1st Year

बन्दुरा का सामाजिक संरचनात्मक सिद्धान्त क्या है? इसके गुण दोषों का उल्लेख कीजिए । What are the socio-contructivism theory of bandura ? Describe its merits and demerits.

प्रश्न  – बन्दुरा का सामाजिक संरचनात्मक सिद्धान्त क्या है? इसके गुण दोषों का उल्लेख कीजिए । . What are the socio-contructivism theory of bandura ? Describe its merits and demerits.
या
बन्दूरा के सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता लिखिए । Write Educational implications of Bandura’s Theory 
या
वाण्डुरा के सामाजिक रचनावादी सिद्धान्त की प्रकृति का वर्णन कीजिए | Discuss the nature of Bandura’s Social Constructivist Theory 
उत्तर- बन्दुरा का सामाजिक संरचनात्मक सिद्धान्त (Bandura’s Theory of Social Teaching)
किशोरावस्था के सामाजिक शिक्षण सिद्धान्त का प्रतिपादन अल्बर्ट बन्दुरा ने किया था। इसीलिए इनके सिद्धान्त को ‘बन्दुरा का सामाजिक शिक्षण सिद्धान्त’ नाम दिया गया। वैसे तो अल्बर्ट बन्दुरा का जन्म सन् 1925 ई. में कनाडा में हुआ था लेकिन वे एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक की हैसियत से जाने गये।

बन्दुरा का यह मानना था कि किशोरावस्था के स्वरूप की पूर्ण व्यवस्था ‘हॉल’ के पुनरावर्तन एवं अर्जित गुणों की वंशागति के सम्प्रत्ययों तथा ‘फ्रॉयड’ के लिबीडो (काम- इच्छा) के संप्रत्यय के आधार पर सम्भव नहीं हो सकता है क्योंकि ‘हॉल का पुनरावर्तन सिद्धान्त तथा फ्रॉयड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त किशोरावस्था की विशेषताओं एवं समस्याओं की व्याख्या मुख्यतः जननिक (Genetic) या वंशागति ( Inheritance) के आधार पर करते हैं जिसे बन्दुरा ने स्वीकार नहीं किया । मानना था कि किशोरावस्था के विकास में (Observational Conditioning) का इनका निरीक्षण – अनुकूलन महत्त्वपूर्ण हाथ होता है।

निरीक्षण–अनुकूलन को ही इन्होंने सामाजिक शिक्षण की भी संज्ञा दी । इनके अनुसार किशोर बालक तथा किशोरी बालिकाएं अपनी सामाजिक परिस्थितियों का निरीक्षण कर उचित (वांछित) और अनुचित (अवांछित) दोनों तरह के व्यवहार को स्वतः सीख लेते हैं जो किशोर आक्रामक व्यवहार का निरीक्षण करते हैं वे आक्रामक व्यवहार करना सीख जाते हैं तथा आक्रामक प्रवृत्ति ( आक्रामक व्यक्तित्व वाले) के हो जाते हैं परन्तु जिन किशोरों को यह अवसर प्राप्त नहीं होता है वे इस प्रकार के आक्रामक प्रवृत्ति वाले नहीं होते हैं ।

बन्दुरा ने अपने अध्ययनों द्वारा इस बात की पुष्टि भी की है। इन्होंने अपने एक प्रयोग से नर्सरी कक्षा में पढ़ने वाले बालकों को वयस्कों की एक फिल्म दिखाई जिसमें वे एक बड़े प्लास्टिक के गुड्डे के साथ आक्रामक व्यवहार जैसे- खींचना, पीटना तथा मारना आदि कर रहे थे। इस फिल्म को देखने वाले बालकों ने भी अपने खिलौनों को मारने-पीटने तथा नोंचने लगे परन्तु जिन बच्चों ने यह फिल्म नहीं देखी उन्होंने इस तरह का कोई व्यवहार नहीं किया। इस प्रकार इस प्रयोग द्वारा स्पष्ट होता है कि बालकों ने इस प्रकार की अनोखी अनुक्रियाएँ पुनर्बलन के कारण ही सम्पादित की । अनुकरण द्वारा सीखने की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि ‘मॉडल’ को किस प्रकार का दण्ड या पुनर्बलन मिला ।

बन्दुरा के सिद्धान्त के गुण / विशेषताएँ (Merits / Characteristics of Bandura’s Theory)
  1. यह सिद्धान्त अधिकतर शोध- मनोवैज्ञानिकों एवं नैदानिक मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व के अध्ययन के लिए एक नवाचार माना है।
  2. यह वस्तुनिष्ठ सिद्धान्त है और प्रायोगिक विधि के द्वारा इस सिद्धान्त की प्रामाणिकता को सिद्ध किया जा सकता है।
  3. मॉडलिंग की प्रविधि में इस सिद्धान्त का व्यावहारिक प्रयोग अति उपयोगी सिद्ध हुआ है।
  4. यह सिद्धान्त नैदानिक समस्याओं के समाधान में भी अति उपयोगी है।
  5. यह सिद्धान्त शिक्षकों को इस बात की भी प्रेरणा देता है कि उन्हें अपने विद्यार्थियों के लिए जीवित जाग्रत मॉडल के रूप में विकसित होना है।
बन्दुरा के सिद्धान्त की शैक्षिक उपयोगिता (Educational Implication Of Theory of Bandura)
  1. छात्र दूसरे लोगों के व्यवहार को देखकर अधिक सीखते हैं।
  2. व्यवहार के परिणामों का वर्णन करना उचित व्यवहार को प्रभावी ढंग से बढ़ा सकता है।
  3. अनुचित व्यवहार को कम कर सकता है।
  4. इसमें शिक्षार्थियों के विभिन्न व्यवहारों के पुरस्कार एवं परिणामों के बारे में चर्चा करना शामिल हो सकता है।
  5. प्रतिरूपण नए व्यवहार के शिक्षण को आकार देने का विकल्प प्रदान करता है।
  6. प्रतिरूपण शिक्षण का एक तीव्र, अधिक कुशल माध्यम है।
  7.  शिक्षकों एवं माता-पिता को उचित व्यवहार का निर्माण करना चाहिए ।
  8. यह ध्यान देना चाहिए कि छात्र अनुचित व्यवहार का अनुसरण तो नहीं कर रहे हैं।
  9. शिक्षकों को छात्रों के सामने विभिन्न मॉडलों का प्रर्दशन करना चाहिए जो परंपरागत रूढ़िवाद को तोड़ने के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।
  10. छात्रों को विश्वास होना चाहिए कि वे स्कूल के कार्यों को पूरा करने में सक्षम हैं।
  11. इस प्रकार छात्रों के लिए आत्म-प्रभावकारिता की भावना विकसित करना महत्त्वपूर्ण होता है ।
  12. शिक्षकों को शैक्षिक उपलब्धियों के लिए वास्तविक अपेक्षाओं को स्थापित करने में छात्रों की सहायता करनी चाहिए।
  13. यह सुनिश्चित करना कि अपेक्षाएं वास्तव में चुनौतीपूर्ण होती हैं। कभी-कभी कुछ कार्य छात्र की क्षमता से परे होते हैं ।
  14. स्व – विनियमन तकनीक छात्र व्यवहार में सुधार हेतु एक प्रभावी विधि प्रदान करती है
बन्दुरा के सिद्धान्त के दोष (Demerits of Bandura’s Theory )
  1. व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक ने इस सिद्धान्त को अमनोवैज्ञानिक बताया है और कहा है कि इस सिद्धान्त में वस्तुनिष्ठा का भी अभाव है।
  2. संज्ञानात्मक चरों की भूमिका को इस सिद्धान्त में स्पष्ट नहीं किया गया है ।
  3. इस सिद्धान्त में केवल वाह्य व्यवहार को ही महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है परन्तु आन्तरिक अचेतन प्रेरणात्मक पहलुओं को कोई स्थान नहीं दिया गया ।
अतः हम कह सकते हैं कि किशोरों की विशेषताओं तथा समस्याओं की व्याख्या करने में बन्दुरा द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धान्त ‘हॉल के पुनरावर्तन सिद्धान्त’ तथा ‘फ्रॉयड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की तुलना में अधिक स्पष्ट, संतोषजनक एवं व्यावहारिक प्रतीत होता है क्योंकि व्यक्तित्व का यह सिद्धान्त भारतीय दृष्टिकोण के निकट है जिसमें व्यक्तित्व के निर्माण हेतु श्रेष्ठ लोगों के अनुकरण पर बल दिया गया है ।

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