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कोशिका विज्ञान

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कोशिका (Cell)
◆ संसार में सभी जीव छोटे से अमीबा से लेकर विशालकाय हाथी तक छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिलकर बना है।
◆ कोशिका जीवधारियों की रचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई है। यह अर्धपारगम्य झिल्ली (Semipermeable Membrance) से ढकी रहती है।
◆ कोशिका के अध्ययन विज्ञान को Cytology कहा जाता है।
◆ कोशिका शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अंग्रेज वैज्ञानिक राबर्ट हुक ने (Robert Hooke) 1665 में किया था। उन्होंने बोतल की कार्क के आधार पर मधुमक्खी जैसे छत्ते देखे और इसे कोशिका (Cell) का नाम दिया। राबर्ट हुक का अध्ययन उनकी पुस्तक माइक्रोग्राफिया (Micrographia) में प्रकाशित हुआ।
◆ सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग के अंडे (Ostrich Egg) की कोशिका है।
◆ सबसे छोटी कोशिका जीवाणु माइकोप्लाज्म गैलिसेप्टिकमा (Mycoplasm Gallisepticuma) की है।
◆ सबसे लंबी कोशिका तंत्रिका तंत्र की कोशिका है।
◆ 1838-39 ई. में वनस्पति शास्त्री श्लाइडेन ( Schleiden) और जन्तु विज्ञानी श्वान ( Schwann) ने कोशिका का सिद्धान्त (Cell Theory) प्रस्तुत किया। कोशिका सिद्धांत की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं –
(i) प्रत्येक जीव की उत्पत्ति एक कोशिका से होती है।
(ii) प्रत्येक जीव का शरीर एक या अनेक कोशिकाओं का बना होता है।
(iii) प्रत्येक कोशिका एक स्वाधीन इकाई है, तथापि सभी कोशिकाएँ मिलकर काम करती हैं जिसके फलस्वरूप एक जीव का निर्माण होता है।
(iv) कोशिका का निर्माण जिस क्रिया से होता है, उसमें केन्द्रक (Nucleus) मुख्य अभिकर्ता (Creator) होता है।
जीवद्रव्य (Protoplasm )
◆ जीवद्रव्य का नामकरण पुरकिंजे (Prkinje) द्वारा 1837 ई. में किया गया।
◆ यह एक तरल गाढ़ा रंगहीन, पारभासी, लसलसा, वजनयुक्त पदार्थ है, जीव की सारी जैविक क्रियाएँ इसी के द्वारा होती है।
◆ हेक्सले (Huxley) के अनुसार जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार है।
◆ जीवद्रव्य दो भागों में बँटा होता है –
(i) कोशिका द्रव्य ( Cytoplasm ) : यह कोशिका में केन्द्रक एवं कोशिका झिल्ली के बीच रहता है।
(ii) केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm ) : यह कोशिका में केन्द्रक के अंदर रहता है।
◆ जीवद्रव्य का 99% भाग निम्नलिखित चार तत्त्वों से मिलकर बना होता है- (a) ऑक्सीजन (76%), (b) कार्बन ( 10.5%), (c) हाइड्रोजन ( 10% ) (d) नाइट्रोजन (2.5% ) ।
◆ जीवद्रव्य का लगभग 80% भाग जल होता है।
◆ जीवद्रव्य में अकार्बनिक एवं कार्बनिक यौगिकों का अनुपात 81:19 का होता है।
कोशिका के प्रकार (Types of Cell)
◆ रचना के आधार पर कोशिकाएँ दो तरह की होती हैं –
         1. प्रोकैरियोटिक कोशिका (Procaryotic Cells)
         2. यूकैरियोटिक कोशिका (Eucaryotic Cells)
1. प्रोकैरियोटिक कोशिका (Procaryotic Cells)
◆ इन कोशिकाओं में हिस्टोन प्रोटीन नहीं होता है जिसके कारण क्रोमैटिन नहीं बन पाता है। केवल DNA का सूत्र ही गुणसूत्र के रूप में पड़ा रहता है, अन्य कोई आवरण इसे घेरे नहीं रहता है। अतः केन्द्रक नाम की कोई विकसित कोशिकांग इसमें नहीं होता है। जीवाणुओं एवं नील हरित शैवालों में ऐसी ही कोशिकाएँ मिलती हैं।
2. यूकैरियोटिक कोशिका (Eucaryotic Cells)
◆ इन कोशिकाओं में दोहरी झिल्ली के आवरण से घिरा सुस्पष्ट केन्द्रक पाया जाता है, जिसमें DNA एवं हिस्टोन प्रोटीन से संयुक्त होने वे बनी क्रोमैटिन तथा इसके अलावा केन्द्रिका (Nucleoulus) होते हैं।
प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक कोशिका में मुख्य अन्तर
विशेषता/अंगक प्रोकैरियोटिक यूकैरियोटिक
कोशिका भित्ति प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट की बनी होती है। सैल्यूलोज की बनी होती है।
माइटोकॉन्ड्रिया अनुपस्थित होता है। उपस्थित होता है।
इंडोप्लाज्मिक रेटीकुलम अनुपस्थित होता है। उपस्थित होता है।
राइबोसोम 70s प्रकार के होते हैं। 80s प्रकार के होते हैं।
गॉल्जीकाय अनुपस्थित होते हैं। उपस्थित होते हैं।
केन्द्रक झिल्ली अनुपस्थित होती है। उपस्थित होती हैं।
लाइसोसोम अनुपस्थित होते हैं। उपस्थित होते हैं।
डीएनए एकल सूत्र के रूप में। पूर्ण विकसित एवं दोहरे सूत्र के रूप में।
कशाभिका केवल एक तंतु होता है। कुल 11 तंतु होते हैं।
केन्द्रिका अनुपस्थित होती है। उपस्थित होता है।
सेन्ट्रियोल अनुपस्थित होता है। उपस्थित होता है।
श्वसन प्लाज्मा झिल्ली द्वारा होता है। माइटोकॉन्ड्रिया द्वारा होता है।
लिंग प्रजनन नहीं पाया जाता है। पाया जाता है।
प्रकाश संश्लेषण थायलेकाइड में होता है। क्लोरोप्लास्ट में होता है।
कोशिका विभाजन अर्द्धसूत्री प्रकार का होता है। अर्द्धसूत्री या समसूत्री प्रकार का होता है।
कोशिका के मुख्य भाग (Main Parts of a Cell)
1. कोशिका भित्ति (Cell wall) : (i) यह केवल पादप कोशिका में पाया जाता है। (ii) यह सेलुलोज का बना होता है। (iii) यह कोशिका की निश्चित आकृति एवं आकार बनाये रखने में सहायक होता है।
2. कोशिका झिल्ली (Cell Membrance) : कोशिका के सभी अवयव एक पतली झिल्ली के द्वारा घिरे रहते हैं। इस झिल्ली को कोशिका झिल्ली कहते हैं। यह अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semipermeable Membrance) होती है। इसका मुख्य कार्य कोशिका के अंदर जाने वाले एवं अंदर से बाहर आने वाले पदार्थों का निर्धारण करना है।
3. माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) : इसकी खोज अल्टमैन (Altman) ने 1886 में की थी। यह कोशिका का श्वसन स्थल है। कोशिका में इसकी संख्या निश्चित नहीं होती है। ऊर्जायुक्त कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण (Oxidation) माइटोकॉन्ड्रिया में होता है, जिससे काफी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है। इसीलिए माइटोकॉन्ड्रिया को कोशिका का शक्ति केन्द्र (Power House of Cell) कहते हैं ।
4. लवक (Plastid) : यह केवल पादप कोशिका में पाये जाते हैं। यह तीन प्रकार के होते हैं
(i) हरित लवक (Chloroplast) यह हरा रंग का होता है, क्योंकि इसके अन्दर एक हरे रंग का पदार्थ पर्णरहित होता है। इसी की सहायता से पौधा प्रकाश-संश्लेषण करता है और भोजन बनता है, इसलिए हरित लवक को पादप कोशिका की रसोई कहते हैं। नोट: पत्तियों का रंग पीला उनमें कैरोटिन के निर्माण होने के कारण होता है।
(ii) अवणी लवक (Leucoplast) यह रंगहीन लवक है। यह पौधे के उन भागों की कोशिकाओं में पाया जाता है, जो सूर्य के प्रकाश से वंचित है, जैसे कि जड़ों में, भूमिगत तनों आदि में ये भोज्य पदार्थों का संग्रह करने वाला लवक है।
(iii) वर्णी लवक (Chromoplsat) ये रंगीन लवक होते हैं, जो प्रायः लाल, पीले, नारंगी रंग के होते हैं। ये पौधे के रंगीन भाग जैसे पुष्प, फलभित्ति, बीज आदि में पाये जाते हैं। वर्णी लवक के अन्य उदाहरण: टमाटर में लाइकोपेन (Lycopene), गाजर में केरोटीन (Carotene) एवं चुकंदर में बीटानिन ( Betanin)
5. अन्तः व्रव्यी लवक (Endoplasmic Reticulum) : यह कोशिका के अन्तः काल के रूप में कार्य करता है। प्रोटीन संश्लेषण करने वाले राइबोसोम इसी पर जमे रहते हैं।
6. गोल्गीकाय ( Golgibody) : इसे डिक्टियोसोम (Dictyosome) भी कहते हैं। इसकी खोज इटली के वैज्ञानिक कैमिलो गोल्गी ने 1898 ई. में की थी। इसीलिए इसे गोल्गीबाडी कहते हैं। इसका मुख्य कार्य कोशिका भित्ति और Cell Plate का निर्माण करना है।
7. लाइसोसोम (Lysosome) : इसकी खोज डी डूवे (De Duve) नामक वैज्ञानिक ने की थी । सूक्ष्म, गोल, इकहरी झिल्ली से घिरी थैली जैसी इस रचना का सबसे प्रमुख बाहरी पदार्थों का भक्षण एवं पाचन करना है। इसमें 24 प्रकार के एन्जाइम पाये जाते हैं। यदि पूर्ण क्षतिग्रस्त या मृत कोशिकाओं को नष्ट करने की आवश्यकता हो तो ये अपनी झिल्ली तोड़कर एक ही बार में अपना सारा द्रव्य मुक्त कर देते हैं। चूँकि इस क्रिया में ये स्वयं भी नष्ट हो जाते हैं, इसलिए इनको आत्महत्या की थैली (Suicide Bags) भी कहते हैं।
8. राइबोसोम (Ribosome) : इसकी खोज पैलेड ने की थी। यह राइबोन्यूक्लिक ऐसिड (Ribonuclic Acid RNA) नामक अम्ल व प्रोटीन की बनी होती है। यह प्रोटीन संश्लेषण के लिए उपर्युक्त स्थान प्रदान करती है अर्थात् यह प्रोटीन का उत्पादन स्थल है। इसीलिए इसे प्रोटीन की फैक्ट्री (Factory of Protein) भी कहा जाता है।
9. तारककाय (Centrosome) : इसकी खोज बोबेरी ने की थी। यह केवल जन्तु कोशिकाओं में पाया जाता है। तारककाय के अंदर एक या दो कण जैसी रचना होती है, जिसे सेण्ट्रियोल कहते हैं। समसूत्री विभाजन में यह ध्रुव का निर्माण करता है।
10. रसधानी (Vacuoles) : यह कोशिका की निर्जीव रचना है। इसमें तरल पदार्थ भरी होती है। जन्तु कोशिकाओं में यह अनेक व बहुत छोटी होती है, परन्तु पादप कोशिका में प्राय: बहुत बड़ी और केन्द्र में स्थित होती है ।
11. केन्द्रक (Nucleus) : केन्द्रक कोशिका का मुख्य भाग होता है। केन्द्रक में डीएनए (DNA – Deoxy Ribonucleic Acid), आरएनए (RNA- Ribonucleic Acid) तथा गुणसूत्र (Chromosome) पाये जाते हैं। इसलिए केन्द्रक का आनुवंशिकी में महत्त्वपूर्ण स्थान है।
12. डीएनए (DNA) : डीएनए में न्यूक्लियोटाइड (Nucleotide) इकाइयों का बहुलक (Polymer) होता है जो Polynucleotide चेन बनाता है। डीएनए का संगठन इस प्रकार है
◆ क्षार (Base) : DNA में उपस्थित क्षार चार प्रकार के होते हैं- ऐडीनीन (Adenine = A), आनीन (Guanin = G), थायमिन (Thymine = T) तथा साइटोसीन (Cytosine = C) । DNA अणु संख्या के आधार पर ऐडीनीन सदैव थायमिन से एवं साइटोसीन सदैव गुआनीन से जुड़ा रहता है। ऐडीनीन व थायमिन के बीच दो हाइड्रोजन आबंध तथा साइटोसीन व गुआनीन के बीच तीन हाइड्रोजन आबंध होते हैं। [A = T, G = C]।
◆ डीएनए का आकार: 1953 ई. में वाटसन एवं क्रिक ने DNA का द्विकुंडिलत मॉडल (Double Helix Model) प्रतिपादित किया। इस काम के लिए उन्हें 1962 ई. में नोबेल पुरस्कार मिला।
◆ डीएनए (DNA) का कार्य : यह सभी आनुवंशिकी क्रियाओं को संचालित करता है। यह प्रोटीन संश्लेषण को नियंत्रित करता है।
◆ आरएनए (RNA) का निर्माण : DNA से ही RNA का संश्लेषण होता है। इस क्रिया में DNA की एक श्रृंखला पर RNA की न्यूक्लियोटाइड आकार जुड़ जाती है। इस प्रकार एक अस्थायी DNA-RNA संकर का निर्माण होता है। इसमें नाइट्रोजन बेस थायमिन के स्थान पर यूरेसिल होता है। कुछ समय बाद RNA की समजात शृंखला अलग हो जाती है। RNA तीन प्रकार के होते हैं –
(i) r- RNA (Ribosomal RNA) : ये राइबोसोम पर लगे रहते हैं और प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करते हैं।
(ii) t-RNA (Transfer RNA) : यह प्रोटीन संश्लेषण में विभिन्न प्रकार के अमीन अम्लों को राइबोसोम पर लाते हैं, जहाँ पर प्रोटीन बनता है।
नोट : प्रोटीन बनने की अंतिम क्रिया को Translation कहते हैं।
(iii) m-RNA (Messenger RNA) : यह केन्द्रक के बाहर विभिन्न आदेश लेकर अमीन अम्लों को चुनने में मदद करता है।
DNA एवं RNA में मुख्य अन्तर
क्र. DNA क्र. RNA
1. इसमें डीऑक्सीराइबोज शर्करा होती है। 1. इसमें शर्करा राइबोज होती है।
2. इसमें बेस एडिनीन, ग्वानीन, थायमिन एवं साइटोसीन होते हैं। 2. इसमें बेस थायमिन की जगह यूरेसिल आ जाता है।
3. यह मुख्यतः केन्द्रक में पाया जाता है। 3. यह केन्द्रक एवं कोशिका द्रव्य दोनों में पाया जाता है।
पादप और जन्तु कोशिका में अन्तर
क्र.सं. पादप कोशिका (Plant Cell) क्र.सं. जन्तु कोशिका (Animal Cell)
1. पौधों में विकसित त्रिस्तरीय कोशिका भित्ति (Cellwall) पायी जाती है, जो मुख्य रूप से सेलूलोज (Cellulose ) की बनी होती है। 1. जन्तु कोशिका में कोशिका भित्ति नहीं पायी जाती बल्कि कोशिका जीवद्रव्य झिल्ली (Plasma Membrane) से ढकी रहती है।
2. कुछ पौधों को छोड़कर [जैसे- कवक  (Fungi), जीवाणु (Baceria)] बाकी सभी पौधों में पर्णहरित Chlorophill पाया जाता है। 2. जन्तुओं में वर्णहरित नहीं पाया जाता है।
3. वनस्पति कोशिका में सेन्ट्रोसोम (Centrosome) नहीं पायी जाती है। 3. जन्तु कोशिका में केन्द्रक के पास ताराकार सेन्ट्रोसोम रचना होती है जो कोशिका विभाजन में कार्य करती है।
4. पौधों में प्राय: लाइसोसोम (Lysosome) नहीं पायी जाती है। 4. लाइसोसोम जन्तु कोशिका में मिलती है।
5. पादप कोशिका में रसधानी (Vacuole) या रिक्तिका होती है। 5. जन्तु कोशिका में रिक्तिका नहीं मिलती है।
6. अधिकांश पादपों की कोशिकाओं में तारकेन्द्र (Centrioles) नहीं होते हैं। 6. अधिकांश जन्तु कोशिकाओं में तारकेन्द्र (Centrioles) होते हैं।
कोशिका विभाजन (Cell Division)
◆ कोशिका विभाजन को सर्वप्रथम 1855 ई. में विरचाऊ नामक वैज्ञानिक ने देखा।
◆ कोशिका विभाजन मुख्यत: तीन प्रकार से होते हैं- 1. असूत्री विभाजन (Amitosis) 2. समसूत्री विभाजन (Mitosis) एवं 3 अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis) ।
1. असूत्री विभाजन (Amitosis) : यह विभाजन अविकसित कोशिकाओं जैसे जीवाणु, नीलहरित शैवाल, यीस्ट, अमीबा तथा प्रोटोजोआ में होता है।
2. समसूत्री विभाजन (Mitosis) : समसूत्री विभाजन की प्रक्रिया को जन्तु कोशिकाओं में सबसे पहले जर्मनी के जीव वैज्ञानिक वाल्थेर फ्लेमिंग ने 1879 ई. में देखा। उन्होंने ही 1882 ई. में इस प्रक्रिया को माइटोसिस (Mitosis) नाम दिया। यह विभाजन कायिक कोशिका (Samatic Cell) में होता है।
◆ अध्ययन की सुविधा के लिए समसूत्री विभाजन को पाँच अवस्थाओं में बाँटा गया है-
(i) विभाजनान्तराल अवस्था (Interphase)
(ii) पूर्वावस्था (Prophase)
(iii) मध्यावस्था (Metaphase
(iv) पश्चावस्था (Anaphase)
(v) अंत्यावस्था (Telophase)
3. अर्द्धसूत्री विभाजन ( Meiosis) : फार्मर तथा मुरे (Farmer and Moore-1905) ने कोशिकाओं में अर्द्धसूत्री विभाजन को Meiosis नाम दिया। अर्द्धसूत्री विभाजन की खोज सर्वप्रथम वीजमैन (Weisman) ने की थी, लेकिन इसका सर्वप्रथम विस्तृत अध्ययन स्ट्रासवर्ग ने 1888 ई. में किया। यह विभाजन केवल लिंगी जनन (Sexual Reproduction) करने वाले जीवों में होता है। अर्द्धसूत्री कोशिका विभाजन दो चरणों में पूरा होता है – (i) अर्द्धसूत्री-I (ii) अर्द्धसूत्री II ।
अर्द्धसूत्री – I
◆ इसमें गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, इसलिए इसे न्यूनकारी विभाजन (Reduction Division) भी कहते हैं। इस विभाजन में चार अवस्थाएँ होती हैं- (i) प्रोफेज-I (ii) मेटाफेज-I (iii) एनाफेज-I एवं (iv) टेलोफेज-I।
◆ प्रोफेज-I सबसे लंबी अवस्था होती है, जो कि पाँच उप-अवस्थाओं में पूरी होती है- (a ) लेप्टोटीन (Leptotene) (b) जाइगोटीन (Zygotene) (c) पैकीटीन (Pachytene) (d) डिप्लोटीन (Diplotene) (e) डायकाइनेसिस (Diakinesis) ।
◆ जाइगोटीन (Zygotene) अवस्था में गुणसूत्रों के जोड़े बन जाते हैं। इस क्रिया को अंतर्ग्रथन (Synapsis) कहते हैं।
◆ डिप्लोटीन (Diplotene) उप- अवस्था में गुणसूत्र कुछ बिन्दुओं पर आपस में जुड़े होते हैं। इन बिन्दुओं को काइएज्मा (Chiasma) कहते हैं। यहाँ पर समजात गुणसूत्रों के बीच क्रोमैटिड खण्डों का आदान-प्रदान होता है। इस घटना को क्रोसिंग ओवर (Crossing Over) कहते हैं।
अर्द्धसूत्री-II
◆ यह समसूत्री विभाजन की तरह समान विभाजन (Equatational Division) होता है।
◆ इस विभाजन में एक जनक कोशिका (Parent Cell) से चार संतति कोशिका (Daughter Cell) का निर्माण होता है।
समसूत्री एवं अर्द्धसूत्री विभाजन में अन्तर
क्र.सं. समसूत्री विभाजन क्र.सं. अर्द्धसूत्री विभाजन
1. यह विभाजन कायिक (Somatic) कोशिका में होता है। 1. यह विभाजन जनन कोशिकाओं में होता है।
2. इस विभाजन में कम समय लगता है। 2. इस विभाजन में अधिक समय लगता है।
3. इस विभाजन के द्वारा एक कोशिका से दो कोशिकाएँ बनती हैं। 3. इस विभाजन में एक कोशिका से चार कोशिकाओं का निर्माण होता है।
4. संतति कोशिका में जनक जैसी ही गुणसूत्र होने के कारण आनुवंशिक विविधिता नहीं होती। 4. संतति कोशिकाओं में जनकों से भिन्न गुणसूत्र होने के कारण आनुवंशिक विविधिता होती है।
5. इसमें गुणसूत्रों के आनुवंशिक पदार्थों में आदान-प्रदान (Crossing Over) नहीं होता है। 5. इस विभाजन में गुणसूत्रों के बीच आनुवंशिक पदार्थों का आदान-प्रदान (Crossing Over) होता है।
6. इसकी प्रोफेज अवस्था छोटी होती है। 6. इसकी प्रोफेज अवस्था लम्बी होती है।

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