भाषा अधिगम के साधन के रूप में लेखन कौशल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए। बच्चों के लेखन कौशल में सुधार के लिए आप क्या करेंगे?
भाषा – विशेष में स्वीकृत लिपि-प्रतीकों के माध्यम से विचारों एवं भावों को अंकित करने की कुशलता ही लेखन कौशल है। सामान्यतः प्रत्येक भाषा की अपनी लिपि-व्यवस्था होती है। इन लिपि-प्रतीकों को प्रायः वे ही समझ सकते हैं जिन्हें उस अमुक भाषा की लिपि व्यवस्था का ज्ञान है। स्पष्ट है कि लेखन लिपि-प्रतीकों के माध्यम से विचारों एवं भावों की अभिव्यक्ति का साधन है। मात्र शब्दों के अनुलेखन को लेखन नहीं कहा जा सकता। लेखन व्यवस्था के विभिन्न घटकों से परिचित होना एवं लिपि प्रतीकों के माध्यम से विचारों की अभिव्यक्ति करना लेखन के आवश्यक अंग है।
लेखन एक प्रकार की बातचीत है जब हम लिखते हैं तो किसी के साथ सम्प्रेषण करते हैं लेकिन जिनके साथ सम्प्रेषण करते हैं। वह हमारे समक्ष उस समय उपस्थित नहीं होता है। हमें अपने विचारों एवं स्मृति को सहेज कर रखने के लिए लिखने की आवश्यकता होती है।
जब कोई व्यक्ति अपने अनुभवों को लिखता है तो कोई उसे पढता अवश्य है। इसलिए यह बातचीत की ही तरह एक सम्प्रेषण है। अतः हम कह सकते हैं कि लेखन भावों एवं विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। यह शब्दों को क्रम से लिपिबद्ध सुव्यवस्थित करने की कला है। मावों एवं विचारों की यह कलात्मक अभिव्यक्ति जब लिखित रूप में होती है तब उसे लेखन या लिखित रचना कहते हैं।
बेकन के अनुसार, लेखन मनुष्य को पूर्णतः प्रदान करता है। एस.एस.एम् गौड के अनुसार, “लेखन विद्यालय में यान्त्रिक रूप से मूल्यांकन है।
- वर्ण परिचय-यह परम्परागत पद्धति है। इसमें बालक को वर्णमाला के शब्दों को सुविधानुसार सिखा दिया जाता है। तथा अक्षरों के सीख जाने पर बालक को मात्राओं का ज्ञान दिया जाता है।
- शब्द द्वारा अक्षर परिचय-सामान्य अक्षर सीखने में बालक की रुचि नहीं होती है उसे यह निर्थक चिह जान पड़ते हैं।
अतः कुछ शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि शब्द द्वारा बालक को अक्षर ज्ञान कराया जाना चाहिए। इन शब्दों को वस्तु के साथ या चित्र के साथ प्रस्तुत करना उपयुक्त गया है।”
- वाक्य द्वारा अक्षर परिचय-बालकों की रुचि की दृष्टि से शब्दों की अपेक्षा वाक्य अधिक सार्थक और उपयोगी सिद्ध होते हैं। पढ़ने में यह विधि उपयोगी होती है।
जिस बालक ने केवल पढ़ना ही सीखा है उसमें अभी इस सन्तुलन का अभाव होता है। लिखने के लिए आवश्यक है कि बालक अक्षरों की आकृति का भली प्रकार से निरीक्षण करें और वैसे ही अक्षर लिखने का प्रयत्न करें। मांसपेशियों में सन्तुलन स्थापित होने के पश्चात् ही बालकों को लिखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
- रेखांकन-पहले-पहले बालकों से सीधी रेखाएँ ही खिचवाई जाएँ, जैसे –
फिर तिरछी रेखाएँ खिचवाई जाएँ, जैसे –
अन्त में वृत्त और अर्द्धवृत्त बनवाए जाएँ, जैसे –
जैसे – जैसे बालकों को इन चिन्हों का अभ्यास हो जाएगा वैसे वे अक्षर बना सकते हैं । जैसे –
इस प्रकार इन आड़ी-तिरछी रेखाओं के आधार पर बालकों को लिखना सिखाया जा सकता है। - लेखन क्रिया में अन्य उपकरणों का प्रयोग – इन आड़ी तिरछी रेखाओं को खिचवाने के अतिरिक्त अग्रलिखित उपकरणों से लेखन-क्रिया में सहायता ली जा सकती है-
(i) रेशमी कपड़ा तथा रेगमाल कागज पर कटे हुए अक्षर ।(ii) अक्षरों के आकार – प्रकार के कटे हुए लकड़ी के टुकड़े ।(iii) किसी धातु आदि पर खुदे हुए अक्षर ।(iv) धरती पर खुदे हुए अक्षर ।बालक इन वस्तुओं का स्पर्श करेंगे और कुछ समय के अभ्यास के पश्चात् अक्षरो की आकृति से परिचित होने लगेंगे। इसके अतिरिक्त निम्न वस्तुओं से भी सहायता ली जा सकती है-
- छोटे-छोटे श्यामपट्ट, जिन पर बालक जब चाहें खड़िया से लिख सकें ।
- वर्गों में विभाजित स्लेटें (किण्डरगार्टन तथा मॉण्टेसरी स्कूलों में इसी प्रकार के उपकरणों का प्रयोग किया जाता है ।
- सुडौलता का अभ्यास लेखन अभ्यास कराते समय लेखन गति पर उतना ध्यान नहीं देना चाहिए जितना इस बात पर कि बालक जो-जो लिखे ठीक-ठीक तथा सुन्दर लिखें । सुन्दर लिखने के बाद गति ठीक हो जाएगी।
- लेखन चक्र लेखन चक्र अधिक लम्बा न हो अन्यथा बालक थक जाएंगे और उनका लेख अच्छा नहीं बनेगा। लिखना सिखाने का भी एक क्रम है यह क्रम वर्णमाला के क्रम से कुछ भिन्न है।
- सही अक्षर का चुनाव लिखना सिखाते समय पहले वही अक्षर चुना जाए जिसे बालक थोड़े से प्रयास से ही लिख सके। फिर उस वर्ण में थोड़ा सा परिवर्तन करके एक और वर्ण बनाया जाए। इसी प्रकार चार-पाँच वर्ण बनवाए जाएं।
- अक्षरों का आकार और अन्तर – एकाएक से ही बालकों से छोटे-छोटे अक्षर लिखने के लिए न कहा जाए बल्कि सर्वप्रथम उन्हें बड़े अक्षर लिखने को दिए जाए तथा इस बात का ध्यान रखा जाए कि उसमें पर्याप्त अन्तर हो ।
- पढ़ने की क्षमता वही बालक अच्छा लिख सकेगा जिसमें ठीक पढ़ने की क्षमता होगी। इसलिए बालकों को पढ़ी हुई वस्तु से ही उनके लेखन का समन्वय करना चाहिए जो बात बालक ने पढ़ी हो अथवा जिस विषय पर बालक से बातचीत हो चुकी हो, उसे वही सिखाना चाहिए ।
- लेखन करते समय छात्र शब्दों के बीच की दूरी का ध्यान नहीं देते हैं। असमान दूरी के कारण लेखन प्रभावहीन हो जाता है।
- अक्षरों का विकृत आकार भी लेखन दोष का प्रमुख कारण है। किसी अक्षर को छोटा तथा किसी अक्षर को बड़ा बना देने पर लेखन विकृत हो जाता है।
- लेखन करते समय छात्र शिरोरेखा की उपेक्षा करते हैं जो लेखन दोष का प्रमुख कारण है।
- विराम चिह्नों के ज्ञान के अभाव के कारण भी लेखन दोष उत्पन्न हो जाता है।
- अनुस्वारों का प्रयोग भी छात्र अज्ञानता के कारण त्रुटिपूर्ण ढंग से करते हैं जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है तथा लेखन दोष उत्पन्न हो जाता है।
- लेखन कौशल के प्रति उदासीनता एवं उपेक्षित दृष्टिकोण के कारण शिक्षक एवं छात्र दोनों ही त्रुटियों पर ध्यान नहीं देते हैं। इससे लेखन दोष होना सम्भव है।
- स्थानीय भाषा का प्रभाव भी लेखन के मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है, जैसे- राजस्थान में शंकर को संकर लिखा जाता है।
- अशुद्ध उच्चारण के कारण भी छात्र लेखन में त्रुटि करते हैं ।
- अनेक व्याकरणिक कारणों से छात्रों द्वारा लिंग, विभक्ति एवं वचन सम्बन्धी त्रुटियाँ की जाती हैं।
- अनुलिपि, प्रतिलिपि तथा सुलेख का अभ्यास कराते समय भी छात्र लेखन दोष करते हैं ।
- बालकों में लेखन के विकास हेतु शिरोरेखा एवं अक्षरों की बनावट के बारे में प्राथमिक स्तर से ही ज्ञान प्रदान करना चाहिए जिससे कि छात्र सुलेख के बारे में उचित रूप में ज्ञान प्राप्त कर सकें तथा सुलेख लिख सकें ।
- लेखन के विकास हेतु छात्रों को शब्दगत दूरी को सिखाना चाहिए अर्थात् प्रत्येक शब्द के बीच में एक निश्चित दूरी होनी चाहिए जिससे लेखन कार्य सुन्दर लगे ।
- छात्रों को विराम चिह्नों के प्रयोग एवं उनसे सम्बन्धित सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान करना चाहिए जिससे कि वे उनका प्रयोग करके लिखित कार्य को प्रभावी बना सकें।
- छात्रों को अनुस्वार एवं अनुनासिक के प्रयोग सम्बन्धी जानकारी भी प्रदान करनी चाहिए जिससे वे अनुस्वार एवं अनुनासिक उचित एवं त्रुटि रहित प्रयोग कर सकें।
- शिक्षक द्वारा स्थानीय प्रभावों को रोकने के लिए शुद्ध उच्चारण एवं मानक भाषा का प्रयोग करना चाहिए तथा अन्य छात्रों को भी इस कार्य के लिए प्रेरणा प्रदान करनी चाहिए।
- शिक्षक द्वारा छात्रों को लेखन चित्र के आधार पर सिखाना चाहिए क्योंकि इस विधि का प्रयोग छात्रों में लेखन का विकास तीव्रता से करता है।
- बालकों के त्रुटिपूर्ण उच्चारण पर सकारात्मक रूप अपनाते हुए बिना किसी दण्ड के उनको शुद्ध उच्चारण करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, क्योंकि छात्र शुद्ध उच्चारण करेगा तो शुद्ध लेखन सम्भव होगा।
- छात्रों को कुछ विशेष शब्दों को अभ्यास के माध्यम से लिखना सिखाना चाहिए जिनको छात्र सामान्य रूप से त्रुटिपूर्ण ढंग से लिखते हैं। जैसे- आशीर्वाद को आर्शीवाद रूप में लिखते हैं।
- छात्रों को अनुलिपि, प्रतिलिपि एवं श्रुतलेख सम्बन्धी अभ्यास कराना चाहिए जिससे कि छात्रों में लेखन कौशल का विकास सम्भव हो सके।
- विद्यालय स्तर पर कहानी लेखन, निबन्ध लेखन तथा कविता लेखन की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाना चाहिए जिससे छात्रों में लेखन सीखने के प्रति सकारात्मक
