दृश्य श्रव्य सामग्री का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। दृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रकार आवश्यकता एवं महत्त्व का उललेख कीजिए। Give Meaning and definition of Audio- visual material. Describe types of Audio-visual materials, Importance. and Needs
ऐडगर डेल ने शिक्षण में दृश्य श्रव्य सामग्री के सापेक्षित महत्त्व को अनुभवों के शंकु में बहुत सुन्दर ढंग से प्रदर्शित किया है।
इस शंकु की नोंक अथवा सिरा अथवा अग्र भाग मौखिक सम्प्रेषण को प्रदर्शित करता है। यदि हम शंकु के सिरे से नीचे की ओर जाए तो अनुभव प्रभावी होता जाता है। मौखिक संकेतों की अपेक्षा वास्तविक प्रत्यक्ष अनुभव बहुत प्रभावशील होते हैं। पहले वर्ग में चार शैक्षिक तकनीकी साधन आते हैं। दूसरे में प्रक्षेपी शिक्षण साधन आते हैं। इनका प्रभाव पहले शैक्षिक साधनों में कम होता है। इनके अन्तर्गत मूक चलचित्र फिल्म पट्टियाँ आदि हैं। तीसरे वर्ग में अप्रक्षेपी साधन सम्मिलित हैं। इनका प्रभाव प्रथम दो वर्गों से कम है। इनके अन्तर्गत बुलेटिन बोर्ड, पोस्टर, चार्ट तथा चित्र आदि आते हैं। चौथे वर्ग में मौखिक साधन हैं। इसका इन्द्रियों पर शैक्षिक प्रभाव सबसे कम होता है। ।
- श्रव्य – सहायक-सामग्री-इसके अन्तर्गत वह उपकरण सम्मिलित किए जाते हैं जिनके लिए केवल श्रवणेन्द्रिय का प्रयोग किया जाता है। जैसे- ग्रामोफोन, रेडियो, टेपरिकॉर्डर, लिग्वांफोन आदि ।
- दृश्य – सहायक-सामग्री-इसके अन्तर्गत उन सहायक सामग्रियों को सम्मिलित किया जाता है जिनके प्रयोग में केवल आँखों का प्रयोग किया जाता है। ये वे साधन हैं जिनको कक्षा शिक्षण के दौरान आँखों से देखकर ात्र लाभान्वित होते हैं। जैसे- श्यामपट्ट, चित्र, रेखाचित्र, ग्लोब, चार्ट, ग्राफ, मॉडल, बुलेटिन बोर्ड, स्लाइडें, फिल्म- स्ट्रिप, फ्लेनल बोर्ड, मैजिक लालटेन, चित्र विस्तारक यंत्र, वास्तविक वस्तुएँ आदि ।
- दृश्य – श्रव्य सहायक सामग्री- इसमें वे सहायक सामग्री सम्मिलित की जाती हैं जिनमें श्रवणेन्द्रियों एवं चक्षु- इन्द्रियों दोनों का प्रयोग साथ-साथ जिनको छात्र देखकर एवं सुनकर लाभान्वित होते हैं। जैसे- टेलीविजन, चलचित्र, वी.सी.आर., वीडियों टेलीकान्फ्रेन्सिंग, कम्प्यूटर आदि ।
- इन्द्रिय अनुभवों की प्राप्ति-अधिगम के लिए यह आवश्यक है कि बालकों को पर्याप्त इन्द्रियानुभव प्राप्त हो सके। छोटे बालकों को प्रत्यक्ष अनुभवों की विशेष आवश्यकता है क्योंकि ज्ञानेन्द्रियाँ, सीखने के लिए प्रवेश द्वार मानी जाती हैं। अतः पाठ इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाए कि बालकों को अनेक प्रकार के इन्द्रियानुभव प्राप्त हो सके।
- प्रत्यक्ष अनुभवों का स्थान ग्रहण करना – भूतकाल या दूरवर्ती प्रदेशों का अध्ययन कराते समय हो सकता है कि अपने विद्यर्थियों को प्रत्यक्ष अनुभव देना सम्भव न हो। ऐसे समय पर नई अवधारणाओं, नए तथ्यों, नए चिह्नों को समझने के लिए दृश्य-श्रव्य साधन उनकी सहायता कर सकते हैं और प्रत्यक्ष अनुभवों के स्थान पर हम चित्रों, मॉडलों आदि का प्रयोग बड़े प्रभावपूर्ण ढंग से कर सकते हैं। प्रत्यक्ष अनुभवों की सहायता से प्राप्त किए गए ज्ञान की अपेक्षा कहीं अधिक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
- प्रत्यक्ष अनुभवों के पूरक रूप में दृश्य – श्रव्य साधन ज्ञान-प्राप्ति की दिशा में प्रत्यक्ष अनुभवों के पूरक भी सिद्ध हो सकते हैं। बालक को प्रत्यक्ष अनुभव के पश्चात् इनसे सम्बन्धित कोई फिल्म या चलचित्र दिखाया जा सकता है। ऐसी फिल्म आदि से बालकों को भ्रमण द्वारा प्राप्त ज्ञान में आगे और वृद्धि हो सकती है।
- दृश्य – श्रव्य साधनों द्वारा अभिप्रेरणा – दृश्य-श्रव्य साधन बड़े रोचक व प्रेरणादायक सिद्ध होते हैं। इनसे विषय में स्पष्टता तथा मूर्तता आती है तथा एक प्रकार का नाटकीय प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार ये बालकों का ध्यान केन्द्रित करने तथा उनकी रुचियों को जाग्रत करने के अच्छे साधन हो सकते हैं क्योंकि ये सहायक साधन बालकों की तात्कालिक जिज्ञासा को शान्त करते हैं। अतः आगे अध्ययन करने की प्रेरणा भी देते हैं ।
- पिछड़े बालकों की सहायता- दृश्य-श्रव्य साधन पिछड़े बालकों के लिए अति महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि ऐसे बच्चे पाठ्य पुस्तक से सारी आवश्यक बातें सामान्यतः ग्रहण नहीं कर सकते हैं। अतः ऐसे बालक दृश्य-श्रव्य सामग्री आदि की सहायता से नई बातों को सरलतापूर्वक सीख व ग्रहण कर सकते हैं ।
- सुदृढ़ ज्ञान की प्राप्ति- बालक दृश्य-श्रव्य साधनों के उचित प्रयोग से केवल शीघ्रतापूर्वक ही नहीं सीखते अपितु इस प्रकार सीखी हुई बातें उन्हें देर तक याद भी रहती हैं। जब बालक देखते, सुनते, छूते, चखते एवं सूँघते हैं तो उनके अनुभवों को मूर्त रूप मिलता है और वे काफी सीमा तक स्थायी हो जाते हैं।
- कल्पना व निरीक्षण शक्ति का विकास – चित्र शिक्षण का सर्वोत्तम साधन है। दृश्य-श्रव्य साधन द्वारा जो इन्द्रियानुभव प्रदान करते हैं वे मौखिक छवियों की अपेक्षा कहीं अधिक स्पष्ट व प्रभावपूर्ण होते हैं। अतः इनके प्रयोग से शिक्षण क्रिया स्वाभाविक तथा सरल हो जाती है। दृश्य-श्रव्य साधन कल्पना शक्ति को प्रेरित करते हैं तथा निरीक्षण, विश्लेषण व संश्लेषण शक्ति का विकास करते हैं क्योंकि अनुभवों के विस्तृत आधार पर ही विश्लेषण, तुलना, सामान्यीकरण तथा संश्लेषण की योग्यता पर निर्भर करती हैं।
- अधिगम सार्थकता- मौखिक शिक्षा प्रायः अस्पष्ट तथा असन्तोषप्रद रहती है। अध्यापक कई बार ऐसी अमूर्त बातें कह जाते हैं, जिन्हें छोटे बालक नहीं समझ पाते। ज्ञान से अभिप्राय केवल विभिन्न बातों को जानना ही नहीं है अपितु उन्हें पूरी तरह से समझना भी है। दृश्य-श्रव्य साधनों के प्रयोग से मात्र रूढ़िवादी शिक्षण की औपचारिकता ही समाप्त नहीं होती अपितु इससे कक्षा में प्रयुक्त या दिखाई वस्तु की उपयोगिता भी स्पष्ट हो जाती है।
- विषय-वस्तु को रोचक एवं आकर्षक बनाने में उपयोगी-विद्यार्थियों को नवीन विषय-वस्तु का ज्ञान प्रदान करने के लिए उसे रोचक एवं आकर्षक बनाने हेतु श्रव्य – सामग्री की आवश्यकता होती है। इससे गम्भीर एवं -कठिन विषय-वस्तु को विद्यार्थी आसानी से समझ लेते हैं तथा उसमें रुचि भी लेते हैं ।
- शिक्षण को प्रभावपूर्ण बनाने में सहायक – दृश्य-श्रव्य सामग्री की सहायता से शिक्षण प्रभावशाली होता है और शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति काफी हद तक सम्भव होती है।
- भाषागत् दोषों एवं भ्रमों का निवारण करने हेतु उपयोगी-दृश्य-श्रव्य सामग्री की सहायता से विद्यार्थियों के भाषागत दोषों को दूर किया जा सकता है। साथ ही उनके भ्रमों का निवारण भी इनकी सहायता से किया जाना सम्भव है।
- कक्षा के नीरस वातावरण को रुचिकर बनाने में सहायक-दृश्य – श्रव्य सामग्री की सहायता से विषय-वस्तु को रोचक बनाया जा सकता है तथा विषय में नीरसता का समापन करने में भी सहायक होती है। इससे विद्यार्थी उत्साहित होकर शिक्षण-अधिगम में मन लगाकर ज्ञानार्जन करता है तथा कक्षा का वातावरण और शिक्षण बोझिल व नीरस नहीं रहता।
- पुनर्बलन प्रदान करने में सहायक-दृश्य – श्रव्य सामग्री की सहायता से विद्यार्थी जो कुछ सैद्धान्तिक रूप से सीखते हैं उसे जब उन्हें वास्तविक रूप में दिखाया जाता है या प्रयोगात्मक रूप से सिखाया जाता है तब उन्हें अपने सैद्धान्तिक ज्ञान का मूल्यांकन करने का मौका मिलता है साथ ही शिक्षक के द्वारा मूल्यांकन सरलता से कर लिया जाता है और पुनर्बलन की प्राप्ति होती है अतः पुनर्बलन प्रदान करने में * दृश्य-श्रव्य सामग्री की आवश्यकता होती है।
- मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक – कक्षा में विभिन्न मानसिक स्तरों के विद्यार्थी होते हैं कुछ विद्यार्थी केवल सुनकर ज्ञान ग्रहण कर लेते हैं जबकि कुछ देखकर समझते हैं, कुछ सुनकर एवं देखकर ज्ञान को ग्राह्य बनाते हैं। अतः दृश्य श्रव्य सामग्री की सहायता से इस मनोवैज्ञानिक आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है।
- भाषा शिक्षण में दृश्य – श्रव्य सामग्री की आवश्यकता – भाषा शिक्षण में अवधारणाओं के विकास, अभिवृत्तियों के सुधार तथा रुचियों के विस्तार हेतु दृ श्य श्रव्य साधनों की बड़ी आवश्यकता पड़ती है। इन साधनों के प्रयोग से बालक कक्षा में पढ़ाए गए पाठ को भली प्रकार देख व सुन सकते हैं और इस प्रकार उनके लिए सामूहिक नियोजन, तर्कपूर्ण चिन्तन तथा सामूहिक विचार-विमर्श का आधार तैयार हो जाता है।
इसके अतिरिक्त यथार्थ दृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रयोग से बालकों को मानव की सामान्य क्रियाओं तथा आवश्यकताओं का पता चलता है।