1st Year

समूहकार्य क्या होता है? मौखिक कौशल के विकास में इसका प्रयोग किस प्रकार किया जाता है? What is the group work? How can it be used in developing reading skill?

प्रश्न – समूहकार्य क्या होता है? मौखिक कौशल के विकास में इसका प्रयोग किस प्रकार किया जाता है? What is the group work? How can it be used in developing reading skill?
या
मौखिक कौशल के विकास में समूह कार्य का महत्त्व एवं शिक्षक की भूमिका का वर्णन कीजिए। Explain the importance of group work in developing oral work and role of teacher.
उत्तर- समूहकार्य (Group Work)
समूहकार्य एक व्यवस्थित एवं सक्रिय शिक्षण विधा है जो छात्रों के छोटे समूहों को मिलाकर किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है। समूह में कार्य करना विद्यार्थियों को सोचने, संवाद करने, समझने और विचारों का आदान-प्रदान करने और निर्णय लेने के लिए प्रेरित करने का प्रभावी तरीका है।

इसमें छात्र दूसरों को सिखा भी सकते हैं और उनसे सीख भी सकते हैं। यह सीखने का एक सशक्त और सक्रिय माध्यम है। छात्रों का समूहों में बैठना ही काफी नहीं होता है। समूहकार्य में स्पष्ट उद्देश्य के साथ सीखने के लिए साथ मिलकर काम करना और उसमें योगदान देना शामिल होता है ।

आपको इस बात को लेकर स्पष्ट होना होगा कि के लिए समूहकार्य का उपयोग क्यों कर रहे हैं और जानना होगा कि यह भाषण देने, जोड़ी में कार्य या विद्यार्थियों के स्वयं अपने बलबूते पर कार्य करने के ऊपर तरजीह देने योग्य क्यों है। इस तरह समूहकार्य को सुनियोजित और प्रयोजनपूर्ण होना चाहिए।

मौखिक कौशल के विकास हेतु सामूहिक कार्य (Development of Oral Expression Group Work for the) 
  1. कहानी कथन- चित्रों के आधार पर छात्र को कहानी कहने का अवसर दिया जाए तथा उन्हें कल्पना द्वारा कहानी के मध्य विकासात्मक प्रश्नों के उत्तर अपनी भाषा में देने को प्रोत्साहित किया जाए |
  2. मौखिक रचना – मौखिक रचना हेतु कहानी अत्यन्त उपयोगी साधन है। घर में सुनी हुई या पढ़ी कहानियाँ कल्पना प्रधान कहांनियाँ अच्छी लगती हैं। इससे छात्राध्यापक / छात्राध्यापिका में कल्पना शक्ति, जिज्ञासा, रुचि एवं कथन शैली का विकास होता है ।
  3. कविता पाठ द्वारा प्राथमिक स्तर पर बालकों को पशु-पक्षियों से सम्बन्धित कविताएँ प्रिय लगती है। स् बदलते ही उन्हें घटनाओं के वर्णन अच्छे लगते हैं। बालक कविता के द्वारा अपना संकोच भी समाप्त कर सकता है।
  4. वाद विवाद प्रतियोगिता- इसमें निर्धारित विषय में जन समुदाय के समक्ष अपने विचारों को व्यक्त करते हैं मौखिक अभियोग्यता के साथ – साथ छात्र की कल्पना शक्ति का विकास होता है ।
  5. अन्तयाक्षरी प्रतियोगिता – इस प्रतियोगिता में प्रतियोगिता को दो वर्गों में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक पक्ष का कोई भी प्रतियोगी उस अक्षर से प्रारम्भ होने वाले पद या पद्यांश को बोलता है जिस आधार पर उसके विपक्षी दल के छात्राध्यापक / छात्राध्यापिका ने अपना पद समाप्त किया था वहीं से दूसरा दल आरम्भ होता है।
  6. बालसभा – विद्यालयों में बालसभा का आयोजन की मुख्य रूप से भूमिका निभाता है। बाल सभा के विभिन्न कार्यक्रमों में भाषण, वाद-विवाद, नाटक, चर्चा आदि से मौखिक अभियोग्यता विकसित की जानी चाहिए।
  7. सांस्कृतिक कार्यक्रम – राष्ट्रीय पर्वों, उत्सवों एवं जयन्ती समारोहों पर विविध कार्यक्रम मौखिक अभियोग्यता के अवसर के लिए उपयुक्त हो सकते हैं।
  8. प्रश्नोत्तर- किसी भी विषय को पढ़ाते समय बीच-बीच में प्रश्न किए जाए तथा छात्रों के पूर्ण तथा शुद्ध उत्तर स्वीकार किए जाए अशुद्ध और अपूर्ण उत्तरों को छात्रों से शुद्ध कराया जाए।
  9. अभिनय-नाटकों में अभिनय करने से बालकों को संवाद, परिसंवाद बोलने का अवसर मिलता है। वे उनके संवाद को समझकर बोलना चलना सीखते हैं। ऐसा करने से उच्चारण शुद्ध होने है तथा संकोच भी दूर होता है।
  10. संवाद – बालकों द्वारा पठित कहानियों एवं देखें गए दृश्यों के बारे में विचार-विमर्श करने को प्रोत्साहित किया जाए कुछ कविताओं के अंशो को भी संवाद रूप में प्रस्तुत करने को प्रेरित किया जाए। उसे इस तरह के संवाद पाठ एकांकी-नाटक आदि देखने का अवसर प्रदान किया जाए जिससे उसमें संवाद प्रस्तुत करने के प्रति रुचि पैदा हो।
  11. वर्णन – छात्र अपने द्वारा देखे हुए मेले, दृश्य घटनाओं और स्थानों का वर्णन समूह में अपने ढंग से अलग ही प्रकार से करते हैं। कहानियों का वर्णन, परिवार की घटनाओं का वर्णन आदि कक्षा में अन्य छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करवाया जाए।
  12. विचार – गोष्ठी- विचार गोष्ठी में छात्र किसी समस्या या विषय पर अपने-अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। इसमें बालकों को बोलने का अवसर अधिक मिलता है।
समूहकार्य का महत्त्व (Importance of Groupwork)
  1. प्रस्तुतीकरण करना – छात्र समूहों में काम करके शेष कक्षा के लिए प्रस्तुतीकरण तैयार कर सकते हैं। यह तब सबसे बढ़िया काम करता है जब प्रत्येक समूह के पास विषय का अलग अलग पहलू होता है, ताकि उन्हें एक ही विषय को कई बार सुनने की बजाय एक दूसरे की बात सुनने के लिए प्रेरित किया जा सके।
    प्रस्तुतीकरण करने के लिए प्रत्येक समूह दिए गए समय का पालन करें और अच्छे प्रस्तुतीकरण के लिए मापदंड तय करें। इन्हें अध्याय से पहले बोर्ड पर लिखें। छात्र मापदंडों का उपयोग अपने प्रस्तुतीकरण की योजना बनाने और एक दूसरे के काम का आकलन करने के लिए कर सकते हैं।
    मापदंडों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं
    (i) क्या प्रस्तुतीकरण स्पष्ट था ?
    (ii) क्या प्रस्तुतीकरण सुसंरचित था ?
    (iii) क्या प्रस्तुतीकरण से मैंने कुछ सीखा ?
    (iv) क्या प्रस्तुतीकरण ने मुझे सोचने पर मजबूर किया ?
  2. समस्या का हल करना – छात्र किसी समस्या या समस्याओं को हल करने के लिए समूहों में काम करते हैं। इसमें विज्ञान में प्रयोग करना, गणित में समस्याओं को हल करना, अंग्रेजी में किसी कहानी या कविता का विश्लेषण करना या इतिहास में प्रमाण का विश्लेषण करना शामिल हो सकता है।
  3. किसी शिल्पकृति या उत्पाद का सृजन करना – छात्र किसी कहानी, नाटक के अंश, संगीत के अंश, किसी अवधारणा को समझाने के लिए मॉडल, किसी मुद्दे पर समाचार रिपोर्ट या जानकारी का सारांश बनाने या किसी अवधारणा को समझाने के लिए पोस्टर को विकसित करने के लिए समूहों में काम करते हैं ।
    नए विषय के आरम्भ में विचारमंथन या दिमागी नक्शा बनाने के लिए समूहों को पाँच मिनट देकर आप इस बारे में बहुत कुछ जान सकेंगे कि उन्हें पहले से क्या पता है और इससे अध्याय को उपयुक्त स्तर पर स्थापित करने में आपको मदद मिलेगी।
  4. विभिन्न प्रकार के कार्य करना- समूहकार्य अलगअलग आयु या दक्षता स्तर वाले छात्रों को किसी उपयुक्त काम पर मिलकर काम करने का अवसर प्रदान करता है।
    उच्चतर दक्षता वालों को काम को स्पष्ट करने के अवसर से लाभ मिल सकता है, जबकि कमतर दक्षता वाले छात्रों को कक्षा की बजाय समूह में प्रश्न पूछना अधिक आसान लग सकता है और वे अपने सहपाठियों से सीखेंगे ।
  5. चर्चा करना – छात्र किसी मद्दे पर विचार करते हैं और एक निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। इसके लिए आपकी ओर से काफी तैयारी की जरूरत पड़ सकती है ताकि सुनिश्चित हो कि छात्रों के पास विभिन्न विकल्पों पर विचार करने के लिए पर्याप्त ज्ञान है, लेकिन किसी चर्चा या वाद-विवाद को आयोजित करना । शिक्षक एवं छात्र दोनों के लिए बहुत लाभदायक हो सकता है।
अध्यापक की भूमिका (Role of Teacher)
  1. भाषा शिक्षण का आरम्भ ( Beginning of Teaching Language) – भाषा अध्यापक छात्रों को आरम्भ में मौखिक रूप से सिखाना आरम्भ करता है। छात्रों को मातृभाषा की सहायता से दूसरी भाषा का ज्ञान प्रदान किया जाता है। भाषा अध्यापक स्वर, व्यंजनों के संकेत व उनका उच्चारण सही प्रकार से सिखाता है। उसके बाद शब्द (Word), वाक्य (Sentence), छोटे-छोटे अनुच्छेद (Paragraph) आदि क्रमबद्ध रूप से सिखाया जाता है।
    भाषा अध्यापक खेलों के माध्यम से, कहानी सुनाकर, वास्तविक घटनाओं को बताकर, “छात्रों को अनुमान लगाओ” केहकर छात्रों से कहानी सुनकर छोटी-छोटी कविताएँ याद करवा कर आदि गतिविधियों के द्वारा अध्यापक भाषा का आधार तैयार करता है ताकि भाषा कौशलों को छात्र अच्छी प्रकार से सीख व प्रयोग कर सके।
  2. भाषा कौशलों का शिक्षण ( Teaching of Language Skills) – बच्चों को मौखिक भाषा का प्रयोग करना पहले आता है। भाषा का मुख्य उद्देश्य वार्तालाप, सम्प्रेषण या विचारों का आदान-प्रदान करना है। भाषा मौखिक व लिखित दो रूप में होती है। भाषा को उचित रूप में सीखने व प्रयोग करने के लिए भाषायी कौशलों का विकास आवश्यक है। भाषा अध्यापक छात्रों में कौशलात्मक योग्यता विकसित करती है।
  3. समय-समय पर पुनर्बलन (Reinforcement from Time to Time)–भाषायी कौशलों का क्रमबद्ध रूप से विकास किया जाता है। कौशलों को सीखने के साथ छात्र कौशलों का प्रयोग भी आरम्भ कर देता है। भाषा अध्यापक पाठ पढ़ाने के दौरान बीच-बीच में छात्रों के कार्य की, उनकी सुनने, बोलने, पठन व लेखन की प्रशंसा करता है। जहाँ कमी या अशुद्धता लगती है वहाँ शुद्धता लाने का प्रयास किया जाता है।
  4. अभ्यास (Practice) – भाषा अध्यापक भाषा को अच्छी प्रकार से सिखाने के लिए अभ्यास करवाता है। अभ्यास कार्य सभी कौशलों में प्रदान करता है। इसके लिए प्रोत्साहन भी देता है। कविता पाठ, कहानियाँ, पत्र, निबन्ध, व्याकरण पक्ष, पाठ, उपन्यास आदि के माध्यम से सुनना, बोलना, पढ़ना व लिखना आदि का अभ्यास करवाता है।
  5. विषयवस्तु से भाषा को जोड़ना (Integrating Language with Subject Contents) भाषा को प्रभावशाली बनाने के लिए उसे अन्य विषयों के साथ जोड़कर सिखाया जाता है। भाषा की आधारभूत इकाइयों को विषयों के उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
    भाषा अध्यापक छात्रों को क्रिया, संज्ञा, विशेषण आदि उपविषयों का सैद्धान्तिक पक्ष करवाने के बाद उसके उदाहरण विषय से जोड़कर दिए जा सकते हैं।
    संज्ञा की परिभाषा व अर्थ कराने के बाद इतिहास विषय से उदाहरण प्रस्तुत करता है, जैसे- अकबर, महात्मा गाँधी ।
    इस प्रकार भाषा अध्यापक भाषा कुशलता प्रदान करके प्रभावशाली सम्प्रेषण में सहायक बनता है।
    भाषा का आरम्भ → कौशलों का शिक्षण → पुनर्बलन → अभ्यास → विषयवस्तु को भाषा से जोड़ना

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