पदार्थ एवं उसकी प्रकृति | पदार्थ के उदाहरण | पदार्थ क्या है
पदार्थ एवं उसकी प्रकृति | पदार्थ के उदाहरण | पदार्थ क्या है
पदार्थ एवं उसकी प्रकृति
● पदार्थ : ऐसी कोई भी वस्तु जो स्थान घेरती है व जिसमें भार होता है, पदार्थ/द्रव्य (Matter) कहलाती है। जैसे- लकड़ी, लोहा, हवा, पानी, दूध आदि। ये वस्तुएँ स्थान घेरती हैं व इनमें भार होता है, फिर भी इनके गुणों में कई प्रकार की असमानताएँ होती हैं। जैसे- लकड़ी, लोहा आदि पदार्थों से बनी वस्तु का आकार व आयतन निश्चित होता है। पानी, दूध आदि का आयतन तो निश्चित होता है, परन्तु आकार निश्चित नहीं होता है तथा जिस बर्तन में ये डाले जाते हैं, उसी का आकार ग्रहण कर लेते हैं। हवा, ऑक्सीजन आदि गैसों का आकार और आयतन दोनों अनिश्चित होता है।
पदार्थों का वर्गीकरण
◆ सामान्यतः पदार्थ को इसके गुणों के आधार पर तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है- 1. ठोस 2. द्रव 3. गैस।
◆ ठोस (Solid) : पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों निश्चित होता है, ठोस कहलाता है। जैसे- लोहा व लकड़ी आदि पदार्थों से बनी वस्तुएँ।
◆ द्रव (Liquid) : पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आयतन तो निश्चित होता है, परंतु आकर निश्चित नहीं होता है, द्रव कहलाता है। द्रव जिस बर्तन में डाले जाते हैं, उसी का आकार ग्रहण कर लेते हैं। जैसे- पानी, दूध, अल्कोहल, तारपीन का तेल, मिट्टी का तेल आदि।
◆ गैस (Gas) : पदार्थ की वह भौतिक अवस्था जिसका आकार एवं आयतन दोनों अनिश्चित होता है, गैस कहलाता है। जैसे- हवा, ऑक्सीजन आदि।
नोट : गैसों का कोई पृष्ठ नहीं होता है, इसका विसरण बहुत अधिक होता है तथा इसे आसानी से संपीड़ित (Compress) किया जा सकता है।
◆ ताप एवं दाब में परिवर्तन करके किसी भी पदार्थ की अवस्था को बदला जा सकता है, परन्तु इसके कुछ अपवाद भी हैं, जैसे- लकड़ी एवं पत्थर। ये दोनों पदार्थ सदैव ठोस अवस्था में ही रहते हैं।
◆ जल तीनों भौतिक अवस्था में रह सकता है।
◆ पदार्थ की तीनों भौतिक अवस्थाओं में निम्न रूप से साम्य होता है- ठोस → द्रव → गैस। उदाहरण- जल।
◆ पदार्थ की चौथी अवस्था प्लाज्म एवं पाँचवीं अवस्था बोस आइंस्टाइन कंडनसेट है।
◆ समांग/समांगी पदार्थ (Homogeneous Matter) : समांगी पदार्थ वे पदार्थ हैं जिनके प्रत्येक भाग के संघटन (Composition) व गुण एक समान होते हैं। जैसे- सोना, पानी आदि। समांगी पदार्थ को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है। 1. शुद्ध पदार्थ व 2. विलयन या समांगी मिश्रण।
◆ तत्त्व (Element) : तत्त्व वह शुद्ध पदार्थ है, जिसे किसी भी ज्ञात भौतिक एवं रासायनिक विधियों से न तो दो या दो से अधिक पदार्थों में विभाजित किया जा सकता है और न ही अन्य सरल पदार्थों के योग से बनाया जा सकता है। जैसे- सोना, चाँदी, ताँबा, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन आदि।
◆ यौगिक (Compound) : जो पदार्थ दो या दो से अधिक तत्त्वों के निश्चित अनुपात में परस्पर क्रिया के संयोग से बनते हैं व जो साधारण विधि से पुनः तत्त्वों में विभाजित किये जा सकते हैं, यौगिक कहलाते हैं। यौगिक के गुण इसके संघटक तत्त्वों के गुण से बिल्कुल भिन्न होते हैं। पानी, नमक, एल्कोहल, क्लोरोफार्म आदि यौगिकों के उदाहरण हैं। यौगिकों में उपस्थित तत्त्वों
का अनुपात सदैव एक समान रहता है, चाहे वह यौगिक किसी भी स्रोत से क्यों न प्राप्त किया गया हो। जैसे- जल में हाइड्रोजन व ऑक्सीजन 2:1 के अनुपात में पाये जाते हैं। यह अनुपात सदैव स्थिर रहता है, चाहे जल किसी भी स्रोत से क्यों न प्राप्त किया गया हो।
◆ मिश्रण (Mixtures) : दो या दो से अधिक तत्त्वों अथवा यौगिकों को किसी भी अनिश्चित अनुपात में मिलाने से जो द्रव्य प्राप्त होता है, उसे मिश्रण कहते हैं। मिश्रण में उपस्थित विभिन्न घटकों के गुण बदलते नहीं हैं। दूध, बालू, चीनी का जलीय विलयन, बारूद, मिट्टी आदि। विभिन्न प्रकार के मिश्रणों के उदाहरण हैं। मिश्रण दो प्रकार के होते हैं- 1. समांग मिश्रण और
2 विषमांग मिश्रण।
1. समांग मिश्रण (Homogeneous Mixutre) : निश्चित अनुपात में अवयवों को मिलाने से समांग मिश्रण का निर्माण होता है। इसके प्रत्येक भाग के गुण धर्म एक समान होते हैं। जैसे- चीनी या नमक जलीय विलयन कॉपर सल्फेट का जलीय विलयन, हवा आदि।
2. विषमांग मिश्रण (Heterogeneous Mixture) : अनिश्चित अनुपात में अवयवों को मिलाने से विषमांग मिश्रण का निर्माण होता है। इसके प्रत्येक भाग के गुण व उनके संघटक भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे- बारूद और कुहासा आदि।
मिश्रणों को अलग करने की विधियाँ
◆ रवाकरण (Crystallisation) : यह विधि अकार्बनिक ठोसों के मिश्रण के पृथक्करण व शुद्धिकरण के लिए प्रयुक्त होती है। इसमें अशुद्ध ठोस या मिश्रण को उचित विलायक (Solvent) के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है तथा गर्म अवस्था में ही कीप (Funnel) द्वारा छाना जाता है। छानने के पश्चात् विलयन को कम ताप पर धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है। ठंडा होने पर शुद्ध पदार्थ रवा (Crystal) के रूप में विलयन से अलग हो जाता है। जैसे- शर्करा और नमक के मिश्रण को इथाइल अल्कोहल में 348K ताप पर गर्म कर इस विधि द्वारा अलग किया जाता है।
◆ आसवन (Distillation) : इस विधि में मुख्यतः द्रवों के मिश्रण को अलग किया जाता है। जब दो द्रवों के क्वथनांकों में अंतर अधिक होता है तो उनके मिश्रण को इस विधि से अलग किया जाता है। इस विधि में दो प्रक्रिया अपनाई जाती है। पहला प्रक्रम वाष्पन (Vaporisation) तथा दूसरा प्रक्रम संघनन (Condensation) है।
◆ उर्ध्वापातन (Sublimation) : इस विधि द्वारा दो ऐसे ठोसों के मिश्रण को अलग करते हैं, जिसमें एक ठोस ऊर्ध्वपातित (Sublimate) हो, दूसरा नहीं। इस विधि से कर्पूर, नेफ्थलीन, अमोनियम क्लोराइड, ऐंथासीन आदि को अलग करते हैं।
◆ प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation) : इस विधि द्वारा उन मिश्रित द्रवों को पृथक करते हैं, जिनके क्वथनांकों में अंतर बहुत कम होता है अर्थात् द्रवों के क्वथनांक एक-दूसरे के समीप होते हैं। भूगर्भ से निकाले गये कच्चे तेल में से शुद्ध पेट्रोल, डीजल, किरोसीन तथा कोलतार आदि इसी विधि द्वारा अलग किये जाते हैं। जलीय वायु (Liquid Air) से विभिन्न
गैसें भी इसी विधि से अलग की जाती है।
◆ वर्णलेखन (Chromatography) : यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि किसी मिश्रण के विभिन्न घटकों की अवशोषण क्षमता (Absorption Capacity) भिन्न-भिन्न होती है तथा वे किसी अधिशोषक पदार्थ (Absorbent Material) में विभिन्न दूरियों पर अवशोषित होते हैं, इस प्रकार वे पृथक् कर लिए जाते हैं।
◆ भाप आसवन (Steam Distillation) : इस विधि से ऐसे कार्बनिक मिश्रण को शुद्ध किया जाता है, जो जल में अघुलनशील होते हैं, परन्तु भाप के साथ वाष्पशील होते हैं। इस विधि द्वारा विशेष रूप से उन पदार्थो का शुद्धिकरण किया जाता है, जो अपने क्वथनांक पर अपघटित (Decompose) हो जाते हैं। कार्बनिक पदार्थों- ऐसोटीन, मेथिल एल्कोहल, ऐसेटेल्डहाइड आदि का शुद्धिकरण इसी विधि द्वारा किया जाता है।
पदार्थ की अवस्था परिवर्तन
◆ द्रवणांक (Melting Point) : गर्म करने पर जब ठोस पदार्थ द्रव अवस्था में परिवर्तित होते हैं, तो उनमें से अधिकांश में यह परिवर्तन एक विशेष दाब पर तथा एक नियत ताप होता है। यह नियत ताप वस्तु का द्रवणांक (Melting Point) कहलाता है। जब तक पदार्थ गलता (ठोस के आखिरी कण तक) रहता है, तब तक ताप स्थिर रहता है। यदि विशेष दाब नियत रहे।
◆ हिमांक (Freezing Point) : किसी विशेष दाब पर वह नियत ताप जिस पर कोई द्रव जमता है, हिमांक कहलाता है।
◆ सामान्यतः पदार्थ का द्रवणांक एवं हिमांक का मान बराबर होता है। जैसे- बर्फ का द्रवणांक एवं हिमांक 0°C है।
◆ अशुद्धियों की उपस्थिति की अवस्था में पदार्थ का द्रवणांक और हिमांक दोनों कम हो जाता है।
द्रवणांक पर दाब का प्रभाव
(i) उन पदार्थों के द्रवणांक दाब बढ़ाने से बढ़ जाता है, जिनका आयतन गलने पर बढ़ जाता है। जैसे- मोम एवं ताँबा आदि।
(ii) उन पदार्थों के द्रवणांक दाब बढ़ाने से घट जाता है, जिनका आयतन गलने पर घट जाता है। जैसे- बर्फ एवं ढलवाँ लोहा आदि।
गलने तथा जमने पर आयतन में परिवर्तन
◆ क्रिस्टलीय पदार्थों में से अधिकांश पदार्थ गलने पर आयतन में बढ़ जाते हैं, ऐसी दशा में ठोस अपने ही गले हुए द्रव में डूब जाता है।
◆ ढला हुआ लोहा, बर्फ, एंटीमनी, बिस्मथ, पीतल आदि गलने पर आयतन में सिकुड़ते हैं। अतः इस प्रकार के ठोस अपने ही गले द्रव प्लवन करते रहते हैं। इसी विशेष गुण के कारण गले हुए बर्फ का टुकड़ा पानी में प्लवन करता है।
◆ सांचे में केवल वे पदार्थ ढाले जा सकते हैं, जो ठोस बनने पर आयतन में बढ़ते हैं, क्योंकि तभी वे सांचे के आकार को पूर्णतया प्राप्त कर सकते हैं।
◆ मुद्रण धातु ऐसे पदार्थ के बने होते हैं, जो जमने पर आयतन में बढ़ते हैं।
◆ चाँदी या सोने की मुद्राएँ ढाली नहीं जाती, केवल मुहर (Stamp) लगाकर बनायी जाती है।
◆ मिश्र धातुओं का द्रवणांक (Melting Point) उन्हें बनाने वाले पदार्थों के गलनांक से कम होता है, क्योंकि अशुद्धियाँ मिला देने पर पदार्थ का गलनांक घट जाता है।
◆ क्वथनांक (Boiling Point) : दाब के किसी दिये हुए नियत मान के लिए वह नियत ताप जिस पर कोई द्रव उबलकर द्रव अवस्था से वाष्प की अवस्था में परिणत हो जाये तो वह नियत ताप द्रव का क्वथनांक कहलाता है।
◆ दाब बढ़ाने से द्रव का क्वथनांक बढ़ जाता है और दाब घटाने से द्रव का क्वथनांक घट जाता है।
◆ हिमकारी मिश्रण (Freezing Mixture) : किसी ठोस को उसके द्रवणांक पर गलने के लिए ऊष्मा की आवश्यकता होगी जो उसकी गुप्त ऊष्मा होगी। यह ऊष्मा साधारणतः बाहर से मिलती है, जैसे जल में बर्फ का टुकड़ा मिलाने पर बर्फ गलेगी, परन्तु गलने के लिए द्रवणांक पर वह जल से ऊष्मा लेगी जिससे जल का तापमान घटने लगेगा और मिश्रण का ताप घट जायेगा। हिमकारी मिश्रण का बनना इसी सिद्धान्त पर आधारित है। उदाहरण- घर पर आईसक्रीम जमाने के लिए नमक का एक भाग एवं बर्फ का तीन भाग मिलाया जाता है, इससे मिश्रण का ताप -22°C प्राप्त होता है।
◆ वाष्पीकरण (Vaporization) : द्रव से वाष्प में परिणत होने की क्रिया वाष्पीकरण कहलाती है। यह दो प्रकार से होती है- (i) वाष्पन (Evaporation) (ii) क्वथन (Boiling)।
◆ क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं।
वाष्पन की क्रिया निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है-
(i) क्वथनांक का कम होना : क्वथनांक जितना कम होगा, वाष्पन की क्रिया उतनी ही अधिक तेजी से होगी।
(ii) द्रव का ताप : द्रव का ताप अधिक होने से वाष्पन अधिक होगा।
(iii) द्रव के खुले पृष्ठ का क्षेत्रफल : द्रव के खुले पृष्ठ का क्षेत्रफल अधिक होने पर वाष्पन तेजी से होगा।
(iv) द्रव के पृष्ठ पर:
(a) द्रव के पृष्ठ पर वायु बदलने पर वाष्पन तेज होगा।
(b) द्रव के पृष्ठ पर वायु का दाब जितना ही कम होगा, वाष्पन उतनी ही तेजी से होगा।
(c) द्रव के पृष्ठ पर वाष्प दाब जितना बढ़ता जायेगा वाष्पन की दर उतनी ही घटती जायेगी।