1st Year

सामाजिक रूप से वंचितों के लिए शिक्षा से आपका क्या आशय है? अनुसूचित जाति तथा जनजाति के बालकों की शिक्षा की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।

प्रश्न  – सामाजिक रूप से वंचितों के लिए शिक्षा से आपका क्या आशय है? अनुसूचित जाति तथा जनजाति के बालकों की शिक्षा की व्यवस्था का वर्णन कीजिए। What do you mean by education for socially disadvantaged people? Describe the system of education of Scheduled Casteş and Scheduled Tribes.
या
सामाजिक रूप से वंचित वर्ग से आप क्या समझते है अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति महिलाओं की शिक्षा के स्तर की विवेचना कीजिए । What do you mean by the term ‘Socially disadvantaged segment of society’? Discuss the status of education of SC, ST and Women. 
उत्तर- हमारा समाज जातियों के अनुसार वर्गों में बँटा हुआ है। इन वर्गों में से कुछ वर्ग ऐसे हैं, जिन्हें प्राचीन काल से ही शिक्षा का समुचित अधिकार प्राप्त नहीं हुआ जिस कारण ये वर्ग शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ गए। समय-समय पर इन वर्गों को शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव दिए गए। उन सुझावों पर अमल करने के लिए कहा गया। इस क्षेत्र में प्रयास भी शुरू हुए, परन्तु इन सबसे इस क्षेत्र में जो सुधार होने चाहिए थे, वह नहीं हुए।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी सरकार ने शिक्षा को जनशिक्षा बनाने के लिए बहुत सी समितियों तथा आयोगों का गठन किया। इनके सुझावों के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई। इस शिक्षा नीति में सभी वर्गों के बालकों के लिए बिना किसी भेदभाव के शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य रूप से करने के लिए कहा गया । इस आधार पर सरकार ने सभी वर्गों के लिए शिक्षा को समान रूप से उपलब्ध कराने के लिए अपने स्तर से प्रयास शुरू किए।
यहाँ हम भारत के निम्न वर्गों के लिए शिक्षा में जो प्रयास किए गए और उन प्रयासों का शिक्षा के क्षेत्र में क्या प्रभाव पड़ा, इसका वर्णन आगे वर्गों के अनुसार किया जा रहा है –
  1. अनुसूचित जाति तथा जनजाति के बालकों 1) की शिक्षा (Education of the Children of Scheduled Castes and Tribes )
  2. मंद बुद्धि एवं विकलांग बालकों की शिक्षा  (Mentally Retarded and Handicapped Children)
  3. अल्पसंख्यक बालकों की शिक्षा (Education of Minority Childrens)
  4. पिछड़े वर्गों के बच्चों की शिक्षा (Education of Backward Classes Childrens)
  5. स्त्री – शिक्षा (Woman’s Education)
अनुसूचित जाति तथा जनजाति के बालकों की शिक्षा (Education for the Children of Scheduled Castes and Tribes )
भारत में अनुसूचित जाति और जनजातियों की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का लगभग क्रमश: 23% और 7% है। भारतीय संविधान में इनके सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक हितों के लिए प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 46 में यह व्यवस्था की गई है कि राज्य कमजोर वर्गों की शिक्षा तथा धर्म सम्बन्धी हितों की विशेष सावधानी से उन्नति करेगा और सामाजिक अन्याय और शोषण से उनका संरक्षण करेगा।
इस वर्ग के बालकों की शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए 1960 में यू. एन. ढेबर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसे ‘ढेबर समिति’ कहते हैं। इस समिति ने अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के बालकों की निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था, निःशुल्क पाठ्य-पुस्तकें, निःशुल्क पठन-पाठन सामग्री, यूनिफार्म तथा दोपहर के भोजन की व्यवस्था करने का सुझाव दिया। “भारतीय शिक्षा आयोग” ने इस वर्ग की शिक्षा पर भी सुझाव दिए • तथा “राष्ट्रीय शिक्षा नीति” 1968 में विशेष घोषणाएँ की गई जिससे अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के बालकों की शिक्षा की ओर ध्यान देना शुरू किया गया और इन बालकों की शिक्षा के लिए निःशुल्क एवं आवासीय स्कूलों की स्थापना होना प्रारम्भ हो गया ।
अनुसूचित जाति तथा जनजाति के बालकों के शैक्षिक पिछड़ेपन का कारण (Reasons of Educational Backwardness of SC and ST Childrens)
  1. इन जातियों के अधिकांशतः व्यक्ति निरक्षर हैं जिस कारण वे शिक्षा के महत्त्व को समझ नहीं पाते हैं।
  2. अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के अधिकांशतः व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है जिसके कारण ये अपने बालकों को स्कूलों में नहीं भेजते हैं।
  3. खराब आर्थिक स्थिति के कारण माता-पिता बालकों को रोजी-रोटी कमाने में लगा देते हैं।
  4. अधिकांशतः ये जातियाँ जहाँ निवास करती हैं वहाँ पर स्कूलों की व्यवस्था नहीं होती है।
  5. विद्यालय का वातावरण रुचिकर न होने के कारण ये बालक प्रवेश लेने के बाद स्कूल जाना छोड़ देते हैं ।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 द्वारा इस वर्ग हेतु की गई घोषणाएँ
  1. ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों के बालकों के लिए शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के उद्देश्य से प्राथमिक स्कूल खोलते समय अनुसूचित जातियों व जनजातियों की बस्तियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  2. प्रत्येक अनुसूचित जाति / जनजाति क्षेत्रों में सर्वसुलभ प्रवेश तथा सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए आठवीं पंचवर्षीय योजना के समाप्त होने से पहले एक प्राथमिक स्कूल खोला जाएगा।
  3. अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के बालकों का प्रवेश कराने के लिए शैक्षिक सत्र के प्रारम्भ में अभियान चलाने का दायित्व शिक्षकों का होगा।
  4. अनुसूचित जाति / जनजाति के बालकों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा।
  5. अनुसूचित जाति/जनजाति निर्धन परिवारों को अपने बालक तथा बालिकाओं को स्कूल में भेजने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा।
  6. अनुसूचित जाति / जनजाति के छात्रों को आवासीय सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएंगी।
  7. अनुसूचित जाति / जनजाति के बालकों के लिए विशेष छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाएगी।
  8. सभी स्तरों पर आरक्षण को लागू करने का निरीक्षण किया जाएगा।
  9. अनुसूचित जाति / जनजाति के छात्रों को शिक्षक बनने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए माध्यमिक, उच्च माध्यमिक तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण को समन्वित करते हुए विशेष पाठ्यक्रम तैयार किए जाएँगे ।
अनुसूचित जाति तथा जनजाति के बालक / बालिकाओं की शिक्षा हेतु किए गए प्रयास (Efforts for Education of SC’s and ST’s Children)
  1. सभी प्रान्तों में अनुसूचित जाति व जनजाति के बालकों को प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर पाठ्य पुस्तकें, यूनिफॉर्म एवं दोपहर का भोजन निःशुल्क प्रदान किया जा रहा है।
  2. अनुसूचित जाति व जनजाति के क्षेत्रों में प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों, आँगनबाड़ी और नए प्रकार के शिक्षा केन्द्र खोलने को प्राथमिकता दी जा रही है।
  3. अनुसूचित जाति व जनजाति के बालकों के लिए छात्रावासों का निर्माण किया जा रहा है।
  4. केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकार अनुसूचित जाति व जनजाति के विकास के लिए अनुदान प्रदान कर रही है।
  5. प्रान्तीय सरकारों के द्वारा विभिन्न शैक्षिक योजनाओं का व्यय उठाया जा रहा है।
  6. अनुसूचित जाति / जनजाति के बालकों के लिए सभी स्तरों की शिक्षा में आरक्षण की व्यवस्था की गई है।
  7. अनुसूचित जाति / जनजाति के बालकों के लिए आरक्षण के साथ-साथ प्रवेश हेतु न्यूनतम योग्यता में भी छूट दी जा रही है।
  8. अनुसूचित जाति / जनजाति के बालकों के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था भी की गई है।
  9. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग इन वर्गों के छात्र छात्राओं को उच्च शिक्षा हेतु विशेष फैलोशिप (सहचर्य) भी दे रहा है।
अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों के लिए शैक्षिक सुविधाओं की व्यवस्था करने की आवश्यकता एवं महत्त्व
  1. लोकतन्त्र की नींव को सृदृढ़ करने हेतु–प्रत्येक देश के लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति की अहम भूमिका होती है क्योंकि लोकतन्त्र लोगों की शासन व्यवस्था है। इस व्यवस्था में केवल जागरूक व्यक्ति की अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं। इसके लिए सभी व्यक्तियों का शिक्षित होना नितान्त आवश्यक है, परन्तु दुःख की बात है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्ति शिक्षा से वंचित हैं। अतः लोकतन्त्र की नींव को सृदृढ़ करने के लिए इन वर्गों को शिक्षित करना आवश्यक है।
  2. शिक्षा के सार्वभौमीकरण करने हेतु – वर्तमान में शिक्षा एक राष्ट्रीय विषय न होकर अन्तर्राष्ट्रीय विषय बन गया है । अतः प्रत्येक देश शत्-प्रतिशत शिक्षा के लक्ष्य को पाने के लिए इस स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयास करता है। भारत में शिक्षा के स्तर को सुधराने एवं ऊँचा उठाने के लिए इस वर्ग को शिक्षित करने की परम आवश्यकता है, क्योंकि देश का एक बड़ा भाग इसी के अर्न्तगत शामिल है । अतः इस वर्ग के लोगों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देना आवश्यक है, ताकि शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लक्ष्य . को प्राप्त किया जा सके।
  3. राष्ट्रीयता उत्पन्न करने हेतु- देश का गौरव सबसे बड़ी बात है और इसे बनाए रखना उससे भी बड़ी बात है किन्तु जब तक देश के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को उत्पन्न नहीं किया जाएगा तब तक देश के गौरव को बनाए रखना मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं होता है। अतः यह • राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करने के लिए इन वर्गों को शिक्षित करना आवश्यक है क्योंकि इसके अभाव में राष्ट्रीयता की भावना लुप्त हो जाएगी और देश पतन के मार्ग पर अग्रसर होने लगेगा।
  4. व्यावसायिक सफलता हेतु प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका चलाने के लिए किसी न किसी व्यवसाय को अपनाना पड़ता है शिक्षित व्यक्तियों के लिए तो अपने व्यवसाय को ठीक ढंग से चलाना कठिन नहीं है, किन्तु · अशिक्षित व्यक्तियों के लिए यह एक बड़ी समस्या है। इसका कारण यह है कि इन वर्गों को व्यवसाय के सन्दर्भ में पूर्ण ज्ञान नहीं होता है। अतः इन वर्गों को शिक्षित कर इनकी व्यावसायिक सफलता को सुनिश्चित करता चाहिए । इससे देश के विकास को एक नई दिशा और गति मिलेगी ।
  5. संसाधनों के समुचित प्रयोग हेतु- प्रकृति में मानव को अनेक प्राकृतिक संसाधन भेंट स्वरूप प्रदान किए हैं, किन्तु मानव ने इनका ठीक से उपयोग नहीं किया जिसके कारण ये संसाधन हमारे लिए व्यर्थ सिद्ध हो रहे हैं इसका हमारे जीवन में विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। यदि हम संसाधनों का समुचित उपयोग करे तो भविष्य की स्थिति में परिवर्तन सम्भव है। इसके लिए हमें शिक्षा का सहारा लेना चाहिए ताकि अशिक्षित लोगों को जागरूक बनाया जा सके। इससे इन्हें प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो सकेगा और ये इनका समुचित ढंग से उपयोग करके देश को उन्नत बना सकेंगे।
  6. देश के आर्थिक विकास हेतु- देश की आर्थिक संरचना को मजबूत करने के लिए सभी लोगों के सहयोग की आवश्यकता होती है किन्तु भारत में इन वर्गों की शिक्षा को . अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है। यद्यपि संविधान में भी इन लोगों की शिक्षा हेतु विविध प्रावधान बनाए गए हैं किन्तु इन पर अधिक अमल नहीं किया गया है। यदि वास्तव में देश की आर्थिक संरचना को सुदृढ़ बनाना है तो हमें इन वर्गों को विशेष सुविधाएँ प्रदान कर शिक्षित करना होगा।
  7. समाजवाद की स्थापना करने हेतु- – भारत में समाजवाद की स्थापना के लिए पिछड़े वर्गों का शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करके इस असमानता को खत्म करना होगा। इससे भारत में समाजवाद की स्थापना का स्वप्न साकार होगा।
  8. देश के सम्पूर्ण विकास हेतु- यदि हमें विकासशील देशों की श्रेणी से बाहर निकलकर एक सम्पूर्ण विकसित देशों की श्रेणी तक पहुँचना है तो हमें शिक्षा के शत-प्रतिशत लक्ष्य को पाने के लिए प्रयास करने होंगे साथ ही पिछड़े वर्गों एवं अनुसूचित जातियों की शिक्षा की ओर ध्यान केन्द्रित करना होगा क्योंकि इन्हीं वर्गों और जातियों के लोग शिक्षा से अधिक वंचित है।
  9. जीवन स्तर को सुधारने हेतु – इन वर्गों तथा जातियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए इन्हें शिक्षित करना नितान्त आवश्यक है साथ ही इन लोगों में व्याप्त हीन भावना को समाप्त कर इन्हें स्वतन्त्र रूप से जीवनयापन करने के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा।
  10. भविष्य के नागरिक तैयार करने हेतु – देश को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए अच्छे नागरिकों की आवश्यकता होती है, क्योंकि देश के विकास का पूर्ण उत्तरदायित्व इन्हीं अच्छे नागरिकों पर होता है। यही नागरिक देश का भविष्य निर्धारित करते हैं। इसलिए पिछड़े वर्गों एवं अनुसूचित जनजातियों के नवयुवकों को शिक्षित करके अच्छे नागरिक बनने का मौका देना चाहिए ताकि देश के भविष्य निर्माण में ये लोग भी अपना योगदान दे सकें।
महिलाओं की शिक्षा (Education of Women)
किसी भी राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। महिला और पुरुष दोनों समान रूप से समाज के दो पहियों की तरह कार्य करते हैं और समाज को प्रगति की ओर ले जाते हैं। दोनों की समान भूमिका को देखते हुए यह आवश्यक है कि उन्हें शिक्षा सहित अन्य सभी क्षेत्रों में समान अवसर दिये जाएँ, क्योंकि यदि कोई एक पक्ष भी कमज़ोर होगा तो सामाजिक प्रगति संभव नहीं हो पाएगी। परंतु देश में व्यावहारिकता शायद कुछ अलग ही है, वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में महिला साक्षरता दर मात्र 64.46 फीसदी है, जबकि पुरुष साक्षरता दर 82.14 फीसदी है। उल्लेखनीय है कि भारत की महिला साक्षरता दर विश्व के औसत 79.7 प्रतिशत से काफी कम है।

भारत में महिला शिक्षा वर्तमान स्तर ( Current status of Women education in india)

  1. भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर काफी कम है। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े दर्शाते हैं, कि राजस्थान (52.12 प्रतिशत) और बिहार (51.50 प्रतिशत) में महिला शिक्षा की स्थिति काफी खराब है।
  2. जनगणना आँकड़े यह भी बताते हैं कि देश की महिला साक्षरता दर ( 64.46 प्रतिशत ) देश की कुल साक्षरता दर ( 74.04 प्रतिशत) से भी कम है।
  3. बहुत कम लड़कियों का स्कूलों में दाखिला कराया जाता है और उनमें से भी कई बीच में ही स्कूल छोड़ देती हैं। इसके अलावा कई लड़कियाँ रूढ़िवादी सांस्कृतिक रवैये के कारण स्कूल नहीं जा पाती हैं।
  4. कई अध्ययनों के अनुसार, भारत में 15-24 वर्ष आयु वर्ग की युवा महिलाओं की बेरोज़गारी दर 11.5 प्रतिशत है, जबकि समान आयु वर्ग के युवा पुरुषों के मामले में यह 9. 8 प्रतिशत है।
  5. वर्ष 2018 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि 15 – 18 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 39.4 प्रतिशत लड़कियाँ स्कूली शिक्षा हेतु किसी भी संस्थान में पंजीकृत नहीं हैं और इनमें से अधिकतर या तो घरेलू कार्यों में संलग्न होती हैं या भीख मांगने जैसे कार्यों में ।
  6. आँकड़े यह भी बताते हैं कि भारत में अभी भी लगभग 145 मिलियन महिलाएँ हैं, जो पढ़ने या लिखने में असमर्थ हैं।
  7. उल्लेखनीय है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा स्थिति और अधिक गंभीर है।
महिलाओं के शैक्षिक पिछड़ेपन का कारण (Reasons of Educational Backwardness of Women)
  1. भारतीय समाज पुरुष प्रधान है। महिलाओं को पुरुषों के बराबर सामाजिक दर्जा नहीं दिया जाता है और उन्हें घर की चहारदीवारी तक सीमित कर दिया जाता है। हालाँकि ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में स्थिति अच्छी है, परंतु इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी देश की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
  2. हम दुनिया की सुपर पॉवर बनने के लिये तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं, परंतु लैंगिक असमानता की चुनौती आज भी हमारे समक्ष एक कठोर वास्तविकता के रूप में खड़ी है। यहाँ तक कि देश में कई शिक्षित और कामकाजी शहरी महिलाएँ भी लैंगिक असमानता का अनुभव करती हैं।
  3. समाज में यह मिथ काफी प्रचलित है कि किसी विशेष कार्य या परियोजना के लिये महिलाओं की दक्षता उनके पुरुष समकक्षों के मुकाबले कम होती है और इसी कारण देश में महिलाओं तथा पुरुषों के औसत वेतन में काफी अंतर आता है।
  4. देश में महिला सुरक्षा अभी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जिसके कारण कई अभिभावक लड़कियों को स्कूल भेजने से कतराते हैं। हालाँकि सरकार द्वारा इस क्षेत्र में काफी काम किया गया है, परंतु वे सभी प्रयास इस मुद्दे को पूर्णतः संबोधित करने में असफल रहे हैं।
महिलाओं शिक्षा के प्रसार एवं उन्नयन हेतु किए जा रहे प्रयास(Efforts For Promote And Upgrade The Education Of Women.)
  1. जिन जिलों में स्त्री साक्षरता प्रतिशत कम है उनमें ‘जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
  2. बालिकाओं के लिए माध्यमिक स्कूल खोले जा रहे हैं।
  3. बालिका निरौपचारिक शिक्षा केन्द्रों को 90% अनुदान देना प्रारम्भ कर दिया गया है।
  4. नवोदय विद्यालयों में बालिकाओं के लिए 30% स्थान आरक्षित किए गए हैं ।
  5. माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्तर पर निःशुल्क छात्रावासों की व्यवस्था की जा रही है।
  6. बालिकाओं के लिए माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा की व्यवस्था निःशुल्क है।
  7. गरीब छात्राओं को आर्थिक सहायता दी जा रही है।
  8. बालिकाओं के लिए विशेष छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की गई है।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *