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पाठ्य पुस्तक में लैंगिक असमानता पर एक लेख लिखिए। Write an essay on Gender Inequality in Text Book.

प्रश्न – पाठ्य पुस्तक में लैंगिक असमानता पर एक लेख लिखिए। Write an essay on Gender Inequality in Text Book.
उत्तर- पाठ्य पुस्तक में लैंगिक असमानता (Gender Inequality in Text Book) 
पाठ्य पुस्तकों को शिक्षा एवं सामाजिक परिवर्तन का एक औजारं भी कहा जाता है। पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से सामाजिक मूल्यों, मानकों और सामाजिक अपेक्षाओं को छात्रों तक पहुँचाया जाता है।

यूनेस्को (2009) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पाठ्य-पुस्तकें समाजीकरण का वाहन होती हैं जो ज्ञान और मूल्य प्रदान करती हैं।

यूनेस्को के अनुसार, “पाठ्यपुस्तकों में अधिकार आधारित उपागम का पालन करना चाहिए ।

इसलिए पाठ्यपुस्तकों में भेदभाव, असहिष्णुता और रूढ़िवादिता का निष्कासन होना चाहिए। पाठ्य पुस्तकों को ऐसे मूल्यों का निर्माण करने वाला होना चाहिए जो समाज के सभी सदस्यों को शान्ति और गौरवमय जीवन प्रदान कर सके। इस आधार पर ऐसी पाठ्य पुस्तकों के निर्माण की आवश्यकता है जो भेदभाव से दूर हो और सभी सदस्यों की गरिमा को बनाए रखें।

राष्ट्र-स्तर पर पाठ्य पुस्तकों में लैंगिक असमानता (Gender Inequality in Text Book at the National Level) विभिन्न विद्वानों के द्वारा किए गए शोधों में पाठ्य पुस्तकों में व्याप्त लैंगिक असमानता को निम्न रूप से देखा गया है-

मैक्केब (McCabe) ने 2011 में यह निष्कर्ष निकाला कि पुस्तकों के शीर्षकों में पुरुषों का प्रतिनिधित्व महिलाओं के मुकाबले दो गुना था। बच्चों की पुस्तकों में पितृसत्तात्मक लैंगिक व्यवस्था को बढ़ावा मिला ।

महिलाओं की पहली तरंग’ आन्दोलन और ‘दूसरी तरंग’ आन्दोलन के बीच के समय में (1930-1960) पाठ्य-पुस्तकों में महिलाओं का सबसे कम प्रतिनिधित्व देखने को मिला। NCERT के द्वारा पाठ्य पुस्तकों को ऑडिट करने के बाद पता चला है कि “यद्यपि NCERT की पुस्तकों में लैंगिक समानता को काफी प्रोत्साहित किया गया इसके उपरान्त भी इन पुस्तकों में परम्परागत लैंगिक भूमिका देखने को मिलती है।”

एन.सी.ई.आर.टी. की प्राथमिक कक्षाओं की 18 पुस्तकों में पुरुषों को किसी न किसी उद्यम से ही जोड़ा गया है जबकि महिलाओं को घर काम-काज तक ही सीमित भूमिका में दर्शाया गया है। छोटे बच्चों के मन में प्रारम्भिक स्तर से ही लैंगिक असमानता का बीज बोया जाएगा तो लैंगिक समानता का लक्ष्य हासिल करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। कुछ प्रसंगों में महिलाओं को नर्स, डॉक्टर और शिक्षिका के रूप में भी बताया गया है। इस सम्बन्ध में मानव संसाधन विकास मन्त्रालय ने विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने के लिए नैतिक शिक्षा के अन्तर्गत उन अध्यायों को जोड़ने के लिए कहा है जो महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा के प्रति जागरूकता एवं संवेदनशीलता में बढ़ोत्तरी कर सकें जिससे महिलाओं के प्रति सम्मान विकसित हो सके। पाठ्य पुस्तकों में वैश्विक स्तर पर लैंगिक भेदभाव के निम्नलिखित ढाँचे देखने को मिलते हैं-

  1. स्त्रियों तथा लड़कियों को कम प्रतिनिधित्व मिलता है।
  2. विषय-वस्तुओं और उदाहरणों में स्त्रियों और लड़कियों को परम्परागत भूमिकाओं में बताया जाता है।
  3. लड़कियों और महिलाओं को निष्क्रिय भूमिकाओं के रूप में ही वर्णित किया जाता है।

उपरोक्त वर्णित परिस्थितियाँ पाठ्यचर्या में प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित हों या न हो अप्रत्यक्ष रूप में लैंगिक भेदभाव देखने को मिल ही जाता है। जब तक पाठ्य पुस्तकों में लैंगिक भेदभाव को समाप्त नहीं किया जाता जब तक लैंगिक समानता का लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल लगता है। प्रायः देखा जाता है कि 70-95 प्रतिशत कक्षा का समय पुस्तकों को पढ़ने, पढ़ाने में ही खर्च होता है। इतने अधिक समय तक यदि लैंगिक भेदभाव की बातें सामने आती रहें तो लैंगिक असमानता को समाप्त कैसे किया जा सकता है। जस्टिस वर्मा समिति ने विद्यालय के सभी स्तरों पर लैंगिक असामनता को कम करने के लिए पाठ्यक्रमों में लैंगिक समानता को जोड़ने की सिफारिश की है।

पाठ्य पुस्तकों में लैंगिक असमानता से सम्बन्धित तथ्य (Facts Related to Gender Inequality in Text Books)
  1. स्त्री-पुरुष के नाम की आकृति – प्रत्येक पुस्तक में कहीं न कहीं नाम का वर्णन होता है। यह नाम किसी चरित्र, पात्र के रूप में हो सकता है। स्त्री या पुरुष के नाम की आकृति कम है या अधिक, इस बात को हम पुस्तक के अध्ययन के पश्चात् ही जान सकते हैं। यदि स्त्री से सम्बन्धित शब्द कम प्रयोग हुए है तो पता लगाया जा सकता है कि स्त्री को समान प्रतिनिधित्व मिला है कि नहीं।
  2. पात्रों एवं भूमिकाओं के सन्दर्भ में पुस्तकों में वर्णित नाम, पात्र एवं उनकी भूमिकाओं से सम्बन्धित सन्दर्भ, जैसे- वह क्या करता है? वह क्या करती है? का अध्ययन करने के बाद महिलाओं की भूमिका की समीक्षा की जा सकती है। समानता को दर्शाने वाले प्रसंगों में महिलाओं को उन कार्यों को करते हुए वर्णित किया जाता है जिससे लैंगिक समानता परिलक्षित हो ।
  3. लिंग – विशेष शब्दों का वर्णन-किसी पुस्तक में लिंग-विशेष शब्दों, जैसे-करता है, करती है, का वर्णन भी असमानता का सूचक हो सकता है। “करता है” शब्द के साथ जिन कामों को बताया जाता है और “करती है” शब्द के लिए जिन कामों को बताया जाता है, के आधार पर भी लैंगिक समानता की मात्रा तय की जा सकती है।
  4. लिंग – विशेष से सम्बन्धित उदाहरणों का वर्णन पुस्तकों में स्त्री या पुरुषों से सम्बन्धित कई उदाहरण भी लिखे रहते हैं। इन उदाहरणों के आधार पर भी लैंगिक असमानता का स्तर तय किया जा सकता है। इन उदाहरणों में भी कई बार रूढ़िवादी भूमिकाओं का वर्णन मिल जाता है। जैसे- गणित की पुस्तकों उदाहरण के लिए कई प्रसंगों का प्रयोग किया जाता है, उनमें कई बार स्त्री को निम्न स्थिति में दिखाया जाता है। इन उदाहरणों के विश्लेषण के आधार पर भी लैंगिक असमानता के वर्णन का पता चलता है।
  5. स्त्रीलिंग वाली वस्तुओं एवं जानवरों का प्रसंग – स्त्री – लिंग से सम्बन्धित वस्तुओं और पुरुष – लिंग से सम्बन्धित वस्तुओं एवं जानवरों को भी कई बार रूढ़िवादी सोच के आधार पर चित्रित एवं वर्णित कर दिया जाता है। इन्सानों के साथ-साथ जानवरों में भी लैंगिक असमानता को दिखाने एवं वर्णन करने से भी लैंगिक असमानता में वृद्धि होती है।
पाठ्य पुस्तकों में लैंगिक असमानता के कारण (Reasons for Gender Inequality in Text Books)
  1. समाज की परम्परागत सोच-सदियों चली आ रही समाज की रूढ़िवादी सोच समाज के लगभग अधिकांश व्यक्तियों में पाई जाती है। समाज की परम्परागत सोच समाजीकरण के माध्यम से हमारे मन मस्तिष्क में पैदा होती है। हमारे ही समाज के सदस्य जब पाठ्यचर्या का निर्माण करते हैं तो बिना किसी गलत सोच के अचेतन मन से, महिला के प्रति परम्परागत सोच के कारण पाठ्यचर्या में लैंगिक असमानता का वर्णन कर देते हैं ।
  2. लैंगिक संवेदना की कमी- हमारे समाज में लैंगिक असमानता को कम करने सम्बन्धी जागरूकता एवं संवेदना में कमी के कारण भी पाठ्य पुस्तकों में ऐसे उदाहरण लिख दिए जाते हैं जिससे लैंगिक असमानता को बढ़ावा मिलता है।
  3. लेखकों में सही एवं उपयुक्त दिशा-निर्देश की कमी- पुस्तकों को लिखने वाले लेखकों में कई निश्चित मापदण्डों के अभाव के कारण भी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि लेखकों के द्वारा लैंगिक समानता का प्रश्न छूट जाता है। इसलिए लेखकों को भी लैंगिक समानता से सम्बन्धित दिशा-निर्देश दिए जाने चाहिए।
पाठ्यपुस्तक में लैंगिक समानता लाने के लिए प्रयास (Efforts to Bring Gender Equality in the Text Book)
  1. विषय सामग्री – इतिहास में महान स्त्रियों के जीवन प्रसंगों को स्थान दिया जाना चाहिए। स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास प्रस्तुत करते समय पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की भागीदारी का भी प्रभावशाली वर्णन किया जाना चाहिए।
  2. चित्र – पाठ्य पुस्तकों में स्त्रियों की सहभागिता को प्रदर्शित करने वाले चित्र भी होने चाहिए ।
  3. जागरूकता – पाठ्य पुस्तकों में ऐसी सामग्री का प्रयोग करना चाहिए जो समाज को जागरूक करे एवं लिंग समानता के अवसरों को बढ़ावा मिल सके। पाठ्य पुस्तकों में स्त्रियों के अधिकारों से सम्बन्धित कानूनों एवं संविधान में लिखी बातों कों भी महत्त्व दिया जाना चाहिए।
  4. उपयुक्त उदाहरण- पाठ्य पुस्तकों एवं उसकी विषय सामग्री में महिलाओं के महत्त्व को प्रदर्शित करने वाले उदाहरण होने चाहिए।
  5. कहानियों को सम्मिलित करना – पाठ्य-पुस्तकों में विशेषकर भाषा की पुस्तकों में ऐसी कहानियों को शामिल किया जाना चाहिए जिनमें महिलाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
  6. प्रश्नों में महिला पात्र – गणित की पाठ्य पुस्तकों में पुरुष पात्र के नाम के साथ-साथ प्रश्नों में महिला पात्र भी लिए जाने चाहिए।
यूनेस्को के द्वारा लैंगिक समानता के प्रयास
1979 – CEDAW (Convention on the Eliminations of All Forms of Discrimination Against Woman) जिसमें महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभावों को दूर करने का प्रयास किया गया ।
  1. 1989- CRC (Convention on the Rights of the Child) जिसमें लड़कों और लड़कियों के समान अधिकार पर बल दिया गया ।
  2. 1993 – वियना में मानव अधिकारों पर विश्व स्तर की कॉन्फ्रेन्स की गई जिसमें महिलाओं की समान स्थिति और मानव अधिकारों की चर्चा की गई।

‘लैंगिक विवरण की विशेषताओं को नोट किया जाए । लड़के-लड़कियों, स्त्रियों – पुरुषों की गतिविधियाँ, क्रियाएँ, दूसरों के साथ उनके वार्तालाप, उनके व्यक्तित्व का चित्रण, उनके आभूषण, कपड़े, परिवार में उनके सम्बन्ध आदि का विश्लेषण किया जाए।” इनके आधार पर लिंग विशेष के सम्बन्ध में उस समाज की सोच का पता लगाया जा सकता है। इस उपागम के आधार पर पाठ्य पुस्तकों में लिंग विशेष के प्रतिनिधित्व का पता लगाया जा सकता है।

लैंगिक–अंकेक्षण (Gender Audit)
  1. क्या लिखित सामग्री में पुरुष एवं महिलाओं के योगदान और प्राप्ति को उचित ढंग से बताया गया है ?
  2. क्या पाठ्य-पुस्तकों में समावेशित रूप में सभी समूहों की समजातीय पहचान दर्शाई गई हैं?
  3. क्या पाठ्य पुस्तकें समाज  सभी भागों लिंग, जाति, वर्ग और धर्म की खाई को कम करती है ?
  4. क्या इनसे अधिगमकर्ताओं की अभिवृत्ति में परिवर्तन आएगा ?
  5. क्या विभिन्न प्रकार के विरोधों को बताया गया है ?
  6. क्या पाठ्य पुस्तकें महिला से सम्बन्धित रूढ़िवादिता एवं अन्य परम्परागत क्रियाओं से सम्बन्धित समालोचनात्मक सोच विकसित करती हैं?
एन.सी.ई.आर.टी. के द्वारा किया गया ऑडिट निम्न बातों को उजागर करता है –
  1. कक्षा – 3 के पर्यावरण अध्ययन की पुस्तक में महिला को कुएँ से पानी खींचने के परम्परागत कार्य को दर्शाया गया है।
  2. दूसरी पुस्तक “कार्य जो हम करते हैं” (‘Work We Do’) में परम्परागत रूप से महिला को घर के काम-काज तक सीमित किया गया है।
  3. हिन्दी की पुस्तक में परम्परागत विशेषज्ञों का प्रयोग किया गया है।
  4. एक कविता ‘पतंग’ में सिर्फ लड़कों को पतंग उड़ाते बताया गया है जबकि लड़कियों को सिर्फ पतंग को उड़ते हुए देखने का वर्णन किया गया है। महिला की परम्परागत भूमिका “खाना पकाना” के रूप में वर्णित की गई है।
  5. अंग्रेजी की पुस्तक में लड़के को पुस्तक पकड़े हुए तथा लड़कियों को बात-चीत करते दिखाया गया है।
  6. पुरुषों को महिलाओं की तुलना में ज्यादा कार्यक्षेत्रों में दिखाया गया है।
उपरोक्त विश्लेषण एन.सी.ई.आर.टी. के महिला अध्ययन विभाग द्वारा सम्पादित किया गया । पाठ्य पुस्तकों में लैंगिक असमानता शुद्ध रूप से परम्परागत सोच को दर्शाता है। पाठ्य-पुस्तकों में लैंगिक असमानता उस समाज का प्रतिनिधित्व करता है जो महिलाओं को रूढ़िवादिता के चंगुल में कसना चाहता है। रूढ़िवादिता से प्रेरित शब्द एवं भूमिकाओं को पाठ्य पुस्तकों में स्थान देना किसी भी सभ्य एवं विकसित देश की पहचान नहीं हो सकता।

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