UK Board 10 Class Hindi Chapter 4 – जयशंकर प्रसाद (काव्य-खण्ड)
UK Board 10 Class Hindi Chapter 4 – जयशंकर प्रसाद (काव्य-खण्ड)
UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 4 जयशंकर प्रसाद (काव्य-खण्ड)
1. कवि-परिचय
प्रश्न – जयशंकरप्रसाद का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए—
जीवन परिचय, कृतियाँ, शैली |
उत्तर – जीवन – परिचय – जयशंकरप्रसाद का जन्म काशी के एक सम्पन्न् वैश्य-परिवार में सन् 1889 ई० में हुआ था। उनके बाल्यकाल में ही उनके पिता तथा बड़े भाई का स्वर्गवास हो गया। परिणामत; लाड़-प्यार से पले प्रसादजी को अल्पावस्था में ही घर का सारा भार वहन करना पड़ा। उन्होंने स्कूली शिक्षा छोड़कर घर पर ही अंग्रेजी, हिन्दी, बाँग्ला तथा संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। अपने पैतृक कार्य को करते हुए भी उन्होंने अपने भीतर काव्य – प्रेरणा को जीवित रखा। इनका मन अवसर पाते ही भाव- जगत् के पुष्प चुनने लगता था, जिन्हें वे दुकान की बही के पन्नों पर सँजो दिया करते थे।
उनका जीवन बहुत सरल था। सभा सम्मेलनों की भीड़ से वे दूर ही रहा करते थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी और शिव के उपासक थे । ‘कामायनी’ पर उनको हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्रदान किया था। अत्यधिक श्रम तथा जीवन के अन्तिम दिनों में राजयक्ष्मा से पीड़ित रहने के कारण 14 नवम्बर, 1937 ई० को 48 वर्ष की अल्पायु में ही प्रसादजी का स्वर्गवास हो गया।
कृतियाँ — प्रसादजी बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। उन्होंने कुल 27 कृतियों की रचना की, जिनमें से प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
(1) कामायनी – यह महाकाव्य छायावादी काव्य का कीर्तिस्तम्भ है। इसमें मनु और श्रद्धा के माध्यम से मानव को हृदय (श्रद्धा) और बुद्धि (इड़ा) के समन्वय का सन्देश दिया गया है।
(2) चित्राधार — यह प्रसादजी का ब्रजभाषा में रचित काव्य-संग्रह है।
( 3 ) लहर – इसमें प्रसादजी की भावात्मक कविताएँ संगृहीत हैं। (4) झरना – यह प्रसादजी की छायावादी कविताओं का संग्रह है। इस संग्रह में सौन्दर्य और प्रेम की अनुभूतियों का मनोहारी वर्णन किया गया है।
प्रसादजी ने काव्य के अतिरिक्त अन्य विधाओं में भी साहित्य-रचना की है। उनकी अन्य रचनाएँ इस प्रकार हैं-
(1) नाटक – नाटककार के रूप में उन्होंने ‘चन्द्रगुप्त’, ‘स्कन्दगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘कामना’, ‘एक घूँट’, ‘विशाख’, ‘राज्यश्री’, ‘कल्याणी’, ‘अजातशत्रु’ तथा ‘प्रायश्चित्त’ नाटकों की रचना की है।
(2) उपन्यास — ‘कंकाल’, ‘तितली’ तथा ‘इरावती’ (अपूर्ण) प्रसिद्ध उपन्यास हैं।
(3) कहानी-संग्रह — प्रसादजी उत्कृष्ट कहानीकार थे। उनकी कहानियों में भारत का अतीत साकार हो उठता है। ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इन्द्रजाल’ इनके प्रसिद्ध कहानी-संग्रह हैं।
(4) निबन्ध – काव्य और कला ।
वास्तव में प्रसादजी की रचनाएँ हिन्दी – साहित्य की गौरवनिधि हैं।
शैली – प्रसादजी की भाषा पूर्णत: साहित्यिक, परिमार्जित एवं परिष्कृत है। भाषा में ओज, माधुर्य एवं प्रवाह सर्वत्र दर्शनीय है। उनके काव्य में सुगठित शब्द – योजना दृष्टिगोचर होती है। इनका वाक्य – विन्यास तथा शब्द- चयन अद्वितीय है। अपने सूक्ष्म भावों को व्यक्त करने के लिए प्रसादजी ने लक्षणा और व्यंजना का आश्रय लिया है तथा प्रतीकात्मक शब्दावली को भी अपनाया है।
प्रसादजी की शैली काव्यात्मक चमत्कारों से परिपूर्ण है। वे छोटे-छोटे वाक्यों में भी गम्भीर भाव भरने में दक्ष थे। संगीतात्मकता एवं लय पर आधारित उनकी शैली अत्यन्त सरस एवं मधुर है। उनके काव्य में जहाँ दार्शनिक विषयों की अभिव्यक्ति हुई है, वहाँ उनकी – शैली बहुत गम्भीर हो गई है।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
आत्मकथ्य
(1) मधुप गुन-गुना कर …………. गागर रीती ।
शब्दार्थ – मधुप मनरूपी अँवरा । अनन्त नीलिमा अन्तहीन विस्तार | असंख्य अनगिनत । व्यंग्य-मलिन खराब ढंग से निन्दा करना। गागर रीती ऐसा मन जिसमें कोई विचार नहीं, खाली घड़ा।
प्रश्न-
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) इन पंक्तियों का विषय क्या है?
(ङ) कवि ने दुर्बलता किसे कहा है?
(च) ‘अपना व्यंग्य-मलिन उपहास’ कहने का कवि का क्या आशय है?
(छ) कवि ने ‘गागर रीती’ के माध्यम से क्या कहना चाहा है?
(ज) मुरझाकर गिर रही पत्तियों से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-
(क) कवि – जयशंकरप्रसाद |
कविता का नाम आत्मकथ्य |
(ख) भावार्थ – कवि जयशंकरप्रसाद की पंक्तियाँ ‘आत्मकथ्य’ शीर्षक नामक कविता से अवतरित है। प्रेमचन्दजी के सम्पादन में ‘हंस’ (पत्रिका) का एक आत्मकथा विशेषांक निकलना तय हुआ। प्रसादजी के मित्रों ने आग्रह किया कि वे भी आत्मकथा लिखें। प्रसादजी इससे सहमत नहीं थे। इसी असहमति के तर्क से उत्पन्न हुई कविता है – आत्मकथ्य।
कवि कहता है कि मनरूपी भँवरा गुनगुन करता हुआ न जाने कौन-सी कहानी मुझसे कहता रहता है। मैं जब भी अपने विगत जीवन पर दृष्टिपात करता हूँ तो मुझे अपने जीवनरूपी वृक्ष से स्मृतियों की मुरझायी पत्तियाँ गिरती प्रतीत होती है। अर्थात् मुझे विगत जीवन की दुःख और निराशा से परिपूर्ण यादें पुनः ताजा हो आती हैं। मेरे गम्भीर हृदयरूपी स्वच्छ और नीले आकाश का विस्तार अनन्त है, जिसमें मेरे अनगिनत परिचितों- अपरिचितों की जीवन-गाथाएँ आत्मकथ्य के रूप में अंकित हैं। जब मैं इन आत्मकथ्यों का मनन करता हूँ तो ये सब मुझे मुँह चिढ़ाते, उलाहना देते प्रतीत होते हैं, मानो वे मुझसे कहते हैं कि यह सब जो अप्रिय घटित हुआ है उसके लिए तुम्हीं उत्तरदायी हो। इस प्रकार आत्मकथ्यों को लिखना स्वयं पर हँसने जैसा है और मुझमें स्वयं पर हँसने का साहस नहीं है। फिर अपनी दुर्बलताओं को दूसरों के सम्मुख प्रकट करने से किसी का कोई भला नहीं हो सकता; क्योंकि लोग उनको जानकर उनका लाभ उठाना चाहते हैं, वे हम पर हँसते हैं। इन सब बातों को भली-भाँति जानते हुए भी तुम मुझसे यही चाहते हो कि मैं आत्मकथ्य के रूप में अपनी दुर्बलताओं का उद्घाटन सबके सम्मुख करूँ। मेरी जीवनरूपी गागर बिल्कुल खाली है, इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जो उल्लेखनीय हो । यह सुनकर और देखकर तुम्हें भले ही सुख मिले कि मेरे अतीत-जीवन में उपलब्धि के नाम पर कुछ भी नहीं है, किन्तु मुझे इससे अपार दुःख होगा। इसीलिए मैं आत्मकथ्य नहीं लिख सकता।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) छायावादी शिल्प का प्रभाव इन पंक्तियों पर सीधा पड़ा है। (2) कवि की वेदना द्रष्टव्य है। वेदनाविवृत्ति की स्थिति छायावादी शैली की महत्वपूर्ण विशेषता है। (3) भाषा-परिष्कृत, परिमार्जित, प्रसाद गुण-समन्वित है। (4) अलंकार – ‘मधुप गुन-गुनाकर’ में रूपक, ‘सुनकर सुख पाओगे’ में अनुप्रास ।
(घ) इन पंक्तियों का मुख्य विषय कवि द्वारा जीवन के यथार्थ एवं अभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति है।
(ङ) कवि ने अपनी असफलताओं और हताशा निराशा को अपनी दुर्बलता कहा है।
(च) ‘अपना व्यंग्य-मलिन उपहास’ कहने का कवि का आशय ‘स्वयं की भूलों पर हँसना और दूसरों के व्यंग्य का पात्र बनने’ से है।
(छ) कवि मे ‘रीती गागर’ के माध्यम से कहना चाहा है कि उसके जीवन में ऐसा कुछ नहीं है जिसका उल्लेख वह आत्मकथ्य के रूप में करे । अर्थात् सफलता और उपलब्धियों के नाम पर उसकी जीवन-गागर बिल्कुल रीती (खाली) है।
(ज) मुरझाकर गिर रही पत्तियों के द्वारा कवि कहना चाहता है। कि इस संसाररूपी वृक्ष की आशारूपी अनेक पत्तियाँ असमय ही विभिन्न झंझावातों के कारण गिर जाती हैं, जिस कारण इसका सौन्दर्य पूर्ण नहीं हो पाता है। मैं स्वयं भी इसी वृक्ष की पत्ती हूँ और पता नहीं कब टूटकर गिर जाऊँ। जब मेरे जैसी दूसरी असंख्य पत्तियों की कथा नहीं लिखी गई, तब मुझे अपनी कथा लिखना उचित प्रतीत नहीं हो रहा।
(2) किंतु कहीं ………… भाग गया।
शब्दार्थ – प्रबंचना = धोखा । गाथा = कहानी। मुसक्या कर = मुसकराकर ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) कवि आत्मकथ्य लिखने में असमर्थता क्यों अनुभव कर रहा था?
उत्तर-
(क) कवि – जयशंकरप्रसाद । कविता का नाम- आत्मकथ्य |
(ख) भावार्थ – कवि कहता है कि मेरी मनरूपी गागर, भावों से खाली पड़ी है, रिक्त है। कहीं तुम्हीं ने उसे खाली न किया हो? तुम स्वयं को समझो। तुमने मेरे विचारोंरूपी रस को लेकर अपनी गागर भर ली हो, अर्थात् अपने विचारों की समृद्धि कर ली हो । यह कैसी विडम्बना है कि मेरे पास विचार नहीं हैं जिनसे मैं अपना आत्मकथ्य लिख सकूँ। हे मेरे सरल मन! मैं आत्मकथ्य रचकर किस प्रकार तुम्हारी हँसी उड़ा सकता हूँ? मैं अपने जीवन की भूलें या गलतियाँ और धोखे किस प्रकार औरों को दिखला सकता हूँ। अर्थात् मेरा जीवन तो गलतियों और धोखों से भरा हुआ है, उसका किस प्रकार अपनी आत्मकथा में उल्लेख कर दूँ?
मेरे जीवन में कुछ अच्छे दिन भी आए थे, मैं उनकी उज्ज्वल गाथा भी किस प्रकार कह सकता हूँ? कवि प्रसाद ने यहाँ उज्ज्वल दिनों की मधुर चाँदनी रातों से तुलना की है। कवि के अनुसार जीवन में खिलखिलाकर हँसते हुए की गई बातों की गाथा किस प्रकार कह जा सकती है।
कवि कहता है कि मैंने अपने जीवन में सुख का जो स्वप्न देखा से ही प्रस्त रहा है। सुखी जीवन का स्वप्न तो मेरे पास आते-आते, मेरा था वह मुझे प्राप्त ही नहीं हुआ; अर्थात् मेरा जीवन तो सर्वथा अभावों आलिंगन करते-करते मुझसे दूर हो गया।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) ‘स्वप्न में आलिंगन’ – सुखद क्षणों की स्मृति का प्रतीक है। (2) आत्मकथ्य न कहने की गहरी पीड़ा व्यंजित है। (3) भाषा-परिष्कृत, परिमार्जित, प्रसाद गुण समन्वित है। (4) अलंकार – ‘आलिंगन में आते-आते’ – रूपकातिशयोक्ति, ‘मधुर चाँदनी रातों में’ – रूपक । (5) छायावादी वेदना की गूंज है।
(घ) कवि आत्मकथ्य इसलिए नहीं लिखना चाहता था; क्योंकि उसके विचारों की गागर खाली पड़ी थी और वह अपने जीवन की किसी भी उपलब्धि को ऐसा नहीं मानता जिसका उल्लेख वह अपने आत्मकथ्य में कर सके; अतः वह अपने अभावग्रस्त और सुखरहित जीवन का उल्लेख आत्मकथ्य के रूप में नहीं करना चाहता। किसी भी विषय को लिखने के लिए विचार होना अत्यन्त आवश्यक है।
(3) जिसके अरुण-कपोलों …………. मौन व्यथा ।
शब्दार्थ – अरुण कपोल = लाल गाल। अनुरागिनी उषा = प्रेमभरी भोर । स्मृति पाथेय = स्मृतिरूपी सम्बल। पन्था = रास्ता, राह। कन्या = अन्तर्मन, गुदड़ी।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) कवि क्यों थक गया है?
(ङ) किस स्मृति की बात इस कविता में कही गई है?
(च) ‘सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की इस पंक्ति के द्वारा कवि कौन-सी भावना को व्यक्त करना चाहता है?
(छ) कवि को क्या अच्छा नहीं लग रहा?
(ज) कवि की आत्मकथा कैसी है?
उत्तर-
(क) कवि – जयशंकरप्रसाद । कविता का नाम- आत्मकथ्य |
(ख) भावार्थ – प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अपनी प्रिया के सौन्दर्य माध्यम से प्रकृति के सौन्दर्य का चित्रण किया है। कवि ‘अपनी प्रेयसी की यादों में खोया कहता है कि मेरी प्रियतमा ऐसी अनुपम सुन्दरी थी कि उसके लाल गालों की लालिमा से ही ऊषा ने लाली ग्रहण की थी, इसीलिए वह भी मेरी प्रिया के सौभाग्य को प्राप्त कर उसी के समान मधुर और मोहक बन गई थी। आशय यही है कि मेरी प्रियतमा ऊषा से भी अधिक सौन्दर्यमयी और मोहक थी ।
कवि आगे कहता है कि मेरी उसी प्रियतमा की यादें ही मेरी जीवन-यात्रा का सम्बल हैं। उन्हीं के सहारे मेरा जीवन व्यतीत हो रहा है। फिर तुम मेरी आत्मकथा लिखने के बहाने मेरी जीवन गुदड़ी की सीवन उधेड़कर आखिर उसके भीतर क्या देखना चाहते हो। उसमें मेरी प्रियतमा की स्मृतियों के अतिरिक्त और कुछ नहीं है तथा मैं उन स्मृतियों को किसी के साथ बाँटना नहीं चाहता। वहाँ तुम्हें दुःख के अतिरिक्त और कुछ न मिलेगा। मेरे छोटे-से जीवन में अपनी प्रियतमा से सम्बन्धित अनेक बड़ी-बड़ी व्यथा-कथाएँ निहित हैं। अब मैं अपने आत्मकथ्य के रूप में किसी से उनके विषय में क्या कहूँ अर्थात् मैं अपनी उन व्यथा-कथाओं को किसी से नहीं कहना चाहता। इससे अच्छा यह है कि मैं दूसरों की व्यथा-कथाएँ सुनकर उनके दुःख-दर्द को समझँ और अपने विषय में चुप ही रहूँ ।
अन्ततः कवि कहता है कि हे मित्रो! तुम मेरी भोली-भाली साधारण-सी व्यथा-कथा को सुनकर क्या करोगे? मेरी दृष्टि में अभी वह उपयुक्त समय नहीं आया है कि मैं अपनी आत्मकथा लिखूँ । प्रियतमा सम्बन्धी मेरी मौन पीड़ा अभी मेरे हृदय में सोई पड़ी है, उसे फिर से जगाकर मेरे हृदय की पीड़ा को तुम क्यों जमाना चाहते हो ? आशय यही है कि मेरी आत्मकथा में तुम्हें पीड़ा, दुःख और अवसाद के अतिरिक्त अन्य कुछ न मिलेगा, इसीलिए मैं अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहता।
इस प्रकार कवि ने बताया है कि उसके जीवन की कथा एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे महान् और रोचक मानकर लोग वाह-वाह करेंगे। कुल मिलाकर इन पंक्तियों में एक ओर कवि द्वारा यथार्थ की स्वीकृति है तो दूसरी ओर एक महान् कवि की विनम्रता भी ।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) ‘थके पथिक की पन्था’ में गहरी वेदना है। (2) एकाकीपन की गहरी व्यंजना व्यंजित है। (3) भाषा – परिष्कृत एवं परिमार्जित है, जिसमें माधुर्य गुण समाहित है । (4) अलंकार – ‘मेरी मौन व्यथा’ में अनुप्रास, ‘अनुरागिनी उषा’ में मानवीकरण ।
(घ) कवि ने अपनी प्रियतमा की स्मृतियों के साथ सामंजस्य करना सीख लिया है; अतः उसे अब उसकी स्मृतियाँ बहुत अधिक पीड़ा नहीं पहुँचाती । इसी स्थिति को कवि ने थकान की संज्ञा दी है।
(ङ) इस कविता में सुखमय दिनों की स्मृति की बात कवि ने कही है कि अब तो जीवन नीरस-सा हो गया है। सुखमय दिनों की स्मृतियों के सहारे अब जीवन चल रहा है।
(च) ‘सीवन को उधेड़कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की इस पंक्ति के द्वारा कवि अपने मन की इस पीड़ा को व्यक्त कर रहा है कि तुम आत्मकथा के माध्यम से मेरी उस दुर्दशा को सबके सामने क्यों व्यक्त करना चाहते हो, जिसे किसी प्रकार से अपने जीर्ण-शीर्ण वस्त्र से छिपाए हुए हूँ। तुम क्यों मेरे उस पुराने वस्त्र की सीवन उधेड़कर मेरी दीनता का सबके सामने उपहास बनाना चाहते हो ।
(छ) कवि को यह बात अच्छी नहीं लग रही है कि इस संसार में ऐसे अनेक लोग हैं, जिनके जीवन की कथा लिखी जानी चाहिए । उनकी वे कथाएँ निश्चय ही इस संसार का मार्गदर्शन करने में सफल होंगी, किन्तु इस दिशा में कोई सोचता ही नहीं है। ऐसी स्थिति में कवि को अपनी वह कथा लिखना अच्छा नहीं लग रहा हैं, जिसमें कुछ प्रेय है ही नहीं ।
(ज) कवि की आत्मकथा अत्यन्त भोली-भाली है, जिसमें कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसके लिए आत्मकथा लिखी जाए।
3. कविता के सन्देश / जीवन-मूल्यों तथा सौन्दर्य सराहना पर लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1- ‘आत्मकथ्य’ कविता का प्रतिपाद्य विषय क्या है?
उत्तर— ‘आत्मकथ्य’ कविता छायावादी शैली में लिखी हुई है। इस कविता में जयशंकरप्रसाद ने जीवन के यथार्थ एवं अभाव पक्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति की है। छायावादी सूक्ष्मता के अनुरूप ही अपनी प्रियतमा की स्मृतियों के माध्यम से परमब्रह्म परमात्मा के प्रति आत्मा की तड़प को व्यक्त किया है। अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करने के लिए कवि ने ललित, सुन्दर एवं नवीन शब्दों एवं बिम्बों का प्रयोग किया है। इन्हीं शब्दों और चित्रों के सहारे उन्होंने बताया है कि उनके जीवन की कथा एक सामान्य व्यक्ति के जीवन की कथा है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे महान् और रोचक मानकर लोग प्रशंसा करेंगे। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि इस कविता में एक ओर कवि द्वारा यथार्थ की स्वीकृति है तो दूसरी ओर एक महान् कवि की विनम्रता भी ।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – प्रसादजी के काव्य की कलागत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – प्रसादजी को छायावाद का जनक कहा जाता है। उनके काव्य में छायावादी काव्य की सभी विशेषताएँ दिखाई देती हैं, जिनका संक्षिप्त वर्णन हम निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर कर सकते हैं-
(i) संस्कृतनिष्ठ और भावानुकूल भाषा – प्रसादकाव्य की भाषा प्रायः संस्कृतनिष्ठ है। इसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रचुर प्रयोग किया गया है। मधुप, अनन्त, नीलिमा, मलिन, उपहास, प्रवंचना, अरुण-कपोल, स्मृति, पाथेय आदि कुछ ऐसे ही तत्सम शब्द हैं। उनके काव्य में सर्वत्र भावानुकूल सुसंगठित शब्द-योजना दिखाई देती है। ‘आत्मकथ्य’ का उदाहरण देखिए-
तब भी कहते हो – कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती ।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे – यह गागर रीती ।
(ii) अलंकार – विधान प्रसादजी ने पाश्चात्य साहित्य के मानवीकरण, विशेषण- विपर्यय जैसे अलंकारों के साथ परम्परागत अलंकारों का भी प्रयोग किया है; जैसे-
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया मे। – मानवीकरण
मधुप गुन-गुना कर कह जाता – रूपक
तुम सुनकर सुख पाओगे – अनुप्रास
(iii) संगीतमयता – प्रसादजी भावुक कवि हैं। भावावेग के समय उनके कण्ठ से निकलनेवाली कविता पूर्णत: गेय और संगीतात्मक है । पठित कविता ‘आत्मकथ्य’ भी संगीतात्मकता के गुण से समन्वित है।
(iv) लाक्षणिकता छायावादी काव्य में लाक्षणिकता के द्वारा प्रकृति के माध्यम से अव्यक्त सत्ता का वर्णन किया जाता है। जयशंकरप्रसाद छायावाद के प्रणेता के रूप में जाने जाते हैं; अतः उनके काव्य में लाक्षणिकता का समावेश स्वाभाविक रूप में दृष्टिगत होता है: यथा–
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
अन्त में हम कह सकते हैं कि छायावादी कविता की अतिशय काल्पनिकता, सौन्दर्य का सूक्ष्म चित्रण, प्रकृति-प्रेम और शैली की लाक्षणिकता उनकी कविता की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1-कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है?
अथवा कवि जयशंकरप्रसाद ‘आत्मकथ्य’ कविता के माध्यम से आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहते हैं?
उत्तर – कवि के पास आत्मकथा न लिखने के अनेक कारण हैं जिनकी वजह से वह आत्मकथा नहीं लिखना चाहता । कवि कहता हैकि इस संसार में मुझसे भी अधिक योग्य लोग हैं, जिन्हें आत्मकथा लिखनी चाहिए। कवि का मानना है कि उसके जीवन में ऐसा कुछ विशेष नहीं है जिसे आत्मकथा के रूप में लिखा जा सके, जिससे लोग प्रेरणा ले सकें। उसके जीवन में यदि कुछ है तो वह है अनन्त दुःख और सुविस्तृत अवसाद, जिसका वर्णन वह अपनी आत्मकथा में करके अपना उपहास नहीं कराना चाहता। इसी कारण वह अपनी आत्मकथा लिखने से बचना चाहता है। जिन लोगों ने उनकी सरलता का लाभ उठाकर उन्हें ठगा है, उनकी प्रवंचना का वर्णन करने से भी बचना चाहते हैं। इसके अतिरिक्त वे अपने सुखद प्रेम-प्रसंगों को भी दूसरों के साथ नहीं बाँटना चाहते हैं। यदि वे आत्मकथा लिखेंगे तो इनका उल्लेख करने से वे स्वयं को रोक नहीं पाएँगे और ऐसा वे करना नहीं चाहते।
प्रश्न 2 – आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं ‘ ऐसा कवि क्यों कहता है?
उत्तर – आत्मकथा सुनाने के सन्दर्भ में कवि कहता है कि अभी आत्मकथा सुनाने का उपयुक्त समय नहीं है। मेरा जीवन अत्यन्त कष्टमय रहा है। मैं किसी प्रकार अपनी उन पीड़ाओं को थोड़ा भूल पाया हूँ. तुम आत्मकथा सुनाने की बात कहकर उन पीड़ाओं को पुनः जाग्रत करके मुझे क्यों कष्ट प्रदान करना चाहते हो। मेरी उन व्यथा-कथाओं को यदि मौन ही रहने दो तो अच्छा है।
प्रश्न 3-स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर – कवि जीवनरूपी यात्रा में स्वयं को अत्यधिक थका हुआ अनुभव करता है। इसलिए उसके पास स्मृतियों का ही ऐसा सम्बल है, जिसके माध्यम से वह जीवन में आगे का रास्ता तय करेगा। स्मृति को पाथेय बनाने से आशय यहाँ यही है कि जीवन की मधुर स्मृतियाँ व्यक्ति को जीवन की विषम परिस्थितियों में उसका सम्बल और प्रेरणा बनकर उसे अबाध रूप से आगे बढ़ते रहने के लिए उत्साहित करती रहती हैं। ये स्मृतियाँ उसके लिए उसी प्रकार महत्त्वपूर्ण और उपयोगी हैं, जिस प्रकार निरन्तर चलते जाने से पथिक की शक्ति जब क्षीण हो जाती है और उसका शरीर शिथिल होने लगता है, तब पाथेय उसे नवस्फूर्ति और शक्ति प्रदान कर उसकी आगे की यात्रा को पूर्ण कराने में सफल होता है।
प्रश्न 4 – भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
उत्तर- ‘काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर’ शीर्षक का क्रम (2) देखें।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर- ‘काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर’ शीर्षक का क्रम ( 3 ) देखें।
प्रश्न 5 – ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ – कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर- ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ कथन के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि उसके जीवन में सुख के भी दिन आए थे, जो मधुर चाँदनी रातों के समान मधुमय थे। मैं उन्हें किस प्रकार किसी को सुना सकता हूँ; क्योंकि वे क्षण तो नितान्त एकाकी होते हैं, उनकी गाथा नहीं गाई जा सकती है।
प्रश्न 6–’आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरणसहित लिखिए।
उत्तर—‘रचनात्मक प्रश्नोत्तर’ शीर्षक के प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
प्रश्न 7 – कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर – कवि ने लिखा है-
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की । अरे खिल-खिलाकर हँसते होने वाली उन बातों की। मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
6. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – ‘छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ।’
– उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर – उपर्युक्त काव्य पंक्तियों से हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति अपने छोटे-से जीवन में बड़े-बड़े दुःख अथवा विपत्तियाँ झेल चुका होता है। एक-एक दुःख की बड़ी लम्बी कहानी होती है, किन्तु उस दुःख की कथा किसी को बताने अथवा सुनाने का कोई लाभ नहीं होता है। ऐसा करने से वह दुःख कम नहीं होता, अपितु बढ़ता ही है; अतः व्यक्ति को चाहिए कि वह केवल दूसरों की व्यथा-कथाएँ अथवा अपने विषय में लोगों की आलोचना सुनता रहे और स्वयं चुप बना रहे।
