भारतीय समाज में स्त्रियों एवं बालिकाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए। इसे कैसे दूर किया जा सकता है ? Describe the problems of women and girls in Indian society. How to remove them.
प्रश्न – भारतीय समाज में स्त्रियों एवं बालिकाओं की समस्याओं का वर्णन कीजिए। इसे कैसे दूर किया जा सकता है ?
Describe the problems of women and girls in Indian society. How to remove them.
उत्तर – भारतीय समाज में स्त्रियों एवं बालिकाओं की समस्याएँ
- दहेज प्रथा (Dowry System) – भारतीय समाज में विवाह के समय वित्तीय विनिमय एक सामान्य तथ्य है । यद्यपि भारत सरकार ने इसके रोकथाम के लिए कानून का निर्माण किया है। इसके बावजूद निरन्तर दहेज की माँग बढ़ती जा रही है। । दहेज की कमी के कारण स्त्रियों के साथ अमानवीय व्यवहार, असम्मान, जला देना, समय पर इलाज न करना आदि प्रकार की क्रूरता की जाती है। ये समस्याएँ समाज में बालिकाओं स्त्रियों की गिरावट का द्योतक है। भारतीय राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की रिपोर्ट-2005 के अनुसार दहेज प्रथा के कारण 6, 787 स्त्रियों की हत्या के मामले पंजीकृत हुए जो 1995 में पंजीकृत 4,648 की तुलना में 46% अधिक है जबकि 80 के दशक में एक वर्ष में 400 हत्या के मामले पंजीकृत हुए थे ।
- घरेलू हिंसा (Domestic Violence) – भारतीय समाज में बालिकाओं के साथ घरेलू हिंसा एक सामान्य बात है। लगभग 60-70% स्त्रियाँ घरेलू हिंसा से पीड़ित है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि भारत में बड़े पैमाने पर स्त्रियों के साथ घरेलू हिंसा होती है। ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार, प्रत्येक तीन मिनट पर महिला के साथ क्रूरता की जाती है, लगभग हर तीस मिनट पर उनके साथ बलात्कार तथा 77 मिनट पर दहेज हत्या होती है। ये क्रूरता उनके पति या माता-पिता या रिश्तेदारों द्वारा की जाती है।
- शिक्षा में असमानता (Disparity in Education ) – शिक्षा एक अन्य ऐसा क्षेत्र है जिसमें बालिकाओं के साथ सर्वाधिक भेदभाव होता है। 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर 65.46% है जो पुरुषों की साक्षरता दर 82.14% की तुलना में 16.68% कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में ये अन्तर और अधिक पाया जाता है। यद्यपि अब इस स्थिति में कुछ सुधार हो रहा है।
- बाल विवाह ( Child Marriage ) – बहुत से लोग दहेज से बचने या कम देने के लिए लड़कियों का बाल विवाह कर देते हैं। ग्रामीण भारत में लगभग 60% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से पूर्व ही कर दिया जाता है तथा 56% लड़कियाँ 19 वर्ष से पूर्व ही माँ बन जाती है। इससे उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रभावित होता है।
- अपर्याप्त पोषण (Inadequate Nutrition)-भारतीय लड़कियाँ सर्वाधिक कुपोषण का शिकार है, विशेषकर निम्न मध्यम वर्ग एवं निम्न वर्ग में ऐसा परिवारों की निम्न आय के कारण होता है। ऐसे में माता-पिता लड़कियों की तुलना में लड़कों को दूध, फल एवं अन्य सुविधाएँ प्रदान करते हैं जबकि लड़कियों की अनदेखी करते हैं।
विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चलता है कि स्त्रियों को प्रतिदिन 100 कैलोरी से भी कम ऊर्जा वाली सामग्री आहार के लिए मिलती है जबकि पुरुषों को 800 कैलोरी से अधिक आहार वाला पोषण मिलता है। कुपोषण के कारण बहुत सी महिलाएँ मातृत्व के समय अपने प्राण त्याग देती है।
- यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)-भारत यौन शोषण के सभी रूपों का बहुत ही गन्दा रिकार्ड रखने वाले देशों में सम्मिलित है। स्त्रियाँ और बच्चियाँ घरों में सड़कों पर, सार्वजनिक परिवहन में, यहाँ तक की छुट्टियाँ मनाने वाले स्थान पर भी सुरक्षित नहीं है अर्थात् वह कहीं पर भी सुरक्षित नहीं है। ये एक प्रकार से नैतिक मूल्यों की गिरावट है।
इससे स्त्रियों को मानसिक एवं भावनात्मक आघात पहुँचता है और कई बार वे अवसाद, निराशा तथा अन्य मानसिक बीमारियों का शिकार हो जाती है। एक समय में देश की राजधानी नई दिल्ली को बलात्कार की राजधानी (Rape Capital) कहा जाने लगा था। बलात्कार के अधिकांश मामलों को सामाजिक शर्म एवं बहिष्कार के कारण पंजीकृत ही नहीं कराया जाता है मात्र 20% मामले ही दर्ज कराए जाते है।
- सम्पत्ति का अधिकार (Property Rights )- देश के कानून की अनदेखी करते हुए बहुत से परिवार पैतृक सम्पत्ति में लड़कियों को बराबर का अधिकार नहीं देते है।
इसके लिए वे लड़कियों के विवाह के समय दिए दहेज को इसका प्रमुख कारण बताते हैं। विभिन्न धर्मों में पैतृक सम्पत्ति से सम्बन्धित अलग-अलग प्रावधान है। यद्यपि अब स्थितियाँ बदलने लगी है। माता-पिता वसीयत या कानूनी प्रावधानों का उपयोग सम्पत्ति में लड़कियों के अधिकार देने के लिए करने लगे हैं।
- सैन्य सेवा में भेदभाव ( Discrimination in Military Service) – स्त्रियों को सशस्त्र बलों में महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता है। इसका कारण युद्ध की स्थिति में दुश्मन के हाथों महिला टुकड़ी की हार या आत्मसमर्पण के समय शारीरिक शोषण का आधार बनाया जाता है। महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन भी नहीं प्रदान किया जाता है न ही इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सेना के तीनों अंगों में अब महिलाओं को स्थायी कमीशन प्रदान की जाने लगी है।
- विधवाओं की दयनीय स्थिति (Poor Status of Widows) – भारतीय समाज में विधवाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय रहती है। हमारी संस्कृति परम्परा में शुभ कार्य के लिए विधवाओं को अशुभ माना जाता है।
उन्हें पहनने के लिए सफेद वस्त्र दिए जाते हैं तथा खाने के लिए उचित भोजन भी नहीं प्रदान किया जाता है। वृन्दावन एवं वाराणसी जैसे धार्मिक स्थानों पर उनकी दयनीय स्थिति को देखा जा सकता है।
स्त्रियों एवं बालिकाओं की समस्याओं को दूर करने के उपाय
- लड़कियों को स्कूलों में बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध कराकर-पानी साफ-सफाई एवं लड़कियों की देख-रेख सम्बन्धी सुविधाएँ प्रदान करके विभिन्न प्रकार की असामाजिक असमानताओं को नियंत्रित किया जा सकता है। विभिन्न आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करके लड़कियों को शैक्षिक उपलब्धि प्रदान की जा सकती है।
- शिक्षा स्तर में वृद्धि करके महिलाओं के शिक्षा स्तर में सुधार करके इनकी संख्या में वृद्धि की जा सकती है। इनके लिए उपयुक्त पाठ्यक्रम एवं समान शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। यदि इस उपाय को अपनाया जाए तो भेदभाव मुक्त स्कूल व्यवस्था प्रदान की जा सकती है।
- व्यावसायिक स्कूलों की संख्या में वृद्धि – व्यावसायिक स्कूलों में महिलाओं एवं लड़कियों की सहभागिता एक अहम् मुद्दा है। व्यावसायिक स्कूलों की कम संख्या के कारण उच्च एवं माध्यमिक स्तर पर वे व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं प्राप्त कर पाती है। इसलिए व्यावसायिक स्कूलों की संख्या में वृद्धि करने की आवश्यकता है तथा उन्हें प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए छात्रवृत्ति आदि सुविधाओं को प्रदान करके प्रोत्साहित करना चाहिए।
- समान अवसर प्रदान करके-शिक्षा के क्षेत्र में लड़के-लड़कियों को समान अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है। यदि लड़कियों को समान अवसर प्रदान किया जाए तो वे अपने जीवन को समृद्ध एवं विकसित कर सकती हैं। इसलिए लड़कियों का पाठ्यक्रम एवं विभिन्न शैक्षिक क्रियाएँ लडकों के समान ही होने चाहिए। इस प्रकार समान अवसर प्रदान करके भेदभाव मुक्त स्कूल व्यवस्था बनाई जा सकती है।
- महिला सशक्तीकरण का समर्थन- महिला सशक्तीकरण का समर्थन इस प्रकार किया जाए कि सम्पूर्ण महिलाएँ अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग कर सकें। महिलाओं के विकास के लिए विभिन्न शैक्षिक संसाधनों तक पुरुषों के समान इनकी भी पहुँच होनी चाहिए। विभिन्न संसाधनों एवं व्यवसायों से लाभ प्राप्त करने के लिए लैंगिक असमानता के अन्तर को दूर करने की आवश्यकता है। आज भी विश्व में बहुत सी महिलाएँ शैक्षिक पहुँच से दूर हैं। उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की आवश्यकता है तथा महिला सशक्तीकरण का समर्थन करते हुए इसे बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- स्कूलों में पूर्ण सरकारी सहायता प्रदान करके वर्तमान समय में स्कूलों को अनेक सरकारी सहायता प्रदान की जा रही है। विभिन्न सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है जैसे- सर्व शिक्षा अभियान, आर.टी.ई आदि योजनाएँ क्रियान्वित की गई है। वे इन योजनाओं के द्वारा स्कूलों को पूर्ण सहभागिता प्रदान की जानी चाहिए। लड़कियों के लिए जो निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था प्रदान की गई है उसका सुचारु रूप से पालन होना चाहिए। यदि इन विभिन्न योजनाओं का सुचारू रूप से क्रियान्वित किया जाए तो भेदभाव मुक्त विद्यालयी व्यवस्था स्थापित की जा सकती है।
- सामाजिक एकता सामाजिक एकता के लिए समाज को बदलने की आवश्यकता है। सामाजिक एकीकरण को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक लैंगिक असमानता है।
इसलिए सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए लैंगिक असमानता खत्म करने की आवश्यकता है। लड़कियों के विषय में यह सोच होनी चाहिए कि एक लड़की ही एक माँ होती है जो घर में सम्मान प्यार एवं स्नेह का विस्तार करती है।इसलिए लड़कों के समान लड़कियों को भी बचपन में सुरक्षित एवं स्वस्थ वातावरण प्रदान करना चाहिए तथा वयस्कता में उसका खिलना देखना चाहिए। इस प्रकार सामाजिक रूढ़ियों एवं कुरीतियों को दूर करके सामाजिक एकता लाने का प्रयास करना चाहिए जिससे भेदभाव मुक्त समाज का निर्माण हो ।
- अभिभावकों में शैक्षिक जागरूकता उत्पन्न करना – भारत में अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अनपढ एवं शिक्षा के मूल्य के विषय में अनभिज्ञ हैं। इस प्रकार अभिभावकों में शैक्षिक जागरूकता उत्पन्न करके लैंगिक असमानता सम्बन्धी भेदभाव को हटाया जा सकता है।
- विभिन्न कार्यों में महिलाओं की सहभागिता विभिन्न कार्यों में पारम्परिक रूप से महिलाओं की सहभागिता होनी चाहिए। इसके लिए सदस्यता एवं पुरुष व्यवसायों में तथा राजनीतिक नेतृत्व के पदों पर महिलाओं की संख्या में वृद्धि करने के लिए प्रयास करना चाहिए। सामाजिक एवं राजनीतिक सभी कार्यों में निर्णय लेने एवं व्यवस्था बनाने में महिलाओं की सहभागिता होनी चाहिए जिससे लैंगिक भेदभाव की समस्या दूर होगी।
- विद्यालयी शिक्षा के लिए लड़कियों को प्रोत्साहित करके-लड़कियों को विद्यालयी शिक्षा प्राप्त करने के लिए। प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। उन्हें यह बताने की आवश्यकता है कि उन्हें भी लड़कों के समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है। वे वहाँ पढ़ने के साथ-साथ अन्य समुदायों के लड़के-लड़कियों के साथ बातचीत भी कर सकती है। इससे उनका व्यापक स्तर पर सामाजिक विकास होगा।
