उपचारात्मक शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए तथा इसके प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए ।
योकम एवं सिम्पसन के अनुसार, “उपचारात्मक शिक्षण उचित रूप से निदानात्मक शिक्षण के बाद आता है।”
ब्लेयर एवं जोन्स के अनुसार, “उपचारात्मक शिक्षण वास्तव में उत्तम शिक्षण है, जो विद्यार्थी को अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्रदान करता है और जो सुप्रेरित क्रियाओं द्वारा उसको अपनी कमजोरियों के क्षेत्रों में अधिक योग्यता की दिशा में अग्रसर करता है।”
योकम व सिम्पसन के अनुसार, “उपचारात्मक शिक्षण उस विधि को खोजने का प्रयत्न है जो छात्र को अपनी कुशलता या विचार की त्रुटियों को दूर करने में सफलता प्रदान करता है।”
गुलीन, मायर्स व ब्लेयर के अनुसार, “उपचारात्मक शिक्षण बुरी आदतें पड़ने तथा अच्छी आदतें नहीं होने पर दिया जाता है । ”
उपचारात्मकं शिक्षण वह शिक्षण कार्य है जो किसी विद्यार्थी या विद्यार्थियों के समूह की निदानात्मक परीक्षण से ज्ञात की जाए जिससे किसी विषय के अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों का निवारण करने में प्रयोग किया जाए। उपचारात्मक शिक्षण द्वारा विद्यार्थी की कमजोरियों को दूर करने का प्रयास किया जाता है व उनका उचित मार्गदर्शन किया जाता है ।
- यह विधि शिक्षण को रोचक एवं उद्देश्य पूर्ण बनाये रखने मे सहायक है
- छात्रों की विषय संबंधित कठिनाई का पता लगाने में महत्वपूर्ण है।
- छात्रों की सामान्य समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
- इसके द्वारा व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास किया जाता है।
- इससे बालक स्वयं के वातावरण से उचित समायोजन कर • पाने समर्थ हो जाता है।
- विद्यार्थियों की अधिगम सम्बन्धी दुर्बलताओं व अक्षमताओं को समाप्त करना ।
- विद्यार्थियों की अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों एवं कमजोरियों को दूर करके उनको भविष्य में भी उन दोषों से दोषमुक्त करना ।
- विद्यार्थियों की दोषपूर्ण आदतों, कुशलताओं एवं मनोवृत्तियों को समाप्त करके उनको आदर्श एवं उत्तम रूप प्रदान करना ।
- विद्यार्थियों की अवांछनीय रुचियों, आदतों एवं दृष्टिकोणों को वांछनीय रुचियों, आदर्शों एवं दृष्टिकोणों में परिवर्तन करना।
- विद्यार्थियों के शिक्षण से प्रति रुचि उत्पन्न करना ।
- विद्यार्थियों में आत्मविश्वास को जन्म देना ।
- शिक्षण में मनोविज्ञान के सिद्धांत का प्रयोग करना
- छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाइयों को दूर करना ।
- विद्यार्थियों की त्रुटियों को यदा-कदा शुद्ध करना ।
- प्रत्येक विद्यार्थी के अधिगम सम्बन्धी दोषों का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन करके उनको दूर करने के उपाय बताना |
- विद्यार्थियों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुसार उनको विभिन्न समूहों में विभाजित करके उनके शिक्षण की व्यवस्था करना ।
- विद्यार्थियों को छोटे-छोटे समूहों में विभाजित करके उनको उनकी आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा प्रदान करना।
- कक्षा के विद्यार्थियों के अधिगम सम्बन्धी दोषों, कमजोरियों और बुरी आदतों का निदान करके उनको उनसे मुक्त करांना।
- कक्षा- शिक्षण (Class Teaching) – इस प्रकार की औपचारिक शिक्षण व्यवस्था में कक्षा के वर्तमान स्वरूप और संरचना में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता है। शिक्षक को जब इस बात की जानकारी हो जाती है कि विद्यार्थी विष विशेष के किसी प्रकरण, विषयवस्तु, शिक्षण प्रक्रिया एवं अवधारणा आदि को समझने में कठिनाई का अनुभव कर रहे हैं या अब तक जो कुछ भी उन्हें पढ़ाया गया है या पढ़ाया जा रहा है उसके बारे में अपेक्षित पूर्व ज्ञान उनके पास नहीं है शिक्षक ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण कक्षा को ही विषय विशेष, प्रकरण विशेष या विषय वस्तु या अवधारणा आदि के बारे में शिक्षण प्रदान करता है तथा पढ़ाए गए पाठ को पुनः पढ़ाता है। पाठ के किसी भी अंश को अच्छी तरह स्पष्ट करता है, उसके बारे में विविध प्रकार के अधिगम अनुभवों को बहुइन्द्रिय के माध्यम से प्रस्तुत करता है और इस प्रकार शिक्षक ऐसे सभी प्रयत्न अपने शिक्षण के द्वारा करता है जिनसे कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा विषय विशेष में अनुभव की जाने वाली अधिगम कठिनाइयों, कमजोरियों तथा परेशानियों को दूर करने में पूरी – पूरी सहायता मिल सके। इस प्रकार के उपचारात्मक शिक्षण कक्षा के सभी विद्यार्थियों की एक समान अधिगम कठिनाइयों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- समूहगत ट्यूटोरियल शिक्षण (Group Tutorial Teaching) – इस प्रकार की शिक्षण व्यवस्था में कक्षा के विद्यार्थियों को कुछ ऐसे समूह विशेष में विभक्त कर लिया जाता है जिनकी विषय विशेष सम्बन्धी अधिगम कठिनाइयाँ, कमजोरियाँ एवं समस्याएँ लगभग समान होती हैं। अब प्रत्येक समूह को किसी एक शिक्षक या विभिन्न शिक्षकों द्वारा अलग-अलग रूप से उनकी अपनी अधिगम कठिनाइयों, कमजोरियों या र समस्याओं के हिसाब से शिक्षण प्रदान किया जाता प्रत्येक ट्यूटोरियल समूह का इन्चार्ज एक ट्यूटर होता या तो विद्यार्थियों में से ही किसी होशियार विद्यार्थी यह कार्य कराया जाता है अथवा विषय शिक्षक ही प्रत्येक समूह के लिए अलग-अलग रूप से अपने समय का विभाजन कर लेता है। इस तरह की शिक्षण व्यवस्था का मूल उद्देश्य केवल यही रहता है कि ट्यूटोरियल समूह में सम्मिलित सभी विद्यार्थियों की एक समान अधिगम कठिनाइयों और कमजोरियों को सामूहिक रूप से हल किया जा सके। इस शिक्षण अधिगम व्यवस्था में ऐसी कठिनाइयों या कमजोरियों को विषय विशेष से सम्बन्धित जिन प्रकरणों, विषय वस्तु या अधिगम अनुभवों को ग्रहण करने में हो रही है उनका पुनः शिक्षण किया जा सकता है। किसी विशेष प्रकार के ज्ञान और कौशल को जिस प्रकार से विद्यार्थी ग्रहण कर सके, उसे इसी प्रकार प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है। साथ ही साथ विभिन्न प्रकार की शिक्षण और अनुदेशनात्मक सामग्री को उसी रूप में प्रयोग किया जाता है जिससे विद्यार्थी पहले समझ में न आने वाली बातों को ठीक तरह से समझ सकें ।
- वैयक्तिक ट्यूटोरियल शिक्षण (Individualised Tutorial Teaching ) – इस शिक्षण व्यवस्था के अन्तर्गत विद्यार्थियों को उनकी अपनी अधिगम कठिनाइयों और कमजोरियों के आधार पर वैयक्तिक शिक्षण दिया जाता है। विद्यार्थियों को उनकी अधिगम कठिनाइयों और कमजोरियों के आधार पर शिक्षक द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अलग-अलग वैयक्तिक मार्गदर्शन, वांछित सहायता, कोचिंग आदि प्रदान करने की व्यवस्था की जाती है ताकि विद्यार्थी की लगभग सभी समस्याओं का निवारण किया जा सके। इस शिक्षण व्यवस्था में प्रत्येक विद्यार्थी अपनी-अपनी अधिगम गति, योग्यता एवं क्षमता के अनुसार सीखते हैं। उन्हें जैसी सहायता, व्यक्तिगत ध्यान, पुनर्बलन की जरूरत होती है वह उन्हें वैयक्तिक रूप से भली-भाँति प्रदान की जाती हैं। इस प्रकार इस शिक्षण व्यवस्था के द्वारा विद्यार्थी की वैयक्तिक अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों एवं कमजोरियों का व्यक्तिगत रूप से निवारण कर उसे अधिगम पथ पर भली-भाँति अग्रसरित करने में सहायता मिलती है ।
- पर्यवेक्षित ट्यूटोरियल शिक्षण (Supervised Tutorial Teaching ) – इस प्रकार की शिक्षण व्यवस्था के अन्तर्गत विद्यार्थी स्वयं के प्रयत्नों से अपने द्वारा अनुभव की जाने वाली अधिगम कठिनाइयों एवं कमजोरियों को दूर करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार हम विद्यार्थी को जो बातें समझ नहीं आ रही हैं या समझ नहीं आयी हो, उन्हें अच्छी तरह से पढ़कर • उनको अच्छी तरह सोच विचारकर तथा उन पर विशेष ध्यान देकर पुनरावृत्ति, स्वाध्याय आदि की सहायता लेते हैं। ऐसी बातों को समझने के लिए वे अपने कौशलों का अच्छी तरह से उपयोग कर लेते हैं। ऐसे सभी प्रयत्न करते हैं जिनसे विषय विशेष से सम्बन्धित अधिगम कठिनाइयों एवं कमजोरियों को दूर किया जा सके। ऐसा करने में विद्यार्थियों को अपने शिक्षकों से पर्याप्त मार्गदर्शन एवं आवश्यक सहायता मिलती रहती है। शिक्षक द्वारा प्रदान किया जाने वाला मार्गदर्शन या समस्या का पर्यवेक्षण सामूहिक या वैयक्तिक किसी भी प्रकार का हो सकता है।
- ट्यूटोरियल शिक्षण (Tutorial Teaching)—उपचारात्मक शिक्षण में ट्यूटोरियल शिक्षण विशेष लाभप्रद है ट्यूटोरियल में छात्रों की व्यक्तिगत समस्याओं एवं शिक्षण की जटिलताओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके मुख्य रूप हैं-
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समूहगत ट्यूटोरियल शिक्षण
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वैयक्तिक ट्यूटोरियल शिक्षण
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पर्यवेक्षित ट्यूटोरियल शिक्षण
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- स्व – अनुदेशित शिक्षण (Self-Instructional Teaching)–पर्यवेक्षित शिक्षण व्यवस्था की भाँति स्व अनुदेशित शिक्षण व्यवस्था में विद्यार्थियों को किसी भी प्रकार का मार्गदर्शन या पर्यवेक्षण प्राप्त नहीं होता है। विद्यार्थी स्व–अनुदेशन द्वारा ही अपनी अधिगम कठिनाइयों एवं, कमजोरियों को दूर करने का प्रयास करते हैं। यहाँ ज प्रकार की विषयगत अधिगम कठिनाइयाँ और कमजोरियाँ उनके सामने आती हैं उनका निदान किया जाता है, उनको ध्यान में रखते हुए स्व अनुदेशन सामग्री, अभिक्रमित अधिगम पैकेज के रूप में या कम्प्यूटर मृदु उपागम के रूप में विद्यार्थियों को उपलब्ध करा दी जाती है और फिर वह उस अनुदेशन सामग्री का उपयोग करते हुए स्वयं ही उससे उचित अनुदेशन ग्रहण करते हुए अपनी अधिगम कठिनाइयों तथा कमजोरियों के निवारण के प्रयत्न करता है। इस प्रकार के स्व शिक्षण या अधिगम के प्रयत्न उसकी अपनी गति, शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार वह स्वयं तय करता है तथा अपनी कमजोरियों और कठिनाइयों को दूर करने की सारी जिम्मेदारी विद्यार्थी की स्वयं की होती है ।
- अनौपचारिक शिक्षण (Informal Teaching)–विषय विशेष सम्बन्धी अनौपचारिक शिक्षण गतिविधियों को अगर औपचारिक शिक्षा के साथ भली-भाँति जोड़ दिया जाए तो जिन विद्यार्थियों को उपचारात्मक शिक्षण चाहिए उनकी बहुत कुछ अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों और कमजोरियों क्रा निवारण किए जाने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार की औपचारिक शिक्षण गतिविधियों और कार्यक्रम के रूप में विभिन्न क्रियाओं और मनोरंजक पहेलियों और खेलों को सम्मिलित कर सकते हैं जैसेसमाज के सांस्कृतिक र्कायक्रमों में भाग लेना, सामाजिक / सामाजिक विज्ञान क्लब का संगठन, हिन्दी संग्रहालय के लिए वस्तुओं का संग्रह करना, सामूहिक चर्चा एवं वाद-विवाद में भाग लेना, इतिहास से सम्बन्धित वस्तुओं की प्रदर्शनी तथा अन्य विभिन्न प्रकार की ऐसी पाठ्य सहगामी क्रियाओं में भाग लेना आदि । इस प्रकार विद्यार्थी जिन बातों को कक्षा अध्ययन में नहीं समझ पाते, वे इन बातों को औपचारिक शिक्षण के माध्यम से वास्तविक एवं प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा आसानी से समझ जाते हैं। ऐसे विद्यार्थियों के लिए औपचारिक शिक्षण काफी लाभदायक है जो कक्षा शिक्षण में रुचि नहीं लेते हैं।
