सामाजिक संरचनात्मकता क्या है? व्यागोटस्की के सामाजिक संरचनात्मक सिद्धान्त का विस्तार से वर्णन करें।
वाइगोट्स्की जो कि रचनावाद के जनक माने जाते हैं उनका दावा था कि अधिगम वार्तालाप (संवाद) से ही संभव है। प्रारम्भ में शिक्षक और छात्र, परस्पर छात्रों में और यहाँ तक कि पाठ और पाठन करने वाले के मध्य एक मानसिक अंतर होता है । हालाँकि, अधिगमकर्ता यह धारणा बना लेता है कि उसने जो कहा (या लिखा) आतंरिक या पारस्परिक मानसिक अंतर कि वजह से कहा (या लिखा ) । इस प्रकार छात्रों को अपने मन के विचारों/ज्ञान के पुनःनिर्माण हेतु सक्रिय रहना चाहिए साथ ही साथ सामाजिक विचारों / ज्ञान के पुनःनिर्माण में सहभागिता की भावना रखनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त वाइगोट्स्की बताते हैं कि अधिगम का उद्देश्य प्रेरणा पर निर्भर करता है। अधिगमकर्ता की दृष्टि से हम सीखने में जिस वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और जिस प्रकार हम उसे सीखते हैं यह निर्भर करता है कि इस कार्य को करने का सामाजिक उद्देश्य क्या है। उदाहरण के लिए दो छात्र अपने एक मित्र का ईमेल पढ़ रहे हैं या पत्रिका में अपने पसंदीदा संगीत पर कोई लेख पढ़ रहे हो तो दोनों ही उसका अलग-अलग मतलब निकालेंगे। शिक्षक सीखने कि परिस्थिति के वातावरण को बनाने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं लेकिन वास्तव में जो बात मायने रखती है वो ये है कि छात्र खुद को सामाजिक सक्रिय सदस्य के रूप में कैसे देखते हैं।
वाइगोट्स्की द्वारा मचान के प्रतीकात्मक इस्तेमाल करने का अर्थ माता-पिता, साथियों, शिक्षकों या ऐसे शब्दकोशों के रूप में संदर्भ स्रोतों द्वारा प्रदान की गई सहायता के लिए संदर्भित करता है जो तीव्र और अच्छे ढंग से छात्रों को प्रदर्शन करने में सक्षम बनाए। इस प्रकार भाषा अधिगम उनके सीखने की क्षमता को बढ़ाने मैं एक मंच का कार्य करता है। मचान कि अवधारणा वाइगोट्स्की कि दूसरी अवधारणा से भी सम्बंधित है जिसे शिक्षार्थी का समीपस्थ विकास (Zone of Proximal Development) भी कहते हैं। ऐसा करके वे छात्र के कार्यक्षेत्र और क्रियाकलापों को बढ़ा सकता है जिसे छात्र मचान के • माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षकों में छात्रों के ZPD आंकलन करने के महान कौशल की आवश्यकता है।
- वास्तविकता – सामाजिक रचनावादी मानते हैं कि वास्तविकता का निर्माण मानवीय गतिविधियों से हुआ है। सामाजिक गुणों का आविष्कार समाज के सदस्यों ने मिलकर किया है। रचनावादी लोगों का मानना है कि सामाजिक गुणों के आविष्कार से पहले वास्तविकता का कोई अस्तित्व नहीं है ।
- ज्ञान – सामाजिक रचनावादियों के अनुसार, ज्ञान भी एक उत्पाद है जिसका निर्माण सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से किया गया है। व्यक्ति एक-दूसरे के साथ रहने के लिए बातचीत के माध्यम से ऐसा वातावरण बनाते हैं जिसमें वे साथ मिल कर रह सके।
- अधिगम- सामाजिक रचनावादियों के अनुसार सीखने को एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए है यह सिर्फ व्यक्ति का आंतरिक विकास ही नहीं करता वरन् उसके व्यवहार में भी परिवर्तन लाता है।
अतः वाइगोटस्की के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त को सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धान्त (Socio-Cultural Theory) भी कहा है। पियाजे ने अपने सिद्धान्त में संज्ञानात्मक विकास में संस्कृति एवं शिक्षा को महत्त्वपूर्ण नही माना है। इनके इस मत का खण्डन करते हुए वाइगोटस्की ने कहा है कि बच्चे जिस उम्र में भी किसी संज्ञानात्मक कौशल को सीखते है उन पर इसका अत्यधिक प्रभाव पड़ता है कि क्या संस्कृति से उन्हें संगत सूचना एवं निर्देश प्राप्त हो रहा है अथवा नहीं ।
वाइगोटस्की ने अपने सिद्धान्त के माध्यम से बताया है कि संज्ञानात्मक विकास एक अन्तर- वैयक्तिक सामाजिक परिस्थिति में सम्पन्न होता है। इसके माध्यम से बच्चों को उनके वास्तविक विकास का ज्ञान हो जाता है। वास्तविक विकास के ज्ञान से तात्पर्य है कि बिना किसी की सहायता लिए बच्चों द्वारा किए गए कार्य । बालकों के संभाव्य विकास के स्तर अर्थात् जिसे वे सार्थक एवं महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सहायता से प्राप्त करने में सक्षम है उसकी ओर अग्रसर करने का प्रयास किया जाता है। इन दोनों स्तरों के मध्य जो अन्तर होता है उसे वाइगोट्स्की ने समीपस्थ विकास का क्षेत्र (Zone of Proximal Development or ZPD) कहा है।
टप्पन (Tappan, 1998) तथा जान-स्टीनर एवं माह (JohnSteiner and Mohn, 1996) द्वारा किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि ZPD (Zone of Proximal Development) में पाड़ या पाइट (Scaffolding) का एक महत्त्वपूर्ण साधन (Tool) संवाद या वार्तालाप (Dialogue) होता है। वाइगोट्स्की का मत था कि बच्चों में उत्तम परन्तु अक्रमबद्ध (Unsystematic), असंगठित (Disorganised) तथा स्वतः प्रवर्तित (Spontaneous) सम्प्रत्यय (Concepts) होते हैं। जब ऐसे बच्चों का संवाद या वार्तालाप अधिक निपुण एवं प्रवीण व्यक्तियों के साथ होता है, तो उनका संप्रत्यय एक क्रमबद्ध तार्किक (Logical) एवं तर्कसंगत (Rational) संप्रत्यय में बदल जाता है।
वाइगोट्स्की (Vygostsky, 1962) ने संज्ञानात्मक विकास में बच्चों की भाषा (Language ) एवं चिन्तन (Thinking) को भी महत्त्वपूर्ण साधन बताया है। इनका मत है कि छोटे बच्चों द्वारा भाषा का उपयोग सिर्फ सामाजिक संचार (Social Communication) के लिए ही नहीं किया जाता है बल्कि इसका उपयोग वे लोग अपने व्यवहार को नियोजित एवं निर्देशित करने के लिए भी करते हैं।
जब आत्म-नियमन (Self Regulation) के लिए भाषा का उपयोग किया जाता है तो इसे आन्तरिक सम्भाषण (Inner Speech) या निजी सम्भाषण (Private Speech) कहा जाता है। इस बिन्दु पर वाइगोट्स्की का मत पियाजे (Piaget) के मत से भिन्न है। पियाजे के लिए यह निजी सम्भाषण (Private Speech) अपरिपक्व एवं आत्मकेन्द्रित (Egocentric) होता है जबकि वाइगोट्स्की ने इसे आरम्भिक बाल्यावस्था में चिन्तन का एक महत्त्वपूर्ण साधन (Tool ) माना है।
वाइगोटस्की के सिद्धान्त के अनुसार प्रारम्भ में बच्चों में चिन्तन (Thinking) एवं भाषा (Language) दोनों ही स्वतन्त्र रूप से विकसित होते हैं और बाद में वे आपस में फिर मिल जाते हैं। उनका मत था कि सभी मानसिक कार्य (Mental Functions) के बाह्य (External) या सामाजिक उद्भव (Social Origin) होते हैं । अपने चिन्तन पर ध्यान केन्द्रित करने के पहले बच्चों को दूसरों के साथ बातचीत करने के लिए भाषा को सीखना अनिवार्य होता है । इस तरह से बच्चों को लम्बे समय तक बाहरी दुनिया के साथ संचार स्थापित करने के लिए भाषा का उपयोग करना आवश्यक रूप से सीखना होता है और इसके बाद ही वे ठीक ढंग से वाह्य (External) से भीतरी सम्भाषण (Internal Speech) की ओर अन्तरित हो पाते हैं ।
यह अन्तरण सामान्यतः 3 साल से 7 साल के बीच होता है और इसमें बच्चे अपने आपसे बातचीत करना सीख लेते हैं। इसके बाद आत्म-बातचीत (Self-Talk) बच्चों का एक स्वभावसा हो जाता है और वे बिना स्पष्ट रूप से बोले ही कोई कार्य करने की क्षमता विकसित कर लेते हैं। जब ऐसा हो जाता है तो यह कहा जाता है कि बच्चे अपने आत्मकेन्द्रित सम्भाषण (Egocentric Speech) को आन्तरिक सम्भाषण (Inner Speech) के रूप से अन्तरीकृत (Internalised) कर लेते हैं जो आगे चलकर उनके चिन्तन के रूप में दिखाई देते हैं। वाइगोट्स्की का यह भी मत है कि ऐसे बच्चे जो अधिक से अधिक निजी सम्भाषण (Private Speech) का उपयोग करते हैं वे सामाजिक रूप से उन बच्चों की अपेक्षा अधिक दक्ष होते हैं जो ऐसे सम्भाषण का उपयोग नहीं करते हैं या बहुत कम करते हैं। इस तरह से उनके अनुसार निजी सम्भाषण सचमुच में सामाजिक रूप से अधिक अभिव्यक्तिशील (Communicative) बनने की दिशा में बच्चों में एक उत्तम आरम्भिक कदम होता है। अधिकतर शोधकर्ताओं ने बच्चों के विकास में निजी सम्भाषण (Private Speech) की इस धनात्मक भूमिका को समर्थन प्रदान किया है।
ऐजमिसिया (Azmitia, 1988) ने अपने अध्ययन के आधार पर यह स्पष्ट कर दिया है कि ऐसी सामाजिक अन्तःक्रियाओं (Social Interactions) से बच्चे विशिष्ट तरह के कौशलों को आसानी से सीख लेते हैं तथा उससे उनके संज्ञानात्मक विकास में मदद मिलती है।
ऐस्टिंग्टन (Astington, 1985 ) तथा पास्सर एवं स्मिथ (Passer and Smith, 2007) द्वारा इस क्षेत्र में किए गए अध्ययनों की समीक्षा से यह स्पष्ट हुआ है कि बच्चे अपने सहपाठियों के साथ भी अन्तःक्रिया करके बहुत कुछ सीखते है।
- अत्मानुशासन–प्राक्स्कूली छात्रों के लिए अपने सिद्धान्त के तहत वाइगोट्स्की का प्रमुख शैक्षिक संदेश यह है कि बच्चों के समीपस्थ विकास के क्षेत्र में अधिक से अधिक सामाजिक रूप से प्रबल एवं अर्थपूर्ण क्रियाओं को बढ़ावा दिया जाए और उनमें आत्म-विश्वास उत्पन्न करने की भरपूर कोशिश की जाए ताकि उनमें आगे की स्कूली शिक्षा के लिए जरूरी आत्म-अनुशासन का बीज बोया जा सके।
- साक्षरता क्रियाएँ – जब बच्चे औपचारिक रूप से स्कूल जाना प्रारम्भ कर दें तो वाइगोट्स्की का सिद्धान्त साक्षरता क्रियाएँ (Literacy Activities) पर बल डालता है। जब वर्ग में बच्चे साहित्य, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान (Social Science) आदि के बारे में बातचीत प्रारम्भ करते हैं तो शिक्षक उन्हें उनके बारे में कुछ नई सूचनाएँ देते हैं। उनके विचारों को संशोधित करते हैं तथा उन्हें उनकी व्याख्या करने के लिए कहते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चों की चिन्तन प्रक्रिया मजबूत हो जाती है और वे संज्ञानात्मक क्रियाओं (Cognitive Activities) के उच्चतर स्तर की ओर सोचने लगते हैं जिसमें वे यह भी सोचने लगते हैं कि किस तरह से सामाजिक रूप से लाभदायक तरीकों से किसी विचार को प्रतिबिम्बित कर सकते हैं। इस तरह से वे धीरे-धीरे अपने समाज एवं संस्कृति के संकेत तंत्रो के नियन्त्रित एवं परिचालित करना सीख लेते हैं।
- पारस्परिक शिक्षण (Reciprocal Teaching)- इस शिक्षण विधि का उद्देश्य पठन बोध (Reading Comprehension) की क्षमता को उन्नत बनाना है। यह विधि वाइगोट्स्की के सिद्धान्त से प्रेरित एक ऐसी शैक्षिक नवीनता (Educational Innovation) होती है जिसमें एक शिक्षक तथा दो से चार छात्र आपस में मिलकर एक सहयोगी अधिगम समूह (Cooperative Learning Group) बनाते हैं और किसी पाठ्य परिच्छेद या लेखांश (Text Passage) के बारे में एक वार्तालाप करते हैं जिसमें अन्य बातों के अलावा चार तरह की संज्ञानात्मक युक्तियों (Cognitive Strategies) यथा प्रश्न करना, सारांश बताना, स्पष्टीकरण करना (Clarifying) तथा पूर्वानुमान (Predict) लगाना पर बल डाला जाता है। इसमें शिक्षक पाठ्य परिच्छेद की अन्तर्वस्तु (Content) के बारे में प्रश्न करते हैं। अन्य छात्र उसका उत्तर देते हैं और यदि छात्र उसमें सहमत नहीं होते हैं तो अतिरिक्त प्रश्न करते हैं। इसके बाद शिक्षक परिच्छेद का सारांश हैं तथा उस सारभाग की विवेचना करते हैं तथा किसी अपरिचित विचार ( Unfamiliar Idea) का स्पष्टीकरण करते हैं। अंत में शिक्षक छात्रों के परिच्छेद में छिपे संकेतों के आधार पर सम्भावित अन्तर्वस्तु के बारे में (Predict) पूर्वानुमान करते हैं।
लेडरर (Lederer, 2000) ने अपने अध्ययन में पाया कि जिन प्राथमिक स्कूल की निम्न कक्षाओं के छात्रों को पारस्परिक शिक्षण (Reciprocal Teaching) का लाभ दिया गया था उनकी पठन बोध क्षमता ( Reading Comprehension Ability) उन जैसे ही छात्रों की तुलना में काफी बढ़ गई जिन्हें इस लाभ. से वंचित रखा गया था। धीरे-धीरे ऐसे लाभान्वित छात्र एक समीपस्थ विकास का क्षेत्र (Zone Proximal Development) विकसित करने में सफल हो गए जिसमें वे शनैः शनैः पाठ्य परिच्छेद (Text Passage) को समझने का अधिक से अधिक उत्तरदायित्व लेने के लिए तैयार हो गए थे।
- सहयोगी अधिगम (Cooperative Learning) – सहयोगी अधिगम में छात्रों का एक छोटा समूह आपसी भेदभाव भुलाकर एक सामान्य लक्ष्य (Common Goal) की ओर कार्य करता है। इसमें छात्र उत्तरदायित्वों के निर्वाह में भाग लेते हैं तथा एक-दूसरे को एक पर्याप्त एवं पूर्ण व्याख्या उपलब्ध कराकर अपनी गलतफहमियों को दूर करते हैं।
ऐजमिसिया (Azmitia, 1988) द्वारा किए गए अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि वाइगोट्स्की के सिद्धान्त के अनुसार किसी ात्र की समस्या समाधान क्षमता तथा नियोजन क्षमता उस समय अधिक तीक्ष्ण हो जाती है जब छात्र किसी अन्य योग्य एवं विशेषज्ञ छात्रों के साथ मिलकर सीखने का प्रयास करते हैं। सच्चाई यह है कि जब वर्ग में शिक्षण (Teaching) सहयोगी अधिगम के माध्यम से किया जाता है तो इससे वाइगोटस्की द्वारा प्रस्तावित समीपस्थ विकास का क्षेत्र (Zone of Proximal Development) एकाकी छात्र (Single Child) से विशेषज्ञों ( Experts) जैसे वयस्क एवं साथी – संगी (Peers) के साथ मिलकर अनेक सहयोगियों (Partners) जिनमें विभिन्न तरह की सुविज्ञता (Expertise) होती है तथा जो एक दूसरे को उत्तेजित एवं प्रोत्साहित भी करते हैं, तक विस्तारित हो जाता है।
