UK 9th Social Science

UK Board 9th Class Social Science – (इतिहास) – Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रुसी क्रान्ति

UK Board 9th Class Social Science – (इतिहास) – Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रुसी क्रान्ति

UK Board Solutions for Class 9th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (इतिहास) – Chapter 2 यूरोप में समाजवाद एवं रुसी क्रान्ति

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1– रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 से पहले कैसे थे?
उत्तर— सन् 1905 की रूस की क्रान्ति से पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा अत्यन्त शोचनीय थी, जिसका विवरण निम्नलिखित है-
  1. रूस की सामाजिक दशा — 1861 ई० से पूर्व रूस में सामन्तवाद का बोलबाला था। सामन्त लोग किसानों (भूमि – दास या अर्द्ध- दास) द्वारा बेगार लेकर अपनी जमीनों पर खेती करवाते थे। इन भूमि-दासों को सामन्तों के अनेक अत्याचारों का सामना करना पड़ा। रूस में कुछ छोटे किसान भी थे, जिनकी आर्थिक दशा दयनीय थी। सन् 1905 की रूसी क्रान्ति से पूर्व समाज में तीन वर्ग थे – पहला वर्ग सामन्तों व कुलीनों का था, जिसमें बड़े-बड़े सामन्त, जारशाही के सदस्य, उच्च पदाधिकारी आदि थे। मध्यम वर्ग का उदय औद्योगीकरण के फलस्वरूप हुआ था, जिसमें लेखक, विचारक, डॉक्टर, वकील तथा व्यापारी लोग शामिल थे। तीसरा वर्ग किसानों तथा मजदूरों का था। इस वर्ग के सदस्यों की दशा बहुत खराब थी । कुलीन और मध्यम वर्ग के लोग इन्हें हीन और घृणा की दृष्टि से देखते थे। पादरी वर्ग भी अनेक प्रकार से जनसाधारण वर्ग का शोषण करता था।
  2. रूस की आर्थिक दशा – औद्योगीकरण से पूर्व रूसी लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। रूस में किसानों की दशा बहुत दयनीय थी। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे और उन्हें कृषि की नवीन तकनीकों का ज्ञान नहीं था। धन के अभाव के कारण वे आधुनिक कृषि-यन्त्रों को खरीद पाने में असमर्थ थे। उन्हें कठोर परिश्रम करने पर भी अधिकांश भर – पेट भोजन नहीं मिलता था, क्योंकि उनकी उपज का. भाग स्नामन्त हड़प जाते थे। जार की निरंकुश सरकार ने श्रमिकों, मजदूरों तथा किसानों की आर्थिक दशा सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया। अतः सरकारी पदाधिकारियों के भ्रष्टाचार और सैनिकों के अत्याचारों ने स्थिति को दिन-प्रतिदिन गम्भीर बनाना आरम्भ कर दिया।
  3. राजनीतिक दशा — रूस का जार निकोलस द्वितीय बड़ा निरंकुश और राजा के दैवी अधिकारों का समर्थक था। उसने रूसी जनता की उदारवादी भावनाओं को कुचलने के लिए बड़ी कठोर नीति दिया था। राजद्रोह का केवल सन्देह होने पर कैदियों को साइबेरिया के अपनाई। उसने सम्पूर्ण देश में पुलिस तथा गुप्तचरों का जाल बिछा कैम्पों में भेज दिया जाता था। गैर-रूसियों को रूसी बनाने की प्रक्रिया भी जारी थी। रूस में भाषण, लेखन तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर कठोर प्रतिबन्ध लगे हुए थे। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में रूस की जारशाही की निरंकुशता के कारण सर्वत्र असन्तोष व्याप्त था। इसी समयं रूस-जापान युद्ध ( 1904-05 ई० ) में रूसी सेनाओं को भारी पराजय उठानी पड़ी। इस पराजय ने रूसी जनता के असन्तोष को पराकाष्ठा परं पहुँचा दिया और वह देश से जारशाही को मिटाने के लिए तत्पर हो गई।
प्रश्न 2— 1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी ?
उत्तर- अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में 1917 ई० से पहले रूस के कारीगरों, मजदूरों और किसानों की दशा बड़ी शोचनीय थी । इसका कारण रूस के जार निकोलस द्वितीय की निरंकुशवादी नीति थी । उसके निरंकुश शासन ने धीरे-धीरे प्रजा को अपने विरुद्ध कर लिया। सन् 1917 से पूर्व रूस की श्रमिक जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों की श्रमिक जनसंख्या से निम्नलिखित स्तरों पर भिन्न थी –
  1. रूस में लगभग 85 प्रतिशत लोग कृषि द्वारा ही अपनी रोजी कमाते थे। यह यूरोप के अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक था।
  2. रूसी किसानों की जोतें अन्य देशों के यूरोपीय किसानों की तुलना में छोटी थीं।
  3. रूसी किसान जागीरदारों व जमींदारों का कोई आदर नहीं करते थे। वे प्रायः लगान देने से इनकार कर देते थे। जमीदारों के अत्याचारी स्वभाव के कारण उनसे घृणा करते थे। इसके विपरीत फ्रांस में किसान अपने सामन्तों के प्रति वफादार थे। सन् 1789 की फ्रांसीसी क्रान्ति के समय वे अपने सामन्तों के लिए लड़े थे।
  4. रूस का किसान वर्ग, यूरोप के किसान वर्ग से भिन्न था। वे एक समय अवधि के लिए अपनी जोतों को इकट्ठा कर लेते थे। उनके परिवारों की आवश्यकतानुसार उनकी ‘कम्यून’ इसका बँटवारा करती थी।
  5. रूस में पुरुष श्रमिकों की अपेक्षा महिला श्रमिकों को बहुत कम वेतन दिया जाता था। इसके अतिरिक्त बच्चों से भी 10 से 15 – घण्टों तक काम लिया जाता था।
  6. यूरोप के अनेक देशों में औद्योगिक क्रान्ति आ चुकी थी; वहाँ कारखाने स्थानीय लोगों के हाथ में होने से श्रमिकों का अधिक शोषण नहीं होता था। परन्तु रूस में अधिकांश कारखाने विदेशी पूँजी से स्थापित हुए थे, जो रूसी श्रमकों का शोषण करने में संकोच नहीं करते थे।
प्रश्न 3 – 1917 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया?
उत्तर — सन् 1917 में रूस से जारशाही को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं-
  1. रूस का जार निकोलस द्वितीय बड़ा निरंकुश और राजा के दैवी अधिकारों का समर्थक था। उसने रूसी जनता की उदारवादी भावनाओं को कुचलने के लिए कठोर नीति अपनाई । जारशाही की दमनकारी नीति के कारण रूस की जनता में भीषण असन्तोष व्याप्त था ।
  2. रूस का ऑर्थोडॉक्स चर्च जार की निरंकुशता का पोषक था। चर्चका पादरी जार की निरंकुशता एवं स्वेच्छाचारी सत्ता का समर्थक था । चर्च का अनुचित प्रभाव जनता के कष्टों का मुख्य कारण था ।
  3. सन् 1905 की क्रान्ति का रूसी लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा। जबकि जार ने एक निर्वाचित सलाहकार पार्लियामेण्ट (ड्यूमा ) के निर्माण की घोषणा की, परन्तु उसने उसे कार्य करने की आज्ञा प्रदान नहीं की।
  4. जार ने रूस को प्रथम विश्वयुद्ध में धकेल दिया। फरवरी 1917 ई० तक लगभग 7 लाख सैनिक युद्ध में मारे जा चुके थे। युद्ध के समय उत्पादन की कमी हो गई, जिसने रूस में आर्थिक संकट को जन्म दिया।
  5. जार ने प्रथम विश्वयुद्ध में रूसी सेना की शक्ति बढ़ाने के लिए किसानों तथा श्रमिकों को जबरदस्ती सेना में भर्ती किया जिससे लोगों में असन्तोष की भावना बढ़ी।
  6. रूस में अनाज की कमी क्रान्ति का तात्कालिक कारण बन गई। इसका आरम्भ 7 मार्च, 1917 को ब्रेड खरीदने का प्रयत्न करती श्रमिक वर्ग की महिलाओं द्वारा आन्दोलन के साथ हुआ। इसके पश्चात् श्रमिकों द्वारा आम हड़ताल आरम्भ हुई जिसमें सैनिक व अन्य लोग भी सम्मिलित हो गए। राजधानी सेण्ट पीटर्सबर्ग पर भी क्रान्तिकारियों का अधिकार हो गया; अतः इससे सेना में भी असन्तोष फैल गया।
प्रश्न 4 – दो सूचियाँ बनाइए : एक सूची में फरवरी क्रान्ति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्टूबर क्रान्ति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
उत्तर- रूस के जार की दोषपूर्ण नीतियों, सैनिकों की दुर्दशा, साधारण जनता के अपार कष्टों व राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण रूस में क्रान्ति का वातावरण तैयार हो चुका था। रूस में 1917 ई० की क्रान्ति का प्रारम्भ एक छोटी-सी घटना ने किया। सन् 1917 में रूस के जार के विरुद्ध दो क्रान्तियाँ हुईं, प्रथम को ‘फरवरी क्रान्ति’ कहते हैं तथा द्वितीय को ‘अक्टूबर क्रान्ति’ का नाम दिया जाता है। इस क्रान्ति के पूरे घटनाक्रम का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
फरवरी क्रान्ति अक्टूबर क्रान्ति
इस क्रान्ति का प्रारम्भ स्त्रियों के प्रदर्शन से हुआ जो कि खरीदने का प्रयास कर रही फरवरी, 1917 ई० को एक में तालाबन्दी हुई और महिलाओं जुलूस का नेतृत्व क्रान्तिकारियों ने शीघ्र ही सेंट पीटर्सबर्ग पर अधिकार लिया। मास्को पर भी क्रान्तिकारियों का अधिकार हो गया। जार मार्च, 1917 को सिंहासन का कर दिया। करेंस्की के नेतृत्व मार्च को पहली अस्थायी बनी। सोवियत नेताओं व नेताओं ने देश को चलाने के एक तदर्थ सरकार बनाई। नई सरकार में सैन्य अधिकारियों भूस्वामियों व उद्योगपतियों का प्रभाव था। रूस में क्रान्ति का वातावरण रोटी निरन्तर बना हुआ था। जनता की थीं। 12 चार माँगे महत्त्वपूर्ण थीं— शान्ति, फैक्ट्री भूमि का स्वामित्व जोतने वालों को, ने कारखानों पर मजदूरों का नियन्त्रण किया। तथा गैर- रूसी जनता को समानता राजधानी का अधिकार । करेंस्की की अस्थायी कर सरकार इनमें से किसी माँग को पूर्ण नहीं कर सकी। अतः सरकार ने ने 2 जनता का समर्थन खो दिया। अतः त्याग लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी में 15 ने युद्ध समाप्त करने, किसानों को सरकार जमीन देने तथा सारे अधिकार ड्यूमा सोवियतों को देने आदि की अपनी लिए स्पष्ट नीतियों को जनता के सम्मुख तदर्थ रखा। लेनिन की बोल्शेविक पार्टी के पास गैर- रूसी जातियों की बहुत समस्या के सम्बन्ध में स्पष्ट नीति थी। उसने रूसी साम्राज्य के जनगणों सहित सभी जनगणों में आत्मनिर्णय के अधिकार की घोषणा की। बोल्शेविक निजी सम्पत्ति के विरुद्ध थे इसलिए नवम्बर 1917 तक सभी उद्योगों एवं बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इसका अर्थ था कि इनका स्वामित्व एवं प्रबन्ध सरकार ने अपने हाथों में ले लिया।
प्रभाव – इस क्रान्ति के कारण जार के निरंकुश शासन का अन्त हो गया। इसके साथ ही जनसभाओं तथा संस्थाओं पर से प्रतिबन्ध हटा लिए गए। प्रभाव – सन् 1917 की अक्टूबर क्रान्ति विश्व की प्रथम सफल समाजवादी क्रान्ति थी ।
प्रश्न 5 – बोल्शेविकों ने अक्टूबर क्रान्ति के फौरन बाद कौन-कौन-से प्रमुख परिवर्तन किए?
उत्तर – सन् 1917 की अक्टूबर क्रान्ति के पश्चात् लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने सत्ता सँभाली। इस पार्टी ने लेनिन के नेतृत्व में किसानों को भूमि हस्तान्तरित करने और सारी सत्ता सोवियतों को देने के लिए स्पष्ट नीतियाँ अपनाईं। लेनिन ने रूसी क्रान्ति को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित घोषणाएँ कीं—
  1. सर्वप्रथम उसने रूस को प्रथम महायुद्ध से अलग कर दिया तथा जर्मनी के साथ ब्रेस्ट लिटोस्क में सन्धि की ।
  2. सरकार ने निजी सम्पत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया।
  3. जमींदारों, चर्च और जार की भूमि किसानों की पंचायतों को सौंप दी।
  4. उत्पादन के सभी साधनों पर सरकार का नियन्त्रण हो गया ।
  5. उद्योगों, बैंकों, कम्पनियों, खानों आदि का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
  6. उद्योगों का नियन्त्रण मजदूर सोवियतों और श्रमिक संघों को दे दिया गया।
  7. देश की प्रगति के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को अपनाया गया।
  8. लोगों के अधिकारों का एक घोषणा पत्र जारी किया गया, जिसमें सभी जनगणों के लिए आत्मनिर्णय का अधिकार दे दिया गया।
प्रश्न 6 – निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए-
(1) कुलक, (2) ड्यूमा, (3) 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार, (4) उदारवादी, (5) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम |
उत्तर-
  1. कुलक— सोवियत रूस के धनी किसानों को ‘कुलक’ कहा जाता था। स्तालिन ने कृषि के सामूहिकीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत इनका अन्त कर दिया।
  2. ड्यूमा – ड्यूमा रूस की निर्वाचित परामर्शदाता संसद थी। इसका गठन 1905 की क्रान्ति के बाद जार द्वारा हुआ। परन्तु इसे शीघ्र ही स्थगित कर दिया गया।
  3. 1900 और 1930 के बीच महिला कामगार- रूस के कारखानों में महिला श्रमिकों की संख्या भी पर्याप्त थी। उन्हें पुरुषों से कम मजदूरी मिलती थी। उन्होंने 1905 व 1917 की क्रान्ति व उसमें होने वाली हड़तालों में सक्रिय भाग लिया। 22 फरवरी को उन्होंने श्रमिकों की सबसे बड़ी हड़ताल का नेतृत्व किया। इसी कारण 22 फरवरी को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। रूस के इतिहास में महिला श्रमिक अपने साथी पुरुष श्रमिकों के लिए प्रेरणा-स्रोत बनी रही ।
  4. उदारवादी – उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जो सभी धर्मों को सहजता से स्वीकार कर सके। उन्होंने अनियन्त्रित वंशानुगत शासकों का विरोध किया। वे सरकारों के स्थान पर लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना चाहते थे। उन्होंने प्रतिनिधित्व लोकतन्त्र पक्ष लिया। वे निर्वाचित संसदीय सरकार तथा स्वतन्त्र न्यायपालिका के पक्ष में थे। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार में उनका विश्वास था । उनका विचार था कि सम्पत्ति प्राप्त लोगों को मुख्यतः मत देने का अधिकार होना चाहिए। वे महिलाओं को मताधिकार देने के विरुद्ध थे।
  5. स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम — सन् 1927-28 के आस-पास रूस के शहरों में अनाज का भारी संकट पैदा हो गया। उस समय किसानों के पास छोटे खेत थे। आधुनिक खेत विकसित करने व खेती का आधुनिकीकरण करने के लिए स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम आरम्भ हुआ। 1929 से स्तालिन की पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों ( कोलखोज) में काम करने का आदेश जारी कर दिया। अधिकांश जमीन और साजो-सामान सामूहिक खेतों के स्वामित्व में सौंप दिए गए। सभी किसान सामूहिक खेतों में कार्य करते थे और कोलखोज के लाभ को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – 1917 की क्रान्ति का रूस पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर— सन् 1917 में रूस में हिंसात्मक क्रान्ति हुई जो बीसवीं शताब्दी के इतिहास की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना थी। इस क्रान्ति के रूस पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-
  1. निरंकुश जारशाही का अन्त-रूस में सदियों से अत्याचारी तथा निरंकुश जारों का शासन चल रहा था। सन् 1917 की क्रान्ति के बाद रूस में निरंकुश शासन का अन्त हो गया। जार निकोलस द्वितीय व राजवंश के सदस्यों को मार डाला गया।
  2. सामन्तशाही की समाप्ति – इस क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में सामन्तवादी व्यवस्था तथा उच्च वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त हो गए।
  3. साम्राज्यवाद का अन्त- पोलैण्ड, फिनलैण्ड तथा जार्जिया प्रदेश रूस के उपनिवेश थे। क्रान्ति के बाद उन्हें स्वतन्त्रता दे दी गई। इस प्रकार रूसी साम्राज्यवाद को समाप्त कर दिया गया।
  4. साम्यवादी सरकार की स्थापना – इस क्रान्ति से रूस में लेनिन की अध्यक्षता में नई साम्यवादी सरकार ने देश की बागडोर सँभाली। देश को ‘सोवियत समाजवादी गणराज्यों के संघ’ में परिणत कर दिया गया।
  5. शासन में श्रमिकों तथा कृषकों का प्रतिनिधित्व – नई शासन व्यवस्था में श्रमिकों तथा कृषकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया गया।
  6. शोषण का अन्त – इस क्रान्ति के बाद देश की सम्पूर्ण सम्पत्ति तथा उद्योगों पर सरकार का स्वामित्व हो गया। प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता और योग्यता के अनुरूप काम देना राज्य का उत्तरदायित्व हो गया। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए कार्य करना आवश्यक हो गया ।
  7. सामाजिक कल्याण पर बल – नई सरकार के गठन के बाद देश के सभी संसाधनों का प्रयोग निजी हित के स्थान पर सार्वजनिक हित के लिए किया जाने लगा। काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को रोटी, कपड़ा और मकान देने की जिम्मेदारी सरकार की हो गई।
  8. रूस का सर्वांगीण विकास – क्रान्ति से पूर्व रूस एक पिछड़ा हुआ देश था। किन्तु क्रान्ति के बाद नई सरकार ने रूस की काया ही पलट दी। देश का तीव्रता से विकास होता गया तथा कुछ ही वर्षों में यह एक शक्तिशाली राष्ट्र बन गया ।
  9. शिक्षा का प्रसार – साम्यवादी सरकार ने देश में शिक्षा का तेजी से प्रसार किया। सन् 1941 तक देश की 41 प्रतिशत जनसंख्या शिक्षित हो गई थी।
  10. समाजवाद की स्थापना – इस क्रान्ति के बाद सत्ता में आई नई सरकार ने कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों को कार्यरूप में परिणत कर दिया। सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण करके वास्तविक रूप में समाजवाद की स्थापना की गई। आर्थिक तथा सामाजिक समानताओं पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया।
प्रश्न 2 – विश्व पर रूसी क्रान्ति के प्रभाव की व्याख्या कीजिए |
उत्तर- रूसी क्रान्ति का केवल रूस के इतिहास में ही नहीं, वरन् विश्व के इतिहास में भी विशेष महत्त्व है, जो निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट होता है—
  1. रूस की क्रान्ति ने राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं वरन् आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में भी क्रान्ति उत्पन्न कर दी। यद्यपि इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा अन्य देशों में होने वाली क्रान्ति का प्रभाव केवल राजनीतिक क्षेत्रों तक ही सीमित रहा ।
  2. रूस में श्रमिक तथा कृषकों के लिए सरकार स्थापित हो जाने से सम्पूर्ण विश्व में इन वर्गों के सम्मान तथा प्रतिष्ठा में अभूतपूर्व वृद्ध हुई।
  3. रूस में जो पहली साम्यवादी सरकार स्थापित हुई उसका अनुकरण विश्व के अनेक राष्ट्रों ने किया। धीरे-धीरे यूरोप तथा एशिया के अनेक राष्ट्रों में साम्यवादी क्रान्ति प्रारम्भ होने लगी तथा अनेक देशों में साम्यवादी शासन की स्थापना हुई।
  4. रूस की क्रान्ति के पश्चात् सम्पूर्ण विश्व में पूँजीपतियों तथा श्रमिकों के बीच निरन्तर संघर्ष की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई।
  5. प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् जब राष्ट्र संघ का निर्माण हुआ तब उसमें सम्पूर्ण विश्व के श्रमिकों की दशा सुधारने के लिए एक विशेष संस्था का निर्माण किया गया। यह संस्था अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक . संघ के नाम से जानी जाती है।
  6. सोवियत रूस के समान ही विश्व के अनेक राष्ट्रों ने अपने निवासियों के लिए रोटी, कपड़ा तथा मकान की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में प्रयत्न करना प्रारम्भ कर दिया।
  7. अनेक राष्ट्रों की सरकारों ने रूस के समान ही शिक्षा की व्यवस्था को चर्च के हाथ से छीनकर अपने हाथों में ले लिया। नागरिकों को शिक्षित करने का दायित्व राज्य का माना जाने लगा।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1— सन् 1905 की रूसी क्रान्ति के लिए उत्तरदायी घटना के विषय में आप क्या जानते हैं? अथवा रूस के इतिहास में कौन-सी घटना ‘खूनी रविवार’ के नाम से जानी जाती है?
उत्तर- रूस में जारशाही की निरंकुशता का बोलबाला था। जार अर्थात् सम्राट के अधिकारी जनसाधारण वर्ग पर भीषण अत्याचार किया करते थे। 7 जनवरी, सन् 1905 को रविवार के दिन मजदूरों का एक समूह जार को याचिका देने के लिए जा रहा था। उन्होंने जार के सामने अपनी माँगें रखीं लेकिन जार के आदेश से शाही सैनिकों ने उन पर गोलियाँ चला दीं, जिसके फलस्वरूप बहुत-से निहत्थे श्रमिकों का खून बह गया। यह घटना रविवार को घटी थी। अतः रूस के इतिहास में इसे ‘खूनी रविवार’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 2 – रूस में अक्टूबर क्रान्ति क्यों हुई? इसके प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर- रूस में अक्टूबर क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –
  1. सन् 1905 की रूस की क्रान्ति- मास्को में 22 जनवरी, 1905 ई॰ को एक माँगपत्र द्वारा मजदूरों व कृषकों का शान्तिपूर्ण ढंग से जुलूस निकाला जा रहा था। इस जुलूस में शामिल निहत्थे लोगों पर जार की सेना ने गोलियाँ चला दीं। परिणामस्वरूप अनेक लोग मारे गए व हजारों लोग घायल हुए। इसके अतिरिक्त लगभग 60 हजार लोगों को बन्दी बनाकर जेल में डाल दिया गया। यद्यपि जार की दमनकारी नीति ने इस क्रान्ति को दबा दिया, किन्तु यह क्रान्ति सन् 1917 की महान् क्रान्ति के रूप में घटित हुई ।
  2. जार का निरकुंश अत्याचारी शासन – जार निकोलस द्वितीय एक निरंकुश शासक था। वह साम्राज्यवादी नीति में विश्वास रखता था। निरन्तर युद्धों के कारण रूस दयनीय आर्थिक स्थिति में आ चुका था। दूसरी ओर जार के अमानवीय एवं अत्याचारी शासन ने सन् 1917 की क्रान्ति को तैयार करने में सहायता की।
प्रश्न 3–रूस की जनता की ‘फरवरी क्रान्ति’ में चार मुख्य माँगें क्या थीं?
उत्तर – फरवरी क्रान्ति में रूस की जनता की चार मुख्य माँगें निम्नलिखित थीं-
  1. देश में शान्ति हेतु रूस को प्रथम विश्वयुद्ध से अलग हो जाना चाहिए।
  2. उद्योगों पर मजदूरों का नियन्त्रण होना चाहिए ।
  3. जोतने वालों को जमीन दी जाए। चर्च, पादरियों व सामन्तों से भूमि छीन ली जाए।
  4. गैर- रूसी जातियों को रूसियों के साथ समानता का दर्जा दिया जाए।
प्रश्न 4 – अक्टूबर क्रान्ति’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर – वस्तुत: अक्टूबर क्रान्ति 7 नवम्बर, 1917 ई० को हुई थी। उस दिन पुराने रूसी कैलेण्डर के अनुसार 25 अक्टूबर का दिन था। इसी कारण से इस क्रान्ति को ‘अक्टूबर क्रान्ति’ का नाम दिया जाता है। इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप करेन्स्की सरकार का अपनी जनता में लोकप्रिय न होने के कारण पतन हो गया। उसके मुख्यालय विंटर पैलेस पर नौसेना के एक दल ने अधिकार कर लिया। उसी दिन सोवियतों की ‘अखिल रूसी कांग्रेस’ की बैठक हुई और उसने राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली। करेन्स्की देश छोड़कर भाग गया और लेनिन के हाथ में शासन की बागडोर आ गई।
प्रश्न 5 – लेनिन के नाम के साथ ‘रूसी क्रान्ति’ क्यों जोड़ी जाती है?
उत्तर — निःसन्देह लेनिन ने 1917 ई० की रूसी क्रान्ति में | महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । यद्यपि जार का पतन लेनिन द्वारा क्रान्ति की बागडोर सँभालने से पूर्व ही हो चुका था। रूस में करेंस्की की सरकार जनता की माँगों को पूरा करने में असफल रही थी। ऐसे समय में लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक पार्टी ने ‘युद्ध को समाप्त करने’ व ‘सम्पूर्ण सत्ता सोवियतों को’ का नारा दिया । लेनिन ने घोषणा की कि सच्चा जनतन्त्र तभी स्थापित हो सकता है जब गैर-रूसियों को भी समान अधिकार प्रदान किए जाएँ। इन उद्देश्यों को लेनिन ने पूरा करके दिखाया। इसी कारण लेनिन का नाम रूसी क्रान्ति से जुड़ा है। हुआ
प्रश्न 6 – किस सीमा तक प्रथम विश्वयुद्ध को रूस की 1917 की क्रान्ति के लिए उत्तरादायी माना जाता है?
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध के प्रति रूसी जनता में असन्तोष की भावना व्याप्त थी। 1917 तक 70 लाख लोग मारे जा चुके थे। इस महायुद्ध के कारण करोड़ों लोग शरणार्थी हो गए थे। युद्ध के परिणामस्वरूप उद्योगों, फसलों व घरों की भारी तबाही हुई थी। देश के श्रमिकों को सेना में भेज दिया गया था जिसके कारण कृषि व उद्योग समाप्त होते गए।
प्रश्न 7 – प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त समाजवादी आन्दोलन के स्वरूप का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर – प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त समाजवादी आन्दोलन दो गुटों में विभाजित हो गया था। ये गुट समाजवादी व साम्यवादी गुट थे। इन दोनों गुटों में समाजवाद की मूल योजना तथा अवधारणा में अन्तर था। समाजवादी गुट के अधिकांश लोग मानते थे कि सरकार के द्वारा ही धीरे-धीरे संवैधानिक एवं शान्तिपूर्ण तरीकों से कानून में आवश्यक परिवर्तन करके समाजवाद लाया जा सकता है। इसके विपरीत साम्यवादी मानते थे कि ताकत बन्दूक की नली से निकलती है । यदि क्रान्ति के लिए हिंसा का मार्ग भी अपनाना पड़े तो उससे पीछे नहीं हटना चाहिए।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – 1917 ई० से पूर्व रूस में किस सन् में क्रान्ति हुई थी?
उत्तर — सन् 1905 में।
प्रश्न 2 – रूसी क्रान्ति किस जार के शासन काल में हुई थी ?
उत्तर – निकोलस द्वितीय के शासन काल में रूसी क्रान्ति हुई थी।
प्रश्न 3 – सर्वप्रथम रूसी क्रान्ति का झण्डा कहाँ फहराया गया?
उत्तर – सर्वप्रथम रूसी क्रान्ति का झण्डा पेट्रोगाड में फहराया गया।
प्रश्न 4 – रूस में बोल्शेविक क्रान्ति कब हुई थी?
उत्तर— सन् 1917 में।
प्रश्न 5 – रूस की क्रान्ति को विश्व इतिहास की प्रमुख घटना क्यों माना जाता है?
उत्तर— समाजवाद की स्थापना के कारण रूस की क्रान्ति को विश्व इतिहास की प्रमुख घटना माना जाता है।
प्रश्न 6 – निरंकुश राजशाही से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – ऐसा शासन जहाँ राजा ही सर्वेसर्वा होता है और जनता को कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता।
प्रश्न 7 – ‘ कोलखोज’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर — सामूहिक खेतों को ‘कोलखोज’ कहा जाता था, जहाँ किसान मिलकर खेती करते थे। इसके पश्चात् वे पैदावार को आपस में बाँट लेते थे ।
प्रश्न 8 – सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से क्या तात्पर्य है? 
उत्तर— सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का तात्पर्य है कि मत देने का अधिकार प्रत्येक वयस्क को है।
प्रश्न 9 – रूस के समाजवादी क्रान्तिकारी दल का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर- रूस के समाजवादी क्रान्तिकारी दल का उद्देश्य था कि किसानों के हितों की रक्षा की जाए तथा धनी वर्ग से जमीन छीनकर जनसाधारण में बाँट दी जाए।
प्रश्न 10 – ‘ मित्र – राष्ट्र’ किन शक्तियों को कहा जाता था?
उत्तर – ब्रिटेन, फ्रांस, रूस आदि शक्तियों को मित्र – राष्ट्र कहा जाता था।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – क्रान्ति के समय रूस का सम्राट कौन था-
(a) जार निकोलस प्रथम
(b) जार निकोलस द्वितीय
(c) जार अलैक्जेण्डर द्वितीय
(d) जार अलैक्जेण्डर तृतीय ।
उत्तर – (b) जार निकोलस द्वितीय
प्रश्न 2 – रूस में ‘खूनी रविवार’ की घटना कब हुई थी-
(a) 1904 ई० में
(b) 1905 ई० में
(c) 1906 ई० में
(d) 1917 ई० में।
उत्तर – (b) 1905 ई० में
प्रश्न 3 – अक्टूबर की क्रान्ति कब प्रारम्भ हुई थी-
(a) 5 नवम्बर, 1917 ई०
(b) 6 नवम्बर, 1917 ई०
(c) 7 नवम्बर, 1917 ई०
(d) 8 नवम्बर, 1917 ई०।
उत्तर – (b) 6 नवम्बर, 1917 ई०
प्रश्न 4 – निम्नलिखित में से कौन रूस की क्रान्ति से सम्बन्धित था-
(a) लेनिन
(b) अब्राहम लिंकन
(c) रूसो
(d) बिस्मार्क ।
उत्तर – (a) लेनिन
प्रश्न 5 – रूस की क्रान्ति का प्रमुख नेता कौन था-
(a) लेनिन
(b) स्टालिन
(c) गोर्की
(d) टॉलस्टॉय ।
उत्तर – (a) लेनिन

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