UK Board 10 Class Hindi Chapter 9 – मंगलेश डबराल (काव्य-खण्ड)
UK Board 10 Class Hindi Chapter 9 – मंगलेश डबराल (काव्य-खण्ड)
UK Board Solutions for Class 10th Hindi Chapter 9 मंगलेश डबराल (काव्य-खण्ड)
मंगलेश डबराल (संगतकार)
1. कवि-परिचय
प्रश्न – कवि मंगलेश डबराल का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित शीर्षकों के आधार पर दीजिए-
जीवन-परिचय, कृतियाँ, शैली ।
उत्तर— जीवन-परिचय- समकालीन कविता के क्षेत्र में अपनी रचनाओं के कारण एक अलग पहचान बनानेवाले कवि मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई, 1948 ई० को काफलपानी (जनपद टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड) में हुआ। कवि की प्रारम्भिक शिक्षा टिहरी गढ़वाल में तथा उच्चशिक्षा टिहरी से बाहर हुई। दिल्ली आकर ‘हिन्दी पेट्रियट’, ‘प्रतिपक्ष’ और ‘आसपास’ में काम करने के बाद वे भोपाल में भारत-भवन से प्रकाशित होनेवाले ‘पूर्वग्रह’ में सहायक सम्पादक हुए। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में काम करने के बाद सन् 1983 ई० में ‘जनसत्ता’ अखबार में साहित्य सम्पादक का पद सँभाला। कुछ समय ‘सहारा समय’ में सम्पादन कार्य करने के बाद वर्तमान में ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ से जुड़े हैं।
कृतियाँ – मंगलेश डबराल के चार कविता-संग्रह प्रकाशित हुए हैं— ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’ और ‘आवाज भी एक जगह है’। मंगलेशजी की कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, रूसी, जर्मनी, पोल्स्की, स्पेनिश भाषा में अनुवाद हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के सवालों पर नियमित लेखन भी करते हैं।
भाषा-शैली — शैली और शिल्प की दृष्टि से मंगलेशजी ने नई कविता का अनुकरण अवश्य किया है, किन्तु यह अनुकरण उन्होंने केवल स्वयं के भावबोधन के लिए ही किया है। मंगलेशजी की कविताओं में सामन्ती बोध एवं पूँजीवादी छलछद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुन्दर सपना रचकर करते हैं। उनका सौन्दर्य-बोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी ।
2. काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
संगतकार
(1) मुख्य गायक ………….. अनहद में
शब्दार्थ- संगतकार = मुख्य गायक के साथ गायन करनेवाला या कोई वाद्य बजानेवाला कलाकार; सहयोगी। गरज = ऊँची गम्भीर आवाज । अन्तरा = स्थायी या टेक को छोड़कर गीत का चरण । जटिल = कठिन | तान = संगीत में स्वर का विस्तार । सरगम = संगीत के सात स्वर। अनहद = दोनों कान बन्द करने के पश्चात् ध्यानमग्न होने पर कानों से आनेवाली ध्वनि ।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(घ) पद्यांश में किसकी भूमिका को स्पष्ट किया गया है?
(ङ) मुख्य गायक की आवाज कैसी होती है?
(च) परम्परागत रूप से मुख्य गायक का साथ देनेवाले लोग कौन होते हैं?
(छ) गायक के सरगम को लाँघकर भटकने से कवि का क्या आशय है?
(ज) मुख्य गायक के सहायक कलाकार की भूमिका कब महत्त्वपूर्ण हो जाती है?
उत्तर –
(क) कवि – मंगलेश डबराल | कविता का नाम – संगतकार ।
(ख) भावार्थ – प्रस्तुत पद्य में गायन में मुख्य गायक का साथ देनेवाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व पर विचार किया गया है। कवि कहता है कि मुख्य गायक के चट्टान से भारी और ऊपर चढ़ते गम्भीर स्वर का साथ देती एक और सुन्दर, कमजोर, कम्पायमान- सी आवाज सुनाई देती है। यह आवाज जिस सहायक कलाकार की होती है, उसे ही संगीत की भाषा में संगतकार कहा जाता हैं। यह संगतकार प्रायः मुख्य गायक का छोटा भाई, उसका शिष्य या उस्ताद के पास पैदल चलकर दूर से संगीत सीखने आनेवाला उसका कोई रिश्तेदार होता है। कवि संगतकार की भूमिका को स्पष्ट करता हुआ कहता है कि वह (संगतकार) मुख्य गायक की ऊँची गम्भीर आवाज से अपनी आवाज प्राचीनकाल से ही मिलाता आया है; अर्थात् गायन में संगतकार की भूमिका प्राचीनकाल से ही विद्यमान रही है। मुख्य गायक जब गीत की प्रथम पंक्ति गाने के बाद अन्तरे की जटिल तान भरता है अर्थात् गीत के अगले चरण को उठाने में मग्न हो जाता है तो उसे सरगम का भी ध्यान नहीं रहता, जिसके परिणामस्वरूप वह स्वरों के जंगल में भटकने लगता है। उसे उस समय केवल अनहद (दोनों कान बन्द कर ध्यानमग्न होने पर आनेवाली ध्वनि) ही सुनाई देता है।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) नई कविता नवीन उपमानों की ही पक्षधर है। कवि ने यहाँ वही किया है। (2) भाषा – परिष्कृत, परिमार्जित है। (3) अलंकार – ‘भटकता हुआ एक अनहद में’ में उल्लेख अलंकार है ।
(घ) पद्यांश में मुख्य गायक का साथ देनेवाले संगतकार की भूमिका को स्पष्ट किया गया है।
(ङ) मुख्य गायक की आवाज चट्टान जैसी भारी और गम्भीर होती है। उसी में गीत का भाव उत्साह, वियोग, शोक आदि व्यक्त होता है। भाव के अनुसार वह आवाज कड़क, गर्जनापूर्ण, करुण अथवा विह्वल कर देनेवाली होती है।
(च) परम्परागत रूप से मुख्य गायक का साथ देनेवाले लोग प्रायः उसके छोटे भाई, उसके शिष्य अथवा दूर के वे रिश्तेदार होते हैं, जो उसके पास पैदल चलकर इसलिए आते हैं कि वे उसकी संगत में रहकर संगीत सीख जाएँगे।
(छ) गायक के सरगम को लाँघकर भटकने का आशय मुख्य गायक के गाने समय स्वरों के नियमों को लाँघकर गलत स्वरों के प्रयोग करने से है। जब मुख्य गायक को सात स्वरों का ध्यान नहीं रहता और वह गलत स्वरों का प्रयोग करने लगता है, उसी को कवि ने सरगम – लाँघकर भटकना कहा है।
(ज) मुख्य गायक के सहायक कलाकार की भूमिका तब महत्त्वपूर्ण हो जाती है, जब मुख्य गायक अपनी धुन में स्वरों को भूल जाता है, वह गाते समय जब अनहद नाद को सुनता हुआ यहं भूल जाता है कि वह कोई गीत भी गा रहा है, तब सहायक कलाकार उचित स्वरों के प्रयोग द्वारा गायक को सही स्वरों पर लौट आने का मार्ग दिखाता है।
(2) तब संगतकार …………….. जाना चाहिए।
शब्दार्थ – स्थायी = गीत की प्रथम मुख्य पंक्ति । नौसिखिया = जिसने अभी सीखना आरम्भ किया हो । तारसप्तक = सरगम के ऊँचे स्वर । गला बैठने लगना = स्वर फटने के कारण आवाज न निकलना । अस्त होता = समाप्त होता । राख जैसा कुछ गिरता = बुझता हुआ स्वर। ढाँढ़स बँधाता = तसल्ली देता । हिचक = संकोच । विफलता = असफलता।
प्रश्न –
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
(ग) पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए ।
(घ) प्रस्तुत पंक्तियों में संगतकार किसका प्रतीक है?
(ङ) गाए जा चुके राग को फिर से गाने से कवि का क्या आशय है?
(च) किसे मनुष्यता समझा जाना चाहिए?
(छ) ‘स्थायी को सँभाले रखना’ का क्या तात्पर्य है?
(ज) मुख्य गायक को कौन- कब ढाँढ़स बँधाता है?
(झ) किसकी आवाज में क्या हिचक साफ सुनाई देती है?
(ञ) संगतकार क्यों अपनी आवाज को ऊँचा उठाने की कोशिश नहीं करता?
(ट) कविता की अन्तिम दो पंक्तियों में कवि ने क्या सन्देश दिया है?
उत्तर-
(क) कवि – मंगलेश डबराल | कविता का नाम — संगतकार ।
(ख) भावार्थ – कवि कहता है कि जब गायक अनहद की अवस्था में पहुँचकर सरगम से भटक जाता है, तब संगतकार ही प्रथम पंक्ति के मूलस्वर (आलाप) को सँभाले रहता है और गायक को पुनः मूलस्वर पर लौटा लाता है। कवि ने यहाँ संगतकार के लिए अनेक उपमान प्रयुक्त किए हैं। वह कहता है मूलस्वर को संगतकार ऐसे सँभालता है मानो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान समेटता हो । मानो वह गायक को उसके बचपन की उस समय की याद दिलाता हो, जब वह नया-नया गाना सीख रहा था। स्वरों को ऊँचा उठाने के खेल में जब उसका गला बैठने लगता है, स्वर बुझता हुआ प्रतीत होता है, उसी समय संगतकार का स्वर उसको सांत्वना देने के लिए प्रविष्ट हो जाता है। मानो वह उससे कह रहा हो कि तुम अकेले नहीं हो तुम्हारा साथ निभाने के लिए मैं हूँ, तुम तो बस निश्चिन्त होकर अन्तरा उठाते जाओ, बाकी सबकुछ मैं सँभाल लूँगा । वह उसे यह भी आश्वस्त करता है कि गाया जा चुका राग फिर से गाया जा सकता है। इतना साहसी होने पर भी संगतकार की आवाज में जो हिचक या कम्पन स्पष्ट अनुभव होता है, उसे उसकी विफलता नहीं समझना चाहिए, बल्कि उसकी मनुष्यता समझना चाहिए; अर्थात् वह भी यदि चाहे तो मुख्य गायक बन सकता है, किन्तु मानवता का परिचय देता हुआ वह मुख्य गायक को ऊपर उठाने में ही अपने जीवन की सार्थकता समझता है; इसीलिए वह अपने स्वर को कभी भी मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा नहीं रखता।
(ग) काव्य-सौन्दर्य – (1) नवीन प्रतीक यदि जीवन से या प्रकृति से चुने जाएँ तो निःसन्देह वे अधिक प्रभावी होते हैं। (2) भाषा — शुद्ध साहित्यिक व परिनिष्ठित । (3) अलंकार — ‘कभी-कभी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है ।
(घ) प्रस्तुत पंक्तियों में संगतकार उन लोगों का प्रतीक है, जो दूसरों को प्रगति पथ पर अग्रसर करके उन्हें समाज का नायक बनाते हैं और स्वयं अपरिचित ही बने रहते हैं।
(ङ) गाए जा चुके राग को फिर से गाने से कवि का आशय यह है कि प्रत्येक सफल व्यक्ति को सफल बनाने में कुछ ऐसे अपरिचित लोगों का बहुत बड़ा हाथ होता है, जो किसी कार्य में सफल | न होने पर निराशा के क्षणों में उसे उत्साहित करते हैं कि तुम पुनः उस विफल कार्य को आरम्भ करो, हम तुम्हारा साथ देने के लिए तुम्हारे साथ खड़े हैं जहाँ भी कार्यरूपी राग हमें भंग होता दिखेगा अथवा लय टूटती दिखाई देगी, वहाँ हम तुम्हारे डूबते स्वर में अपना स्वर मिलाकर लय को उठा देंगे।
(च) जो लोग दूसरों को सफल बनाते हैं और स्वयं को अपरिचित बनाए रखते हैं, उनके इस कार्य को उनकी विफलता अथवा कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि उसे उनकी मनुष्यता कहा जाना चाहिए।
(छ) ‘स्थायी को सँभाले रखना’ का तात्पर्य यह है— गीत की प्रथम मुख्य पंक्ति के मूलस्वर (टेक) को बिखरने अथवा परिवर्तित होने से बचाए रखना। अर्थात् संगतकार गीत की प्रथम पंक्ति की गति, स्वर के उठान और लय को कम या अधिक नहीं होने देता, वरन् सम्पूर्ण गीत में एक जैसी बनाए रखता है।
(ज) मुख्य गायक को संगतकार उस समय ढाँढस बँधाता है, जब स्वरों को ऊँचा उठाते समय उसका गला बैठने लगता है और मुख्य गायक की प्रेरणा और उत्साह गीत को बचाए रखने के स्थान पर उसका साथ छोड़ने लगते हैं।
(झ) संगतकार की आवाज में अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा न उठाने की हिचक साफ सुनाई देती है।
(ञ) संगतकार अपनी आवाज को ऊँचा उठाने की कोशिश इसलिए नहीं करता; क्योंकि यदि उसने ऐसा किया तो गीत की सफलता का श्रेय मुख्य गायक को न मिलकर उसे मिल जाएगा और वह उसको लेना नहीं चाहता ।
(ट) कवि ने कविता की अन्तिम दो पंक्तियों में यह सन्देश दिया है कि संगतकार, जो अपनी आवाज को मुख्य गायक की आवाज से ऊँचा नहीं उठाता, वह उसकी कोई मजबूरी नहीं होती है और न वह असफल रहने के भय से ऐसा करता है, वरन् वह तो मानवता के नाते दूसरों (मुख्य गायक) को सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिए स्वयं गुमनामी का वरण करता है। हमें ऐसे लोगों की कभी भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए, वरन् उनसे परोपकार की प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए।
3. कविता के सन्देश/जीवन-मूल्यों तथा सौन्दर्य सराहना पर लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – ‘ संगतकार’ कविता में कवि ने किस विषय पर विचार प्रकट किए हैं?
उत्तर – मंगलेश डबराल की ‘संगतकार’ कविता गायन में मुख्य गायक का साथ देनेवाले संगतकार की भूमिका के महत्त्व पर विचार करती है। दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियों; जैसे- नाटक, फिल्म, संगीत, नृत्य के विषय में तो यह सही है ही, हम समाज और इतिहास में भी ऐसे अनेक प्रसंगों को देख सकते हैं, जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया होता है। कविता हममें यह संवेदनशीलता विकसित करती है कि उनमें से प्रत्येक का अपना-अपना महत्त्व है और उनका सामने न आना उनकी कमजोरी नहीं, उनकी मानवीयता है । संगीत की सूक्ष्म समझ और कविता की दृश्यात्मकता इस कविता को ऐसी गति देती है, मानो हम इसे अपने सामने घटित होता देख रहे हों।
प्रश्न 2 – ‘ संगतकार’ कविता में निहित जीवन-मूल्यों पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर — ‘संगतकार’ के माध्यम से कवि उन व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाहता है, जो अपने सहयोग से दूसरों को सफलता के सर्वोच्च शिखर तक पहुँचाते हैं और स्वयं अपरिचित बने रहते हैं। ऐसे लोग उस समय उस नायक को सहारा देकर सँभालते हैं, जब उसका धैर्य, आत्मविश्वास और आत्मबल सबकुछ चुक गया होता है। इस संसार में लड़खड़ातों को गिराकर स्वयं आगे बढ़ जाना ही सबकुछ नहीं है और न ही इसे मानवता कहा जा सकता है। जो लोग गायक के लड़खड़ाते स्वर को सँभालते संगतकार को हेय दृष्टि से देखते हैं और उसे मुख्य गायक से निम्न दृष्टि का समझते अथवा यह समझते हैं कि संगतकार के स्वर में मुख्य गायक के स्वर जैसा सम्बल नहीं होता, इसलिए वह संगतकार होता है और इसी कारण वह कभी मुख्य गायक नहीं बन सकता; वे लोग गलत सोचते हैं। यदि संगतकार अपने धर्म को भूलकर लड़खड़ाते स्वरों को अपने उच्च स्वरों से धूल-धूसरित कर स्वयं गायक बन जाएँगे तो इससे तो धरती से मानवता का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए हमें संगतकार की भूमिका निभाहनेवाले दूसरों के लिए स्वयं अन्धकार में जीनेवालों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। उनका महत्त्व समझा जाना चाहिए। दूसरों को प्रकाश में लाकर स्वयं को अँधेरे में रखना संगतकार की न तो कमजोरी है और न उसकी विवशता, वरन् वह तो मानवता अथवा जीवन-मूल्यों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता होती है, जिसका सभी को सम्मान करना चाहिए। उसके इन्हीं जीवन-मूल्यों पर प्रस्तुत कविता में प्रकाश डाला गया है।
4. रचनात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – मंगलेश डबराल की साहित्यिक उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – मंगलेश डबराल के चार कविता-संग्रह अब तक प्रकाशित हुए हैं— ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’ और ‘आवाज भी एक जगह है।’ साहित्य अकादमी पुरस्कार, पहल सम्मान से सम्मानित मंगलेशजी की प्रतिष्ठा अनुवादक के रूप में भी है। मंगलेशजी की कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पेनिश, पोल्स्की और बुल्गारी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति जैसे विषयों पर निरन्तर लेखन भी करते रहे हैं। मंगलेशजी की कविताओं में सामन्ती बोध एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार दिखाई देता है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं, बल्कि प्रतिपक्ष में एक सुन्दर सपना रचकर करते हैं। उनका सौन्दर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी ।
5. पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1 – ‘ संगतकार’ कविता के माध्यम से कवि किस प्रकार के व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है? ( 2008
उत्तर- ‘संगतकार’ के माध्यम से कवि दूसरों को सहयोग प्रदानकर शिखर तक पहुँचानेवाले व्यक्तियों की ओर संकेत करना चाह रहा है। वह यह भी संकेत करना चाह रहा है कि ऐसे उपकारी लोगों की किसी भी स्थिति में उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए।
प्रश्न 2 – ‘ संगतकार’ जैसे व्यक्ति संगीत के अलावा और किन-किन क्षेत्रों में दिखाई देते हैं?
उत्तर— ‘संगतकार’ जैसे व्यक्ति संगीत अलावा — फिल्म क्षेत्र, संचार क्षेत्र, प्रकाशन जगत्, चिकित्सा, कला आदि लगभग सभी क्षेत्रों में दिखाई देते हैं। जीवन के इन सभी क्षेत्रों में सफलता कभी भी दूसरों के सहयोग के बिना प्राप्त नहीं होती। यदि ये सहायक उस काम में अपना सम्पूर्ण योगदान न दें तो सफलता संदिग्ध ही होती है, फिर भी ये लोग निःस्वार्थभाव से काम करते रहते हैं। कार्य की सफलता का श्रेय केवल नायक को मिलता है और ये लोग अँधेरे में ही रह जाते हैं।
प्रश्न 3 – संगतकार किन-किन रूपों में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं?
उत्तर — संगतकार सहायक गायक और वादक के रूप में मुख्य गायक-गायिकाओं की मदद करते हैं। ये निम्नलिखित कार्य करते हैं—
(i) ये मुख्य गायक के स्वर में अपना स्वर मिलाकर उसे बल प्रदान करते हैं।
(ii) वे गीत के स्थायी (मूल पंक्ति, टेक) को सँभाले रखते हैं और गीत के अन्त तक एक समान लय और स्वर को बनाए रखते हैं।
(iii) जब गायक का गला बैठने लगता है, वह अनहद नाद को सुनता हुआ जब सरगम से भटक जाता है तो संगतकार ही उसे मूलस्वर पर लौटा लाने में सफल होता है।
(iv) संगतकार विभिन्न वाद्यों की सहायता से मुख्य गायक की प्रेरणा और उसकी सुर-ताल को बनाए रखते हैं।
प्रश्न 4 – भाव स्पष्ट कीजिए-
और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है उसे विफलता नहीं
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।
उत्तर— ‘काव्यांश पर अर्थग्रहण तथा विषयवस्तु सम्बन्धी प्रश्नोत्तर’ शीर्षक के अन्तर्गत भाग (2) देखें।
प्रश्न 5- किसी भी क्षेत्र में प्रसिद्धि पानेवाले लोगों को अनेक लोग तरह-तरह से अपना योगदान देते हैं। कोई एक उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर — अपने अध्यापक की सहायता से छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 6 – कभी – कभी तारसप्तक की ऊँचाई पर पहुँचकर मुख्य गायक का स्वर बिखरता नजर आता है, उस समय संगतकार उसे बिखरने से बचा लेता है। इस कथन के आलोक में संगतकार की विशेष भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – संगतकार की मुख्य गायक के साथ विशेष भूमिका होती है। गायक जब कार्यक्रम प्रस्तुत करते-करते भावमग्न हो जाता है, उसे केवल अनहद का आभास होने लगता है, जिस कारण वह मूलस्वर से भटक जाता है। इस स्थिति में संगतकार ही मुख्य गायक को पीछे से सहयोग देकर पुनः मुख्य भूमिका में लेकर आता है।
प्रश्न 7 – सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाता है, तब उसे सहयोगी किस तरह सँभालते हैं?
उत्तर – सफलता के चरम शिखर पर पहुँचने के दौरान यदि व्यक्ति लड़खड़ाता है तब सहयोगी ‘संगतकार’ की तरह उसे उत्साहित और प्रोत्साहित करके सँभालते हैं।
6. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – मंगलेश डबराल की कविता ‘संगतकार’ का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- ‘संगतकार’ कविता में कवि मंगलेश डबराल संगतकार के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहते हैं कि मुख्य गायक के ऊपर चढ़ते हुए भारी स्वर का साथ देती एक और आवाज सुन्दर, कमजोर, कम्पायमान-सी सुनाई देती है । सम्भवतया यह मुख्य गायक का छोटा भाई हो या उसका शिष्य या उस्ताद के पास पैदल चलकर दूर से संगीत सीखने आनेवाला उसका कोई रिश्तेदार, वह ( संगतकार) मुख्य गायक की ऊँची गम्भीर आवाज अपनी आवाज प्राचीनकाल से ही मिलाता आया है; अर्थात् गायन में संगतकार की भूमिका प्राचीनकाल से ही विद्यमान रही है। मुख्य गायक जब गीत के चरण में मग्न हो जाता है तो उसे सरगम का भी ध्यान नहीं रहता। उसे केवल अनहद (दोनों कान बन्द कर ध्यानमग्न होने पर आनेवाली ध्वनि) ही सुनाई देता है।
जब गायक अनहद की अवस्था में पहुँच जाता है, तब संगतकार ही उसके मूलस्वर को सँभाले रहता है। इस विषय में कवि कहता है कि मूलस्वर को संगतकार ऐसे सँभालता है, मानो उसे उसका बचपन याद दिलाता हो, मानो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान समेटता हो। वह गायक को उस समय की याद दिलाता है, जब वह नया-नया संगीत सीख रहा था । स्वरों के खेल में उसका गला बैठने लगता है, स्वर बुझता हुआ प्रतीत होता है, उसी समय संगतकार का स्वर उसको सांत्वना देने के लिए प्रविष्ट हो जाता है। मानो कह रहा हो कि तुम अकेले नहीं हो और यह भी कि गाया जा चुका राग फिर से गाया जा सकता है। संगतकार की आवाज में जो हिचक या कम्पन अनुभव होता है, उसे उसकी विफलता नहीं समझना चाहिए, बल्कि उसकी मनुष्यता समझना चाहिए; अर्थात् वह भी चाहे तो मुख्य गायक बन सकता है, किन्तु मानवता के कारण से वह ऐसा करता नहीं ।
