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गुरुत्वाकर्षण क्या है | गुरुत्वाकर्षण बल क्या है | गुरुत्वाकर्षण किसे कहते हैं

गुरुत्वाकर्षण क्या है | गुरुत्वाकर्षण बल क्या है | गुरुत्वाकर्षण किसे कहते हैं

ब्रहांड में पदार्थ का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस सर्वव्यापी आकर्षण बल को ‘गुरुत्वाकर्षण बल’ कहते है ।”

गुरुत्वाकर्षण
◆ न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton’s Law of Gravitation) : इस नियम के अनुसार ‘पदार्थ के दो कणों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल कणों के द्रव्यमानों में गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।’
माना दो कण जिनके द्रव्यमान M¹ व  M² है, एक दूसरे से R दूरी पर स्थित हैं, तो न्यूटन के नियम के अनुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण बल,
होता है। जहाँ G एक नियतांक है, जिसे सार्वत्रिक नियतांक (Universal Constant) कहते हैं।
इसका मान 6.67 10‾¹¹ न्यूटन मीटर² / किग्रा² होता है।
◆  गुरुत्व (Gravity) : न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के अनुसार दो पिण्डों के बीच एक आकर्षण बल कार्य करता है। यदि इनमें से एक पिण्ड हो तो इस आकर्षण बल को ‘गुरुत्व‘ कहते हैं। अर्थात् गुरुत्व वह आकर्षण बल है जिससे पृथ्वी किसी वस्तु को अपने केन्द्र की ओर खींचती है। इस बल के कारण जो त्वरण उत्पन्न होता है, उसे गुरुत्वजनित त्वरण (g) कहते हैं, जिसका मान 9.8m./s² होता है। गुरुत्वजनित त्वरण (g) वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है।
भिन्न-भिन्न स्थानों पर ‘g’ का मान
(i) पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर ‘g’ का मान घटता है।
(ii) भूमध्य रेखा (Equator) पर ‘g’ का मान सबसे कम होता है।
(iii) ध्रुवों (Pols) पर ‘g’ का मान सबसे अधिक होता है।
(iv) पृथ्वी के घूर्णन गति बढ़ने पर ‘g’ का मान कम हो जाता है।
(v) पृथ्वी के घूर्णन गति घटने पर ‘g’ का मान बढ़ जाता है।
(vi) पृथ्वी के केन्द्र पर ‘g’ का मान शून्य होता है।
गुरुत्व केन्द्र (Centre of Gravity) : किसी वस्तु का गुरुत्व केन्द्र वह बिन्दु है, जहाँ वस्तु का समस्त भार कार्य करता है। किसी वस्तु का भार गुरुत्व केन्द्र से ठीक नीचे की ओर कार्यरत रहता है। किसी पिण्ड का गुरुत्व केन्द्र तब तक स्थिर रहता है। जब तक उसका आकार नहीं बदलता है।
◆ लिफ्ट में पिंड का भार (Weight of a Body in Lift) :
(i) जब लिफ्ट ऊपर की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।
(ii) जब लिफ्ट नीचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है।
(iii) जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे गति करती है तो लिफ्ट पिण्ड के भार में कोई परिवर्तन प्रतीत नहीं होता है।
(iv) यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोर टूट जाये तो वह मुक्त पिंड की भाँति नीचे गिरती है। ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिंड का भार शून्य होता है। यही भारहीनता की स्थिति होती है।
(v) यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण से अधिक हो तो लिफ्ट में स्थित पिंड उसकी फर्श से उठकर उसकी छत से जा लगेगा।
ग्रहों की गति से सम्बद्ध केप्लर का नियम
(i) प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिन्दु पर स्थित होता है।
(ii) प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग (Areal Velocity) नियम रहता है। इसका प्रभाव यह होता है किm जब ग्रह सूर्य के निकट होता है तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है तो उसका वेग कम हो जाता है।
(iii) सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल (T) कहते हैं। परिक्रमण काल का वर्ग (T²) ग्रह की सूर्य से औसत दूर (r) के धन (r³) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात् T² ∝ r³
उपग्रह (Satellite)
◆ वे आकाशकीय पिंड जो ग्रहों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, उपग्रह कहलाते हैं। जैसे- चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है।
उपग्रह का कक्षीय चाल (Orbital Speed of a Satellite)
(i) उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करती है। उपग्रह पृथ्वी तल से जितना अधिक दूर होगा, उतनी ही उसकी चाल कम होगी।
(ii) उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है। एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी।
(iii) पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8 किमी/सेकंड
होता है।
उपग्रह का परिक्रमण काल (Period of Revolution of Satellite)
◆ उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं। परिक्रमण काल से संबद्ध मुख्य बातें निम्न हैं-
(i) उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना अधिक दूर होता है, उसका परिक्रमण काल उतना ही अधिक होता है।
(ii) उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है।
(iii) पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह का परिक्रमण काल 1 घंटा 24 मिनट होता है।
(iv) परिक्रमण काल को निम्न सूत्र से व्यक्त करते हैं-
परिक्रमण काल = कक्षा की परिधि /  कक्षीय चाल
कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellite)
◆ ये उपग्रह मानव निर्मित होते हैं। यदि हम किसी पिंड को पृथ्वी तल के कुछ सौ किलोमीटर ऊपर आकाश में भेजकर उसे लगभग 8 किलोमीटर/सेकंड का क्षैतिज वेग दे दें तो वह पिंड पृथ्वी के चारो ओर एक निश्चित कक्षा में परिक्रमण करता रहता है तथा इसका परिक्रमण काल लगभग 84 मिनट होता है। इसे ही हम कृत्रिम उपग्रह कहते हैं। कृत्रिम उपग्रह दो प्रकार के
होते हैं- कक्षीय उपग्रह एवं भू-स्थिर उपग्रह।
(i) कक्षीय उपग्रह (Orbital Satellite) : पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करते रहने वाले उपग्रह कक्षीय उपग्रह कहलाते हैं।
(ii) भू-स्थिर उपग्रह (Geo-Stationary Satellite) : ये उपग्रह पृथ्वी के किसी स्थान के सापेक्ष स्थिर रहते हैं, इसीलिए इन्हें भू-स्थिर उपग्रह कहा जाता है। भू-स्थिर उपग्रहों की कक्षा पृथ्वी के विषुवतीय तल (Equatrial Line) में होती है तथा इनका पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमण काल पृथ्वी के अपने अक्ष के परितः घूर्णन काल के बराबर अर्थात् 24 घंटे होता है। ऐसे उपग्रहों की पृथ्वी तल से ऊँचाई लगभग 36000 किमी होती है। भू-स्थिर उपग्रह संचार व्यवस्था के लिए अत्यधिक उपयोगी होते हैं, इसीलिए इन्हें संचार उपग्रह भी कहा जाता है। इन उपग्रहों का उपयोग टेलीफोन, टेलीग्राफ एवं टेलीविजन सिग्नलों के संचार में किया जाता है।
पलायन वेग (Escape Velocity)
◆ पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह पृथ्वी के गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है व वापस पृथ्वी पर नहीं आता। पृथ्वी के लिए पलायन वेग का मान 11.2Km/s है अर्थात् पृथ्वी तल से किसी वस्तु को 11.2Km/s या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाये तो वस्तु फिर पृथ्वी तल पर वापस नहीं आयेगी।

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