UK Board 9th Class Social Science – (इतिहास) – Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे
UK Board 9th Class Social Science – (इतिहास) – Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे
UK Board Solutions for Class 9th Social Science – सामाजिक विज्ञान – (इतिहास) – Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1 – स्पष्ट कीजिए कि घुमन्तू समुदायों को बार- बार एक जगह से दूसरी जगह क्यों जाना पड़ता है? इस निरन्तर आवागमन से पर्यावरण को क्या लाभ हैं?
उत्तर- घुमन्तू समुदायों की गति क्रियाओं के लिए जलवायविक बदलते रहते हैं। उदाहरण के लिए, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश की दशाएँ मुख्यतः उत्तरदायी थीं। वे ऋतु परिवर्तन के साथ ही अपना स्थान गोल्ला जाति शुष्क मौसम में तटीय क्षेत्रों की ओर चल देती है तथा वर्षा आने पर वापस चल देती है। पशुओं के लिए चारा एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक था जो घुमन्तू समुदायों की गति क्रियाओं को निर्धारित करता था। जब एक स्थान पर चारा और पानी समाप्त हो जाता था, तो वे किसी अन्य चरागाह पर चले जाते थे। उदाहरण के रूप में धांगरों को चावल कोंकणी किसानों से मिलता था।
घुमन्तू समुदायों से पर्यावरण को लाभ
- घुमन्तू समुदायों के निरन्तर स्थान परिवर्तन के कारण भूमि की उर्वरता बनी रहती थी। उनके दूसरे स्थान पर चले जाने के बाद उनके द्वारा छोड़ा गया स्थान फिर से उर्वरता प्राप्त कर लेता है। इसलिए रासायनिक खादों का कम प्रयोग होता था ।
- एक निश्चित ऋतु-चक्र बने रहने से पर्यावरण में सन्तुलन बना रहता है।
- निरन्तर गतिक्रिया के कारण चरागाह फिर से हरे-भरे हो जाते हैं और उनका पुनः उपयोग हो सकता है।
प्रश्न 2 – इस बारे में चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने निम्नलिखित कानून क्यों बनाए ? यह भी बताइए कि इस कानूनों से चरवाहों के जीवन पर क्या असर पड़ा-
(i) परती भूमि नियमावली ।
(ii) वन अधिनियम ।
(iii) अपराधी जनजाति अधिनियम ।
(iv) चराई कर ।
उत्तर –
- परती भूमि नियमावली – इसके अन्तर्गत बेकार भूमि को कृषि के अधीन लाया गया। ब्रिटिश सरकार ने ऐसी भूमियों को गाँव के मुखिया को सौंप दिया जिससे वे उनमें खेती का कार्य कराएँ। इसके फलस्वरूप सभी चरागाह समाप्त हो गए। अतः उनके पशुओं के लिए चराने की समस्या उत्पन्न हो गई, जिससे उनके व्यापार और दस्तकारी पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
- वन अधिनियम—19वीं शताब्दी के मध्य में भारत के भिन्न-भिन्न भागों में विभिन्न वन अधिनियम बनाए गए। इन अधिनियमों द्वारा कुछ वन जो बहुमूल्य व्यापारिक लकड़ी उत्पन्न करते थे, उन्हें आरक्षित कर दिया गया। इन पर कोई चराई का काम नहीं किया गया। दूसरे वनों को वर्गीकृत किया गया। इनमें जानवरों को चराने के लिए कुछ अधिकार दे दिए गए। चरवाहे निश्चित दिनों तक ही वन का प्रयोग कर सकते थे। इसके बाद उनका प्रवेश वर्जित था । यदि वे निश्चित दिनों से अधिक समय तक वन में रहते थे, तो उन पर जुर्माना लगा दिया जाता था। परिणामस्वरूप इन वन अधिनियमों ने खानाबदोशों के लिए भोजन की समस्या को विकराल बना दिया। अतः उन्हें अपने पशुओं की संख्या को कम करना पड़ा।
- अपराधी जनजाति अधिनियम — सन् 1871 में औपनिवेशिक शासन ने अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम के अनुसार दस्तकारों, व्यापारियों तथा चरवाहों के अनेक समुदायों को अपराधी जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया। इसके अनुसार कई चलवासी कबीलों को प्राकृतिक रूप से और जन्म से अपराधी मान लिया गया। अब उन्हें एक निश्चित गाँव में ही रहना पड़ता था । वे बिना परमिट के अपना स्थान नहीं बदल सकते थे। गाँव की पुलिस उन पर लगातार निगरानी रखती थी। परिणामस्वरूप उनका शोषण होने लगा, उनके व्यापार व दस्तकारी पर इसका दुष्प्रभाव पड़ा।
- चराई कर—ब्रिटिश सरकार ने अपनी आय को बढ़ाने के उद्देश्य से पशुओं पर भी कर लगा दिया। सन् 1850 से 1880 के दशकों में यह कर एकत्रित करने का अधिकार ठेकेदारों को होता था। इन ठेकेदारों द्वारा चरवाहों से बड़ा कठोर व्यवहार किया जाता था। अतः 1880 के पश्चात् सरकार ने स्वयं यह कर एकत्रित करना आरम्भ कर दिया। चरवाहों को कर चुकाने के पश्चात् एक पास दिया जाता था जिसे दिखाने के पश्चात् प्रत्येक चरवाहा अपने पशुओं को चरागाहों में चरा सकता था।
इस प्रकार इन अधिनियमों ने चरवाहों का धन्धा चौपट कर दिया और उन्होंने अपने पशुओं को बेचना आरम्भ कर दिया। उन्हें अपने जीवनयापन के लिए साहूकारों से ऋण लेना पड़ता था ।
प्रश्न 3 – मासाई समुदाय के चरागाह उससे क्यों छिन गए? कारण बताएँ ।
उत्तर – मासाई समुदाय को निम्नलिखित कारणों से अपने चरागाह छोड़ने पड़े-
- साम्राज्यवादी प्रसार – औपनिवेशिक काल से पहले मासाई समुदाय के पास उत्तरी कीनिया से लेकर तंजानिया के स्टेपीज तक का क्षेत्र था। 19वीं शताब्दी के अन्त में यूरोपीय साम्राज्यवादी प्रसार के कारण यह क्षेत्र लगभग आधा रह गया। ब्रिटिश कीनिया तथा जर्मन तंजानिया की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा बनाकर मासाई भूमि को दो भागों में विभाजित कर दिया गया। श्वेत बस्तियों ने उत्तम चरागाह भूमि पर अधिकार कर लिया और मासाइयों को दक्षिण कीनिया व उत्तरी तंजानिया के छोटे क्षेत्र की ओर खदेड़ दिया गया। इस प्रकार मासाइयों की लगभग 60% भूमि ले ली गई। वे एक शुष्क प्रदेश तक ही सीमित रह गए, जहाँ निम्न श्रेणी के घटिया चरागाह थे।
- कृषि का विस्तार – 19वीं शताब्दी के अन्त में ब्रिटिश उपनिवेशी सरकार ने उत्तरी अफ्रीका के छोटे किसानों को खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। जैसे ही कृषि आरम्भ हुई, चरागाह कृषि भूमि में बदलते गए। मासाई लोगों के चरागाहों पर स्थानीय किसानों ने अपना अधिकार कर लिया और वे असहाय हो गए।
- आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना – चरागाहों का एक बहुत बड़ा क्षेत्र शिकार के लिए आरक्षित कर दिया गया था। इनमें कीनिया के मासाई मारा, संबरू नेशनल पार्क व तंजानिया का सेरेंगेटी पार्क प्रमुख थे। मासाई लोग इन पार्कों में न तो पशु चरा सकते और न ही शिकार कर सकते थे। परिणामस्वरूप चराई क्षेत्रों के छिन जाने से पशुओं के लिए आहार जुटाने की समस्या गम्भीर हो गई।
- चरागाहों की गुणवत्ता में कमी – मासाई लोगों को आरक्षित वनों में घुसने की मनाही कर दी गई। अब ऐसे आरक्षित चरागाहों से मासाई न लकड़ी काट सकते थे और न ही अपने पशुओं को चरा सकते थे। अतः मासाई लोगों के पास छोटा क्षेत्र होने से उसमें निरन्तर चराई से चरागाह की गुणवत्ता प्रभावित हुई।
प्रश्न 4 – आधुनिक विश्व ने भारत और पूर्वी अफ्रीकी चरवाहा समुदायों के जीवन में जिन परिवर्तनों को जन्म दिया उनमें कई समानताएँ थीं। ऐसे दो परिवर्तनों के बारे में लिखिए जो भारतीय चरवाहों और मासाई गड़रियों, दोनों के बीच समान रूप से मौजूद थे।
उत्तर— भारत के चरवाहे कबीलों और पूर्वी अफ्रीका के मासाई पशुपालकों के जीवन में कई तरीकों से समान रूप से परिवर्तन आए।
औपनिवेशिक शासन से पूर्व भारत और पूर्वी अफ्रीका में चराई के विस्तृत क्षेत्र थे, परन्तु औपनिवेशिक सरकार के राजस्व का कृषि था । अतः सरकार ने कृषकों को अधिक-से-अधिक क्षेत्र को कृषि के अधीन लाने के लिए प्रोत्साहित किया जिसके परिणामस्वरूप चराई क्षेत्र कम होने लगा। भारत के विभाजन ने राइका जातियों को हरियाणा में नए चरागाह खोजने के लिए मजबूर किया, क्योंकि पाकिस्तान बनने से उन्हें सिन्ध में प्रवेश की आज्ञा नहीं थी।
भारत तथा अफ्रीका में चरवाहों के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए विभिन्न वन कानून उत्तरदायी थे। भारत में वनों को आरक्षित तथा सुरक्षित दो वर्गों में विभाजित किया गया। किसी भी चरवाहे का आरक्षित वनों में जाने की आज्ञा न थी। उनकी गतिविधियों पर सुरक्षित वनों में कड़ी निगरानी रखी जाती थी। अतः विवश होकर चरवाहों को अपने पशुओं की संख्या घटानी पड़ी तथा उन्हें अपने व्यवसाय में भी परिवर्तन करना पड़ा।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
• विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – चरागाह वर्ग अपने जीवन को चलायमान रखने के लिए किन कारकों को ध्यान में रखते थे? उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— चरवाहा जीवन एक व्यवस्थित और स्थायी जीवन नहीं होता, परन्तु फिर भी ‘चरागाह वर्ग’ को जीवन को चलायमान रखने के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना पड़ता था-
- उन्हें इस बात का निश्चित अनुमान लगाना होता था कि उन्हें किस स्थान पर अपने पशुओं के लिए चारा और पीने के लिए पानी मिल सकता है।
- उनके पशु किसी प्रदेश में कितने समय तक रह सकते हैं ताकि मौसम बदलने पर पशुओं पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े।
- वे इस बात का ध्यान रखते थे कि एक स्थान दूसरे स्थान पर आने-जाने में कितना समय लगता है। इस बात को ध्यान में रखकर ही वे अपनी यात्रा आरम्भ करते थे।
- वे मार्ग में पड़ने वाले किसानों से अच्छे सम्बन्ध बनाए । रखते थे, जिससे वे उनके पशुओं को खाली खेतों में चराने की अनुमति दे दें। इस प्रकार किसानों के खाली खेतों में मलमूत्र के रूप में खाद भी मिल जाती थी।
- अन्त में उन्हें अपने निर्वाह के लिए पशु चराने के साथ-साथ खेती व व्यापार करना भी आवश्यक हो गया।
प्रश्न 2 – चरवाह समूहों ने विभिन्न औपनिवेशिक सरकारों की बाधाओं का कैसे सामना किया? वर्णन कीजिए।
उत्तर— विश्व की औपनिवेशिक सरकारों ने वन कानून, अपराधी जन-जाति कानून, बंजर भूमि कानून व चराई कर आदि लगाकर चरवाहा समुदायों के मार्ग में अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर दीं। अतः उन समुदायों को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए अपने आपको परिस्थितियों के अनुकूल ढालना पड़ा जो मुख्यत: निम्नलिखित हैं-
- चरवाहा समूहों ने चरागाहों की कमी होने के कारण अपने पशुओं की संख्या कम कर दी।
- अनेक चरवाहा समूहों ने नई चरागाहों को ढूँढ निकाला ताकि उनके पशुओं को भूखों मरने का कोई डर न रहे।
- राजस्थान के ‘राइका’ समुदाय ने सिन्ध के स्थान पर हरियाणा की ओर प्रस्थान किया जहाँ उनके पशुओं को बड़ी मात्रा में फसलों के ठूंठ खाने को मिल गए ।
- कुछ चरवाहों को अपने पशु चराने के साथ-साथ कम्बल बुनना, घी-दूध बेचना जैसे कार्य भी करने पड़े।
- कुछ चरवाहों ने अपने जीवन-यापन के कारण किसानों को खेती के लिए पशु बेचकर धन कमाना शुरू कर दिया।
अतः यह स्पष्ट है कि चरवाह समुदायों ने समय के बदलाव को पहचानते हुए अपने आपको परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लिया।
• लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – बुग्याल से क्या अभिप्राय है? बुग्याल के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर— बुग्याल ऊँचे पर्वतों पर 12,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित चरागाह हैं। उदाहरण के लिए – पूर्वी गढ़वाल के बुग्याल । यहाँ प्रायः भेड़ चराई जाती हैं।
सर्दियों में बुग्याल बर्फ से ढके रहते हैं तथा अप्रैल के बाद कहाँ जीवन दिखाई देता है। अप्रैल के बाद सारे पर्वतीय क्षेत्र में घास दिखाई देती है। सामान्यतया मानसून आने पर चरागाह के क्षेत्र वनस्पति और जंगली फूल आदि से ढक जाते हैं।
प्रश्न 2 – गोला चरवाहे का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर – गोला चरवाहे आन्ध्र प्रदेश तथा कर्नाटक के पठारी भागे में भैंसें तथा भेड़-बकरियाँ पालते हैं। वे कम्बल तथा खेती का काम भो करते हैं। ये लोग वर्ष में दो बार अपना स्थान बदलते हैं- एक बार मानसून में व दूसरी बार शुष्क ऋतु में। ये शुष्क ऋतु में तटीय प्रदेशों में चले जाते हैं। वे वर्षा ऋतु आरम्भ होने पर वहाँ से चले जाते हैं. क्योंकि भेड़-बकरियाँ आर्द्र जलवायु को सहन नहीं कर पाती।
प्रश्न 3 – भारत के कुछ चरवाह कबीलों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर—
- जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल।
- हिमाचल प्रदेश के गद्दी गड़रिए ।
- महाराष्ट्र के धंगर ।
- कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश में गोला, कुरबा व कुरूमा चरवाह कबीले।
प्रश्न 4 – बंगरों की वार्षिक आवाजाही के लिए उत्तरदायी मुख्य कारक कौन-से थे?
उत्तर—
- कोंकण स्थानीय लोग धंगरों का स्वागत करते थे, क्योंकि धंगरों के पशुओं का झुण्ड उनके खेतों के लिए खाद प्रदान करता था ।
- कोंकण में प्रचुर मात्रा में अनाज के ठूंठों की उपलब्धता के कारण वे कोंकण चले जाते थे।
- धंगरों को स्थानीय लोगों से अनाज भी मिलता था।
- धंगर अक्टूबर-नवम्बर में चारे की कमी के कारण महाराष्ट्र के मध्य पठार से बाहर चले जाते थे।
- धंगर मानसून के आने पर अपने चावल व अन्य खाद्यान्नों की आपूर्ति एकत्र कर, कोंकण से वापस चल देते थे।
प्रश्न 5 – चरवाहों के जीवन पर सूखे के प्रभाव का वर्णन कीजिए ।
उत्तर— घुमन्तू चरवाहे प्रतिबन्धों के कारण एक स्थायी क्षेत्र तक ही सीमित रह गए। वे बेहतर चरागाहों से वंचित हो चुके थे। उन्हें उन अर्द्धरहते थे। वे चरवाहों की गतिक्रियाओं पर प्रतिबन्धों के कारण चरागाह – शुष्क क्षेत्रों में रहने के लिए बाध्य होना पड़ा जो सूखे से प्रभावित वाले स्थानों पर नहीं जा सकते थे। परिणामस्वरूप चारे की कमी से उनके पशु बड़ी संख्या में भूख के कारण मरने लगे।
प्रश्न 6 पूर्व – औपनिवेशिक काल में मासाई समाज दो सामाजिक श्रेणियों में विभाजित था।’ व्याख्या कीजिए।
उत्तर — पूर्व – औपनिवेशिक काल में मासाई समाज निम्नलिखित दो सामाजिक श्रेणियों में विभाजित था-
- वरिष्ठ जन—वरिष्ठ जन शासित वर्ग था, जो समुदाय के कार्यों का निर्णय करता था। वे समय-समय पर सभा बुलाते थे। इन सभाओं में समुदाय के विभिन्न मामलों के निर्णय लिए जाते थे और आपस में होने वाले झगड़ों का निपटारा किया जाता था ।
- योद्धा युवा वर्ग — इस वर्ग में नवयुवक शामिल थे। उन्हीं पर कबीले की सुरक्षा की जिम्मेदारी थी। वे समुदाय व पशुओं की हमलों से रक्षा करते थे। इसके अतिरिक्त योद्धा वर्ग अपनी वीरता का परिचय देने के लिए अन्य कबीलों पर धावा बोलते थे और उनके पशुओं को छीन लेते थे। ये वरिष्ठ जनों के अधीन रहकर ही अपनी गतिविधियों को चलाते थे।
प्रश्न 7 – अफ्रीका के चलवासी चरवाहों के जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर – विश्व के आधे से भी अधिक चलवासी चरवाहे अफ्रीका में रहते हैं। आज भी लगभग सवा दो करोड़ अफ्रीकी अपनी आजीविका कमाने के लिए चरावाही जैसी गतिविधियों पर आश्रित हैं। वहाँ के मुख्य चलवासी कबीले मैडोइन, बर्बर, मासाई, बोरन, टरकाना व सोमाली हैं। इनमें से अधिकतर लोग अर्ध- – शुष्क घास- – भूमियों अथवा शुष्क मरुस्थलों में रहते हैं, जहाँ वर्षा की कमी के कारण कृषि करना कठिन है। वे दुधारू पशु, ऊँट, भेड़-बकरियाँ तथा गधे पालते हैं तथा दूध, मांस, पशुओं की खालें तथा ऊन बेचते हैं। इनमें से कुछ लोग व्यापार तथा यातायात सम्बन्धी कार्यों से जीविका प्राप्त करते हैं। कुछ लोग चरवाही तथा कृषि कार्य साथ-साथ करते हुए अपनी जीविका प्राप्त करते हैं। कुछ लोग अपनी आय बढ़ाने के लिए कई अन्य धन्धे भी करते हैं।
• अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 – धंगर कौन थे?
उत्तर— महाराष्ट्र का एक महत्त्वपूर्ण चरवाहा समुदाय ‘धंगर’ था। इनमें से अधिकतर भेड़ पालते थे तथा कुछ लोग भैंसों को पालते थे। कुछ का कार्य कम्बल बुनना भी था।
प्रश्न 2 – घुमन्तू चरवाहे कौन हैं? उनके द्वारा पाले जाने वाले चार पशुओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – घुमन्तू चरवाहे अपनी आजीविका के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं, ये निम्नलिखित पशुओं को पालते -(1) गाय-भैंस (2) भेड़ (3) ऊँट व (4) बकरी ।
प्रश्न 3 – अफ्रीका के चार घुमन्तू (चरवाहा) समुदाय कौन से हैं?
उत्तर— अफ्रीका के चार घुमन्तू समुदाय निम्नलिखित हैं-
(1) मासाई, (2) बेदुईन्स, ( 3 ) सोमाली व (4) बोरान ।
प्रश्न 4 – ‘काफिला’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर— ‘काफिला’ से अभिप्राय है— लोगों का समूह। जब घुमन्तू चरवाहे लोग एक साथ मिलकर सफर करते हैं, तो लोगों के इस समूह को ‘काफिला’ कहते हैं।
प्रश्न 5 – बंजारे कौन थे? उनके रहने के चार क्षेत्र कौन-कौन से थे?
उत्तर – बंजारे खानाबदोश थे तथा अच्छे चरागाहों की खोज में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाया करते थे। उनके रहने के स्थान निम्नलिखित थे—
(1) पंजाब (2) उत्तर प्रदेश (3) महाराष्ट्र व (4) मध्य प्रदेश ।
प्रश्न 6 – खानाबदोश लोग कौन हैं? उनकी एक विशेषता लिखिए।
उत्तर- खानाबदोश लोग एक निश्चित स्थान पर स्थायी रूप से नहीं रहते हैं। ये लोग ऋतुओं के अनुसार अपना स्थान बदलते रहते हैं।
प्रश्न 7 – औपनिवेशिक शासन में राज्य की आय का मुख्य साधन क्या था?
उत्तर – औपनिवेशिक शासन में राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि लगान था।
प्रश्न 8 – ‘अपराधी कबीले’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर — अंग्रेजी (औपनिवेशिक) सरकार ने खानाबदोशों को ‘अपराधी कबीले’ माना था ।
प्रश्न 9 – ‘ चरवाही’ कार्य वाले पाँच भौगोलिक भागों के नाम लिखिए।
उत्तर— (1) पर्वत (2) पठार (3) मैदान (4) मरुस्थल (5) वन।
• बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1 – गुज्जर बकरवाल रहने वाले हैं-
(a) हरियाणा के
(b) उत्तर प्रदेश के
(c) जम्मू और कश्मीर के
(d) पश्चिम बंगाल के ।
उत्तर – (c) जम्मू और कश्मीर के
प्रश्न 2 – गुज्जर बकरवालों का व्यवसाय था-
(a) भेड़-बकरियाँ पालना
(b) घोड़े और खच्चर पालना
(c) गाय और भैंसें पालना
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर – (c) गाय और भैंसें पालना
प्रश्न 3 – उच्च पर्वतों पर स्थित विशाल चरागाहों को कहते हैं-
(a) तराई
(b) भाबर
(c) बुग्याल
(d) भोटिया ।
उत्तर – (c) बुग्याल
प्रश्न 4 – राइका (Raikas) रहते हैं-
(a) राजस्थान
(b) महाराष्ट्र
(c) गुजरात
(d) हरियाणा |
उत्तर – (a) राजस्थान
