UK Board 10 Class Hindi Chapter 11 – बालगोबिन भगत (गद्य-खण्ड)
UK Board 10 Class Hindi Chapter 11 – बालगोबिन भगत (गद्य-खण्ड)
UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 11 बालगोबिन भगत (गद्य-खण्ड)
बालगोबिन भगत (रामवृक्ष बेनीपुरी)
1. लेखक-परिचय
प्रश्न – ‘बालगोबिन भगत’ के लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिएजीवन-परिचय, रचनाएँ, साहित्यिक विशेषताएँ, भाषा-शैली ।
उत्तर— रामवृक्ष बेनीपुरी
जीवन-परिचय – रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन् 1899 ई० में बिहार प्रान्त के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर ग्राम में हुआ था। बचपन में ही सिर से माता-पिता की छत्रच्छाया उठ जाने के कारण इनकी मौसी ने इनका पालन-पोषण किया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की ही एक पाठशाला में हुई। वे बड़े ही जागरूक थे। जब वे मैट्रिक में थे, तभी गांधीजी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर पढ़ाई छोड़कर स्वतन्त्रता के लिए कई बार जेल गए। वे छोटी उम्र में ही पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे। आगे चलकर वे पत्रकार बने। उन्होंने ‘तरुण भारत’, ‘किसान-मित्र’, ‘बालक’, ‘युवक’, ‘कर्मवीर’, ‘हिमालय’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘जनवाणी’ और ‘नई धारा’ नामक अनेक पत्रिकाओं का कुशल सम्पादन किया। सन् 1968 ई० में इनका देहान्त हो गया।
रचनाएँ – बेनीपुरीजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी गद्यकार थे। उन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी, रेखाचित्र, संस्मरण, निबन्ध, रिपोर्ताज आदि का सफल लेखन किया। इनकी समस्त रचनाएँ ‘बेनीपुरी ग्रन्थावली’ के नाम से आठ खण्डों में प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं— ‘माटी की मूरतें’ (रेखाचित्र), ‘ तितलियों के देश में’ (उपन्यास), ‘चिता के फूल’ (कहानी), ‘पैरों में पंख बाँधकर’ (यात्रा वृत्तान्त) तथा ‘जंजीरें और दीवारें’ (संस्मरण) ।
साहित्यिक विशेषताएँ – बेनीपुरीजी के साहित्य का अध्ययन करने के बाद एक बात जो आधार रूप में सर्वत्र पाई जाती है, वह है उसकी उद्देश्यपरकता। बेनीपुरीजी समाज और राष्ट्र की चिन्ता करनेवाले, उसके उत्थान के लिए हमेशा जागरूक रहनेवाले व्यक्ति थे । स्वतन्त्रता आन्दोलन के संघर्ष से उपजी उनकी देशभक्ति उनके साहित्य में भी परिलक्षित होती है। ‘बालगोबिन भगत’ रेखाचित्र के माध्यम से बेनीपुरीजी ने एक ऐसे विलक्षण चरित्र का उद्घाटन किया है, जो मानवता, लोक-संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है।
भाषा-शैली- बेनीपुरीजी की भाषा का सर्वप्रथम गुण है— सूक्तिपरकता । इनका प्रत्येक वाक्य बड़ा ही सारगर्भित और स्पष्ट होता है। भाषा में जीवन्तता भी है। बेनीपुरीजी को एक विशिष्ट शैलीकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। इन्हें ‘कलम का जादूगर’ भी कहा जाता है। इनकी शैली ओजपूर्ण एवं अलंकारमयी है।
2. गद्यांश पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
(1) बालगोबिन भगत ………… मकान भी था।
प्रश्न –
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखिए।
(ख) ‘कपड़े बिल्कुल कम पहनते।’ इस कथन से बालगोबिन भगत की किस विशेषता का पता चलता है ?
(ग) लेखक बालगोबिन भगत को साधु मानने से स्पष्ट इनकार करता है, उसकी दृष्टि में साधु कौन होता है?
(घ) बालगोबिन भगत साधु नहीं थे तो क्या थे?
(ङ) अनुच्छेद के अनुसार ‘गृहस्थ’ से क्या तात्पर्य है?
(च) ‘बाल पक गए थे’ मुहावरे का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – बालगोबिन लेखक – रामवृक्ष बेनीपुरी । भगत ।
(ख) ‘कपड़े बिल्कुल कम पहनते।’ इस कथन से बालगोबिन भगत की इस विशेषता का पता चलता है कि उनकी बाहरी चमक-दमक और बनाव- श्रृंगार में कोई रुचि नहीं थी। वे एक प्रकार से वीतरागी व्यक्ति थे।
(ग) लेखक बालगोबिन भगत को साधु मानने से स्पष्ट इनकार करता है, उसकी दृष्टि में साधु वह व्यक्ति होता है, जो घर-गृहस्थी के सांसारिक झंझटों से मुक्त हो और मानव- बस्ती से बाहर कहीं एकान्त स्थान पर निवास करता हो । यहाँ लेखक का दृष्टिकोण भौतिक दृष्टि साधु को परिभाषित करने का रहा है।
(घ) लेखक की दृष्टि में बालगोबिन भगत क्योंकि परिवार के साथ रहते हुए अपने सांसारिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह भली-भाँति कर रहे थे; अतः वे साधु नहीं, बल्कि गृहस्थ थे।
(ङ) अनुच्छेद के अनुसार ‘गृहस्थ’ से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो अपने परिवार के साथ निवास करता है और उसके दायित्वों का भली-भाँति पालन करता है।
(च) ‘बाल पक गए थे’ मुहावरे का अर्थ है- बाल सफेद हो .गए थे अर्थात् बालगोबिन भगत पर बुढ़ापा स्पष्ट झलकने लगा था।
(2) किंतु, खेतीबारी …………. गुजर चलाते।
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) गद्यांश का आशय लिखिए।
(ग) बालगोबिन भगत के चरित्र की कौन-सी विशेषताएँ बताई गई हैं?
(घ) प्रस्तुत गद्यांश में साहब किसे कहा गया है?
(ङ) लेखक ने पहले बालगोबिन भगत को साधु मानने से इनकार किया है और यहाँ पर वह उन्हें सच्चा साधु बता रहे हैं। इस विरोधभास को स्पष्ट कीजिए ।
(च) अनुच्छेद के आधार पर साधु को परिभाषित कीजिए ।
(छ) नियम को बारीकी तक ले जाने से लेखक का क्या आशय है ?
(ज) ‘साहब’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
(झ) ‘वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थी।’ इस कथन के आधार पर गृहस्थ की विशेषता बताइए ।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – बालगोबिन भगत । लेखकरामवृक्ष बेनीपुरी ।
(ख) आशय – लेखक बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व से अत्यन्त प्रभावित है। वह कहता है कि बालगोबिन भगत खेती करते थे, परिवारवाले थे, फिर भी साधु थे। उनमें साधु के सभी गुण विद्यमान थे । साधु का अर्थ है धार्मिक जीवन बितानेवाला व्यक्ति, सन्त, ईश्वर भक्त और सज्जन आदि-आदि। इस दृष्टि ये भगत सच्चे साधु थे। बालगोबिन भगत कबीरपन्थी थे। वे कबीर को ‘साहब’ ईश्वर का रूप मानते थे। वे कबीर के ही भजन गाते और उनके ही आदर्शों को जीवन में अपनाते थे। भगत कभी झूठ नहीं बोलते थे, वे सभी से बिल्कुल संयमित व्यवहार रखते थे। किसी से भी बात करने का लहजा दो टूक अर्थात् अत्यन्त सरल और स्पष्ट था, उन्हें किसी से बिना बात झगड़ने की आदत भी नहीं थी। भगत बड़े नियम माननेवाले थे। वे किसी की चीज को न छूते थे और न ही उसका बिना पूछे उपयोग करते थे। इस प्रकार के नियम उनके जीवन में बहुत थे। वे नियमों को बड़ी बारीकी से इस्तेमाल करते। लोगों में उनकी इस आदत पर कुतूहल उत्पन्न होता । भगतजी नियम के इतने पक्के थे कि कभी दूसरे के खेतों में शौच भी न जाते थे। भगतजी गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे, लेकिन उनकी सभी वस्तुएँ ‘साहब’ की थीं। उनके खेत में जो कुछ भी और जितना भी पैदा होता, उसे वे पहले सिर पर रखकर कबीर मठ ( साहब के दरबार में ) ले जाते। यह कबीर मठ उनके घर से चार कोस दूर था। मगर वह इस दूरी की भी चिन्ता न करते थे। उनका उगाया अनाज दरबार में भेंटस्वरूप रख लिया जाता और प्रसादस्वरूप उन्हें जो कुछ प्राप्त होता, उसी से वे अपनी गृहस्थी का गुजारा करते थे। इस प्रकार लेखक ने बालगोबिन भगत की साधु प्रवृत्ति को स्पष्ट किया है।
(ग) बालगोबिन भगत के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई गई हैं-
(i) बालगोबिन भगत साधु प्रवृत्ति के थे ।
(ii) वे कबीरपन्थ के आदर्शों को माननेवाले थे।
(iii) वे कभी झूठ न बोलते थे और सबसे खरा व्यवहार रखते थे।
(iv) वे नियमों के पाबन्द थे और बिना बात किसी से झगड़ा मोल न लेते थे।
(v) वे दान करने में भी पीछे नहीं थे।
(vi) बालगोबिन भगत सन्तोषी स्वभाव के भी थे।
(घ) प्रस्तुत गद्यांश में ‘साहब’ कबीर को कहा गया है।
(ङ) लेखक ने पहले बालगोबिन भगत के भौतिक स्वरूप पर टिप्पणी करते हुए उसे साधु मानने से इनकार किया है, जैसा कि सभी मानते हैं कि साधु पति-पत्नी, बहू-बेटे आदि के सांसारिक रिश्तों से विरक्त होता है, किन्तु बालगोबिन भली-भाँति अपने इन रिश्तों का परिवार के साथ रहते हुए निर्वाह कर रहे थे। इस दृष्टि से लेखक का बालगोबिन भगत को साधु न मानना उचित ही प्रतीत होता है। अब यहाँ लेखक ने बालगोबिन भगत को सच्चा साधु कहा है तो वह भी उचित ही है।
(च) अनुच्छेद के आधार पर साधु भगवद्-भक्ति में मग्न रहते हैं, वे भजन गाते हैं, ईश्वर के बताए मार्ग पर चलते हैं, आचरण में पवित्रता रखते हैं, किसी को अपने मन-वचन और कर्म से कष्ट नहीं पहुँचाते हैं, किसी की वस्तु को बिना पूछे हाथ तक नहीं लगाते हैं, अपनी प्रत्येक वस्तु को ईश्वर की मानते हैं और अपने उपभोग के लिए आवश्यक वस्तु को ‘साहब’ का प्रसाद मानकर स्वीकार करते हैं।
(छ) नियम को बारीकी तक ले जाने से लेखक का आशय यह है कि बालगोबिन भगत व्यवहार की शत-प्रतिशत पवित्रता में विश्वास रखते थे और छोटी-से-छोटी बात में भी उसका लेशमात्र भी उल्लंघन नहीं होने देते थे।
(ज) ‘साहब’ का अर्थ यहाँ पर भगवान्, सर्वोच्च शक्ति, परमपिता परमात्मा आदि है। यद्यपि बालगोबिन भगत कबीर को साहब मानते थे; क्योंकि वे कबीर में ही ईश्वर को समाहित मानते थे। आशय यही है कि कंबीर ही उनके परमात्मा अर्थात् भगवान् थे।
(झ) ‘वह गृहस्थ थे; लेकिन उनकी सब चीज ‘साहब’ की थीं ‘ इस कथन से गृहस्थ के विषय में यह पता चलता है कि गृहस्थ के लिए सबसे आवश्यक कर्त्तव्य अपनी गृहस्थी का भली-भाँति, भरण पोषण करना है। भक्ति भजन और दान-पुण्य इसके बाद के कर्त्तव्यों . के अन्तर्गत आते हैं। अर्थात् अपनी गृहस्थी का भली-भाँति भरण-पोषण . करना गृहस्थ का प्रथम वरीय कर्त्तव्य है, और भगवद्-भजन तथा दान-पुण्य द्वितीय कर्त्तव्य हैं।
(3) बेटे के ………….. की क्या चलती ?
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए ।
(ख) गद्यांश का आशय लिखिए।
(ग) भगतजी ने पतोहू की दूसरी शादी करने का आदेश क्यों दिया?
(घ) भगत का निर्णय कैसा था?
(ङ) बेटे के क्रिया-कर्म में गोबिन भगत ने पतोहू से आग दिलाई और फिर उसके पुनर्विवाह का निर्णय लिया, इससे भगत के चरित्र की किन विशेषताओं का पता चलता है?
(च) पतोहू के पुनर्विवाह के आदेश के साथ उसे उसके भाई के साथ भेजने के बालगोबिन भगत के निर्णय से आप कहाँ तक सहमत हैं?
(छ) ‘इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती ?’ इस कथन से क्या निष्कर्ष निकलता है?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – बालगोबिन भगत । लेखक – रामवृक्ष बेनीपुरी ।
(ख) आशय – बालगोबिन भगत के एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गई थी। उस पर भी उन्होंने शोक नहीं मनाया। उनका मत था कि आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया, इसमें रोना क्या ? भगतजी परम्पराओं में विश्वास नहीं रखते थे।’ बेटे की मृत्यु पर उसके क्रिया-कर्म को उन्होंने लम्बा नहीं खींचा। बेटे की अन्तिम क्रिया में पुत्रवधू के हाथों दाह संस्कार कराकर भगतजी ने समाज में स्त्री और पुरुष की समानता का सन्देश दिया । पुत्र की मृत्यु के उपरान्त जैसे ही श्राद्ध की अवधि पूर्ण हुई, पुत्रवधू के भाई को बुलाकर पुत्रवधू को उसके साथ कर दिया। भगतजी ने पुत्रवधू के भाई से कहा कि इसकी दूसरी शादी कर देना। इतने स्वतन्त्र विचारों के थे बालगोबिन भगत, जबकि भगतजी की पुत्रवधू की इच्छा थी कि वह भगतजी के पास रहकर ही उनकी सेवा में अपने शेष विधवा जीवन को व्यतीत करे। पुत्रवधू के अपने तर्क थे— वह कहती — मैं चली जाऊँगी तो वृद्धावस्था में आपके लिए भोजन कौन बनाएगा। बीमार पड़े तो कोई पानी देनेवाला भी नहीं। वह भगतजी के खूब पैर पड़ी कि उसे भाई के साथ न भेजें, लेकिन भगतजी निर्णय कर चुके थे। इसे टाला नहीं जा सकता था। भगतजी ने पुत्रवधू से कहा कि तू जा, नहीं तो मैं घर छोड़कर चला जाऊँगा। यह ऐसा तर्क था, जिसके समक्ष किसी की भी न चली।
निश्चित ही बालगोबिन भगत केवल साधु नहीं थे, उन्हें दुनियादारी की भी समझ थी। तभी तो जवान बहू के पुनर्विवाह की बात उन्होंने की थी। इस प्रकार बालगोबिन भगत ने पतोहू के हाथों बेटे की चिता को मुखाग्नि दिलाकर और फिर उसके पुनर्विवाह का निर्णय करके पुरातन रूढ़ियों को तोड़ने का दृढ़ निश्चय किया, जोकि उनके साहस और उच्चचरित्र का परिचायक था ।
(ग) सम्भवतया भगतजी सोचते होंगे कि बहू अभी जवान है। विधवा जीवन बिताने की उसकी उम्र नहीं। इसी कारण भगतजी ने पुत्रवधू की दूसरी शादी करने का आदेश दिया था।
(घ) भगत का निर्णय अटल था। वह कोई ऐसा निर्णय न था, जो समाज के दबाव में टूट जाता अथवा बहू के आँसुओं में बह जाता।
(ङ) बेटे के क्रिया-कर्म में गोबिन भगत ने पतोहू से आग दिलाई और फिर उनके पुनर्विवाह का निर्णय लिया, इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे, वे समाज की दकियानूसी बातों और अन्धविश्वासों के कट्टर विरोधी थे। स्त्री अधिकारों और महिला सशक्तीकरण में उनकी अटूट आस्था थी, उनके द्वारा लिए गए उपर्युक्त दोनों निर्णय इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
(च) बालगोबिन भगत ने अपनी पतोहू को पुनर्विवाह के आदेश के साथ उसके भाई के साथ भेज दिया, उनका यह निर्णय सर्वथा उचित ही था क्योंकि पतोहू के सामने पहाड़ जैसा लम्बा जीवन पड़ा था, जिसको अकेले पार करना उसके लिए सरल न था । फिर बालगोबिन भगत स्वयं वृद्ध थे, पता नहीं कब उनके जीवन की संध्या अस्त हो जाए, उस स्थिति में एक अबला, अनाथ युवा विधवा का जीवन जीना कितना कठिन होता, उसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। वह किस प्रकार समाज की क्रूर दृष्टि से स्वयं को बचा पाएगी, गोबिन भगत के सामने यही एकमात्र यक्ष प्रश्न था और इसका एकमात्र समाधान भी यही था, जो बालगोबिन भगत ने अपने निर्णय के रूप में प्रस्तुत कर दिया। यहाँ हम इससे अधिक केवल यही कह सकते हैं कि भगत ने जो कार्य पतोहू के भाई को सौंपा, उसे स्वयं पूर्ण करना चाहिए था।
(छ) ‘इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती ?’ इस कथन से यह निष्कर्ष निकलता है कि पतोहू के भाई और पतोहू ने बालगोबिन के आदेश का विवशतापूर्वक पालन किया।
(4) बालगोबिन भगत ……. पंजर पड़ा है!
प्रश्न –
(क) पाठ तथा लेखक नाम लिखिए ।
(ख) बालगोबिन भगत की आस्था किस पर थी?
(ग) भगतजी की जवानीवाली किस टेक की ओर संकेत किया गया है?
(घ) गंगाजी से लौटने के बाद भगतजी को क्या हो गया था?
(ङ) साधु को संबल लेने का कोई हक नहीं होता, इस बात का पता बालगोबिन भगत के चरित्र की किन बातों से पता चलता है?
(च) भगतजी ने कौन-से नेम- व्रत नहीं छोड़े?
(छ) ‘जैसे तागा टूट गया हो’ का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम – बालगोबिन भगत । लेखक – रामवृक्ष बेनीपुरी ।
(ख) बालगोबिन भगत की आस्था संत समागम और लोक दर्शन पर थी ।
(ग) भगतजी जवानी में भी फक्कड़, मस्त स्वभाव के थे। खूब मेहनत करते थे। कभी ईमानदारी से पीछे नहीं हटे, न कभी बेईमानी का ख्याल मन में आया। यही उनकी जवानी की टेक थी।
(घ) गंगाजी से लौटने के बाद भगतजी की तबीयत खराब हो गई। उन्हें बुखार रहने लगा। दिन-प्रतिदिन कमजोरी आती गई। एक दिन वे स्वर्ग सिधार गए।
(ङ) बालगोबिन भगत किसी से भिक्षा नहीं माँगते थे; गंगायात्रा के समय घर से खाकर जाते थे और फिर यात्रा समाप्ति पर घर ही आकर खाते थे, चार-पाँच दिन की यात्रा में केवल पानी पीते थे। उनके चरित्र की इन सब बातों से पता चलता है कि साधु को संबल लेने का कोई हक नहीं होता।
(च) भगतजी ने तबीयत खराब होने पर भी दोनों समय गीत गाने, स्नान-ध्यान करने, खेतीबारी देखने के अपने नेम व्रत नहीं छोड़े।
(छ) बालगोबिन भगत ने अपने जीवन की अन्तिम सान्ध्यबेला में जो गीत गाया, उसका सुर-ताल एकदम बिगड़ गया था। वह ऐसे ही बेसुरा लग रहा था, जैसे कि वीणा का कोई तार टूट जाने पर उससे मधुर संगीत नहीं फूट पाता। आशय यही है कि बालगोबिन भगत के प्राण-रज्जु का एक-एक तन्तु टूटना प्रारम्भ हो गया था। अर्थात् उनकी मृत्यु का पूर्वाभास होने लगा था।
3. पाठ पर आधारित विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – भगत के चरित्र में ‘साधु’ मनोवृत्तिवाली कौन-सी विशेषताएँ थीं?
अथवा बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर- साधु का अर्थ होता है— धार्मिक जीवन बितानेवाला व्यक्ति, सन्त, ईश्वरभक्त और सज्जन । भगतजी के चरित्र में साधुत्व के ये गुण उपस्थित थे। उनके चरित्र की ‘साधु’ मनोवृत्ति को प्रकट करनेवाली विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) भगतजी कपड़े बहुत कम पहनते । कमर में एक लंगोटी, सिर पर कबीरपन्थी टोपी और सर्दियों में काला कम्बल धारण करते
(ii) वे कबीर को ‘साहब’ अर्थात् ईश्वर मानते थे और उनके ही आदर्शों पर चलते थे। वे कबीर की ही भाँति गृहस्थ होकर भी संसार से विरक्त थे।
(iii) वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और सभी से खरा व्यवहार करते थे।
(iv) वे बिना वजह किसी से लड़ाई-झगड़ा भी नहीं करते थे ।
(v) वे जीवन में नियमों के इतने पक्के थे कि किसी की चीज को छूते तक न थे, न उसे बिना पूछे व्यवहार में लाते। वे दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते थे। जीवन के नियम और व्रतों के प्रति उनकी दृढ़ता का परिचय इसी बात से मिलता है कि तबीयत खराब होने पर भी उन्होंने अपने स्नान-ध्यान और भजन आदि के नियमों को नहीं तोड़ा। “
(vi) उनके खेत में जो भी पैदा होता, उसे पहले कबीरपन्थी मठ में भेंट करते।
(vii) प्रतिदिन कबीर के भजन गाते। आत्मा-परमात्मा में विश्वास करते।
(viii) वास्तव में सच्चा साधु वही होता है, जो समाज की अज्ञानता को दूरकर उसमें ज्ञान बाँटे और उसकी निरर्थक रूढ़ियों को समाप्त कर नई परम्पराओं का प्रवर्त्तन करे । बालगोबिन भगत इस दृष्टि से पक्के साधु थे; क्योंकि उन्होंने समाज को अपने कर्त्तव्यों को निष्ठापूर्वक सम्पन्न करने का सन्देश देने के साथ समाज में स्त्री को पुरुष से छोटा मानने की रूढ़ि का खण्डन करके अपनी पतोहू से ही बेटे की चिता को मुखाग्नि दिलाई और उसके भाई को बुलाकर उसके पुनर्विवाह का दृढ़ आदेश दिया।
उपर्युक्त विशेषताओं से स्पष्ट है कि भगतजी साधु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।
4. विचार/सन्देश से सम्बन्धित लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – बालगोबिन भगत’ रेखाचित्र में लेखक द्वारा क्या विचार पाठकों के समक्ष रखा गया है?
उत्तर- ‘बालगोबिन भगत’ रेखाचित्र के माध्यम से लेखक रामवृक्ष बेनीपुरीजी ने ये विचार व्यक्त किए हैं कि वेशभूषा या बाह्य अनुष्ठानों से कोई संन्यासी नहीं होता, बल्कि संन्यास का आधार तो जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। बालगोबिन भगत इसी आधार पर लेखक को संन्यासी लगते हैं। इस पाठ के माध्यम से बेनीपुरीजी वर्ण-व्यवस्था की अमानवीय मान्यता और सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करते हैं। वे बालगोबिन भगत के माध्यम से यह विचार भी पूर्ण दृढ़ता के साथ प्रस्तुत करते हैं कि यदि व्यक्ति किसी बात पर दृढ़ता से कायम रहता है तो उसे उसके पथ से न तो सामाजिकता का भय डिगा सकती है, न किसी के आँसू मार्ग रोक सकते हैं और न जीवन की सुख-सुविधाओं का मोह अथवा दुःखों की आसन्न भयंकरता भी उसको विचलित नहीं कर पाती।
प्रश्न 2 – रेखाचित्र के आधार पर बालगोबिन भगत के चरित्र भक्ति भावना को प्रकट करनेवाला कोई एक प्रसंग लिखिए ।
उत्तर- बालगोबिन भगत के चरित्र की भक्ति भावना का एक प्रसंग भादों की उस काली रात में देखने को मिलता है, जब बादलों की गरज़ बिजली की चमक और झिल्लियों की झंकार भी उनके भक्तिपूर्ण स्वरों को मन्द नहीं कर पाती। लेखक ने इसे इन शब्दों में व्यक्त किया है— अभी, थोड़ी ही देर पहले मूसलाधार वर्षा समाप्त हुई है। बादलों की गरज, बिजली की तड़प में आपने कुछ नहीं सुना हो, किन्तु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती। उनकी खँजड़ी डिमक – डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं- ” गोदी में पिया, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!” हाँ, पिया तो गोद में ही है, किन्तु वह समझती है कि वह अकेली है; अतः चमक उठती है, चिहुँक उठती है। उसी भरे बादलोंवाली भादों की आधी रात में बालगोबिन भगत का यह गाना अँधेरे में अकस्मात् कौंध उठनेवाली बिजली की तरह किसे नहीं चौंका देता? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है ! — तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा !
प्रश्न 3 – गर्मियों की ‘साँझ’ में भगत के भजन कैसे शीतलता प्रदान करते थे ?
उत्तर – गर्मियों में बालगोबिन भगत सन्ध्या के समय अपने भजनों से उमसभरी शाम को शीतल कर देते। अपने घर के आँगन में आसन जमा ‘बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी-मण्डली उसे दुहराती, तिहराती । धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता – एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से । उस ताल – स्वर के चढ़ाव के साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खँजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच रहे हैं और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठे हैं। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओत-प्रोत है। इस प्रकार गर्मियों की साँझ भगत के भजनों से शीतल हो जाती थी ।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
उत्तर – बालगोबिन गृहस्थ अवश्य थे, किन्तु वह गृहस्थियों की भाँति माया-मोह, धन-सम्पत्ति और अन्य सांसारिकता मकड़जाल से एकदम असम्पृक्त थे। यानि वे गृहस्थ होते हुए भी विरक्त साधु थे। यही कारण था कि सदैव सदाचरण करते थे वे कभी झूठ न बोलते थे, सभी से एक समान मधुर व्यवहार करते थे। उनका संसार के साथ व्यवहार कबीर के समान ‘न काहू से दोस्ती, न काहू से वैर’ वाला था । किसी की धन-सम्पत्ति अथवा वस्तु में उनका कोई आकर्षण न था, इसीलिए ये किसी की वस्तु को हाथ न लगाते थे। कल के लिए बचाकर रखना अथवा संग्रह करना उनके स्वभाव में न था, इसीलिए वे खेती में जो कुछ पैदा करते थे, उसको साहब के दरबार कबीरमठ में ले जाकर रख देते थे। वहाँ से प्रसाद के रूप में जो कुछ मिलता था, उसी से अपना जीवन निर्वाह करते थे। इन्हीं सब कारणों से खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत साधु कहलाते थे ।
प्रश्न 2 – भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर – भगत की पुत्रवधू उनकी वृद्धावस्था के कारण उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। उसका तर्क था — वृद्धावस्था में कौन भगतजी के लिए भोजन बनाएगा ? बीमार पड़े तो कौन उनकी देखभाल करेगा? ऐसे ही सब कारणों से भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी।
प्रश्न 3 – भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
उत्तर- एक दिन भगत का जवान बेटा मर गया। उन्होंने बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से उसे ढक दिया। अपने आँगन में लगे कुछ फूल तोड़कर उन्होंने पुत्र के शव पर बिखरा दिए । भगत ने शव के सिरहाने एक चिराग जलाकर रख दिया और उसके सामने जमीन पर ही आसन जमाकर गीत गाए जा रहे थे, उसी पुराने स्वर, उसी पुरानी तल्लीनता के साथ। घर में पुत्रवधू रो रही थी, जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने का प्रयास कर रही हैं, किन्तु बालगोबिन भगत इन सब बातों से विलग गाए जा रहे थे। हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पुत्रवधू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने के लिए कहते हुए समझाते थे कि आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनन्द की क्या बात हो सकती है? इस प्रकार भगत ने सांसारिकता से विरक्त निर्मोही साधु के समान समभाव का परिचय दिया। वास्तव में भगत जो कुछ कह थे, उसमें उनका विश्वास बोल रहा था — वह चरम विश्वास, जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।
प्रश्न 4 – भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों ‘चित्र प्रस्तुत कीजिए ।
अथवा पठित पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – बालगोबिन भगत मँझोले कद के गोरे – चिट्टे आदमी थे। उनकी आयु साठ से अधिक होगी। सिर के बाल पक गए थे। वे लम्बी दाढ़ी या जटाजूट तो नहीं रखते थे, किन्तु दाढ़ी जरूर रखते थे, जो सफेद थी। कपड़े बहुत कम पहनते थे। कमर में एक लंगोटी, सिर पर कबीरपन्थियों की टोपी। सर्दियों में ऊपर से एक काला कम्बल ओढ़ लेते थे। मस्तक पर रामानन्दी टीका लगाते थे और गले में तुलसी की जड़ों की एक माला पहनते थे। इस प्रकार भगत का व्यक्तित्व व वेशभूषा बिल्कुल साधारण थी। 1
प्रश्न 5 – बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
उत्तर – बालगोबिन भगत गृहस्थ थे, किन्तु उनकी दिनचर्या साधुओं जैसी थी। वे कभी झूठ न बोलते, दूसरे की वस्तुओं को न छूते, न उनका इस्तेमाल करते। वे दूसरों के खेतों में शौच के लिए भी नहीं जाते थे। इसलिए लोगों को लगता कि किस प्रकार गृहस्थ होकर भी भगत इतने साधारण जीवन का निर्वाह कर लेते हैं, जबकि एक आम आदमी के लिए यह सब बड़ा कठिन था। इसीलिए भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण थी।
प्रश्न 6 – पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर- ‘विचार / सन्देश से सम्बन्धित लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर’ शीर्षक के अन्तर्गत प्रश्न 3 का उत्तर देखें।
प्रश्न 7 – कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। उनके बेटे की जब मृत्यु हुई तो वे रोए नहीं, कबीर साहब के भजन गाते रहे। वे पुत्रवधू से भी रोने के बदले उत्सव मनाने के लिए कहते। उनका विचार था आत्मा परमात्मा के पास चली गई। बेटे को मुखाग्नि उन्होंने पुत्रवधू से दिलवाई। श्राद्ध के बाद पुत्रवधू भाई को बुलाकर पुत्रवधू को उसे सौंप दिया और आदेश दिया कि इसका विवाह कर देना। इन प्रसंगों से स्पष्ट है कि भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं के विरोधी थे।
प्रश्न 8- धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द – चित्र प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर — आषाढ़ का महीना है, चारों ओर रिमझिम है। समूचा गाँव खेतों में उतर पड़ा जान पड़ता है। कहीं हल चल रहे हैं, कहीं रोपनी हो रही है। धान के पानी से भरे खेतों में बच्चे उछल-कूद रहे हैं। औरतें कलेवा लेकर मेंड़ पर बैठी हैं। आसमान बादलों से घिरा हुआ है, धूप का नाम नहीं। ठण्डी पुरवाई चल रही है। ऐसे ही समय आपके कानों में एक स्वर-तरंग झंकार-सी कर उठी। यह क्या है – यह कौन है ! यह पूछना नहीं पड़ेगा। बालगोबिन भगत समूचा शरीर कीचड़ में लिथड़े, अपने खेत में रोपनी कर रहे हैं। उनकी अंगुलि एक-एक धान के पौधे को पंक्तिबद्ध खेत में बिठा रही है। उनका कण्ठ एक-एक शब्द को संगीत के जीने पर चढ़ाकर कुछ को ऊपर, स्वर्ग की ओर भेज रहा है और कुछ को इस पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर ! बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं। मेंड़ पर खड़ी औरतों के होंठ काँप उठते हैं, वे गुनगुनाने लगती हैं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं। रोपनी करनेवालों की अंगुलियाँ एक अजीब, क्रम से चलने लगती हैं। बालगोबिन भगत का यह संगीत सभी में जादू भर देता है।
⇒ रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 9-पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है?
उत्तर – बालगोबिन भगत कबीरपंथी थे। वे कबीरपन्थियों की-सी टोपी लगाते थे। माथे पर रामानन्दी टीका और गले में तुलसी की जड़ों की माला पहनते थे। वे कबीर को साहब मानते और उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदर्शों पर चलते थे। जो कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे कबीरपन्थी मठ में ले जाते और भेंट करते। प्रसादस्वरूप जो भी वहाँ से वापस मिलता, उसी से अपना गुजारा करते। पुत्र की मृत्यु पर भी वे रोए नहीं, बल्कि आत्मा के परमात्मा से मिलन के कबीर के भाव को अपने गीतों से साकार करते प्रतीत होते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि बालगोबिन भगत की कबीर पर अटूट श्रद्धा थी।
प्रश्न 10 – आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर – कबीर मूलतः एक सन्तकवि थे, परन्तु धर्म के बाहरी आचार-व्यवहार तथा कर्मकाण्डों में उनकी लेशमात्र भी आस्था नहीं थी। धर्म और समाज में व्याप्त संकीर्णताओं को देखकर उनका मन व्याकुल हो उठता था और उनकी व्यंग्यपूर्ण वाणी से विद्रोही स्वर मुखरित होने लगता था। वस्तुतः कबीर का ऐसा तूफानी व्यक्तित्व था, जिसने रूढ़ि और परम्परा की जर्जर दीवारों को धराशायी कर दिया और फिर एकता की मजबूत नींव पर मानवता का विशाल दुर्ग खड़ा किया।
कबीर फक्कड़ प्रवृत्ति के सन्त थे । उन्होंने निडरता के साथ समाज में फैले आडम्बरों का विरोध किया और अज्ञान में डूबी हुई मानवता को नया प्रकाश दिया।
सम्भवतः इन्हीं कारणों से भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा रही होगी।
प्रश्न 11— गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर – जेठ की तपती धरती की प्यास बुझाने के लिए आषाढ़ का महीना रिमझिम फुहारें लेकर आता है। ये रिमझिम फुहार जहाँ धरती को तृप्त करके सभी जीव-जन्तओं को गर्मी से राहत प्रदान करती हैं, वहीं किसानों के चेहरों पर भी मुस्कान ला देती हैं; क्योंकि इससे उनकी सूखती फसलों को जहाँ जीवनदान मिलता है, वहीं नई फसल के रूप में धान की रोपाई का उल्लास उनकी बाँछें खिला देता है। उनका यहीं उल्लास उनके गीत-संगीत में प्रवाहित होने लगता है। फिर जैसे-जैसे आषाढ़ बीतता जाता है, वैसे-वैसे सावन में आनेवाले तीज-त्योहारों की उमंग उन्हें मानो थिरकने पर विवश कर देती है। इन्हीं सब कारणों से गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से भर उठता है।
प्रश्न 12 – ” ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है ?
उत्तर- ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर नहीं की जानी चाहिए। साधु को उसके गुणों से पहचाना जाता है। ‘साधु’ का अर्थ है—धार्मिक जीवन व्यतीत करनेवाला व्यक्ति, सन्त, ईश्वर में आस्था रखनेवाला और मानवता की सेवा करनेवाला सज्जन । भले व्यक्ति के सभी गुणों — सच्चरित्रता, मृदुभाषी होने के साथ-साथ, समाज के बन्धनों में रहते हुए भी उनसे मुक्त होना आदि ‘साधु’ की मुख्य विशेषताएँ हैं। इन विशेषताओं के आकलन द्वारा ही किसी व्यक्ति के साधु – असाधु होने की पहचान की जा सकती है।
प्रश्न 13 – मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?
उत्तर— मोह और प्रेम में अत्यन्त सूक्ष्म अन्तर होता है। मोह में पक्षपात होता है, जबकि प्रेम निष्पक्ष और निस्स्वार्थ होता है। निस्स्वार्थ होने के कारण कह सकते हैं कि वह प्रेम निश्च्छल होता है। बालगोबिन भगत का इकलौता पुत्र सुस्त और बोदा-सा था और वे यह भी जानते थे कि इसको निगरानी की बहुत आवश्यकता है। ऐसे में वह गृहस्थ का भार नहीं उठा सकता था, फिर भी उन्होंने उसकी बड़ी साध से शादी कराई, यह उनका पुत्र के प्रति मोह था । पुत्र की मृत्यूपरान्त उन्होंने अपनी विधवा पतोहू (पुत्रवधू) के पुनर्विवाह का निर्णय किया, यह उनका पतोहू के प्रति निस्स्वार्थ प्रेम था। यद्यपि पतोहू विवाह नहीं करना चाहती थी; वह सोचती थी कि बुढ़ापे में उसके ससुर भगत की देखभाल कौन करेगा? उसने यह बात बालगोबिन के सामने रखी भी, किन्तु बालगोबिन भगत ने एक सच्चे पिता के पुत्री के प्रति पवित्र प्रेम का निर्वहन करते हुए पतोहू से स्पष्ट कह दिया कि यदि तू नहीं जाएगी तो मैं इस घर को छोड़कर चल दूँगा । यदि बालगोबिन भगत स्वार्थ देखते कि पतोहू बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेगी तो वे उसके विवाह न करने के आग्रह को स्वीकार भी कर सकते थे, किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं करके पतोहू के प्रति अपने पुत्री-प्रेम का निर्वहन किया।
