UK 10TH HINDI

UK Board 10 Class Hindi Chapter 8 – ऋतूराज (काव्य-खण्ड)

UK Board 10 Class Hindi Chapter 8 – ऋतूराज (काव्य-खण्ड)

UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 8 ऋतूराज (काव्य-खण्ड)

ऋतुराज (कन्यादान)
1. कवि-परिचय
प्रश्न—ऋतुराज का परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत ( दीजिए-
जीवन-परिचय, कृतियाँ, शैली ।
उत्तर – जीवन – परिचय – ऋतुराज का जन्म सन् 1940 ई० में राजस्थान के भरतपुर में हुआ। राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से उन्होंने अंग्रेजी में एम० ए० किया। चालीस वर्ष निरन्तर अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन के पश्चात् भी उन्होंने अपने हिन्दी – प्रेम को जीवित रखा। उनके इसी हिन्दी – प्रेम का परिणाम था कि उनका हिन्दी पर भी समान अधिकार था। उनकी रचनाओं में दैनिक जीवन के अनुभव का यथार्थ है और आस-पास में रोजमर्रा घटित होनेवाले सामाजिक शोषण और विडम्बनाओं का चित्रण।
कृतियाँ – ऋतुराज के अभी तक आठ कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें ‘एक मरण धर्मा और अन्य’, ‘पुल पर पानी’, ‘सूरत निरत’ और ‘लीला मुखारविन्द’ प्रमुख हैं ।
शैली – ऋतुराज की शैली प्रभावपूर्ण, गम्भीर और संयत है। भाषा मधुर, अपने परिवेश और लोकजीवन से जुड़ी है। उनकी रचना में जहाँ एक ओर सुकवियों की-सी कोमल कल्पना तथा प्रतिभा का उन्मेष दिखाई पड़ता है, वहीं दूसरी ओर लोक कवियों की-सी मर्मस्पर्शिता और सरलता भी दिखाई देती है।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
कन्यादान
(1) कितना प्रामाणिक पंक्तियों की हुई।
शब्दार्थ – प्रामाणिक = वास्तविक, सच्चाई से परिपुष्ट । लड़की को दान में देते वक्त = विवाह के समय बेटी का कन्यादान करते समय। सयानी = समझदार, वयस्क । सुख का आभास = सुख की अनुभूति। बाँचना = पढ़ना | पाठिका = पढ़नेवाली । धुँधले प्रकाश = अस्पष्ट ज्ञान। तुकों = कविता की तुकबन्दी । लयबद्ध = लय में बँधी हुई।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) लड़की की सरलता को दर्शाने हेतु कवि ने कौन-सी पंक्तियाँ रची हैं?
(ङ) अन्तिम पूँजी के रूप में कन्यादान की जाती बेटी की तुलना कितनी औचित्यपूर्ण है?
अथवा माँ को अपनी बेटी अन्तिम पूँजी क्यों लग रही थी?
(च) ‘दुःख बाँचना नहीं आता था’ इस पंक्ति से कवि कन्या की किस स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहता है?
अथवा लड़की के धुँधले प्रकाश की पाठिका होने के उल्लेख के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
अथवा ‘लड़की को दुःख बाँचना नहीं आता था।’ इस कथन का भावार्थ समझाइए |
(छ) किसका दुःख प्रामाणिक था और क्यों?
(ज) ‘लड़की सयानी न थी’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(झ) कविता की पंक्तियों में आखिर माँ की मुख्य पीड़ा (दुःख) क्या है?
उत्तर-
(क) कवि – ऋतुराज । कविता का नाम – कन्यादान ।
(ख) भावार्थ – कवि कन्यादान के समय माँ की स्थिति और उसके द्वारा लड़की को दी गई सीख के विषय में कहता है – किसी माँ का वह दुःख दूसरा किस प्रकार जान सकता है जो उसे विवाह के समय अपनी कन्या का दान करते समय हुआ होगा? मानो वह अपनी अन्तिम पूँजी दान कर रही हो। ऐसे व्यक्ति को, जिसकी पात्रता – अपात्रता के विषय में उसे स्वयं दुविधा हो कि वह उसकी उसे अमूल्य पूँजी को भली-भाँति सहेजकर रख भी पाएगा अथवा नहीं।
कवि माँ के दुःख का स्पष्टीकरण करता हुआ कहता है कि लड़की अभी विवाह योग्य आयु की अर्थात् सयानी नहीं थी, इसलिए उसे सांसारिक समझ बिल्कुल नहीं थी कि जीवन जीने के लिए बड़ी चतुराई की आवश्यकता होती है। भोले-भाले और सीधेपन से जीवन में काम नहीं चलता, किन्तु लड़की जीवन की इस सच्चाई से अनजान वास्तव में अत्यन्त भोली और स्वभाव की सरल थी। अपने इसी भोलेपन और स्वभाव की सरलता के कारण वह विवाह सम्बन्धी सुखों के स्वप्न सजाना जानती थी। वह इस वास्तविकता से बिल्कुल अनभिज्ञ थी कि जिन सुखों की कल्पना वह कर रही है, विवाह के बाद की सच्चाई ठीक इसके विपरीत है। उसे विवाहोपरान्त ससुराल में किन दुःखों, कठिनाइयों, संघर्षों और पीड़ाओं को सहन करना पड़ेगा, इसका उसे तनिक भी ज्ञान न था । दुःख क्या होता है और उससे पार कैसे पाया जाता है, जीवन की पाठशाला में अभी उसने यह पाठ पढ़ना न सीखा था। विवाह के मधुर-मोहक सुखों को कल्पना के अस्पष्ट ज्ञान प्रकाश में ही अभी उसने देखा था, इसीलिए वह अभी यही समझती थी कि विवाह खूब सजने-सँवरने और आभूषण तथा सुन्दर वस्त्र धारण करने का सुनहरा अवसर होता है। उसके लिए तो विवाह अभी सुन्दर कविता की मोहक तुकबन्दी और लयबद्ध पंक्तियों की सरसता के समान आनन्द प्रदान करनेवाला आयोजन था, वह यह बिल्कुल नहीं जानती थी कि विवाह जीवन की कटु सच्चाइयों, संघर्षों और दुःखों का प्रवेश द्वार है। बेटी की यही स्थिति माँ के दुःखों का कारण थी; क्योंकि बेटी जिन दुःखों को जानती तक न थी, माँ ने उन्हें स्वयं भोगा है, इसीलिए अल्पवयस्क बेटी के सुखमय जीवन की चिन्ता से दुःखी है कि उसकी बेटी कैसे इन दुःखों को सहन करेगी।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) माँ के संचित अनुभव की पीड़ा होती है। इसीलिए उसे उसकी अन्तिम पूँजो कहा गया है। द्रष्टव्य है। (2) बेटी माँ के सबसे निकट और सुख-दुःख की साथी (3) भाषा – सरल, प्रवाहपूर्ण और लोकजीवन से जुड़ी हुई है। (4) ‘कन्यादान’ जैसे पारम्परिक संस्कार और बाल विवाह के औचित्य का प्रश्न उठाकर अपनी प्रगतिशीलता का परिचय दिया है।
(घ) लड़की की सरलता को दर्शाने हेतु कवि ने निम्नलिखित पंक्तियाँ रची हैं—
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की,
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की ।
(ङ) व्यक्ति सुखद भविष्य के लिए दिन-रात परिश्रम करके सम्पत्ति का संग्रह करता है, किन्तु उसकी उस कुल जमापूँजी को यदि कोई उससे सदैव के लिए ले ले तो उस समय उसे जो दुःख होगा, उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। ठीक वही स्थिति कन्यादान के समय कन्या के माता-पिता की होती है। उस समय उनका कन्या पर से अधिकार समाप्त हो रहा होता है, और जिसे वह अपना अधिकार सौंप रहे होते हैं, उसके विषय में भी वह दुविधा की स्थिति में होते हैं कि पता नहीं उनकी उस जीवन की जमा पूँजी (बेटी) को वह संरक्षित रख भी पाएगा अथवा, अपने क्रूर व्यवहार से उसे छिन्न-भिन्न कर देगा। निस्सन्देह कवि ने कन्या की तुलना अन्तिम जमा पूँजी के रूप में उचित ही की है।
(च) ‘दुःख बाँचना नहीं आता था’ पंक्ति से कवि विवाह के समय कन्या की स्थिति को स्पष्ट करना चाहता है कि उस समय तक कन्या प्राय: इस बात से अनजान होती है कि दुःख क्या होता है; क्योंकि उस समय तक उसके माता-पिता उस पर दुःख की छाया तक नहीं पड़ने देते। खाना और खेलना यही उसकी दिनचर्या होती है। उसका अभी तक दुःखों से सामना नहीं हुआ होता; अत: वह दुःख के आने की आहट को भी नहीं पहचान पाती। विवाह के समय कन्या केवल अपने सुखद भविष्य की कल्पना करती है, उसे कल समाज और संसार की जिम्मेदारियों का निर्वाह भी करना है, जिनमें अनेक कष्ट और दुःख भी उसे सहने पड़ेंगे, इसका अहसास उसे बिल्कुल भी नहीं होता और न उसे इस बात का पता होता है कि उसे उन दुःखों से किस प्रकार पार पाना है। कन्या की इसी स्थिति की ओर कवि ने यहाँ ध्यान आकर्षित किया है।
(छ) लड़की की माँ का दुःख प्रामाणिक ( सच्चा अथवा वास्तविक) था; क्योंकि बेटी के प्रत्येक सुख-दु:ख के साथ उसकी माँ का सुख-दुःख जुड़ा होता है। उसने आज तक जिसे पूँजी की तरह सहेजकर रखा था, आज उसी को कन्या- दान में देकर उसका मन दुःखी हो रहा है कि पता नहीं विवाह के उपरान्त उसे जीवन में सुख मिलेगा अथवा दुःख । उसकी लाड़ली को पता नहीं उसका पति अथवा उसके ससुरालवाले उसे उसी स्नेह से रख भी पाएँगे अथवा नहीं, जिस स्नेह से उसने उसे आज तक पाला-पोसा था। इस प्रकार कन्या का दान करते समय उसकी माँ का दुःख सच्चा दुःख था, जिसे केवल वही जान सकती है।
(ज) ‘लड़की सयानी न थी’ इसका आशय यह है कि जिस लड़की का कन्यादान किया जा रहा था, वह वयस्क न थी अर्थात् उसका बाल-विवाह किया जा रहा था। वयस्क होने के कारण लड़की को संसार के छल-छद्म से परिपूर्ण व्यवहार की समझ न थी कि विवाहोपरान्त गृहस्थ जीवन को सफलतापूर्वक जीने के लिए किस चतुराई और बुद्धि-विवेक की आवश्यकता होती है। उसकी इसी अज्ञानता को उसके सयानी न होने के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
(झ) कविता की इन पंक्तियों में माँ की मुख्य पीड़ा यही है कि उसकी अल्पवयस्क बेटी को अभी सांसारिकता का ज्ञान नहीं है, उसने तो अभी केवल सुख के सुहाने सपने सँजोए हैं, माँ-पिता के साये तले अभी तो उसे दुःख का अनुभव ही नहीं हुआ कि दुःख क्या होता है। कल जब उसे संसार की कठोरता और निष्ठुरता का सामना करना पड़ेगा, तब वह उस पीड़ा को कैसे सहन कर पाएगी।
(2) माँ ने ………… मत देना। 
शब्दार्थ – रीझना = मुग्ध होना । आभूषण = गहने। शाब्दिक भ्रम = शब्दों द्वारा उत्पन्न किए गए भ्रम ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए ।
(घ) कवि ने वस्त्राभूषणों को कैसा बताया है?
(ङ) ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं’ इस बात से माँ बेटी को क्या सीख देना चाहती है?
(च) ‘लड़की होना, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना’ इस पंक्ति में कवि ने किस पीड़ा को व्यक्त किया है?
(छ) माँ बेटी को अपने चेहरे पर न रीझने के लिए क्यों समझाती है?
(ज) वस्त्र और आभूषण स्त्री के जीवन के बन्धन कैसे हैं?
उत्तर –
(क) कवि – ऋतुराज । कविता का नाम – कन्यादान |
(ख) भावार्थ – कन्यादान करते समय एक माँ अपनी बेटी को सीख देती है— ससुराल में जाकर कुएँ अथवा नदी में जल भरते समय या दर्पण में बननेवाले अपने चेहरे के प्रतिबिम्ब की सुन्दरता को देखकर उस पर मत रीझना अर्थात् अपने सौन्दर्य पर स्वयं ही कभी मुग्ध न होना। अर्थात् कभी भी अपनी सुन्दरता पर घमण्ड मत करना । यदि तूने उस पर घमण्ड किया तो हो सकता है कि वह तालाब अथवा कुएँ का जल ही तेरे जीवन को लील जाए । अर्थात् तेरे घमण्ड करने पर तेरे ससुरालवाले तुझे जल में डुबोकर मार भी सकते हैं। यह भी हो सकता है कि तेरे घमण्ड से क्षुब्ध होकर वे तुझे उस आगे में जलाकर मार डालें, जिसका प्रयोग रसोई में रोटियाँ सेंकने के लिए किया जाता है। कवि यहाँ दहेज के लिए जलाकर मार डाली जानेवाली कन्याओं की स्मृति कराते हुए कहता है कि आग लड़कियों के जलाने के लिए नहीं है, बल्कि रोटियाँ सेंकने के लिए है। माँ लड़की को ऐसा कहकर दहेज लोभियों पर कटाक्ष भी कर रही है और अपनी पुत्री को सावधान भी कर रही है। वह अपनी पुत्री को आगे समझाते हुए कहती है- वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों के समान बन्धन हैं स्त्री के जीवन के लिए पुरुष वर्ग स्त्री को वस्त्राभूषण के मोहक जाल में फँसाकर जीवनभर उसका सब प्रकार से शोषण करता है। इसलिए यदि तुझे अपनी स्वतन्त्र सत्ता बनाए रखनी है तो तू इन वस्त्राभूषणों के प्रति आकर्षित मत रहना । माँ अपनी बेटी को एक और सीख देती है कि तू मन तो लड़की के गुणों निश्छलता, सरलता और भोलेपन को अवश्य धारण करना, किन्तु इस संसार के सामने अपने इन गुणों को प्रकट मत होने देना; क्योंकि यदि लोग यह जान गए कि तू निश्छल, सरल और भोली-भाली है तो वे तेरा शारीरिक-मानसिक सब प्रकार से शोषण करेंगे। तुझे अपने अधिकारों के प्रति हरपल सजग रहना है, जिससे कोई भी तुझ पर किसी प्रकार का अन्याय न कर सके। तू कभी भी किसी भी अन्याय को चुपचाप सहन मत करना और यह तभी सम्भव है कि भीतर से तो लड़की जैसी बनकर रहना, किन्तु बाहर से व्यावहारिक रूप में लड़की जैसी दब्बू बनकर मत रहना।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) माँ बेटी को परम्परागत आदर्श से हटकर सीख दे रही है कि यदि तेरी कन्योचित कोमलता और शालीनता शोषण का कारण बन जाएँ तो तू इनके चोले को उतार फेंकना, अपना शोषण मत होने देना। किन्तु किसी भी स्थिति में (2) भाषा — सरल, प्रवाहपूर्ण और लोकजीवन से जुड़ी है। (3) अपने ही सौन्दर्य पर मुग्ध न होने की सीख दी गई है।
(घ) कवि ने वस्त्राभूषणों को शाब्दिक भ्रमों के समान बताया है। और कहा है कि ये स्त्री के जीवन के लिए एक बन्धन हैं। प्रायः स्त्रियाँ वस्त्राभूषण के मोह में फँसकर अपना स्वतन्त्र अस्तित्व गँवा बैठती हैं और सदैव के लिए पुरुषों की दासी हो जाती हैं। “
(ङ) विवाह के समय एक माँ अपनी बेटी को सुखद जीवन का मूलमन्त्र समझाती हुई सीख देती है कि बेटी कभी अपने रूप-सौन्दर्य पर घमण्ड मत करना; क्योंकि यह घमण्ड कन्या के जीवन को आग की तरह जलाकर भस्म कर देता है। जैसे आग का समुचित उपयोग करके उस पर रोटियाँ सेंककर जीवन को ऊर्जा प्रदान की जाती है, ठीक वैसे ही तू अपने रूप-सौन्दर्य का उपयोग अपने पति को जीवन की ऊँचाइयाँ प्राप्त करने के लिए ऊर्जस्वित करने के लिए करना; क्योंकि आग की उपयोगिता (सार्थकता) रोटी सेंकने में है, किसी को जलाने में नहीं ।
(च) ‘लड़की होना, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना’ इस पंक्ति के द्वारा कवि ने नारी जीवन की विसंगतियों की ओर संकेत किया है। नारी के अभिशप्त जीवन की उस पीड़ा को यहाँ अभिव्यक्ति मिली है, उपभोग की वस्तु के रूप में जिसे नारी को पल-प्रतिपल सहन करना होता है। यहाँ कवि ने ‘लड़की जैसी दिखाई मत देना’ के द्वारा इस पीड़ा के निदान का भी संकेत कर दिया हैं कि यदि लड़की अपनी योग्यता और कर्मनिष्ठा के बल पर स्त्री के अबलारूपी चोले को उतार फेंके तो वह भी जीवन की रँगीनियों का पुरुषों के समान उपभोग करती हुई जीवन को आनन्द से भर सकती है।
(छ) माँ बेटी को अपने चेहरे अर्थात् रूप – सौन्दर्य पर न रीझने के लिए इसलिए समझाती है कि उसका अपने रूप-सौन्दर्य का घमण्ड प्रायः उसके लिए प्राणघातक हो जाता है।
(ज) प्रायः स्त्रियाँ वस्त्राभूषणों को सर्वस्व मान बैठती हैं। पुरुष उसकी दुर्बलता का लाभ उठाकर उसे वस्त्राभूषणों के मोहपाश में फँसाए रखकर अपनी इच्छानुसार उसका दैहिक और मानसिक शोषण करते हैं और धीरे-धीरे स्त्री अपना स्वतन्त्र अस्तित्व गँवा बैठती है। इस प्रकार वस्त्र और आभूषण स्त्री जीवन के बन्धन होते हैं।
3. कविता के सन्देश / जीवन-मूल्यों तथा सौन्दर्य सराहना पर लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – ‘कन्यादान’ कविता का प्रतिपाद्य विषय क्या है?
उत्तर— ऋतुराज द्वारा रचित ‘कन्यादान’ कविता में माँ बेटी को स्त्री के परम्परागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर सीख दे रही है। हमारी समाज-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आचरण सम्बन्धी जो प्रतिमान गढ़ लिए गए हैं, वे आदर्श के आवरण में उसके बन्धन होते हैं। स्त्री की ‘कोमलता’ के गौरव में वस्तुतः उसकी ‘कमजोरी’ का उपहास छिपा रहता है, कवि ने इस कटु सत्य का उद्घाटन करने के साथ माँ के माध्यम से यह सन्देश भी दिया है कि लड़की को सदैव कोमलता की चादर ओढ़े ही नहीं रहना चाहिए। लड़की जैसा न दिखाई देने में इसी आदर्शीकरण का प्रतिकार दिखाई देता है। बेटी माँ के सबसे निकट और उसके सुख-दुःख की साथी होती है। इसी सम्बन्ध की सफल अभिव्यक्ति के लिए उसे अन्तिम पूँजी भी कहा गया है। कविता में केवल भावुकता नहीं है, बल्कि माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिक अभिव्यक्ति भी है। इस छोटी-सी कविता में स्त्री जीवन के प्रति कवि की गहरी संवेदनशीलता प्रकट हुई है।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – कवि ऋतुराज का समकालीन कवियों में स्थान निर्धारित कीजिए।
उत्तर – मुख्य धारा से अलग समाज के हाशिये के लोगों की चिन्ताओं को ऋतुराज ने अपने लेखन का विषय बनाया है। ऋतुराज की कविताओं में दैनिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ विद्यमान है और वे अपने आस-पास रोजमर्रा में घटित होनेवाले सामाजिक शोषण और विडम्बनाओं पर दृष्टि डालते हैं। यही कारण है कि उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक – जीवन से जुड़ी हुई है।
जीवन के कथा पक्षों की सही पहचान और शैली की नव्य-से-नव्यतर कोशिश के कारण ऋतुराज का समकालीन कवियों में एक विशिष्ट स्थान है।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एव उनके उत्तर
प्रश्न 1 – आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
अथवा ‘लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना’ का आशय स्पष्ट कीजिए । 
उत्तर – माँ ने ऐसा इसलिए कहा कि तुम अपने अन्दर लड़की के कोमलतारूपी गुणों को तो जीवित रखना, परन्तु इस कोमलता को कोई तुम्हारी कमजोरी समझ ले, ऐसा मत करना; क्योंकि वर्तमान में लड़कियों पर बहुत अत्याचार किए जा रहे हैं और वे उनका प्रतिकार नहीं कर पाती हैं। यहाँ माँ ने अपनी बेटी को इन शब्दों के माध्यम से अत्याचारों का प्रतिकार करने की सीख दी है।
प्रश्न 2 – ‘ आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
‘जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा ?
उत्तर-
(क) विवाह होकर ससुराल जाने के बाद बहू रूप में कन्या का मुख्य दायित्व चौकाचूल्हा सँभालना होता है। वह सारे परिवार के लिए आग पर रोटियाँ बनाती है, किन्तु अनेक बार ससुराल की परिस्थितियों से क्षुब्ध होकर कन्याएँ उसी आग का प्रयोग अपनी इहलीला समाप्त करने के लिए भी कर बैठती हैं। इन पंक्तियों में कवि ने ऐसी कन्याओं के लिए यही सन्देश दिया है कि विषम से विषमत परिस्थितियों में भी उन्हें यह कदम नहीं उठाना चाहिए; क्योंकि आग रोटियाँ सेंकने के लिए होती है, जलने के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त समाज में आज दहेज के लिए महिलाओं को जलाकर मार डालने की घटनाएँ बहुत हो रही हैं। इस कुप्रथा के प्रति चेताते हुए भी कवि लोगों को बहुओं को न जलाने की ओर संकेत करता हुआ कहता है कि ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है, जलने के लिए नहीं ।
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना इसीलिए जरूरी समझा कि कहीं उसे भी ससुराल में प्रताड़ित न किया जाए। यदि उसके साथ कोई अन्याय-अत्याचार किया जाए तो वह उसे स्वयं को अबला मानकर चुपचाप न सहन करे और न ही आत्मघात जैसा कदम उठाए, वरन् उन सबका प्रतिकार करके स्वयं को प्रतिष्ठित करके समाज में अपना स्थान बनाएं।
प्रश्न 3 – ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की ‘
इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है, उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर— लड़की अत्यन्त ही सरल स्वभाव की थी। उसे अभी संसार की बातों का कुछ भी ज्ञान नहीं था। वह केवल सुखों के सुनहले स्वप्न सँजो रही थी। वह सोचती थी कि उसका जीवन सुखों के मधुर संगीत पर थिरकेगा, गुनगुनाएगा । घर-गृहस्थी के कठोर बन्धनों और उत्तरदायित्वों का तो उसे अत्यल्प ज्ञान था, और वह भी आधा-अधूरा । ऐसी बालपन की सोच के बीच उसका कन्यादान कर दिया जाता है। निश्चित ही वह लड़की अल्प आयु ही रही होगी।
प्रश्न 4- माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर- बेटी माँ के सबसे निकट और उसके सुख-दुःख की साथी होती है। इसीलिए माँ के लिए वह ‘अन्तिम पूँजी’ होती है; क्योंकि माँ उसे दान (कन्यादान) करना पड़ता है।
प्रश्न 5 – माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी ? 
उत्तर- माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दीं-
(i) अपने सौन्दर्य पर कभी मुग्ध न होना।
(ii) वस्त्र और आभूषण के बन्धनरूपी लालच में मत फँसना ।
(iii) अपनी सरलता, निश्छलता, भोलेपन और कोमलता बनाए रखना, पर उसे अपनी कमजोरी मत बनने देना; जिससे लोग उसका अनुचित लाभ उठाकर उसका शोषण न कर सकें।
(iv) आग और पानी का प्रयोग जीवन को सँवारने के लिए करना, उनका आत्महत्या के लिए प्रयोग न करना और न ही अपने खिलाफ इनका प्रयोग दूसरों को करने देना ।
6. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1—’ लड़की अभी सयानी नहीं थी’, इस पंक्ति से कवि समाज की किस विसंगति की ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर- ‘लड़की अभी सयानी नहीं थी’ इस पंक्ति के द्वारा कवि समाज में फैली बाल-विवाह की विसंगति की ओर संकेत कर रहा है कि विवाह के समय जिस कन्या को माँ सीख दे रही है, वह अभी सम्भवतः घर-गृहस्थी के उत्तरदायित्वों का भार उठाने में सक्षम नहीं है। वह अभी उस परिपक्वता को प्राप्त नहीं कर पाई है, जो विवाह – योग्य कन्या में होनी चाहिए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *