गणित का शिक्षणशास्त्र-2 (प्राथमिक स्तर) | D.El.Ed Notes in Hindi
गणित का शिक्षणशास्त्र-2 (प्राथमिक स्तर) | D.El.Ed Notes in Hindi
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. बच्चे खेल-खेल में कैसे गणित सीख सकते हैं ? एक उदाहरण सहित
समझाइएँ ।
उत्तर – बच्चे गणित की कई बुनियादी अवधारणाएँ खेलों में ही सीख सकते हैं। उन्हें
जाने पहचाने संदर्भों में खेलने में मजा आता है। उनके खेलों से, अपने आप ही, मजे-मजे
में बहुत सारी गणतिय गतिविधियाँ आ जाती है। नए विचारों और अवधारणाओं में छोटे बच्चों
का परिचय खेलों व ऐसी परिचित स्थितियों में कराया जा सकता है, जो उन्हें मजेदार लगे
और जिनसे उन्हें घबराहट या परेशानी न हो। यही बात प्राईमरी के बढ़े बच्चों के लिए भी
लागू होती है।
जब छोटे बच्चे चीजों को आपस में बाँटते हैं वास्तव में वे एक-से-एक का मेल मिलाते
है। जब वे गुटकों से खेलते हैं तो वे अलग-अलग आकारों से प्रयोग कर रहे होते हैं।
जब वे ‘पाँच छोटे बंदर’ जैसा गाना गाते हैं तो वे संख्याओं के नाम सीखते हैं।
प्रश्न 2 गणित को कैसे रोचक बनाया जाए? सुझाव दीजिए ।
उत्तर― गणित को रोचक हेतु सुझाव (Suggestions)–गणित की शिक्षा देते समय
गणित के अध्ययन के प्रति बच्चे की रुचि होना सबसे महत्त्वपूर्ण बात है। उसे विषय सरल
और रोचक प्रतीत होना चाहिए। ज्योंहि छात्र की विषय के प्रति रुचि में कमी हुई उस गणित
नीरस लगने लगेगा और गणित कार्य की गति धीमी हो जाएगी। अतः गणित शिक्षण को
रोचक व रुचिकर बनाने हेतु शिक्षक को निम्नलिखित प्रयास करने चाहिए―
1. मानसिक शक्तियों के प्रयोग के लिए अवसर प्रदान करना―गणित के प्रति
रुचि जाग्रत करने और उसे बनाए रखने में यह ध्यान रखना चाहिए कि कार्य बच्चों की
मानसिक शक्तियों का उपयोग करने का पूर्ण अवसर प्रदान करे। हमें समस्यात्मक और
अन्वेषणात्मक दृष्टिकोण को लेकर गणित का अध्ययन कराना चाहिए।
2. गणित के व्यावसायिक मूल्यों से परिचित करना―गणित की शिक्षा जीविकोपार्जन
दृष्टिकोण को लेकर दी जानी चाहिए ताकि बच्चे विभिन्न व्यवसायों में गणित के उपयोग से
परिचित हो सके तथा उसे अपनी रोजी-रोटी कमाने का साधन समझकर उसे सीखने के लिए।
पूरे मन से जुट जाएँ ।
3. गणित के प्रयोगात्मक मूल्य पर जोर देना―गणित की पढ़ाई प्रयोगात्मक अथवा
व्यवहारात्मक ज्ञान की प्रप्ति को ध्यान में रखकर कराई जाएँ।
4. गतिणत के सांस्कृतिक मूल्य से परिचित करना―सांस्कृतिक धरोहर को, सुरक्षित
रखने, उसमें वृद्धि करने तथा उसे आने वाली पीढ़ियों को सौंप जाने में गणित का अध्ययन
अपना विशेष स्थान रखता है। गणितज्ञों की जीवनियाँ, गणित के नियमों की सार्वभौमिकता
तथा पारम्परिक आदान-प्रदान अध्ययन की सामग्री जो गणित के अध्ययन के प्रति रुचि
बढ़ाने में सफल सिद्ध हो सकते हैं। विभिन्न प्रकरणों, नियमों, सूत्रों तथा संकेतों आदि में
विहित अतीत की कहानी उसके अध्ययन के प्रति जाग्रत करने तथा उन्हें भली-भाँति समझने
में सहायता कर सकती है।
5. क्रियात्मक कार्य द्वारा― गणित के अध्ययन में रुचि जाग्रत करने तथा अधिक
समय तक बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि गणित की सैद्धान्ति पढ़ाई के
साथ-साथ, उसके क्रियात्मक पक्ष पर भी बल दिया जाए। ‘योजना विधि’ तथा ‘प्रयोगशला
विधि’ को गणित की पढ़ाई में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए।’
6, गणित के मनोरंजन सम्बन्धी मूल्य की जानकारी लेना―गणित सम्बन्धी विभिन्न
सहायक साधनों को प्रयोग करके गणित की शिक्षा को रोचक बनाने का प्रयत्न करना
चाहिए। अध्यापक गणित सम्बन्धी विभिन्न बुझारतों या कूट प्रश्न, पहेलियों, अंक अजूबे,
मायावी वर्ग तथा संख्या सम्बन्धी खेलों का ज्ञान गणित के अध्ययन के प्रति बच्चों की रुचि
बनाने में बहुत सहायता कर सकता है तथा समस्याओं के समाधान करने हेतु जिज्ञासा वृत्ति
का विकास होता है।
प्रश्न 3. भिन्न तथा दशमलव संख्याओं में समानता व अन्तर बताइए।
उत्तर–भिन्न तथ दशमलव संख्याओं में समानता― साधारण भिन्न को दशमलव
भिन्नों में तथा दशमलव भिन्न को साधारण भिन्नों में बदला जा सकता है अर्थात् ये दोनों
मात्रात्मक रूप से समान होती हैं।
भिन्न तथा दशमलव संख्याओं व निम्नलिखित अन्तर है।
(1) भिन्नों को ऊपर नीचे अंकों को लिखकर प्रदर्शित करते हैं जबकि दशमलव संख्या
को एक डॉट दशमलव लगातार प्रदर्शित किया जाता है।
(2) भिन्न संख्याओं में अंकों की संख्या सीमित होती है जबकि असांत दशमलव
संख्याओं में दशमलव के बाद के अंकों की संख्या असीमित होती है।
(3) भिन्नों को जोड़ते समय इसमें भाजन व गुणन प्रक्रिया तथा लघुत्तम समावर्तक का
उपयोग होता है जबकि दशमलव संख्याओं में साधारण संख्याओं की तरह ऊपर नीचे
लिखकर जोड़ लेते हैं।
(4) 10 या 10 की घातों घात वाली भिन्नात्मक संख्या दशमनव-भिन्न होती है जबकि
सभी भिन्न 10 या 10 की वाली हो यह जरूरी नहीं है।
प्रश्न 4. भिन्नात्मक संख्या क्या है ?
उत्तर― अभी तक हमने यह देखा कि प्राकृत संख्याओं से बड़ा समुच्चन भिन्नात्मक
संख्या का है। भिन्न लैटिन भाषा के शब्द ‘fractus’ से बना है जिसका मतलब टूटा फूटा
होता है। सामान्यतः भिन्नात्मक संख्याओं में ऐसी संख्याएँ शामिल होता है जिन्हें व्यक्त करने
के लिए पूर्ण के आपस में बराबर हिस्सों की जरूरत होती है। भिन्नात्मक संख्या को दो पूर्ण
संख्याओं के अनुपात के रूप में व्यक्त किया जा सकता है―
p/q: जहाँ पर p पूर्ण संख्या है तथा q का 0 के बराबर नहीं है।
यहाँ रेखा के ऊपर लिखी गई संख्या, उपयोग में लाए गए बराबर हिस्सों की संख्या
को व्यक्त करती है तथा रेखा से नीचे लिखी गई संख्या, कुल हिस्सों की संख्या को व्यक्त
करती है, उतने हिस्सा जिनसे एक पूर्ण का निर्माण हो सके। भिन्नात्मक संख्या दो पूर्ण
संख्याओं को लेकर बनी है। इसमें रेखा के ऊपर लिखी गई संख्या को अंश तथा रेखा के
नीचे लिखी गई संख्या को हर कहा जाता है।
प्रश्न 5. दशमलव भिन्न क्या है ?
उत्तर–दशमलव भिन्न-ऐसी मिन्नात्मक संख्याएँ जिनके हल 10 या 10 की घातों
में हो उसे दशमलव पद्धति में लिखा जाए, दशमलव मिन्नें कहलाती हैं। दशमलव को बिन्दु
(.) द्वारा सूचित किया जा है, जैसे―1/10,3/100,25/1000 इत्यादि। दशमलव बिन्दुओं का प्रयोग
करते हुए इन्हें 0.1, 0.03, 0.025 भी लिखा जाता है। इन्हें क्रमशः शून्य दशमलव एक,
शून्य दशमलव शून्य तीन तथा शून्य दशमलव शून्य दो पाँच पढ़ा जाता है।
किसी भी दशमलव संख्या के दो भाग होते है―(1) पूर्ण संख्या भाग, (2) दशमलव
भाग । उदाहरणार्थ- 16.25 में 16 पूर्ण संख्या भाग तथा 25 दशमलव भाग दूसरी संख्या
शतांश तथा तीसरी संख्या सहस्रांश कहलाती हैं। इसे निम्न उदाहरण द्वारा और स्पष्ट किया
गया है— 5678.125 में 5 हजार + 6 सैकड़ा +7 दहाई + इकाई 1 दसांश + 2 सताशं +
3 सहस्रांश है।
प्रश्न 6. दशमलव भिन्न के प्रकारों को बताइए।
उत्तर– दशमलव भिन्न के प्रकार― सामान्यता दश्मलव भिन्नों को दो प्रकारों से लिखा
जाता है। (1) सांत दशमलव, (2) असांत दशमलव
1. सांत दशमलव–ऐसी दशमलव भिन्न जिसमें दशमलव के स्थानों पर अंकों की
संख्या सीमित होती है, जैसे-3.567,4.23, 4.1.
2. असांत दशमलव―ऐसी दशमलव भिन्न जिसमें दशमलव के स्थानों पर अंकों का
लिखना कभी समाप्त नहीं होता है अर्थात् दशमलव के अंकों की संख्या असीमित होती है।
असांत दशमलव दो प्रकार के होते है―
(i) आवती दशमलव-वह दशमलव जो असांत होते है तथा जिसमें अंकों का क्रम
बार-बार वही आता है, आवर्ती दशमलव कहलाता है, जैसे―0.33333….
0.272727…….0.57599999.
(ii) अनावर्ती दशमलव—जो दशमलव असांत होते है तथा आवर्ती नहीं होते हैं,
अनावर्ती दशमलव कहलाते है, जैसे― 1.412214513…. 17.92.3415…..
0.101001000100001…37. 92341679871….
प्रश्न 7. रेखागणित का अर्थ क्या है ?
उत्तर – रेखागणित का अर्थ– रेखागणित के महत्त्व पर विचार करने से पूर्व यह
आवश्यक है कि हम उसके अर्थ पर विचार करें। इस विषय को ज्यामिति भी कहा जाता
है। ‘ज्यमिति’ का शाब्दिक अर्थ है—’भूमि की माप’ । क्योंकि ज्योमेट्री शब्द ग्रीक भाषा के
दो शब्दों से मिलकर बना है—’Geo’ जिसका अर्थ है। ‘भूमि’ तथा ‘Metry’ जिसका अर्थ
है—’माप’। इस प्रकार शाब्दिक अर्थों में ज्यामिति भूमि मापन सम्बन्धी विज्ञान है।
प्रश्न 8. ‘गणित’ भाषा में बिन्दु से क्या आशय है ?
उत्तर – बिन्दु-बिन्दु को भिन्न-भिन्न विषयानुसार परिभाषित किया जा सकता है किन्तु
प्रत्येक परिभाषा में बिन्दु का अर्थ समान रहता है। जैसे गणित में, बिन्दु वह आकृति है
जिसको कोई विमा नहीं होती है। अर्थात् ऐसी आकृति जिसकी कोई लम्बाई, चौड़ाई तथा
ऊँचाई न हो बिन्दु कहलाती है। ज्यामिति में बिन्दु से तात्पर्य एक अत्यन्त छोटी आकृति या
निशान से है जो कि एक नुकीली पेंसिल से एक कागज के ऊपर बनाया जाता है। विज्ञान
में वह आकृति जिसकी कोई छाया न हो, एक बिन्दु कहलाता है। साधारणतया, बिन्दुओं
को अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षरों A, B, C….; P,Q,R आदि से दर्शाया जाता है। इसको
चिह्न (.) से बनाते हैं।
प्रश्न 9. पैटर्न का महत्त्व क्या है ?
उत्तर–किसी भी दिए गए पैटर्न में उपयोग किये गये रेखाओं एवं आकृतियों में
अन्तर्निहित संबंध को पहचानना सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इससे हमारी तर्क क्षमता का
विकास होता है । पैटर्न में उपयोग किये गये क्रमबद्धता एवं निश्चित दूरी की पहचान हमारी
तार्किक अभिक्षमता का परिचायक होता है। ‘नये-नये पैटनों को गढ़ने की गतिविधि बच्चों
में सृजनात्मक क्षमता का विकास करता है। पैटर्न बालकों में गणितीयकरण की प्रक्रिया में
सहायक है। यह गणित की अवधारणाओं को दैनिक जीवन से जोड़कर सीखने में सहायक
होता है और यही गणित शिक्षक का मुख्य उद्देश्य है।
प्रश्न 10. किरण क्या है ?
उत्तर–किरण–यदि कोई रेखा विपरीत दिशाओं में अनन्त तक विस्तारित है, अर्थात्
एक रेखा का कोई भी अन्त सिरा नहीं होता है। किन्तु यदि एक रेखा पर कहीं भी एक
बिन्दु ले लिया जाये, तब इस बिन्दु से रेखा के दोनों ओर के भाग किरण कहलाती हैं जैसा
कि चित्र में दिखाया गया है।
ph किरण p किरण Q
ph
अर्थात् किरण रेखा का वह भाग है जिसमें रेखा के एक बिन्दु से रेखा का एक अग्र
सिरा होता है। चित्र में m एक रेखा है और इसके तीन दिये गये बिन्दु क्रमश: A, B और
C है। तब m का भाग A से शुरू है और जिसमें बिन्दु B या C है, एक किरण है जिसको
→ → → →
किरण AB या AB अथवा किरण ACया AC से लिखा जाता है। यहाँ AB और AC
→ →
को विपरीत कहते हैं, क्योंकि बिन्दु B, A सरेख है तथा AB और AC का सर्वनिष्ठ बिन्दु
A है।
दो किरणें या दो रेखाखण्ड या एक किरण और एक रेखाखण्ड परस्पर समान्तर होते
हैं यदि वे रेखाएँ जिनमें से यह है, परस्पर समान्तर हैं।
प्रश्न 11. ज्यामितीय उपकरण ‘सेट स्क्वेयर’ के बारे में समझाएँ ।
उत्तर– सेट स्क्वेयर या समकोणक―सेट स्क्वेयर प्लास्टिक/लोहे के त्रिभुजाकार
आकृति के दो उपकरण हैं। एक उपकरण में एक समकोण तथा शेष दोनों कोण 30° व
60° के होते हैं। इसके सहयोग से रेखाखण्ड खींचना व नापना, 30°, 60° व 60° के
कोण बनाए जा सकते है। दूसरे उपकरण में एक समकोण तथा शेष दोनों कोण 45-45°
के होते है। इसके सहयोग से रेखाखण्ड खींचना व नापना, 45°, 90° के कोण बनाए जा
सकते हैं। इन दोनों उपकरणों से बाह्य बिन्दु से किसी दी गयी रेखा के समानान्तर रेखा खींची
जाती है।
प्रश्न 12. मूल्यांकन के तरीकों की व्यापकता का उल्लेख कीजिए ।
अथवा, मूल्यांकन के विभिन्न तरीकें कौन-कौन से हो सकते हैं ?
उत्तर― मूल्यांकन के तरीकों की व्यापकता-मूल्यांकन केवल लिखित या मौखिक
ही ना हो बल्कि अवलोकन, प्रोफाइल, चैक लिस्ट, शिक्षक अनुभव डायरी, प्रोजेक्ट कार्य
बच्चों की टिप्पणियाँ व अनुभव, अभिभावकों की टिप्पणियाँ व सुझाव, जन प्रतिनिधियों की
टिप्पणियाँ, मूल्यांकन प्रतिदिन कक्षा में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान साप्ताहिक,
पाक्षिक, मासिक एवं टर्मवार किया जाता है। बच्चे के अभिगम की पूरा तस्वीर समझने के
लिए मूल्यांकन द्वारा निम्नलिखित बिन्दुओं को उभारना होगा―
(i) विभिन्न विषयों और क्षेत्रों में बालक का सीखना और उसको अभिव्यक्ति एवं प्रस्तुतीकरण ।
(ii) बालक के कौशल, रुचि, रूझान, गति और अभिप्रेरणा से सम्बन्धित पहलू।
(iii) एक निश्चित समय में बालक के सीखने और उसके व्यवहार में होने वाले परिवर्तन।
प्रश्न 13. मूल्यांकन किस प्रकार की प्रक्रिया है ? उल्लेख कीजिए ।
उत्तर― मूल्यांकन निम्नलिखित प्रकार की प्रक्रिया है—
(i) मूल्यांकन वह प्रक्रिया है जो बच्चे के सीखने-सीखाने की प्रक्रिया के साथ-साथ
निरन्तर चलती है।
(ii) मूल्यांकन यह पता लगाती है अपेक्षित दक्षताएँ किस सीमा तक विकसित हुई है
और इसके विकसित करने की प्रक्रिया में कहाँ बदलाव की आवश्यकता है ?
(iii) मूल्यांकन प्रक्रिया से शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति के साथ ही बालक के ज्ञान,
कौशलों, योग्यता का विकास हो तथा मूल्यांकन में क्रियाकलापों और खोज का समावेश हो।
प्रश्न 14. गणित में मनोरंजक क्रियाओं के महत्त्व को बताएँ ।
उत्तर–मनोरंजक क्रियाओं का महत्व (Importance of recreation
activities)― सामान्य रूप से गणित नीरस विषय माना जाता है। अतः प्रभावपूर्ण शिक्षण
के लिए गणित के वर्गकक्ष में मनोरंजक क्रियाओं का होना आवश्यक है। इसके अनेक
कारण हैं―
1. मनोरंजक क्रियाएँ छात्र-छात्राओं को पाठ को सीखने के लिए अभिप्रेरित करती है।
2. वे पाठ को सुगम तथा बोधगम्य बनाती है ।
3. मनोरंजक क्रियाएँ छात्र को अवकाश के क्षणों को सदुपयोग के लिए तैयार करती
है। इस दृष्टि से पहेलियों का महत्व स्पष्ट झलकता है ।
4. ये मनोरंजक क्रियाएँ अनेक सूक्ष्म सम्बन्ध स्थापित करती हैं, जो हमें कभी-कभी
कौन-सी प्रतीत होती है।
5. ये क्रियाएँ बुद्धि को तीव्र करती हैं तथा त्वरित चिन्तन को बढ़ावा देती है।
6. ये क्रियाएँ खेल भावना विकसित करती हैं तथा पारस्परिक सहयोग एवं साथ
प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करती है।
प्रश्न 15. ज्यामितिय समझ के विकास के लिए ‘पूछताछ’ आधारित गतिविधि
को उदाहरण सहित समझाएँ ।
उत्तर–पूछताछ—सीखने की शुरूआत खेल से होती है। बच्चों को पूरी आजादी से
सामग्री को टटोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि वे स्वतः ही उनकी कुछ
खासियतों/गुण व रचनाएँ खोज सकें। जिस समय बच्चे खेल रहे हों, शिक्षक के पास उनकी
भाषा और विचारात्मक क्षमताओं की समीक्षा करने का अवसर होता है।
उदाहरण― प्रत्येक बच्चे को टेनग्राम सेट उपलब्ध करवाएँ और पूछें, “आप इन भागों
से क्या बना सकते है ?” बच्चों द्वारा रचित आकारों के बारे में उन्हें बात करने के लिए
प्रोत्साहित करें। बच्चों को टेनग्राम के हिस्सों से खेलने, उन्हें तोड़ने-बिगाड़ने के लिए पर्याप्त
समय दें। इस खेल के माध्यम से बच्चें हिस्सों की विभिन्न आकारों व आकृतियों से परिचित
होते है और वे ये देखना शुरू कर देते हैं कि किस तरह एक हिस्से अन्य हिस्से से पूरे-पूरे
जुड़ सकता है। दूसरे शब्दों में वे उन आकारों की विशेषताओं व आपसी अंतरसंबंध खोजना
प्रारंभ कर देते हैं।
प्रश्न 16. त्रिभुज की रचना के स्वाभाविक चरण बताएँ।
उत्तर– त्रिभुज की रचना के लिए निम्नलिखित चरण अपनाते हैं—
त्रिभुज की रचना–मान लेते हैं कि हमें एक त्रिभुज का निर्माण करना हैं, जिसकी
भुजाएँ 4cm, 5cm, 6cm है। इसके निम्नलिखित चरणों को अपनाते हैं।
चरण 1. सबसे पहले स्केल की सहायता से 5cm लम्बी एक रेखा खींचते हैं, जिसे
हम AB द्वारा दर्शाते हैं।
ph
चरण 2. अब स्केल पर कम्पास को रखकर 4 cm की दूरी तक रखते हैं और उसे
बिन्दु A पर रखकर एक चाप खींचते हैं।
ph
चरण 3. अब 6 cm लम्बाई को कम्पास को सहारे बिन्दु B पर रखकर एक दूसरी चाप
खींचते हैं जो पहली वाली चाप को बिन्दु C पर काटती है।
चरण 4. अब A और C को मिलाते हैं।
ph
जहाँ AC = 4 cm और B और C को मिलाते हैं।
जहाँ BC = 6cm.
ph
इस तरह से ABC एक अपेक्षित त्रिभुज है।
प्रश्न 17. निम्नलिखित आकृतियों की सममित रेखाओं को स्पष्ट कीजिए ।
(i) आयत, (ii) समबाहु त्रिभुज (iii) वर्ग, (iv) समचतुर्भुज, (v) सम पंचभुज,
(vi) सम षष्ठभुज
ph
प्रश्न 18. पैटर्न, तर्क, सामान्यीकरण तथा परिवर्तनशीलता के आधार पर गणित
की प्रकृति या महत्व बताइए।
उत्तर – गणित की प्रकृति-गणित की प्रकृति निम्नलिखित हैं-
1. “गणित सभी विषयों का प्रवेशद्वार तथा कुंजी है।” रोजन बैकन के उक्त कथन
से स्पष्ट है कि गणित की प्रगति के साथ ही अन्य विषयों की प्रगति जुड़ी है। इसका प्रयोग
लगभग सभी विषयों में किया जाता है।
2. गणित विषय के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हैं जिन पर विश्वास किया जा
सकता है, क्योंकि ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थायी व वास्तविक होता है।
3. जीवन के अमूर्त प्रत्ययों की व्याख्या गणित की सहायता से की जा सकती है तथा
बाद में अमूर्त को स्थल रूप में ही इसका सहायता से प्रदर्शित किया जा सकता है।
4. वातावरण में उपलब्ध वस्तुओं के आपस में सम्बन्धों को संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत
कर निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं, क्योंकि ये निष्कर्ष एक पुनः सत्यापित की जाने वाली
प्रक्रिया पर आधारित होता है।
5. यदि गणित में प्रयुक्त विभिन्न पदों, अवधारणाओं, प्रत्ययों, सूत्रों, संकेतों, सिद्धांतों
को देखने से ज्ञात होता है कि गणित की एक अलग लिपि या भाषा होती है।
6. गणित में सर्वप्रमुख प्रयुक्त संख्याओं, स्थान, मापन आदि का प्रयोग वर्तमान में अन्य
विषयों में भी किया जाता है।
7. गणित में सामान्यीकरण, निगमन, आगमन के लिए पर्याप्त सीमा होती है।
8. गणित के माध्यम से जो निष्कर्ष निकाले जाते हैं तथा उनके आधार पर भविष्यवाणी
की जाती हैं, वे हमारे उद्देश्यों को पूरा करने में समर्थ होती है।
9. गणित सार्वभौमिक विषय है, जिसकी मान्यताएँ दुनिया के प्रत्येक कोने में सर्वमान्य
हैं, यह ज्ञान समय व स्थान के साथ परिवर्तित नहीं होता है। जिस वस्तु, तथ्य या घटना पर
व्यक्ति समय व स्थान का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, इसे किसी भी स्थान पर सत्यापित किया
जा सकता है।
प्रश्न 19. जोड़ से सम्बन्धित कुछ इबारती प्रश्नों का निर्माण करें।
उत्तर― जोड़ से सम्बन्धित इबारती प्रश्न :
● एकत्रीकरण―जब दो या दो से अधिक राशियों को मिलाकर एक राशि बनानी हो ।
● वृद्धि― जब किसी राशि को निश्चित मात्रा से बढ़ाना हो तथा बढ़ी हुई राशि ज्ञात
करना हो। जैसे—
(i) तुम्हारे पापा ने तुम्हें 2 रुपयों दिए और मम्मी ने 3 रुपयें दिए, तो बताओं कि तुम्हारे
पास कितने रुपए हुए ?
(ii) तुम्हारे पास दो खिलोने हैं और दादाजी ने दो और खिलौने तुम्हारे लिए खरीदें।
अब तुम्हारे पास कितने खिलौने हैं ?
(iii) मोहन ने आज सुबह 3 रोटी खायी, दोपहर में 2 रोटी और रात को भी 3 रोटी
खायी। बताओं उसने कुल कितनी रोटियाँ खाई ?
(iv) आशा अपने मामा के घर गयी। वहाँ उसके नाना ने उसके लिए दो फ्रॉक और
मामा ने एक फ्रॉक खरीदें। बताइए आशा को कितने फ्रॉक मिले ?
(v) स्वीटी के पास 4 चॉकलेट थे। उसके दादाजी ने उसे 5 चॉकलेट दिए और बताइए
कि स्वीटी के पास कुल कितने चॉकलेट हो गये ?
प्रश्न 20. घटाव संबंधित कुछ इबारती प्रश्नों का निर्माण करें तथा इबारती प्रश्नों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर―घटाव से संबंधित इबारती प्रश्न :
● पृथक्करण– जब दी गई राशि में से कुछ राशि निकालनी हो।
● तुलना– जो दो राशियाँ दी गई हो तो उनमें तुलना करना । जैसे—
(i) राम के पास 5 आम है। उनमें से उसने 2 आम अपनी बहन को दे दिये। राम के
पास कितने आम बचें ?
(ii) रानी के पास चार चॉकलेट है। इनमें से उसने दो चॉकलेट खा लिए। अब रानी
के पास कितने चॉकलेट हैं ?
(iii) सोनू के दादाजी ने उसे 10 रुपयें देकर बाजार से सामान लाने को कहा। सोनू ने
8 रु. का सामान खरीद लिया। अब सोनू के पास कितने रुपये बचे ?
(iv) सोहन के पास 18 रु. है और मोहन के पास 15 रु. है। बताइए कि किसके पास
ज्यादा रुपये हैं और कितने ?
(v) एक ग्वाले के पास 3 गायें थी। उसने उनमें से 2 गायों को बेच दिया। अब उसके
पास कितनी गायें हैं ?
इस तरह के इबारती प्रश्न बच्चों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए यह आवश्यक
है कि बच्चों को इबारती सवाल करने के अवसर मिलें। इस तरह से बहुत से सवाल हल
करने पर बच्चे घटाने आदि की अमूर्त संक्रिया को समझने लगते है और इसकी दुनिया से
जुड़ जाते हैं।

