किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान तथा विरोध की अवस्था है। स्टेनले हॉल के इस कथन की विवेचना कीजिए। “Adolescence is a period of great stress strain, storm and strike. ” Discuss this statement given by Stanley Hall.
प्रश्न – किशोरावस्था बड़े संघर्ष, तनाव, तूफान तथा विरोध की अवस्था है। स्टेनले हॉल के इस कथन की विवेचना कीजिए। “Adolescence is a period of great stress strain, storm and strike. ” Discuss this statement given by Stanley Hall.
या
भारतीय किशोरों की आवश्यकताओं तथा समस्याओं का वर्णन कीजिए | Discuss the needs and problems of Indian adolescents.
उत्तर – किशोरावस्था की प्रमुख आवश्यकताएँ एवं महत्त्वाकांक्षाएँ (Important Needs and Aspirations of Adolescence)
किशोरावस्था में अनुभव की जाने वाली प्रमुख आवश्यकताओं को यदि हम संक्षिप्त रूप में देखें तो उन्हें तीन मुख्य भागों सामाजिक, भौतिक तथा संवेगात्मक आवश्यकताओं में विभक्त किया जा सकता है। किशोरावस्था में जब किशोर में भौतिक तथा शारीरिक परिवर्तन होते हैं तो वह अपने इन परिवर्तनों को दूसरों को दिखाने की इच्छा करता है परन्तु उसे अपने शारीरिक परिवर्तनों से समझौता करना पड़ता है। अपनी भावनाओं को अपने तक ही सीमित रखना पड़ता है। इस अवस्था में बालक अधिक से अधिक सामाजिक बनना चाहता है एवं अपने मित्र – समूह में अपना एक अलग स्थान बनाना चाहता है। यदि किशोर के संवेगात्मक पहलू पर ध्यान आकर्षित किया जाए तो वह अपने मित्र- समूह में उच्च स्थान सम्मान तथा प्रशंसा प्राप्त करने को उत्सुक रहता है। किशोर बालक अपने माता-पिता तथा गुरुजन से प्यार तथा सम्मान की आशा भी करता है। वह अपनी उम्र के आधार पर बढ़ती हुई कामेच्छाओं की सन्तुष्टि भी किसी न किसी माध्यम से करना चाहता है। किशोरावस्था में बालक में भविष्य के लिए सपने देखने तथा वर्तमान को जीने के विषय में जो भी अभिलाषाएँ और महत्त्वाकांक्षाएँ होती हैं, वह जीवन के किसी अन्य काल में नहीं होती हैं।
किशोरों की इन महत्त्वाकांक्षाओं को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-
- माता-पिता तथा गुरुजन एवं मित्रमण्डली में अधिक से अधिक ध्यान आकर्षित करने, प्यार पाने तथा सहयोग पाने व देने की तीव्र महत्त्वाकांक्षा ।
- अन्य व्यक्तियों के समक्ष विशेषतः विपरीत लिंग के व्यक्ति के सामने अत्यधिक सुन्दर व पुरुषोचित या स्त्रियोचित प्रतिमान दिखाई देने की महत्त्वाकांक्षा ।
- अपने पसन्द के शैक्षणिक व व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने की महत्त्वाकांक्षा ।
- सभी का आकर्षण बिन्दु बनने की महत्त्वाकांक्षा ।
- अच्छे जीवनसाथी की महत्त्वाकांक्षा जिससे वे सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत कर सकें।
- जीवन के किसी पसंदीदा क्षेत्र में कुछ कर दिखाने की महत्त्वाकांक्षा ।
- अपने देश, जाति, समाज तथा धर्म के लिए कुछ कर दिखाने की महत्त्वाकांक्षा ।
- देश तथा समाज में व्याप्त भ्रष्टतंत्र को जड़ से समाप्त करने की महत्त्वाकांक्षा ।
उपर्युक्त विवरण से यह ज्ञात हो जाता है कि विविध महत्त्वाकांक्षाओं तथा बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सन्तुष्टि एक किशोर के लिए अत्यधिक महत्त्व रखती है। इस अवस्था में किशोर की आवश्यकता तथा महत्त्वाकांक्षा की सन्तुष्टि तथा असन्तुष्टि के आधार पर ही उनका आने वाला भविष्य निर्भर करता है ।
किशोरावस्था की समस्याएँ (Problems of Adolescence)
- पारिवारिक सम्बन्धों एवं सामाजिक समायोजन से सम्बन्धित समस्या – प्रायः देखा जाता है कि किशोर तथा किशोरियाँ किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में स्वतन्त्र होकर हिस्सा लेना चाहते हैं जिसकी अनुमाति प्रायः अभिभावकों से प्राप्त नहीं होती है। परिणामस्वरूप अभिभावकों एवं किशोरों के मध्य तनाव बढ़ता है एवं पारिवारिक संघर्ष अत्यन्त तीव्र हो जाता है। पारिवारिक संघर्ष रहने से किशोरों को अपने विकासात्मक कार्यों को पूरा करने में अपने अभिभावकों से सहयोग एवं उचित दिशा-निर्देश नहीं मिल पाता है और उनकी समस्याएँ अत्यन्त भयावह हो जाती है। सिम्पसन ने अपने एक अध्ययन में पाया कि जिन किशोरों को पारिवारिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है उनका समायोजन स्कूल अधिकारियों, साथियों तथा पास-पड़ोस के लोगों से भी तनावपूर्ण होता है। इस प्रकार उनकी समस्या और भी जटिल हो जाती है।
- विद्यालय में समायोजन सम्बन्धी समस्याएँ – विद्यालय में अध्यापकों तथा अपने साथियों के साथ उचित समायोजन की समस्या का सामना किशोरों को करना पड़ता है। कुछ रूढ़िवादी प्रकृति के शिक्षक कक्षा में किशोरों के साथ अत्यन्त कठोरता (सख्ती) से पेश आते हैं तथा किशोरों को किसी भी प्रकार की स्वतन्त्रता प्रदान करने से इन्कार कर देते हैं तथा उन्हें दण्ड भी देते हैं। ऐसी अवस्था में किशोरों को समायोजन करने में बहुत परेशानी होती है। सामान्यतः स्कूल का पाठ्यक्रम मूलतः सैद्धान्तिक होता है एवं लड़के तथा लड़कियों की उनमें मुश्किल से किसी तरह की सहभागिता हो पाती है। कक्षा में शान्त होकर पाठ्यक्रमों पर भाषण सुनना उन्हें नितान्त उबाऊ लगता है।
- नैतिक व्यवहार से सम्बन्धित समस्या – प्रायः किशोर अपने लिए एक अत्यन्त ही अवास्तविक उच्च मानक निर्धारित कर लेते हैं जिन्हें वे पूरा नहीं कर पाते। इससे उनमें दोषभाव उत्पन्न होता है एवं उनके समक्ष विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इतना ही नहीं अध्ययनों द्वारा यह पता चला है कि किशोर दूसरों के लिए भी अवास्तविक उच्च मानक निर्धारित कर लेते हैं एवं जब दूसरे उन मानक को पूरा नहीं कर पाते हैं तो वे उनसे लड़ने-झगड़ने लगते हैं ।
इस प्रकार उनमें सामाजिक समायोजन से सम्बन्धित समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कुछ किशोरों को नैतिक नियमों का पालन करना ही नहीं आता एवं कुछ किशोर क्या सही है क्या गलत यह सीख ही नहीं पाते हैं। इन किशोरों में नैतिक समस्याओं के साथ-साथ सामाजिक समायोजन की समस्या भी उत्पन्न हो जाती हैं ।
- मादक वस्तुओं के सेवन की समस्या – वर्तमान समय में किशोरों में मादक वस्तुओं के सेवन से सम्बन्धित समस्या काफी गम्भीर हो गई है। इन मादक वस्तुओं में गाँजा, अफीम, कोकीन आदि का सेवन करते हैं। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह सिद्ध हो गया है कि इन मादक वस्तुओं के सेवन का हासात्मक प्रभाव होता है जिसके कारण उनमें सामाजिक आर्थिक, नैतिक तथा पारिवारिक समस्याएँ उत्पन्न कर उन्हें सदा के लिए व्यसनी बना देता है ।
- व्यावसायिक समायोजन से सम्बन्धित समस्याकिशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जहाँ किशोर अपने भविष्य के विषय में कुछ परियोजना बनाने के लिए सक्षम हो जाते हैं। वह भविष्य में कौन-सा व्यवसाय चुनेगा, इस पर अक्सर वह विचार करता रहता है। ऐसे में यदि वह देखता है कि अनेक वयस्क अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् भी किसी अच्छे व्यवसाय का चुनाव करने में असमर्थ रहे तो उसमें भी घोर निराशा व कुण्ठा होती है एवं वह विद्रोही हो जाता है तथा समाज व अपने परिवार के लिए एक समस्या बन जाता है।
- आत्महत्या की समस्या – अनेक अध्ययन यह बताते हैं कि किशोरों में आत्महत्या की समस्या भी अत्यन्तं प्रबल होती है। स्मिथ के अध्ययन के अनुसार किशोरों की मृत्यु का दूसरा प्रधान कारण आत्महत्या ही है। किशोरों में अवसाद, प्रिय वस्तु को खो देना, सामाजिक अलगाव, पारिवारिक संघर्ष जैसी समस्याएँ देखने को मिलती हैं। शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने किशोरावस्था की आत्महत्या को इतनी अधिक गम्भीरता से लिया है कि उन्होंने शिक्षकों को ऐसे किशोरों की पहचान करके उनके लिए अलग से कुछ मार्गदर्शन देने की विशेष व्यवस्था पर बल दिया है।
- यौन व्यवहार से सम्बन्धित समस्या – इस अवस्था में यौन व्यवहार से सम्बन्धित समस्या भी अत्यन्त तीव्र एवं तीक्ष्ण होती है। शारीरिक परिपक्वता के कारण उनके यौन अंगों का विकास तो पूर्ण हो जाता है किन्तु उनमें मनोवैज्ञानिक परिपक्वता के अभाव में यौन व्यवहार से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।