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UK Board 10 Class Hindi Chapter 3 – देव (काव्य-खण्ड)

UK Board 10 Class Hindi Chapter 3 – देव (काव्य-खण्ड)

UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 3 देव (काव्य-खण्ड)

1. कवि-परिचय
प्रश्न – देव का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए-
जीवन-परिचय, कृतियाँ, शैली ।
उत्तर – जीवन – परिचय – कवि देव का वास्तविक नाम देवदत्त द्विवेदी था, किन्तु इन्होंने अपनी रचनाओं में अनेक स्थलों पर ‘देव’ शब्द का प्रयोग किया है, फलतः इनका उपनाम ही देव पड़ गया। महाकवि देव का जन्म इटावा (उ०प्र०) में सन् 1673 ई० में हुआ था । रीतियुगीन कवियों के समय की परिस्थितियाँ कुछ ऐसी थीं कि उस युग का प्रत्येक बड़ा कवि किसी-न-किसी रूप में राज्याश्रय पर निर्भर रहता था। देव भी औरंगजेब के पुत्र आजमशाह के दरबार में रहे। वे अधिक समय तक वहाँ न रुक सके। तदन्तर देव चर्खी दादरी के राजा सीताराम के भतीजे भवानीदत्त वैश्य की शरण में पहुँचे। यहाँ भी उनका मन अधिक दिनों तक न रमा। देव को सबसे अधिक सन्तोष और सम्मान उनकी कविता के गुणग्राही आश्रयदाता राजा भोगीलाल से प्राप्त हुआ। उन्होंने देव की कविता पर मुग्ध होकर लाखों रुपये की सम्पत्ति दान दी। देव अपने अन्तिम समय तक अनेक राजाओं के आश्रय में रहे। 94 वर्ष की आयु में सन् 1767 ई० देव का निधन हो गया।
कृतियाँ- देव की कृतियों की संख्या 52 से लेकर 72 तक मानी जाती है। इनके द्वारा रचित प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) भावविलास – ‘भावविलास’ कवि देव का सर्वप्रथम ग्रन्थ है। इसकी रचना संवत् 1746 में की गई थी। यह विशुद्ध रूप से एक रीति ग्रन्थ है। ‘भावविलास’ में कवि ने श्रृंगार रस, नायिका – भेद तथा अलंकारों का वर्णन किया है।
(ii) अष्टयाम – ‘अष्टयाम’ में देव ने नायक-नायिका के आठों पहर रतिविलास का वर्णन किया है।
(iii) भवानीविलास – यह भी एक श्रृंगारपरक रचना है। इसमें कवि ने रस और नायिका भेद का विवेचन किया है। ‘भवानीविलास’ में कुल आठ विलास हैं।
(iv) रसविलास – ‘रसविलास’ की रचना संवत् 1783 में की गई। ‘रसविलास’ का वर्ण्य विषय केवल नायिका – भेद ही है। कवि ने नायिका – भेद के वर्णन में मौलिकता का परिचय दिया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में कवि ने जाति, कर्म, गुण, देश, वयक्रम, प्रकृति आदि विभिन्न आधारों पर नायिकाभेदों का विवेचन किया है।
शैली– महाकवि देव ने अपनी रचनाओं में सरल और परिमार्जित शैली का प्रयोग किया है। इन्होंने कवित्त और सवैया छन्दों के माध्यम से काव्य को अभिव्यक्ति दी है।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
सवैया
(1) पाँयनि नूपुर …………. ‘देव’ सहाई॥
शब्दार्थ- पाँयनि = पाँवों में। मंजु = मधुर, सुन्दर । कटि = कमर । किंकिनि = करधनी, कमर में पहने जानेवाला एक आभूषण । लसै = सुशोभित। पट पीत = पीले वस्त्र । हुलसै = आनन्दित । किरीट = मुकुट । दृग = नेत्र, आँख । मुखचन्द = मुखरूपी चन्द्रमा । जुन्हाई = चन्द्रिका |
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रसंग लिखिए।
(ग) इस पद का भावार्थ लिखिए।
(घ) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए ।
(ङ) इस पद में श्रीकृष्ण की किस अवस्था का वर्णन किया गया है?
(च) कवि ने श्रीकृष्ण के नेत्र व मुसकान कैसे बताए हैं?
(छ) कवि ने श्रीकृष्ण के किस रूप का वर्णन किया है?
(ज) श्रीकृष्ण की वेशभूषा में क्या-क्या उल्लेख है?
उत्तर—
(क) कवि-महाकवि देव । कविता का नाम – सवैया (पाँयनि नूपुर ) ।
(ख) प्रसंग – प्रस्तुत सवैया रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि देव द्वारा रचित है। इसमें कवि ने बाल श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य, वेशभूषा आदि का चित्रण करते हुए अपनी भक्तिभावना व्यक्त की है। प्रस्तुत छन्द में कवि की भक्तिभावना और सौन्दर्य चित्रण का समन्वित रूप देखा जा सकता है।
(ग) भावार्थ – जिनके चरणों में बँधे हुए नूपुर मधुर ध्वनि के साथ बजते हैं और कमर में शोभित करधनी के छोटे-छोटे घुंघरुओं की ध्वनि भी अत्यन्त आकर्षक और मधुर है। जिनके श्यामवर्णी शरीर पर पीताम्बर शोभा देता है और हृदय पर पड़ी हुई वनमाला अपने खिले हुए पुष्पों तथा विविध रंगों के कारण बहुत सुहावनी है, जो देखनेवाले को प्रसन्नता प्रदान करती है । मस्तक पर मोरमुकुट पहने हुए श्रीकृष्ण के नेत्र बड़े सुघड़, सुन्दर और चंचल हैं। उनके मुख पर छाई हुई मधुर मुसकान इस प्रकार शोभा देती है जैसे चाँदनी चारों ओर शीतलता तथा प्रसन्नता फैलाती है। इस प्रकार श्रीकृष्ण, जो संसाररूपी मन्दिर में अपनी सहज सुन्दरता के कारण दीपक के समान हैं, जो ब्रज के सर्वश्रेष्ठ नायक हैं, वे कवि देव के सहायक हों, उनकी जय हो ।
(घ) काव्य-सौन्दर्य – ( 1 ) रूपसौन्दर्य का व्यापक चित्रण किया गया है। (2) श्रीकृष्ण के सौन्दर्य को अलंकृत रूप देने में कवि पूर्ण सफल है। (3) अलंकार — अनुप्रास, रूपक। (4) रस — श्रृंगार। (5) छन्द — सवैया ।
(ङ) इस पद में श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था का वर्णन किया गया है।
(च) श्रीकृष्ण के नेत्र बड़े सुन्दर, सुघड़ और चंचल हैं। उनके मुख पर छाई हुई मधुर मुसकान इस प्रकार शोभा देती है जैसे चाँदनी चारों ओर शीतलता तथा प्रसन्नता का प्रसार करती है।
(छ) अन्य रीतिकालीन कवियों के समान ही देव ने श्रीकृष्ण के सगुण साकार रूप का वर्णन किया है।
(ज) श्रीकृष्ण के सहज सौन्दर्य को तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप अलंकृत रूप देने में कवि को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। श्रीकृष्ण की वेशभूषा में नूपुर, करधनी, पीताम्बर, वनमाला, मोरमुकुट आदि उसके अभिन्न अंग हैं। कवि ने उन सबका केवल नामोल्लेख ही नहीं किया, वरन् सबके सौन्दर्य, ध्वनि आदि को भी साकार कर दिया है।
कवित्त
(2) डार द्रुम ………….. चटकारी दै॥
शब्दार्थ — डार = टहनी । द्रुम = पेड़। पलना = झूला | पल्लव = कोंपल, पत्ता । सुमन झिंगूला = फूलों का झबला, ढीला-ढाला वस्त्र। केकी-कीर = मोर- तोता। बतरावैं = बातें करते हैं। हुलसावै = बातों की मिठास । करतारी = ताली । पराग = सुगन्धि | कंजकली = कमल की सुन्दर कली । मदन = कामदेव । महीप = राजा। चटकारी = चुटकी बजाकर ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रसंग लिखिए।
(ग) इस पद का भावार्थ लिखिए।
(घ) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(ङ) कवि के अनुसार वसन्त किसका पुत्र है ?
(च) इस पद की भाषा कैसी है?
उत्तर-
(क) कवि— महाकवि देव । कविता का नाम – कवित्त (डार द्रुम पलना ) ।
(ख) प्रस्तुत पद कविवर देव द्वारा रचित है। इसमें कवि ने वसन्त के आगमन का अत्यन्त आकर्षक चित्रण किया है। जिस प्रकार से किसी राजा के नन्हें पुत्र को जगाने के लिए सभी प्रकार के सुन्दर उपकरण प्रस्तुत होते हैं। उसी प्रकार वसन्त को जगाने के लिए प्रकृति के विभिन्न अंगों को कवि ने एक नया रूप देकर छन्द में सँजोया है।
(ग) भावार्थ – प्रकृतिरूपी नटी ने वृक्षों की डालियों का झूला बनाकर उस पर नई कोमल कोंपलों का बिछौना बिछाया हुआ है और सुन्दर फूलों के वस्त्र उसके अत्यधिक सुन्दर शरीर की शोभा को और बढ़ाते हैं। कवि कहता है कि वायु उस झूले को झुलाती है। मोर – तोते आदि पक्षी अपने मधुर स्वरों से उसे बहलानेवाले हैं। कोयल अपने हाथों की ताली बजा-बजाकर उसे प्रसन्न करके बहलाने का प्रयास करती है। उस समय कमल की सुन्दर कलीरूपी नायिका सुगन्धित केसर आदि लेकर उस पर न्योछावर करती है, जैसे माता राई, नमक आदि को इसलिए न्योछावर करती है, ताकि उसके बच्चे को किसी की नजर न लगे। इसी प्रकार राजा कामदेव के पुत्र वसन्त को प्रात: काल गुलाब चिटककर, चुटकी बजाकर जगाने का प्रयास करता है।
(घ) काव्य-सौन्दर्य – (1) कवि के प्रकृति सम्बन्धी छन्दों में यह छन्द अपनी चित्रात्मकता, सुन्दरता, भावप्रवणता की दृष्टि से विशेष महत्त्व रखता है। (2) कंजकली को नायिका कहकर कवि ने मातृभाव का प्रतिपादन किया है। (3) अलंकार – सांगरूपक, अनुप्रास। (4) रस- श्रृंगार । (5) भाषा – ब्रजभाषा । (6) छन्द – कवित्त |
(ङ) महाकवि देव के अनुसार वसन्त कामदेव का पुत्र, है ।
(च) प्रस्तुत छन्द में ब्रजभाषा के सहज सौन्दर्य को उसके श्रेष्ठतम रूप में देखा जा सकता है। कोमलता, सरसता तथा प्रवाह आदि की दृष्टि से इसकी भाषा आदर्श कही जा सकती है। इस कवित्त छन्द में प्रसाद गुण की सरसता दिखाई देती है।
(3) फटिक सिलानि ………… लगत चंद ॥
शब्दार्थ- फटिक सिलानि = स्फटिक शिलाओं से। सुधा = अमृत, शीतल स्वच्छ या सुन्दर । दधि = दही । उदधि = सागर । उमगे = उमड़ना। अमन्द = जो कम न हो। भीति = दीवार । फेन = झांग । फरसबन्द = फर्श पर । तरुनि = युवतियाँ। ठाढ़ी = खड़ी। मल्लिका = बेला की जाति का एक सफेद पुष्प। मकरन्द = पुष्पों का रस। आरसी = दर्पण। अम्बर = आकाश । चन्द = चन्द्रमा ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) इस पद का प्रसंग लिखिए।
(ग) इस पद का भावार्थ लिखिए।
(घ) इस पद का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(ङ) कवि के अनुसार भवन कैसा है?
(च) इस पद की भाषा कैसी है?
उत्तर –
(क) कवि – महाकवि देव । कविता का नाम – कवित्त (फटिक सिलानि) ।
(ख) प्रसंग – प्रस्तुत छन्द में देव ने स्फटिक शिलाओं से तैयार भवन में हमउम्र सखियों के साथ खड़ी तरुणी राधा के रूप-सौन्दर्य का वर्णन किया है।
(ग) भावार्थ – राधाजी स्फटिक शिलाओं से बने हुए अमृत के समान स्वच्छ और सुन्दर मन्दिर में खड़ी हैं। यह भवन दधि सागर से भी और स्वच्छता में तनिक भी कम नहीं है, बल्कि उससे कहीं शुभ्रता ज्यादा ही शुभ्रता और स्वच्छता इस मन्दिर में उमड़ पड़ी है। देव कवि कहते हैं कि बाहर से भीतर तक इस भवन में कोई दीवार नहीं दिखाई देती। आँगन के फर्श पर सभी ओर दूध के समान झाग फैला हुआ है अर्थात् आँगन अत्यन्त स्वच्छ और शुभ्र है। ऐसे शुभ्र भवन- खड़ी राधा की तरुणी सखियाँ ऐसी लगती हैं, मानो आकाश में तारिकाएँ जगमगा रही हों। उनके शरीर सफेद मोतियों की चमक से युक्त हैं और मल्लिका के अंगराग से सुवासित हैं अथवा उनका यौवन मल्लिका के मकरन्द के समान मधुर, सरस और मादक है। भवनों के फर्श में राधा की सखियों का प्रतिबिम्ब ऐसा सुन्दर लग रहा है, मानो दर्पण में आकाश का प्रतिबिम्ब पड़कर चाँदनी की चमक को और अधिक मोहक बना रहा है। इसी के साथ राधा की मणिमय फर्श में पड़ती परछाई ऐसी लग रही है, मानो दर्पण में आकाश से चन्द्रमा उतर आया हो । आशय यही है कि चन्द्रमा राधा के प्रतिबिम्ब के जैसा सुन्दर लग रहा है।
(घ) काव्य-सौन्दर्य – (1) यहाँ राधा और उनकी सखियों के अनुपम सौन्दर्य का वर्णन हुआ है। (2) अलंकार – उपमा, व्यतिरेक और अनुप्रास अलंकार । (3) रस – श्रृंगार रस। (4) भाषा — ब्रजभाषा । (5) माधुर्य गुण।
(ङ) भवन शुभ्र और स्वच्छ है। उसका फर्श मणिमय है, जिस कारण उसकी छवि दर्पण जैसी है।
(च) इस पद की भाषा सरल एवं सहज समझ में आनेवाली ब्रजभाषा है।
3. कविता के सन्देश / जीवन-मूल्यों तथा सौन्दर्य सराहना पर लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – प्रथम पद में कवि ने किसकी जय-जयकार की है?
उत्तर – प्रथम पद में कवि ने श्रीकृष्ण के रूप-सौन्दर्य का वर्णन करते हुए उन्हीं की जय-जयकार की है।
प्रश्न 2 – वसन्त की शोभा कौन बढ़ा रहा है?
उत्तर – वृक्षों की डालियों का झूला बनाकर उस पर नई कोमल कोंपलों का बिछौना बिछाया हुआ है और सुन्दर फूलों के वस्त्र वसन्त के सुन्दर शरीर की शोभा को और बढ़ा रहे हैं। अर्थात् वृक्षों के नए कोमल पत्ते, खिलते फूल, चटकती कलियाँ, केका ध्वनि करते मोर, कूकती कोयल, महकती सुगन्ध और चटकती गुलाब की कलियाँ वसन्त की शोभा को बढ़ा रही हैं।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – पठित पदों के आधार पर देव की भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर— देव की काव्य- रचनाएँ ब्रजभाषा में मिलती हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि “देव की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है।” कवि देव संस्कृत के महान् विद्वान् होने के साथ-साथ विभिन्न शास्त्रों के भी पूर्ण ज्ञाता थे। इस कारण उनकी भाषा में स्वभावतः संस्कृत के अनेक तत्सम शब्दों का प्रयोग मिलता है। देव की भाषा की एक अन्य विशेषता यह है कि उन्होंने तुक के आग्रह और यमक, अनुप्रास आदि अलंकारों के प्रयोग के मोह के कारण शब्दों को अत्यधिक तोड़-मरोड़ दिया है। व्याकरण के नियमों का भी कहीं-कहीं उल्लंघन हुआ है। कवि की काव्य-भाषा में एक विशेष प्रकार का माधुर्य और सहजता भरी हुई है।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है। और उन्हें संसाररूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर – कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। कृष्णजी बहुत सुन्दर दिखाई दे रहे हैं। इसलिए कवि ने उन्हें संसाररूपी मन्दिर में सहज सुन्दरता के कारण दीपक के समान कहा है।
प्रश्न 2 – पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए, जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
उत्तर – पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई । – ( अनुप्रास)
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचन्द  जुन्हाई । – (रूपक)
प्रश्न 3 – निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई ।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई ॥
उत्तर – काव्य-सौन्दर्य – प्रस्तुत पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार को प्रयोग द्रष्टव्य है। ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। श्रृंगार रस है । नाद – सौन्दर्य अथवा ध्वनि-सौन्दर्य के लिए कवि ने जिन शब्दों का चयन और प्रयोग किया है, उनसे कवि का काव्य- कौशल अपनी श्रेष्ठता प्रकट करता है।
प्रश्न 4- दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बालरूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर – परम्परागत वसन्त-वर्णन और वसन्त के बालरूप वर्णन में निम्नलिखित भिन्नताएँ हैं—
(1) परम्परागत वसन्त वर्णन में वसन्त ऋतु का मानवीकरण नहीं किया गया है, जबकि ऋतुराज वसन्त के बालरूप वर्णन में वसन्त का मानवीकरण किया गया है।
(2) परम्परागत वर्णन में प्रकृति का वास्तविक वर्णन होता है, यहाँ कवि ने प्रकृति को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है। उसने यहाँ प्रकृति को बालक वसन्त को पालना झुलाती स्त्री के रूपक के रूप में प्रस्तुत किया है।
(3) परम्परागत वर्णन में वसन्त को कामदेव का बाण बताया जाता है, जबकि यहाँ वसन्त को कामदेव का पुत्र बताया गया है।
प्रश्न 5 – प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै – इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर’ शीर्षक में क्रम (2) देखें।
प्रश्न 6 – चाँदनी रात की सुन्दरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है ?
उत्तर – चाँदनी रात की सुन्दरता को कवि ने सुन्दर भवन, मोतियों की चमक, दर्पण में पड़े प्रतिबिम्ब के रूप में देखा है।
प्रश्न 7 – ‘ प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ – इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इनमें कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – कवि के अनुसार आकाश में शुभ्र चाँदनी बिखेर रहा चन्द्रमा राधा की परछाई जैसा दिखाई देता है। यहाँ उपमा अलंकार है।
प्रश्न 8 – तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर – कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है-
(1) स्फटिक शिलाओं से बना हुआ मन्दिर,
(2) दूध का-सा झाग,
(3) आकाश में जगमगाती तारिकाएँ,
(4) मोतियों की कान्ति,
(5) राधा की परछाईं ।
प्रश्न 9 – पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – साहित्यिक अवदान एवं ‘रचनात्मक प्रश्नोत्तर’ के प्रश्न 1 का उत्तर देखें।

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