जैविक आत्मन पर आधारित सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए | Explain the theories based on the Biological Spirit.
प्रश्न – जैविक आत्मन पर आधारित सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए | Explain the theories based on the Biological Spirit.
उत्तर- जैविक आत्मन् पर आधारित सिद्धान्त (Theories Based on the Biological Spirit)
- प्रेषण का सिद्धान्त (Principle of Transmission ) – ये (सामाजीकरण) सांस्कृतिक प्रतिरूपों ( Cultural Patterns) के प्रेषण के नियम का अनुसरण करता है। प्रत्येक समाज में कुछ व्यवहार प्रतिरूप ऐसे हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं बच्चे अपने माता-पिता तथा रिश्तेदारों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे व्यवहारों को सीख लेता है। जैसेभील जाति के बच्चे अपनी संस्कृति के मूल्यों, मानदण्डों, विश्वासों, लोकोक्तियों को सहज रूप में सीख लेते हैं वहारों जिसके कारण गैर आदिवासी संस्कृति के बच्चे के से उनके व्यवहार भिन्न हो जाते हैं। रोजैनवर्ग एवं. टरनर (Rosenberg and Turner, 1981) ने समाजीकरण के इस नियम पर बल दिया कि समाजीकरण में सांस्कृतिक प्रतिरूपों का प्रेषण इतना महत्त्वपूर्ण है कि विद्वानों की एक बड़ी संख्या ने प्रेषक प्रक्रिया को ही समाजीकरण प्रक्रिया माना है ।
- प्रबलन का सिद्धान्त (Principle of Reinforcement) – समाजीकरण की प्रक्रिया विभिन्न प्रकार के प्रबलन या पुनर्बलन पर निर्भर करती है। प्रबलन का तात्पर्य पुरस्कार एवं दण्ड से है। पुरस्कार का रूप शाब्दिक तथा अशाब्दिक दोनों होता है। इसी प्रकार दण्ड भी शाब्दिक व अशाब्दिक दोनों होता है। पुरस्कार से सामाजिक व्यवहारों को सीखने तथा दण्ड से असामाजिक व्यवहारों से बचने की प्रेरणा मिलती है। इस प्रकार पुरस्कार प्रत्यक्ष रूप से तथा दण्ड अप्रत्यक्ष रूप से सहायक होते हैं। छोटे बच्चों के समाजीकरण में भौतिक पुरस्कार या शारीरिक दण्ड की भूमिका अधिक प्रधान रहती है जबकि बड़ों में समाजीकरण में मौखिक पुरस्कार का अधिक महत्त्व होता है। इसके अलावा समाजीकरण प्रतिनिधिक प्रबलन (Vicarious reinforcement) की भी भूमिका है। प्रतिनिधिक प्रबलन का अर्थ है कि व्यक्ति दूसरों को जिन व्यवहारों के लिए पुरस्कार पाते देखता है उन्हें सीख लेता है तथा जिन व्यवहारों के लिए दण्ड पाते देखता है, उन्हें नहीं सीखता । बन्दुरा (1977) के अनुसार, यह प्रबलन बाहरी दबाव का परिणाम नहीं होता है बल्कि आत्मचेतना का परिणाम होता है। में
- प्रतिरूपण का सिद्धान्त (Principle of Modelling), समाजीकरण का एक आधार प्रतिरूपण है। प्रतिरूपण का अर्थ यह है कि एक व्यक्ति किसी दूसरे वास्तविक या काल्पनिक व्यक्ति को नमूना या आदर्श मान कर उसके द्वारा होने वाले व्यवहारों को सीख लेता है तथा उसके द्वारा छोड़े गए व्यवहारों को छोड़ देता है। यह सिद्धान्त छोटे बच्चों के समाजीकरण में अधिक महत्त्व रखता है। बन्दुरा (1977) ने बताया कि समाजीकरण में व्यक्ति मूर्त प्रतिरूप के आधार पर व्यवहार करता है जो समाजीकरण का आधार होता है। इस तरह के प्रतिरूप का महत्त्व बड़ों के समाजीकरण में भी होता है। इस अवस्था में सृजनात्मक प्रतिरूपण का भी महत्त्व है। जब व्यक्ति अपने नमूनों से असन्तुष्ट होता है तो वह विभिन्न नमूनों के अपेक्षित पक्षों को एक साथ मिलाकर नए प्रतिरूप का निर्माण करता है और उसे भविष्य में होने वाले अपने व्यवहारों का स्रोत मान लेता है।
- मौखिक निर्देशन का सिद्धान्त (Principle of Verbal Instruction)समाजीकरण अधिकांशतः मौखिक निर्देशन पर निर्भर करता है जटिल व्यवहार को सीखने में ये बहुत सहायक होता है छोटे बच्चों को जब मौखिक निर्देशन दिया जाता है कि उन्हें कैसा व्यवहार करना है व कैसा नहीं, तो उसका समाजीकरण सहज रूप से तथा अधिक सफलता के साथ पूरा होता है। इस तरह के निर्देशन का संचालन माता-पिता, शिक्षक तथा समाज सुधारक आदि के द्वारा होता है।
- पारस्परिकता का सिद्धान्त (Principle of Reciprocity)—समाजीकरण व्यक्ति की मौखिक प्रवृत्तियों तथा सामाजिक माँगों के बीच पारस्परिक प्रतिक्रियाओं का परिणाम है यह एक द्विमार्गी प्रक्रिया है। जिसमें एक ओर व्यक्ति समाज से प्रेरित होता है तथा दूसरी ओर समाज उससे समाज का प्रभाव व्यक्ति पर समाजीकरण के एजेण्ट जैसे- माता-पिता, अभिभावक तथा शिक्षक द्वारा पड़ता है, लेकिन इसके साथ-साथ व्यक्ति भी अपने विचारों एवं , व्यवहारों से इन सभी को प्रभावित करता है यह सिद्धान्त बड़ों के समाजीकरण में अधिक सक्रिय दिखाई देता है।
- अनुपालन का सिद्धान्त (Principle of Conformity)अनुपालन के सिद्धान्त के आधार पर प्राथमिक तथा द्वितीयक समाजीकरण की क्रिया की व्याख्या होती है। प्राथमिक में बालक अपने माता-पिता तथा रिश्तेदारों या अन्य वयस्कों के दबाव के कारण अपनी इच्छा के विरुद्ध परिवार द्वारा स्वीकृत मूल्यों, विश्वासों मानदण्डों आदि के अनुकूल व्यवहार करने तथा प्रतिकूल व्यवहार से बचने के प्रयास करते हैं जिसके कारण प्राथमिक समाजीकरण पूर्णतया सम्भव नहीं हो पाता है इसी प्रकार सामाजिक दबावों के कारण वे अपने समाज के नियमों तथा मानदण्डों के अनुकूल व्यवहार करना सीखते हैं विद्यालय में शिक्षकों के दबावों तथा खेल के मैदान में खेल के नियमों के दबाव के कारण उनका द्वितीयक समाजीकरण ठीक से नहीं हो पाता है। यह सिद्वान्त जीवन भर विसमाजीकरण (De-socialisation) तथा पुर्नसमाजीकरण (Re-socialisation) का मार्गदर्शन करता है।