UK Board 10 Class Hindi Chapter 10 – नेता जी का चश्मा (गद्य-खण्ड)
UK Board 10 Class Hindi Chapter 10 – नेता जी का चश्मा (गद्य-खण्ड)
UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 10 नेता जी का चश्मा (गद्य-खण्ड)
नेताजी का चश्मा (स्वयं प्रकाश)
1. लेखक – परिचय
प्रश्न – प्रसिद्ध साहित्यकार स्वयं प्रकाश का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए-
जीवन-परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक विशेषताएँ, भाषा-शैली ।
उत्तर- स्वयं प्रकाश
जीवन-परिचय – स्वयं प्रकाश का जन्म सन् 1947 ई० में मध्य प्रदेश के इन्दौर नगर में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी इन्दौर में ही सम्पन्न हुई। उच्चशिक्षा के रूप में स्वयं प्रकाशजी ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग तक की शिक्षा ग्रहण की और एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में राजस्थान राज्य में नौकरी की। कुछ समय नौकरी करने के पश्चात् उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली। आज स्वयं प्रकाशजी भोपाल ( म०प्र०) में निवास करते हैं और वहाँ ‘वसुधा’ नामक पत्रिका सम्पादन से जुड़े हैं।
रचनाएँ – स्वयं प्रकाश का रचना संसार ‘कहानी’ विधा के रूप में अधिक सजा – सँवरा है। अब तक उनके तेरह कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमें प्रमुख हैं— ‘सूरज कब निकलेगा’, ‘आएँगे अच्छे दिन भी’, ‘आदमी जात का आदमी’ और ‘सन्धान’। उन्होंने अभी तक पाँच उपन्यासों की रचना भी को हैं, जिनमें प्रमुख हैं— ‘बीच में विनय’ और ‘ईंधन’। ये दोनों उपन्यास साहित्य – जगत् में चर्चित भी खूब रहे हैं। स्वयं प्रकाशजी को अपनी रचनाओं के लिए पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार और राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
साहित्यिक विशेषताएँ – स्वयं प्रकाश के साहित्य पर आदर्शवादी विचारधारा का काफी प्रभाव है। इनकी कृतियों में देश, समाज, नगर-गाँव की सुख-समृद्धि देखने की आकांक्षा प्रकट हुई है। भारतीय सांस्कृतिक जीवन-मूल्य उनमें प्रवाहित हुए हैं। मध्यमवर्गीय जीवन के कुशल चितेरे स्वयं प्रकाश की कहानियों में वर्ग- शोषण के विरुद्ध चेतना है तो हमारे सामाजिक जीवन में जाति, सम्प्रदाय और लिंग के आधार पर हो रहे भेदभाव के विरुद्ध प्रतिकार का स्वर भी है। रोचक किस्सागोई शैली में लिखी गई उनकी कहानियाँ हिन्दी की वाचिक परम्परा को समृद्ध करती हैं।
भाषा भाषा-शैली – स्वयं प्रकाशजी की भाषा-शैली सुमधुर है। उनकी हिन्दी, उर्दू, तत्सम तद्भव एवं देशी शब्दों का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है। मुहावरों और लोकोक्तियों का मंजुल प्रयोग भी उनकी रचनाओं में दृष्टिगत होता है। अनेक स्थानों पर उन्होंने अपनी कहानियों में व्यंग्य शैली का प्रयोग कर व्यवस्था पर चोट की है। वे सीधी-सरल शब्दावली में गूढ़ बात कह देने में निपुण हैं। उनकी शैली की सहजता और नवीनता पाठक को सहज ही आकर्षित करती है। उनकी शैली की चित्रात्मकता पाठक को बाँधे रहती है। पाठक उनके साथ जुड़ाव अनुभव करता है, यह उनकी भाषा-शैली की सशक्तता को प्रकट करता है।
2. गद्यांश पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
(1) कस्बा बहुत ……………. बारे में।
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) कस्बे के दृश्य को अपने शब्दों में चित्रित कीजिए ।
(ग) कस्बे में नगरपालिका ने कौन-कौन से कार्य करवाए ?
(घ) नेताजी की प्रतिमा कहाँ व किसने लगवाई थी?
(ङ) ‘कस्बा बहुत बड़ा नहीं था’ इसके लिए लेखक ने क्या प्रमाण दिए हैं?
(च) ‘नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी’ – इस वाक्य में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-
(क) लेखक – स्वयं प्रकाश । पाठ का नाम – नेताजी का चश्मा ।
(ख) कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। कस्बे में कुछ पक्के मकान बने हुए थे। एक छोटा-सा बाजार भी था। लड़कों व लड़कियों का एक-एक स्कूल तथा सीमेण्ट का एक छोटा कारखाना भी था। कस्बे में खुली छतवाले दो सिनेमाघर भी थे। इस प्रकार कस्बा बहुत छोटा था।
(ग) नगरपालिका ने कस्बे में सड़कें पक्की करवाईं। कुछ पेशाबघर बनवाए। कबूतरों की छतरी बनवाई। कभी-कभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के रूप में कवि सम्मेलन का भी आयोजन करा दिया जाता था।
(घ) शहर के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की संगमरमर की प्रतिमा लगवाई थी।
(ङ) ‘कस्बा बहुत बड़ा नहीं था इसके लिए लेखक ने कई प्रमाण दिए हैं। पहला प्रमाण तो यही था कि वहाँ गिनती के ही पक्के और बड़े मकान थे, यदि वे मकान न होते तो वहाँ का दृश्य किसी गाँव जैसा ही दिखता। कहने का आशय यही है कि वह कस्बा अभी-अभी गाँव से कस्बे में परिवर्तित हुआ था। स्पष्ट ही है कि इस स्थिति में कस्बा छोटा ही होगा। कुल मिलाकर दो स्कूल, एक छोटा-सा बाजार और एक छोटा-सा कारखाना वहाँ थे, जो कि किसी बड़े गाँव में भी हो सकते हैं। यह सभी बातें इसी बात का प्रमाण हैं वह कस्बा बहुत छोटा था।
(च) ‘नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी’ – इस वाक्य के द्वारा लेखक ने नगरपालिका की अकर्मण्यता पर व्यंग्य किया है। कहने का आशय यह है कि नगरपालिका अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कस्बे में थोड़े-बहुत निर्माण कार्य कराती थी, अन्यथा उसकी कस्बे के विकास हेतु निर्माण कार्य कराने में कोई रुचि
(2) जैसा कि कहा ………… चश्मा रियल!
प्रश्न –
(क) ‘बस्ट’ का यहाँ क्या अर्थ है ?
(ख) ‘कुछ-कुछ मासूम और कमसिन’ लेखक की इस टिप्पणी से मूर्ति की किस विशेषता का पता चलता है?
(ग) किस दृष्टि से मूर्ति लगाने का यह प्रयास सफल और सराहनीय था ?
(घ) मूर्ति में कौन-सी चीज की कसर थी, जो देखते ही खटकती थी?
उत्तर—
(क) यहाँ ‘बस्ट’ का अर्थ उस मूर्ति से है, जो आवक्ष अर्थात् सिर से छाती तक बनी हो ।
(ख) ‘कुछ-कुछ मासूम और कमसिन’ नेताजी की मूर्ति के विषय पर की गई लेखक की इस टिप्पणी से मूर्ति की विशेषता के विषय में यह पता चलता है कि मूर्ति में नेताजी के व्यक्तित्व के अनुरूप ओजस्विता और परिपक्वता जैसी मुद्राओं का अभाव था। उसमें उनके व्यक्तित्व के विपरीत अत्यधिक भोलापन और अल्हड़ता थी।
(ग) मूर्ति में भले ही नेताजी के व्यक्तित्व की भाव-भंगिमा का अभाव था, फिर भी उसे देखकर नेताजी द्वारा किए गए कार्यों और ‘दिल्ली चलो’ तथा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ जैसे प्रेरणात्मक उद्घोषों का स्मरण किसी को भी हो आता है, इस प्रकार देश- समाज की नई पीढ़ी को देशभक्तों के पुण्य कार्यों का स्मरण कराने की दृष्टि से मूर्ति लगाने का यह सफल और सराहनीय कार्य था ।
(घ) मूर्ति में चश्मे की कसर थी, जो उसे देखते ही खटकती थी। यहाँ चश्मे की कसर से आशय यह है कि पत्थर की मूर्ति में चश्मे की आकृति को नहीं उकेरा गया था, बल्कि उसको अलग से चश्मा पहनाकर उस अभाव को पूरा करने का प्रयास किया था।
(3) पानवाले के ………. गया होगा। उफ़….!
प्रश्न –
(क) कौन-सी बात पानवाले के लिए मजेदार और हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करनेवाली थी?
(ख) ‘ यानी वह ठीक ही सोच रहे थे’ वाक्यांश के अनुसार हालदार साहब क्या ठीक सोच रहे थे?
(ग) अनुच्छेद के अन्त में हालदार साहब द्वारा कहे गए ‘उफ…!’ से क्या ध्वनित होता है?
उत्तर-
(क) मूर्ति बनानेवाला मास्टर मूर्ति बनाते समय नेताजी सुभाषचन्द्र का चश्मा बनाना भूल गया, यह बात पानवाले के लिए तो मजेदार थी, किन्तु हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करनेवाली थी कि देश के महापुरुषों के चित्रण में देश के लोग इतने लापरवाह होंगे, यह उन्होंने सोचा भी न था । यह देशवासियों की देशभक्तों के प्रति कृतघ्नता ही है, जबकि उन्हें उनका कृतज्ञ होना चाहिए।
(ख) हालदार साहब मूर्ति पर चश्मा न देखकर यह सोच रहे थे कि जिस व्यक्ति ने यह मूर्ति बनाई है, वह गैर-जिम्मेदार व्यक्ति है | अथवा दक्ष मूर्तिकार नहीं है। एक दक्ष मूर्तिकार ऐसा गैर-जिम्मेदारांना कार्य कर ही नहीं सकता और जब उन्होंने मूर्ति के नीचे लिखा हुआ मूर्तिकार का नाम ‘मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल’ पढ़ा तो उनकी यह सोच ठीक सिद्ध हुई कि मूर्तिकार दक्ष नहीं था और न ही अपनी कला के प्रति समर्पित और जिम्मेदार | वह तो एक साधारण-सा मास्टर था, उससे मूर्ति बनवाने जैसा कार्य कराया ही नहीं जाना चाहिए था ।
(ग) अनुच्छेद के अन्त में हालदार साहब द्वारा कहे गए ‘उफ….!’ शब्द से उनकी देशभक्तों के प्रति श्रद्धा और देशवासियों द्वारा उनके प्रति कृतघ्नता के परिणामस्वरूप एक देशभक्त व्यक्ति के मन में उत्पन्न होनेवाली ग्लानि और पीड़ा ध्वनित होती है।
(4) फिर एक ………. रवाना हो गए।
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मूर्ति के चेहरे पर चश्मा क्यों नहीं था?
(ग) “पानवाला सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँख पोंछता हुआ बोला ” – इस वाक्य द्वारा लेखक ने पानवाले की किस भावदशा का वर्णन किया है?
(घ) हालदार साहब कुछ और क्यों नहीं पूछ पाए ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – नेताजी का चश्मा | लेखक- स्वयं प्रकाश ।
(ख) मूर्ति के चेहरे पर नित नए फ्रेम का चश्मा लगाने का काम कैप्टन करता था। कैप्टन की मृत्यु हो जाने के कारण नेताजी की मूर्ति पर चश्मा नहीं था ।
(ग) पानवाला चश्मेवाले कैप्टन की इस बात से अभिभूत था कि वह राष्ट्रनेता और परम देशभक्त सुभाषचन्द्र बोस की प्रतिमा को प्रतिदिन नया चश्मा पहनाकर उनके व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करने के साथ-साथ उनके प्रति अपनी श्रद्धा को दर्शाता हुआ अपनी देशभक्ति का भी परिचय देता है। यद्यपि दूसरे लोग उसके इस कार्य को पागलपन करार देकर उसका मजाक उड़ाते थे, किन्तु वह इस सबकी चिन्ता किए बिना अपना काम पूर्ण तल्लीनता से करता रहता था चश्मेवाले का मजाक उड़ाने वालों में कभी पानवाला भी हुआ करता था, किन्तु आज उसके न रहने पर उसे इस बात का मलाल है कि आज देश की शान रहे नेताजी को चश्मा पहनानेवाला कोई नहीं है। यही सब सोचकर चश्मेवाले के प्रति वह श्रद्धावनत हो जाता है। उसकी आँखों में छलछला आए आँसू उसकी श्रद्धा के प्रतीक हैं, जिन्हें वह सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से पोंछता है।
(घ) हालदार साहब कुछ और इसलिए नहीं पूछ पाए; क्योंकि वह जानते थे कि कुछ और पूछने का कोई लाभ नहीं होगा । मेरे कुछ और पूछने से नेताजी को चश्मा नहीं लग जाएगा। फिर देशभक्तों की उपेक्षा करनेवाले संवेदनाशून्य शहर में वह कुछ और पूछते भी तो क्या। जो शहर नेताजी जैसे व्यक्ति की उपेक्षा कर सकता है, उससे एक साधारण से चश्मेवाले देशभक्त के प्रति कोई अपेक्षा नहीं की जा सकती, इसलिए बिना कुछ और पूछे चुपचाप अपनी जीप में जाकर बैठ गए।
(5) बार-बार सोचते, …………. कहीं खा लेंगे।
प्रश्न –
(क) ‘क्या होगा उस कौम का, जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी – जवानी – जिन्दगी सबकुछ होम कर देनेवालों पर भी हँसती है?’ लेखक के इस प्रश्न के विषय में आपका क्या विचार है?
(ख) ‘कौम ….. अपने लिए बिकने के मौके ढूँढती है’ लेखक के इस कथन का क्या आशय है ?
(ग) ….. क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया। ….. और कैप्टन मर गया।’ इस कथन के द्वारा लेखक देश और समाज की किस स्थिति की ओर संकेत करना चाहता है?
(घ) कस्बे में न रुकने के निर्णय से हालदार साहब की किस भावना का पता चलता है?
उत्तर-
(क) जो कौम अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी – जवानी – जिन्दगी सबकुछ होम कर देनेवालों पर हँसती है, निश्चय ही वह कौम नष्ट हो जाती है अथवा दूसरों की गुलाम हो जाती है । हमारा देश स्वयं इस स्थिति से गुजर चुका है।
(ख) जो कौम अपने देशभक्तों तथा सभ्यता एवं संस्कृति का सम्मान नहीं करती, उन पर हँसती है और धन-सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए अपने सम्मान को भी दाँव पर लगा देती है। पैसा ही जिस कौम का दीन – ईमान होता है और जो उसकी प्राप्ति के लिए किसी भी कीमत पर मौके तलाशती है, वह कौम शीघ्र ही पतन के गर्त में समा जाती है। उसका अस्तित्व ही इस धरती से मिट जाता है। आज अधिकांश कौमों का यही हाल है, जो पैसों की दौड़ में अपनी सभ्यता और संस्कृति को त्यागकर स्वयं को आधुनिक कहलाने में गर्व का अनुभव कर रही हैं। ‘कौम अपने लिए बिकने के मौके ढूँढती है,’ इस वाक्य से लेखक इसी भावना को व्यक्त करना चाहता है।
( ग ) ‘…. क्योंकि मास्टर ( चश्मा ) बनाना भूल गया। …… और कैप्टन मर गया।’ इस कथन के द्वारा लेखक देश और समाज को इस स्थिति से अवगत कराना चाहता है कि देशभक्तों के त्याग और आत्मबलिदान को मास्टर की भाँति भूल जानेवाले लोगों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है और उनके प्रति श्रद्धा रखनेवाले देशभक्तों की संख्या निरन्तर कम होती जा रही है, इसीलिए आज कोई भी व्यक्ति महापुरुषों पर किसी तरह कीचड़ उछाल देता है, उनके व्यक्तित्व और चरित्र को जी चाहे जैसे तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर देता है और कोई कुछ नहीं कहता। सब चुपचाप देखते रहते हैं।
(घ) कस्बे में न रुकने के निर्णय से हालदार साहब की देशभक्तों के प्रति श्रद्धा और देशभक्ति की भावना का पता चलता है। वे बिना चश्मे की नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति बनानेवाली संस्था कस्बे की नगरपालिका एवं बिना चश्मे की नेताजी की मूर्ति को देखकर उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करनेवाली वहाँ की जनता के प्रति रुष्ट भी दिखते हैं।
3. पाठ पर आधारित विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – स्वयं प्रकाश की कहानी ‘नेताजी का चश्मा’ की विषयवस्तु क्या है?
उत्तर – चारों ओर सीमाओं से घिरे भू-भाग का नाम ही देश नहीं होता। देश बनता है उसमें रहनेवाले सभी नागरिकों, नदियों, पहाड़ों, पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों से; और इन सबसे प्रेम करने तथा इनकी समृद्धि के लिए प्रयास करने का नाम देश-भक्ति है। ‘नेताजी का चश्मा’ कहानी कैप्टन चश्मेवाले के माध्यम से देश के उन करोड़ों गुमनाम नागरिकों के योगदान को प्रकट करती है, जो इस देश के निर्माण में अपने-अपने तरीके से योगदान देते हैं। कहानी इसी भावधारा पर आधारित है कि देश का प्रत्येक नागरिक- बच्चाबूढ़ा-नौजवान अपने-अपने क्षेत्र में कार्य करते हुए भी देश की सेवा करके अपनी देशभक्ति का परिचय दे सकते हैं।
4. विचार/सन्देश से सम्बन्धित लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – नेताजी की मूर्ति अच्छी न बनी होने के लिए लेखक ने कौन-कौन से कारण माने हैं?
उत्तर – लेखक अनुमान लगाता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत; अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं ज्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री में नष्ट हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय ले लिया गया होगा; और अन्त में कस्बे के इकलौते हाईस्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर- मान लीजिए मोतीलालजी – को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीनेभर में मूर्ति बनाकर पटक देने’ का विश्वास दिला रहे थे। मास्टर मोतीलाल ने जिस-किस तरह मिले समय में नेताजी की मूर्ति बनाई थी; अतः स्पष्ट ही है कि मूर्ति उतनी अच्छी नहीं बनी, जितनी कि होनी चाहिए थी ।
प्रश्न 2 – नेताजी की मूर्ति में मूर्तिकार चश्मा क्यों न लगा सका?
उत्तर- मूर्तिकार कुशल-पेशेवर मूर्तिकार न होकर शहर के इकलौते हाईस्कूल का ड्राइंग मास्टर था। अकुशल होने के साथ-साथ उसे मूर्ति बनाने के लिए महीनेभर का अपर्याप्त समय दिया गया था। इस समय में उसने मूर्ति बना तो ली होगी, लेकिन पत्थर में पारदर्शी काँचवाला चश्मा कैसे बनाया जाए, यह तय नहीं कर पाया होगा । या कोशिश की होगी और इस प्रयास में असफल रहा होगा। या बनाते-बनाते ‘कुछ और बारीकी’ के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा। या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। इन्हीं सब कारणों से मूर्ति में चश्मा न लग पाया होगा।
प्रश्न 3 – ‘नेताजी का चश्मा’ कहानी से प्राप्त संदेश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘नेताजी का चश्मा’ कहानी हमें यह संदेश देती है कि हमें अपने महापुरुषों, देशभक्तों और शहीदों का सम्मान करना चाहिए। हमें कभी उनके सम्मान का आडम्बर नहीं करना चाहिए। यदि अपने महापुरुषों की मूर्तियों की देखभाल और उनका यथोचित सम्मान नहीं कर सकते तो उनकी मूर्तियाँ स्थापित करके अपनी श्रद्धा और देशभक्ति का आडम्बर कदापि नहीं करना चाहिए। यह न तो उन महापुरुषों का सम्मान है और न हमारी देशभक्ति का प्रतीक, वरन् यह तो उनका घोर अपमान है। यह कहानी हमें यह भी शिक्षा देती है कि देशभक्ति केवल युद्ध लड़ना ही नहीं है, वरन् अपने कार्य को पूर्ण निष्ठा, ईमानदारी से करना, देश और समाज की सम्पत्ति की रक्षा और संरक्षण करना भी देशभक्ति ही है; अतः अपने कार्यक्षेत्र में हमें अपने इन कर्त्तव्यों का पालन करते हुए अपने देश की सेवा करके अपनी देशभक्ति का परिचय देना चाहिए। महापुरुषों का सम्मान, सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा और संरक्षण करनेवाले देशभक्तों का हमें कभी उपहास नहीं करना चाहिए; क्योंकि वे ही हमारी सभ्यता, संस्कृति और अस्मिता के ध्वजवाहक हैं, उन्हीं से हमारी पहचान है। हमें कैप्टन चश्मेवाले जैसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए, न कि पानवाले की तरह उनका उपहास उड़ाना चाहिए।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?
अथवा ‘नेताजी का चश्मा’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे ?
उत्तर- पूरे कस्बे में कैप्टन ही एक ऐसा व्यक्ति था, जिसे नेताजी की मूर्ति से लगाव था । वही नेताजी के चश्मे को बदला करता था। कैप्टन में देश-भक्ति की भावना प्रबल थी। इसी कारण लोग उसे कैप्टन कहते थे।
प्रश्न 2 – हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था, लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा-
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?
उत्तर-
(क) हालदार साहब का विचार था कि कैप्टन की मृत्यु के बाद नेताजी की मूर्ति पर चश्मा न होगा। यह सोचकर वे मायूस हो गए थे।
(ख) मूर्ति पर सरकण्डे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि इस देश में अभी भी देशभक्त लोग जीवित हैं। लोगों में देशप्रेम की भावना जीवित है। चाहे वे बच्चे ही क्यों न हों।
(ग) हालदार साहब, कैप्टन के प्रति बहुत सम्मान रखते थे। कैप्टन की मृत्यु के बाद उन्हें लगने लगा कि अब नेताजी की मूर्ति को चश्मा लगानेवाला कोई न रहा। जब उन्होंने बच्चों द्वारा बनाया गया सरकण्डे का चश्मा मूर्ति पर देखा तो वे यह सोचकर भावुक हो गए कि भले ही देश के प्रौढ़ों में देशभक्ति की भावना मर रही है, किन्तु बच्चों के रूप में भावी पीढ़ी में अभी भी देशभक्ति की भावना है। वे सोचते हैं कि देश के प्रौढ़ों में भी यदि कैप्टन की भाँति देशभक्ति और देश के प्रति श्रद्धा हो तो देश का कायाकल्प हो जाए। काश क्या कभी ऐसा होगा।
प्रश्न 3 – आशय स्पष्ट कीजिए-
“बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी- जवानी जिंदगी सबकुछ होम कर देनेवालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढती है । ”
उत्तर – ‘गद्यांश पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर’ शीर्षक के अन्तर्गत गद्यांश (5) देखें।
प्रश्न 4 – पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर— पानवाला एक काला मोटा और प्रसन्न रहनेवाला व्यक्ति था। उसकी तोंद बहुत निकली हुई थी। जब वह हँसता था तो तोंद भी थिरकने लगती थी। निरन्तर पान खाने से उसके दाँत लाल-काले हो गए थे। मुँह में हर समय पान ठुसा रहने के कारण वह ठीक से बोल भी नहीं पाता था। वह कुछ-कुछ मुम्बइया भाषा बोलता था; जैसे- कैप्टन किदर से लाएगा, उदर दूसरा बिठा दिया। इस प्रकार पानवाले का व्यक्तित्व बड़ा रोचक था।
प्रश्न 5 – ” वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में पागल है पागल । “
कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर – पानवाले की यह टिप्प्णी सब प्रकार से अनुचित तथा मानवता के विपरीत थी; क्योंकि हमें किसी भी शारीरिक दोष के लिए किसी के प्रति ऐसी अशोभनीय टिप्पणी करके उसका उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। शारीरिक दोष व्यक्ति के अपने हाथ में नहीं होता, आज हम जिसका उपहास उड़ा रहे हैं, कल हम भी उस दोष का शिकार हो सकते हैं। दूसरी बात देशभक्तों और देश के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करना कोई पागलपन नहीं है और यदि इसे पागलपन कहा जा सकता है तो प्रत्येक व्यक्ति को इस पागलपन पर गर्व होना चाहिए ।
⇒ भाषा अध्ययन
प्रश्न 12 – निम्नलिखित वाक्यों से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए-
(क) नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी ।
(ख) किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा।
(ग) यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था।
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए।
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे।
उत्तर-
(क) निपात — तो, भी
नया वाक्य – गुड़िया थी तो मजबूत, मगर उस पर लेमिनेशन करके उसे और भी मजबूत बनाया जा सकता है।
(ख) निपात – ही
नया वाक्य – नेताजी से ही झण्डा फहरवाने का निर्णय लिया गया।
(ग) निपात – तो
नया वाक्य – कम्बल तो थे, मगर पीड़ितों को बाँटे नहीं गए।
(घ) निपात – भी
नया वाक्य – स्टेशन मास्टर दुर्घटना की खबर सुनकर भी नहीं आए।
(ङ) निपात — तक
नया वाक्य – 14 जनवरी तक स्थानान्तरण अवश्य हो जाएगा।
प्रश्न 13 – निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए-
(क) वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है।
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था।
(ग) पानवाले ने साफ बता दिया था।
(घ) ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे ।
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया।
(च) हालदार साहब ने चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया।
उत्तर –
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है।
(ख) पानवाले के द्वारा नया पान खाया गया था।
(ग) पानवाले द्वारा साफ बता दिया गया था।
(घ) ड्राइवर द्वारा जोर से ब्रेक मारे गए।
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सबकुछ त्याग दिया गया।
(च) हालदार साहब के द्वारा चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया।
प्रश्न 14 – नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए-
जैसे- अब चलते हैं। – अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती।
(ख) मैं देख नहीं सकती।
(ग) चलो, अब सोते हैं।
(घ) माँ रो भी नहीं सकती।
उत्तर-
(क) माँ से बैठा नहीं जाता।
(ख) मुझसे देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए।
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।
6. अन्य महत्त्वपूर्ण परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – कैप्टन ( चश्मेवाला ) मूर्ति का चश्मा बार-बार क्यों बदल देता था? ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर— कैप्टन अपने देश के साथ जुड़ा हुआ था। पैसा कमाने की ललक उसमें नहीं थी। वह बार-बार मूर्ति का चश्मा बदल देता था क्योंकि कोई-न-कोई ग्राहक आकर उस फ्रेम को माँग लेता था। कैप्टन मूर्ति से वह फ्रेम उतारकर उसे दे देता था। इस तरह से कैन गिने-चुने चश्मों में से कोई-न-कोई नेताजी की मूर्ति को पहनाता रहता था।
प्रश्न 2 – कैप्टन के मरने और हालदार साहब द्वारा कस्बे में न रुकने का क्या सम्बन्ध था ?
उत्तर – कैप्टन चश्मेवाला सच्चा देशभक्त था, देशभक्तों के प्रति श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता का भाव उसके मन में कूट-कूटकर भरा था। अपनी इसी भावना के चलते वह नेताजी की मूर्ति को चश्मा पहनाता था। स्वयं हालदार भी सच्चे देशभक्त व्यक्ति थे। उन्हें इस बात से बड़ी पीड़ा होती थी कि देश के लोग शहीदों और देशभक्तों के प्रति कृतघ्नता का भाव रखते हैं। नेताजी की चश्मेरहित मूर्ति कस्बे के चौराहे पर लगी होना इस बात का प्रमाण थी। कैप्टन के मरने पर हालदार साहब को लगा कि अब कस्बे में कोई देशभक्त नहीं रहा है, ऐसे कृतघ्न लोगों के मध्य रहने का क्या लाभ है; इसीलिए उन्होंने कैप्टन के मरने पर कस्बे में न रुकने का निर्णय लिया।
