परिचर्चा विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए। Explain in the detail discussion method.
उच्च अधिगम की जितनी भी विधियाँ हैं, जैसे- सम्मेलन, विचार – गोष्ठी, विचार समिति तथा कार्यशाला आदि इन सभी का सम्पादन परिचर्चा विधि की सहायता से ही किया जा सकता है क्योंकि इस प्रकार के आयोजन में सभी विद्यार्थियों को समान अवसर दिए जाते हैं। परिचर्चा विधि आधुनिक व्यवस्था सिद्धान्त पर आधारित है।
इसकी यह धारणा है कि व्यवस्था के सदस्यों की अपनी अभिवृत्तियाँ, अभिरुचियाँ, मूल्य तथा अपने-अपने लक्ष्य होते हैं। इसके अतिरिक्त उनमें निर्णय लेने और समस्या का समाधान खोजने की क्षमता होती है। अतः इस दृष्टि से प्रजातन्त्र शासन तथा जीवन ढंग के लिए परिचर्चा विधि को प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
आज इस प्रकार के आयोजन काफी संख्या में सार्वजनिक रूप में टेलीविजन तथा रेडियो पर भी किए जा रहे हैं। कुछ तात्कालिक समस्या पर इस प्रकार के सामूहिक परिचर्चा विधि की व्यवस्था भी की जाती है।
जेम्स एम. ली के अनुसार, “परिचर्चा विधि एक शैक्षिक सामूहिक क्रिया है जिसमें शिक्षक तथा छात्र किसी समस्या या प्रकरण पर बातचीत करते है।”
रिस्क के अनुसार, “परिचर्चा का अर्थ- अध्ययन की जाने वाली समस्या का प्रकरण में निहित सम्बन्धों का विचारशील विवेचन ।” तत्क
- छात्रों को नवीन ज्ञान से परिचित कराने हेतु योजना का निर्माण करना ।
- छात्रों को अनेक सूचनाओं का ज्ञान प्रदान करना तथा भावी कार्य के सन्दर्भ में निर्णय करना।
- छात्रों को प्रकरण या समस्या से सम्बन्धित विचारों को स्पष्ट करना।
- छात्रों को समस्या के प्रति जागरूक करना ।
- छात्र द्वारा प्राप्त किए गए ज्ञान का मूल्यांकन करना ।
- औपचारिक परिचर्चा विधि (Formal Discussion Method)—औपचारिक परिचर्चा विधि के अन्तर्गत नियमों का पालन किया जाता है। इसका संचालन एवं नियन्त्रण चयनित. अध्यक्ष के द्वारा किया जाता है। इसकी कार्यता ही चयनित सचिव द्वारा की जाती है। इसका चयन छात्रों से ही किया जाता है। औपचारिक परिचर्चा पैनल के रूप में की जाती है।
- अनौपचारिक परिचर्चा विधि (Informal Discussion Method)—अनौपचारिक परिचर्चा विधि में नियमों बन्धन नहीं होता। शिक्षक एवं छात्र स्वतन्त्रतापूर्वक किसी समस्या पर विचार-विमर्श करते हैं। इसका उद्देश्य छात्रों को स्वतन्त्रतापूर्वक अपने विचारों को व्यक्त करने में प्रशिक्षित करना होता है। इस विधि में शिक्षक नेतृत्व करता है तथा छात्रों को सीखने के लिए तैयार करता है। का
- इसमें सामाजिक अधिगम को अधिक प्रोत्साहन मिलता है।
- इस क्रिया से ज्ञानात्मक तथा भावनात्मक पक्षों के उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।
- विद्यार्थियों में ज्ञानवृद्धि के साथ-साथ समस्या समाधान, तर्कशक्ति, आलोचना करने की क्षमताओं का भी विकास होता है।
- विद्यार्थियों में अभिरुचि तथा अभिवृत्तियों का विकास होता है तथा दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान की प्रवृत्ति का भी विकास होता है।
- पाठ्य-वस्तु तथा प्रकरण की बोधगम्यता के साथ आत्मसातीकरण को भी प्रोत्साहन मिलता है।
- इस विधि से छात्र विषय-वस्तु के चयन, संगठन तथा प्रस्तुतीकरण की कला में निपुण हो जाता है।
- छात्र निश्चित उद्देश्य से दूर नहीं होते।
- छात्र नियन्त्रित होकर स्वानुशासन सीखते हैं।
- यह विधि छोटी कक्षाओं और बड़ी कक्षाओं दोनों के बच्चों के लिए उपयोगी है।
- इस विधि के द्वारा समस्या के स्पष्टीकरण से नवीन ज्ञान प्राप्त होता है। इससे उनके ज्ञान में वृद्धि होती है।
- अनुदेशक को समूह के सदस्यों का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उनमें आपस में किसी प्रकार का टकराव न हो।
- अध्यक्ष की प्रमुख भूमिका तथा उत्तरदायित्व यह होता है कि सभी सदस्यों को परिचर्चा में भाग लेने का अवसर दे। यह उसके संचालन की क्षमता पर भी निर्भर करता है। अध्यक्ष का समूह पर नियन्त्रण होना आवश्यक है। विषय में पारंगत तथा वरिष्ठ व्यक्ति को ही अध्यक्ष चुना जाना चाहिए।
- सदस्यों के बैठने की व्यवस्था इस प्रकार की हो कि वे एक-दूसरे के सम्मुख हों, अध्यक्ष से समान दूरी रहे और श्रोतागण भी सभी को देख सकें।
- अध्यक्ष को उन्हीं बिन्दुओं पर आलोचना के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जिन पर रचनात्मक सुझाव तथा आलोचना की जा सके। सदस्यों के सार्थक तथा रचनात्मक सुझावों को बढ़ावा देना चाहिए।
खोज विधि बहुत अधिक संरचित एवं सुविधापूर्ण प्रक्रिया है जिससे शिक्षा में कई प्रकार की समानताएँ पाई जाती हैं लेकिन यह कुछ अलग घटनाओं के अनुक्रम का अनुसरण करती है। निर्देशन खोज करने के लिए, विशिष्ट से सामान्य सिद्धान्त की ओर चलता है। खोज विधि एक प्रेरक प्रक्रिया है- यह शिक्षार्थी को अन्तर्दृष्टि और सामान्यीकरण की दिशा के लिए निर्देशित करता है। इस प्रक्रिया में निर्देशित खोज विधि कुछ निश्चित पूर्वकथनीय अनुभव के आधार पर विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करती है। यह प्रक्रिया प्रत्येक शिक्षार्थी को अद्वितीय एवं व्यक्तिगत रूप से प्रोत्साहित करती है। यह विधि न केवल विशेष रूप से अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने के अनुभव से लाभ प्रदान करती है बल्कि उनके पूर्वज्ञान एवं अनुभव के आधार पर आत्म निर्भर होने की प्रेरणा प्रदान करती है।
- खोज विधि की सर्वप्रथम विशेषता यह है कि इसमें शिक्षक उच्च अधिनियम तथा समस्या हेतु परिस्थिति उत्पन्न करता है।
- खोज विधि की द्वितीय विशेषता यह है कि इसमें शिक्षक न तो उपयोगी नियमों की व्याख्या करता है न ही समस्या का समाधान ही देता है। छात्रों को स्वयं ही समस्या का समाधान ढूँढ़ना पड़ता है।
- इसमें प्रायः किन्हीं परिस्थितियों तथा अवस्थाओं पर समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है परन्तु अधिनियमों का उल्लेख नहीं करता है।
- इसमें शिक्षक समुचित उच्च अधिनियमों को बताता है परन्तु समस्या का समाधान प्रस्तुत नहीं करता है। छात्र स्वयं ही समस्या का समाधान खोजते हैं।
- इसके अन्तर्गत छात्रों की क्रियाशीलता को अवसर दिया जाता है।
- इसमें व्यक्तिगत रूप से छात्रों को स्वतन्त्र चिन्तन का अवसर मिलता है।
- इसमें छात्रों में प्रायः सूझ शक्ति का विकास होता है।
- इसमें छात्रों की प्रौढ़ता (परिपाक) तथा वर्णनात्मक क्षमताओं का विकास होता है।
- इस विधि में आन्तरिक तथा बाह्य दोनों ही प्रकार की क्रियाएँ आवश्यक होती हैं।
अतः उपरोक्त तथ्यों से हमें ज्ञात होता है कि इसमें छात्र द्वारा स्वयं प्रयासरत होकर अपनी समस्या का समाधान किया जाता है। इसमें शिक्षक की कोई भूमिका नहीं होती है अतः यह विधि उपयुक्त अधिगम की प्रभावी विधि है।
इस प्रकार शिक्षक द्वारा दिए गए निर्देशों के माध्यम से छात्र स्वयं खोज कर सकेंगे कि जिस वस्तु अथवा धातु में ध्वनि का वेग अधिक होगा वह अधिक घनत्व वाला तथा जिसमें वेग कम होगा वह कम घनत्व वाला होगा। इस प्रकार छात्र विभिन्न धातुओं के घनत्व की जानकारी उनके वेग द्वारा खोज सकेंगे।
- निदेशित खोज विधि छात्रों को स्वावलम्बी एवं विश्वसनीय बनाती है।
- निदेशित खोज विधि छात्रों को स्वतन्त्र चिन्तन के लिए प्रोत्साहित करती है।
- निदेशित खोज विधि की प्रक्रिया से छात्र अपनी सफलता या असफलता सरलता से कर लेते हैं ।
- इस विधि से छात्रों में अवलोकन एवं क्रियाशीलता की वृद्धि होती है।
- निर्देशन खोज में कार्य चुनौतीपूर्ण होना चाहिए लेकिन ऐसा प्रतीत नहीं होना चाहिए कि वह शिक्षार्थी के पहुँच से बाहर है।
- शिक्षार्थियों को ध्यानपूर्वक महत्त्वपूर्ण मुद्दों के लिए तैयार किया जाना चाहिए कि शिक्षार्थी रोजगार के लिए सार्थक कार्य कर रहे हैं, इस प्रकार की प्रक्रिया निर्देशन खोज द्वारा बाह्य रूप से दृष्टिगोचर होनी चाहिए।
- शिक्षार्थी उठाए गए मुद्दे से सम्बन्धित कार्य को करने में सक्षम होना चाहिए।
- आदर्श रूप में शिक्षार्थी आलोचना के डर के बिना विभिन्न दृष्टिकोण के साथ प्रयोग करने के लिए सक्षम होना चाहिए।
- सुविधा प्रदाता की विशेषज्ञता जब तक शिक्षार्थी स्वीकार न कर ले तब तक उसको प्रलोभनयुक्त सलाह देने के लिए विरोध करना चाहिए।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर स्पष्ट होता है कि निर्देशन खोज विधि शिक्षा के क्षेत्र में छात्र को सीखने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करती है। यह विधि अनुदेशन विधि के विपरीत अर्थात् विशिष्ट से सामान्य सिद्धान्त की ओर चलती है।