1st Year

निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए | Write short notes on the following:

प्रश्न  – निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए | Write short notes on the following: 
(i) लिंग पहचान का निर्माण (Construction of Gender Identification) 
(ii) समाजीकरण प्रथाओं द्वारा लिंग पहचान (Gender Identification by Socialisation Practices)
उत्तर- लिंग पहचान का निर्माण (Construction of Gender Identification)
  1. सामाजिक स्थिति में लिंग पहचान (Gender Identity in Social Situation) – प्राचीन काल से ही भारतीय समाज एक पुरुष प्रधान समाज रहा है इसलिए स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा कम महत्त्व दिया जाता है। लड़कों की पहचान घर का वंश आगे बढ़ाने वाला, घर का चिराग आदि के रूप में होती है। वहीं लड़कियों के जन्म पर घर में कोई खुशी नहीं मनाई जाती और उन्हें घर सम्भालने वाली के रूप में पहचाना जाता है। इस प्रकार समाज की स्थिति को लिंग भेद बहुत प्रभावित करता है। वर्तमान में दोनों के मध्य समानता लाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं जिनमें से स्त्रियों के अलग बजट, फार्म में पिता के साथ माता के नाम को सम्मिलित करना आदि है।
  2. धार्मिक व्यवस्था में लिंग पहचान (Gender Identity in Religious System) – लोग कई देवी-देवताओं को अपना इष्टतम भगवान मानते है इसमें देवताओं के साथ-साथ कई लोग देवियों को भी अपना इष्ट मानते हैं। किन्तु जब बात उनके ऊपर आती है तो कई धार्मिक स्थानों तथा विभिन्न पूजा-पाठ के स्थानों से वे स्त्रियों को वंचित रखते हैं। लोग उन्हें अशुद्ध एवं अछूत मानते हैं किन्तु वर्तमान में लोगों का दृष्टिकोण बदला है और स्त्रियाँ ऐसे धार्मिक कार्य, जैसे-वेद पाठ करना, भागवत कहना आदि जो कार्य स्त्रियों के लिए वर्जित था, उनका भी वे सम्पादन कर रही हैं ।
  3. शिक्षा के क्षेत्र में लिंग पहचान (Gender Identity in the Field of Education ) – पहले बालक एवं बालिका की शिक्षा में पर्याप्त भेद किया जाता था किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में बहुत सुधार हुआ है। शिक्षा में लिंग (स्त्री एवं पुरुष ) का ध्यान रखा जाता है। सरकार बालिकाओं की शिक्षा हेतु विशेष विद्यालयों, उनकी रुचियों के अनुसार पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ, पाठ्यचर्या आदि पर विशेष ध्यान दे रही है ।
  4. परिधान के आधार पर लिंग पहचान (Gender Identity Based on Costumes ) – समाज में प्रायः लिंग की पहचान उनके परिधान के आधार पर किया जाता है। पुरुष पैण्ट, शर्ट, धोती एवं कुर्ता पहनते हैं और लड़कियाँ साड़ी, सलवार सूट पहनती हैं। इन्हीं परिधान के आधार पर समाज लिंग की पहचान करता है ।
  5. स्त्री एवं पुरुष दोनों की * शारीरिक संरचना के आधार पर लिंग पहचान (Gender Identity on the Basis of Physical Structure ) – लिंग की पहचान शारीरिक संरचना के आधार पर भी की जा सकती है। शारीरिक संरचनाएँ एक-दूसरे से भिन्न होती हैं । स्वाभाविक रूप से भी दोनों में भिन्नता पाई जाती है स्त्रियों में कोमलता पुरुषों की अपेक्षा अधिक पाई जाती है।
  6. रोजगार व्यवस्था के आधार पर लिंग पहचान (Gender Identity on the Basis of Employment System) – लिंग के आधार पर रोजगार का निर्धारण किया जाता है। लोगों का मानना है कि जहाँ विद्यालय, बैंक आदि जगह लड़कियों की नौकरी के लिए उपयुक्त हैं वहीं कठिन व्यवसाय, फौज आदि जगहों पर नौकरी करने के लिए लड़कों को उपयुक्त माना जाता है। इस प्रकार रोजगार के अनुसार लिंग पहचान किया जाता है।
  7. वर्ग विभाजन के आधार पर लिंग पहचान (Gender Identity ou the Basis of Class Division)- समाज में जब किसी कार्य हेतु वर्ग विभाजन की आवश्यकता होती है तब लिंग (Gender) का उल्लेख आवश्यक रूप से किया जाता है, जैसे- विद्यालय में आयोजित होने वाले कुछ कार्यक्रम एवं गतिविधियाँ छात्र एवं छात्रा दोनों के लिए होती है किन्तु कुछ का विभाजन छात्र एवं छात्राओं के लिए अलग-अलग होता है। इस प्रकार की गतिविधियों एवं कार्यक्रम के आधार पर लिंग की पहचान की जाती है।
  8. योजनाओं के द्वारा लिंग पहचान (Gender Identity through Plans ) – सरकार द्वारा जो भी योजना चलाई जाती है, वह लिंग (Gender) के आधार पर बनाई जाती है। भारत सरकार ने सन् 2005-06 एक पूरा जेण्डर बजट अलग से प्रस्तुत किया था जिसमें केवल स्त्रियों से सम्बन्धित योजनाओं का उल्लेख किया गया था। वर्तमान में सरकार स्त्री एवं पुरुष दोनों की आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न योजनाओं का समावेश अपने बजट में करती है ।
  9. आरक्षण द्वारा लिंग पहचान (Gender Identity through Reservation) – समाज के अनेक क्षेत्रों में पुरुष वर्ग का अधिकार है वहाँ महिलाओं की पहुँच नहीं हो पाती है। वर्तमान समय में प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को सम्मान देते हुए कुछ पदों को उनके लिए आरक्षित कर दिया जाता है जिससे महिलाओं को भी सम्मान अनुभव हो सके। महिलाएँ अपने आप को समाज का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माने तथा यह अनुभव कर सकें कि उनकी भी समाज में अहम भूमिका है। आरक्षण का निर्धारण लिंग के आधार पर जो आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं, उनके आधार पर किया जाता है।
  10. विकास के माध्यम से लिंग पहचान (Gender Identity through Development) – सामान्यतः समाज में विकास की योजनाएं लिंग के आधार पर ही बनाई जाती हैं, जैसेवर्तमान में बालिका उत्थान एवं महिला सशक्तीकरण के लिए कई योजनाएं बनाई जा रही हैं जिनका उद्देश्य शिक्षा के क्षेत्र में बालकों एवं पुरुषों के समान बालिकाओं एवं स्त्रियों को स्थान प्रदान कराना है।
समाजीकरण प्रथाओं द्वारा लिंग पहचान (Gender Identification by Socialisation Practices)
  1. व्यवहार सम्बन्धी समाजीकरण प्रथाएँ (Behaviour Related Socialisation Practices ) – समाजीकरण की प्रक्रिया में व्यवहार से सम्बन्धी भेद देखने को मिलते हैं । स्त्रियों को सहनशील माना जाता है, अतः उनसे सभी लोग यही अपेक्षा करते हैं कि उनको कोई कुछ भी कहे उन्हें सहन करना चाहिए जबकि बालकों से इस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जाती है। यह व्यवहारगत् मतभेद समाज के साथ घर-परिवार वालों द्वारा भी किया जाता है।
  2. अनुशासन सम्बन्धी समाजीकरण प्रथाएँ (Discipline Related Socialisation Practices ) अनुशासन सम्बन्धी विभेद भी समाजीकरण की प्रक्रिया में देखा जाता है। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को अधिक अनुशासन में रखा जाता है। रात के समय बाहर जाने, दोस्तों के साथ घूमने-फिरने आदि में जहाँ बालिकाओं के लिए प्रतिबन्ध होते है। वहीं बालकों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है। बालक कहीं भी किसी भी समय आने-जाने के लिए स्वतन्त्र होते है।
  3. कार्य आधारित समाजीकरण प्रथाएँ (Work Based Socialisation Practices)समाजीकरण की प्रक्रिया में बालक-बालिकाओं के मध्य कार्यों के आधार पर विभेद किया जाता है। जैसे- यदि घर का कोई भारी सामान उठाना होता है तो उसके लिए बालिकाओं की जगह बालकों को बुलाया जाता है क्योंकि लोगों का मानना है कि लड़कियाँ कोमल प्रवृत्ति की होती है इसलिए वे भारी सामान नहीं उठा सकती हैं। इस प्रकार की प्रक्रियाएँ एवं गतिविधियाँ समाजीकरण में कार्य विभेद को आधार बनाती हैं। इस प्रकार समाज में लिंग आधारित समाजीकरण एवं कार्य विभेद होता है।
  4. खेलकूद आधारित समाजीकरण प्रथाएँ (Games Based Socialisation Practices)- समाज के लोगों ने खेल का विभाजन लिंग के आधार पर कर दिया है। लोगों के अनुसार बालक एवं बालिकाओं के खेल अलग-अलग होते है यदि एक बालक गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेलता है तो उसके अभिभावक द्वारा उसे यही समझाया जाता है कि वह लड़का है और उसे ये खेल नहीं खेलने चाहिए। वहीं लड़कियाँ यदि क्रिकेट खेलती तो उन्हें यह समझाया जाता है कि यह खेल लड़कों का है।
  5. सोच सम्बन्धी समाजीकरण प्रथाएँ (Thinking Related Socialisation Practices) – समाज में लिंग भेद का सबसे बड़ा कारण लोगों की सोच उनके विचार और दृष्टिकोण हैं। समाज के लोगों की सोच का ही परिणाम है कि लड़कियों को पराया धन एवं लड़कों को घर का चिराग माना जाता है। इन्हीं कारणों से लोगों का व्यवहार लड़के-लड़कियों के प्रति भिन्न-भिन्न हो जाता है।
  6. कार्य क्षेत्र सम्बन्धी समाजीकरण प्रथाएँ (Working Field Related Socialisation Practices) – वर्तमान समाज में आज भी बालिकाओं का कार्य क्षेत्र सीमित माना जाता है, उनको घर के अन्दर ही सुरक्षित माना जाता है। एक सफल स्त्री उसे ही माना जाता है जो अपने घर-परिवार का उचित रूप से संचालन कर सके। कोई लड़का कहीं भी नौकरी करे तो अभिभावक कभी भी उस नौकरी से सम्बन्धित पक्षों का विश्लेषण नहीं करते हैं किन्तु यदि कोई लड़की कोई नौकरी करती है तो वे तुरन्त उस नौकरी के विभिन्न पक्षों का विश्लेषण करेंगे। इस प्रकार लड़कियों के कार्य क्षेत्र सीमित हो जाते हैं और रोजगार जैसे- शिक्षिका, बैंकिंग लिपिक आदि के पदों को निर्धारित कर दिया जाता है जबकि लड़कों के लिए ऐसा कुछ नहीं होता है।
  7. गुण आधारित समाजीकरण प्रथाएँ (Value Based Socialisation Practices)- समाजीकरण की प्रक्रिया में लड़के-लड़कियों के गुणों के आधार पर भी उनकी पहचान की जाती है। लड़कियों के प्रमुख गुण सहनशील, करुणा, दया एवं अनुशासन माना जाता है और बचपन से उनमें इन गुणों को विकसित करने पर बल दिया जाता है जबकि बालक में प्रमुख गुण साहस एवं वीरता को माना जाता है। इन्हीं गुणों के आधार पर उनसे उचित व्यवहार की आशा की जाती है ।

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