1st Year

परिव अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए । परिवार की विशेषताएँ एवं कार्यों पर प्रकाश डालिए । Write the Meaning and Definitions of Family. Highlight the Characteristics and Functionsof Family.

प्रश्न – परिव अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए । परिवार की विशेषताएँ एवं कार्यों पर प्रकाश डालिए । Write the Meaning and Definitions of Family. Highlight the Characteristics and Functionsof Family.
उत्तर- परिवार का अर्थ एवं परिभाषाएँ
परिवार एक ऐसी संस्था है जो सर्वत्र समाज में पाया जाता है । इसलिए इसे सार्वभौमिक संस्था माना जाता है। परिवार सभी समाजों में पाया जाता है। यद्यपि आदिम समाज में परिवार नहीं पाया जाता था परिवार की उत्पत्ति के बाद से ही व्यक्तिगत दायरे की शुरुआत हुई क्योंकि परिवार समाज की एक छोटी इकाई के रूप में विकसित हुआ। जहाँ व्यक्तिगत रूप से कुछ एक वस्तुओं तथा व्यक्तियों पर अपना व्यक्तिगत अधिकार का अस्तित्व शुरू हुआ। यह एक इकाई है जिसमें माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची, भतीजे, पुत्र-पुत्री, दादा-दादी जैसे सम्बन्ध पाए जाते हैं ।
मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, “परिवार पर्याप्त निश्चित यौन सम्बन्धों द्वारा परिभाषित एक ऐसा समूह है जो बच्चों को पैदा करने तथा लालन-पालन करने की व्यवस्था करता है ।” According to MacIver and Page, “Family is a group defined by sex relationship sufficiently precise and enduring to provide for the procreation and upbringing of children.”
किंग्सले डेविस के अनुसार, “परिवार ऐसे व्यक्तियों का समूह है जिनमें संगोत्रता के सम्बन्ध होते हैं और जो एक दूसरे के सम्बन्धी होते हैं।”
According to Kingsley Davis, “Family is a group of persons whose relations to one another are based upon consanguinity who are therefore kin to one wanother.”
परिवार की नींव स्त्री पुरुष के यौन सम्बन्धों के नियोजन पर होती है। बच्चों को जन्म देना, उनका लालन-पालन करना, इसके मुख्य कार्य होते हैं।

परिवार की विशेषताएँ (Characteristics of Family)

  1. सार्वभौमिक संस्था (Universal Institution ) – सम्पूर्ण विश्व के प्रत्येक देश में परिवार किसी न किसी रूप में पाया जाता है, अतः यह एक सार्वभौमिक संस्था है। सभी मनुष्य किसी न किसी परिवार का सदस्य होता ही है ।
  2. सामाजिक संरचना में केन्द्रीय स्थिति (Nuclear Position in the Social Structure)- सामाजिक संरचना में परिवार की केन्द्रीय स्थिति होती है तथा समाज का. निर्माण भी परिवार रूपी इकाइयों से मिलकर होता है।
  3. रक्त सम्बन्ध एवं वंशनाम की व्यवस्था (System of Blood Relation and Dynasty )- सभी परिवारों में जो भी बच्चे पैदा होते हैं, उनमें आपस में और माँ – बाप में रक्त सम्बन्ध पाया जाता है। सभी परिवारों में वंशनाम की व्यवस्था के आधार पर नामकरण किया जाता है उसी के नाम से परिवार के बच्चे पहचाने जाते हैं। पितृवंशीय परिवारों में यह नामकरण पिता के वंश के आधार पर एवं मातृवंशीय परिवारों में यह नामकरण माता के वंश के आधार पर किया जाता है।
  4. निश्चित निवास स्थान (Permanent House ) – निवास स्थान लगभग निश्चित ही होता है, परन्तु कुछ दशाओं में जैसे नौकरी के लिए अन्यत्र बसना आदि के कारण परिवार समाप्त नहीं हो जाता।
  5. आर्थिक व्यवस्था (Economic System) – परिवार के सदस्यों का भरण-पोषण करने के लिए परिवार में श्रम विभाजन होता है। इसी विभाजन के फलस्वरूप विभिन्न सदस्यों को कई प्रकार की जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं। इसी जिम्मेदारी के आधार पर उनकी परिवार में स्थिति त हो जाती है। और महिला लैंगिक असमानता का जन्म इसी श्रम विभाजन के फलस्वरूप ही होता है। स्त्रियों को खाने-पीने की व्यवस्था और घर का प्रबन्धन का कार्य दिए जाने के कारण ‘ही उनको घर की चहारदिवारी में रहना पड़ता है।
  6. पति-पत्नी का सम्बन्ध (Relationship between Husband-Wife) – पति-पत्नी के बीच यौन सम्बन्ध ही परिवार का आधार होता है। इसके बिना परिवार का कोई अस्तित्व ही नहीं होता है। वंश को आगे बढ़ाना परिवार का प्रमुख कार्य है। दोनों एक दूसरे के पूरक के रूप में होते हैं। किसी का भी योगदान कम या अधिक नहीं होता, बल्कि कहा जा सकता है कि बच्चे बिना पुरुष के पैदा नहीं हो सकते पर बिना महिला के वह बच्चा अच्छी तरह पल नहीं सकता। इस आधार पर जैविक और मनोवैज्ञानिक रूप से विकास करने के लिए स्त्री का होना पुरुष की तुलना में ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।
  7. यौन सम्बन्धों की स्वीकृति (Acceptance of Sexual Relationship)—विवाह के बाद यौन सम्बन्ध को समाज की स्वीकृति मिल जाती है जिसके परिणामस्वरूप सन्तानोत्पत्ति होती है। माता-पिता तथा उनके पाल्य मिलकर एक परिवार का निर्माण करते हैं । विवाह से पहले पुरुष और स्त्री यदि यौन सम्बन्ध बनाते भी हैं तो वह वैध नहीं माना जाता और यदि बच्चा भी पैदा हो जाए तो वह परिवार नहीं माना जाता ।
  8. सामाजिक सुरक्षा (Social Security ) – परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे साम सुरक्षा भी प्रदान करते हैं । सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने में पुरुष, महिलाओं की रक्षा करते हैं और उन्हें समाज के अन्य लोगों से बचाते हैं । इसी सामाजिक सुरक्षा के कारण पुरुषों का वर्चस्व कायम हो गया और स्त्रियाँ पुरुषों पर निर्भर हो गई ।
  9. सभ्यता एवं संस्कृति का संवाहक (Conductor of Civilisation and Culture)- परिवार को सभ्यता और संस्कृति का संवाहक माना गया है। इस भूमिका में स्त्रियों को ऊँचा स्थान दिया गया है और तरह-तरह के अनुष्ठानों, व्रत, पूजा-पाठ, संस्कार आदि के लिए स्त्रियों की उपस्थिति को स्वीकारा गया है।
  10. भावात्मक आधार (Emotional Basis) – परिवार के सदस्य आपस में पारस्परिक भावात्मक रूप से बंधे हुए होते हैं। माता-पिता तथा उनके पाल्यों के मध्य त्याग व स्नेह की भावना पाई जाती है जो पारिवारिक संगठन को सुदृढ़ बनाती है। परिवार प्रेम, यौन सम्बन्ध, दया, ममता, सहयोग आदि भावनाओं को एक महत्त्वपूर्ण आधार देता है । सभी बच्चे परिवार से ही इन भावनाओं को सीखना आरम्भ करते हैं ।
  11. परिवार वास्तविक सदस्यों से मिलकर बनता है (Family is Made Up of Real Members) – परिवार में अपने रक्त सम्बन्ध और शादी शुदा लोग ही शामिल होते हैं। बाहर का कोई भी सदस्य इसकी सदस्यता प्राप्त नहीं कर सकता ।
  12. स्थायी प्रकृति ( Permanent Nature ) – परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है जिसकी प्रकृति स्थायी होती है, क्योंकि इसके सदस्य स्थाई होते हैं ।
परिवार के कार्य (Functions of Family)
  1. परिवार के मूल कार्य (Basic Function of Family)
    1. प्रजनन क्रिया – यह परिवार का सबसे अहम् कार्य है क्योंकि इसी क्रिया से सन्तान की उत्पत्ति होती है तथा परिवार की नींव पड़ती है। प्रजनन क्रिया प्राणी का जन्मजात गुण है। स्त्री का स्त्रीत्व माता बनने एवं पुरुष का पौरुषत्व पिता बनने में हैं। माता-पिता बनना प्रजनन क्रिया द्वारा ही सम्भव है।
    2. सुरक्षा – परिवार के सभी सदस्यों को सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना परिवार का प्रमुख कार्य है क्योंकि बगैर सामाजिक सुरक्षा के समाज में सम्मान प्राप्त नहीं होता तथा बगैर आर्थिक सुरक्षा के आवश्यकताओं की पूर्ति नही होती । वर्तमान समय में इसीलिए सभी मनुष्य धनी बनना चाहते हैं तथा यह तभी सम्भव है जब परिवार को पूर्ण आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा प्राप्त हो ।
    3. शिशु पालन–वैसे तो प्रत्येक जीवधारी अपनी सन्तान से अत्यधिक प्रेम करते हैं परन्तु सभी जीवों की सन्तानें अधिक समय तक अपनी माता-पिता के साथ नहीं रहते हैं जबकि मनुष्य की सन्तानें माता-पिता के संरक्षण में लम्बे समय तक रहते हैं। उनका पालन-पोषण मूल कार्य है तथा सभी मनुष्य इसका पालन करते हैं ।
    4. स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता – स्वास्थ्य मानव की अमूल्य सम्पत्ति है । अतः परिवार के सभी सदस्यों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना नितान्त आवश्यक है। परिवार के बड़े सदस्यों को परिवार के छोटे सदस्यों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान देना चाहिए । स्वास्थ्य के बगैर जीवन का भरपूर आनन्द नहीं लिया जा सकता। अतः परिवार के सभी सदस्यों को स्वास्थ्य सम्बन्धी देखभाल की आवश्यकता है तथा इसी से उनका विकास सम्भव है।
    5. मूल आवश्यकताओं की पूर्ति – मानव की तीन मूल आवश्यकताएँ होती है- रोटी, कपड़ा, मकान जिनकी पूर्ति उसे संसाधनों की सहायता से स्वयं करनी पड़ती है। अतः यह परिवार का आवश्यक कार्य है। परिवार में पल- बढ़ रहे बालकों के विकास के लिए उपरोक्त सभी मूल सुविधाएँ प्रदान करनी चाहिए।
    6. शिक्षा की व्यवस्था – प्रायः मनुष्य अपने पाल्यों का विकास अपने से भी ज्यादा चाहता है। विकास का आधार शिक्षा है, अतः परिवार में पल रहे बालकों के सम्पूर्ण विकास के लिए उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था करना परिवार का मूल कार्य है। सभी अवस्थाओं में बालक के पूर्ण विकास में शिक्षा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वर्तमान में तो शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ गया है। अतः माता-पिता को अपने पाल्य के विकास के लिए शिक्षा सम्बन्धी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए ।
  2. परिवार के सामान्य कार्य (General Function of Family)
    1. आर्थिक कार्य-परिवार के आर्थिक विकास के लिए किसी न किसी कार्य को अपनाना पड़ता है। किसी परिवार के पूर्वज जिस कार्य को करते हैं उस परिवार के बालक भी उसी कार्य को करते हैं। जैसे- यदि किसी परिवार के पूर्वज कृषि कार्य करते हैं तो उस परिवार के बालक भी उसी कार्य को करेंगे। ये कार्य परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक है क्योंकि परिवार समाजीकरण के सिद्धान्त पर आधारित होता है। अतः यह परिवार के आर्थिक कार्य कहलाते हैं ।
    2. सामाजिक कार्य – परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है। सभी मानव समाज में अपना स्थान निर्धारित करने के लिए समाज के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है तथा व्यवहार स्थापित करता है। यह तभी सम्भव है जब मनुष्य में सामाजिक गुणों का विकास हो। सामाजिक गुणों के विकास की प्रथम पाठशाला परिवार ही है। सभी माता-पिता अपने पाल्यों में सामाजिक गुणों का विकास करते हैं जिसे परिवार के सामाजिक कार्य कहते हैं ।
    3. धार्मिक कार्य – भारतीय समाज में परिवार द्वारा धार्मिक कार्यों को करना एक सामान्य सी बात है। सभी माता-पिता अपने बालकों में सहानुभूति, प्यार, बलिदान, समर्पण भावना एवं आध्यात्मिक विकास जैसे गुणों का विकास करना चाहते हैं, जिसे हम धार्मिक शिक्षा भी कहते हैं ।
    4. सांस्कृतिक कार्य – परिवार एक ऐसी संस्था होती है जहाँ संस्कृति का विकास उत्तम तरीके से होता है। मानव का खान-पान वेशभूषा, आदतें, भाषा, खेल, विभिन्न गुण उसकी संस्कृति कहलाती है तथा प्रत्येक मानव इसका विकास करना चाहता है ।
    5. व्यक्तित्व का विकास परिवार एक ऐसी संस्था है जिसके द्वारा बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावात्मक एंव आध्यात्मिक विकास करने का सुअवसर प्राप्त होता है। प्रत्येक माता-पिता अपने बालकों के सर्वांगीण विकास के प्रति सचेत रहते हैं, जिससे बालक अपना विकास करके उत्तम नागरिक बन सकें तथा राष्ट्र व समाज के विकास में हाथ बँटा सकें। परिवार में पलने वाले बालकों के व्यक्तित्व का विकास करना परिवार का ही कार्य है ।
    6. मनोरंजन सम्बन्धी कार्य – परिवार में पलने वाले बालकों के पालन-पोषण के लिए तथा अपनी जीविका निर्वाह के लिए मानव किसी न किसी व्यवसाय को अपनाता है जिसमें उसको कठिन परिश्रम करना पड़ता है जिससे वह थकावट अनुभव करता है। चिन्ता एवं तनाव में जीवन व्यतीत करता है । थकावट को दूर करने एवं चिन्ता व तनाव से मुक्ति पाने के लिए वह मनोरंजन का सहारा लेता है, जिसके लिए उसे मनोरंजन के साधनों की व्यवस्था करनी पड़ती है जो परिवार के मनोरंजन सम्बन्धी कार्य कहलाते हैं ।
    7. नागरिकता सम्बन्धी कार्य – बालक में गुण तो जन्म से ही विद्यमान होते हैं बस उन गुणों का परिवार के अन्दर विकास किया जाता है। अनुशासन, सहनशक्ति, वफादारी आदि गुण बालक परिवार में रहकर ही सीखता है। इसलिए परिवार बालक को अच्छा नागरिक बनाने वाला शाश्वत् विद्यालय है। मैजिनी के अनुसार, “बालक नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुम्बन एवं पिता के दुलार से सीखता है।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *