PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 1 शारीरिक शिक्षा-इसके गुण एवं उद्देश्य
PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 1 शारीरिक शिक्षा-इसके गुण एवं उद्देश्य
PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 1 शारीरिक शिक्षा-इसके गुण एवं उद्देश्य
शारीरिक शिक्षा-इसके गुण एवं उद्देश्य PSEB 9th Class Physical Education
- .शारीरिक शिक्षा-शारीरिक क्रियाओं से हमें जो अनुभव प्राप्त होता है, उसे शारीरिक शिक्षा कहते हैं।
- शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य-मनुष्य का सर्वोन्मुखी विकास ही शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य है।
- शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य-शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास ही शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य हैं।
- खेल के मैदान में शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य-खेल के मैदान से सहनशीलता, अनुशासन और चरित्र का विकास होता है।
- खाली समय का उचित प्रयोग-खेलों में भाग लेने से बच्चे खाली समय का उचित प्रयोग करते हैं जिससे उनमें बुरी आदतें नहीं पनपती हैं।
- खेलों के नेतृत्व का गुण-एक नेता में अच्छे चारित्रिक गुणों का होना आवश्यक है और ये खेलें मनुष्य में नेतृत्व के गुण पैदा करती हैं।
PSEB 9th Class Physical Education Guide शारीरिक शिक्षा-इसके गुण एवं उद्देश्य Textbook Questions and Answers
बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के लिए ऐसा वातावरण प्रदान करना है जो उसके शरीर, दिमाग तथा समाज के लिए लाभदायक हो।
प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा क्या है ?
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा बच्चे के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए शारीरिक कार्यक्रम द्वारा, शरीर, मन तथा आत्मा को पूर्णता की ओर ले जाती है।
प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा के कोई दो उद्देश्यों के नाम लिखो।
उत्तर-
(1) शारीरिक विकास (2) मानसिक विकास।
प्रश्न 4.
व्यक्ति और समाज के विकास में शारीरिक शिक्षा के कोई दो योगदानों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) खाली समय का उचित प्रयोग, (2) जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक, 3. सामाजिक भावना।
प्रश्न 5.
खेल के मैदान में आप कौन-कौन से शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य ग्रहण करते हो ? किसी दो के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) सहनशीलता, (2) अनुशासन, (3) चरित्र विकास ।
प्रश्न 6.
खेलें व्यक्ति में कैसे गुण विकसित करती हैं ?
उत्तर-
नेतृत्व के गुण।
बड़े उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा का क्या लक्ष्य है ?
(What is the aim of Physical Education ?)
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य (Aim of Physical Education)-शारीरिक शिक्षा साधारण शिक्षा की भान्ति उच्च मंजिल पर पहुंचने के लिए शिक्षा प्रदान करती है।
सुप्रसिद्ध शारीरिक शिक्षा शास्त्री जे० एफ० विलिअम्ज (J.F. Williams) का कहना है .. कि यदि हमें शारीरिक शिक्षा की मंजिल प्राप्त करनी है तो यह हमारा उद्देश्य होना चाहिए। शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य एक कुशल तथा योग्य नेतृत्व देना तथा ऐसी सुविधाएं प्रदान करना है जो किसी एक व्यक्ति या समुदाय को कार्य करने का अवसर दें तथा ये सभी क्रियाएं शारीरिक रूप से सम्पूर्ण, मानसिक रूप से उत्तेजक तथा सन्तोषजनक तथा सामाजिक रूप से निपुण हों। इसके अनुसार व्यक्ति के लिए केवल उन्हीं क्रियाओं का चयन करना चाहिए जो शारीरिक रूप से लाभदायक हों।
प्रत्येक व्यक्ति केवल वे क्रियाएँ करे जो शरीर को तेज़ करने वाली हों तथा उसकी चिन्तन शक्ति बढ़ाने वाली हों। खेलों में कुछ उलझनें तथा प्रतिबन्ध इस प्रकार लगाये जाते हैं कि व्यक्ति का दिमाग ताज़ा रहे और उसे मानसिक सन्तोष मिले। इन क्रियाओं को समाज का समर्थन भी प्राप्त होना चाहिए। इसके अतिरिक्त समाज के अन्य सदस्य भी इन्हें आदर की दृष्टि से देखें। . संक्षेप में, समूचे तौर पर शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य व्यक्ति के लिए ऐसा वातावरण प्रदान करना है जो उसके शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक पक्ष के लिए उपयोगी हो। इस प्रकार व्यक्ति का सर्वपक्षीय विकास (All-round Development) ही शारीरिक शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य है।
प्रश्न 2.
खाली समय का उचित प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है ? संक्षेप में लिखो।
(How can Leisure time be usefully spent ? Describe in brief.)
उत्तर-
किसी ने ठीक ही कहा है कि “खाली मन शैतान का घर होता है।” (“An idle brain is a devil’s workshop.”) यह प्रायः देखा भी जाता है कि बेकार आदमी को शरारतें ही सूझती हैं। कई बार तो वह ऐसे गलत काम करने लगता है जो सामाजिक तथा नैतिक दृष्टि से उचित नहीं ठहराये जा सकते। इसका कारण यह है कि उसके पास फालतू समय तो है परन्तु उसके पास इसे व्यतीत करने का ढंग नहीं है। फालतू समय का उचित प्रयोग न होने के कारण उसका दिमाग कुरीतियों में फंस जाता है और कई बार अनेक उलझनों में उलझ कर रह जाता है जिनसे बाहर निकलना उसके वश से बाहर होता है।
यदि व्यक्ति इस फालतू समय का सदुपयोग जानता हो तो वह जीवन में उच्च शिखरों को छू सकता है। संसार के अनेक आविष्कार उन व्यक्तियों ने किये जो फालतू समय को कुशल ढंग से व्यतीत करने की कला से परिचित थे। इस प्रकार संसार के अनेक आविष्कार फालतू समय की ही देन हैं।।
यदि बच्चों के फालतू समय व्यतीत करने के लिए कोई उचित प्रबन्ध न हो तो वे बुरी आदतों का शिकार हो जाएंगे। इस प्रकार वे समाज पर बोझ बनने के साथ-साथ इसके लिए कलंक भी बन जाएंगे। इसलिए उनके फालतू समय के उचित प्रयोग की अच्छी व्यवस्था करनी चाहिए। स्कूलों, कॉलेजों, पंचायतों या नगरपालिकाओं या सरकार को अच्छे खेल के मैदानों तथा खेलों के सामान का पूरा प्रबन्ध करना चाहिए ताकि बच्चे खेलों में भाग लेकर अपने खाली समय का उचित प्रयोग कर सकें। इस प्रकार हम देखते हैं कि फालतू समय के प्रभावशाली उपयोग का सर्वोत्तम साधन खेलें हैं।
प्रश्न 3.
‘खेलें अच्छे नेता बनाती हैं।’ कैसे ?
(Games make good Leader. How ?)
अथवा
खेलें एक अच्छे नेता के गुण कैसे पैदा करती हैं?
(How sports produce the qualities of a good Leader ?)
उत्तर-
खेलें व्यक्ति में अच्छे नेतृत्व के गुण विकसित करती हैं। शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र अत्यधिक विशाल है। खेलों में एक खिलाड़ी को अनेक ऐसे अवसर मिलते हैं जब उसे टीम के कप्तान, सैक्रेटरी, रैफरी या अम्पायर की भूमिका निभानी पड़ती है। इन परिस्थितियों में वह अपनी योग्यता के अनुसार आचरण करता है। एक कप्तान के रूप में वह अपनी टीम के खिलाड़ियों को समय-समय पर निर्देश देकर उन्हें उचित ढंग से तथा पूर्ण विश्वास के साथ खेलने की प्रेरणा देता है। एक रैफरी या अम्पायर के रूप में वह निष्पक्ष रूप से उचित निर्णय देता है। सैक्रेटरी के रूप में वह टीम का ठीक ढंग से गठन एवं संचालन करता है। इस प्रकार उसमें एक सफल और अच्छे नेता के गुण विकसित हो जाते हैं।
एक नेता में अच्छे चारित्रिक गुणों का होना आवश्यक है। उसमें आज्ञा-पालन, समय की पाबन्दी, सभी के साथ समान व्यवहार, प्रेम, सहानुभूति, सहनशीलता आदि गुण प्रचुर मात्रा में होने चाहिएं। ये सभी गुण वह खेल के मैदान से ग्रहण कर सकता है। एक नेता को अपने आस-पास के लोगों के साथ सद्भावना से रहना चाहिए। खेलें उसमें यह गुण विकसित करती हैं। जब एक खिलाड़ी अन्य स्थानों के खिलाड़ियों के साथ मिल-जुल कर खेलता है, वह उनके स्वभाव तथा सभ्यता के साथ भली-भान्ति परिचित हो जाता है। उसमें उनके प्रति सद्भावना उत्पन्न हो जाती है। यह सद्भावना ही एक नेता का महत्त्वपूर्ण गुण है।
नेता को चुस्त और फुर्तीला होना चाहिए। खेलों में भाग लेने से व्यक्ति में चुस्ती और स्फूर्ति आती है। इस प्रकार खेलें अच्छे नेताओं के निर्माण में विशेष योगदान देती हैं।
बड़े स्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा के मुख्य उद्देश्य कौन-कौन से हैं ?
(Describe the main objectives of Physical Education.)
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Physical Education)किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पहले उसके उद्देश्य निर्धारित कर लेना आवश्यक है। बिना उद्देश्य के किया गया काम छाछ को मथने के समान है। उद्देश्य निश्चित कर लेने से
हमारे यत्नों को प्रोत्साहन मिलता है और उस काम को करने में लगाई गई शक्ति व्यर्थ नहीं जाती है। आज तो शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य की जानकारी प्राप्त करना और भी ज़रूरी हो गया है क्योंकि अब तो स्कूलों में एक विषय (Subject) के रूप में इसका अध्ययन किया जाता है।
साधारणतया शारीरिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- शारीरिक वृद्धि एवं विकास (Physical Growth and Development)
- मानसिक विकास (Mental Development) (3) सामाजिक विकास (Social Development)
- चरित्र निर्माण या नैतिक विकास (Formation of Character or Moral Development)
- नाड़ियों और मांसपेशियों में समन्वय (Neuro-muscular Co-ordination )
- बीमारियों से बचाव (Prevention of Diseases)
1. शारीरिक वृद्धि एवं विकास (Physical Growth and Development)अच्छा, सफल तथा सुखद जीवन व्यतीत करने के लिए सुदृढ़, सुडौल तथा स्वस्थ शरीर का होना परमावश्यक है। हमारे शरीर का निर्माण मज़बूत हड्डियों से हुआ है। इसमें काम करने वाले सभी अंग उचित रूप से अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। शरीर के अंगों के सुचारु रूप से कार्य करते रहने से शरीर का निरन्तर विकास होता है। इसके विपरीत इनके भलीभान्ति काम न करने से शारीरिक विकास भी रुक जाता है। इस प्रकार शारीरिक प्रफुल्लता के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शारीरिक शिक्षा सुखद वातावरण जुटाती है।
2. मानसिक विकास (Mental Development)- शारीरिक विकास के साथसाथ मानसिक विकास की भी आवश्यकता है। शारीरिक शिक्षा ऐसी क्रियाएं प्रदान करती हैं जो व्यक्ति के मस्तिष्क को उत्तेजित करती हैं। उदाहरणस्वरूप, बास्केटबाल के खेल में एक टीम के खिलाड़ियों को विरोधी टीम के खिलाड़ियों से गेंद (बॉल) को बचा कर रखना होता है तथा इसके साथ-साथ अपना लक्ष्य भी देखना पड़ता है । अपनी शक्ति का अनुमान लगा कर बॉल को ऊपर लगी बास्केट में भी डालना होता है। कोई भी खिलाड़ी जो शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट है, परन्तु मानसिक रूप में विकसित नहीं है, कभी भी अच्छा खिलाड़ी नहीं बन सकता है। शारीरिक शिक्षा मानसिक विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान करती है। इसलिए खेलों में भाग लेने वाले व्यक्ति का शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी हो जाता है।
प्रायः शारीरिक रूप से अस्वस्थ तथा मानसिक रूप से सुस्त व्यक्ति बहुत ही भावुक हो जाते हैं। वे जीवन की साधारण समस्याओं को हंसी-हंसी में सुलझा लेने के स्थान पर उनमें उलझ कर रह जाते हैं। वे अपनी खुशी, गम, पसन्द तथा नफ़रत को आवश्यकता से कहीं अधिक महत्त्व देने लगते हैं और वे अपना कीमती समय तथा शक्ति व्यर्थ ही गंवा देते हैं। इस प्रकार कोई महान् सफलता प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। शारीरिक शिक्षा इन भावनाओं पर नियन्त्रण पाने की कला सिखाती है।
3. सामाजिक विकास (Social Development) शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को अपने इर्द-गिर्द के लोगों के साथ सद्भावना से रहने की शिक्षा प्रदान करती है। जब एक व्यक्ति विभिन्न स्थानों के खिलाड़ियों के साथ मिल कर खेलता है तो सामाजिक विकास का अच्छा वातावरण पनपता रहता है। प्रत्येक खिलाड़ी अन्य खिलाड़ियों के स्वभाव, रीति-रिवाज, पहनावा, सभ्यता तथा संस्कृति से भली-भान्ति परिचित हो जाता है। कई बार दूसरों की अच्छी बातें तथा गुण ग्रहण कर लिए जाते हैं। देखने में आता है कि यूनिवर्सिटी, राज्यीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर खेल मुकाबलों का आयोजन किया जाता है। इनका मुख्य उद्देश्य लोगों में प्रेम तथा आदर की भावनाएं विकसित करना होता है।
4. चरित्र-निर्माण अथवा नैतिक विकास (Character Formation or Moral Development)-खेल का मैदान चरित्र-निर्माण की पाठशाला है। इसका कारण यह है कि खेल के मैदान में ही व्यक्ति खेल के नियमों को निभाते हैं। यहीं से वे अच्छा जीवन व्यतीत करने की कला सीखते हैं तथा सुलझे हुए इन्सान बन जाते हैं। खेल खेलते समय यदि रैफरी कोई ऐसा निर्णय दे देता है जो उन्हें पसन्द नहीं तो भी वे खेल जारी रखते हैं और कोई अभद्र व्यवहार नहीं करते। खेल के मैदान में ही आज्ञा-पालन, अनुशासन, प्रेम तथा दूसरों से सहयोग आदि के गुण सीखे जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र-निर्माण और नैतिक विकास होता है।
5. नाड़ियों और मांसपेशियों में समन्वय (Neuro-muscular Coordination)-हमारी प्रतिदिन की क्रियाओं को समुचित ढंग से पूर्ण करना अनिवार्य है ताकि नाड़ियों और मांसपेशियों में समन्वय पैदा हो। शारीरिक शिक्षा इनमें समन्वय पैदा करने में सहायता देती है।
6. बीमारियों से बचाव (Prevention from Diseases) शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को बीमारी से बचाना भी है। बहुत-सी बीमारियां अज्ञानता के कारण लग जाती हैं। शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य बच्चों की बीमारियों के कारणों का ज्ञान देना है। वे इन कारणों से बच कर स्वयं भी बीमारियों से बच सकते हैं।
अन्त में, हम कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा मनुष्य के सर्वपक्षीय विकास के लिए, नागरिकता के लिए, मानवीय भावनाओं के निर्माण तथा राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत ही उपयोगी है।
प्रश्न 2.
हॉकी के खेल के मैदान में आप कौन-कौन से शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य ग्रहण करते हो ?
(What are the objectives of Physical Education that one acquires in the game of Hockey ?)
उत्तर-
हॉकी का मैदान भी एक तरह की पाठशाला है जहां से विद्यार्थी शारीरिक शिक्षा के अनेक गुण ग्रहण करता है जिनसे वह जीवन में उन्नति के उच्च शिखर को छूता है और जीवन का हर पक्ष से भरपूर आनन्द उठाता है। हॉकी के क्रीड़ा-क्षेत्र में हम शारीरिक शिक्षा के निम्नलिखित गुणों को ग्रहण करते हैं –
1. सहनशीलता (Toleration) खेल के मैदान में हम सहनशीलता का पाठ पढ़ते हैं। वैसे तो सभी खिलाड़ी चाहते हैं कि जीत उनकी टीम की ही हो। परन्तु कई बार लाख चाहने पर भी विरोधी टीम विजयी हो जाती है। ऐसी स्थिति में पराजित टीम के खिलाड़ी दिल छोड़ कर नहीं बैठ जाते बल्कि अपना मनोबल ऊंचा रखते हैं। वे हार-जीत को एक ही समान समझते हैं। इस प्रकार खेल के मैदान से विद्यार्थियों को सहनशीलता की व्यावहारिक ट्रेनिंग मिलती है।
2. अनुशासन (Discipline)-खेल के मैदान में खिलाड़ी अनुशासन में रहने की कला सीखते हैं। उन्हें पता चलता है कि अनुशासन ही सफलता की कुंजी है। वे खेल में भाग लेते समय अनुशासन का पालन करते हैं। वे अपने कप्तान की आज्ञा मानते हैं तथा रैफरी के निर्णयों को सहर्ष स्वीकार करते हैं। खेल में पराजय को सामने स्पष्ट शारीरिक शिक्षा-इसके गुण एवं उद्देश्य देखते हुए भी वे कोई ऐसा अभद्र व्यवहार नहीं करते जिससे कोई उन्हें अनुशासनहीन – कह सके।
3. चरित्र विकास (Character Development) हॉकी के खेल में भाग लेने से विद्यार्थियों में सहयोग, प्रेम, सहनशीलता, अनुशासन आदि गुणों का विकास होता है जिनसे उनके चरित्र का विकास होता है। इस खेल में भाग लेने से उनमें सहयोग की भावना विकसित होती है। वे निजी हितों को समूचे हितों पर न्योछावर कर देते हैं।
4. व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality) हॉकी के खेल में भाग लेने से विद्यार्थियों में कुछ ऐसे गुण विकसित हो जाते हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व का विकास हो जाता है। उनमें सहयोग तथा सहनशीलता आदि गुण विकसित होते हैं तथा उनका शरीर सुन्दर एवं आकर्षक बन जाता है। ये सभी अच्छे व्यक्तित्व के चिन्ह हैं।
5. अच्छे नागरिक बनाना (Creation of Good Citizens)-हॉकी के मैदान में खिलाड़ी में कर्त्तव्य-पालन, आज्ञा पालन, सहयोग, सहनशीलता आदि गुण विकसित हो जाते हैं जो उन्हें एक अच्छा नागरिक बनने में पर्याप्त सहायता पहुंचाते हैं। वे नागरिकता के सभी कर्तव्यों का भली-भान्ति पालन करते हैं। इस प्रकार हॉकी का मैदान अच्छे नागरिकों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
6. सहयोग (Co-operation) हॉकी के खेल में भाग लेने वाला खिलाड़ी प्रत्येक खिलाड़ी का कहना मानता है। वह अपना विचार दूसरों पर बलात् लागू नहीं करवाता है, अपितु अपने विचार विनिमय के द्वारा खेल के मैदान में संयुक्त विचारधारा बनाता है। इस प्रकार सहयोग की भावना उत्पन्न होती है।
7. राष्ट्रीय भावना (National Spirit)-हॉकी का मैदान एक ऐसा स्थान है जहां हम बिना धर्म और वर्ग के आधार पर भाग ले सकते हैं। कोई भी खिलाड़ी खेल के मैदान में से किसी खिलाड़ी को धर्म के आधार पर टीम से बाहर नहीं निकाल सकता। इस प्रकार . खेल के मैदान में समानता और राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा होती है।
8. आत्म-विश्वास की भावना (Self-Confidence) हॉकी के खेल के मैदान में खिलाड़ियों में आत्म-विश्वास की भावना पैदा होती है। जैसे, वह विजय-पराजय को एक समान समझता है। वही खिलाड़ी खेल के मैदान में सफल होता है जो धैर्य
और विश्वास के साथ खेले। इससे सिद्ध होता है कि हॉकी के खेल के द्वारा खिलाड़ियों में आत्म-विश्वास की भावना पैदा होती है।
9. विजय-पराजय को समान समझने की भावना (Spirit of giving equal importance to Victory of Defeat) हॉकी के खेल के द्वारा खिलाड़ियों में विजय-पराजय को एक समान समझने की भावना पैदा होती है।
हमें कभी भी विरोधी टीम का मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए या विजय की प्रसन्नता में पागल नहीं होना चाहिए। पराजित टीम को सदैव प्रोत्साहन देना चाहिए। यदि उसकी पराजय होती है तो उसे निराश और उत्साहहीन नहीं होने देना चाहिए अपितु उसका हौसला बढ़ाना चाहिए।
10. त्याग की भावना (Spirit of Sacrifice)-हॉकी के खेल के मैदान में त्याग की भावना अत्यावश्यक है। जब हम खेल में भाग लेते हैं तो हम अपने स्कूल, प्रान्त, क्षेत्र और सारे राष्ट्र के लिए अपने हित का त्याग करके उसकी विजय का श्रेय राष्ट्र को देते हैं। अत: यह सिद्ध होता है कि खेलें सदैव त्याग चाहती हैं। – ड्यूक ऑफ़ विलिंग्टन ने नेपोलियन को वाटरलू (Waterloo) के युद्ध में पराजित करने के पश्चात् कहा था, “वाटरलू का युद्ध एटन और हैरो के खेल के मैदानों में जीता गया।” (“The Battle of Waterloo was won at the playing-fields of Eton and Harrow.”)
इससे यह सिद्ध होता है कि खेलें अच्छे नेता पैदा करने में सहायक होती हैं।