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रूढ़ियुक्तियाँ किसे कहते हैं? रूढ़ियुक्तियों के विभिन्न कार्यों का वर्णन कीजिए। What are Stereotypes ? Discuss the various functions of stereotypes

प्रश्न – रूढ़ियुक्तियाँ किसे कहते हैं? रूढ़ियुक्तियों के विभिन्न कार्यों का वर्णन कीजिए। What are Stereotypes ? Discuss the various functions of stereotypes.
या
रूढ़िबद्धता से आपका क्या अभिप्राय है ? रूढ़िबद्धता की विशेषताओं, प्रकारों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए । What do you mean by Stereotypes. Describe its characteristics, types and functions.
उत्तर- रूढ़िबद्धता का अर्थ एवं परिभाषाएँ 
रूढिबद्धता से अभिप्राय समाज में व्याप्त विभिन्न असामाजिक क्रियाएँ एवं कुरीतियों से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने मूल रूप में स्थानान्तरित होती रहती है। इसकी सामाजिक उपयोगिता न होते हुए भी वर्ग एवं समुदाय इसको मान्यताएँ प्रदान करता है। रूढ़िबद्धता समाज, समुदाय एवं देश के विकास में बाधक है। रूढ़िबद्धता के अन्तर्गत होने वाली क्रियाओं को व्यक्ति समाज, धर्म, ईश्वर एवं अलौकिक शक्ति से जोड़कर सम्पादित करता है जबकि आज की आधुनिकता, विकासशील एवं मशीनीकरण के युग में इसकी न तो उपयोगिता है और न ही सार्थकता । रूढ़िबद्धता एक सामाजिक मानदण्ड है अर्थात् रूढ़िबद्धता के पीछे समाज की स्वीकृति होती है। रूढ़िबद्धताएँ, जनरीतियों की ही तरह अनौपचारिक सामाजिक मानदण्ड होती हैं। जनरीतियों से ही रूढ़ियों का निर्माण होता है। जब कोई जनरीति बहुत अधिक व्यवहार में आने पर समूह के लिए अति आवश्यक समझ ली जाती है तब वह रूढ़ियों का स्वरूप धारण कर लेती है।
ग्रीन के अनुसार, “कार्य करने के वे सामान्य तरीके जो जनरीतियों की अपेक्षा अधिक निश्चित व उचित समझे जाते हैं तथा जिनका उल्लंघन करने पर गम्भीर व निर्धारित दण्ड दिया जाता है, रूढ़ियाँ कहलाती हैं।”
जहोदा के अनुसार, “रूढ़िबद्धता एक समूह के प्रति, पूर्व कल्पित मतों का संकेत करती है । “
 According to Jahoda, “A stereotype denotes opinions about classes of individuals, groups or object which are preconceived.”

रूढ़िबद्धता की विशेषताएँ (Characteristics of Stereotypes)

  1. रूढ़ियाँ व्यक्ति के व्यवहार को विशेष एवं मान्य रूप से संचालित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं ।
  2. सामाजिक संरचना के स्थायित्व में रूढ़ियों की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण होती है।
  3. रूढ़ियों के पीछे कानून की सहमति नहीं होती है फिर भी इनका प्रभाव व्यवहार में कानून से अधिक होता है।
  4. रूढ़ियों में नैतिकता का अंश होता है इसलिए इनका पालन धार्मिक कर्तव्य के रूप में किया जाता है। रूढ़ियाँ हमारे जीवन की महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।
  5. प्रायः जो देश रूढ़िवादी परम्पराओं का अनुकरण करता है वह कभी भी विकसित नहीं हो सकता है।
  6. रूढ़िवादी परम्पराएँ प्रायः लिंग भेद को जन्म देती हैं ।
रूढ़िबद्धता के प्रकार (Types of Stereotypes)
  1. सकारात्मक रूढ़िबद्धता – सकारात्मक रूढ़ियाँ, ऐसी रूढ़ियाँ होती हैं जो व्यक्ति से विशेष प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा रखती हैं। उदाहरण के लिए जीवन में ईमानदारी रखो, माता-पिता का आदर करो आदि सकारात्मक रूढ़ियाँ हैं।
  2. नकारात्मक / निषेधात्मक रूढ़िबद्धता – सकारात्मक रूढ़ियों के विपरीत निषेधात्मक रूढ़ियाँ वर्जना (Taboo) के रूप में हमें कुछ विशिष्ट व्यवहार करने से रोकती हैं। उदाहरण के लिए- चोरी नहीं करनी चाहिए, वेश्यावृत्ति से दूर रहना चाहिए एवं सट्टेबाजी नहीं करनी चाहिए आदि ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि रूढ़ियों में नैतिकता का पर्याप्त प्रभाव रहता है एवं इनका पालन करना भी सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। अतः अतिथि का आदर करना, स्त्रियों से आदरपूर्वक व्यवहार करना इत्यादि, रूढ़ियों के ही उदाहरण हैं जिनका पालन सांस्कृतिक म के अनुरूप करना व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है ।

भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िबद्धता

  1. लिंगपरक रूढ़िबद्धता- लड़की और लड़के के बारे में बनाई गयी असमान तथा एक तरफा धारणा लड़कों एवं पुरुषों को लड़कियों एवं औरतों से अधिक महत्त्व देता है। यह सामाजिक धारणा एवं व्यक्तियों के विचार एवं लैंगिक रूढ़िबद्धता को प्रदर्शित करता है। लैंगिक रूढ़िबद्धता समाज को पुरुष प्रधान बनाने के साथ ही स्त्रियों की शिक्षा, सामाजिक सहभागिता एवं स्वतंत्रता को प्रभावित करता है। यह सामाजिक रूढ़िबद्धता प्राचीन काल से प्रारम्भ होकर वर्तमान तक अपने उसी रूप में चली आ रही है। समाज एवं बुद्धिजीवी वर्ग कितना भी महिला सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता का गुणगान करते रहें परन्तु इसके लिए आवश्यक है लोगों के विचारों एवं भावनाओं में परिवर्तन, उनकी सोच एवं दूरदर्शी विचारों का प्रवाह ।
  2. बाल विवाह – वर्तमान में भारत एक विकासशील देश है। अपने विकास के साथ ही उसके विभिन्न सामाजिक स्वरूपों में भी विकास हुआ है परन्तु बहुत सी सामाजिक रूढ़ियों में आज भी पिछड़ापन है ।’ बाल-विवाह का स्वरूप भले ही बदल गया परन्तु उसका स्वरूप आज भी विद्यमान है। समाज के एक पक्ष ने शिक्षित एवं जागरूक होकर बाल विवाह का त्याग भले ही किया है परन्तु पूर्ण रूप से इस रूढ़िवादिता का अंत नहीं माना जा सकता है।
  3. दहेज प्रथा – समाज में व्याप्त विभिन्न रूढ़िवादियों में दहेज प्रथा एक प्रमुख रूढ़िबद्धता है। प्रारम्भ में राजा एवं महाराजा इसे अपनी शान समझकर वर पक्ष को धन, भूमि, सैनिक आदि प्रदान करते थे परन्तु समाज के सभी वर्गों ने इसे अनिवार्य रूप से अपना लिया तथा आज यह अनिवार्य बन गया है।
  4. स्त्रियों से मात्र गृहकार्य की अपेक्षा–भारतीय समाज में यह कहा जाता हैं कि गृहकार्य करने में मात्र स्त्रियों (लड़कियों एवं महिलाओं) की ही सहभागिता होनी चाहिए अर्थात् केवल बालिकाओं एवं महिलाओं को ही गृहकार्य (घर का कामकाज) करना चाहिए । अपितु आधुनिक भारतीय समाज में इस रूढ़िबद्धता का भी कुछ अंश तक खण्डन किया जा चुका है। अब पुरुष एवं बालक भी घर के कार्यों में अपनी भागीदारी का उचित निर्वहन कर रहे हैं ।
  5. पिण्डदान हेतु पुत्र की महत्ता – भारतीय समाज में विविध प्रकार की रूढ़िबद्धताएँ हैं जिनमें से एक रूढ़िबद्धता पिण्डदान हेतु पुत्र का होना आवश्यक है। सामान्यतया यह कहा जाता है कि पुत्र ही माता-पिता के लिए मुक्ति (मोक्ष) का द्वार खोलता है अर्थात् जब तक पुत्र द्वारा माता-पिता का पिण्डदान नहीं किया जाता तब तक उन्हें ( माता-पिता ) मोक्ष प्राप्त नहीं होता है। भारतीय समाज में यह रूढ़िबद्धता प्राचीनकाल से चली आ रही है तथा वर्तमान समय में भी यह व्याप्त है। यद्यपि वर्तमान में इस रूढ़िबद्धता का प्रभाव कुछ कम हो गया है किन्तु पूर्ण रूप से अभी इसका अन्त नहीं हुआ है।
  6. पुरुष ही घर का पालनहार – प्राचीन भारतीय समाज में पुरुष को ही घर का पालनहार या पालनकर्ता माना जाता था। इसीलिएं पूरे परिवार को उसकी प्रत्येक उचित एवं अनुचित बात का समर्थन करना होता था परन्तु धीरे-धीरे इस रूढ़िबद्धता में सुधार होता गया। वर्तमान में एक परिवार को अपनी–अपनी बातें कहने का पूर्ण अधिकार है एवं उसे यह भी अधिकार है कि वह घर के प्रत्येक सदस्य की अनुचित व्यवहार या बातों के प्रति आवाज बुलन्द कर सकता है।
रूढ़िबद्धता का महत्त्व या रूढ़िबद्धता के कार्य
  1. रूढ़िबद्धताएँ समाज में नियन्त्रण रखने का कार्य करती हैं क्योंकि इनके पीछे पितृात्माओं एवं आलौकिक शक्तियों का भय होता है ।
  2. रूढ़िबद्धताएँ विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति में आने वाली बाधाओं को दूर किया जा सकता ।
  3. रूढ़िबद्धताएँ व्यक्ति को दूसरों तथा स्वयं के व्यवहार की भविष्यवाणी करने की क्षमता प्रदान करती है जिससे हम जीवन में सुरक्षा एवं व्यवस्था का अनुभव करते हैं ।
  4. व्यक्ति के अधिकांश व्यक्तिगत व्यवहारों को निश्चित करते हैं। ये समाज के सदस्यों को एक विशेष प्रकार का  व्यवहार करने के लिए बाध्य करते हैं।
  5. व्यक्ति तथा समूह में एकरूपता स्थापित करने का कार्य करती है। समाज द्वारा स्वीकृत व्यवहारों के अनुसार आचरण करके व्यक्ति समूह एवं अपने अन्य साथियों के साथ एकरूपता स्थापित कर लेता है।
  6. रूढ़िबद्धताएँ सामाजिक कल्याण का कार्य करती हैं।
  7. ये नवीन पीढ़ी को समाज की कार्य विधियों का ज्ञान कराते हैं तथा समाजीकरण में योग देते हैं ।
  8. समाज में मूल्यों तथा नैतिकता को प्रोत्साहन देते हैं।

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