1st Year

पुरुषत्व और स्त्रीत्व की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। पुरुषत्व और स्त्रीत्व के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालिए | Explain the concept of Masculinity and Femininity. Throw light on the different aspects of Masculinity and Femininity.

प्रश्न – पुरुषत्व और स्त्रीत्व की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। पुरुषत्व और स्त्रीत्व के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालिए | Explain the concept of Masculinity and Femininity. Throw light on the different aspects of Masculinity and Femininity.
या
पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व का मुद्दा | Issue of Masculinity and Femininity. 
उत्तर- पुरुषत्व और स्त्रीत्व की अवधारणा – लैंगिक पहचान का तात्पर्य है अपने आप को किसी विशेष लिंग के लक्षणों के आधार पर पहचानना। जिन अर्थों एवं सन्दर्भों के कारण कोई व्यक्ति अपने आप एक विशेष लिंग का व्यवहार अपनाता है, वही लैंगिक पहचान है। जैसे- कोई पुरुषत्व को अपनी पहचान मानता है। वह अपने आप को ज्यादा स्वायत्त, प्रतिस्पर्धी एवं हावी होने की प्रकृति वाला मानने लगता है। जन्म के समय से ही अपने लिंग को स्व- अर्थ (Self-meaning) प्रदान करना सामाजिक परिस्थितियों (जिसके अन्तर्गत अपने माता-पिता, भाई-बहनों द्वारा किया जाने वाला व्यवहार एवं प्रतीकों का प्रदर्शन) पर निर्भर करता है ।

एक स्त्री जो अपने आप को स्त्री – वर्ग से सम्बन्धित कर सकती है पर वह अपने आप को पुरुष वाले लक्षणों से भी युक्त मान सकती है एवं उसी के अनुसार व्यवहार कर सकती है। अर्थात् वह अपने आप को लैंगिक रूढ़िवादिता से अलग करके पुरुषत्व के लक्षणों को अपना सकती है, जैसे- ज्यादा बेबाक होना, स्वतन्त्र मानना, बालों को लड़कों के जैसे रखना, चलने का ढंग, दूसरों पर हावी होना, निडरता का परिचय देना, ज्यादा तर्क करना, शृंगार न करना आदि। कुछ व्यक्तियों में स्त्रीत्व के लक्षण ज्यादा मात्रा में हो सकते हैं और कुछ व्यक्तियों में पुरुषत्व के लक्षण ज्यादा मात्रा में हो सकते हैं और कुछ लोगो में स्त्रीत्व और पुरुषत्व दोनों का मिश्रण पाया जा सकता है। पुरुषों में जिन लक्षणों को सामान्यतः लैंगिक लक्षण के रूप में जाना जाता है, उसका योग पुरुषत्व कहलाता है। शक्ति, बुद्धि, सत्ता, धन, वाय रूप, व्यक्तित्व, कामुकता, इंद्रियानुभाविक ( Strength, Power and Intelligence, Authority,, Money, Appearance, Personality, Sexuality, Sensitivity) आदि वर्णित लक्षण पुरुष का व्यक्तित्व बताने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

कुछ सामान्य तथ्य
  1. पुरुषत्व और स्त्रीत्व, सामाजिक प्रत्यय है न कि जैविक प्रत्यय ।
  2. पुरुषत्व और स्त्रीत्व का निर्धारण समाज के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
  3. पुरुषत्व और स्त्रीत्व, लिंग पहचान से सम्बन्धित प्रत्यय है।
  4. लैंगिक पहचान (Gender Identity), लैंगिक – भूमिका (Gender-Role) से भिन्न है।
  5. लैंगिक पहचान (Gender Identity), लैंगिक – रूढ़िवादिता (Gender Stereotyping) से भी भिन्न है।
  6. लैंगिक पहचान, लैंगिक अभिवृत्ति से भी भिन्न है।
  7. लैंगिक पहचान को प्रभावित करने में लैंगिक भूमिका, लैंगिक रूढ़िवादिता और लैंगिक अभिवृत्ति की मुख्य भूमिका हो सकती है फिर भी लैंगिक पहचान इन तीनों प्रत्ययों से भिन्न प्रत्यय है ।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि स्त्रीत्व और पुरुषत्व एक व्यक्तिगत अर्थीकरण है जो एक व्यक्ति अपने आप को प्रदान करता है।

स्त्रीत्व व पुरुषत्व से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
  1. स्व का निर्माण, दूसरों के साथ अन्तःक्रिया के फलस्वरूप होता है। लैंगिक पहचान स्व- अर्थ से ही सम्बन्धित होने के कारण दूसरों के साथ अन्तः क्रिया पर ही निर्भर है।
  2. व्यक्ति उन्हीं व्यवहारों व लक्षणों को अपनाता है जो उनके लिंग विशेष से समानता रखता है।
  3. स्त्रीत्व व पुरुषत्व से अपने आप को सम्बन्धित करने के बाद ही कोई व्यक्ति अपने लिंग से सम्बन्धित व्यवहार प्रदर्शित करने लगते हैं ।
पुरुषत्व और स्त्रीत्व का मनोवैज्ञानिक पक्ष
पुरुषत्व और स्त्रीत्व, विशेष रूप से लैंगिक पहचान, अभिवृत्ति एवं लक्षणों की अभिव्यक्ति है। विशेष लिंग के लिए क्या उपयुक्त है, इसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। मनोविज्ञान में रुचि (Interest ) शब्द का प्रयोग किया जाता है जो यह मानकर चलता है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी कुछ रुचियाँ होती हैं जिसको वह वरीयता प्रदान करता है। रुचि का सम्बन्ध हमारे मनोवैज्ञानिक स्थिति से है। हमारा मस्तिष्क अपने लिए कुछ वरियताओं का स्थायीकरण करता है जिसे हम रुचि कहते हैं ।

पुरुषत्व और स्त्रीत्व यद्यपि सामाजिक प्रत्यय हैं पर इससे सम्बन्धित लक्षणों एवं अभिवृत्तियों को अपनाना एक मनोवैज्ञानिक पक्ष है। समाज में जो लक्षण, प्रतीक, व्यवहार एवं अभिवृत्ति किसी विशेष लिंग से सम्बन्धित किए गए हैं वहीं पुरुषत्व और स्त्रीत्व की परिभाषा तय करते हैं पर इनको अपनाना एक मनोवैज्ञानिक व्यवहार है। मनोविज्ञान में रुचि का आधार पसन्द या ना पसन्द से माना जाता है अर्थात् जो हमे पसन्द होता है वही हमारी रुचि का क्षेत्र तय करता है।

इस सम्बन्ध में लेविस टर्मन और कैथरीन कोक्स मिल्स ने 455 मतों की एक सूची बनाई जिसके आधार पर पुरुषत्व और स्त्रीत्व का पता लगाया जा सकता है। इन मतों को उन्होंने अभिरुचि, रुचि एवं विश्लेषण परीक्षण (Attitude, Interest Analysis Test) में प्रयोग किया । इस परीक्षण में स्त्रीत्व और पुरुषत्व पर आधारित चेकलिस्ट में अपनी वरीयता प्रदान करके पता लगाया जा सकता है कि आप में स्त्रीत्व और पुरुषत्व की कितनी मात्रा है।

एन्ड्रोजीनी (Androgyny ) – इस शब्द का प्रयोग स्त्रीत्व और पुरुषत्व के सन्तुलन का मिश्रण करने के लिए किया जाता है। यह उस अवधारणा के विरुद्ध है कि कोई व्यक्ति या तो स्त्रीत्व के गुणों से परिपूर्ण होगा या पुरुषत्व के गुणों से। एन्ड्रोजीनी एक ऐसा प्रत्यय है जिसका प्रयोग उस अवस्था के लिए किया जाता है जब किसी व्यक्ति में स्त्रीत्व और पुरुषत्व दोनों का मिश्रण पाया जाता है तो उसे “एन्ड्रोजीनी” कहा जाता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि कोई व्यक्ति स्त्रीत्व, पुरुषत्व और दोनों का मिश्रण हो सकता है।

स्त्रीत्व व पुरुषत्व का समाजशास्त्रीय पक्ष
समाजशास्त्र के दृष्टिकोण से लैंगिक पहचान का विकास स्व–अर्थ (self-meaning) से होता है। इन स्व–अर्थों का सोपानीकरण यानि एक वरीयता क्रम में पिरोया जाना लैंगिक पहचान का आधार होता है जो कि लिंग विशेष व्यवहार को अभिप्रेरित करता है। किसी एक व्यक्ति का स्त्रीत्व या पुरुषत्व, उसके द्वारा सामाजिक भूमिकाओं के सन्दर्भ में स्व–अर्थ को सम्बन्धित करने पर निर्भर करता है। समाज शास्त्रीय दृष्टिकोण से, स्त्रीत्व व पुरुषत्व दोनों एक दूसरे के विरोधी प्रत्यय हैं अर्थात् स्त्रीत्व और पुरुषत्व दोनों ही अलग-अलग सन्दर्भों एवं अपेक्षाओं में देखे जाते हैं। स्त्रीत्व से सम्बन्धित लक्षणों को हम उनकी सामाजिक भूमिकाओं से सम्बन्धित करके ही देखते हैं।
स्त्रीत्व और पुरुषत्व जन्मजात न होकर सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों पर आधारित होता है
 स्त्रीत्व और पुरुषत्व जन्मजात नहीं होते। माग्रेट मीड जो एक मानवशास्त्री (Anthropologist) हैं, का मानना है कि अभिवृत्तियों एवं सामाजिक व्यवहार में विभिन्नता जैविक विभिन्नता के कारण नहीं होती है। दोनों लिंगों में स्त्रीत्व और पुरुषत्व का अन्तर, दोनों लिंगों के सामाजीकरण और सांस्कृतिक अपेक्षाओं में अन्तर के कारण होता है।

मीड महोदय ने अपनी पुस्तक “Sex and Temperament in Three Primitive Societies (1935)” में जिन तीन समाजों का अध्ययन किया उनमें से एक समुदाय के दोनों लिंगों के व्यक्ति “स्त्रीत्व” के लक्षणों को प्रदर्शित किया। उनमें से एक समाज “मुंदुगेमर” (Mundugamar) में दोनों लिंगों के व्यक्तियों ने पुरुषत्व के लक्षणों को ही प्रदर्शित किया। तीसरे समाज “चांबुली” (Tchambuli) में दोनों लिंगों के व्यक्तियों ने विपरीत लक्षणों को प्रदर्शित किया । अर्थात् स्त्रियाँ, पुरुषत्व के लक्षणों को प्रदर्शित करती हैं जबकि पुरुष, स्त्रीत्व के लक्षणों को प्रदर्शित करते हैं। मीड के इस अध्ययन ने पुरुषत्व और स्त्रीत्व के पारम्परिक लक्षणों के बारे में पुनः सोचने को मजबूर किया है। यद्यपि इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जन्मजात लक्षण इन दोनों लिंगों में पाया जाता है लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम होती है। इन मात्राओं की वृद्धि सामाजीकरण एवं सांस्कृतिक अपेक्षाओं के कारण हो जाती है।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *