कैरोल गिलीगन के लिंग भेद सिद्धान्त एवं ईगले का सामाजिक भूमिका सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए । Explain Carol Gilligan’s Theory of Sex Differences and Eagly’s Social Role Theory.
कोन एवं सिन्हा तथा सिन्हा (Sinha and Sinha, 1969) के अनुसार व्यक्ति समान लिंग के लोगों में वांछित शीलगुण (Desirable Traits) देखने की प्रवृत्ति अधिक रखता है उनके अनुसार पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के प्रत्यक्षीकरण पर मानव जातीय पूर्वधारणा (Ethnic Prejudice) का प्रभाव अधिक पड़ता है। लेकिन कुछ अध्ययनों में प्रत्यक्षीकरण पर यौन का कोई सार्थक प्रभाव नहीं पाया जाता है। टॉल एवं सिन्हा (Tall 1958 and Sinha, 1974) के अनुसार यौन का गहरा सम्बन्ध बुद्धि, आयु तथा आर्थिक सामाजिक स्थिति से है।
हमारे भारतीय समाज में इस लिंग विभेद के आधार पर ही विभिन्नता पाई जाती है भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों की तुलना में निम्न है। जितनी स्वतन्त्रता या सुविधाएँ पुरुषों को प्राप्त है उतनी स्त्रियों को उपलब्ध नहीं हैं या जो प्रतिष्ठा परिवार के मुखिया को प्राप्त है वह परिवार की गृहस्वामिनी को नहीं है। यह असमानता परिवार के स्वरूप पर भी निर्भर करती है। यदि परिवार मातृसत्तात्मक है तो ऐसी स्थिति में स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में थोड़ा अधिक अधिकार प्राप्त होता है। लिंग भेद सिद्धान्त के विषय में निम्नलिखित समाजशास्त्रियों ने अपने सिद्धान्त प्रस्तुत किए हैं
- लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा अशाब्दिक सूचनाएँ भेजने तथा ग्रहण अच्छी तरह से करती है।
- लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा समूह दबाव ज्यादा बेहतरी से महसूस करती हैं।
- लड़कियाँ मित्रतापूर्वक व्यवहार अच्छी तरह से करती हैं तथा दूसरे छोटे समूह के सदस्यों के साथ भी अच्छा. महसूस करती हैं।
- लड़के अपने कार्य स्थल समूह में अनुशासित रूप में कार्य केन्द्रित होते हैं।
- सम्पूर्ण स्त्री समूह पुरुष समूहों की अपेक्षा अच्छा प्रदर्शन करती हैं।
- आदमी या लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा नेतृत्व शैली का गुण अधिक पाया जाता है।
- किसी अजनबी से छोटी सी मुलाकात होने पर भी उसकी सहायता कर देते हैं जबकि लड़कियाँ ऐसा नहीं करती हैं।
- लड़के लड़कियों की अपेक्षा दूसरों पर अधिक आक्रमकता का व्यवहार करते हैं ।
- लड़कियाँ लड़कों की अपेक्षा अधिक सजीवता से जीवन सन्तुष्टि महसूस करती हैं।
यह सिद्धान्त पूर्णता सामाजिक मनोविज्ञान पर आधारित है जोकि लिंग विभेद तथा समानता दोनों को ही सामाजिक व्यवहार के परिप्रेक्ष्य में समझाने की कोशिश करती है तथा इनका मानना है कि स्त्री पुरुष दोनों के ही विभेद तथा सभेद (Similarities) स्त्री तथा पुरुष दोनों में ही अलग-अलग दिखाई देते है प्रारम्भ से ही देखा गया कि स्त्री घर में बच्चों की देखभाल तथा खाना बनाती है जबकि पुरुष उनके लिए रोटी का इन्तजाम करता है। इसी तरह से देखा गया है कि पुरुष व स्त्री के कार्य स्थल भी अलग बँटे हैं। स्त्री ज्यादातर नर्सिंग व शिक्षण की जॉब करती हैं जबकि निर्माण और इन्जीनियरिंग दोनों ही कार्य क्षेत्र पुरुषों के हैं।
कैरोल गिलिगन ने अपनी पुस्तक “इन ए डिफरेन्ट वॉयस’ (In a Different Voice) में बताया कि महिलाओं में प्रकृति सम्बन्धित गुण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जैसे- प्यार, दुलार देखभाल आदि, कैरोल गिलिगन का सिद्धान्त कोहलबर्ग के सिद्धान्त को चुनौती मानते हुए अपनी नई खोजों का प्रारूप दिया। कोहलबर्ग ने लड़कियों के नैतिक विकास में विकास की तीन अवस्थाओं को माना जबकि लड़कों में किशोरावस्था को उत्तरदायी माना है। गिलिगन महोदय का कहना है कि ये कारक लिंग विभेद उत्पन्न करते हैं। स्त्री पुरुष की आवाज में अन्तर होता है तथा पुरुष पदानुक्रमिक अनुसार सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं तथा उनमें सही नैतिक मूल्यों का चयन करते हैं। जबकि लड़कियों में ये गुण अन्तर वैयक्तिक (Interpersonal) अधिक होते हैं इस हेतु उन्होंने मनोविश्लेषणात्मक दृष्टिकोण का अनुगमन किया कि बालक को प्रारम्भिक दुलार स्त्री से ही प्राप्त होता है उसके द्वारा ही बालक में प्रेम दुलार, स्नेह, जैसे- मानवीय गुणों का संचार होता है तथा उनका मानना है कि जब बालक व बालिका वयस्क होते है जहाँ लड़के इस प्रक्रिया में माँ का अनुगमन नहीं करते वही लड़कियाँ अपना रोल मॉडल माँ को मानती हैं तथा वह सामाजिक रूप से एक-दूसरे से भावनात्मक तथा सम्बन्धपरक तरीके से जुड़ती हैं जबकि लड़कों में ये जुड़ाव भावात्मक रूप से कम होता है। ऐसा इसलिए होता है कि वे माँ के रूप में स्वयं को देखती है जबकि पुरुष माँ से अपने को अलग समझते हैं।
गिलिगन अपने सिद्धान्त में ये भी कहा कि स्त्रियों व पुरुषों द्वारा लेने वाले नैतिक निर्णयों में भी अन्तर पाया जाता है क्योंकि महिलाएँ भावात्मक दबाव में रहती हैं तथा उनके ऊपर सहानुभूति, प्रेम, चिन्ता जैसे- कारकों का प्रभाव पड़ता है। अतः उनमें तार्किकता का अभाव पाया जाता है। वहीं दूसरी तरफ पुरुषों के नैतिक निर्णय लेने में तार्किकता का प्रभाव पड़ता है तथा पुरुष सोच-समझ कर सही व गलत का चयन करते हैं तथा उनके ऊपर भावात्मक रूप से कोई दबाव नहीं होता है। इस तरह से हम देखते हैं कि लिंग विभेद पर कई खोजें हुई जिनके आधार पर इनके विषय में बताया गया यह एक ऐसा विषय है जिसने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। नेल नॉडिग्स (Nel Noddings) ने लिंग विभेद के ऊपर स्कूल में हुए सर्वे के आधार पर बताया कि लड़के तथा लड़कियों की स्कूलिंग में हमें अधिक संवेगों, मनोवृत्तियों, अभिवृत्तियों, सम्बन्धों तथा संवेदनाओं को महत्त्व देना चाहिए। जिसके कारण उनमें देखभाल की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है तथा वे ये चाहते हैं कि ये केवल स्त्री और पुरुषों तक ही सीमित न रहे बल्कि इस प्रवृत्ति को पूरे समाज में फैलाना चाहते हैं। स्कूल को उन्होंने “देखभाल के केन्द्र” कहकर सम्बोधित किया जहाँ शरीर, तथा आत्मा का एकीकरण होता है।
