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प्लवन किसे कहते हैं | प्लवन का सिद्धांत क्या है | प्लवन का नियम क्या है

प्लवन किसे कहते हैं | प्लवन का सिद्धांत क्या है | प्लवन का नियम क्या है

प्लवन
प्लवन (तैरने) अथवा उत्प्लावक बल (Buoyant Force)
◆ द्रव का वह गुण जिसके कारण वह वस्तुओं पर ऊपर की ओर एक बल लगाता है, उसे उत्क्षेप या उत्प्लावक बल कहते हैं। यह बल वस्तुओं द्वारा हटाये गये द्रव के गुरुत्व-केन्द्र पर कार्य करता है जिसे उत्प्लावन केन्द्र (Centre of Buoyancy) कहते हैं। सर्वप्रथम आर्किमिडीज ने इसका अध्ययन किया था।
आर्किमिडीज का सिद्धान्त
◆ जब कोई वस्तु किसी द्रव में पूरी अथवा आंशिक रूप से डुबोई जाती है, तो उसके भार में कमी का आभास होता है। भार में यह आभासी कमी वस्तु द्वारा हटाये गये द्रव के भार के बराबर होता है।
प्लवन का नियम
(i) संतुलित अवस्था में तैरने पर वस्तु अपने भार के बराबर द्रव विस्थापित करती है।
(ii) ठोस का गुरुत्व-केन्द्र तथा हटाये गये द्रव का गुरुत्व-केन्द्र दोनों एक ही उर्ध्वाधर रेखा में होने चाहिए।
◆ आपेक्षिक घनत्व (Relative Density) एक अनुपात है। इसका कोई मात्रक नहीं होता है।
आपेक्षिक घनत्व को हाइड्रोमीटर (IIydrometer) से मापा जाता है।
◆ सामान्य जल की अपेक्षा समुद्री जल का घनत्व (Density) अधिक होता है, इसीलिए इसमें तैरना आसान होता है।
◆ जब बर्फ पानी में तैरती है, तो उसके आयतन का 1/10 भाग पानी के ऊपर रहता है।
◆ किसी बर्तन में पानी भरा है और उस पर बर्फ का टुकड़ा तैर रहा है, जब बर्फ पूरी तरह पिघल जाती है तब भी, पात्र में पानी का तल नहीं बढ़ता है, पहले के समान ही रहता है।
◆ दूध की शुद्धता दुग्धमापी (Lactometer) से मापी जाती है।
मित केन्द्र (Meta Centre)
◆ तैरती हुई वस्तु द्वारा विस्थापित द्रव के गुरुत्व-केन्द्र को उत्प्लावन-केन्द्र कहते हैं। उत्प्लावन केन्द्र से जाने वाली ऊर्ध्व रेखा जिस बिन्दु पर वस्तु के गुरुत्व केन्द्र से जाने वाली प्रारंभिक ऊर्ध्व रेखा को काटती है, उसे मित केन्द्र कहते हैं।
तैरने वाली वस्तु के स्थायी संतुलन के लिए शर्ते
(i) मित केन्द्र गुरुत्व केन्द्र के ऊपर होना चाहिए।
(ii) वस्तु का गुरुत्व केन्द्र तथा हटाये गये द्रव का गुरुत्व केन्द्र अर्थात् उत्प्लावन केन्द्र दोनों को एक ही ऊर्ध्वाधर रेखा में होना चाहिए।

हाइड्रोमीटर Hydrometer

इससे तरल पदार्थों का आपेक्षिक घनत्व मापा जाता है। यह प्लवन के सिद्धान्त पर आधारित है। आर्किमीडीज के सिद्धान्त व प्लवन के नियम के दैनिक जीवन में अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। जैसे-

1. लोहे का जहाज पानी पर तैरता है, परन्तु लोहे की कील पानी में डूब जाती है। इसका कारण जहाज की विशेष बनावट है। जहाज की विशेष बनावट के कारण इसके द्वारा हटाए गए पानी का भार, जहाज के भार से अधिक होता है, जिसके कारण इस पर अधिक उत्प्लावन बल लगता है व जहाज तैरता रहता है। कील द्वारा हटाए गए द्रव का भार कील के स्वयं के भार से कम होता है, फलतः कील पानी में डूब जाती है।

2. जीवन रक्षा पेटी (life belt), पनडुब्बी भी इसी सिद्धान्त पर कार्य करते हैं। आकिमिडीज का सिद्धान्त गैसों के लिए भी सत्य है

तैरने के नियम

जब वस्तु किसी द्रव में तैरती है, तो उसका भार उसके द्वारा हटाए गए द्रव के भार के बराबर होता है, तथा वस्तु का गुरुत्व-केन्द्र तथा हटाए गए द्रव का गुरुत्व-केन्द्र दोनों एक ही उर्ध्वाधर रेखा में होते हैं।

मित केन्द्र (Meta Centre): तैरती हुई वस्तु द्वारा विस्थापित द्रव के गुरुत्व-केन्द्र को उत्लावन केन्द्र कहते हैं। उत्प्लावन केन्द्र से जाने वाली उध्र्व रेखा जिस बिन्दु पर वस्तु के गुरुत्व-केन्द्र से जाने वाली प्रारंभिक ऊध्र्व रेखा को काटती है, उसे मित केन्द्र कहते हैं। तैरने वाली वस्तु के स्थायी संतुलन के लिए मित केन्द्र, गुरुत्व-केन्द्र के ऊपर होना चाहिए।

किसी बर्तन में पानी भरा है और उस पर बर्फ तैर रही है। जब बर्फ पूरी तरह पिघल जाएगी तो पात्र में पानी का तल अपरिवर्तित रहता है अर्थात् पानी का तल पहले के समान ही रहता है।

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