अन्तः विषय उपागम पर विस्तृत लेख लिखिए। Write a detailed note on Interdisciplinary Approach.
अन्तः विषयक उपागम छात्रों को विषयों को अधिक गहराई से समझने, अन्वेषण करने आदि के लिए जिज्ञासु बनाती है। इसमें वे विषय का ज्ञान एकांगी रूप से नहीं प्राप्त करते हैं बल्कि वे उसके व्यावहारिक पक्ष को भी समझते हैं। इसमें केवल कला वर्ग या साहित्यिक विषय नहीं आते बल्कि विज्ञान वर्ग के विषयों को भी सम्मिलित किया जाता है।
अन्तः विषय (Interdisciplinary ) शब्द शिक्षा एवं शैक्षणिक प्रशिक्षण में प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग परम्परागत अध्ययन क्षेत्रों एवं कुछ विषयों की स्थापना में आन्तरिक रूप से तथा विधियों में प्रयोग किया जाता है। अन्तःविषय में शोधकर्ता, शिक्षार्थी एवं शिक्षा के एक लक्ष्य से जुड़े होते हैं और इसमें एकीकृत कुछ शैक्षिक विद्यालयों के विचार एवं व्यवसाय तथा तकनीकी सम्मिलित होती है।
इसमें अनेक शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, अध्यापकों और विद्यार्थियों की एक ही कार्य में अनुभव की गयी विचारधाराएँ संयुक्त की जाती हैं जिससे एड्स (AIDS) एवं ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) जैसे जटिल विषयों की समस्याओं को हल करने के तरीके प्राप्त हो सकें । अन्तःविषय शिक्षा के उन क्षेत्रों में अधिकतर प्रयोग किया जाता है जहाँ शोधकर्ता दो या दो से अधिक विषयों पर अपने उपागमों का प्रयोग करते हैं और उन्हें संशोधित करके समस्या रहित सर्वश्रेष्ठ रूप में विचारों को प्रस्तुत करते हैं। इसी क्रम में विद्यार्थियों को शिक्षण के माध्यम से अनेक पारम्परिक विषयों का ज्ञान दिया जाता हैं तो उसके साथ-साथ जैविक विज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगोल और राजनीति विज्ञान की भी शिक्षा प्रदान की जाती है।
अन्तः विषयों का विकास (Interdisciplinary Development) अन्तःविषय शब्द का प्रयोग बीसवीं शताब्दी में किया गया था। इसकी अवधारणा ग्रीक दर्शन के आधार पर इतिहास से ली गई है।
जूली थामसन किलिन (Julie Thompson Kleen) के अनुसार, “इस अवधारणा की जड़ में बहुत से विचार स्थित थे जो परस्पर वार्तालाप के द्वारा समझ में आ रहे थे। ये विचार जो सर्वकालिक विज्ञान सामान्य ज्ञान विषयों के मिश्रण एवं ज्ञान के एकीकरण पर आधारित थे।” वास्तविकता यह है कि किसी भी उदारवादी मानवीय परियोजना से अन्तः विषय सम्मिलित होता है। इतिहास बताता है कि सत्रहवीं शताब्दी में भाषण, अर्थशास्त्र, प्रबन्धन, नैतिकता, कानून, दर्शन, राजनीति आदि में एक सार्वभौमिक व्यवस्था का निर्माण हुआ था । परम्परागत अध्ययन विषय महत्त्वपूर्ण समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ होते है, उसी में से अन्तःविषय प्रोग्राम कभी-कभी उभरकर सामने आते हैं। उदाहरण के लिएसामाजिक विज्ञान जैसे अध्ययन विषय से मानवशास्त्र (Anthropology) एवं समाजशास्त्र (Sociology) जैसे विषय उभरकर आए जिसमें बहुत कम सामाजिक विश्लेषण की तकनीकी पर बीसवीं शताब्दी में ध्यान दिया गया। इसके परिणामस्वरूप बहुत से समाजशास्त्रियों ने तकनीकी में रुचि ली और विज्ञान एवं तकनीकी अध्ययन के कार्यक्रमों से जुड़ गए। इससे नए अनुसन्धान विकास क्षेत्र उभर कर आए, जैसे- नैनो टैक्नोलॉजी जिसका पता दो या दो अधिक अध्ययन विषय वर्ग के उपागमों के जुड़े बिना नहीं चल सकता है। उदाहरण के लिए- Quantum Information Processing में Quantum Physics एवं Computer Science एवं Bio Informatics जिसमें Molecular Biology Computer Science के साथ जुड़े हुए हैं, उनका एकीकरण सम्मिलित है। संपोषणीय विकास शोध का एक क्षेत्र है जिसकी आवश्यकता आर्थिक, सामाजिक एवं वातावरणीय चक्र को पार कर समस्याओं के समाधान में पड़ती है। अधिकांशतः यह एक सामाजिक एवं प्राकृतिक विज्ञान विषयों का गुणात्मक एकीकरण है। बहुविषयक अनुसन्धान स्वास्थ्य विज्ञान के अध्ययन की कुँजी है।
उदाहरण के लिए जब हम किसी बीमारी की रोकथाम के लिए बहुत से अध्ययन उच्च शिक्षा संस्थानों में करते हैं तो यह स्नातक कार्यक्रम अन्तःविषयों का अध्ययन कहलाता है। अन्तःविषय के अन्तर्गत किसी विशेष क्षेत्र में नुकसानदायक प्रभावों की अधिकता को दूर करने का स्तर देखा जाता है। इसमें एक ही विशेषज्ञ क्षेत्र की कमियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है। अन्तःविषय में बिना विशेषज्ञ के एक क्षेत्र का अध्ययन किया जाता है। इसमें विश्लेषक की सलाह की आवश्यकता नहीं होती है। जब अन्तःविषय अनुसन्धान के परिणाम से समस्या का नया समाधान निकलता है तो यह जानकारी बहुत से विषयों को दी जाती है जो उससे जुड़े हैं।
- अन्तःविषय उपागम छात्रों में जिज्ञासु प्रवृत्ति उत्पन्न करती है।
- छात्रों को चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाती है।
- छात्रों को बौद्धिक एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान कर आत्मविश्वास का विकास करती है।
- छात्रों को व्यक्तिगत एवं सहयोगात्मक रूप से कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती है।
- छात्रों को विषय क्षेत्रों और विषयों को अलग-अलग दृष्टिकोण से समझने में सक्षम बनाता है।
- छात्रों को अधिगम, जीवन और काम के लिए कौशल के विकास में सहायता प्रदान करता है।
- एक साथ विभिन्न विषयों और अन्तःविषयक सम्बन्ध को समझने में सक्षम बनाता है।
- छात्रों में तुलनात्मक अध्ययन को बढ़ावा प्रदान करता है।
- रचनात्मकता को अक्सर अंतःविषय ज्ञान की आवश्यकता होती है।
- अप्रवासी अक्सर अपने नए क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- अध्ययन विषय अक्सर त्रुटियों को दोहराते हैं जिन्हें दो या दो से अधिक विषयों से परिचित लोगों द्वारा सबसे अच्छा पता लगाया जा सकता है।
- परंपरागत विषयों में अंतर के आधार पर अनुसंधान के कुछ महत्त्वपूर्ण विषय आते हैं।
- कई बौद्धिक, सामाजिक और व्यावहारिक समस्याओं के अंतःविषय दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
- अंतःविषय ज्ञान और शोध हमें एकता के ज्ञान आदर्श की याद दिलाने के लिए कार्य करता है। अन्तःविषय अपने शोध में अधिक लचीलेपन का आनंद लेते हैं ।
- अधिक संकीर्ण अध्ययन विषय की तुलना में अंतःविषय छात्रवृत्तियाँ अक्सर नए देशों में यात्रा करने के बौद्धिक समकक्षों के साथ खुद को पेश करती हैं।
- अंतःविषय आधुनिक अकादमी में भंग संचार अंतराल की सहायता कर सकते हैं, जिससे बड़ी सामाजिक समझदारी और न्याय के कारण अपने विशाल बौद्धिक संसाधनों को जुटाने में मदद मिलती है।
- विखंडित विषयों को तोड़ने से, अंतःविषय शैक्षणिक स्वतन्त्रता की रक्षा में भूमिका निभा सकते हैं।
- अंतःविषय अध्ययन के लिए सबसे प्रभावी दृष्टिकोण छात्रों को उनके लिए समझ बनाने वाले पाठ्यक्रमों को चुनकर अपने स्वयं के अंतःविषय मार्ग का निर्माण करने में सक्षम बनाता है। उदाहरण के लिए- साहित्य, कला और इतिहास या विज्ञान और गणित में अनुशासनात्मक सीमाओं को पार करने वाला विषय ढूंढना बहुत मुश्किल नहीं है। विषयों को अंतःविषय रूप में अध्ययन करना विषयों को एक साथ विचार लाने का एक तरीका है, जिसके परिणामस्वरूप और अधिक सार्थक तरीके से सीखा जा सकता है। यह छात्रों को अपने स्वयं के विषयों का चयन करने की इजाजत देता है और जब वे अलग-अलग विषयों में वे क्या सीख रहे हैं के बीच सम्बन्धों को प्रतिबिंबित करते हैं तो उनकी शिक्षा गहराई से होती है।
- छात्रों को बहुत प्रेरित किया जाता है क्योंकि उनके पास उन विषयों का पीछा करने में जो निहित स्वार्थ होता है जो उनके लिए दिलचस्प हैं। नतीजतन, सामग्री अक्सर जीवन के अनुभवों में निहित होती है जो सीखने के लिए एक प्रामाणिक उद्देश्य देती हैं और इसे एक वास्तविक दुनिया के संदर्भ से जोड़ती है। नतीजतन, सीखना सार्थक उद्देश्यपूर्ण और गहराई से सीखने वाले अनुभवों का परिणाम होता है जो छात्र के साथ एक जीवनकाल के लिए रहते हैं।
- छात्र अधिक गहराई में विषयों को सीखते हैं क्योंकि वे एकसाथ कई और विविध दृष्टिकोणों पर विचार कर रहे होते हैं।
- छात्र कई दृष्टिकोणों से विचारों को संश्लेषण करके और ज्ञान प्राप्त करने का एक वैकल्पिक तरीका सीखते हुए सीखना शुरू करते हैं।
- विषय सीमाओं की एक श्रृंखला में विषयों की खोज से छात्रों को विभिन्न विषय क्षेत्रों में नए ज्ञान का पीछा करने के लिए प्रेरित करता है।
- महत्त्वपूर्ण सोच, संश्लेषण और अनुसन्धान के हस्तांतरणीय कौशल विकसित किए गए हैं और भविष्य के सीखने के अनुभवों के लिए लागू है।
- अंतःविषय ज्ञान और विभिन्न विषयों के आवेदन से अधिक रचनात्मक हो गई है।
- अन्तःविषय अनुसन्धानों के अधिकांश सहभागी परम्परागत अध्ययन विषयों में प्रशिक्षित होते हैं। वे विभिन्न विधियों एवं यथार्थ चित्रण को समझ नहीं सकते हैं। एक अन्तःविषयी कार्यक्रम तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक उसके सदस्य उस अध्ययन विषयों को जैसा है वैसा ही रहने देना चाहते हैं। इस प्रकार उनमें अपने परम्परागत अध्ययन विषयों के प्रति कठोर अभिवृत्ति होती है।
- दूसरी ओर यदि लोग अपने परम्परागत अध्ययन विषय वर्ग के प्रति यथार्थ एवं स्पष्ट चित्रण रखते हैं तो वे कम कठोर होते हैं तथा उनमें लचीलेपन की प्रवृत्ति होती है। तभी अन्तःविषय के कार्यों को वे देख पाते हैं और उससे अभिप्रेरित हो पाते हैं। यह विश्वास एक बाधा है जो अन्तःविषय कार्यों के रास्ते की रुकावट है। अन्तःविषय अनुसन्धानकर्ता के लिए अपने अनुसन्धान कार्य को करना एक कठिन अनुभव होता है। अन्तःविषय अनुसन्धानों में अनुसन्धानकर्ता किसी प्रकार का वादा नहीं करते हैं क्योंकि वे प्राप्त परिणामों से पूर्णतः अनभिज्ञ होते हैं।
- यदि अन्तःविषयों को पर्याप्त स्वायत्तता प्राप्त न हो तो कई बार अन्तःविषयी कार्यक्रम असफल भी हो सकता है । उदाहरणार्थ- अन्तःविषय के लिए जो संकाय नियुक्त किया जाता है वह दोनों अर्थात् परम्परागत अध्ययन विषयों एवं अन्तःविषय क्षेत्र के लिए उत्तरदायी माना जाता है। जैसे- अन्तःविषय के कार्यक्रम महिलाओं का अध्ययन एवं परम्परागत अध्ययन विषय, जैसे- इतिहास आदि ।
- परम्परागत अध्ययन विषय में अपने विषयगत अधिकार के आधार पर निर्णय लिए जाते हैं जबकि अन्तःविषय कार्यक्रमों में झिझक रहित होकर कार्य में नवीनता के अनुसार निर्णय लेना चाहता है। इस प्रकार दोनों के मध्य एक बाधा उत्पन्न हो जाती है।
- एक अन्य समस्या यह भी होती है कि ज्यादातर विद्यालयी जर्नल परम्परागत अध्ययन विषयों पर प्रकाशित होती है जो ‘ उसी विषय के प्रत्यक्षीकरण का नेतृत्व करते हैं जबकि अन्तःविषय जर्नल का प्रकाशन कार्य कम होता है और इन अनुसन्धानिक कार्यों को छपवाना भी कठिन होता है।
- अधिकांश परम्परागत अध्ययन विषयों के लिए विश्वविद्यालयों में संसाधन उपलब्ध होते हैं, उनके लिए बजट की व्यवस्था होती है। अधिकांश छात्र परम्परागत अध्ययन विषय से जुड़े होते हैं। उनमें शिक्षकों को वेतन प्रदान किया जाता है। शिक्षण एवं अनुसन्धानों के लिए संसाधनों की व्यवस्था की जाती है जबकि नए अन्तःविषय कार्यक्रमों के लिए न तो बजट उपलब्ध होता है और न ही संसाधन उपलब्ध होते हैं ।
