1st Year

माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के व्यावसायीकरण से के आप क्या समझते हैं? माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

प्रश्न – माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के व्यावसायीकरण से के आप क्या समझते हैं? माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
What do you mean by Vocationalisation of Secondary Education? Describe the objectives of Vocationalisation of Secondary Education.
या
माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण में उत्पन्न बाधाएँ / समस्याएँ क्या हैं तथा इन बाधाओं का निराकरण किस प्रकार किया जा सकता है ?
What are the Problmes/Barriers in the Vocationalisation of Secondary Education and how these problems can be solved.
उत्तर- शिक्षा का व्यावसायीकरणं होना बहुत आवश्यक है। इससे व्यक्तियों में रोजगार करने की क्षमता का विकास होगा। कुशल कर्मचारियों की जो माँग है उसकी पूर्ति हो सकेगी। ऐसे छात्रों के लिए यह वरदान साबित होगी जो बिना किसी उद्देश्य व रुचि के उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली बालकों का सर्वांगीण विकास करने में असफल रही है। यह व्यक्ति को जीवन के लिए तैयार नहीं करती है तथा राष्ट्रीय उत्पादन में सहायक नहीं है। इस कमी को ध्यान में रखकर शिक्षा के व्यावसायीकरण की माँग की. जाती रही है। माध्यमिक स्तर की शिक्षा को व्यावसायीकृत बनाने पर विशेष बल दिया जाता रहा है। व्यावसायीकरण से अभिप्राय आर्थिक व सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित व्यवसायों के लिए आवश्यक तकनीकों का ज्ञान प्रदान करना तथा विभिन्न कौशलों को व्यावहारिक रूप से सीखना ही शिक्षा का व्यावसायीकरण है । शिक्षा के व्यावसायीकरण के लिए सामान्य शिक्षा के पाठ्यक्रमों में व्यावसायिक ज्ञान, कौशल व तकनीकों को सम्मिलित करना होगा ताकि छात्र अपना अध्ययन पूरा करके जीविकोपार्जन में सक्षम हो सकें।

शिक्षा द्वारा उत्पादन और व्यवसायों की शिक्षा तो वैदिक काल से ही चली आ रही है परन्तु इस पर सबसे ज्यादा ध्यान ब्रिटिश काल में दिया गया । वुड के घोषणा पत्र में व्यावसायिक शिक्षा पर बल देकर अलग से व्यावसायिक संस्थाओं की स्थापना करने की घोषणा की गई । हन्टर कमीशन ने माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाने का सुझाव दिया। इसके बाद सार्जेण्ट आयोग में भी व्यावसायिक शिक्षा को महत्त्व दिया गया ।

स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद सभी लोगों में परिवर्तन तथा विकास होना शुरू हुआ। “माध्यमिक शिक्षा आयोग” ने माध्यमिक स्तर पर बहुउद्देश्यीय स्कूल खोलने का सुझाव दिया जिससे छात्रों को विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा दी जाए। “कोठारी आयोग” ने माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में व्यावसायीकरण को भी शामिल करने का सुझाव दिया। इसके लिए इस आयोग ने निम्न माध्यमिक स्तर पर कार्यानुभव और उच्च माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू करने का सुझाव दिया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 और 1986 में भी इस सुझाव को महत्त्व दिया गया । केन्द्रीय सरकार ने 1988 में +2 स्तर पर माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण की योजना भी शुरू की। इसके निर्देशन करने हेतु संयुक्त व्यावसायिक शिक्षा परिषद् का गठन किया गया । इस परिषद् ने 1992 तक 44,000 स्कूलों में से 12,543 स्कूलों को व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाने की मंजूरी दे दी थी जिससे +2 पर 6.27 लाख छात्रों को इस शिक्षा की ओर अग्रसरित किया गया। यह संख्या कुल छात्रों की 9.3% है जो कि बहुत कम है।

व्यावसायिक शिक्षा की गुणवत्ता के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है। +2 शिक्षा प्राप्त छात्रों को स्वरोजगार करने हेतु अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। देखना यह है कि यह योजना भी अन्य योजनाओं की तरह असफल न हो जाए। वर्तमान में शिक्षा के व्यावसायीकरण से अर्थ माध्यमिक स्तर पर कार्यानुभव शिक्षा शुरू करने तथा +2 पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू कर उसे सफल बनाने से है।

माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण के उद्देश्य (Objectives of Vocationalisation of Secondary Education) 
  1. माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण से ग्रामीण विकास करना तथा रोजगार उपलब्ध कराना।
  2. बेरोजगारी व निर्धनता उन्मूलन के राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता प्रदान करना ।
  3. उत्पादन, राष्ट्रीय विकास की प्राप्ति के लिए शिक्षा प्रदान करना।
  4. औद्योगिक क्षेत्रों के लिए कुशल कर्मकार उत्पन्न करना।
  5. उच्च शिक्षा में भीड़ कम करना । अतः केवल योग्य छात्रों को ही उच्च शिक्षा में प्रवेश देना ।
  6. छात्रों में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के प्रति रुचि उत्पन्न कराना।
  7. स्वरोजगार के लिए बालकों को तैयार करना ।
माध्यमिक शिक्षा के व्यावसायीकरण में उत्पन्न बाधाएँ / समस्याएँ
  1. संसाधनों का अभाव – माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिए उपयुक्त संसाधनों की व्यवस्था नहीं है जिससे व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने में समस्या उत्पन्न होती है।
  2. छात्रों में रुचि न होना – छात्रों की रुचि व्यावसायिक शिक्षा की अपेक्षा सामान्य शिक्षा की तरफ है। इससे व्यावसायिक शिक्षा अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पा रही है।
  3. उचित पाठ्यक्रम की व्यवस्था न होना- जो व्यावसायिक पाठ्यक्रम चल रहे हैं उनमें पाठ्मक्रम की उचित व्यवस्था नहीं है, जिस कारण छात्र इसमें रुचि नहीं लेते हैं ।
  4. सैद्धान्तिक पक्ष को ज्यादा महत्त्व देना – व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में सैद्धान्तिक पक्ष पर ज्यादा बल दिया जा रहा है और व्यावहारिक पक्ष पर कम।
  5. व्यावहारिक ज्ञान पर कम बल – छात्र जिस व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेते हैं उसमें उन्हें व्यवसाय के सम्बन्ध. में व्यावहारिक ज्ञान कम दिया जाता है जिससे वह व्यवसाय में कुशलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
  6. संसाधनों का अभाव – विद्यालयों में व्यावसायिक पाठ्यक्रम के लिए आवश्यक प्रयोगशाला, कार्यशाला एवं अन्य सामग्री की उचित व्यवस्था नहीं हैं। विद्यालयों में संसाधनों की व्यवस्था न होने के कारण व्यावसायिक शिक्षा की उचित व्यवस्था कैसे की जा सकती है?
  7. प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव – व्यावसायिक विद्यालयों में प्रशिक्षित एवं योग्य शिक्षकों का अभाव है जिससे व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था बालकों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है।
  8. प्रयोगशालाओं की उचित व्यवस्था न हो पानाछात्र-छात्राओं को व्यावसायिक शिक्षा के अन्तर्गत होने वाले कार्य करने के लिए उचित प्रयोगशाला उपलब्ध नहीं हैं।
  9. धन राशि का उचित उपयोग न होना- इन पाठ्यक्रमों को चलाने के लिए सरकार की तरफ से जो आर्थिक सहायता दी जा रही है उसका सही प्रकार से प्रयोग नहीं हो पा रहा है।
समस्याओं का समाधान (Solutions for the Problems)
  1. रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना- +2 स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त छात्रों को रोजगार के लिए अवसर उपलब्ध कराए जाएं जिससे वे शिक्षा में रुचि ले सकें।
  2. शिक्षा का महत्त्व बताना – छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा के प्रति आकर्षित किया जाए तथा उसका महत्त्व भी बताया जाए।
  3. व्यावसायिक विद्यालयों की पृथक व्यवस्था – सामान्य विद्यालयों तथा व्यावसायिक विद्यालयों की स्थापना अलग-अलग की जाए जिससे बालक इस शिक्षा के द्वारा कार्य कुशल बनकर अपने जीवन में प्रगति का मार्ग प्रशस्त करें।
  4. पाठ्यक्रम में सुधार – व्यावसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार करके उसे व्यावहारिक बनाकर उसकी कमियों को दूर किया जाए। +2 पर चलाए जाने वाले व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में से भाषा को हटा दिया जाए क्योंकि छात्र इसका अध्ययन माध्यमिक स्तर पर कर चुके होते हैं ।
  5. व्यावहारिक पक्ष पर बल – पाठ्यक्रम में सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक कार्यों को बराबर महत्त्व दिया जाए तथा छात्रों का मूल्यांकन दोनों के आधार पर किया जाए।
  6. आर्थिक सहायता – प्रयोगशाला, कार्यशाला और अन्य सामग्री के लिए सरकार को आर्थिक सहायता देनी चाहिए।
  7.  धनराशि का उचित प्रयोग- सरकार जो आर्थिक सहायता प्रदान करे, उसका सही ढंग से प्रयोग होना चाहिए। इस राशि से व्यावसायिक शिक्षा हेतु उचित संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
  8. योग्य शिक्षकों की नियुक्ति-योग्य शिक्षकों की नियुक्ति के लिए व्यावसायिक शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों की स्थापना की जाए। e
अतः माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के व्यावसायीकरण करने के लिए यह आवश्यक है कि केन्द्र एवं राज्य सरकारें जो आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं, उनका प्रयोग ठीक दिशा में किया जाए। इस क्षेत्र से जुड़े सभी व्यक्ति अपना कार्य कर्तव्यनिष्ठा तथा ईमानदारी से करें। यदि ऐसा हो जाएगा तो कम . सुविधाओं में भी अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकेंगे।

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