एडम रिपोर्ट से आप क्या समझते हैं? इसका विस्तृत वर्णन करते हुए मूल्यांकन कीजिए ।
उत्तर – भारत में 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में देशी शिक्षा की स्थिति जानने के लिए कई कदम उठाए गए। इसका मुख्य कारण 1813 के अधिनियम में शिक्षा के लिए ₹1 लाख की घोषणा थी परन्तु ये धनराशि कैसे और कहाँ खर्च की जाएगी। इस बारे में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं थे। इस विवाद के समय भारत का गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक था जो एक समाज सुधारक था। एडम ने उसको भारतीय शिक्षा के लिए 1829 एवं 1834 में दो पत्र भी लिखे थे। एडम एक पादरी, समाज-सेवक, विद्वान एवं शिक्षाविद् भी थे। एडम के इन पत्रों में भारत में शैक्षिक सुधारों से पूर्व वास्तविक स्थिति का सर्वेक्षण कराए जाने की बात कही गई थी। ऐसे में लार्ड विलियम बैंटिक ने एडम को बंगाल एवं बिहार प्रान्त की शिक्षा की स्थिति का सर्वेक्षण करने का कार्य सौंपा। एडम ने 1835 से 1838 तक बंगाल की शिक्षा स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन कियज्ञं
- एडम की प्रथम रिपोर्ट – 1835।
- एडम की द्वितीय रिपोर्ट – 1836।
- एडम की तृतीय रिपोर्ट – 1838।
- जनसंख्या के अनुसार शैक्षिक संस्थाओं की संख्या ।
- शिक्षा का स्वरूप ।
- शिक्षा संस्थाओं का वितरण ।
बंगाल की शिक्षा का स्वरूप (Form of Education of Bengal)
- बंगाल एवं बिहार में 400 व्यक्तियों पर एक पाठशाला थी।
- 400 बालकों की पाठशाला में केवल 63 बालक थे।
- बंगाल तथा बिहार में 1801 के सर्वेक्षण के अनुसार 63 बालकों हेतु एक देशी पाठशाला थी।
दोष / सीमाएँ (Demerits/Limitations)
- शिक्षा का स्तर निम्न होना ।
- छात्रों का अवधि के पूर्व ही विद्यालय छोड़ देना।
- शिक्षक अपने वेतन के लिए छात्रों तथा उनके परिवार वालों पर निर्भर रहते थे ।
- मुद्रित पाठ्य-पुस्तकों का प्रयोग बहुत ही कम होता था।
- अक्षर ज्ञान के लिए रेत पर अभ्यास कराना ।
- आधुनिक उपकरणों एवं शिक्षण विधियों का अभाव ।
- एक संस्था वह जिसमें काव्य एवं व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी ।
- दूसरी संस्था वह जिसमें कानून नियम तथा काव्य पढ़ाया जाता था ।
- तीसरी संस्था में न्याय तथा साहित्य का शिक्षण दिया जाता था।
एडम की द्वितीय रिपोर्ट (Second Report of Adam, 1836)
- मुस्लिम पाठशालाओं में अरबी, फारसी तथा बंगाली पढ़ाई जाती थी ।
- नटौर थाने में मुस्लिम तथा हिन्दुओं की जनसंख्या का अनुपात 100:600 था।
- इस थाने में 11 प्राथमिक विद्यालय थे, जिनमें 192 छात्र अध्ययनरत् थे तथा मुस्लिम विद्यालयों की संख्या 17 थी जिनमें 20 छात्र अध्ययन कर रहे थे ।
- पाठशालाओं की शिक्षा की अपेक्षा व्यक्तिगत रूप से शिक्षा देने का प्रचार कहीं अधिक था ।
- 238 ग्रामों में 1588 परिवार ऐसे थे जो बच्चों को घर पर ही शिक्षा देते थे।
- अध्यापकों का औसत मासिक वेतन लगभग ₹5 था ।
- स्त्री शिक्षा की पूर्णतः अनदेखी की जाती थी। जमींदारों की लड़कियों को छोड़कर कोई स्त्री शिक्षित नहीं थी ।
- जो मौलवी घर जाकर शिक्षा देते थे उन्हे ₹12 प्रति महीने व भोजन दिया जाता था ।
- देशी को शैक्षणिक योजना का अनिवार्य अंग बनाया जाना चाहिए। अंग्रेजी भाषा शिक्षा सम्बन्धी नीति व विचारों ने देशी भाषा के शिक्षण का महत्त्व बिल्कुल ग दिया है।
- शिक्षकों की औसत आयु लगभग 40 वर्ष थी।
- अधिकांश शिक्षक कायस्थ वर्ग के थे।
- वेतन लेने वाले शिक्षक छात्रों को निःशुल्क शिक्षा भी प्रदान करते थे।
- कुछ स्थानों पर प्रौढ़ शिक्षा के साधन भी उपलब्ध थे।
- विद्यालयों में ब्राह्मण तथा कायस्थ छात्रों की संख्या अधिक थी।
- छात्र लगभंग 6 वर्ष की आयु में विद्यालय में प्रवेश लेते थे और 16-17 वर्ष की आयु में विद्यालय छोड़ देते थे।
- विद्यालयों के पास आय के निश्चित साधन नहीं थे।
- हिन्दू विद्यार्थी प्रायः बंगला, हिन्दी एवं संस्कृत का अध्ययन करते थे तथा मुसलमान फारसी, अरबी एवं उर्दू का अध्ययन करते थे।
- स्त्री शिक्षा को सामान्य जन नकारात्मक दृष्टि से देखता था ।
- बंगाल में ऐसा कोई गाँव नहीं था जहाँ प्राथमिक विद्यालय न हो ।
- बंगाल में लगभग एक लाख प्राथमिक विद्यालय थे
- बंगाल में अधिकांश विद्यालय घरों में चलते थे।
- पाँच वर्ष की आयु के पश्चात् ही छात्र विद्यालय जाते थे।
- हिन्दू छात्र प्रायः बंगाली तथा संस्कृत भाषाओं का अध्ययन करते थे जबकि मुस्लिम छात्र अरबी तथा फारसी का अध्ययन करते थे।
- विद्यालय प्रवेश में कोई भेद-भाव नहीं था। सभी को विद्यालय में प्रवेश बिना किसी जाति-भेद के प्राप्त होता था ।
- स्त्री शिक्षा को लोग उचित नहीं मानते थे।
- शिक्षक का वेतन लगभग ₹5 मासिक था ।
- भारतीय भाषा एवं साहित्य तथा ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन भारतीय भाषाओं के माध्यम से कराया जाए।
- भारत कृषि प्रधान देश होने के कारण यहाँ उचित कृषि शिक्षा की व्यवस्था की जाए ।
- जिन भारतीय शिक्षा संस्थानों का स्वरूप धार्मिक न हों उन्हें शिक्षा संस्थानों में परिवर्तित कर आधुनिक जन – सामान्य की शिक्षा की व्यवस्था की जाए।
- सरकार की तरफ से सभी विद्यालयों को आर्थिक सहायता दी जाए।
- शिक्षकों का वेतन बढ़ाकर उनकी आर्थिक स्थिति सुधारी जाए ।
- प्राच्य भाषाओं में पाठ्य पुस्तकों का निर्माण भारतीय तथा पाश्चात्य विशेषज्ञों की सहायता से करवाया जाए।
- शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था की जाए।
- सेवारत् अप्रशिक्षित शिक्षकों के लिए प्रतिवर्ष 3-3 माह का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाकर 4 वर्ष के अन्दर उनका प्रशिक्षण पूर्ण किया जाए ।
- शिक्षकों तथा विद्यालयों के निरीक्षण के लिए प्रत्येक जिले में निरीक्षक नियुक्त किए जाएं।
- प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक भारतीय विचारों एवं भावनाओं को स्थान दिया जाए।
- जन साधारण को आधार मानकर शिक्षा दी गई ।
- भारतवासियों के कल्याण एवं शिक्षा की व्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला गया ।
- भारतीयों को रुचि एवं सामर्थ्य के अनुसार शिक्षा देना।
- देशी भाषा शिक्षण को शैक्षणिक योजना का मुख्य अंग माना गया।
- भारत में प्राथमिक शिक्षा का जनसाधरण के लिए होना ।
इसके साथ ही एडम ने भारतीय विविधता तथा शिक्षा के प्रति लगाव को देखते हुए उन्हें भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने का • सुझाव दिया तथा बस समय के साथ नए तत्त्वों को उसमें समाहित किया जाए। इसके अतिरिक्त मुख्य बात ये कि अगर भारतीय शिक्षा में पिछड़े तो इसके लिए जिम्मेदार कौन था क्योंकि प्लासी एवं बक्सर के युद्ध के पश्चात् क्रमशः सम्पूर्ण भारत पर अंग्रेजों ने अधिकार किया तथा उसे लूटा तथा भारतीयों के कल्याण एवं जन शिक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठाया। 1813 के अधिनियम में जब भारतीय शिक्षा के लिए ₹1 लाख दिए गए तो उस पर भी विवाद खड़ा कर लगभग दो दशकों तक शिक्षा के लिए कोई कार्य नहीं किया गया ।
उपर्युक्त तथ्यों के अतिरिक्त एडम रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन न कराकर उसके पूर्व ही मैकाले के विवरण पत्र को (1835 ) में ही स्वीकार कर लिया गया तथा निस्यंदन के सिद्धान्त को लागू कर दिया गया। जबकि एडम रिपोर्ट में इसका विरोध किया गया था जो लोग एडम रिपोर्ट पर प्रश्न खड़ा करते हैं उन्हें ये नहीं भूलना चाहिए कि विवाद खड़ा कर देने मात्र से वास्तविकता समाप्त नहीं हो जाती है। ये हो सकता है कि एडम ने कुछ क्षेत्रों का विस्तृत भ्रमण/सर्वेक्षण न किया हो और कुछ तथ्य लोगों के द्वारा बताई गई बातों के अनुसार दर्ज कर लिए परन्तु इससे पूरी रिपोर्ट को आधारहीन या कोरी कल्पना कहना सरासर गलत होगा। इसके विपरीत यदि बैंटिक ने एडम रिपोर्ट को स्वीकार किया होता तो भारतीय की स्थिति आज पूरी तरह दूसरी होती ।
लार्ड मैकाले के विवरण से भी पूरा विवाद नहीं समाप्त तभी तो आकलैण्ड ने भारतीय शिक्षा पर भी कुछ धनराशि व्यय कर समस्या का समाधान निकाला। इससे स्पष्ट है कि एडम रिपोर्ट की अनदेखी नहीं की जा सकती है तथा विभिन्न गवर्नर-जनरलों ने विभिन्न आयोगों का गठन कर एडम रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण अंशों को परोक्ष रूप से स्वीकार किया ।
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के विवेचन से स्पष्ट है कि प्रत्येक रिपोर्ट के कुछ सकारात्मक तथा कुछ नकारात्मक पहलू होते हैं परन्तु मात्र नकारात्मक तथ्यों के आधार पर पूरी रिपोर्ट समाप्त नहीं की जाती है, उसी तरह एडम रिपोर्ट भी है। उसमें सकारात्मक तथ्य अधिक हैं तथा उसे यदि लागू कर दिया जाता तो भारतीयों को अत्यधिक कल्याण होता ।
