ब्रूनर द्वारा दी गई बालक के विकास अवस्थाओं का वर्णन कीजिए। ब्रूनर के सिद्धान्त का शिक्षा में योगदान लिखिए। Explain the stages of child development of Bruner’s Theory. Write the contribution of Bruner’s Theory in Education.
जेरोम एस. ब्रूनर (Jerome S. Bruner) ने 1960 ई. में ‘शिक्षा की प्रक्रिया’ नामक एक पुस्तक लिखी। यह पुस्तक शिक्षा से सम्बन्धी विभिन्न संगोष्ठियों में शिक्षा की समस्याओं एवं विचारों की प्रस्तुति पर लिखी गई। इसमें ब्रूनर ने गणित पढ़ानें सम्बन्धी प्रमेयों का निर्माण कर शिक्षण सिद्धान्तों को विकसित किया ।
ब्रूनर के अनुसार, शिक्षण सिद्धान्त का सम्बन्ध इस बात से है कि शिक्षक क्या सिखाना चाहता है? इसका सम्बन्ध अधिगम की व्याख्या के बजाय विकास से है।”
सीखने के लिए ब्रूनर ने सन् 1956 में एक मॉडल को प्रस्तुत किया। इसका उपयोग पाठ्य-योजना सम्प्रेषण, प्रत्यय-निष्पत्ति प्रतिमान तथा सूचना प्रकरण के लिए किया गया। इसके द्वारा विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने यह जानने का प्रयास किया कि मानव अपने प्रत्ययों की रचना कैसे करता है? मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक सीखने के सिद्धांतकार जेरोम ब्रूनर (1967) ने पहली बार एक किताब में खोज के सिद्धांतों को रेखांकित किया था कि कैसे लोग पूर्व अनुभवों के आधार पर ज्ञान का निर्माण करते हैं। इसी तरह के रचनात्मक ज्ञान सिद्धांत जॉन ड्यूवी, जीन पियाजे एवं वाइगोत्स्की द्वारा विकसित किए गए थे, जिनमें सभी ने सुझाव दिया कि विद्यार्थियों को खोज द्वारा सीखने से सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय सहभागियों का अनुभव प्राप्त करने एवं अनुभवों के माध्यम से सवालों के जवाब देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
- विश्लेषणात्मक चिन्तन बनाम अन्तदर्शी चिन्तन (Analysis Thinking versus Inditive Thinking) ब्रूनर के अनुसार विश्लेषणात्मक चिन्तन पर अन्तदर्शी चिन्तन की अपेक्षा अधिक ध्यान दिया जाता है जबकि अन्तर्दर्शी चिन्तन किसी विषय को सीखने हेतु अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अन्तर्दर्शन द्वारा ही पाठ को तत्काल ग्रहण किया जा सकता है। ब्रूनर के अनुसार, “अन्तर्दर्शन से आशय ऐसे व्यावहार से है जिसमें व्यक्ति अपने विश्लेषणात्मक उपायों पर बिना किसी तरह की निर्भरता दिखाए ही किसी परिस्थिति या समस्या की संरचना, महत्त्व व अर्थ को समझता है।
According to Bruner, “Instruction implies the act of grasping the meaning, significance or structure of a problem or situation without explicit reliance on the analytic apparatus of one’s craft.”
- तत्परता (Readiness ) – ब्रूनर ने बालको के पाठ्यक्रम के अनुसार क्षमता विकसित करना सर्वथा गलत माना है। उनके अनुसार किसी भी उम्र के बालक को कोई भी विषय सिखाने हेतु तत्पर किया जा सकता है।
- शिक्षार्थियों द्वारा स्वयं कार्य करने की उपयोगिता (Importance of Doing Things on his own by Learners) – ब्रूनर का मानना है कि अधिगम के दौरान बालकों को सक्रिय रहना चाहिए क्योंकि इससे बालकों को पाठ जल्दी व आसानी से समझ में आ जाता है। इस विधि द्वारा बालक जो भी सीखता है उसे वह अधिक दिनों तक याद रहता है।
- अन्वेषणात्मक सीखना (Discovery Learning)-ब्रूनर ने इस बात पर जोर दिया किस अधिगम की सर्वोत्तम विधि अन्वेषण विधि है। उन्होंने कहा कि अध्यापकों को यह मान लेना चाहिए कि ज्ञान आत्म अन्वेषित होता है। ऐसा ज्ञान जो छात्रों द्वारा आत्म-अन्वेषित होता है छात्रों के लिए बहुत उपयोगी होता है।
- सम्बद्धता का महत्त्व (Importance of Relevance ) – ब्रूनर ने अपनी पुस्तक ‘द रेलिवेन्स ऑफ एजुकेशन’ (The Relevance of Education) में ब्रुनर ने दो प्रकार की सम्बद्धता का उल्लेख किया है- सामाजिक सम्बद्धता (Social Relevance) व्यक्तिगत सम्बद्धता (Personal Relevance) | ब्रुनर ने कहा शिक्षा सिर्फ व्यक्तिगत रुप से नहीं बल्कि सामाजिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के अनुरूप होनी चाहिए।
- पाठ की संरचना ( Structure of Discipline ) – ब्रूनर के अनुसार बालकों को सिखाने हेतु प्रत्येक विषय की कुछ विधियाँ व नियम होते हैं जिन्हें बालकों द्वारा सीखना आवश्यक होता है क्योंकि बिना इन्हें सीखे वह वस्तुओं का सही उपयोग नहीं कर पाएगा।
- भाषा विकास (Language Development ) – ब्रूनर के सिद्धान्त की प्रतीकात्मक अवस्था बालकों में भाषागत – शिक्षण विकास करता है। यह भाषा सम्बन्धी विकास भाषाको एक नई दिशा प्रदान करता है।
- अन्वेषण विधि (Heuristic Method) – शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में ब्रूनर का यह सिद्धान्त समस्या समाधान और अन्वेषण विधि को प्राथमिकता प्रदान करता है। यह विधि अधिगम सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्य को सम्पन्न करने में सहायता करता है।
- शिक्षण विधि ( Teaching Method) – शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रयुक्त शिक्षण विधियों में ब्रूनर के बौद्धिक विकास की अवस्थाओं के आधार पर परिवर्तन तथा उसके अनुकूल बनाने का प्रयास किया गया ।
- प्रत्यय (Concept) – ब्रूनर द्वारा निर्माण की प्रक्रिया में प्रत्यय को अत्यधिक महत्त्व दिया गया। प्रत्यय को बल देकर उसके समझ को विकसित करने का प्रयास किया गया है। यह विभिन्न विषय-वस्तु को समझने तथ अधिगम करने में सहायता प्रदान करता है।
- बौद्धिक विकास (Intellectual Development)- ब्रूनर ने बौद्धिक विकास की अवस्थाओं की नवीन व्याख्या की। बौद्धिक अवस्थाओं के विकासक्रम को स्पष्ट कर ब्रूनर ने अधिगम को एक नया मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान किया ।
- पाठ्यचर्या निर्माण- संज्ञानात्मक विकास (Curriculum Construction Cognitive Development)- ब्रूनर का यह सिद्धान्त पाठ्यचर्या निर्माण एवं बालक के संज्ञानात्मक विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है। इसकी सहायता से पाठ्यचर्या के निर्माण एवं बालक के संज्ञानात्मक विकास हेतु एक व्यवस्थित आधार प्रदान किया गया ।
- आनुवांशिक अधिगम (Genetic Learning)-ब्रुनर का यह सिद्धान्त इस अवधारणा को भी व्यक्त करता है कि अधिगम वर्तमान अनुभवों के साथ-साथ अन्य पूर्व ज्ञान एवं अनुभव द्वारा भी होता है।
- शिक्षक की नवीन भूमिका (New Role Teacher) – इस सिद्धान्त ने शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में नवीन भूमिका के निर्वाहन पर बल दिया। इसकी सहायता से शिक्षक शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जा सकता है।
- अधिगम के सिद्धान्तों की व्याख्या (Explanation of Learning Principles ) – यह सिद्धान्त अधिगम के सिद्धान्तों की व्याख्या कर शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सरल एवं प्रभावी बनाने का कार्य किया।
- शैक्षणिक शोध (Educational Research) – ब्रूनर के विकासवादी सिद्धान्त नें ही शैक्षणिक शोध की विचारधारा का प्रादुर्भाव किया। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों इसी विचारधारा के आधार पर शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में शोधकार्य किया ।
