UK Board 10 Class Hindi Chapter 7 – गिरिजा कुमार माथुर (काव्य-खण्ड)
UK Board 10 Class Hindi Chapter 7 – गिरिजा कुमार माथुर (काव्य-खण्ड)
UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 7 गिरिजा कुमार माथुर (काव्य-खण्ड)
गिरिजाकुमार माथुर (छाया मत छूना)
1. कवि-परिचय
प्रश्न – कवि गिरिजाकुमार माथुर का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दीजिए-
जीवन परिचय, कृतियाँ, शैली ।
उत्तर – जीवन – परिचय – गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918 ई० में गुना (म०प्र०) के अशोकनगर में हुआ था। इनके पिता देवीशरण ब्रजभाषा के अच्छे कवि थे। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा झाँसी (उ०प्र०) में प्राप्त की और एम०ए० अंग्रेजी व एल० एल० बी० की उपाधि लखनऊ से अर्जित की। तभी इनका विवाह तत्कालीन हिन्दी की प्रसिद्ध कवयित्री शकुन्त माथुर के साथ हुआ। प्रारम्भ में कुछ समय तक वकालत की, बाद में नई दिल्ली सचिवालय तथा आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्य किया । माथुरजी का निधन सन् 1994 ई० में हो गया ।
कृतियाँ – गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएँ हैं— ‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘जो बँध नहीं सका’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’ (काव्य-संग्रह), ‘जन्म कैद’ (नाटक), नई कविता : सीमाएँ और सम्भावनाएँ ( आलोचना ) ।
शैली – नई कविता के कवि गिरिजाकुमार माथुर विषय की मौलिकता के पक्षधर तो हैं, किन्तु इसके लिए वे शिल्प की विलक्षणता को दृष्टि से ओझल नहीं करते हैं। चित्र को अधिक स्पष्ट करने के लिए वे उसमें वातावरण के रंग भरते हैं। वे मुक्त छन्द में ध्वनिसाम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता सम्भव कर सके हैं। भाषा के दो रंग उनकी कविताओं में दिखाई देते हैं। वे जहाँ रोमानी कविताओं में छोटी-छोटी ध्वनिवाले बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहीं शास्त्रीय गठन की कविताओं में लम्बी और गम्भीर ध्वनिवाले शब्दों को महत्त्व देते हैं।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
छाया मत छूना
(1) छाया मत छूना ………… दुःख दूना।
शब्दार्थ – छाया = भ्रम, दुविधा । सुरंग = रंग-बिरंगी । सुधियाँ = यादें। छवियों की चित्रगन्ध = चित्र की स्मृति के साथ उसके आस-पास की गन्ध का अनुभव। मनभावनी = मन को अच्छी लगनेवाली। यामिनी = तारों भरी चाँदनी रात। कुन्तल = लम्बे केश। जीवित क्षण = जीता-जागता अनुभव।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) विगत को क्यों याद नहीं करना चाहिए?
(ङ) छाया किसका प्रतीक है?
अथवा ‘छाया मत छूना’ में छाया का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(च) कुन्तल के फूलों से कवि का क्या आशय है?
(छ) वर्तमान जीवित क्षण को कवि किंस रूप में जीने का सन्देश दे रहा है?
(ज) सुधियों को ‘सुहावनी’ और ‘सुरंग’ क्यों कहा गया है?
(झ) हर जीवित क्षण ‘भूली-सी एक छुअन कैसे बन जाता है?
उत्तर –
(क) कवि – गिरिजाकुमार माथुर । कविता का नाम-छाया मत छूना।
(ख) भावार्थ – कवि कहता है कि हे मन! विगत जीवन की स्मृतियों को कभी याद मत करना; क्योंकि इससे भ्रम या दुविधा की स्थिति उत्पन्न होती है और वर्तमान के जीवन में दुःख – सन्ताप दोगुना हो जाते हैं। हमारे विगत जीवन में यद्यपि अनेक रंग-बिरंगी और अच्छी स्मृतियाँ हैं। हृदय में इन स्मृतियों के न केवल चित्र अंकित हैं, बल्कि तत्कालीन वातावरण की मन को मोहनेवाली एक-एक गन्ध-सुगन्ध भी स्मृतियों में ऐसी बसी है कि उसका आज भी अनुभव होता है। कवि अपनी प्रिया के मिलन की स्मृतियों में खोता हुआ कहता है कि हे मन! अब तो केवल उसके तन की सुगन्ध से ही साक्षात्कार सम्भव है; क्योंकि वह तो तेरे भीतर बसी है, किन्तु अब उससे किसी भी प्रकार मिलन नहीं हो सकता; क्योंकि मिलन की मोहक चाँदनी रात्रि तो कब की बीत चुकी है। अर्थात् उसकी मृत्यु के कारण अब मिलन का समय तो बीत गया है। हाँ, अब तो चाँदनी रात को देखकर उसके काले घने बालों में गुँथे श्वेत चाँदनी पुष्पों की याद हो आती है। आज जब उसका स्मरण हो आता है तो बीते हुए जीवन के एक छोटे-से स्पर्श का अनुभव भी स्मृतियों में साकार हो उठता है। अर्थात् लगता है कि जैसे प्रिया ने अभी-अभी मेरा स्पर्श किया है। मगर हे मेरे मन! ये स्मृतियाँ अब कभी पुन: जीवित नहीं हो सकती हैं, हाँ, इनका भ्रम हो सकता है और यह भ्रम सदैव तेरे दुःख, पीड़ा-दुविधा को बढ़ाएगा ही, इसलिए तू इनसे अब दूर ही रह वास्तव
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) पद्यांश में सरलता और सादगी है। नई कविता की सपाट बयानी भी यहाँ है। (2) सुहावनी, मनभावनी, यामिनी से लयात्मकता का अनुभव होता है। (3) प्रकृति का ‘बिम्ब – विधान सुन्दर दिखाई देता है। (4) कवि का ध्येय है अतीत की स्मृतियों को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करना । है।
(घ) विगत को याद करने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती भ्रमवश आदमी लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर नहीं हो पाता ।
(ङ) छाया बीते जीवन की सुखद स्मृतियों का प्रतीक है, जिसे वर्तमान में नहीं छुआ जा सकता है। मृगतृष्णा की भाँति वे हमें केवल भ्रमित कर सकती हैं।
(च) कुन्तल के फूलों से कवि का आशय विगत जीवन में प्रियतमा के साथ चाँदनी रात में बिताए सुखद क्षणों की उन स्मृतियों से है, जो वर्तमान में भी ताजा बनी हुई हैं और जिन्हें कवि अब तक भी नहीं भूल पाया है। वह विगत जीवन में प्रियतमा के केशों में गुँथे फूलों की गन्ध की तलाश वर्तमान जीवन में करना चाहता है। वह जब भी चाँदनी रात को देखता है तो उन पलों को फिर से जीने की एक टीस उसके मन में उठती है कि काश आज प्रियतमा फिर उसी रूप में उसके समीप होती।
(छ) कवि वर्तमान में प्रत्येक जीवित क्षण को इस रूप में जीने का सन्देश देता है कि भविष्य के लिए एक मीठी याद बन जाए, जिसे हर समय भोगने (जीने) को मन करता रहे।
(ज) सुधियाँ अर्थात् स्मृतियाँ प्रायः जीवन के सुखद और आनन्दपूर्ण क्षणों की होती हैं; क्योंकि व्यक्ति दुःख के क्षणों को याद नहीं रखना चाहता। ये स्मृतियाँ सुरंग की तरह होती हैं, जब व्यक्ति उनमें खोता है तो एक स्मृति से दूसरी स्मृति, दूसरी से तीसरी स्मृति उसी प्रकार जुड़ती चली जाती है, जिस प्रकार व्यक्ति किसी सुरंग में जैसे-जैसे घुसता चला जाता है, उसमें एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी सुरंग खुलती चली जाती है और व्यक्ति की जिज्ञासा, उत्सुकता और उन सबको जान लेने का सुख – सन्तोष चरम की ओर अग्रसर होता है। ठीक इसी प्रकार एक स्मृति से जब दूसरी स्मृति जुड़ती चली जाती है तो व्यक्ति का सुख – सन्तोष बढ़ता चला जाता है और व्यक्ति के सामने अपना अतीत अपने पूर्व सुहावनेपन के साथ साकार हो उठता है। इस सुहावनेपन पर मुग्ध होता व्यक्ति कुछ क्षणों के लिए अपने वर्तमान दुःख को भी भूल जाता है। इसलिए कवि ने सुधियों को ‘सुहावनी’ और ‘सुरंग’ कहा है, जो सर्वथा उचित है।
(झ) जीवन का प्रत्येक वर्तमान क्षण अगले क्षण अतीत बन जाता है। वर्तमान में हम जो जीवन का सुखोपभोग कर रहे होते हैं, भविष्य में केवल उसकी स्मृतियाँ शेष रह जाती हैं। वे स्मृतियाँ जब हमारे मन-मस्तिष्क में आती हैं तो हम उन सुखद क्षणों को उसी प्रकार मूर्त रूप में अनुभव करते हैं, जिस प्रकार से हम अपनी ‘माँ’ अथवा प्रियजन के कोमल स्पर्श को कभी नहीं भुला पाते। उस स्पर्श की छुअन हमारी स्मृतियों में सदैव ताजा बनी रहती है। जब हम उस स्मृति से कोई भूली बात याद आ गई हो और जिसका अब हमारे वर्तमान में बाहर आते हैं तो उसका अनुभव वैसा ही होता है, जैसे हमें अचानक कोई विशेष महत्त्व नहीं होता । उसका हमारे लिए बस इतना ही महत्त्व होता है कि कभी वह बात हमसे सम्बद्ध थी।
(2) यश है …………. दुःख दूना।
शब्दार्थ – वैभव = धन-सम्पत्ति | मान = इज्जत-सम्मान | सरमाया = पूँजी । भरमाया = दिग्भ्रमित हुआ, भटका । प्रभुता का शरण- बिम्ब = बड़प्पन का अहसास। मृगतृष्णा = मृग मरीचिका, जिसमें मृग को दूर कहीं जल होने का भ्रम होता है, जबकि वहाँ जल नहीं होता; कभी न मिटनेवाली प्यास अर्थात् इच्छा। यथार्थ = जीवन की सच्चाई |
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) मानव जीवनभर किसके पीछे भागता रहता है?
(ङ) कवि यश, वैभव, मान और सरमाया के अस्तित्व को क्यों अस्वीकार करता है?
(च) ‘जितना ही दौड़ा उतना ही भरमाया’ का आशय स्पष्ट कीजिए ।
(ज) हर चन्द्रिका में एक काली रात छिपी होने विरोधाभास को स्पष्ट कीजिए ।
(छ) प्रभुता को मृगतृष्णा क्यों कहा गया है? के
उत्तर-
(क) कवि – गिरिजाकुमार माथुर । कविता का नाम- छाया मत छूना।
(ख) भावार्थ – कवि कहता है कि इस जीवन में यश, वैभव, मान-सम्मान आदि किसी भी पूँजी का कोई अस्तित्व अथवा महत्त्व नहीं है; क्योंकि इनसे व्यक्ति को कभी सन्तोष प्राप्त नहीं होता। इनसे रहित व्यक्ति जितना असन्तुष्ट होता है, उतना ही असन्तुष्ट व्यक्ति इनको पाकर रहता है, फिर इनका क्या लाभ? अर्थात् इनका होना भी न होने के बराबर है। इस जीवन में व्यक्ति इस प्रकार की पूँजी प्राप्त करने के लिए जितना अधिक प्रयास अर्थात् दौड़-धूप करता है, उतना ही अधिक जीवन में भटकता है अर्थात् असन्तुष्ट होता है। व्यक्ति सोचता है कि मैं अपार धन-सम्पत्ति, `मान-सम्मान पाकर बहुत बड़ा आदमी बन जाऊँगा और सारे संसार का स्वामी बन जाऊँगा। उसकी यह स्वामित्व प्राप्ति की अभिलाषा कभी पूरी नहीं होती और वह जीवनभर उसकी प्राप्ति के लिए उसी प्रकार भटकता रहता है, जिस प्रकार रेगिस्तान में मृग मरीचिका के भ्रम के कारण पानी के लिए यहाँ-वहाँ दौड़ता रहता है, फिर भी प्यासा ही बना रहता है। जीवन की वास्तविकता यही है कि प्रत्येक चाँदनी रात के पीछे भी एक घनघोर काली रात छिपी है अर्थात् प्रत्येक सुख के पीछे दुःख की काली छाया भी छिपी है। इसलिए हमें कल्पनाओं और अतीत जीवन की सुखद स्मृतियों में सुख खोजने के स्थान पर जीवन की कठोर सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। इस सच्चाई का सम्मान अर्थात् पूजन करना चाहिए कि सुख तो क्षणिक है, जबकि जीवन में दुःख का रंग ही स्थायी है, उसी का रंग ही अधिक गहरा है। इसलिए हे मेरे मन तू अतीत जीवन की सुखद स्मृतियों को मत छू अर्थात् उन्हें याद मत कर; क्योंकि उससे तुझे कोई सुख नहीं मिलनेवाला, बल्कि ज्यों-ज्यों तू उन्हें याद करेगा त्यों-त्यों तेरी पीड़ा बढ़ती ही जाएगी।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) पद्यांश की भाषा प्रतीकात्मक हैं, लाक्षणिक उक्तियों में बात कहने से विषय की गम्भीरता बढ़ गई है। (2) जीवन में दुःख ही स्थायी है, व्यक्ति को इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए। (3) जीवन की सुखद स्मृतियाँ व्यक्ति को वर्तमान जीवन में दुःख ही पहुँचाती हैं; अतः व्यक्ति को उन्हें अपने मन से लिपटाए नहीं रहना चाहिए। (4) सम्पूर्ण पद में लयात्मकता द्रष्टव्य है। (5) काली रात को दुःख अर्थात् कठिनाई के बिम्ब के रूप में प्रस्तुत किया गया है। (6) संघर्ष की प्रेरणा जगाने में कवि सफल रहा है।
(घ) कवि के अनुसार मानव जीवनभर यश, वैभव, मान-सम्मान को पूँजी समझकर उनके पीछे भागता रहता है, जबकि वास्तव में ये पूँजी नहीं होते । व्यक्ति की वास्तविक पूँजी तो उसके मन का सन्तोष है।
(ङ) कवि यश, वैभव, मान और सरमाया के अस्तित्व को इसलिए स्वीकार नहीं करता; क्योंकि इनके होने अथवा न होने का उसके जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इनके होने पर भी उसे आत्मसन्तोष नहीं मिलता और न होने पर भी ।
(च) व्यक्ति धन-दौलत, मान-सम्मान को जितना अधिक प्राप्त करता है, उसकी इन्हें पाने की लालसा उतनी ही बढ़ती जाती है; इसीलिए कवि कहा है कि वह जितना अधिक दौड़ता है, उतना ही ज्यादा भरमाता अर्थात् दिग्भ्रमित होता है।
(छ) जैसे रेगिस्तान में मृग मरीचिका के कारण मृग की प्यास नहीं बुझ पाती, उसी प्रकार से व्यक्ति की प्रभुता प्राप्ति की लालसा कभी तृप्त नहीं होती। वह जैसे-जैसे धन-सम्पत्ति और शक्ति प्राप्त करता जाता है, उसकी इन्हें और अधिक पाने की लालसा ( प्यास) बढ़ती ही जाती है। इसीलिए कवि ने प्रभुता को मृगतृष्णा कहा है।
(ज) हर चन्द्रिका में एक काली रात छिपी होने का आशय यही है कि जिस प्रकार से चाँदनी रात्रि के पीछे घनघोर काली रात्रि छिपी होती है अर्थात् जैसे पूर्णिमा के पश्चात् घनघोर अमावस्या की रात आती है, ठीक उसी प्रकार सुख के पीछे-पीछे दुःख भी चला आता है। व्यक्ति के जीवन में एक सुख आता है तो उसके साथ ही अनगिनत दुःख भी आते हैं। जीवन की इसी वास्तविकता को कवि ने इस विरोधाभास के द्वारा व्यक्त किया है हर चन्द्रिका में एक काली रात छिपी रहती है।
(3) दुविधा – हत ………… दुःख दूनां ।
शब्दार्थ – दुविधा-हत साहस = साहस होते हुए भी दुविधाग्रस्त रहना । पन्थ = मार्ग। देह = शरीर । शरद- रात = जाड़े की रात । भविष्य-वरण = भविष्य का ध्यान कर।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए ।
(घ) ‘दुविधा – हत साहस है’ से कवि का क्या आशय है?
(ङ) ‘दिखता है पंथ नहीं’ मुहावरे का क्या अर्थ है?
(च) शरद् – रात में चाँद के न खिलने पर कवि को दुःख क्यों है?
(छ) रस – वसन्त के आने पर भी कवि के मन में उल्लास क्यों नहीं है?
(ज) कविता में कवि क्या सन्देश दे रहा है?
उत्तर-
(क) कवि – गिरिजाकुमार माथुर । कविता का नाम-छाया मत छूना ।
(ख) भावार्थ – कवि अपने मन को सम्बोधित करते हुए कहता है कि हे मेरे मन! जीवन में अनेक दुविधाओं के कारण भले ही तेरा साहस चुक गया हो और तुझे उन दुविधाओं और कठिनाइयों से पार पाने का उपाय न सूझ रहा हो, फिर भी तू अतीत की मधुर स्मृतियों में भटकने का प्रयास मत कर; क्योंकि इससे तेरी दुर्विधाएँ समाप्त नहीं होंगीं, वरन् तेरे दुःखों में वृद्धि ही होगी। कवि आगे कहता है कि भले ही यह शरीर पूर्णतया स्वस्थ और सुखी है, फिर भी प्रियतम के अभाव में मन के दुःखों का कोई अन्त नहीं है। शरद् ऋतु आ गई है, आसमान भी स्वच्छ है, किन्तु फिर भी चाँद नहीं दिख रहा है, इसका तुम्हें अत्यधिक दुःख है, अर्थात् तुम्हारा प्रियतमरूपी चन्द्रमा आज उपस्थिति नहीं है, इसलिए तुम्हें अपार दुःख है।
कवि सम्भवतः अपनी प्रियतमा के जीवित रहने पर उसे प्यार-दुलार न दे पाया हो, इसी पीड़ा को व्यक्त करता हुआ कवि अपने मन से कहता है कि आज तुम्हारे भीतर प्रियतमा के प्रति जो इतना प्यार उमड़ रहा है, उसका अब कोई लाभ नहीं है; क्योंकि रस- वसन्त के बीत जाने पर यदि पुष्प खिला हो तो उसका कोई लाभ नहीं। ऐसे ही अब यौवन की रसभरी बेला बीत गई और तुम उपस्थित नहीं हो, ऐसे में तुम्हारे प्रति जो स्नेह का पुष्प खिला है, उसका कोई लाभ नहीं है। अब तो तुम्हारे लिए यही अच्छा है कि तुम्हें जीवन में आज तक जो कुछ नहीं मिला है, उसे भूल जाओ अर्थात् उसके न मिलने का रंचमात्र भी दुःख मत कर, बल्कि अपने भविष्य का ध्यान कर और उसे सँवारने का प्रयत्न कर, उसी से तुझे सुख मिलेगा। अतीत की स्मृतियों को याद करके तुझे कुछ नहीं मिलेगा, वरन् उससे तो तेरे दुःखों में वृद्धि ही होगी; अतः तू उनका स्मरण न कर ।
(ग) काव्य-सौन्दर्य- (1) पद्यांश में प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है। (2) पद्यांश की लयात्मकता द्रष्टव्य है। (3) ‘खिला फूल रस- वसंत जाने पर’ से आशय वक्त निकल जाने से है। (4) विगत को भूलकर भविष्य का वरण करने का सन्देश है। (5) भाषा के रूप में संस्कृतनिष्ठ शब्दावली से युक्त मुहावरेदार सरल – बोधगम्य भाषा प्रयुक्त है। (6) शैली — प्रतीकात्मक है।
(घ) ‘दुविधा – हत साहस है’ से कवि का आशय यह है कि जब व्यक्ति का मन किसी बात को लेकर दुविधाग्रस्त होता है तो उसका साहस भी उसका साथ नहीं देता, इसी कारण वह उस दिशा में कदम बढ़ाने से डरता है ।
(ङ) ‘दिखता है पंथ नहीं मुहावरे का अर्थ है – मार्ग / उपाय न सूझना ।
(च) शरद् – रात में चाँद के न खिलने पर कवि को दुःख इसलिए है कि कभी वह इन रातों में अपनी प्रिया के साथ स्नेहालाप में डूबा होता था, किन्तु आज शरद्-रात का वातावरण तो वही है, किन्तु उसकी चाँद जैसी प्रिया उसके पास नहीं है; अतः वह रात उसके विरह को उद्दीप्त कर उसे दुस्सह दुःख पहुँचा रही है।
(छ) रस- वसन्त के आने पर भी कवि के मन में उल्लास इसलिए नहीं है; क्योंकि उसकी प्रिया उसके पास नहीं है।
(ज) कविता में कवि यह सन्देश देता है कि व्यक्ति को अपने अतीत को यादकर निराश होकर नहीं बैठ जाना चाहिए, वरन् भविष्य को ध्यान में रखकर उसे सँवारने का प्रयत्न करना चाहिए, यही सुख-प्राप्ति का मूलमन्त्र है।
3. कविता के सन्देश / जीवन-मूल्यों तथा सौन्दर्य सराहना पर लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1– ‘छाया मत छूना’ कविता का सन्देश क्या है?
उत्तर— छाया मत छूना कविता के माध्यम से कवि यह सन्देश देना चाहता है कि जीवन में सुख और दुःख दोनों की उपस्थिति है। विगत के सुख को यादकर वर्तमान के दुःख को अधिक गहरा करना तर्कसंगत नहीं है। कवि के शब्दों में इससे दुःख दूना होता है। विगत की सुखद काल्पनिकता से चिपके रहकर वर्तमान से दूर हट जाने की अपेक्षा, कठिन यथार्थ से रू-ब-रू होना ही जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
गिरिजाकुमार माथुर की ‘छाया मत छूना’ कविता अतीत की स्मृतियों को भूल वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का सन्देश देती है। कविता यह बताती है कि जीवन के सत्य को छोड़कर उनकी छायाओं में भ्रमित रहना जीवन के कठोर सत्य से दूर रहना है। कविता में रोमानी भावबोध की अभिव्यक्ति स्पष्टतया देखी जा सकती है।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1– कवि गिरिजाकुमार माथुर की भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – कवि गिरिजाकुमार माथुर के काव्य में नवीन चित्र तथा बिम्बों के निर्माण ने उनकी भाषा को सम्प्रेषणीयता प्रदान की है। चित्र और बिम्बों का यह मिलन भाषा पर उनकी पकड़ को मजबूत करता है। नई कविता कवि गिरिजाकुमार माथुर रोमानी मिजाज के कवि भी माने जाते हैं। वे विषय की मौलिकता के पक्षधर तो हैं, परन्तु शिल्प की विलक्षणता को नजरअन्दाज करके नहीं। चित्र को अधिक स्पष्ट करने के लिए वे वातावरण के रंग भरते भी हैं। वे मुक्त छन्द में ध्वनि-साम्य के प्रयोग के कारण तुक के बिना भी कविता में संगीतात्मकता सम्भव कर सके हैं। भाषा के दो रंग उनकी कविताओं में दिखाई देते हैं। रोमानी कविताओं में जहाँ छोटी-छोटी ध्वनिवाले बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया गया है, वहीं क्लासिक मिजाज की कविताओं में वे लम्बी और गम्भीर ध्वनिवाले शब्दों को स्थान देते हैं।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1– कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर – कवि के अनुसार व्यक्ति को यथार्थ या वर्तमान का जीवन व्यतीत करना चाहिए। यथार्थ का जीवन अत्यन्त कठिन होता है, इसमें विगत की स्मृतियों के लिए स्थान नहीं होता। जीवन की प्रत्येक बात में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसलिए कवि ने भ्रमरूपी विगत को छोड़ कठिन यथार्थ के पूजन की बात कही है।
प्रश्न 2 – भाव स्पष्ट कीजिए-
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर— ‘काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर’ का क्रम (2) देखें।
प्रश्न 3 – ‘छाया’ शब्द यहाँ किस सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर – कवि ने ‘छाया’ शब्द विगत के लिए प्रयुक्त किया है। कवि ने इसे छूने से इसलिए मना किया है कि इसके छूने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है, जो व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकती है।
प्रश्न 4 – कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ । कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई ?
उत्तर— कुछ अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं-
दुःख दूना – यहाँ ‘दूना’ शब्द दुःख का परिमाणवाचक विशेषण है। इससे अधिकता का आभास होता है। यहाँ प्रियतमा की स्मृतियाँ वर्तमान में उसके बिछुड़ने के दुःख को अत्यधिक बढ़ा रही हैं, इसके लिए कवि ने दुःख के दोगुना होने के द्वारा अपने भावों की सफल अभिव्यक्ति की है।
सुरंग सुधियाँ सुहावनी- यहाँ पर ‘सुधियाँ’ शब्द के लिए दो विशेषणों का प्रयोग हुआ है – प्रथम सुरंग, जिसका अर्थ है— रंग-बिरंगी अर्थात् विविध प्रकार की मधुर स्मृतियाँ। इसी प्रकार सुहावनी का अर्थ है – मन को अच्छी लगनेवाली । इन विशेषणों के सहयोग से ‘सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ का विशिष्ट अर्थ निकलता है— प्रियतमा से मिलन की मधुर और मोहक यादें ।
रात कृष्णा- यह गुणवाचक विशेषण है। कृष्णा से आशय काले रंग से है, किन्तु यहाँ ‘रात कृष्णा’ का अर्थ दुःखरूपी काली रात है। इसी प्रकार हम ‘दुविधा-हत साहस’ और ‘रस वसन्त’ के उदाहरण भी दे सकते हैं।
प्रश्न 5 – ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं? कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर – मृगतृष्णा को मृगतृषा, मृगतृष्णिका भी कहते हैं; अर्थात् जल अथवा जल की लहरों की वह मिथ्या प्रतीति, जो प्रायः रेगिस्तान और कठोर सूखे मैदानों में कड़ी धूप पड़ने के समय होती है। इस मिथ्या प्रतीति के कारण हिरन यह सोचकर अपनी प्यास बुझाने के लिए वहाँ दौड़कर जाता है, जहाँ पर जल की लहरें दिखती हैं। वह जब वहाँ पहुँचता है तो उसे निराशा ही हाथ लगती है और उसकी तृष्णा (प्यास) पूर्ववत् ही बनी रहती है। यहाँ मृगतृष्णा का प्रयोग इसके माध्यम से स्पष्ट करना चाहता है कि व्यक्ति जैसे व्यक्ति के बड़प्पन अथवा प्रभुत्व के सन्दर्भ में किया गया है। कवि सुख-सुविधाओं अथवा प्रभुत्व-शक्तियों को प्राप्त करता जाता है, उन्हें और अधिक मात्रा में प्राप्त करने की लालसा (तृष्णा) बढ़ती ही है। मृग की भाँति उसकी सन्तुष्टि की प्यास कभी शान्त नहीं होती, वह उसे शान्त करने के लिए यहाँ से वहाँ भटकता फिरता है।
प्रश्न 6 – ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ – यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर – ‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ का यह भाव कविता की निम्नलिखित पंक्ति में प्रकट होता है— ‘जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण।’
प्रश्न 7 – कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – कवि के अनुसार जीवन में सुख और दुःख दोनों ही हैं। जीवन में दुःख का कारण विगत को याद करना होता है। इससे दु:ख दूना हो जाता है । कवि अतीत की स्मृतियों को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का सन्देश देता है।
6. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— कवि के अनुसार जीवन में सुख और दुःख दोनों ही हैं। जीवन में दुःख का कारण विगत को याद करना होता है। इससे दुःख दूना हो जाता है। कवि अतीत की स्मृतियों को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का सन्देश देता है।
