1st Year

कक्षा-कक्ष प्रक्रिया एवं छात्र- शिक्षक अन्तःक्रिया में लैंगिक असमानता की विवेचना कीजिए। Discuss the Gender Inequality in Classroom Process and Student-Teacher Interaction.

प्रश्न – कक्षा-कक्ष प्रक्रिया एवं छात्र- शिक्षक अन्तःक्रिया में लैंगिक असमानता की विवेचना कीजिए।
Discuss the Gender Inequality in Classroom Process and Student-Teacher Interaction.
या
कक्षा में ‘लैंगिक विषमता के सन्दर्भ में व्याख्या कीजिए। इस समस्या के निवारण हेतु नीति तथा प्रबन्धन सम्बन्धित बदलाव सुझाइए।
Explain the issue of Gender Inequalities in the classroom. Suggest policy and management related modifications to address the problem of Gender Inequalities. 
उत्तर – कक्षाकक्ष प्रक्रिया में लैंगिक असमानता (Gender Inequality in Classroom Process)
कक्षाकक्ष प्रक्रिया के अन्तर्गत कई पहलू शामिल होते हैं जिसको समझने के बाद ही लैंगिक असमानता को कक्षागत परिस्थितियों में समझा जा सकता है। कक्षागत प्रक्रिया (Classroom Processes) में निम्नलिखित बातें शामिल होती हैं-
  1. पाठयोजना का निर्माण एवं क्रियान्वयन,
  2. शिक्षण – कौशल का प्रयोग,
  3. शिक्षण विधियों का प्रयोग,
  4. शिक्षण–राजनीतियों का प्रयोग, एवं
  5. छात्र – शिक्षक अन्तःक्रिया ।
कक्षा – कक्ष का स्वरूप (Forms of Classroom)
  1. समान लिंगी कक्षा ( Same Gender Classroom ) – एक लिंगी कक्षा दो रूप में पाई जाती हैं सिर्फ लड़कियों की कक्षा और सिर्फ लड़कों की कक्षा । सिर्फ लड़कियों की कक्षा में शिक्षक पढ़ा रहा है या शिक्षिका इस बात का भी लैंगिक असमानता पर असर पड़ता है।
    1. लड़की – शिक्षिका कक्ष- कक्ष Teacher (Girls-Female Classroom ) – कक्षा-कक्ष का वातावरण परम्परागत सामाजिक ढाँचे के अनुरूप ही होता है और इस प्रकार के कक्षागत वातावरण में शिक्षिका और छात्र समान लिंगी होने के कारण सारे के सारे सन्दर्भ वैसे ही होते हैं जो परम्परागत रूप से चले आ रहे हैं। समान लिंगी (महिला) कक्षा में एक सकारात्मक पहलू यह है कि महिला जगत से सम्बन्धित समस्याओं को स्वतन्त्र रूप में बताया जा सकता है क्योंकि असमानता से जुड़े कई पहलुओं का सन्दर्भ उस कक्षा में स्वतन्त्र रूप से नहीं किया जा सकता जहाँ पुरुष भी उपस्थित हों। इस प्रकार की कक्षागत परिस्थितियों में किसी भी प्रकार के विरोध की गुंजाइश नहीं होती। इस प्रकार महिलाओं की समानता से सम्बन्धित जागरूकता फैलाई जा सकती है।
    2. लड़का-शिक्षिका कक्षा-कक्ष (Boys – Female Teacher Classroom) – यदि कक्षाकक्ष में सभी लड़के होते हैं और शिक्षक एक महिला होती है तो इस प्रकार के कक्षाकक्ष में इस बात की सम्भावना होती है कि पुरुष प्रधान समाज से सम्बन्धित बातों को ही प्रमुखता दी जाए।
    3. लड़की-शिक्षक कक्षा-कक्ष (Girls-Male Teacher Classroom) – जब कक्षा-कक्ष में सभी लड़कियाँ ही हों और शिक्षक पुरुष होता है तो उस कक्षा में भी पुरुष प्रधान बातों को ही प्रमुखता दी जाती है क्योंकि शिक्षक की बातें वैसे ही वैध होती हैं और उसके द्वारा दिए जाने वाले उदाहरण भी पुरुष प्रधान समाज से ही सम्बन्धित होते हैं ।
    4. लड़के-पुरुष शिक्षक कक्षा-कक्ष (Boys-Male Teacher Classroom) इस प्रकार की कक्षा में भी पुरुष प्रधान समाज से सम्बन्धित सन्दर्भों को बताया जाता है और महिलाओं की समानता की कोई भी बात नहीं उठाई जाती ।
  2. मिश्रित Gender लिंगी कक्षा-कक्ष (Mixed Classroom)इस प्रकार की कक्षा में लड़के और लड़कियों दोनों ही होते हैं और कक्षा-कक्ष में दोनों लिंगों के सदस्यों की उपस्थिति एक ऐसी अन्तःक्रिया को जन्म देती है जिसमें दोनों ही अपने-अपने लिंग का वर्चस्व कायम करने की कोशिश करते हैं ऐसी स्थिति में शिक्षक-शिक्षिकाओं की भूमिका अहम् हो जाती है क्योंकि उनको वैसा ही आचरण करने के लिए कह दिया जाता है जो पुरुष प्रधान समाज अपेक्षा रखता है।पुरुष शिक्षक तो अध्यापन करते समय उन्हीं सन्दर्भों का प्रयोग करते हैं जो पुरुष प्रधान समाज में प्रयुक्त किए जाते हैं। जाने अनजाने कक्षा में पुरुष – केन्द्रित बातें ही हो जाती हैं। अक्सर शिक्षक लड़कियों को उनकी सुन्दरता ध्यान रखने वाली साफ सफाई वाली आदि की प्रशंसा तो करते मिल जाते हैं पर सवालों का जवाब माँगने के लिए पहले वो लड़कों के पास ही जाते हैं और लड़कियों से आसान प्रश्न ही करते हैं ।

    शिक्षकों को यह चाहिए कि कक्षाकक्ष में परम्परागत सन्दर्भो को न ध्यान दें और कोई भी वाक्य ऐसा न बोलें जो पुरुष या स्त्री को असमान रूप से अलंकृत करता हो। कहानियों या प्रसंगों में राजकुमार ही राजकुमारी को बचाता है। ऐसी बातों को सुनकर भी बच्चों का कोमल मन अपनी-अपनी भूमिका स्वीकार करने लगता है।

    शिक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि महिला और पुरुष सिर्फ शारीरिक रूप से भिन्न होते हैं न कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से। इसलिए लड़कों और लड़कियों को उनके परम्परागत कार्यों तक ही सीमित न किया जाए।

कक्षाकक्ष में लैंगिक समानता की स्थापना
विद्यालय की कक्षाओं में शिक्षकों द्वारा प्रयुक्त छात्रों के सम्बन्ध में सकारात्मक टिप्पणियाँ उनके उत्साहवर्धन, कार्य क्षमता में वृद्धि तथा अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न करती हैं तो वही नकारात्मक एवं रूढ़िवादी टिप्पणियाँ उनके मन-मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। प्रायः शिक्षण अध्यायों की कहानियों में नायक रूप में राजकुमार, राजा अथवा शक्तिशाली पुरुषों को युद्ध या लड़कर स्त्रियों की रक्षा करना दिखाया जाता है। यह कहानी अथवा इसका सार कक्षा के बालकों एवं बालिकाओं के मन पर लैंगिक रूढ़िवादिता का प्रभाव डालता है।

जैसे- “राहुल एक साहसी लड़का है और बड़ा होकर अपने परिवार की रक्षा भी करेगा और माँ-बाप के लिए सहारा बनेगा और रानी एक बहुत समझदार लड़की है वह बड़ी होकर अपने परिवार का ध्यान रखेगी, सबके लिए बड़ी प्यारी रहेगी और अपने बच्चों का इस प्रकार लालन-पालन करेगी कि वे बच्चे चरित्रवान बन सकेंगे।” इस वाक्य में लड़के व लड़कियों को कहीं न कहीं परम्परागत भूमिकाओं में बाँधा गया है। कक्षा में इस प्रकार के वाक्यों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

उपर्युक्त बातों से बचने के लिए शिक्षकों को अपने शिक्षण की योजना बनाते समय बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से इस बात पर दृष्टिपात कर लेना चाहिए कि लड़के एवं लड़कियाँ सामान्य रूप से एकल लिंग समूह में किन बातों को पसन्द करते हैं। विषमता आधारित समस्या का कारण एक ही कक्षा-कक्ष में लड़कों एवं लड़कियों के एक लिंग आधारित अशक्त पाठ्यचर्या के अनुसार अलग-अलग ढंग से पढ़ाना । यह दोनों लिंगों के विषय-वस्तु पर निर्भरता के स्थान पर उनमें विभिन्नता उत्पन्न कर देता है। कक्षा में लैंगिक समानता स्थापित करने के लिए। शिक्षकों को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. लैंगिक भेदभाव वाले शब्दों की बजाय लैंगिक समावेशितं या तटस्थ शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ।
  2. शिक्षकों को अपनी अभिवृत्ति में आवश्यक बदलाव करना चाहिए।
  3. सकारात्मक एवं लैंगिक तटस्थता वाले उदाहरण देने चाहिए।
  4. परम्परागत भूमिकाओं में आवश्यक बदलाव करके छात्र – छात्राओं के साथ अन्तःक्रिया करनी चाहिए ।
  5. माता या पिता से कोई बात पूछ कर आने के लिए कहने की बजाय Parents’ शब्द का प्रयोग करना चाहिए ।
  6. लड़के-लड़कियों को जान-बूझकर अलग-अलग नहीं बैठाना चाहिए। उन्हें मिश्रित रूप से बैठाया जाना चाहिए।
  7. लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने वाले तथा इस मानक पर खरे उतरने वाले पुस्तकों का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  8. छात्रों द्वारा लैंगिक रूढ़िवादिता पर आधारित वाक्य या शब्दों पर आपत्ति व्यक्त करनी चाहिए।
  9. भेदभाव को समाप्त करने की योजनाओं को छात्र – छात्राओं के सामने रखना चाहिए ।
  10. कुछ ऐसी गतिविधियों का आयोजन किया जाना चाहिए जिसमें लड़कों को लड़कियों की गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिले तथा लड़कियों को लड़कों वाली गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिले। लड़के-लड़कियों दोनों को प्रत्येक प्रकार की गतिविधियों में बराबर का अवसर दिया जाना चाहिए।
  11. कक्षागत व्यवहार के मामले में लड़कों को शिक्षकों द्वारा ज्यादा ध्यान दिया जाता है क्योंकि ( एक अन्तर्राष्ट्रीय शोध के आधार पर) लड़कों में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार के कार्य करने की अभिवृत्ति होती है जबकि लड़कियों में सिर्फ सकारात्मक कार्य की अभिवृत्ति पाई जाती है। लड़के कक्षा में एक-दूसरे को छेड़ना या अन्य शरारत भी करते हैं जिसके कारण क्षकों का ध्यान लड़कों पर लड़कियों की तुलना में ज्यादा जाता है। शिक्षकों को कक्षागत अन्तःक्रिया के दौरान लड़के-लड़कियों दोनों को बराबर समय देना चाहिए।
छात्र शिक्षक अन्तःक्रिया में लैंगिक असमानता (Gender Inequality in Student-Teacher Interaction) 
जब हम कक्षागत प्रक्रिया की बात करते हैं तब उसके अन्तर्गत छात्र और शिक्षक के बीच की आपसी अन्तःक्रिया को शामिल करते हैं। छात्र शिक्षक अन्तःक्रिया उस समय की अवस्था कही जाती है जब किसी प्रत्यय को समझाने के लिए शिक्षक अपने सम्मुख बैठे छात्रों से बात करते हैं। इसे कक्षागत प्रक्रिया का एक अंग माना जाता है कक्षा में प्रश्न पूछने पर लड़के-लड़कियों में विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आती हैं। जहाँ एक तरफ उत्तर देने के लिए लड़के शोर मचाने लगते हैं और हाथ खड़े करके सबसे पहले उत्तर देने की कोशिश करते हैं, वहीं लड़कियाँ शान्त भाव से उत्तर माँगे जाने की प्रतीक्षा करती हैं। विद्यार्थियों की तरफ से पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए लड़कों की संख्या ज्यादा होती है। इसकी वजह प्रभुत्व ही है।

समाज में लैंगिक रूढ़िवादिता (Gender Stereotypes ) के कारण पहल करने का परम्परागत कार्य लड़कों द्वारा ही सम्पन्न किया जाता है। अनुशासन के सम्बन्ध में भी शिक्षक लड़के-लड़कियों के लिए भिन्न विधियों का प्रयोग करते हैं। लड़कों को शारीरिक दण्ड देने की प्रवृत्ति देखी जाती रही है परन्तु वर्तमान कानून की बाध्यता के कारण शारीरिक दण्ड तो नहीं दिया जा सकता किन्तु सख्त एवं कठोर शब्दों के माध्यम से उन्हें अनुशासित किया जा सकता है जबकि लड़कियों को उनके व्यवहार सम्बन्धी उलाहना या आदर्श स्थिति में रहने के लिए कहते हैं क्योंकि लड़कियों को रोना बहुत जल्दी आ जाता है इसलिए भी उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक व्यवहार या प्रतिक्रिया नरम प्रकृति की ही होती है।

  1. पाठ्य सामग्री का चुनाव – पितृसत्तात्मक लैंगिक रूढ़िवादी भूमिका के आधार पर शिक्षक पाठ्यचर्या सामग्री या विषय-वस्तु का चुनाव करते हैं, जैसे –
    (i) रमेश के पिताजी बाजार गए और सब्जियाँ खरीद कर लाए ।
    (ii) रमेश की माताजी ने मेले में जाने के लिए रमेश के पिताजी से रुपये माँगे ।
    इन उदाहरणों में परम्परागत लैंगिक भूमिका और कार्य की पुनरावृत्ति करके लैंगिक असमानता को बढ़ाया जा रहा है। उपरोक्त उदाहरणों के अतिरिक्त ऐसी कई विषय-वस्तु हैं जो हमारे पाठ्यचर्या में शामिल कर ली गई हैं और शिक्षक उनको वैसे ही विद्यार्थियों को पढ़ा देते हैं। अपने उदाहरणों में भी शिक्षक ‘पुरुष प्रधान’ (Male Dominated) उदाहरणों या घटनाओं का विवरण देते हैं। शिक्षक को यह सावधानी बरतनी चाहिए कि महिला एवं पुरुष के परम्परागत भूमिकाओं को छात्रों के पास जाने से रोका जाए। बल्कि इसी विचार के विपरीत उनकी परम्परागत भूमिका से अलग भूमिका का बोध कराया जाए।
  2. निर्देशात्मक भाषा के प्रयोग में सावधानी शिक्षण करते समय शिक्षक अक्सर अपने स्वयं जैंडर की भाषा का प्रयोग करता है, जैसे- “तुम घर पर क्या करती हो” की बजाय “तुम क्या करते हो” वाक्य का ज्यादा प्रयोग करता है क्योंकि यदि शिक्षक पुरुष है तो वह अपने जैंडर का प्रयोग तो करेगा ही। यदि शिक्षक को यह कहना है कि “I am eating” तो इसको हिन्दी में शिक्षक यही बोलता है- “मैं खा रहा हूँ।” जबकि कक्षा में लड़कियाँ भी बैठी होती हैं। उन्हें इन वाक्यों से अपने जेंडर का बोध नहीं होता इसलिए शिक्षक द्वारा निर्देशात्मक भाषा के लैंगिक होने का प्रमुख कारक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और भाषा का स्वरूप होता है, जैसे- अंग्रेजी भाषा में जाती हूँ, जाता हूँ, शब्दों का प्रयोग नहीं होता इसलिए उसमें इस प्रकार की समस्या नहीं आती पर हिन्दी भाषा में इस प्रकार की समस्या आ जाती है।
  3. व्याख्या या पाठ समझाते समय लैंगिक भेदभाव-शिक्षक अक्सर विषय-वस्तु को समझाते समय जो उदाहरण देते हैं, उनमें लैंगिक भेदभाव देखने को मिलता है। यदि शिक्षक किचन या घरेलू कार्यों से सम्बन्धित कुछ समझाता है तो कहता है, “आपने अपनी माँ को सब्जी काटते हुए देखा होगा। यदि चाकू से सब्जी काटते समय हाथ में चोट लग जाए तो आप क्या करोगे?” इस वाक्य में माँ को परम्परागत कार्य करते हुए चित्रण किया गया है।
  4. पाठ्यचर्या विभाजन एवं पाठ्येत्तर क्रिया विधि में भेदभाव – विद्यालयों में जंब पाठ्यचर्या का विभाजन और आवंटन किया जाता है तो भी लैंगिक रूढ़िवादिता का प्रभाव देखा जा सकता है, जैसे- शारीरिक शिक्षा एवं संगीत विषय के विभाजन के समय शारीरिक शिक्षा विषय प्रायः लड़कियों को न तो दिया जाता है और न ही लड़कियाँ इसमें रुचि रखती हैं। शारीरिक शिक्षा में शारीरिक शक्ति को आधार बनाया जाता है और लड़कियों को एहसास दिलाया जाता है कि यह विषय उनके लिए उपयुक्त नहीं है जबकि संगीत पाठ्यचर्या को उनके लिए उपयुक्त बताकर आवंटित कर दिया जाता है। लड़कियों के घर वाले भी संगीत को उनके लिए उपयुक्त मानते हैं। लड़कियाँ लैंगिक रूढ़िवादिता (Gender Stereotypes) की शिकार होकर संगीत जैसे विषयों को ले लेती हैं। पाठ्य सहगामी क्रियाओं में भाग लेने में लैंगिक रूढ़िवादिता देखने को मिलती है। जैसे- नृत्य व गायन के लिए अधिकतर लड़कियों को ही प्राथमिकता दी जाती है जबकि नाटकों एवं ड्रम बजाने, पर्दा खींचने आदि में लड़कों को जगह मिलती है। इतना ही नहीं खेल के मैदान में, खेलकूद के पीरियड में, खेल के सामानों पर लड़कों का आधिपत्य हो जाता है। लड़कियों को न तो खेल का मैदान उपयुक्त मात्रा में मिलता है और न ही खेल का सामान ।
कक्षागत अन्तः क्रिया को लैंगिक समानता आधारित बनाने के उपाय
  1. शिक्षकों एवं छात्र छात्राओं के लिए लैंगिक समानता पर आधारित मुद्दों पर बातचीत एवं विचार-विमर्श करने के लिए वर्कशाप इत्यादि का आयोजन किया जाना चाहिए जिसमें इन मुद्दों के आधार पर ज्ञान देने का प्रयास किया जाना चाहिए ।
  2. विद्यालयों को लड़कियों के लिए ज्यादा उपयुक्त स्थल बनाना चाहिए। उनको प्रोत्साहन देने वाली नीतियों के क्रियान्वयन पर जोर दिया जाना चाहिए।
  3. शिक्षण विधियों एवं शिक्षण रणनीतियों को लैंगिक समानता के आधार पर समीक्षा की जानी चाहिए और उनमें आवश्यक परिवर्तन करके कक्षा में इस प्रकार प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे लड़के-लड़कियाँ दोनों को बराबर अधिगम अवसर प्राप्त हों।
  4. शिक्षकों द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए ‘भाषा’ एवं शब्द की उपयुक्तता पर आधारित कार्यशाला एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए जिससे कि नीतिगत आधार पर कुछ शब्दों एवं वाक्यों के प्रयोग से सम्बन्धित नियम बनाया जा सके।
  5. शिक्षण – प्रशिक्षण कार्यक्रम के पाठ्यचर्या में लैंगिक विभेद को समाप्त करने व लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने वाली रणनीतियों को शामिल करके उपयुक्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और आन्तरिक मूल्यांकन में उचित अनुपात में इसको भारांकित किया जाना चाहिए जिससे प्रशिक्षणार्थी इस पहलू पर आवश्यक रूप से ध्यान केन्द्रित कर सकें।
  6. विद्यालय को समुदाय से सम्बन्धित करना, अभिभावक शिक्षण मीटिंग के दौरान भी इस मुद्दे को रेखांकित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त शिक्षकों को कुछ NGO से सम्बन्धित करके भी उन्हें वास्तविक परिस्थितियों में अवलोकन करने का अवसर देना चाहिए जिससे उनमें इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके।
  7. शिक्षकों को अपने आप को सिर्फ ज्ञान देने का विशेषज्ञ न मानकर एक प्रणेता और काउन्सलर मानना चाहिए जो छात्रों की भावना को समझे।
  8. कक्षा – कक्ष के छात्र-छात्राओं के बीच आपसी सम्बन्ध अच्छे हों शिक्षकों को ऐसा प्रयास करना चाहिए।
  9. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में दोनों को बराबर का अवसर देना चाहिए।
  10. लड़कियों की अधिक भागीदारी के लिए भाषा, सामाजिक विज्ञान और विज्ञान विषयों में जहाँ भी सम्भव हो, भूमिका निर्वाह शिक्षण विधि का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  11. छात्र छात्राओं के बीच कार्यों का बँटवारा समान रूप से होना चाहिए।
  12. शिक्षकों को सुस्त अधिगमकर्ता (Slow Learner) की पहचान करके उपचारात्मक शिक्षण कराया जाना चाहिए जिससे कि वे लड़कियाँ जिनका प्रदर्शन कमजोर हो, सुधारा जा सकता है।
  13. शिक्षक सहायक सामग्रियों, जैसे- चार्ट, मॉडल आदि बनाते समय शिक्षक को चाहिए कि वह प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष व महिला को साथ-साथ दिखाए, जैसे- खेती का काम करते समय, अस्पताल में इंजीनियर के रूप में आदि ।
  14. गणित, विज्ञान, भाषा, सामाजिक विज्ञान आदि विषयों में उदाहरण देते समय महिला पुरुष को समान भूमिका में बताना चाहिए।

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