1st Year

प्रश्न – अभिवृद्धि एवं विकास का अर्थ स्पष्ट करते हुए विकास की विशेषताएँ एवं महत्त्व बताइए। Explain the characteristics and importance of development with explaining the meaning of growth and development.

प्रश्न – अभिवृद्धि एवं विकास का अर्थ स्पष्ट करते हुए विकास की विशेषताएँ एवं महत्त्व बताइए। Explain the characteristics and importance of development with explaining the meaning of growth and development.
या
अभिवृद्धि एवं विकास का प्रत्यय स्पष्ट करते हुए अभिवृद्धि एवं विकास में अन्तर बताइए | Explain the Concept of Growth and Development and Differentiate between Growth and Development
या
संक्षेप में मानव विकास को परिभाषित कीजिए। Define ‘Human Growth’ in briefly.
उत्तर – अभिवृद्धि एवं का विकास का प्रत्यय

प्रायः विकास को अभिवृद्धि के पर्याय के रूप में जाना जाता है लेकिन मनोविज्ञान इन दोनों शब्दों में विभेद करता है। अभिवृद्धि का अर्थ सीमित रूप में शरीर एवं उसके अवयवों में वृद्धि से है अभिवृद्धि, विकास का ही एक चरण है। अभिवृद्धि में आकार तथा परिणामं दोनों में परिवर्तन होता है तथा इसका मापन सम्भव है परन्तु विकास शरीर तथा मन में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तन हैं जिनका मापन अर्थात् नाप-तौल करना कठिन है।

विकास एक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है जो गर्भधारण से लेकर जीवन पर्यन्त चलती रहती है। मानव के जीवनकाल में आए विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों को सामान्य भाषा में विकास कहा जाता है। विकास की प्रक्रिया में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक आदि पहलू सम्मिलित हैं। मनुष्य के जीवन में प्रगति की राह में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों को विकास की संज्ञा दी गई है। कुछ विद्वानों का मत है कि विकास परिपक्वता के पश्चात् रुक जाता है परन्तु यह मत सत्य नहीं है क्योंकि विकास का क्रम आजीवन चलता रहता है। परिपक्वता की अवस्था के बाद उसकी गति धीमी अवश्य हो जाती है।

अभिवृद्धि का अर्थ एवं परिभाषाएँ 

वृद्धि का अर्थ है ‘फैलना या बढ़ना’ | वृद्धि शब्द अंग्रेजी भाषा के Growth शब्द का हिन्दी रूपान्तर है जिसका अर्थ परिपक्वता की ओर बढ़ना है। वृद्धि से अभिप्राय लम्बाई, भार, आकार एवं मानव शरीर के विभिन्न भागों में मात्रात्मक परिवर्तन से है। इस प्रकार गर्भधारण से लेकर शैशवास्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था से होते हुए प्रौढ़ावस्था तक पहुँचने के दौरान यक्ति के विभिन्न अंगों के आकार लम्बाई एवं भार में आने वाले परिवर्तन को वृद्धि कहा जाता है।

फ्रैंक के अनुसार, “अभिवृद्धि से तात्पर्य कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि से होता है, जैसे, लम्बाई और भार में वृद्धि, जबकि विकास से तात्पर्य – प्राणी में होने वाले सम्पूर्ण परिवर्तनों से होता है। “
According to Frank, “Growth is regarded as multiplication of cells, as growth in height and weight while development refers to the changes in organism as a whole.”
मेरीडिथ के अनुसार, “कुछ लेखक अभिवृद्धि का प्रयोग केवल आकार की वृद्धि के अर्थ में करते हैं और कुछ विकास का भेदीकरण या विशिष्टीकरण के अर्थ में।”
According to Meredith, “Some writers reserve the use of ‘development’ of mean differentiation.”

जी.ए. हेडफील्ड ने अभिवृद्धि एवं विकास के अन्तर को निम्न प्रकार से व्यक्त किया है— अभिवृद्धि आकार का बढ़ना है और विकास रूप एवं आकार दोनों में परिवर्तन का होना है।

विकास (Development) एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है जिसमें अभिवृद्धि का भाव हमेशा निहित होता है। अभिवृद्धि के अभाव में विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। अतः अभिवृद्धि एवं विकास दोनों में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।

विकास का अर्थ एवं परिभाषाएँ –

विकास शब्द अंग्रेजी भाषा के Development शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। विकास का अर्थ भी बढ़ना होता है। विकास में. परिवर्तन मात्रात्मक नहीं होता है। यह बढ़ना शारीरिक रूप में न होकर मानसिक रूप में होता है। इस प्रकार विकास का तात्पर्य बालक के शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक एकीकरण से है जिसके फलस्वरूप उसका व्यवहार विशिष्ट प्रकार का होता जाता है तथा वातावरण के साथ समायोजन में सहायक होता है। अतः विकास शरीर के विभिन्न अंगों की कार्यक्षमता को इंगित करता है। विकास के अन्तर्गत दो परस्पर विरोधी प्रक्रियाएँ वृद्धि एवं क्षय होती हैं जो निरन्तर किसी न किसी रूप में जीवन पर्यन्त चलती रहती हैं। जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में वृद्धि की प्रक्रिया तीव्र होती है जबकि क्षय प्रक्रिया अत्यन्त मन्द होती है तथा जीवन के अन्तिम वर्षों में क्षय की प्रक्रिया तीव्र गति से चलती है जबकि वृद्धि प्रक्रिया की गति अत्यन्त मन्द हो जाती है ।

इरा. जी. गोर्डन के अनुसार, “विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से लेकर उस समय तक चलती रहती है. जब तक कि वह पूर्ण विकास को प्राप्त नहीं कर लेता है।

हरलॉक ने मानव विकास को और अधिक स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। उनके अनुसार, “विकास अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है, अपितु इसमें परिवर्तनों का वह प्रगतिशील क्रम निहित है, जो परिपक्वता के लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है। विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और नवीन योग्यताएँ प्रकट होती हैं ।
According to Hurlock, “Development is not limited to growing larger instead, it consist of progressive series of changes toward the goal of maturity. Development results in new characteristics and new abilities on the part of the individual.”

गेसेल के अनुसार, “विकास केवल एक प्रत्यय (विचार) ही नही है, इसे देखा, जाँचा और किसी सीमा तक तीन विभिन्न दिशाओं शरीर अंग विश्लेषण, शरीर ज्ञान तथा व्यवहारात्मक सकता है। इन सब में व्यवहार ही सबसे अधिक विकासात्मक स्तर तथा विकासात्मक शक्तियों को व्यक्त करने का माध्यम है ।

उक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि विकास एक प्रगतिशील प्रक्रिया है जिसका संबंध मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तनों से है। अपने भीतर व बाहय वातावरण से समायोजन की कला ही विकास है।

मानव विकास की विशेषताएँ – 

  1. सतत् एवं क्रमिक चलने वाली प्रक्रिया – बाल-विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक अनवरत् रूप से चलती ही रहती है। विकास एक क्रमिक प्रक्रिया भी है क्योंकि इसमें प्रत्येक अवस्था स्वयं की पूर्व अवस्था से किसी न किसी माध्यम से जुड़ी रहती है।
  2. अनुवांशिकता एवं वातावरण द्वारा प्रभावित – बाल विकास अनुवांशिकता एवं वातावरण से प्रभावित होता हैं क्योंकि बालक जिस वातावरण में जन्म लेता है उसी के अनुरूप उसका विकास होता है साथ ही साथ माता-पिता तथा पूर्वजों के अनुवांशिक लक्षणों का प्रभाव भी बालक के विकास को किसी न किसी रूप में परिलक्षित होता है ।
  3. विकास का निश्चित स्वरूप- बालक के विकास का स्वरूप निश्चित होता है । यद्यपि यह देखने में कभी-कभी अव्यवस्थित लगता है परन्तु वह निश्चित क्रम में उभरता है। गेसेल ने विकास के इस निश्चित स्वरूप को प्रकृति का नियम बताया है ।
  4. नवीन स्वरूप को धारण करना – बाल विकास की प्रक्रिया के बीच जहाँ पुरानी रूपरेखा खत्म हो जाती है वहीं नवीन रूपरेखा प्रारम्भ हो जाती है अर्थात् बाल विकास के अन्तर्गत बालक का शारीरिक स्वरूप नवीन रूप में उभरने लगता है। उदाहरण के लिए-पुराने दाँतों के बदले नए दाँत निकलना, यौन परिवर्तन एवं आवाज में परिवर्तन आदि । हैविंगहर्स्ट के · अनुसार, “जब शरीर परिपक्व हो जाता है और व्यक्ति किसी भी कार्य को करने के लिए तैयार रहता है, समाज को उसकी आवश्यकता होती है। ऐसे समय में विकास प्रक्रिया में व्यक्ति नवीन ज्ञान तथा कौशल को सीखता है।”
  5. गुणात्मक एवं मात्रात्मक मापन सम्भव – मानव विकास मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों प्रकार का होता है जिसका मापन किया जा सकता है। मात्रात्मक अभिवृद्धि (विकास) का मापन गणितीय विधियों से किया जाता है परन्तु गुणात्मक उन्नयन (विकास) को गणितीय विधियों के बजाय मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा मापा जाता है।
  6. प्राकृतिक एवं सामाजिक प्रक्रिया – बाल विकास की प्रक्रिया सतत् प्रक्रिया होने के साथ-साथ प्राकृतिक एवं सामाजिक प्रक्रिया भी है। इसके अन्तर्गत बालक प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण के अनुसार बढ़ता रहता है।
  7. विकास की विशिष्टता-बालक के विकास में विशिष्टता भी पाई जाती है क्योंकि बाल विकास की प्रत्येक अवस्था में कुछ संकलों का विकास होता रहता है।
    फील्डमैन के अनुसार, “मानव-जीवन अनेक अवस्थाओं में गुजरता है, मानव जीवन गर्भीय से किसी भी अवस्था में कम नहीं है। प्रत्येक अवस्था में प्रभावशाली विशेषताएँ उभरती हैं, उनमें विशिष्टताएँ होती हैं। इसमें एकता तथा वैशिष्ट्य पाया जाता है। “
  8. विकास की भिन्न दरें – विकास की विभिन्न अवस्थाओं में विकास की दरें भिन्न-भिन्न होती हैं। बालक के जन्म के • समय यह दर अपने उच्चतम स्तर पर होती है तथा प्रौढ़ावस्था में आकर मन्द हो जाती है।
  9. पूर्व की स्थिति में परिवर्तन – बालक के विकास के साथ ही साथ बालक के शारीरिक रूपरेखा में भी कई परिवर्तन होते हैं। यह परिवर्तन बालक में जाँघ, दाँत एवं छाती आदि में थायमस तथा पीनियल ग्रन्थियों के कारण होता है। चिन्तन, रेंगना, गतिशीलता, घुटनों के बल चलना, स्वाद, घ्राण शक्ति आदि में परिवर्तन हो जाता है।
  10. परिवर्तनशील आकार एवं भार- शारीरिक अभिवृद्धि के समय बालक के आकार एवं भार में परिवर्तन दृष्टिगत होता है। जैसे-जैसे बालक बढ़ता है, उसके शरीर के भार में, कद में, व्यास में असामान्य वृद्धि होती है। आन्तरिक अवयवों में हृदय, फेफड़े, उदर एवं आँतों की अभिवृद्धि होती है। इस प्रकार हम देखते हैं विकास की प्रक्रिया कुछ विशेष विशेषताओं को लेकर आगे बढ़ती है साथ ही साथ विकास एक व्यापक सम्प्रत्यय भी । इसमें व्यक्ति के जीवनकाल में आए सभी परिवर्तनों को भी सम्मिलित किया जाता है।
विकास का महत्त्व (Importance of Development)
  1. बालक की विकासात्मक क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त होता है – प्रत्येक बालक अपनी विकास प्रक्रिया में एक निश्चित आयु में एक गुण प्रदर्शित करता है। ये गुण उससे पूर्व या बाद की विकास अवस्थाओं में परिलक्षित नहीं होता है और यदि होता भी है तो सामान्य रूप में होता है विशिष्ट रूप में नहीं। इन्हीं परिलक्षित गुणों को विकासात्मक क्रियाएँ कहते हैं। जैसेशिशु के जन्म से 3-4 माह में भाषा विकास होने लगता है। बाल विकास की अवस्था का ज्ञान प्राप्त करके अभिभावक इन विकासात्मक क्रियाओं के आधार पर बालक के विकास का उचित निर्देशन दे सकते हैं।
  2. बाल पोषण विधियों का ज्ञान- बाल विकास के अध्ययन से माता-पिता अपनी मातृत्व एवं पितृत्व के दायित्व को अच्छे से समझ सकते हैं एवं उनका सफलतापूर्वक निर्वहन कर सकते हैं। बाल विकास के अध्ययन से माता-पिता को बालक के पोषण से सम्बन्धित सहायता प्राप्त हो जाती है।
  3. व्यक्तिगत विभिन्नताओं की जानकारी प्राप्त होती है – बाल विकास का अध्ययन करके हम बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का पता लगा सकते हैं और उसी के अनुसार उनकी आगामी शिक्षा की व्यवस्था की जाती है जिसमें विकास की प्रक्रिया का एक निश्चित स्वरूप होता है। जैसे – मन्द बुद्धि बालक की अपेक्षा कुशाग्र बुद्धि के बालक जल्द सीखना शुरू कर देता है।
  4. बालकों के प्रशिक्षण एवं शिक्षा में उपयोगी – बाल विकास के अध्ययन से ही इस बात का पता चलता है कि किस अवस्था में बालक की मानसिक योग्यता कितनी होती है? बालक की मानसिक योग्यता का पता लगाकर उसके प्रशिक्षण एवं शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। बालकों की मानसिक योग्यता को आधार मान कर ही उनके लिए पाठ्यक्रम का निर्धारण किया जाता है। विद्यालयी क्रियाकलापों में भी बालक की मानसिक योग्यता, आयु, शक्ति आदि को ध्यान में रखा जाता है ।
  5. बालक के के विकास की अवस्थाओं का ज्ञान- बालक गर्भावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक किस प्रकार विकसित होता है, इसका ज्ञान माता – पिता बाल विकास के अध्ययन से ही प्राप्त कर सकते हैं एवं अपने शिशु के विकास की विभिन्न अवस्थाओं के विकास में उसका समुचित प्रयोग करके उसके विकास में योगदान दे सकते हैं।
  6. बालक के व्यवहार के नियंत्रण करने में सहायक – बालक को समाज के अच्छे नागरिक के रूप में विकसित करना ही बाल विकास का प्रमुख उद्देश्य है। ‘समाज बालक को तभी स्वीकार करता है जब बालक का शारीरिक एवं मानसिक व्यवहार सामान्य होता है। बाल विकास का अध्ययन बालकों की बुरी आदतों, व्यवहारों तथा रुचियों को उचित दिशा प्रदान करके बालकों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाया जा सकता है ।
अभिवृद्धि एवं विकास में अंतर
अंतर के आधार
(Bases of Difference)
अभिवृद्धि
(Growth)
विकास
(Development)
अर्थ (Meaning) अभिवृद्धि का अर्थ शरीर एवं उसके अवयवों में वृद्धि से होता है। विकास का संबंध शारीरिक वृद्धि के साथ-साथ मानसिक परिवर्तनों से भी होता है।
परिवर्तन (Changes) अभिवृद्धि में संरचनात्मक मात्रात्मक अथवा परिमाणात्मक परिवर्तन होते हैं । विकास में प्रकार्यात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तनों का बोध होता है ।
परिपक्वता (Maturity) अभिवृद्धि की प्रक्रिया आजीवन नहीं चलती । बालक के द्वारा परिपक्वता ग्रहण करने के साथ ही समाप्त हो जाती है । विकास एक सतत् प्रक्रिया है । यह समाप्त न होकर आजीवन चलती रहती है ।
प्रक्रिया (Process) अभिवृद्धि एक निश्चित समय तक चलने वाली प्रक्रिया है। विकास आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है ।
अवधारणा (Concept) अभिवृद्धि का अर्थ सीमित होता है। यह विकास का ही एक चरण है।  विकास एक व्यापक अवधारणा है। विकास में ही अभिवृद्धि निहित होती है।

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