने अपना मस्तक झुका लेते हैं। उसके व्यक्तित्व में सूर्य का तेज, आंधी की गति और गंगा के प्रवाह की अबाधता है।
प्रश्न 1.
जीवन में चरित्र निर्माण का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कुंजी है।
प्रश्न 2.
अच्छे चरित्र का व्यक्ति जीवन में सफलता क्यों प्राप्त करता है?
उत्तर:
चरित्र-निर्माण से मनुष्य को जीवन में आने वाले संघर्षों का मुकाबला करने की शक्ति प्राप्त होती है और वह जीवन-संघर्ष में सफलता प्राप्त कर लेता है।
प्रश्न 3.
चरित्रवान् व्यक्ति की तीन विशेषताएं लिखें।
उत्तर:
चरित्रवान् व्यक्ति का सब लोग आदर करते हैं। उस का अपना-अलग व्यक्तित्व होता है। वह जीवन में सदा सफल रहता है।
प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
सहस्रों = दस-सौवों (हज़ारों) की संख्या, व्यक्तित्व = व्यक्ति का गुण।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
चरित्र निर्माण : सफलता की कुंजी।
8. मनोरंजन का जीवन में विशेष महत्त्व है। दिनभर की दिनचर्या से थका-मांदा मनुष्य रात को आराम का साधन खोजता है। यह साधन है-मनोरंजन। मनोरंजन मानव-जीवन में संजीवनी बूटी का काम करता है। यही आज के मानव के थके-हारे शरीर को आराम की सुविधा प्रदान करता है। यदि आज के मानव के पास मनोरंजन के साधन न होते हो उसका जीवन नीरस बन कर रह जाता। यह नीरसता मानव जीवन को चक्की की तरह पीस डालती और मानव संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य भी न रहता।
प्रश्न 1.
मनोरंजन क्या है?
उत्तर:
मनोरंजन से मनुष्य के थके-मांदे शरीर में स्फूर्ति आ जाती है और यह मानव के जीवन में संजीवनी बूटी का काम करता है।
प्रश्न 2.
यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन कैसे होता?
उत्तर:
यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन नीरस सा बन जाता।
प्रश्न 3.
नीरस मानव जीवन का सबसे बड़ा नुक्सान क्या होता है?
उत्तर:
नीरस मानव का जीवन परिश्रम करने के योग्य नहीं रह जाता। वह जीवन-संघर्षों का मुकाबला नहीं कर पाता।
प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
दिनचर्या = दिन भर किया जाने वाला काम-काज। संजीवनी बूटी = जीवन दान देने वाली औषध।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
मनोरंजन का महत्त्व।
9. वास्तव में जब तक लोग मदिरा पान से होने वाले रोगों के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं कर लेंगे तथा जब तक उनमें यह भावना जागृत नहीं होगी कि शराब न केवल एक सामाजिक अभिशाप है अपितु शरीर के लिए अत्यन्त हानिकारक है, तब तक मद्यपान के विरुद्ध वातावरण नहीं बन सकेगा। पूर्ण मद्य निषेध तभी सम्भव हो सकेगा, जब सरकार मद्यपान पर तरह-तरह के अंकुश लगाए और जनता भी इसका सक्रिय विरोध करे।
प्रश्न 1.
मदिरा पान शरीर को हानि पहुँचाने के साथ-साथ और किसे हानि पहुँचाता है?
उत्तर:
मदिरा पान अनेक शारीरिक बीमारियाँ पैदा करने के साथ-साथ मनुष्य को समाज से भी अलग कर देता है।
प्रश्न 2.
पूर्ण मद्य-निषेध क्या है?
उत्तर:
पूर्ण मद्य-निषेध से तात्पर्य मदिरा पान करना तथा मदिरा की बिक्री न करना।
प्रश्न 3.
पूर्ण मद्य-निषेध कैसे सम्भव है?
उत्तर:
जब सरकार मदिरा की बिक्री तथा इस के पीने पर रोक लगा देगी तथा जनता भी मदिरा पान नहीं करेगी तो पूर्ण मद्य-निषेध हो सकता है।
प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
जागृत = जाग उठना, जागा हुआ। अंकुश = प्रतिबंध, अभिशाप झूठी बदनामी, शाप।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
मद्य-निषेध।
10. जीवन घटनाओं का समूह है। यह संसार एक बहती नदी के समान है। इसमें बूंद न जाने किन-किन घटनाओं का सामना करती जूझती आगे बढ़ती है। देखने में तो इस बूंद की हस्ती कुछ भी नहीं। जीवन में कभी-कभी ऐसी घटनाएँ अपठित गद्यांश घट जाती हैं जो मनुष्य को असम्भव से सम्भव की ओर ले जाती हैं। मनुष्य अपने को महान् कार्य कर सकने में समर्थ समझने लगता है। मेरे जीवन में एक रोमांचकारी घटना है। जिसे मैं आपको सुनाना चाहती हूँ। यह घटना जीवन के सुख-दुःख के मधुर मिलन का रोमांच लिये हैं।
प्रश्न 1.
जीवन क्या है?
उत्तर:
जीवन घटनाओं का समूह है।
प्रश्न 2.
लेखिका क्या सुनाना चाहती है?
उत्तर:
लेखिका अपने जीवन की एक रोमांचकारी घटना सुनाना चाहती है, जो उसके जीवन के सुख-दुःखों से युक्त है।
प्रश्न 3.
नदी की धारा में पानी की एक बूंद का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नदी की धारा पानी की एक-एक बूंद से मिल कर बनती है, इसलिए नदी की धारा में पानी की एक बूंद भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
हस्ती = अस्तित्व, वजूद। रोमांचकारी = आन्नद देने वाली, पुलकित करने वाली।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
जीवन : एक संघर्ष।
11. भाषणकर्ता के गुणों में तीन गुण श्रेष्ठ माने जाते हैं-सादगी, असलियत और जोश। यदि भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है तो श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं। इस प्रकार के भाषणकर्ता का प्रभाव समाप्त होने में देरी नहीं लगती। यदि वक्ता में उत्साह की कमी हो तो भी उसका भाषण निष्प्राण हो जाता है। उत्साह से ही किसी भी भाषण में प्राणों का संचार होता है। भाषण को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए उसमें उतार-चढ़ाव, तथ्य और आंकड़ों का समावेश आवश्यक है। अत: उपर्युक्त तीनों गुणों का समावेश एक अच्छे भाषणकर्ता के लक्षण हैं तथा इनके बिना कोई भी भाषणकर्ता श्रोताओं पर अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकता।
प्रश्न 1.
इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
श्रेष्ठ भाषणकर्ता।
प्रश्न 2.
अच्छे भाषण के कौन-से गुण होते हैं?
उत्तर:
अच्छे भाषण में सादगी, तथ्य, उत्साह, आँकड़ों का समावेश होना चाहिए।
प्रश्न 3.
श्रोता किसे तत्काल ताड़ जाते हैं?
उत्तर:
जो भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है, उसे श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं।
प्रश्न 4.
कैसे भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता?
उत्तर:
जिस भाषण में सादगी, वास्तविकता और उत्साह नहीं होता, उस भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता।
प्रश्न 5.
‘श्रोता’ तथा ‘जोश’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
श्रोता = सुनने वाला। जोश = आवेग, उत्साह ।
12. सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है। व्यक्ति के जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासन के बिना मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता तथा चरित्रहीन व्यक्ति सभ्य समाज का निर्माण नहीं कर सकता। अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए भी मनुष्य का अनुशासनबद्ध होना अत्यन्त आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला होती है। अतः विद्यार्थियों के लिए अनुशासन में रहकर जीवन-यापन करना आवश्यक है।
प्रश्न 1.
इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
अनुशासन।
प्रश्न 2.
अनुशासन किसे कहते हैं?
उत्तर:
सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन है।
प्रश्न 3.
मनुष्य किसके बिना अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता?
उत्तर:
अनुशासन के बिना मनुष्य अपना चरित्र-निर्माण नहीं कर सकता।
प्रश्न 4.
विद्यार्थी जीवन किसकी आधारशिला है?
उत्तर:
विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला है।
प्रश्न 5.
‘सुव्यवस्थित’ और ‘आधारशिला’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
सुव्यवस्थित = उत्तम रूप से व्यवस्थित, आधारशिला = नींव।
13. साम्प्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रेम से प्रेम और विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि घृणा से घृणा का जन्म होता है जो दावाग्नि की तरह सबको जलाने का काम करती है। महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतने में विश्वास करते थे। उन्होंने सर्वधर्म सद्भाव द्वारा साम्प्रदायिक घृणा को मिटाने का आजीवन प्रयत्न किया। हिन्दू और मुसलमान दोनों की धार्मिक भावनाओं को समान आदर की दृष्टि से देखा। सभी धर्म शान्ति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन बताते हैं। धर्मों में छोटेबड़े का कोई भेद नहीं है। सभी धर्म सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं, इसलिए धर्म के मूल में पार्थक्य या भेद नहीं है।
प्रश्न 1.
इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
साम्प्रदायिक सद्भाव।
प्रश्न 2.
सभी धर्म किन बातों पर बल देते हैं?
उत्तर:
सभी धर्म, सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं।
प्रश्न 3.
साम्प्रदायिक सद्भावना कैसे बनाये रखी जा सकती है?
उत्तर:
साम्प्रदायिक सद्भावना बनाये रखने के लिए सब धर्मों वालों को आपस में प्रेम और विश्वास बनाए रखते हुए सब धर्मों का समान रूप से आदर करना चाहिए।
प्रश्न 4.
महात्मा गांधी घृणा को कैसे जीतना चाहते थे?
उत्तर:
महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतना चाहते थे।
प्रश्न 5.
‘सद्भाव’ और ‘सोहार्द’ का अर्थ लिखें।
उत्तर:
सद्भाव = अच्छा भाव, मेलजोल। सौहार्द = सज्जनता, मित्रता।
14. लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे इसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर सम्प्रदाय के जाल में फंस रहे हैं। सम्प्रदाय बाह्य कृत्यों पर जोर देते हैं। वे चिह्नों को अपनाकर धर्म के सार तत्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को अन्तर्मुखी बनाता है, उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है। सम्प्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं, जाति-पाति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेद-भावों से ऊपर नहीं उठने देते।
प्रश्न 1.
इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
साम्प्रदायिक संकीर्णता।
प्रश्न 2.
लोगों ने धर्म को क्या बना रखा है?
उत्तर:
लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे इसकी आड़ में अपना स्वार्थसिद्ध करते हैं।
प्रश्न 3.
धर्म किसके किवाड़ों को खोलता है?
उत्तर:
धर्म मनुष्य को अन्तर्मुखी बना कर उसे हृदय के किवाड़ों को खोलकर उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है।
प्रश्न 4.
सम्प्रदाय क्या सिखाता है?
उत्तर:
सम्प्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं और मनुष्य को जाति-पाति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेदभावों से ऊपर नहीं उठने देते।
प्रश्न 5.
‘कृत्य’ और ‘अन्तर्मुखी’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
कृत्य-कार्य, काम। अन्तर्मुखी-परमात्मा की ओर ध्यान लगाने वाला।
15. स्वतन्त्र भारत का सम्पूर्ण दायित्व आज विद्यार्थियों के ऊपर है, क्योंकि आज जो विद्यार्थी हैं, वे ही कल स्वतन्त्र भारत के नागरिक होंगे। भारत की उन्नति और उसका उत्थान उन्हीं की उन्नति और उत्थान पर निर्भर करता है। अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सर्तकता और सावधानी के साथ करें। उन्हें प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए, ताकि उनके जीवन से राष्ट्र को कुछ बल प्राप्त हो सके। जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निमाण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप हैं।
प्रश्न 1.
इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
आज के विद्यार्थी कल के नागरिक।
प्रश्न 2.
विद्यार्थियों को प्रत्येक क्षण किसको अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए?
उत्तर:
विद्यार्थियों को हर क्षण अपने राष्ट्र, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए।
प्रश्न 3.
भावी भारत के नागरिक कौन हैं?
उत्तर:
आज के विद्यार्थी भावी भारत के नागरिक हैं।
प्रश्न 4.
हमारे राष्ट्र और समाज पर भार-स्वरूप कौन हैं?
उत्तर:
जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप होते हैं।
प्रश्न 5.
‘निर्माण’ और ‘दायित्व’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
निर्माण = रचना करना, बनाना। दायित्व = ज़िम्मेदारी।
16. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं। अहं बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है। एक सीमा तक आवश्यक भी है। परन्तु आज के विद्यार्थियों में इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाममात्र को नहीं रह गये हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है। इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने उन अधिकारों को, जिनके वे अधिकारी नहीं हैं, उसे भी वे अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्तव्य दोनों एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का सन्तुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है, परन्तु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है।
प्रश्न 1.
आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
उत्तर:
आधुनिक विद्यार्थियों में अहंकार बढ़ने और विनम्रता न होने से नम्रता की कमी होती जा रही है।
प्रश्न 2.
विद्यार्थी प्रायः किसका विरोध करते हैं?
उत्तर:
विद्यार्थी प्रायः गुरुजनों या बड़ों की बातों का विरोध करते हैं।
प्रश्न 3.
विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
उत्तर:
विद्यार्थियों में अपने अधिकारों के प्रति सजगता अधिक है। .
प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिये।
उत्तर:
विनय-नम्रता। सजग-सावधान।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दीजिये।
उत्तर:
विद्यार्थियों में अहंकार।
17. कुछ लोग सोचते हैं कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है, स्वास्थ्य रक्षा के लिये व्यायाम कर लेना ही काफ़ी है। पर खेलकूद से स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ-साथ मनुष्य कुछ ऐसे गुण भी सीखता है जिनका जीवन में विशेष महत्त्व है। सहयोग से काम करना, विजय मिलने पर अभिमान न करना, हार जाने पर साहस न छोड़ना, विशेष ध्येय के लिए नियमपूर्वक कार्य करना आदि गुण खेलों के द्वारा अनायास सीखे जा सकते हैं। खेल के मैदान में केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता, वरन् मनुष्यता भी बनती है। खिलाड़ी वे बातें सीख जाता है जो उसे आगे चलकर नागरिक जीवन की समस्या को सुलझाने में सहायता करती हैं।
प्रश्न 1.
कुछ लोगों का खेलकूद के विषय में क्या विचार है?
उत्तर:
कुछ लोगों का खेलकूद के विषय में यह विचार है कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है।
प्रश्न 2.
खेलकूद से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
खेलकूद से स्वास्थ्य बनता है और मनुष्य जीवनोपयोगी गुण भी सीखता है।
प्रश्न 3.
खेलकूद का अच्छे नागरिक बनाने में क्या योगदान है?
उत्तर:
खेलकूद सहयोग से कार्य करना, अभिमान न करना, साहस न छोड़ना, अपने ध्येय को प्राप्त करने के लिए नियमपूर्वक कार्य करना आदि सिखाता है।
प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिये।
उत्तर:
सहयोग-मिल-जुलकर काम करना। अभिमान-घमंड। अनायास-अचानक, बिना कोशिश किए।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
खेलकूद का महत्त्व।
18. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन में नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन पथ का सारथी बनकर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शास्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवनों के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएँ आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुंह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है। लेकिम आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा, जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अन्धकार भाग जाता है।
प्रश्न 1.
महान् जीवन के रथ किस रास्ते से गुज़रते हैं?
उत्तर:
महान् जीवन के रथ फूलों से भरे वनों से ही नहीं गुज़रते बल्कि कांटों से भरे बीहड़ पथ पर भी चलते हैं।
प्रश्न 2.
आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
उत्तर:
आत्म-विश्वास के शस्त्र के द्वारा हम जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं।
प्रश्न 3.
निराशा की काली घटाएँ किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं?
उत्तर:
आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति के आगे निराशा की काली घटाएँ समाप्त हो जाती हैं।
प्रश्न 4.
रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
नंदनवन-फूलों से भरे वन। सोपानों-सीढ़ियों। ज्योति-प्रकाश।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
शीर्षक-आत्मविश्वास।
19. सहयोग एक प्राकृतिक नियम है, यह कोई बनावटी तत्व नहीं है, प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक व्यक्ति का काम आन्तरिक सहयोग पर अवलम्बित है। किसी मशीन का उसके पुों के साथ संबंध है। यदि उसका एक भी पुर्जा खराब हो जाता है तो वह मशीन चल नहीं सकती। किसी शरीर का उसके आँख, कान, नाक, हाथ, पांव आदि पोषण करते हैं। किसी अंग पर चोट आती है, मन एकदम वहाँ पहुँच जाता है। पहले क्षण आंख देखती है, दूसरे क्षण हाथ सहायता के लिए पहुंच जाता है। इसी तरह समाज और व्यक्ति का सम्बन्ध है। समाज शरीर है तो व्यक्ति उसका अंग है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अंग परस्पर सहयोग करते हैं उसी तरह समाज के विकास के लिए व्यक्तियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है। शरीर को पूर्णता अंगों के सहयोग से मिलती है। समाज को पूर्णता व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति, जो कहीं पर भी है, अपना काम ईमानदारी और लगन से करता रहे, तो समाज फलताफूलता है।
प्रश्न 1.
समाज कैसे फलता-फूलता है?
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपना काम मेहनत, लगन और ईमानदारी से करने पर समाज फलता-फूलता
प्रश्न 2.
शरीर के अंग कैसे सहयोग करते हैं?
उत्तर:
शरीर के अंग शरीर को स्वस्थ रखने में सहयोग करते हैं। जैसे जब शरीर के किसी अंग को चोट लगती है तो मन के संकेत पर आंख और हाथ उसकी सहायता के लिए पहुँच जाते हैं।
प्रश्न 3.
समाज और व्यक्तियों का क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
समाज और व्यक्तियों का आपस में घनिष्ठ संबंध है। समाज के विकास के लिए व्यक्तियों को आपस में मिल-जुलकर काम करना होता है। समाज को पूर्णता भी व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है।
प्रश्न 4.
इन शब्दों के अर्थ लिखें-अविलम्ब, अनिवार्य।
उत्तर:
अविलम्ब = बिना देरी किए, तुरन्त। अनिवार्य = आवश्यक।
प्रश्न 5.
उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
शीर्षक-व्यक्ति और समाज।
20. राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश होता है जिसके आधार पर राष्ट्रीयता का जन्म तथा विकास होता है। इस कारण देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने के उद्देश्य से कुछ विघटनकारी शक्तियां हमारे देश को देश न कहकर उपमहाद्वीप के नाम से सम्बोधित करती हैं। भौगोलिक दृष्टि से भारत के विस्तृत भू-खंड, जिसमें अनेक नदियाँ और पर्वत कभी-कभी प्राकृतिक बाधायें भी उपस्थित कर देते हैं, को ये शक्तियाँ संकीर्ण क्षेत्रीयता की भावनायें विकसित करने में सहायता करती हैं।
प्रश्न 1.
राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश है।
प्रश्न 2.
देश की इकाई किस लिए आवश्यक है?
उत्तर:
देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 3.
भौगोलिक दृष्टि से भारत कैसा है?
उत्तर:
भौगोलिक दृष्टि से भारत उपमहाद्वीप जैसा है जिसमें अनेक नदियाँ, पहाड़ और विस्तृत भूखण्ड है।
प्रश्न 4.
‘उपकरण’ और ‘विघटनकारी’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
उपकरण = सामान, विघटनकारी = तोड़ने वाली।
प्रश्न 5.
इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
राष्ट्रीयता।
21. दस गीदड़ों की अपेक्षा एक सिंह अच्छा है। सिंह-सिंह और गीदड़-गीदड़ है। यही स्थिति परिवार के उन सदस्य की होती है जिनकी संख्या आवश्यकता से अधिक हो। न भरपेट भोजन, न तन ढकने के लिए वस्त्र। न अच्छी शिक्षा, न मनचाहा रोज़गार। गृहपति प्रतिक्षण चिन्ता में डूबा रहता है। रात की नींद और दिन का चैन गायब हो जाता है। बार-बार दूसरों पर निर्भर होने की विवशता। सम्मान और प्रतिष्ठा तो जैसे सपने की बातें हों। यदि दुर्भाग्यवश गृहपति न रहे तो. आश्रितों का कोई टिकाना नहीं। इसलिए आवश्यक है कि परिवार छोटा हो।
प्रश्न 1.
परिवार के सदस्यों की क्या स्थिति होती है?
उत्तर:
जिस परिवार की संख्या आवश्यकता से अधिक होती है, उस परिवार को न भरपेट भोजन, न वस्त्र, न अच्छी शिक्षा और न ही मनचाहा रोजगार मिलता है। उनकी स्थिति दस गीदड़ों जैसी हो जाती है।
प्रश्न 2.
गृहपति प्रतिक्षण चिंता में क्यों डूबा रहता है?
उत्तर:
गृहपति प्रतिक्षण परिवार के भरण-पोषण की चिंता में डूबा रहता है कि इतने बड़े परिवार का गुजारा कैसे होगा?
प्रश्न 3.
सत की नींद और दिन का चैन क्यों गायब हो जाता है?
उत्तर:
रात की नींद और दिन का चैन इसलिए गायब हो जाता है क्योंकि बड़े परिवार के गृहपति को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसका सम्मान तथा प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है। उसे अपने मरने के बाद परिवार की दुर्दशा के सम्बन्ध में सोचकर बेचैनी होती है।
प्रश्न 4.
‘प्रतिक्षण’ और ‘प्रतिष्ठा’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
प्रतिक्षण = हर समय, प्रतिष्ठा = इज्जत, मान सम्मान।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
छोटा परिवार : सुखी परिवार।
22. मैदान चाहे खेल का हो या युद्ध का और चाहे कोई और मन हारा कि बल हारा? मन गिर गया तो समझिए कि तन गिर गया। काम कोई भी, कैसा भी क्यों न हो, मन में उसे करने का उत्साह हुआ तो बस पूरा हुआ। सामान्य आदमी बड़े काम को देखकर घबरा जाता है। साधारण छात्र कठिन प्रश्नों से बचता ही रहता है, किन्तु लगन वाला, उत्साही विद्यार्थी कठिन प्रश्नों पर पहले हाथ डालता है। उसमें कुछ नया सीखने और समझने तथा कठिन प्रश्न से जूझने की ललक रहती है। प्रेमचन्द के रास्ते में सैकड़ों कठिनाइयाँ थीं, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने की अजब धुन थी, इसलिए हिम्मतवान रहे। अतः स्पष्ट है कि मनुष्य की जीत अथवा हार उसके मन की ही जीत अथवा हार है।
प्रश्न 1.
सामान्य आदमी कैसा होता है?
उत्तर:
सामान्य आदमी बड़े काम को देखकर घबरा जाता है।
प्रश्न 2.
उत्साही छात्र की क्या विशेषता है?
उत्तर:
उत्साही छात्र को लगन होती है। वह कठिन प्रश्न पहले हल करता है। उसमें कुछ नया सीखने, समझने और करने की इच्छा होती है।
प्रश्न 3.
मन गिरने से तन कैसे गिर जाता है?
उत्तर:
मन में उत्साह नहीं हो तो मनुष्य कुछ नहीं कर पाता। वह अपने आप को कोसता रहता है और बीमार हो जाता है, जिससे मन गिरने से उसका तन भी गिर जाता है।
प्रश्न 4.
‘हाथ डालना’ तथा ‘जूझना’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
हाथ डालना-हस्तक्षेप करना, कोशिश करना। जूझना-संघर्ष करना।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
मन के हारे हार हैं मन जीते जग जीत। है।
23. मनुष्य जाति के लिए मनुष्य ही सबसे विकट पहेली है। वह खुद अपनी समझ में नहीं आता है। किसी न किसी रूप में अपनी ही आलोचना किया करता है। अपने ही मनोरहस्य खोला करता है। मानव संस्कृति का विकास ही इसलिए हुआ है कि मनुष्य अपने को समझे। अध्यात्म और दर्शन की भान्ति साहित्य भी इसी खोज में है, अन्तर इतना ही है कि वह इस उद्योग में रस का मिश्रण करते उसे आनन्दप्रद बना देता है। इसलिए अध्यात्म और दर्शन केवल ज्ञानियों के लिए है, साहित्य मनुष्य मात्र के लिए है।
प्रश्न 1.
मानव संस्कृति का विकास क्यों हुआ है?
उत्तर:
मानव संस्कृति का विकास इसलिए हुआ है कि मनुष्य स्वयं को समझ सके।
प्रश्न 2.
अध्यात्म और साहित्य में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अध्यात्म और साहित्य दोनों का लक्ष्य एक है। अध्यात्मक केवल ज्ञान की बात करता है जबकि साहित्य इसमें रस मिला कर इस प्रयास को आनन्दप्रद बना देता है।
प्रश्न 3.
मनुष्य के लिए रहस्य क्या है?
उत्तर:
मनुष्य के लिए रहस्य स्वयं को समझना है कि वह क्या है?
प्रश्न 4.
‘मनोरहस्य’ तथा ‘मिश्रण’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
मनोरहस्य = मन के भेद। मिश्रण = मिलावट।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
साहित्य और समाज।
24. प्रत्येक राष्ट्र के लिए अपनी एक सांस्कृतिक धरोहर होती है। इसके बल पर वह प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। मानव युगों-युगों से अपने को अधिक सुखमय, उपयोगी, शान्तिमय एवं आनन्दपूर्ण बनाने का प्रयास करता है। इस प्रयास का आधार वह सांस्कृतिक धरोहर होती है जो प्रत्येक मानव को विरासत के रूप में मिलती है और प्रयास के फलस्वरूप मानव अपना विकास करता है। यह विकास क्रम सांस्कृतिक आधार के बिना सम्भव नहीं होता। कुछ लोग सभ्यता एवं संस्कृति को एक ही अर्थ में लेते हैं। वह उनकी भूल है। यों तो सभ्यता और संस्कृति में घनिष्ठ सम्बन्ध है, किन्तु संस्कृति मानव जीवन को श्रेष्ठ एवं उन्नत बनाने के साधनों का नाम है और सभ्यता उन साधनों के फलस्वरूप उपलब्ध हुई जीवन प्रणाली है।।
प्रश्न 1.
सांस्कृतिक धरोहर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सांस्कृतिक धरोहर से तात्पर्य उन सब बातों से होता है जो किसी व्यक्ति, जाति अथवा राष्ट्र के मन, रुचि, आचार-विचार, कलाकौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास की सूचक होती है।
प्रश्न 2.
संस्कृति और सभ्यता में क्या अन्तर है?
उत्तर:
संस्कृति मानव जीवन को श्रेष्ठ और उन्नत बनाने का साधन है तथा सभ्यता उन साधनों से प्राप्त जीवन प्रणाली
प्रश्न 3.
मनुष्य को विरासत में क्या-क्या मिला है?
उत्तर:
मनुष्य को विरासत में वह सांस्कृतिक धरोहर मिली है जो उसे अपना जीवन सुखमय, उपयोगी, शांतिमय तथा आनन्दपूर्ण बनने में सहायक होती है।
प्रश्न 4.
‘विरासत’ तथा ‘घनिष्ठ’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
विरासत = उत्तराधिकार, पूर्वजों से प्राप्त। घनिष्ट = गहरा।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
संस्कृति और सभ्यता।
25. आधुनिक युग में मानव परोपकार की भावना से विरक्त होता जा रहा है। उसका हृदय स्वार्थ से भर गया है। उसे हर समय अपनी ही सुख-सुविधा का ध्यान रहता है। उसका हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है। हमारा इतिहास परोपकारी महात्माओं की कथाओं से भरा पड़ा है। महर्षि दधीचि ने देवताओं की भलाई के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया था। महाराज शिवि ने शरणागत की रक्षार्थ अपनी देह का मांस काट कर दे दिया था। हमारे कर्णधारों का नाम इसी कारण उज्ज्वल है। उनका सारा जीवन अपने भाइयों के हित एवं राष्ट्र-कल्याण में बीता। उनके कार्यों को हम कभी नहीं भूल सकते।
प्रश्न 1.
किसका हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है?
उत्तर:
आधुनिक युग में मानव का हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है।
प्रश्न 2.
शरणागत की रक्षार्थ किसने अपनी देह का माँस दे दिया?
उत्तर:
शरणागत की रक्षार्थ महाराज शिवि ने अपनी देह का माँस दे दिया था।
प्रश्न 3.
हमारे कर्णधारों के नाम क्यों उज्ज्वल हैं?
उत्तर:
हमारे कर्णधारों के नाम परोपकार की भावना के कारण उज्ज्वल हैं।
प्रश्न 4.
“विरक्त’ तथा ‘स्वार्थ’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
विरक्त = उदासीन स्वार्थ = अपना मतलब सिद्ध करना।
प्रश्न 5.
उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
परोपकार।
अभ्यास के लिए अपठित गद्यांश
1. साहस की जिन्दगी सबसे बड़ी ज़िन्दगी है। ऐसी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निडर बिल्कुल बेखौफ़ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला व्यक्ति दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धम बनाते हैं।
प्रश्न 1.
(I) साहसी व्यक्ति की विशेषताएँ लिखिए।
(II) साहस की ज़िन्दगी की पहचान क्या है?
(III) क्रांति करने वाले क्या नहीं करते?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
2. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन से नहीं गुज़रते, कंटको से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन पथ का सारथि बन कर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शस्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवन के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएँ आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुंह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है, लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अंधकार भाग जाता है।
प्रश्न 1.
(I) महान् जीवन के रथ किस रास्ते से गुज़रते हैं?
(II) आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
(III) निराशा की काली घटाएँ किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
3. आजकल हमारी शिक्षा पद्धति के विरुद्ध देश के कोने-कोने में आवाज़ उठाई जा रही है। प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इससे समाज की कितनी हानि हुई है। प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इसका उद्देश्य व्यक्ति को पराधीन बना कर सरकारी नौकरी के लिए तैयार करना है। मैकाले ने इसका सूत्रपात शासन चलाने के निमित क्लर्क तैयार करने को किया था, दोषपूर्ण है। __ आधुनिक शिक्षा व्यय साध्य है। उसकी प्राप्ति पर सहस्रों रुपए व्यय करने पड़ते हैं। सर्व-साधारण ऐसे बहुमूल्य शिक्षा को प्राप्त नहीं कर सकता। यदि ज्यों-त्यों करके करे भी तो इससे उसकी जीविका का प्रश्न हल नहीं होता। क्योंकि शिक्षित युवकों में बेकारी बहुत बढ़ी हुई है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य विद्यार्थियों को सभी विषयों का ज्ञाता बनाना है पर किसी विषय का पंडित बनाना नहीं। सौभाग्य का विषय है कि अब इस शिक्षा-पद्धति में सुधार की योजना की जा रही है और निकट भविष्य में यह हमारे राष्ट्र के कल्याण का साधन बनेगी।
प्रश्न 1.
(I) आधुनिक भारत में चल रही शिक्षा पद्धति का क्या उद्देश्य है?
(II) आधुनिक शिक्षा में कौन-कौन से दोष हैं?
(III) शिक्षा-सुधार से देश में क्या अन्तर दिखायी देगा?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
4. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं। अहंकार बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है और एक सीमा तक आवश्यक भी है। किन्तु आज के विद्यार्थियों में यह इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाममात्र को नहीं रह गए हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है। इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने अधिकारों के बहुत अधिकारी नहीं है। उसे भी वह अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्त्तव्य दोनों एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का सन्तुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है परन्तु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है। एक सीमा की अति का दूसरे पर भी असर पड़ता है।
प्रश्न 1.
(I) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
(II) विद्यार्थी प्रायः किस का विरोध करते हैं?
(III) विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(IV) रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
5. शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिष्क में ढूंस दिया गया है और आत्मसात् हुए बिना वहाँ आजन्म पड़ा रह कर गड़बड़ मचाया करता है। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि आप केवल पांच ही परखे हुए विचार आत्मसात् कर उनके अनुसार अपने जीवन और चरित्र का निर्माण कर लेते हैं तो पूरे ग्रन्थालय को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं। शिक्षा और आचरण अन्योन्याश्रित हैं। बिना आचरण के शिक्षा अधूरी है और बिना शिक्षा के आचरण और अन्ततोगत्वा ये दोनों ही अनुशासन के ही भिन्न रूपं हैं।
प्रश्न 1.
(I) शिक्षा का महत्त्व कब स्वीकार किया जा सकता है?
(II) शिक्षा का आचरण से क्या सम्बन्ध है?
(III) शिक्षा और आचरण को किस का रूप माना गया है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
6. प्यासा आदमी कुएं के पास जाता है, यह बात निर्विवाद है। परन्तु सत्संगति के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप सज्जनों के पास जाएं और उनकी संगति प्राप्त करें। घर बैठे-बैठे भी आप सत्संगति का आनंद लूट सकते हैं। यह बात पुस्तकों द्वारा संभव है। हर कलाकार और लेखक को जन-साधारण से एक विशेष बुद्धि मिली है। इस बुद्धि का नाम प्रतिभा है। पुस्तक निर्माता अपनी प्रतिभा के बल से जीवनभर से संचित ज्ञान को पुस्तक के रूप में उंडेल देता है। जब हम घर की चारदीवारी में बैठकर किसी पुस्तक का अध्ययन करते हैं तब हम एक अनुभवी और ज्ञानी सज्जन की संगति में बैठकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। नित्य नई पुस्तक का अध्ययन हमें नित्य नए सज्जन की संगति दिलाता है। इसलिए विद्वानों ने स्वाध्याय को विशेष महत्त्व दिया है। घर बैठे-बैठे सत्संगति दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।
प्रश्न 1.
(I) घर बैठे-बैठे सत्संगति का लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
(II) हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का क्यों होता है?
(III) पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता क्या है?
(IV) रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक लिखिए।
7. संसार में धर्म की दुहाई सभी देते हैं। पर कितने लोग ऐसे हैं, जो धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं। धर्म कोई बुरी चीज़ नहीं है। धर्म ही एक ऐसी विशेषता है, जो मनुष्य को पशुओं से भिन्न करती है। अन्यथा मनुष्य और पशु में अन्तर ही क्या है। उस धर्म को समझने की आवश्यकता है। धर्म में त्याग की महत्ता है। इस त्याग और कर्तव्यपरायणता में ही धर्म का वास्तविक स्वरूप निहित है। त्याग परिवार के लिए. ग्राम के लिए, नगर के लिए, देश के लिए और मानव मात्र के लिए भी हो सकता है। परिवार से मनुष्य मात्र तक पहुँचते-पहुँचते हम एक संकुचित घेरे से निकल कर विशाल परिधि में घूमने लगते हैं। यही वह क्षेत्र है, जहाँ देश और जाति की सभी दीवारें गिर कर चूरचूर हो जाती हैं। मनुष्य संसार भर को अपना परिवार और अपने-आप को उसका सदस्य समझने लगता है। भावना के इस विस्तार ने ही धर्म का वास्तविक स्वरूप दिया है जिसे कोई निर्मल हृदय सन्त ही पहचान सकता है।
प्रश्न 1.
(I) धर्म की प्रमुख उपयोगिता क्या है?
(II) धर्म का वास्तविक रूप किसमें निहित है?
(III) मनुष्य संसार को अपना कब समझने लगता है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
8. आधुनिक मानव समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरन्तर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव मूल्यों का ह्रास होने से समस्या उत्तरोत्तर गूढ़ होती जा रही है। अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य विवेक और ईमानदारी को त्याग कर भौतिक स्तर से ऊँचा उठने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिन्ता नहीं करता। उसे तो बस साध्य को पाने का प्रबल इच्छा रहती है। ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नये-नये रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध वृद्धि पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। सदाचार, कर्त्तव्यपराणता, त्याग आदि नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना करना स्वप्न मात्र है।
प्रश्न 1.
(I) मानव जीवन में समस्याएँ निरन्तर क्यों बढ़ रही हैं ?
(II) आज का मानव सफलता प्राप्त करने के लिए क्या कर रहा है जो उसे नहीं करना चाहिए।
(III) किन जीवन मूल्यों के द्वारा सुख प्राप्त की कामना की जा सकती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
9. जीवन घटनाओं का समूह है। यह संसार एक बहती नदी के समान है। इसमें बूंद न जाने किन-किन घटनाओं का सामना करती, जूझती आगे बढ़ती है। देखने में तो इस बूंद की हस्ती कुछ भी नहीं। जीवन में कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं जो मनुष्य को असम्भव से सम्भव की ओर ले जाती हैं। मनुष्य अपने को महान् कार्य कर सकने में समर्थ समझने लगता है। मेरे जीवन में एक रोमांचकारी घटना है जिसे मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ।
प्रश्न 1.
(I) जीवन क्या है?
(II) जीवन में अचानक घटी घटनाएँ मनुष्य को कहाँ ले जाती हैं?
(III) लेखक क्या सुनाना चाहती है?
(IV) ‘समूह और रोमांचकारी’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
10. पर्व-त्योहार देश की सामाजिक एकता के प्रतीक, ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी, सांस्कृतिक चेतना के प्रहरी और सद्भावनाओं के प्रेरक होते हैं। पर्व-त्योहार पर देश की मिट्टी जागती है। बासी हवा में ताज़गी आ जाती है और जीवन की एकरसता में नवीनता आ जाती है। दशहरा, दीवाली, होली, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, रक्षा बन्धन, क्रिसमस, ईद आदि हमारे ऐसे त्योहार हैं जिनसे हमारे सामाजिक जीवन में नया उत्साह-आवेग आ जाता है। होली-दीवाली पर हिन्दुओं को मुसलमान और ईसाई प्रेमपूर्वक बधाई देते हैं। परस्पर एक-दूसरे के साथ मिठाई और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं, इसी प्रकार ईद और क्रिसमस पर हिन्दू अपने मुसलमान और ईसाई भाइयों के प्रति शुभकामनाएं प्रकट करते हैं। इस प्रकार इन पर्व-त्योहारों पर सर्वत्र सर्वधर्म-समभाव का सुन्दर रूप दिखाई देता है।
प्रश्न 1.
(I) पर्व-त्योहारों से देश की किन बातों का परिचय मिलता है?
(II) पर्व-त्योहारों का जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(III) त्योहारों पर सामाजिक जीवन का कौन-सा सुन्दर रूप दिखाई देता है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
11. कुछ लोग सोचते हैं कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है, स्वास्थ्य-रक्षा के लिए व्यायाम कर लेना ही काफ़ी है। पर खेल-कूद से स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ-साथ मनुष्य कुछ ऐसे गुण भी सीखता है जिनका जीवन में विशेष महत्त्व है। सहयोग से काम करना, विजय मिलने पर अभिमान न करना, हार जाने पर साहस न छोड़ना, विशेष ध्येय के लिए नियमपूर्वक कार्य करना आदि गुण खेलों के द्वारा अनायास सीखे जा सकते हैं। खेल के मैदान में केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता वरन् मनुष्यता भी बनती है। खिलाड़ी वे बातें सीख जाता है जो उसे आगे चल कर नागरिक जीवन की समस्या को सुलझाने में सहायता देती हैं।
प्रश्न 1.
(I) कुछ लोगों का खेल-कूद के विषय में क्या विचार है?
(II) खेल-कूद से क्या लाभ हैं?
(III) खेल-कूद का अच्छे नागरिक बनाने में क्या योगदान है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
12. लेखक का काम बहुत अंशों में मधुमक्खियों के काम से मिलता है। मधुमक्खियाँ मकरंद संग्रह करने के लिए कोसों के चक्कर लगाती हैं और अच्छे-अच्छे फूलों पर बैठकर उनका रस लेती हैं। तभी तो उनके मधु में संसार की सर्वश्रेष्ठ मधुरता रहती है। यदि आप अच्छे लेखक बनना चाहते हैं तो आपकी भी (वृत्ति) ग्रहण करनी चाहिए। अच्छेअच्छे ग्रंथों का खूब अध्ययन करना चाहिए और उनकी बातों का मनन करना चाहिए फिर आपकी रचनाओं में से मधु का-सा माधुर्य आने लगेगा। कोई अच्छी उक्ति, कोई अच्छा विचार भले ही दूसरों से ग्रहण किया गया हो, पर यदि यथेष्ठ मनन करके आप उसे अपनी रचना में स्थान देंगे तो वह आपका ही हो जाएगा। मननपूर्वक लिखी गई चीज़ के संबंध में जल्दी किसी को यह कहने का साहस नहीं होगा कि यह अमुक स्थान से ली गई है या उच्छिष्ट है। जो बात आप अच्छी तरह आत्मसात कर लेंगे, वह फिर आपकी ही हो जाएगी।
प्रश्न 1.
(I) लेखक और मधुमक्खी में क्या समता है?
(II) लेखक किसी अच्छे भाव को मौलिक किस प्रकार बना लेता है?
(III) कौन-सी बात आप की अपनी हो जाती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।