UK Board 10 Class Hindi Chapter 2 – तुलसीदास (काव्य-खण्ड)
UK Board 10 Class Hindi Chapter 2 – तुलसीदास (काव्य-खण्ड)
UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 2 तुलसीदास (काव्य-खण्ड)
1. कवि परिचय
प्रश्न – गोस्वामी तुलसीदास का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए-
जीवन-परिचय, कृतियाँ, शैली ।
उत्तर— जीवन-परिचय — लोकनायक गोस्वामी तुलसीदासजी के जीवन – चरित्र से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक नहीं प्राप्त हो सकी है। डॉ० नगेन्द्र द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में उनके सन्दर्भ में जो प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं, वे इस प्रकार हैं— बेनीमाधव प्रणीत ‘मूल गोसाईचरित’ तथा महात्मा रघुबरदास रचित ‘तुलसीचरित’ में तुलसीदासजी का जन्म संवत् 1554 वि० (सन् 1497 ई०) दिया गया है। बेनीमाधवदास की रचना में गोस्वामीजी की जन्म तिथि श्रावण शुक्ला सप्तमी का भी उल्लेख है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है-.
पन्द्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो सरीर ॥
‘शिवसिंह सरोज’ में इनका जन्म संवत् 1583 वि० (सन् 1526 ई०) में बताया गया है। पं० रामगुलाम द्विवेदी ने इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ई०) में स्वीकार किया है। सर जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा भी इसी जन्म संवत् को मान्यता दी गई है। निष्कर्ष रूप में जनश्रुतियों एवं सर्वमान्य तथ्यों के अनुसार इनका जन्म संवत् 1589 वि० (सन् 1532 ई० ) माना जाता है।
तुलसीदास के जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी पर्याप्त मतभेद हैं। , ‘तुलसीचरित’ में इनका जन्मस्थान राजापुर बताया गया है, जो उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले का एक गाँव है। कुछ विद्वान् तुलसीदास द्वारा रचित पंक्ति ” मैं पुनि निज गुरु सन सुनि, कथा सो सूकरखेत” के आधार पर इनका जन्मस्थल एटा जिले के ‘सोरो’ नामक स्थान को मानते हैं, जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि ‘सूकरखेत’ को भ्रमवश ‘सोरो’ मान लिया गया है। वस्तुतः यह स्थान आजमगढ़ जिले में स्थित है। इन तीनों मतों में इनके जन्मस्थान को राजापुर माननेवाला मत ही सर्वाधिक उपयुक्त समझा जाता है। जनश्रुतियों के आधार पर यह माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। ‘कवितावली’ के ” मातु पिता जग जाय तज्यो बिधिहू न लिखी कछु भाल भलाई” अथवा “बारे तें ललात बिललात द्वार-द्वार दीन, जानत हो चारि फल चारि ही चनक को” आदि अन्तः साक्ष्य यह स्पष्ट करते हैं कि तुलसीदास का बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ । इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध सन्त बाबा नरहरिदास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की । इन्हीं की कृपा से तुलसीदासजी वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात हो गए। इनका विवाह पं० दीनबन्धु पाठक की पुत्री ‘रत्नावली’ से हुआ था। कहा जाता है कि ये अपनी रूपवती पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्त थे। इस पर इनकी पत्नी ने एक बार इनकी भर्त्सना करते हुए कहा-
लाज न लागत आपको, दौरे आयहु साथ।
धिक् धिक् ऐसे प्रेम को, कहा कहाँ मैं नाथ।
अस्थि – चर्ममय देह मम, तामे ऐसी प्रीति ।
ऐसी जो श्रीराम महँ, होत न तौ भवभीति ॥
पत्नी की इस फटकार ने तुलसी को सांसारिक मोह-माया और भोगों से विरक्त कर दिया। इनके हृदय में राम-भक्ति जाग्रत हो उठी। घर को त्यागकर कुछ दिन ये काशी में रहे, इसके बाद अयोध्या चले गए। बहुत दिनों तक ये चित्रकूट में भी रहे। यहाँ पर उनकी भेंट अनेक सन्तों से हुई। संवत् 1631 वि० (सन् 1574 ई०) में अयोध्या जाकर इन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना की। यह रचना दो वर्ष सात मास में पूर्ण हुई। इसके बाद इनका अधिकांश समय काशी में ही व्यतीत हुआ तथा संवत् 1680 वि० (सन् 1623 ई०) में इनकी मृत्यु हो गई। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में यह दोहा प्रसिद्ध है—
संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो सरीर ॥
कृतियाँ – कविकुलगुरु तुलसीदास की 12 रचनाओं का उल्लेख मिलता है—
(1) रामलला नहछू — गोस्वामीजी ने लोकगीत की ‘सोहर’ शैली में इस नहछू – ग्रन्थ की रचना की थी। यह इनकी प्रारम्भिक रचना है।
(2) वैराग्य – सन्दीपनी — इसके तीन भाग हैं। पहले भाग में ६ छन्दों में ‘मंगलाचरण’ है। दूसरा ‘सन्त – महिमा वर्णन’ और तीसरा भाग ‘शान्ति – भाव – वर्णन’ का है।
(3) रामाज्ञा – प्रश्न – इसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। यह ग्रन्थ सात सर्गों में है। इसमें रामकथा का वर्णन किया गया है।
(4) जानकी- मंगल – इसमें कवि ने श्रीराम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर शब्दों में वर्णन किया है।
(5) श्रीरामचरितमानस – इस विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ में कवि ने मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र का व्यापक वर्णन किया है।
(6) पार्वती-मंगल – यह मंगल – काव्य है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण विद्यमान है। इस रचना का उद्देश्य ‘शिव-पार्वती विवाह’ का वर्णन करना है।
(7) गीतावली – इसमें संकलित 230 पदों में राम के चरित्र का वर्णन है। कथानक के आधार पर इन पदों को सात काण्डों में विभाजित किया गया है।
(8) विनयपत्रिका- ‘विनयपत्रिका’ का विषय भगवान् राम को कलियुग के विरुद्ध प्रार्थना पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में दिखाई दिए हैं।
(9) श्रीकृष्णगीतावली— इसके अन्तर्गत केवल 61 पदों में कवि ने पूरी श्रीकृष्ण – कथा मनोहारी ढंग से प्रस्तुत की है।
(10) बरवै – रामायण- यह गोस्वामीजी की स्फुट रचना है। इसमें श्रीराम कथा, संक्षेप में वर्णित है।
(11) दोहावली- दर्शन होते हैं। – इस संग्रह – ग्रन्थ में कवि की सूक्ति-शैली के
(12) कवितावली – इस कृति में कवित्त और सवैया शैली में रामकथा का वर्णन किया गया है।
चरित्र को व्यापकता तुलसी की इन रचनाओं में भगवान् राम के साथ चित्रित किया गया है। इसमें सन्देह नहीं कि भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से तुलसी का काव्य अद्वितीय है। निश्चय ही तुलसी हिन्दी – साहित्य के अमर कवि हैं।
शैली — तुलसीदासजी ने तत्कालीन सभी काव्य- शैलियों का प्रयोग अपने काव्य में किया। इन्होंने ‘श्रीरामचरितमानस’ में प्रबन्ध शैली, ‘विनयपत्रिका’ में मुक्तक शैली और ‘दोहावली’ में साखी शैली का प्रयोग किया। इनके अतिरिक्त और भी कई शैलियों का प्रयोग इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
(1) नाथ संभुधनु ……….. सकल संसार ॥
शब्दार्थ- संभुधनु = शिवजी का धनुष । भंजनिहारा = तोड़नेवाला। मोही = मुझसे। रिसाइ = क्रोध करना, खिसिया जाना। कोही = क्रोधी । अरि = शत्रु । रिपु = शत्रु | बिलगाउ = अलग होना। लखन = लक्ष्मणजी। परसु = फरसा, कुल्हाड़ा के आकार का चन्द्राकार एक शस्त्र ( यही परशुराम का मुख्य शस्त्र था)। अवमाने = अपमान करना। लरिकाई = लड़कपन (बचपन) में। नृप बालक = राजपुत्र | त्रिपुरारि = शिवजी |
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए ।
(ख) इस पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए ।
(ग) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए ।
(घ) परशुराम को क्रोधित देखकर राम ने उनसे क्या कहा?
(ङ) परशुरामजी के क्रोध का क्या कारण था ?
(च) लक्ष्मणजी ने परशुरामजी का अपमान क्या कहकर किया?
(छ) परशुरामजी के अनुसार सेवक कौन होता है?
उत्तर-
(क) कवि – गोस्वामी तुलसीदास । कविता का नाम-राम-लक्ष्मण – परशुराम संवाद (रामचरितमानस – ‘बालकाण्ड’) ।
(ख) भावार्थ- सीता स्वयंवर के समय श्रीराम द्वारा जनकजी के दरबार में शिवधनुष को भंगकर सीता के विवाह की शर्त पूरी की गई। इसी समय परशुरामजी जनकजी की सभा में पधारे। उन्हें शिवधनुष के टुकड़े पृथ्वी पर पड़े दिखाई दिए। इससे क्रोधित हो गए। परशुरामजी ने जनकजी से पूछा – यह शिव धनुष किसने तोड़ा है? परशुरामजी के क्रोधी स्वभाव को जानते हुए जामाता राम के अनिष्ट को सोचकर जनकजी ने कोई उत्तर नहीं दिया। तब श्रीराम सभी को डरा हुआ जानकर परशुराम –
हे नाथ! शिवजी के धनुष को भंग करनेवाला आपका ही कोई दास होगा। अब धनुष तो टूट ही गया, यदि कोई आज्ञा हो तो मुझसे कहिए । श्रीराम के मुख से यह बात सुनकर परशुरामजी और क्रोधित हो गए और कहने लगे कि सेवक वह होता है, जो सेवा का कार्य करे । यहाँ धनुष भंग करके कोई सेवा का कार्य नहीं किया गया है। यह तो शत्रुता का काम करके लड़ाई का काम किया गया है। हे राम! जिसने इस शिव के धनुष को भंग किया है वह सहस्रबाहु के समान मेरा शत्रु है। वह इस राजसभा में से निकलकर अलग खड़ा हो जाए, अन्यथा सभा में एकत्र हुए सभी राजा मेरे क्रोध का शिकार बनेंगे अर्थात् मारे जाएँगे।
परशुरामजी की बातों को सुनकर लक्ष्मणजी मुस्कराने लगे और उनका अपमान करने के उद्देश्य से कहने लगे-लड़कपन में हमने बहुत-से धनुष तोड़े थे, किन्तु हे विप्रवर आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इस धनुष पर आपकी इतनी ममता किस कारण है? लक्ष्मणजी की बातें सुनकर भृगुजी कुल के केतु अर्थात् परशुरामजी और क्रोधित होकर कहने लगे हे राजपुत्र! तुम काल के वश में हो। इसलिए तुम जो कह रहे हो वह मुँह सँभालकर नहीं कह रहे हो। सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध शिवजी का यह धनुष क्या लड़कपन में तुम्हारे द्वारा तोड़े गए धनुषों के समान है ?
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) इन पंक्तियों में तुलसीदासजी ने श्रीराम की विनय और लक्ष्मणजी के लड़कपन का मनोहारी चित्रण किया है। (2) लक्ष्मणजी की चपलता भी देखने योग्य है। (3) भाषा – अवधी । (4) अलंकार – अनुप्रास, रूपक । (5) – चौपाई और दोहा। छन्द-
(घ) परशुराम को क्रोधित देखकर राम ने उनसे कहा कि हे नाथ! शिव का धनुष तोड़नेवाला तो कोई आपका ही दास होगा। यदि कोई आज्ञा हो तो मुझसे कहिए ।
(ङ) श्रीराम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़ दिया गया, यही परशुरामजी के क्रोध का कारण था।
(च) लक्ष्मणजी ने परशुरामजी का अपमान यह कहकर किया – हे मुनिवर ! लड़कपन में तो हमने बहुत से धनुष तोड़े थे, किन्तु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इस धनुष पर आपकी इतनी ममता किन कारणों से है ?
(छ) परशुरामजी के अनुसार सेवक वह होता है, जो सेवा का काम करे।
(2) लखन कहा ………. मोर अति घोर ॥
शब्दार्थ – हसि = हँसकर । जून = पुराने। भोरें = धोखे से। छुअत = छूते ही। रोसू = क्रोध । चितै = देखकर। परसु = फरसा । सठ = दुष्ट । बधौं = वध करना । भूप = राजा । भुज = भुजाएँ । महिदेवन्ह = ब्राह्मणों को। गर्भन्ह = गर्भ के । अर्भक = बच्चे ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए ।
(ग) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) लक्ष्मण ने परशुराम को क्या कहकर चिढ़ाया?
(ङ) लक्ष्मणजी ने धनुष टूटने का क्या कारण बताया?
(च) परशुरामजी ने अपनी क्या विशेषताएँ बताई ?
(छ) परशुरामजी लक्ष्मणजी को क्यों नहीं मार रहे थे?
उत्तर-
(क) कवि – गोस्वामी तुलसीदास । कविता का नाम-राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद (रामचरितमानस – ‘बालकाण्ड’) ।
(ख) भावार्थ- परशुरामजी की बात सुनकर लक्ष्मणजी हँसकर कहने लगे – हे देव! सुनिए, मेरी समझ से तो सभी धनुष एक समान हैं। इस पुराने धनुष के तोड़ने से हमें क्या लाभ या हानि होती, श्रीरामचन्द्रजी ने इसे नया समझकर धोखे से देख लिया, किन्तु यह तो उनके छूते ही टूट गया। इसमें श्रीराम का किसी प्रकार भी दोष नहीं है । हे मुनि! बिना कारण ही आप किसलिए क्रोधित हो रहे हैं?
परशुरामजी अपने फरसे की ओर देखकर लक्ष्मणजी से कहने लगे – हे दुष्ट ! तुम मेरे स्वभाव के विषय में नहीं जानते हो। मैं तुम्हें बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ। क्या तुम मुझे केवल मुनि ही समझते हो? मैं बालब्रह्मचारी और अत्यन्त क्रोधी हूँ। सारा विश्व जानता है कि मैं क्षत्रियकुल के शत्रु के रूप में जाना जाता हूँ। अपनी भुजाओं के बल पर मैंने पृथ्वी को अनेक बार राजाओं से रहित कर दिया और उसे ब्राह्मणों को दिया है अर्थात् पृथ्वी पर ब्राह्मणों का राज्य स्थापित कर दिया है। हे राजपुत्र! सहस्रबाहु की भुजाओं को काटनेवाले इस फरसे को देख। तुम तो अपने माता-पिता के विषय में सोचो; अर्थात् यदि तुम मेरे क्रोध के शिकार हो गए तो बेचारे तुम्हारे माता-पिता क्या करेंगे? मेरा फरसा बड़ा भयानक है इसने गर्भ में पल रहे बच्चों को भी मारा है, अर्थात् यह बहुत निर्दयी है।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) लक्ष्मणजी ने धनुष को पुराना कहकर परशुरामजी से कुतर्क किया था। इस तर्क ने अग्नि में घी का काम किया। (2) परशुरामजी अपने क्रोध की विशेषताएँ बता रहे हैं। (3) भाषा अवधी (1) अलंकार- अनुप्रास, रूपक । (5) छन्द- चौपाई और दोहा ।
(घ) लक्ष्मण ने हँसकर परशुराम को यह कहते हुए चिढ़ाया कि हम तो सभी धनुष को एक जैसा समझते हैं। उस पुराने धनुष को तोड़ने से हमारा कोई लाभ-हानि नहीं है। श्रीराम ने उसे नया धनुष समझकर देखा भर था कि वह छूते ही टूट गया। आप तो अकारण ही क्रोध कर रहे हैं।
(ङ) लक्ष्मणजी ने परशुरामजी को धनुष टूटने का कारण उसका पुराना होना बताया ।
(च) परशुरामजी ने बताया कि वे बहुत क्रोधी हैं। बालब्रह्मचारी हैं। सम्पूर्ण विश्व में अनेक बार क्षत्रियों का नाश कर चुके हैं। अपनी भुजाओं के बल पर पृथ्वी को कई बार राजा – विहीन कर भूमि को ब्राह्मणों को दे चुके हैं।
(छ) परशुरामजी लक्ष्मण को बालक समझकर नहीं मार रहे थे।
(3) बिहसि लखनु ……….. गिरा गंभीर ॥
शब्दार्थ – बिहसि = हँसकर । मृदु = कोमल, मीठी। महाभट = महान् योद्धा । पुनि-पुनि = बार-बार कुठारू = कुल्हाड़ा। पहारू = पहाड़ । कुम्हड़बतिया = छुईमुई का पौधा, जो उँगली दिखाते अर्थात् उँगली के स्पर्शमात्र से ही मुरझा जाता है; कुछ स्थानों पर काशीफल को भी कुम्हड़ा कहते हैं, किन्तु यहाँ अर्थ के साथ उसका साम्य नहीं है; बहुत कमजोर, निर्बल व्यक्ति । तरजनी = अँगूठे के पास की उँगली । भृगुसुत = भृगुजी के पुत्र, भृगुवंशी । सुर = देवता । महिसुर = ब्राह्मण । गाई = गाय। सुराई = वीरता । पा = पैर |
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए ।
अथवा लक्ष्मण ने परशुराम को मृदु वाणी में क्या समझाया ?
(ग) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) लक्ष्मण के यह कहने का क्या आशय है कि आपने तो व्यर्थ ही धनुष-बाण और कुल्हाड़ा धारण कर रखे हैं।
(ङ) लक्ष्मणजी के अनुसार किन पर वीरता नहीं दिखाई जाती?
(च) परशुरामजी के वचनों के प्रति क्या उलाहने दिए गए हैं? अथवा लक्ष्मण ने अपनी कुल परम्परा के बारे में क्या बताया ?
(छ) ‘कुम्हड़बतिया’ से आप क्या समझते हैं?
अथवा ‘इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं’ में निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर-
(क) कवि – गोस्वामी तुलसीदास । कविता का नाम-राम-लक्ष्मण – परशुराम संवाद (रामचरितमानस – ‘बालकाण्ड’) ।
(ख) भावार्थ- परशुरामजी की बातें सुनकर लक्ष्मणजी हँसकर कोमल शब्दों में उनसे कहने लगे – हे मुनिवर ! तो आप स्वयं को महान् योद्धा समझते हैं। बार-बार मुझे कुल्हाड़ा दिखाते हैं (यहाँ लक्ष्मणजी ने परशुरामजी के फरसे को ‘कुल्हाड़ा’ कहकर उनका और अधिक अपमान कर दिया है)। ऐसा लगता है जैसे आप अपनी फूँक से पहाड़ उड़ाना चाहते हैं। यहाँ कोई कुम्हड़े की बतिया नहीं है, जो तर्जनी उँगली को देखते ही मर जात ( नष्ट हो जाती है)। आपके पास कुल्हाड़ा और धनुष-बाण देखकर ही मैं आपसे कुछ अभिमान से बोला था। आप भृगुवंशी हैं और यज्ञोपवीत धारण किए हुए हैं। इसलिए जो कुछ आप कह रहे हैं, उसे मैं अपना क्रोध रोककर सह लेता हूँ। हमारे कुल में देवता, ब्राह्मण, भगवान् के भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाई जाती है अर्थात् इन्हें नहीं मारा जाता है; क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे पराजित होने पर अपकीर्ति होती है। इसलिए यदि आप मुझे मारें तो भी मैं आपके चरणों में ही शीश झुकाऊँगा। आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वज्रों की मार के समान है, धनुष-बाण और ये कुल्हाड़ा तो आप बेकार ही धारण करते हैं। आपके धनुष-बाण और कुल्हाड़े को देखकर मैंने आपसे कुछ अनुचित कह दिया हो तो उसे क्षमा कीजिए ।
लक्ष्मणजी के मुख से इस प्रकार की बातों को सुनकर परशुरामजी धीर – गम्भीर होकर बोले ।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) लक्ष्मणजी परशुरामजी के फरसे को कुल्हाड़ा कहकर उन्हें और अपमानित करते प्रतीत होते हैं। (2) लक्ष्मणजी ने अपने कुल की विशेषता भी प्रकट की है कि उनके कुल में देवता, ब्राह्मण, भगवान् के भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाई जाती है। (3) भाषा – अवधी । (4) अलंकार – अनुप्रास, दृष्टान्त । (5) छन्द – चौपाई और दोहा।
(घ) ‘आपने तो व्यर्थ ही धनुष-बाण और कुल्हाड़ा धारण कर रखे हैं’ लक्ष्मण के यह कहने का आशय यह है कि आपके तो कठोर वचन ही इन शस्त्रों की मार से अधिक घातक हैं। अस्त्र-शस्त्रों से तो व्यक्ति का केवल शरीर ही घायल होता है, किन्तु कठोर वाणी से तो मन भी ऐसा घायल होता है कि उसका उपचार ही सम्भव नहीं होता; अतः ऐसे कठोर वचनों के रहते आपको इन अस्त्र-शस्त्रों की आवश्यकता ही नहीं है।
(ङ) लक्ष्मणजी के अनुसार देवता, ब्राह्मण, भगवान् के भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाई जाती।
(च) परशुरामजी के वचनों के प्रति लक्ष्मणजी ने फूँक से पहाड़ उड़ाना, कुम्हड़े की बतिया आदि कहकर उलाहने दिए हैं। इसके साथ ही वे यह बताना चाहते हैं कि आप बाह्मण हैं और आपने जनेऊ धारण कर रखा है, यही देखकर मैं आपकी बातों को सहन कर रहा हूँ, अन्यथा अब तक युद्ध ठन गया होता। यह तो हमारी वंश परम्परा है कि हम देवता, ब्राह्मण, भक्त और गाय पर शस्त्र नहीं उठाते और आप भी ब्राह्मण हैं, इसीलिए अपनी वंश-परम्परा का पालन करते हुए मैं शस्त्र नहीं उठा रहा हूँ।
(छ) कुम्हड़बतिया से यहाँ पर आशय छुईमुई के पौधे के समान बहुत कमजोर, डरपोक अथवा निर्बल व्यक्ति है। छुईमुई का पौधा उँगली के स्पर्शमात्र से मुरझा जाता है। कुछ स्थानों पर काशीफल को भी कुम्हड़ा कहा जाता है, किन्तु यहाँ अर्थ के साथ उसका कोई साम्य नहीं है।
(4) कौसिक ………. कथहिं प्रतापु ॥
शब्दार्थ – कौसिक = विश्वामित्र । भानुबंस = सूर्यवंशी । निरंकुसु = जिस पर किसी का दबाव न हो, मनमानी करनेवाला । कुल-घालकु = कुल का नाश करनेवाला । असंकू = शंकारहित, निडर । अबुधु = अबोध, नासमझ । कालकवलु = जिसे काल ने अपना ग्रास बना लिया हो। खोरि = दोष । हटकहु = मना करने पर। सुजसु = सुयश । अछत = अक्षत । बरनै = वर्णन करना । अछोभा = क्षोभरहित । सूर = शूरवीर । समर = युद्ध।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) “अपने मुहु तुम्ह आपनि करनी । बार अनेक भाँति बहु बरनी । ” – लक्ष्मण के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ।
(ङ) परशुरामजी ने किन-किन शब्दों से लक्ष्मणजी को अपमानित किया?
(च) शूरवीर की क्या पहचान बताई गई है?
(छ) ‘कौसिक’ किसे कहा गया है?
उत्तर-
(क) कवि – गोस्वामी तुलसीदास । कविता का नाम-राम-लक्ष्मण – परशुराम संवाद (रामचरितमानस – ‘बालकाण्ड’) ।
(ख) भावार्थ – लक्ष्मणजी के बहुत ही कटु वचन सुन-सुनकर परशुरामजी का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। वे विश्वामित्रजी से कहने लगे— हे कौशिक (विश्वामित्र ) ! सुनो। यह बालक (लक्ष्मण) अत्यन्त कुबुद्धि और कुटिल है। काल के वशीभूत होकर यह अपने कुल का घातक बन रहा है। सूर्यवंशरूपी जो पूर्णचन्द्र उदित है, यह (लक्ष्मण) उसका कलंक बनना चाहता है। यह अत्यन्त उद्दण्ड, निरंकुश, मूर्ख और निडर है।
अभी पलभर में ही यह काल का ग्रास बन जाएगा अर्थात् इसकी मृत्यु निश्चित है। मैं आपसे कह रहा हूँ, फिर मुझे दोष मत देना। यदि आप लक्ष्मण को मृत्यु से बचाना चाहते हैं तो मेरे प्रताप, बल और क्रोध का वर्णन करके इसे (लक्ष्मणजी को) मुझसे हठ करने के लिए मना कर दें।
परशुरामजी की बातें सुनकर लक्ष्मणजी फिर बोल पड़े। वे कहने लगे—हे मुनि ! आपका सुयश आपके अलावा दूसरा कौन वर्णन कर सकता है? आपने अभी तक अनेक बार अपनी करनी अपने ही मुख से बखानी है। यदि आपको फिर भी सन्तोष न हुआ हो तो और भी कह डालिए। अपना क्रोध रोककर असहनीय दुःख न उठाइए। आप वीर हैं, धैर्य धारण करते हैं, आपको किसी प्रकार का क्षोभ भी नहीं है; परन्तु आप मुझे गाली दे रहे हैं, वह आपको शोभा नहीं देता है।
शूरवीर तो युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं, वे अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं। शत्रु को युद्ध के लिए आया जानकर कायर व्यक्ति ही अपनी वीरता की डींग मारा करते हैं।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) परशुरामजी ने लक्ष्मणजी को अनेक उपमाएँ दी हैं। (2) लक्ष्मणजी परशुरामजी को नीति की बातें समझाते प्रतीत होते हैं। (3) भाषा – अवधी । (4) अलंकार–उपमा, अनुप्रास। (5) छन्द – चौपाई और दोहा ।
(घ) लक्ष्मण के इस कथन का आशय यह है कि आप अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बन रहे हैं अर्थात् अपने ही मुख से अपनी बड़ाई कर रहे हैं। उत्तमजन कभी भी अपनी बड़ाई अपने मुँह से नहीं करते हैं, ऐसा तो अधमजन करते हैं।
(ङ) परशुरामजी ने लक्ष्मणजी को कुबुद्धि, कुटिल, कुलघातक, सूर्यवंशरूपी पूर्णचन्द्र का कलंक, उद्दण्ड, मूर्ख आदि अपशब्द कहकर अपमानित किया है।
(च) शूरवीर युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं, वे डींग नहीं हाँकते। शत्रु को सामने पाकर अपनी डींग तो कायर हाँकते हैं।
(छ) ‘विश्वामित्रजी’ को ‘कौसिक’ कहा गया है।
(5) तुम्ह तौ ……………….. बूझ अबूझ ॥
शब्दार्थ – कालु = काल। हाँक = आवाज लगाना । दोसु = दोष । कटुबादी = कड़वा बोलनेवाला। बधजोगू = वध करने के योग्य। बिलोकि = देखकर | मरनिहार = मरने के लिए ही। खर = दुष्ट । अकरुन = जिसमें करुणा न हो। उरिन = उऋण । गाधिसू = गाधि के पुत्र अर्थात् विश्वामित्र । हरियरे = हरा-ही-हरा । अयमय = लोहे से निर्मित। ऊखमय = रस से बनी।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का भावार्थ लिखिए।
(ग) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) ‘मुनिहि हरियरे सूझ’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ङ) परशुरामजी ने जनसामान्य से क्या कहा?
(च) विश्वामित्रजी ने लक्ष्मण को क्षमा करने के लिए परशुरामजी को क्या तर्क दिए?
(छ) विश्वामित्रजी परशुरामजी की दशा देखकर क्या सोचने लगे?
उत्तर –
(क) कवि – गोस्वामी तुलसीदास ।, कविता का नाम-राम-लक्ष्मण – परशुराम संवाद (रामचरितमानस – ‘बालकाण्ड’) ।
(ख) भावार्थ – लक्ष्मणजी ने आगे कहा- आप तो मानो बार-बार काल को आवाज लगाकर उसे मेरे लिए आमन्त्रित करते हैं। लक्ष्मणजी की इतनी कटु बातों को सुनकर परशुरामजी क्रोधवश अपना फरसा सँभालने लगे और जनसामान्य की ओर देखकर कहने लगे— अब आप लोग मुझे किसी प्रकार का दोष न दें। यह कड़वी बात कहनेवाला बालक मारे जाने के ही योग्य है। इसे बालक समझकर मैंने बहुत छोड़ा (बचाया ), पर अब वास्तव में यह मेरे फरसे से मरने ही वाला है। परशुरामजी को अत्यन्त क्रोधित देखकर विश्वामित्रजी कहने लगे – अपराध क्षमा कीजिए । बालकों के दोष और गुणों की ओर साधु लोग ध्यान नहीं देते हैं। परशुरामजी कहने लगे- मेरे हाथ में तीव्र धारयुक्त फरसा है, मेरा स्वभाव क्रोधी है और मुझमें दया भाव भी नहीं है। ऐसे में यह गुरुद्रोही और अपराधी मेरे सामने है। मुझे मेरी बातों का उत्तर दे रहा है। यदि मैं अभी तक इसे छोड़े हुए हूँ तो केवल इसलिए कि मुझे आपसे (विश्वामित्र से) प्रेम है, अन्यथा अपने तीव्र फरसे से लक्ष्मण को काटकर शीघ्र ही कम परिश्रम में ही गुरु के ऋण से उऋण हो जाता ।
विश्वामित्रजी मन-ही-मन हँसकर विचार करने लगे कि परशुरामजी को केवल हरा – ही – हरा सूझ रहा है, अर्थात् अपने अभिमान के कारण, सभी जगह विजयी होने के कारण ये राम-लक्ष्मण को साधारण क्षत्रिय समझ रहे हैं। वास्तव में ये तो लोहे की बनी हुई खड्ग के समान हैं; कोई रस से बनी हुई खाँड (शक्कर / मीठा पदार्थ) नहीं (जो मुँह में लेते ही गल जाए) । परशुरामजी अब भी नासमझ बने हुए हैं, इनके (राम-लक्ष्मण) प्रभाव को नहीं समझ पा रहे हैं।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) विश्वामित्र जी ने परशुरामजी की स्वार्थपरता का वर्णन किया है। (2) राम-लक्ष्मण को लोहे की खड्ग की उपमा दी गई है। (3) भाषा – अवधी । (4) अलंकार – उपमा, श्लेष, अनुप्रास । (5) छन्द – चौपाई और दोहा ।
(घ) परशुराम ने अनेक बार सम्पूर्ण पृथ्वी के राजाओं को पराजित किया था; अतः उन्हें सभी क्षत्रिय एक साधारणजन दिखते थे और वे स्वयं को सबसे बड़ा योद्धा समझने लगे थे। अर्थात् जैसे सावन अन्धे को हरा-हरा दिखता है, वैसे ही परशुराम को प्रत्येक क्षत्रिय स्वयं से कमजोर और पराजित दिखता था। इसीलिए वे राम-लक्ष्मण की गिनती भी साधारण व्यक्ति के रूप में करते हैं।
(ङ) परशुरामजी ने जनसामान्य से कहा- अब लोग मुझे दोष न दें। यह कड़वी बात कहनेवाला बालक मरने के ही योग्य है। इसे मैंने बहुत बचाया, पर अब यह मरने को ही आ गया है।
(च) विश्वामित्रजी ने परशुरामजी से कहा – लक्ष्मण का अपराध क्षमा कर दीजिए। बालकों के गुण और दोषों पर साधु लोग ध्यान नहीं देते हैं।
(छ) विश्वामित्रजी परशुरामजी की दशा देखकर सोचने लगे कि इन्हें अपने अभिमान के कारण राम-लक्ष्मण के पराक्रम की पहचान नहीं हो पा रही हैं।
(6) कहेउ लखन ……………. बोले रघुकुलभानु ॥
शब्दार्थ – रिनु = ऋण। सीलु = शील। उरिन = उऋण। नीकें = अच्छी तरह। हमरेहि = हमारे ही। बाढ़ा = बढ़ गया। कटु बचन = कड़वे वचन । बिप्र = ब्राह्मण। नृपद्रोही = राजाओं के शत्रु । सुभट = वीर योद्धा। द्विजदेवता = ब्राह्मण-देवता । सयनहि = आँख के इशारे से । नेवारे = रोक दिया, मना कर दिया। कृसानु = अग्नि ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का भावार्थ लिखिए।
(ग) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) लक्ष्मण के अनुसार परशुराम अभी तक उनके क्रोध से क्यों बचे हैं?
(ङ) श्रीराम ने लक्ष्मणजी को आँख के इशारे से क्यों रोक दिया?
(च) श्रीराम का क्या उपमा दी गई है?
(छ) परशुराम का स्वभाव कैसा बताया गया है?
(ज) परशुराम को नृपद्रोही कहकर लक्ष्मण किस बात की ओर संकेत कर रहे हैं?
उत्तर –
(क) कवि – गोस्वामी तुलसीदास । कविता का नाम-राम-लक्ष्मण – परशुराम संवाद (रामचरितमानस — ‘बालकाण्ड’) ।
(ख) भावार्थ – लक्ष्मणजी परशुरामजी से कहने लगे – हे मुनि ! आपके शील से सभी परिचित हैं। आपका शील तो विश्वप्रसिद्ध है। आप अपने माता-पिता से तो भली-भाँति उऋण हो ही गए हैं। अब गुरु का ऋण रह गया है, जिसका आपके मन में बड़ा सोच है (चिन्ता है) । वह गुरु का ऋण मानो हमारे ही मत्थे मढ़ा था। आपने यह ऋण बहुत दिनों से नहीं चुकाया है, इसका ब्याज भी बहुत बढ़ गया होगा। अब आप किसी हिसाब करनेवाले व्यक्ति को बुलाकर लाइए। तब मैं तुरन्त थैली खोलकर दे दूँ।
लक्ष्मणजी की इतनी कड़वी बातें सुनकर परशुरामजी और क्रोधित हो गए। उन्होंने अपना फरसा सँभाला। यह देखकर जनकजी की सारी सभा में हाय-हाय मच गई। लक्ष्मणजी ने आगे कहा- हे भृगुश्रेष्ठ ! आप मुझे फरसा दिखा रहे हैं? पर हे राजाओं के शत्रु ! मैं ब्राह्मण समझकर आपको छोड़ रहा हूँ। आपको अभी तक रण में विजयी होनेवाले बलवान् वीर नहीं मिले हैं। हे ब्राह्मण देव! आप तो केवल घर ही में बड़े हैं, अर्थात् आप अपनी ही दृष्टि में बड़े हैं। लक्ष्मणजी की इन बातों को सुनकर सभा में बैठे हुए सभी लोग ‘अनुचित हैं’, ‘अनुचित हैं’ कहकर चिल्लाने लगे। यह देखकर श्रीरामजी ने इशारे से लक्ष्मणजी को रोक दिया। लक्ष्मणजी के उत्तर, जो आहुति के समान थे, परशुरामजी की क्रोधरूपी अग्नि को भड़काने के लिए पर्याप्त थे; किन्तु रघुवंशी श्रीराम अग्नि को शान्त करनेवाले जल के समान शान्त वचन बोलने लगे।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) लक्ष्मणजी की बातें परशुरामजी की क्रोधरूपी अग्नि में घी का काम कर रही हैं। उनका क्रोध भड़कता ही जा रहा है। (2) श्रीराम के स्वभाव को शान्त बताया गया है। (3) भाषा – अवधी । (4) अलंकार- अनुप्रास, श्लेष । ( 5 ) छन्द – चौपाई और दोहा।
(घ) लक्ष्मण के अनुसार परशुराम अभी तक उनके क्रोध से इसलिए बचे हैं, क्योंकि वे ब्राह्मण हैं और क्षत्रिय ब्राह्मण पर हाथ नहीं उठाते।
(ङ) लक्ष्मण के कटु वचनों को सुनकर जब जनकजी की सभा में बैठे लोग ‘अनुचित हैं’, ‘अनुचित हैं चिल्लाने लगे तो श्रीराम ने सभा में उपस्थित राजाओं की दृष्टि में लक्ष्मण के व्यवहार को अनुचित जानकर लक्ष्मणजी को आँख के इशारे से रोक दिया।
(च) श्रीराम को उनके शीतल स्वभाव के कारण जल की उपमा दी गई है।
(छ) परशुराम के शील अर्थात् स्वभाव को यहाँ क्रोधी और अविवेकी बताया गया है। लक्ष्मणजी उन पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि तुम्हारे अविवेकी स्वभाव के विषय में सारा संसार जानता है कि तुमने बिना सोचे-विचारे ही अपनी माता का सिर काट दिया था।
(ज) परशुराम को नृपद्रोही कहकर लक्ष्मण इस बात की ओर संकेत कर रहे हैं कि आप इस भुलावे में न रहें कि आपने पृथ्वी को क्षत्रियविहीन करने की जो उपाधि पाई है, उससे हम डर जाएँगे, अथवा पृथ्वी पर कोई वीर शेष ही नहीं रहा है।
3. कविता के सन्देश / जीवन-मूल्यों तथा सौन्दर्य सराहना पर लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – परशुरामजी के क्रोध का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर— परशुरामजी के क्रोध का मुख्य कारण श्रीराम के हाथों शिवधनुष का टूटना था। इसके बाद लक्ष्मणजी से हुए संवाद ने उनके क्रोध की अग्नि को और भड़का दिया।
प्रश्न 2 – सेवक का क्या कार्य होता है?
उत्तर- परशुरामजी के अनुसार सेवक का कार्य सेवा करना होता है। इसलिए श्रीराम द्वारा धनुष भंग करने को वे सेवक का कार्य नहीं मानते हैं।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – श्रीरामचरितमानस’ के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर— ‘श्रीरामचरितमानस’ की रचना गोस्वामी तुलसीदासजी ने संवत् 1631 में प्रारम्भ की थी। यह 7 काण्डों में विभक्त रचना है। इसमें 5,100 चौपाई या 10,201 अर्द्धाली हैं। ‘श्रीरामचरितमानस’ मानवजीवन का महाकाव्य है। इसमें तुलसीदासजी ने हमारी आध्यात्मिक और भौतिक समस्याओं का सफल विवेचन किया है। ‘मानस’ का भारत के कोने-कोने में प्रचार है। इसका अनुवाद विभिन्न भाषाओं में हो चुका है। यह हिन्दू संस्कृति का सारभूत ग्रन्थ है।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने के लिए कौन-कौन-से तर्क दिए ?
उत्तर— लक्ष्मणजी ने परशुरामजी से कहा – मेरी समझ में तो सभी धनुष एक समान हैं। यह धनुष ( शिवधनुष ) तो बहुत पुराना था। श्रीराम ने उसे धोखे से छूकर देख लिया और यह उनके छूते ही टूट गया। इस प्रकार लक्ष्मणजी ने परशुरामजी को धनुष के पुराने होने का तर्क दिया।
प्रश्न 2 – परशुराम के क्रोध करने पर राम और लक्ष्मण की जो प्रतिक्रियाएँ हुईं, उनके आधार पर दोनों के स्वभाव की विशेषताएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – श्रीराम द्वारा सीता स्वयंवर में शिवधनुष के तोड़े जाने से वहाँ पहुँचे परशुरामजी क्रोधित हो गए। परशुरामजी शिवभक्त थे। शिवधनुष की दशा देखकर परशुरामजी का क्रोधित हो जाना स्वाभाविक ही था। परशुरामजी ने धनुष तोड़नेवाले का नाम जानना चाहा। इस पर लक्ष्मणजी ने उनसे बहुत तर्क-कुतर्क किया। लक्ष्मणजी के संवादों ने परशुरामजी की क्रोधाग्नि को और अधिक भड़का दिया। लक्ष्मणजी स्वभाव से चंचल, दृढ़प्रतिज्ञ और परशुरामजी के समान ही क्रोधी थे। दूसरी ओर श्रीराम प्रारम्भ से ही शान्त स्वभाव के प्रतीत हुए । उन्होंने प्रारम्भ में ही विनम्रता का प्रदर्शन करते हुए स्वयं को ‘सेवक’ बताया। वहीं वे लक्ष्मण को भी इशारे से शान्त होने के लिए कहते रहे। अन्त में श्रीराम ने ही जल के समान ठण्डे वचन बोले और परशुरामजी की क्रोधाग्नि को शान्त करने का प्रयास किया -.
“बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ।”
इस प्रकार जहाँ लक्ष्मण का स्वभाव उग्र दृष्टिगत होता है, वहीं श्रीराम शान्त स्वभाव के हैं।
प्रश्न 3 – लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर – लक्ष्मण और परशुरामजी के संवाद का निम्नलिखित अंश मुझे अच्छा लगा –
लक्ष्मण – (हँसकर ) यह धनुष तो पुराना था, श्रीराम के छूने भर से टूट गया। इसमें श्रीराम का किसी प्रकार का दोष नहीं है ।
परशुराम – ( अपने फरसे की ओर देखकर) अरे दुष्ट तुम मेरे स्वभाव के विषय में नहीं जानते। मैं तुम्हें बालक समझकर नहीं मार रहा हूँ। मैं बालब्रह्मचारी और अत्यन्त क्रोधी हूँ।
लक्ष्मण – (हँसकर, मीठी वाणी में) आप स्वयं को बड़ा भारी योद्धा समझते हैं। मुझे बार-बार कुल्हाड़ा दिखाते हैं।
प्रश्न 4 – परशुराम ने अपने विषय में सभा में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए-
बाल ब्रह्मचारी अति कोही । बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही ॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही । बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहु भुज छेदनिहारा । परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर ।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥
उत्तर – परशुरामजी ने अपने विषय में कहा- क्या तुम मुझे केवल मुनि ही समझते हो? मैं बालब्रह्मचारी और अत्यन्त क्रोधी हूँ। मैं सम्पूर्ण विश्व में क्षत्रियकुल के शत्रु के रूप में विख्यात हूँ। अपनी शक्ति के बल पर मैंने पृथ्वी को अनेक बार राजाओं से रहित कर दिया है और उसे ब्राह्मणों को दे दिया है। सहस्रबाहु की भुजाओं को मेरे ही फरसे ने काटा था। मेरा फरसा बड़ा भयानक है। हे राजकुमार ! इस फरसे को देख । इसने गर्भ में पल रहे बच्चों की भी हत्या की है। इस प्रकार परशुरामजी सभा के समक्ष स्वयं को अत्यधिक निर्दयी, क्रोधी और बलशाली बताया।.
प्रश्न 5–लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताईं ?
अथवा ‘राम-परशुराम-लक्ष्मण संवाद’ के आधार पर संक्षेप में लिखिए कि परशुराम की क्रोधपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने उन्हें शूरवीर की क्या पहचान बताई?
उत्तर – लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताईं –
(i) शूरवीर अथवा वीर योद्धा देवता, ब्राह्मण, भगवान् के भक्त और गाय पर वीरता नहीं दिखाते हैं।
(ii) वीर योद्धा रणभूमि में अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हैं, वे अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं।
(iii) धीरता और सन्तोष वीरों का अनन्य गुण होता है, उन्हें अकारण ही क्रोध नहीं आता और यदि आता भी है तो वे क्रोध में भी विवेक नहीं खोते हैं।
(iv) गाली देना कायरों और दुर्बलों का अस्त्र है, वीर योद्धा दूसरों का गाली देकर अपमान नहीं करते, भले ही वह शत्रु ही क्यों न हो ।
प्रश्न 6– ‘ साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर है । ‘ इस कथन पर अपने विचार लिखिए ।
उत्तर – जीवन में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं, जिनका सामना मनुष्य साहस और शक्ति के साथ करता है। विनम्रता एक ऐसा गुण है, जिसका उपयोग करने से कभी-कभी शक्ति के प्रयोग की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। विनम्र व्यक्ति की बात क्रोधी-से-क्रोधी व्यक्ति भी सुनने के लिए विवश होता है। परशुरामजी के क्रोध को भी प्रभु राम की विनम्रता ने ही शान्त किया था। इसलिए साहस और शक्ति के साथ विनम्रता को होना भी सद्गुण है।
प्रश्न 7 – भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी । अहो मुनीसु महाभट मानी ।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू । चहत उड़ावन फूँकि पहारू ।।
(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं । ।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना ।।
(ग) गाधि कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ । अन्य खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ ।।
उत्तर – भाव स्पष्ट करने के लिए ‘काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर’ शीर्षक देखिए ।
प्रश्न 8 – पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा – सौन्दर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर – तुलसीदासजी ने ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं में रचना की है। पाठ्यपुस्तक में प्रस्तुत पद अवधी भाषा में हैं। तुलसीदासजी ने महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ अवधी भाषा में लिखा है, जबकि उनकी ‘विनयपत्रिका’, ‘गीतावली’ और ‘कवितावली’ में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा के प्रभाव में विशेष वृद्धि हुई है।
तुलसीदासजी ने अपनी रचनाओं में अपने समय की प्रचलित सभी शैलियों का प्रयोग किया है। ‘श्रीरामचरितमानस’ जिससे पाठ्यपुस्तक के पद अवतरित हैं, में प्रबन्ध शैली का प्रयोग किया गया है। तुलसीदासजी ने चौपाई, दोहा, सोरठा आदि छन्दों का प्रयोग किया है। चौपाई श्रीरामचरितमानस का मुख्य छन्द है। काव्य में अलंकारों का प्रयोग भी सहज रूप से किया गया है।
प्रश्न 9 – इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौन्दर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – इस पूरे प्रसंग में लक्ष्मण परशुराम संवाद व्यंग्यपूर्ण ही है, फिर भी इसकी कुछ पंक्तियाँ उदाहरण योग्य हैं; यथा-
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥
अर्थात् लड़कपन में हमने बहुत-सी धनुहियाँ तोड़ी हैं, किन्तु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया।
का छति लाभ जून धनु तोरें । देखा राम नयन के भोरें ॥
छूअत टूट रघुपतिहु न दोसू । मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ॥
अर्थात् पुराने धनुष को तोड़ने से क्या हानि-लाभ ? श्रीराम ने तो इसे नया समझकर देखा था। फिर यह तो छूते ही टूट गया, इसमें श्रीराम का कोई दोष नहीं। आप तो बिना कारण ही क्रोध कर रहे हैं।
लक्ष्मण बड़ी मधुरवाणी में फिर से परशुराम पर व्यंग्य-बाण चलाते हैं कि अरे मुनिवर ! आप तो महान् योद्धा हैं; इसीलिए बार-बार मुझे अपना कुल्हाड़ा दिखाते हैं। लगता है आप तो फूँक मारकर पहाड़ को उड़ा देना चाहते हैं-
बिहसि लखनु बोले ‘मृदु बानी । अहो मुनीसु महाभट मानी ।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू ॥
वैसे वीर अपनी वीरता युद्ध में कुछ करके दिखाते हैं। वे अपने मुख से कुछ नहीं कहते । युद्ध में शत्रु को सामने पाकर कायर ही अपने प्रताप का बखान करते हैं-
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु ।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ॥
इस प्रकार तर्क-कुतर्क – व्यंग्य इस प्रसंग में स्थान-स्थान पर हैं, जो इसके सौन्दर्य को और अधिक बढ़ा देते हैं।
प्रश्न 10– निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचानकर लिखिए-
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही ।
(ख) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा ।
बार बार मोहि लागि बोलावा ।।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु ।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु ।।
उत्तर-
(क) अनुप्रास अलंकार ।
(ख) उपमा अलंकार ।
(ग) उत्प्रेक्षा अलंकार ।
(घ) उपमा, रूपक अलंकार ।
6. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – अपनी पाठ्यपुस्तक के राम-लक्ष्मण – परशुराम संवाद के आधार पर महाकवि तुलसीदास की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – तुलसी की भाषा-शैली-भाषा- तुलसी ने ब्रज एवं अवधी दोनों ही भाषाओं में रचनाएँ कीं। उनका महाकाव्य ‘श्रीरामचरितमानस’ अवधी भाषा में लिखा गया है। ‘विनयपत्रिका’, ‘गीतावली’ और ‘कवितावली’ में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा के प्रभाव में विशेष वृद्धि हुई है। हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित अंश ‘राम-लक्ष्मण – परशुराम संवाद’ ‘श्रीरामचरितमानस’ से लिया गया है; अतः इसकी भाषा अवधी है। इसमें ‘मुँह सँभालकर बोलना’, ‘फूँक से पहाड़ उड़ाना, ‘कुम्हड़बतिया’ आदि मुहावरों का सुन्दर प्रयोग हुआ है-
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार ।
× × ×
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फूँकि पहारू ॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं । जे तरजनी देखि मरि जाहीं ॥
शैली – तुलसी ने अपने समय में प्रचलित सभी काव्य- शैलियों को अपनाया है। ‘श्रीरामचरितमानस’ में प्रबन्ध शैली, ‘विनयपत्रिका’ में मुक्तक शैली ‘ तथा ‘दोहावली’ में कबीर के समान प्रयुक्त की गई साखी शैली स्पष्ट देखी जा सकती है । यत्र-तत्र अन्य शैलियों का प्रयोग भी किया गया है। प्रस्तुत ‘राम-लक्ष्मण – परशुराम संवाद’ में महाकवि तुलसीदास ने अर्थ की दृष्टि से प्रबन्ध शैली और रचना की दृष्टि से चौपाई – दोहा, शैली का प्रयोग किया है।
