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UK Board 10 Class Hindi Chapter 5 – सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (काव्य-खण्ड)

UK Board 10 Class Hindi Chapter 5 – सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (काव्य-खण्ड)

UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 5 सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (काव्य-खण्ड)

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ( उत्साह, अट नहीं रही है)
1. कवि-परिचय
प्रश्न- सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए-
जीवन परिचय, कृतियाँ, शैली |
उत्तर – जीवन – परिचय – मुक्त छन्द के प्रवर्तक महाकवि निराला का जन्म सन् 1899 ई० में बंगाल के महिषादल जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम पं० रामसहाय त्रिपाठी था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा महिषादल के ही विद्यालय में सम्पन्न हुई । बचपन से ही उनकी कुश्ती, घुड़सवारी और खेलों में अत्यधिक रुचि थी। बालक सूर्यकान्त के सिर से माता-पिता की छाया अल्पायु में ही उठ गई थी।
निरालाजी को बाँग्ला – भाषा और हिन्दी – साहित्य का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी का भी अध्ययन किया था। भारतीय दर्शन में उनकी विशेष रुचि थी ।
निरालाजी का पारिवारिक जीवन अत्यन्त असफल और कष्टमय रहा। एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म देकर उनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गईं। पत्नी के विरह के समय में ही इन का परिचय पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी से हुआ। द्विवेदीजी के सहयोग से उन्होंने ‘समन्वय’ और ‘मतवाला’ का सम्पादन किया। उनकी कविता ‘जुही की कली’ ने काव्य-क्षेत्र में क्रान्ति उत्पन्न कर दी।
निरालाजी को बार-बार आर्थिक कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा। आर्थिक चिन्ताओं के बीच ही उनकी पुत्री सरोज का देहान्त हो गया। इस पर उन्होंने ‘सरोज स्मृति’ नामक कविता लिखी-
दुःख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहें आज जो नहीं कही।
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण, 
कर सकता मैं तेरा तर्पण ॥
दुःख और कष्ट से भरे हुए उनके व्यक्तित्व में स्वाभिमान की मात्रा अत्यधिक थी। वे बहुत स्पष्टवादी भी थे। निरालाजी स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द से बहुत प्रभावित थे। उनकी कविताएँ छायावादी, रहस्यवादी और प्रगतिवादी विचारधाराओं के आधार पर लिखी गईं। सन् 1961 ई० में उनकी मृत्यु हो गई ।
कृतियाँ – निराला बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार थे। कविता के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, निबन्ध, आलोचना और संस्मरण भी लिखे हैं। ‘निराला रचनावली’ के आठ खण्डों में उनका सम्पूर्ण साहित्य प्रकाशित है। उनकी प्रमुख काव्य – रचनाएँ इस प्रकार हैं-
(1) परिमल – इसमें सड़ी-गली मान्यताओं के प्रति तीव्र – विद्रोह तथा निम्नवर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति दिखाई देती है।
(2) गीतिका – इसकी मूलभावना शृंगारिक है। प्रकृति-वर्णन तथा देशप्रेम की भावना का चित्रण भी मिलता है। इसमें
(3) अनामिका – इसमें संगृहीत रचनाएँ निराला की कलात्मक प्रकृति की प्रतीक हैं।
(4) राम की शक्ति – पूजा- इसमें कवि का ओज तथा पौरुष प्रकट हुआ है।
(5) सरोज स्मृति – यह हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ शोक-गीत है।
(6) अन्य कृतियाँ – ‘कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘अपरा’, ‘बेला’, ‘नए पत्ते’, ‘आराधना’ तथा ‘अर्चना’ भी उनकी अनुपम काव्य-रचनाएँ हैं।
निरालाजी की गद्य रचनाएँ इस प्रकार हैं- ‘लिली’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’ और ‘निरुपमा’। ‘अप्सरा,
शैली – निरालाजी ने अपनी रचनाओं में शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ीबोली का प्रयोग किया है। विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग भी उन्होंने अनेक स्थानों पर किया है। भाषा में अनेक स्थलों पर शुद्ध तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है, जिसके फलस्वरूप उनके भावों को सरलता से समझने में कठिनाई होती है। विशेषकर छायावादी रचनाओं में भाषा की क्लिष्टता देखने को मिलती है। इसके विपरीत उनके द्वारा रचित प्रगतिवादी रचनाओं की भाषा अत्यन्त सरल, सरस एवं व्यावहारिक है। भाषा पर निरालाजी का पूर्ण अधिकार था ।
निरालाजी ने अपनी रचनाओं के सृजन हेतु कठिन एवं दुरूह तथा सरल एवं सुबोध दोनों ही शैलियों का प्रयोग किया। छायावाद पर आधारित उनकी रचनाओं में कठिन एवं दुरूह शैली तथा प्रगतिवादी रचनाओं में सरल एवं सुबोध शैली का प्रयोग हुआ है। अपने विलक्षण व्यक्तित्व एवं निराले कवित्व के कारण निरालाजी हिन्दी काव्य-जगत् के सम्राट् माने जाते हैं।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
उत्साह
(1) बादल, गरजो! …………… बादल, गरजो!
शब्दार्थ – गगन = आकाश । धाराधर = बादल । ललित = कोमल और सौन्दर्यपूर्ण । उर में = मन में। वज्र = आकाशीय बिजली का संहारकरूप, कठोर । नूतन = नए |
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए |
(घ) बादल के किस रूप को निराला ने प्रस्तुत किया है?
(ङ) कवि को बादल किसके समान लग रहा है?
(च) बाल-कल्पना से कवि का क्या आशय है?
(छ) नूतन कविता में वज्र छिपाकर कवि क्या करना चाहता है ?
उत्तर-
(क) कवि-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ । कविता का नाम – उत्साह |
(ख) भावार्थ – उत्साह कवि का आह्वान गीत है। कवि बादल को सम्बोधित करते हुए कहता है कि हे बादल ! गरजो। तुम सारे गगन को घेर लो। हे बादल, बालक के समान सुन्दर दिखनेवाले काले घुँघराले बादल, बच्चों की अनन्त कल्पना के कोमल बादल! अपने हृदय में विद्युत् की छवि अंकित करनेवाले बादल, नवजीवन देनेवाले कवि के समान बादल ! अपने अन्दर के विद्युत्रूपी वज्र को छिपाकर नई कविता की रचना कर दो। हे बादल ! गरजो। आशय यही है कि कवि बादल का आह्वान करता हुआ कहता है कि वह अपनी गर्जना से दीन-हीन- शोषित और निरुत्साहित लोगों में उत्साह का संचार कर दे, जिससे फिर कोई उनके शोषण का साहस न कर सके और शोषितवर्ग युग ‘के नव-निर्माण में अपना योगदान दे सके।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) यहाँ कवि ने बादल का सुन्दर और प्रेरणादायी रूप प्रस्तुत किया है। कवि बादल का मानवीकरण करके उसकी गर्जना का वर्णन कर रहा है। (2) भाषा – परिष्कृत एवं तत्समप्रधान है। (3) अलंकार – ‘घेर घेर घोर गगन’ तथा ‘ललित ललित, काले घुँघराले’ में पुनरुक्तिप्रकाश और अनुप्रास अलंकार हैं। (4) बादल का मानवीकरण कर छायावादी शैली को प्रस्तुत किया गया है।
(घ) ‘बादल’ निराला का प्रिय विषय है। कविता में निरालाजी ने बादल को एक ओर पीड़ित, प्यासे जन की आकांक्षा को पूरा करनेवाला तथा दूसरी ओर नई कल्पना और नए अंकुर के लिए वरदान बताया है।
(ङ) कवि को बादल ऐसे सुन्दर बालक के समान लग रहा है, जिसके बाल काले और घुंघराले हैं और जिसके हृदय में सुखद भविष्य की अनन्त कल्पनाएँ भरी हैं।
(च) बाल-कल्पना से कंवि का आशय यह है कि बच्चे सदैव ही प्रगति, उन्नति और उत्साह मिश्रित सुखद भविष्य की कल्पना करने में निपुण होते हैं। वे तो बस कल्पना के पंख लगाकर सारे संसार की सुख-सम्पदा को अपनी बाँहों में भर लेना चाहते हैं। कवि बाल कल्पना का उल्लेख कर यही कहना चाहता है कि दीन-हीन- निराश लोगों के मन में उन्नति और विकास को प्राप्त करने की बच्चों के समान कल्पना जाग्रत हो ।
(छ) कवि चाहता है कि लोगों के मन में श्रेष्ठ कविता के समान कोमल भावनाएँ तो हों, किन्तु यदि उनकी वे कोमल भावनाएँ दूसरे लोगों को उनका शोषण करने के लिए प्रेरित करती हैं तो वहाँ वज्र के समान कठोरता भी विद्यमान होनी चाहिए, जिससे कोई उनकी कोमल-भावनाओं से खेलने का साहस न करे।
(2) विकल विकल ………….. बादल, गरजो! 
शब्दार्थ— विकल = व्याकुल। उन्मन = अनमने से, मन के कहीं एक जगह न लगने की स्थिति । निदाघ = गर्मी। अनन्त = जिसका अन्त न हो । तप्त = गर्म, जलती ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) कवि के अनुसार बादल कैसे थे?
(ङ) बादलों के आने से पूर्व संसार के लोगों की दशा कैसी थी?
(च) कवि बादलों से क्या प्रार्थना करता है?
उत्तर—
(क) कवि—सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’। कविता का नाम- उत्साह |
(ख) भावार्थ- बादलों के छाने से पूर्व की दशा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि ग्रीष्म ऋतु में सभी लोग गर्मी से अत्यधिक व्याकुल हो रहे थे। वे बड़े अनमने से थे। तभी विश्व की गर्मी को दूर करनेवाले, व्याकुल लोगों के मनों को शान्त करनेवाले अनन्त बादल अज्ञात दिशा से आए। कवि प्रार्थना करता हुआ कहता है कि हे बादल। गर्मी के कारण यह धरा (पृथ्वी) तप रही है, तुम इसे जल की वर्षा करके पुनः शीतल कर दो। हे बादल, गरजो।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) ‘विकल विकल, उन्मन थे उन्मन’ को उन्माद और बेचैनी की अवस्था कहा जा सकता है। कवि को गर्मी से व्याकुल संसार का जीवन इसी प्रकार का लगता है। (2) भाषा — परिष्कृत, परिमार्जित है। (3) अलंकार- मानवीकरण, स्पष्ट प्रभाव पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास (4) कवि पर छायावाद का दिखाई देता है।
(घ) कवि के अनुसार बादल अनन्त थे और वे अज्ञात दिशा से आए थे।
(ङ) बादलों के आने से पूर्व संसार के लोगों की दशा गर्मी की तपन से अत्यधिक बेचैनीपूर्ण थी। वर्षा के अभाव में लोग अत्यधिक उदास अर्थात् अनमने थे।
(च) कवि बादलों से प्रार्थना करता है कि खूब गरज- गरजकर घनघोर वर्षा करके अपने जल से पृथ्वी को शीतलता दें, जिससे गर्मी से व्याकुल लोगों के मनों को शान्ति मिल सके।
(3) अट नहीं ………. नहीं रही है।
शब्दार्थ – अटना = समाना, प्रविष्ट होना। आभा= चमक। उर में = गले में | पाट-पाट = जगह-जगह | शोभा श्री = सौन्दर्य से भरपूर । पट नहीं रही है = समा नहीं रही है।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) कविता का मुख्य विषय क्या है?
(ङ) कविता में कवि किसके साँस लेने की बात कर रहा है?
(च) नभ में कौन उड़ना चाहता है?
(छ) पुष्पमाल किसके उर में पड़ी है और उसकी विशेषता कैसी है?
उत्तर-
(क) कवि-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’। कविता का नाम-अट नहीं रही है।
(ख) भावार्थ – कवि फागुन का वर्णन करते हुए कह रहा है कि प्रकृति में फागुन की सुन्दरता समा नहीं रही है, इसीलिए वह प्रकृति के कण-कण से फूट रही है। सब ओर प्रकृति का ऐसा रम्य रूप है कि उसकी शोभा (सुन्दरता) तन में समा नहीं रही है। फागुन महीने अर्थात् वसन्त ऋतु में मानव प्रसन्न दिखाई देता है। कवि कल्पना हुए फागुन को ही सम्बोधित करता हुआ कहता है कि सब ओर खिले पुष्पों से जो मन्द सुगन्ध वातावरण में व्याप्त हो रही है, लगता है कि वह तुम्हारी सुगन्धित साँस है, जिससे यह सृष्टिरूपी सारा घर भर गया है। धरती से लेकर आकाश तक सब ओर तुम्हारा ही सौन्दर्य व्याप्त है, लगता है तुमने मुक्त आकाश में उड़ने के लिए अपने पंख खोल दिए हैं। सब तरफ तुम्हारी ऐसी मोहक छटा फैली है कि एक पल के लिए भी उससे मैं अपनी दृष्टि नहीं हटा पाता हूँ। अर्थात् मेरा मन एकटक दृष्टि से तुम्हें देखने के लिए व्याकुल है। मैं चाहकर भी तुम्हारी ओर से दृष्टि नहीं हटा पाता हूँ। वृक्षों की डालियाँ नूतन पत्तों से लद गई हैं। से ऐसे लद गए हैं, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि तुम्हारे गले में उनका रंग कहीं हरा तो कहीं लाल है। कहीं-कहीं वृक्ष सुगन्धित पुष्पों मादक गन्धवाली फूलों की माला पड़ी हुई है। हे फागुन ! तुम्हारी शोभा इतनी सुन्दर है कि वह सम्पूर्ण पृथ्वी में भी समा नहीं रही है।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) कवि फागुन की मादकता को प्रकट कर रहा है। (2) कविता की लयात्मकता द्रष्टव्य है। (3) अलंकार(5) प्रकृति के मानवीकरण में छायावादी प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर है। अनुप्रास, रूपक और मानवीकरण । (4) भाषा – परिष्कृत परिमार्जित है।
(घ) कविता का मुख्य विषय फागुन मास में व्याप्त वसन्त का प्राकृतिक सौन्दर्य है ।
(ङ) कविता में कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कर दिया है। वह कहता है कि फागुन के इस महीने में वसन्त कहीं शरीर धारण किए खड़ा है और अपनी साँसों को सुवासित करने के लिए वह पान जैसी कोई सुगन्धित वस्तु चबा रहा है, जिस कारण उसके मुख से निकलती सुगन्धित श्वास- वायु से सारा वातावरण महक उठा है।
(च) फागुन में मदमस्त बना देनेवाले वसन्ती वातावरण उल्लासित कवि सहित सम्पूर्ण मानव समाज नभ में उड़ जाना चाहता है।
(छ) वृक्ष का रूप धारण किए वसन्त / फागुन के उर में पुष्पमाल पड़ी है। वह पुष्पमाल सुगन्धित पुष्पों से निर्मित है, जिससे सारा वातावरण सुवासित हो रहा है।
3. कविता के सन्देश/जीवन-मूल्यों तथा सौन्दर्य सराहना पर लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – ‘उत्साह’ कविता में कवि ने बादल के रूपक में क्या सन्देश दिया है?
उत्तर- ‘उत्साह’ आह्वान गीत है, जो बादल को सम्बोधित है। बादल कवि निराला का प्रिय विषय है। कविता में बादल एक तरफ पीड़ित – प्यासे जन की आकांक्षा को पूरा करनेवाला है तो दूसरी ओर वही बादल नई कल्पना और नए अंकुर के पल्लवन के लिए क्रान्ति चेतना को सम्भव करनेवाला भी है। कवि जीवन को व्यापक और समग्र दृष्टि से देखता है। कविता में ललित कल्पना और क्रान्ति चेतना दोनों ही हैं। सामाजिक क्रान्ति या परिवर्तन में साहित्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, निराला इसे ‘नवजीवन’ और ‘नूतन कविता’ के सन्दर्भों में देखते हैं।
प्रश्न 2 – ‘ अट नहीं रही है’ कविता में किसका चित्रण है?
उत्तर- ‘अट नहीं रही है’ कविता फागुन मास में आनेवाली वसन्त ऋतु की मादकता को प्रकट करती है। कवि फागुन में वसन्त के सर्वव्यापक सौन्दर्य को अनेक सन्दर्भों में देखता है। प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण जब व्यक्ति का मन प्रसन्न होता है तो सब ओर उसी का सौन्दर्य और उल्लास दिखाई पड़ता है। सुन्दर शब्दों के चयन एवं लय ने कविता को भी फागुन की ही तरह सुन्दर और ललित बना दिया है।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – निराला की भाषा पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- भाषा के क्षेत्र में निराला का व्यक्तित्व अत्यधिक स्वतन्त्र और स्वच्छन्द है। उन्होंने विभिन्न भाषाओं से शब्द ग्रहण करके अपनी भाषा को विस्तृत एवं विविधतापूर्ण बनाया है। उनके काव्य में एक ओर सरल, सरस, व्यावहारिक भाषा का प्रयोग हुआ है तो दूसरी ओर संस्कृतनिष्ठ, प्रौढ़ एवं परिष्कृत भाषा का प्रयोग भी देखने को मिलता है। उनकी भाषा में निम्नलिखित विशेषताएँ विद्यमान हैं—
सरल, सरस भाषा — निराला के काव्य में अनेक स्थलों पर सरल और सरस भाषा का प्रयोग हुआ है। पाठ्यपुस्तक में दी गई कविताओं में इसी प्रकार की भाषा का प्रयोग किया गया है। ऐसे स्थलों पर उनकी भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों और सरल लाक्षणिक प्रयोगों का स्वाभाविक प्रयोग देखने को मिलता है। ‘उत्साह’ और ‘अट नहीं रही हैं’ शीर्षक कविताओं में भी भाषा की यही सरलता दृष्टिगत है। ‘उत्साह’ की भाषा का यह एक उदाहरण देखिए-
बादल, गरजो! –
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुँघराले,
इसके अतिरिक्त, समासबहुला क्लिष्ट भाषा, संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक भाषा और मिश्रित भाषा का भी प्रयोग निरालाजी ने किया है।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
उत्साह
प्रश्न 1 – कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों? 
उत्तर – बादल की गर्जन में शोषण, अभाव और विवशता के विध्वंस के लिए विप्लव और क्रान्ति की चेतना परिलक्षित होती है। निरालाजी ने इसीलिए बादल के गर्जन को क्रान्ति के बिम्ब के रूप में चयनित करते हुए उससे बरसने के स्थान पर गरजने के लिए कहा है; क्योंकि बरसने अर्थात् रोने से उसके शोषण, अभाव और विवशता का अन्त नहीं होनेवाला है।
प्रश्न 2 – कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ क्यों रखा गया है?
उत्तर- ‘उत्साह’ कविता में ललित – कल्पना और क्रान्ति चेतना दोनों हैं। क्रान्ति – चेतना के लिए उत्साह आवश्यक है। निराशा के भाव से कभी परिवर्तन सम्भव नहीं, केवल उत्साह भाव से यह सम्भव है। इसलिए कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा गया है।
प्रश्न 3 – ‘उत्साह’ कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है? 
अथवा अनेक कवियों ने वर्षा ऋतु और बादल के सौन्दर्य को अपने काव्य का विषय बनाया है, किन्तु ‘निराला’ ने बादल के बिल्कुल भिन्न रूप को अपनी कविता का विषय बनाया है, ‘उत्साह’ कविता आधार पर स्पष्ट कीजिए। के
उत्तर – हिन्दी काव्य में अधिकांश कवियों ने वर्षा और बादल के सौन्दर्य को विषय बनाकर अत्यन्त हृदयहारी कविताएँ की हैं, किसी का मन वर्षा की बूँदों के लयात्मक स्वर और रूप में रमा है तो किसी का मन कारे-कजरारे बादलों के रूप और उनसे झरती फुहारों के सुखद स्पर्श, मयूरों की केका और पपीहे की टेर के साथ नाचा है तो किसी के मन को पृथ्वी की हरी साड़ी ही लुभा गई है, किन्तु निराला का मन वर्षा और बादल के इस सौन्दर्य में नहीं रमा है। उन्हें तो शोषकों के मन को दहलानेवाली बादलों की रोर (गर्जना ) ही लुभाती है। वे चाहते हैं कि नवजीवन की प्रेरणा देनेवाली वर्षा की विद्युत् की छवि और शोषकों का दलन करनेवाला वज्ररूप लोगों के मन में समाकर उन्हें नवजीवन के उदय के लिए प्रेरित करे-
विद्युत्-छबि उर में, कवि नवजीवन वाले !
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो-
बादल गरजो!’
‘निराला’ को बादलों का वही रूप आकर्षित करता है जो तप्त पृथ्वी की तृष्णा को शान्त कर सर्वत्र तृप्ति के साम्राज्य को स्थापित करने में समर्थ है—
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो-
बादल गरजो!
प्रश्न 4- शब्दों का ऐसा प्रयोग, जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद – सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखिए।
उत्तर- घेर- घेर घोर गगन विकल विकल, उन्मन थे उन्मन – नाद – सौन्दर्यवाले शब्द हैं।
अट नहीं रही है
प्रश्न 1 – छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर- ये पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं-
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम,
पर पर कर देते हो,
प्रश्न 2 – कवि की आँख फागुन की सुन्दरता से क्यों नहीं हट रही है?
उत्तर- फागुन का दृश्य इतना सुन्दर है कि वृक्षों की डालियाँ पत्तों से लदी हुई हैं। वे कहीं हरी और कहीं लाल दिखाई देती हैं। फागुन की मादकता में सुगन्धित पुष्पों से लदे वृक्ष ऐसे लग रहे हैं, मानो फागुन ( वसन्त ) ने अपने गले में सुन्दर सुगन्धवाले पुष्पों की माला पहन रखी है। चारों ओर व्याप्त सुन्दरता को कवि अपने मन में नहीं समा पा रहा है। इसी कारण कवि की आँख फागुन की सुन्दरता से नहीं हटती है।
प्रश्न 3 – प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
उत्तर— कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन पत्तों से लदी डाल, कहीं हरी, कहीं लाल, कहीं पड़ी है उर में मन्द – गन्ध – पुष्प-माल आदि रूपों में किया है।
प्रश्न 4 – फागुन में ऐसा क्या होता है, जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है?
उत्तर – फागुन में मौसम न अधिक ठण्डा होता है और न अधिक गर्म। खेतों में फसल पककर तैयार हो जाती है। फागुन में ही रंग और उल्लास का त्योहार होली आता है। टेसू के फूल खिल उठते हैं। ग्रामों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। अन्य ऋतुएँ या तो शीत या गर्मी में व्यतीत होती हैं, किन्तु फागुन का महीना इस सबसे अलग ही है।
प्रश्न 5 – इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर—‘रचनात्मक प्रश्नोत्तर’ शीर्षक के प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
6. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – निम्नांकित काव्य पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए और कवि का नाम भी बताइए-
” अट नहीं रही हैं
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।”
उत्तर – इन पंक्तियों में कवि फागुन मास में प्रकृति के अनन्य सौन्दर्य का वर्णन करता हुआ कहता है कि इस समय प्रकृति की शोभा ऐसी है, अर्थात् इतनी अधिक है कि वह भूमण्डल में समा नहीं पा रही है। इस कारण वह सर्वत्र बिखरी पड़ी है। प्रकृति के इस सौन्दर्य को देखकर मन आह्लादित हो उठता है । मन का यह आह्लाद भी परिमाण में इतना अधिक है कि वह हृदय में नहीं समा रहा है और फाग के गीतों तथा नृत्य-संगीत के रूप में हृदयों से छलक छलक पड़ता है।

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