UK 10TH HINDI

UK Board 10 Class Hindi Chapter 6 – नागार्जुन (काव्य-खण्ड)

UK Board 10 Class Hindi Chapter 6 – नागार्जुन (काव्य-खण्ड)

UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 6 नागार्जुन (काव्य-खण्ड)

(यह दंतुरित मुस्कान, फसल)
1. कवि-परिचय
प्रश्न – कवि नागार्जुन का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए-
जीवन परिचय, कृतियाँ, शैली ।
उत्तर— जीवन-परिचय – नार्गार्जुन का जन्म बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में सन् 1911 ई० में हुआ। नागार्जुन का मूलनाम वैद्यनाथ मिश्र था। उनकी आरम्भिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई, फिर अध्ययन के लिए बनारस और कलकत्ता (कोलकाता) गए। सन् 1936 ई० में वे श्रीलंका गए और वहीं बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। दो साल प्रवास के पश्चात् सन् 1938 ई० में वे स्वदेश लौट आए। घुमक्कड़ी और अक्खड़ स्वभाव के धनी नागार्जुन ने अनेक बार सम्पूर्ण भारत की यात्रा की। सन् 1998 ई० में उनका देहान्त हो गया।
कृतियाँ — नागार्जुन जीवन, जनता और श्रम के गीत गानेवाले कवि हैं। उनकी रचनाओं को किसी ‘वाद’ की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। उनके स्वतन्त्र व्यक्तित्व की तरह उनकी रचनाएँ भी स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हो गई हैं। सन् 1945 ई० में वे साहित्य-सेवा के क्षेत्र में आए, तब से अब तक उनकी अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।
उनकी प्रकाशित कृतियों में पहला वर्ग उपन्यासों का है। उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं—’रतिनाथ की चाची’, ‘बलचनमा’, ‘नई पौध’, ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुःखमोचन’ और ‘वरुण के बेटे’।
नागार्जुन की रचनाओं का दूसरा वर्ग कविताओं का है। ‘युगधारा’ उनका प्रारम्भिक काव्य-संकलन है। ‘सतरंगे पंखोंवाली’ में प्रकृति का मार्मिक चित्रण हुआ है। ‘प्यासी पथराई आँखें’ तथा ‘खून और शोले’, ‘हजार-हजार बाँहोंवाली’, ‘तुमने कहा था’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने’, ‘मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा’ आदि कविता-संग्रहों में प्रेम और प्रकृति-चित्रण से सम्बन्धित सुकुमार ओजस्वी कविताएँ संकलित हैं। इन कविताओं के माध्यम से समाज की व्यवस्था से जूझते सर्वहारा वर्ग की व्यथा की करुणगाथा व्यक्त की गई है।
‘भस्मांकुर’ नागार्जुन का प्रसिद्ध खण्डकाव्य है। इसमें भस्मासुर. की पौराणिक कथा को नए रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें स्थान-स्थान पर प्रेम, सौन्दर्य व प्रकृति के चित्र अत्यन्त सुन्दर रूप में प्रस्तुत हुए हैं। उनका सम्पूर्ण कृतित्व ‘नागार्जुन रचनावली’ के सात खण्डों में प्रकाशित है।
शैली – अपनी काव्य रचनाओं में नागार्जुनजी ने प्रबन्ध एवं मुक्तक शैली को अपनाया है। उनकी शैली प्रतीकात्मक और व्यंग्यप्रधान । शैली में सरलता, स्पष्टता और प्रवाहमयता सर्वत्र दिखाई देती है।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
यह दंतुरित मुसकान
(1) तुम्हारी यह ……….. रहोगे अनिमेष !
शब्दार्थ – दन्तुरित = बच्चों के नए-नए दाँत, जिसमें दाँत दिख हों । धूलि धूसर गात = धूल-मिट्टी से सने अंग-प्रत्यंग । जलजात = कमल का फूल। परस = स्पर्श । पाषाण = पत्थर । अनिमेष = बिना पलक झपकाए निरन्तर देखना ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) कवि ने जीवन का सन्देश किसमें माना है?
(ङ) मृतक में कौन जान डाल देगी?
(च) मृतक में जान डाल देने का आशय स्पष्ट कीजिए ।
(छ) झोपड़ी में कमल कैसे खिल रहा है?
(ज) बबूल का वृक्ष शेफालिका कैसे बन गया?
(झ) बाँस और बबूल किस बात के प्रतीक हैं?
उत्तर –
(क) कवि – नागार्जुन । कविता का नाम – यह दंतुरित मुसकान।
(ख) भावार्थ – कवि छोटे बच्चे को देखकर कहता है— तुम्हारे ये नए-नए उग आए दाँतों से युक्त मुसकान इतनी मनमोहक और जीवनदायिनी है कि यह किसी मृत शरीर में भी जान डाल देगी। अर्थात् मृतक के समान भावहीन, उदास, निराश व्यक्ति भी तुम्हारी इस मुसकान को देख ले तो वह भी प्रसन्नता और आनन्द से खिल (चहक) उठे। धूल-मिट्टी से सने तुम्हारे ये अंग-प्रत्यंग देखकर ऐसे लगता है, मानों कमल के फूल अपना मूलस्थान (तालाब) छोड़कर मेरी झोपड़ी में खिल रहे हैं।
तुम्हारा स्पर्श पाकर तुम्हारा ही प्राण, जो कठोर पत्थर के समान था, पिघलकर जल बन गया होगा। आशय यह है कि तुम इतने कोमल हो कि धूल-धूसरित तुम्हें गोद में लेने पर पाषाण हृदय व्यक्ति भी द्रवित होकर कोमलहृदय बन जाएगा। मैं खोखले बाँस की तरह भावशून्य और बबूल के काँटे की तरह बुरे स्वभाववाला अथवा दूसरे को पीड़ा पहुँचानेवाला हूँ, किन्तु तुम्हारा स्पर्श करते ही मैं शेफालिका की लता की भाँति फूल बरसानेवाला अर्थात् कोमल एवं सुन्दरभावों से युक्त हो गया हूँ और मेरे मुख से प्रसन्नता और आनन्द के फूल झरने लगे हैं। कवि फिर बच्चे से ही प्रश्न करता है कि तुम मुझे पहचान नहीं पाए; इसीलिए लगातार बिना पलक झपकाए मेरी ओर एकटक दृष्टि से देख रहे हो। यदि तुम मेरे बाँस अथवा बबूल जैसे व्यक्तित्व को पहचान जाते तो यूँ मुझे एकटक दृष्टि से नहीं देखते। तुम्हारा यह भोलापन और समभाव हो तो व्यक्ति को पाषाण से पिघलाकर मोम बना सकता है।
(ग) काव्य-सौन्दर्य—(1) कवि ने शिशु की मुसकान के चामत्कारिक प्रभाव, उसकी सहज मोहक छवि, सरल स्वभाव, उसके धूल-धूसरित शरीर का आलंकारिक वर्णन किया है। ये सब मिलकर ‘बालक के प्रति एक सम्मोहन में बाँधते हैं। (2) बच्चों के निर्मल जीवन का यथार्थ चित्रण हुआ है। (3) भाषा – संस्कृतनिष्ठ, सरल और प्रवाहपूर्ण। (4) बाँस और बबूल में प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। (5) छन्द — मुक्त है। (6) अलंकार – अनुप्रास, रूपक, उपमा। की निष्कपट मोहक मुसकान में जीवन का
(घ) कवि ने बालक सन्देश माना है कि जीवन में निष्कपट मुसकान में ही जीवन की सार्थकता समाहित है।
(ङ) मृतक में बच्चे की दंतुरित कोमल मुसकान जान डाल देती है।
(च) मृतक में जान डाल देने का आशय हताश निराश और उत्साह एवं स्पन्दनहीन जीवन में प्रसन्नता, आनन्द, आशा, उत्साह और कोमल स्पन्दनों का संचार कर देने से है।
(छ) धूल-धूसरित शरीरवाले नन्हें, छोटे, उज्ज्वल दाँतों से युक्त मोहक मुसकानवाले बालक की छवि खिलते कमल के समान मोहक है। बालक कवि की झोपड़ी में उपस्थित है, जिससे कवि को लग रहा है कि उसकी झोपड़ी में कमल खिल रहा है।
(ज) कवि अपनी तुलना बबूल के पेड़ से कर रहा है, जो सदैव दूसरों को पीड़ा ही पहुँचाता है, किन्तु बालक का स्पर्श पाकर और उसकी दंतुरंत मुसकान देखकर उसका पीड़ादायक दुष्ट स्वभाव शेफालिका के कोमल पुष्पों की भाँति सबको आनन्द प्रदान करनेवाला हो गया है। इसी स्वभाव – परिवर्तन को कवि ने बबूल के वृक्ष का शेफालिका बनना कहा है।
(झ) ‘बाँस’ खोखले अर्थात् भावशून्य तथा ‘बबूल’ दुष्ट, पीड़ादायक स्वभाववाले व्यक्ति के प्रतीक हैं।
(2) थक गए हो? ……….. बड़ी ही छविमान!
शब्दार्थ – चिर प्रवासी = दीर्घकाल तक विदेश में रहनेवाला । इतर = दूसरा । मधुपर्क दही, घी, शहद, जल और दूध का योग, जो देवता और अतिथि के सामने रखा जाता है। जनसाधारण इसे पंचामृत 1. कहता है । कविता में इसका प्रयोग “बच्चे को जीवन देनेवाला आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ के प्यार के लिए हुआ है। कनखी = तिरछी निगाह से देखना । छविमान = सुन्दर ।
प्रश्न –
(क) उक्त कविता के कवि और कविता का शीर्षक बताइए |
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) मधुपर्क से आप क्या समझते हैं? यहाँ मधुपर्क से क्या आशय है?
(ङ) कवि किसके माध्यम से बच्चे को जान सका है?
(च) बालक से कवि का परिचय क्यों नहीं हो पाया?
(छ) कवि को देखकर उसके प्रति बालक का व्यवहार कैसा था?
(ज) कवि किस-किसको धन्य कह रहा है?
अथवा कवि किसकी माँ को धन्य कह रहा है और क्यों?
उत्तर-
(क) कवि – नागार्जुन । कविता का नाम – यह दंतुरित मुसकान ।
(ख) भावार्थ – कवि बच्चे से कहता है—तुम लगातार मेरी ओर देखते हुए थक गए हो, लो मैं ही अपनी दृष्टि दूसरी ओर किए लेता हूँ। यदि मैं और तुम प्रथम बार में ही परिचित नहीं हो सके तो कोई बात नहीं। यदि तुम्हारी माँ ने तुम्हारा पहला पर मुझ कराया होता अर्थात् तुम्हारी माँ तुम्हें जन्म देकर इस संसार में न लाई होती तो हमारा और तुम्हारा यह प्रथम परिचय न तुमको देख पाता और न ही जान पाता ? न ही तुम्हारी नए-नए उग आए दाँतों की मुसकान मुझे दिखाई देती ।
कवि कहता है कि तुम और तुम्हारी माँ दोनों ही धन्य हैं। मैं तो हमेशा से यहाँ-वहाँ घूमता रहा हूँ और चिरकाल तक घर से दूर परदेश में रहा हूँ। इस कारण इतर ( पराया) हो गया । अर्थात् तुम माँ-बेटों से अलग रहकर कुछ अन्य ही व्यक्ति-सा हो गया हूँ। मैं तो यहाँ अतिथि के समान यदा-कदा अत्यल्प समय के लिए आता रहा हूँ। इसलिए इस अतिथि से तुम्हारा सम्पर्क भी कम ही रहा है। अपनी माँ की उँगलियों को अपने मुँह में डालकर चूसते समय तुम मधुपर्क (पंचामृत) के स्वाद जैसा आनन्द प्राप्त करते रहे हो । निस्सन्देह वे उँगलियाँ तुम्हें अत्यधिक प्रिय हैं, क्योंकि उनमें माँ का वात्सल्य छिपा है। आज तुम जब मुझे कनखियों से देखते हो और मेरी तुम्हारी आँखें चार होती हैं, तब तुम्हारे नए-नए उग आए दाँतों की मुसकानवाली छवि मुझे बहुत अच्छी लगती है।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) माँ और बालक के मध्य के आत्मीय सम्बन्धों और असीम प्रेम का बड़ा सुन्दर चित्रण हुआ है। (2) भाषा – संस्कृतनिष्ठ शब्दावली से युक्त सरल, प्रवाहपूर्ण खड़ीबोली । (3) रस – वात्सल्य । (4) अलंकार – उपमा, अनुप्रास । (5) छन्द — मुक्त है।
(घ) मधुपर्क से आशय दही, घी, शहद, जल और दूध के मिश्रण से होता है, जो देवता को समर्पित किया जाता है। जनसामान्य की भाषा में इसे पंचामृत कहते हैं। प्रस्तुत कविता में आत्मीयता की मिठास से युक्त माँ के प्यार को ‘मधुपर्क’ कहा गया है।
(ङ) कवि बच्चे की माँ के माध्यम से उसे जान सका है। यहाँ कवि के कहने का आशय मातृत्व शक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करना भी है; वह कहना चाहता है माँ के बिना बालक का अस्तित्व सम्भव नहीं है।
(च) बालक से कवि का परिचय इसलिए नहीं हो पाया; क्योंकि वह अधिकांश समय घर से बहुत दूर प्रवास पर रहा है और कभी-कभी ही अतिथि की भाँति घर पर आता रहा है।
(छ) कवि को देखकर बालक उसके विषय में जानने को उत्सुक रहता है, किन्तु अपरिचय के कारण उसको प्रत्यक्षतः नहीं देखता ।
(ज) कवि बालक और उसे जन्म देनेवाली माँ को धन्य कह रहा है; क्योंकि उसकी माँ के कारण ही बालक से उसका परिचय हो सका है।
फसल
एक के ………… थिरकन का!
शब्दार्थ- कोटि = करोड़। गुण-धर्म = स्वभाव, विशेषताएँ। जादू = आकर्षण | महिमा = महत्त्व। रूपान्तर = परिवर्तन |
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) कविता का भावार्थ लिखिए।
(ग) कविता का काव्य-सौन्दर्य लिखिए ।
(घ) फसल क्या है?
(ङ) यहाँ फसल किसका प्रतीक है?
(च) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा’ के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है ?
(छ) सूरज की किरणों का रूपान्तर क्या है ?
उत्तर-
(क) कवि – नागार्जुन । कविता का नाम – फसल ।
(ख) भावार्थ – कवि के अनुसार खेतों में खड़ी फसल एक के नहीं, दो के नहीं, वरन् अनेक नदियों के पानी का फल है। उसे उपजाने में करोड़ों-करोड़ हाथों की गरिमा की प्रमुख भूमिका होती है। अर्थात् फसल को खेतों में उपजाने के लिए करोड़ों-करोड़ किसान-मजदूरों को रात-दिन जीतोड़ मेहनत करनी पड़ती है। साथ ही हजारों खेतों की अपनी मिट्टी का विशिष्ट गुण इसके उपजने में सहायता देता है।
कवि प्रश्न पूछता है कि फसल क्या है। फिर स्वयं ही वह उत्तर देता है कि फसल और कुछ नहीं है— नदियों के पानी का जादू है, किसानों और मजदूरों के हाथों के स्पर्श अर्थात् परिश्रम की महिमा है, भूरी-काली – सोने जैसी मिट्टी की विशेषताएँ इसमें समाहित हैं। अनाज की सुनहरी थिरकती बालियाँ वास्तव में सूरज की किरणों का परिवर्तित और पुंजीभूत रूप तथा हवा का नर्तन हैं।
सार यह है कि इस कविता में कवि नागार्जुन ने फसल तथा इसे पैदा करने में किन-किन तत्त्वों का योगदान रहता है, यह स्पष्ट किया है।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) प्रकृति और मनुष्य के सहयोग से ही फसलों का उगाया जाना सम्भव है, यह स्पष्ट किया गया है। (2) भाषा – सरल तथा प्रवाहपूर्ण खड़ीबोली । (3) अलंकार -अनुप्रास, प्रश्न, यमक । (4) शैली – लाक्षणिक । (5) छन्द – मुक्त।
(घ) फसल किसान की अपने कार्य के प्रति एकनिष्ठ भावना, हाथों से किए गए श्रम, स्वयं को भूलकर उसके पोषण और संरक्षण में उसकी स्वाभाविक तत्परता, उसके ओज और कभी किसी से कुछ भी न माँगने की संकोचपूर्ण स्वाभाविकता का परिणाम है।
(ङ) यहाँ पर फसल कर्म के प्रति निष्ठा, श्रम, लगन, निस्पृह भावना के समन्वित प्रयासों के सार्थक और सुपरिणामों का प्रतीक है। कवि कहना चाहता है कि यदि व्यक्ति किसान की भाँति कर्मनिष्ठ, श्रमशील, अपने कार्य में तल्लीन और निस्पृह भावना के साथ अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करता रहे तो उसके परिणामों के रूप में उसे सुख की लहलहाती फसल अवश्य ही प्राप्त होगी।
(च) ‘हाथों के स्पर्श की महिमा’ द्वारा कवि समाज में कर्म की प्रतिष्ठापना करना चाहता है। वह कहना चाहता है कि लोग श्रम की महत्ता को समझें ।
(छ) फसल की बालियाँ उनके सुनहरे दाने मानो सूरज की किरणों का रूपान्तरण हैं।
3. कविता के सन्देश/जीवन-मूल्यों तथा सौन्दर्य सराहना पर लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – यह दंतुरित मुसकान’ शीर्षक कविता का सन्देश क्या है ?
उत्तर- ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने व्यक्ति (विशेषकर बालक ) के जीवन में माता-पिता के महत्त्व की तुलना करते हुए यह सन्देश दिया है कि पिता की तुलना में माता का योगदान बच्चे के जीवन में बहुत अधिक होता है। यह ठीक है कि पिता बालक के पालन-पोषण की व्यवस्था और उसे सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के कारण उससे बहुत दूर होता है, एक प्रकार से अपरिचित सा । इसके विपरीत माता बालक को भावात्मक सुरक्षा प्रदान करती है, जिसकी उसे सबसे अधिक आवश्यकता होती है। सामाजिक सुरक्षा के अभाव में तो बालक के व्यक्तित्व का विकास हो सकता है, किन्तु भावात्मक सुरक्षा के अभाव में उसका व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है, उसकी मुसकान उससे छिन जाती है। उसकी इस दन्तुरित मुसकान की सुन्दरता की व्याप्ति ऐसी है कि कठोर से कठोर मन भी पिघल जाए। इस दंतुरित मुसकान की मोहकता तब और बढ़ जाती है, जब उसके साथ नजरों का बाँकपन जुड़ जाता है।
प्रश्न 2 – ‘ फसल’ कविता का वर्ण्य विषय क्या है?
उत्तर- ‘फसल’ शब्द सुनते ही खेतों में लहलहाली फसल आँखों के सामने आ जाती है। परन्तु फसल है क्या और इसे पैदा करने में किन-किन तत्त्वों का योगदान होता है, इसे नागार्जुन ने अपनी कविता ‘फसल’ में बताया है।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1- नागार्जुन की भाषा पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – नागार्जुन की भाषा खड़ीबोली है। भाषा का बोलचाल का जनसामान्य के लिए बोधगम्य बनाने की दृष्टि से ग्रामीण और देशज रूप ही उनकी कविता में अधिकांशतः व्यवहृत हुआ है। कविता को शब्दों का प्रयोग सहज रूप में हुआ है। शब्द की तीनों, शक्तियों— अभिधा, लक्षणा और व्यंजना का सार्थक प्रयोग हुआ है। उनकी कविता में अलंकारों की कोई विशिष्ट योजना नहीं है। वे अपने आप ही स्वाभाविक रूप में यत्र-तत्र आ गए हैं। प्रतीक-विधान और बिम्ब-योजना भी सुन्दर बन पड़ी है।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर यह दंतुरित मुसकान
प्रश्न 1 – बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा बालक को अपलक निहारते रहने और इससे संवाद करते रहने पर भी जब बालक कवि के प्रति कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता तो कवि क्या मान लेता है ? ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – कवि बालक को अपलक निहारता रहता है और उससे संवाद स्थापित करने का प्रयास करता है, किन्तु बालक उसके कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता, तब वह यह मान लेता है कि बालक मुझे पहचान नहीं पाया है कि मैं कौन हूँ, शायद इसीलिए वह कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पा रहा है और उसे अपलक देख रहा है। बालक की प्रतिक्रिया न पाकर कवि यह भी सोचता है कि बालक सम्भवत: मेरी बातों और व्यवहार के कारण थक गया है और भरसक प्रयास के बाद भी मुझसे परिचित नहीं हो पाया है। फिर भी मुझे उसकी दंतुरित मुसकान पर्याप्त आनन्द और सुख का अनुभव करा रही है। इसके लिए निश्चय ही उसकी माता धन्यवाद की पात्र है, जिसके कारण मैं बालक की उस आनन्ददायिनी मुसकान का अनुभव कर सका हूँ।
प्रश्न 2 – बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर – बच्चे की मुसकान निर्मल तथा अर्थहीन होती है। बड़े व्यक्ति की मुसकान का कोई-न-कोई अर्थ होता है। बड़े व्यक्ति की मुसकान व्यंग्यपूर्ण भी हो सकती है, उसमें क्रूरता, द्विअर्थ कुछ भी होना सम्भव है।
प्रश्न 3 – कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर – कवि ने बच्चे की मुसकान के सौन्दर्य को मृतक में जान डालने, झोपड़ी में कमल खिलने, चट्टानों के पिघलकर जलधारा बनने और बबूल से शेफालिका के पुष्पों के झरने के बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है।
प्रश्न 4 – भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?
उत्तर—‘काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर’ शीर्षक का क्रम (1) देखें।
फसल
प्रश्न 1 – कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर— कवि के अनुसार नदियों के पानी का जादू, किसानों और खेतिहर मजदूरों के हाथों के स्पर्श की महिमा, भूरी- काली – सन्दली मिट्टी का गुणधर्म, सूरज की किरणों का रूपान्तर और हवा की थिरकन का संकोच फसल है। अर्थात् फसल मिट्टी, जल, हवा, किसान के परिश्रम और सूरज की गर्मी के मेल का सुपरिणाम है। किसान ने मिट्टी में मेहनत करके उसे उगाया है, नदियों के जल से उसे सींचा है, हवा ने उसे लहलहाया है और सूरज ने उसे पकाया है। इस प्रकार फसल इन सबके समन्वित प्रयास का परिणाम है।
प्रश्न 2 – कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर— फसल उपजाने के आवश्यक तत्त्व हैं – पानी, मिट्टी, सूरज की किरणें, हवा और लोगों के हाथों का स्पर्श अर्थात् परिश्रम ।
प्रश्न 3. – फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है ? 
उत्तर— फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि किसान के परिश्रम का महत्त्व व्यक्त करना चाहता है। कवि बताना चाहता है कि वह किसान ही है, जो अपने कठोर परिश्रम से फसलें उपजाकर सारी धरती का पेट भरता है। यद्यपि हवा, मिट्टी, पानी और सूरज का भी फसलों को उगाने में महत्त्वपूर्ण योगदान है, किन्तु सबसे अधिक महत्त्व किसान का ही है।
प्रश्न 4- भाव स्पष्ट कीजिए- 
(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का! सम्बन्धी
उत्तर- ‘काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु प्रश्नोत्तर’ शीर्षक का क्रम (3) देखें।
6. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – नागार्जुन ने फसल को किस रूप में परिभाषित किया है?
अथवा ‘फसल’ शीर्षक कविता में नागार्जुन ने फसल को किन विभिन्न रूपों में देखा है? अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए । 
उत्तर – कवि नागार्जुन ने फसल को नदियों के पानी का जादू, हाथों के स्पर्श की महिमा, भूरी-काली सन्दली मिट्टी का गुणधर्म, सूरज की किरणों का रूपान्तर और हवा की थिरकन के संकोच के विभिन्न रूपों में देखा है। इन सबका समन्वित रूप ही फसल है। यदि इनमें से एक भी वस्तु का अभाव होगा तो फसल नहीं उग सकेगी अथवा वांछित परिणाम देनेवाली नहीं होगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *