नाभिकीय विखंडन तथा संलयन क्या अंतर है | नाभिकीय संलयन प्रक्रिया क्या है
जब दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त होकर एक भारी तत्व के नाभिक की रचना करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। नाभिकीय संलयन के फलस्वरूप जिस नाभिक का निर्माण होता है उसका द्रव्यमान संलयन में भाग लेने वाले दोनों नाभिकों के सम्मिलित द्रव्यमान से कम होता है। द्रव्यमान में यह कमी ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है। जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन के समीकरण E = mc2 से ज्ञात करते हैं। तारों के अन्दर यह क्रिया निरन्तर जारी है। सबसे सरल संयोजन की प्रक्रिया है चार हाइड्रोजन परमाणुओं के संयोजन द्वारा एक हिलियम परमाणु का निर्माण।
41H1 → 2He4 + 2 पोजिट्रान + ऊर्जा
1H2 + 1H2 → 2He4 + 23.6 MeV
1H3 + 1H2 → 2He4 + 0n1 + 17.6 MeV
1H1 +1H1 +1H1 +1H1 = 2He4 + 21β0 + 2V + 26.7 MeV
इसी नाभिकीय संलयन के सिद्धान्त पर हाइड्रोजन बम का निर्माण किया जाता है। नाभिकीय संलयन उच्च ताप (107 से 1080 सेंटीग्रेड) एवं उच्च दाब पर सम्पन्न होता है जिसकी प्राप्ति केवल नाभिकीय विखण्डन से ही संभव है। सूर्य से निरन्तर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का स्रोत वास्तव में सूर्य के अन्दर हो रही नाभिकीय संलयन प्रक्रिया का ही परिमाण है। सर्वप्रथम मार्क ओलिफेंट निरन्तर परिश्रम करके तारों में होने वाली इस प्रक्रिया को 1932 में पृथ्वी पर दोहराने में सफल हुए, परन्तु आज तक कोई भी वैज्ञानिक इसको नियंत्रित नहीं कर सका है। इसको यदि नियंत्रित किया जा सके तो यह ऊर्जा प्राप्ति का एक अति महत्त्वपूर्ण तरीका होगा। पूरे विश्व में नाभिकीय संलयन की क्रिया को नियंत्रित रूप से सम्पन्न करने की दिशा में शोध कार्य हो रहा है।
नाभिकीय विखंडन तथा संलयन
◆ नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) : वह नाभिकीय प्रक्रिया जिसमें कोई भारी नाभिक दो लगभग समान आकार के नाभिकों में टूट जाता है नाभिकीय विखंडन कहलाता है। नाभिकीय विखंडन से प्राप्त ऊर्जा को ही नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) कहते हैं।
◆ नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) का मुख्य उपयोग नाभिकीय रिएक्टर (Nuclear Reactor) में किया जाता है। नाभिकीय ऊर्जा को विद्युत शक्ति में परिवर्तित करके कल-कारखाने चलाये जा सकते हैं एवं विद्युत संकट का हल निकाला जा सकता है।
◆ सबसे पहले नाभिकीय विखंडन हॉन तथा स्ट्रासमैन (Hahn and Strassmann) नामक वैज्ञानिकों
द्वारा दिखाया गया। इन्होंने जब यूरेनियम 235 (U235) पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की, तो पाया कि
यूरेनियम के नाभिक दो खंडों में विभाजित हो गए।
◆ श्रृंखला अभिक्रिया (Chain Reaction) : जब यूरेनियम पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो एक यूरेनियम नाभिक के विखंडन पर बहुत अधिक ऊर्जा व तीन नये न्यूट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। ये उत्सर्जित न्यूट्रॉन यूरेनियम के अन्य नाभिकों को भी विखंडित करते हैं। इस प्रकार यूरेनियम नाभिकों के विखंडन की एक श्रृंखला बन जाती है तथा यह शृंखला तब तक चलती
रहती है जब तक कि सारा यूरेनियम समाप्त नहीं हो जाता। इसे ही शृंखला अभिक्रिया कहते हैं। इस शृंखला अभिक्रिया के फलस्वरूप अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। शृंखला अभिक्रिया दो प्रकार की होती है- (i) नियंत्रित शृंखला अभिक्रिया (ii) अनियिंत्रित शृंखला अभिक्रिया।
(i) नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (Controlled Chain Reaction) : यह अभिक्रिया धीरे-धीरे होती है तथा इससे प्राप्त ऊर्जा का उपयोग लाभदायक कार्यों के लिए किया जाता है। नाभिकीय रिएक्टर (Nuclear Reactor) या परमाणु भट्टी (Atomic Pile) में नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया अपनायी जाती है।
(ii) अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया (Uncontrolled Chain Reaction) : इस अभिक्रिया में ऊर्जा अत्यंत तीव्र गति से उत्पन्न होती है तथा बहुत कम समय में बहुत अधिक विनाश हो सकती है। इस अभिक्रिया में प्रचण्ड विस्फोट होता है। परमाणु बम (Atom Bomb) में अनियंत्रित शृंखला अभिक्रिया ही होती है।
◆ परमाणु बम (Atom Bomb) : परमाणु बम को सामान्यत: नाभिकीय बम (Nuclear Bomb) भी कहा जाता है। इसका सिद्धान्त नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) पर आधारित है। परमाणु बम को बनाने के लिए यूरेनियम-235 (U235) अथवा प्लूटोनियम-239 (Pu239) का प्रयोग किया जाता है। इसमें अनियंत्रित शृंखला अभिक्रिया (Uncontrolled Chain Reaction)
होती है जिसके फलस्वरूप अपार ऊर्जा की मात्रा उत्पन्न होती है।
◆ क्रांतिक द्रव्यमान (Critical Mass) : परमाणु बम में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ के लिए यह आवश्यक है कि उसका द्रव्यमान एक निश्चित द्रव्यमान से अधिक हो। इस निश्चित द्रव्यमान को क्रांतिक द्रव्यमान कहते हैं।
◆ परमाणु भट्टी (Atomic Pile) या नाभिकीय रिएक्टर (Nuclear Reactor) : इसके द्वारा नाभिकीय ऊर्जा को रचनात्मक कार्यों में उपयोग में लाया जाता है। इसमें नियंत्रित शृंखला अभिक्रिया (Controlled Chain Reaction) के द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। सबसे पहले नाभिकीय रिएक्टर प्रो. फर्मी के निर्देशन में शिकागो विश्वविद्यालय में बनाया गया था।
◆ नाभिकीय रिएक्टर में यूरेनियम-235 (U235) या प्लूटोनियम-239 (Pu239) को ईधन (Fuel) के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।जब इन विस्फोटक पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो नये न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं। इन न्यूट्रॉनों की गति को धीमी करने के लिए भारी जल (D20), ग्रेफाइट या बेरेलियम ऑक्साइड आदि मंदकों (Moderators) को प्रयोग में लाया जाता है।
◆ नाभिकीय रिएक्टर में अभिक्रिया के दौरान कई प्रकार के हानिकारक विकिरण उत्सर्जित होते हैं जो आस-पास के वातावरण व रिएक्टर में काम करने वालों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसे रोकने के लिए रिएक्टर के चारों ओर मोटी-मोटी कंक्रीट की दीवारें बना दी जाती है। इन दीवारों को परिरक्षक (Shield) कहते हैं।
◆ नाभिकीय रिएक्टर में होने वाली अभिक्रिया को नियंत्रित रखना आवश्यक होता है, नहीं तो विस्फोट हो सकता है। इसके लिए रिएक्टर में कैडमियम की छड़ें लगायी जाती है। ये छड़ें नियंत्रक छड़ें (Controller Rods) कहलाती हैं।
◆ नाभिकीय रिएक्टर के उपयोग
(i) इससे प्राप्त नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा प्राप्त किया जा सकता है।
(ii) रिएक्टर में अनेक प्रकार के समस्थानिक (Isotopes) उत्पन्न होते हैं जिनका उपयोग चिकित्सा, विज्ञान, कृषि, रोगों के उपचार, उद्योग धंधों आदि में किया जाता है।
◆ नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) : जब दो या दो से अधिक हल्के नाभिक संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाते हैं तथा अत्यधिक ऊर्जा विमुक्त करते हैं, तो इस अभिक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। एक नाभिकीय संलयन अभिक्रिया का उदारहण है-
1H3 + 1H³ → 2He4 + 0n1 + 17.6 MeV (ऊर्जा)
◆ सूर्य एवं तारों से प्राप्त ऊर्जा एवं प्रकाश का स्रोत नाभिकीय संलयन ही है।
◆ नाभिकों को संलयित करने के लिए लगभग 108 केल्विन के उच्च ताप तथा अत्यंत उच्च दाब की आवश्यकता होती है।
◆ हाइड्रोजन बम (Hydrogen Bomb) : इस बम का आविष्कार अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 1952 में किया। यह नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) की प्रक्रिया पर आधारित है। यह बम परमाणु बम की अपेक्षा 1000 गुना अधिक शक्तिशाली है।