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आनुवंशिकी

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आनुवंशिकी

◆ माता-पिता से संतानों में विभिन्न लक्षणों के स्थानातंरण का विषय तथा उससे सम्बन्धित कारणों और नियमों का अध्ययन आनुवंशिक विज्ञान (Genetics) कहलाता है।
◆ जेनेटिक्स (Genetics) नाम का सर्वप्रथम उपयोग 1905 ई. में डब्ल्यू. वाटसन ने किया था।
◆ आस्ट्रिया निवासी ग्रेगर जॉन मेन्डेल (1822-1854 ई.) ने आनुवंशिकता के बारे में सर्वप्रथम जानकारी दी। इसी कारण उन्हें आनुवंशिकता का पिता (Father of Genetics) कहा जाता है।
◆ जॉन मेन्डेल ने मटर के पौधे पर अपना प्रयोग किया था।
◆ मेन्डेल ने मटर में सात जोड़े गुणों का अध्ययन करके तीन नियम दिया, जो निम्नलिखित प्रकार से है-
1. प्रभाविकता का नियम (Law of Dominance) : एक जोड़ा विपर्यायी गुणों वाले शुद्ध पिता तथा माता में संकरण करने से प्रथम संतान पीढ़ी में प्रभावी गुण प्रकट होते हैं जबकि अप्रभावी गुण छिप जाते हैं।
2. पृथक्करण का नियम (Law of Segregation) : एक जोड़ा लक्षण कारकों (जीन) के प्रत्येक सजातीय जोड़े के दोनों कारक युग्मक बनाते समय पृथक होते हैं और इनमें से केवल एक कारक ही किसी एक युग्मक (gamate) में पहुँचता है। इस नियम को युग्मकों के शुद्धता का नियम (Law of Purity of gametes) भी कहते हैं।
3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment) : संकरण के दौरान संकर के विभिन्न गुणों की वंशागति स्वतंत्र रूप में होती है और जब दो या दो से अधिक गुणों के समजातीय जोड़ों की वंशागति का अध्ययन एक ही संकरण में किया जाता है तो
◆ युग्म विकल्पी (Alleles): एक ही गुण के विभिन्न विपर्यायी रूपों को प्रकट करने वाले लक्षण कारकों को एक-दूसरे का विकल्पी या एलील या एलीलोमार्फ (allelomorph) कहते हैं। जैसे किसी पुष्प का रंग लाल, हरा, पीला को क्रमश: R, G, Y से प्रकट करते हैं। इसी प्रकार लंबा (T) तथा बौना (t) भी युग्म विकल्पी है।
◆ समयुग्मजी (Homozygous): जब किसी गुण के एलील (Alleles) समान हॉ, जैसे लंबा पौधा (TT), बौना पौधा (tt) ।
◆ विषम युग्मजी (Heterzygous): यदि समजातीय कारकों के जोड़ों में दोनों कारक एक-दूसरे के विपर्यायी हो अर्थात् उनमें एक प्रभावी होगा तथा दूसरा अप्रभावी हो तो यह जोड़ा विषमयुग्मजी या संकर (hybrid) कहलाता है।
◆ समलक्षणी (Phenotype ) : जीवधारी के जो लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दिखायी पड़ते हैं उसे समलक्षणी कहते हैं ।
◆ समजीनी (Genotype) : जीवधारी के आनुवंशिकी संगठन को उसका समजीनी कहते हैं, जो कि कारकों (जीन) का बना होता है।
◆ सहलग्नता (Linkage) : एक गुणसूत्र पर स्थित जीनों में एक साथ वंशगत होने की प्रवृत्ति पायी जाती है। जीनों की इस प्रवृत्ति को ‘सहलग्नता’ कहते हैं। जबकि जीन जो एक ही गुणसूत्र पर स्थापित होते हैं और एक साथ वंशानुगत होते हैं, उन्हें सहलग्न जीन (Linked genes) कहते हैं। लिंग सहलग्न जीन ( Sex linked genes) लिंग सहलग्न गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ले जाते हैं। वास्तव में X गुणसूत्र पर स्थित जीन ही लिंग सहलग्न जीन कहे जाते हैं क्योंकि इसका प्रभाव नर तथा मादा दोनों पर पड़ता है। लिंग सहलग्नता की सर्वप्रथम विस्तृत व्याख्या 1910 ई. में मार्गन (Morgan) ने की थी। मनुष्यों में कई लिंग सहलग्न गुण जैसे- रंगवर्णान्धता, गंजापन, हीमोफीलिया, मायोपिया, हाइपरट्राइकोसिस आदि पाये जाते हैं। लिंग सहलग्न गुण स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा प्रकट होते हैं ।
◆ एक जीन-एक एन्जाइम सिद्धान्त (One gene-one enzyme theory): एक जीन के द्वारा एक एन्जाइम का संश्लेषण होता है। इस सिद्धान्त की खोज बीडल और टेटम (Beadle and Tatum) ने 1948 ई. में किया तथा इसके लिए उन्हें 1958 ई. में नोबेल पुरस्कार मिला था।
◆ बैक क्रॉस (Back Cross) : यदि प्रथम पीढ़ी के जीनोटाइप से पितृपीढ़ी के जोनोटाइप में शुद्ध या संकर प्रकार को संकरण कराया जाये तो यह क्रॉस बैक-क्रॉस कहलाता है।
मानव आनुवंशिकी (Human Genetic)
◆ गुणसूत्रों (Chromosomes) का नामकरण डब्ल्यू. वाल्डेयर ने 1888 ई. में किया था। ये केन्द्रक में धागे की तरह पड़े रहते हैं।
◆ गुणसूत्र ही आनुवंशिक गुणों का माता-पिता से संतानों में युग्मकों (Gametes) के माध्यम से स्थानांतरण करते हैं।
◆ गुणसूत्रों में पाये जाने वाले आनुवंशिक पदार्थ को जीनोम (Genome) कहते हैं। जीन इन्हीं गुणसूत्रों पर पाया जाता है।
◆ गुणसूत्रों के बाहर जीन यदि कोशिका द्रव्य के कोशिकांगों में होती है, तो उन्हें प्लाज्माजीन (Plasmagene) कहते हैं।
◆ जीन की आधुनिक विचारधारा 1956 ई. में एस. बेंजर द्वारा दी गयी। इनके अनुसार जीन को कार्य की इकाई सिस्ट्रॉन (Cistron), उत्परिवर्तन की इकाई म्यूटॉन (Muton) तथा पुनः संयोजन की इकाई रेकान (Recon) कहा गया। इस प्रकार जीन को तीन भागों में बाँटा गया है।
◆ मानव में 20 आवश्यक अमीनो एसिड पाये जाते हैं।
◆ आर्थर कोर्नबर्ग ( A. Kornberg) ने 1962 में डी.एन.ए. पालीमेरेज ( DNA Polymerase) नामक एन्जाइम की खोज की, जिसकी सहायता से डी. एन. ए. का संश्लेषण होता है।
◆ मनुष्य में लिंग निर्धारण (Sex Determination in Man ) : मनुष्य में गुणसूत्रों (Chromosomes) की संख्या 46 होती है। मनुष्य एक लिंगी जीव है और प्रत्येक संतान को समजात गुणसूत्रों की प्रत्येक जोड़ी का एक गुणसूत्र अंडाणु के द्वारा माता से तथा दूसरा शुक्राणु के द्वारा पिता से प्राप्त होता है। शुक्रजनन (Spermatogenesis) में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा दो प्रकार के शुक्राणु बनते हैं- आधे वे जिनमें 23वीं जोड़ी का x गुणसूत्र जाता है अर्थात् (22 + X ) और आधे वे जिनमें 23वीं जोड़ी में y गुणसूत्र जाता है अर्थात् (22+Y ) । स्त्रियों में एक समान प्रकार के गुणसूत्र अर्थात् (22+X) तथा (22+X) वाले अंडाणु पाये जाते हैं। निषेचन के समय यदि अंडाणु x गुणसूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है तो युग्मनज (Zygote) में 23वीं जोड़ी XX होगी और इससे बनने वाली संतान लड़की होगी। इसके विपरीत किसी अंडाणु से Y गुणसूत्र वाला शुक्राणु निषेचित होगा तो XY गुणसूत्र वाला युग्मनज बनेगा तथा संतान लड़का होगा। इस प्रकार लिंग निर्धारण में पुरुष का Y गुणसूत्र संतान में लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी होता है।
नोट : परखनली शिशु के मामले में निषेचन परखनली के अंदर होता है।
विभिन्न जीवों में गुणसूत्रों की संख्या
क्र. सं. जाति का नाम गुणसूत्र संख्या
1. एस्केरिस 2
2. घरेलू मक्खी 12
3. डोसोफिला 8
4. मच्छर 6
5. मधुमक्खी 16, 32
6. मेढक 26
7.  कबूतर 80
8. खरगोश 44
9. कुत्ता 78
10. बिल्ली 38
11. घोड़ा 64
12. चिम्पैंजी 48
13. मनुष्य 46
14. आलू 48
15. टमाटर 24
16. मटर 14
17. गेहूँ 42
18. प्याज 16
19. नींबू 18, 36
20. मक्का 20
21. तम्बाकू 48
22. टेरिडोफाइट्स 1300-1600

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