भारतीय शिक्षा आयोग का मूल्यांकन कीजिए | आयोग की सिफारिशों का भारतीय शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा? वर्णन कीजिए ।
प्रश्न – भारतीय शिक्षा आयोग का मूल्यांकन कीजिए | आयोग की सिफारिशों का भारतीय शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा? वर्णन कीजिए ।
Evaluate the Indian Education Commission. How the recommendations of the Commission affected Indian education? Describe.
उत्तर – भारतीय शिक्षा आयोग का मूल्यांकन (Evaluation of Indian Education Commission)
भारतीय शिक्षा आयोग के सदस्यों में देश और विदेश के विद्वान तथा शिक्षा – विशेषज्ञ थे इसलिए इन्होनें भारतीय शिक्षा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए जिनसे शिक्षा के सभी स्तरों में सुधार होना शुरू हुआ।
आयोग के गुण (Merits of Commission )
- नीति बनाने सम्बन्धी तत्त्वों का निर्माण आयोग ने शिक्षा पर बजट का 6% व्यय करने का सुझाव दिया। पूरे देश के लिए समान शिक्षा नीति प्रस्तुत की जिसके फलस्वरूप भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 और 1986 दोनों में पूरे देश के लिए समान शिक्षा संरचना की घोषणा की गई ।
- शिक्षा की उचित व्यवस्था – आयोग ने 6 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिए 20 वर्षों के अन्दर निःशुल्क एवं प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था करने, माध्यमिक स्तर पर 70% बच्चों के लिए शिक्षा पूर्ण इकाई के रूप में और शेष 30% बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए तैयार करने का सुझाव दिया ।
- उपयुक्त उद्देश्य – आयोग ने शिक्षा के जो उद्देश्य निश्चित किए वे तब भी महत्त्वपूर्ण थे और आज भी। शिक्षा के क्षेत्र में ये उद्देश्य अति उपयोगी सिद्ध हुए। किसी भी देश की शिक्षा के विकास के लिए ये उद्देश्य बहुत आवश्यक हैं।
- प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी उपयुक्त सुझाव आयोग ने सम्पूर्ण प्राथमिक शिक्षा के विषय में सुझाव दिए जैसे अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा, शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियाँ, प्राथमिक शिक्षा के विस्तार, अपव्यय व अवरोधन के सम्बन्ध में दिए गए सुझाव अति उपयुक्त थे।
- माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी समयानुकूल सुझाव – आयोग ने 70% छात्रों के लिए माध्यमिक शिक्षा को पूर्ण शिक्षा बनाने का सुझाव दिया। भारत के संसाधनों को देखते हुए यह सुझाव अनुकूल था । आयोग ने माध्यमिक स्तर पर शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन एवं परामर्श की उचित व्यवस्था करने पर बल दिया ।
- उच्च शिक्षा के लिए उपयोगी सुझाव आयोग ने उच्च शिक्षा का स्तर ऊँचा उठाने योग्य छात्रों को प्रोत्साहित करने, विश्वविद्यालयों को स्वतन्त्रता प्रदान करने, पाठ्यक्रम को विस्तृत बनाने, नए-नए पाठ्यक्रम शुरू करने, योग्य शिक्षकों की नियुक्ति करने सम्बन्धी जो सुझाव दिए वे बहुत उपयुक्त थे ।
- कृषि शिक्षा की उचित व्यवस्था – आयोग ने कृषि शिक्षा को माध्यमिक स्तर पर कार्यानुभव में शामिल करने, पॉलिटेक्निक महाविद्यालयों में कृषि शिक्षा की व्यवस्था करने तथा कृषि शिक्षण की उच्च एवं शोध कार्य की व्यवस्था का जो सुझाव दिया वह वरदान साबित हुआ।
- शिक्षकों के लिए उपयुक्त सुझाव आयोग शिक्षकों के सम्बन्ध में वेतन बढ़ाने, सेवा-शर्तों में सुधार करने, महंगाई भत्ता देने, फण्ड, बोनस आदि प्रदान करने तथा शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं के विषय में जो सुझाव दिए, वह बहुत उपयोगी थे।
- अन्य शिक्षाओं के सम्बन्ध में उपयुक्त सुझाव–आयोग ने स्त्री शिक्षा, व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, शैक्षिक अवसरों की समानता, विज्ञान शिक्षा के सम्बन्ध में जो सुझाव दिए, वे बहुत ही उपयुक्त थे ।
आयोग के दोष (Demerits of Commission)
- अस्पष्ट शिक्षा – संरचना आयोग ने शिक्षा संरचना के विषय में जो सुझाव दिए, वे अस्पष्ट और उलझे हुए थे। यह पता ही नहीं चल पाया कि आयोग भारत में कौन सी शिक्षा संरचना बनाना चाहता था ।
- प्राथमिक स्तर पर शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन सम्बन्धी सुझाष अनुपयुक्त प्राथमिक स्तर पर आयोग ने बच्चों के लिए शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन देने के लिए कहा जो कि भारत की प्राथमिक शिक्षा के अनुकूल नहीं था ।
- माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में द्विपक्षीय सुझाव – पहले सुझाव में माध्यमिक स्तर पर 70% छात्रों के लिए शिक्षा पूर्ण करने के लिए कहा गया एवं दूसरे सुझाव में 50% छात्रों के लिए व्यावसायिक वर्ग में प्रवेश देने के लिए कहा। ये दोनों सुझाव एक साथ कैसे सम्भव थे ।
- शिक्षा का माध्यम अस्पष्ट – आयोग के कुछ सुझाव अस्पष्ट थे। एक ओर तो कहा कि भविष्य में उच्च शिक्षा का माध्यम भी क्षेत्रीय भाषाएं होंगी तो दूसरी ओर कहा कि विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से दी जाएगी। माध्यमिक स्तर पर तीन भाषाओं को पढ़ने के लिए कहा, निम्न माध्यमिक स्तर पर मातृभाषा के साथ संघीय भाषा तथा विदेशी भाषा का अध्ययन करने के लिए कहा। इन सुझावों के द्वारा आयोग भारत में कौन सी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहता था, यह समझ से परे था ।
- अस्पष्ट प्रशासन – आयोग ने एक ओर तो यह सुझाव दिया कि केन्द्र सरकार अपने बजट का 6% शिक्षा पर व्यय करे, परन्तु यह व्यय कैसे और किस पर करना है? इस सम्बन्ध में कोई सुझाव नहीं दिया तथा प्रान्तीय सरकारों को भी शिक्षा पर व्यय करने के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट सुझाव नहीं दिया। इसलिए आज भी केन्द्र और राज्य सरकारें अपने-अपने अनुसार शिक्षा पर व्यय कर रही हैं।
- शिक्षा के विस्तार के सम्बन्ध में अनुपयुक्त सुझाव आयोग ने स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा तथा अन्य प्रकार की सभी शिक्षाओं के विस्तार, शैक्षिक अवसरों की समानता एवं प्रत्येक स्तर की शिक्षा को सर्वसुलभ करने की बात कही परन्तु जब छात्र नामांकन और मानवशक्ति की चर्चा की तो इसकी व्यवस्था के लिए संसाधनों की कमी की बात कही। प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य एवं निःशुल्क करने के लिए कहा परन्तु उच्च प्राथमिक स्तर पर केवल इच्छुक छात्र छात्राओं के लिए प्रवेश दिए जाने का सुझाव दिया। इन सभी सुझाव में विरोधाभास था।
- राष्ट्रीय शिक्षा के सम्बन्ध में ठोस सुझाव नहीं-कहीं आयोग ने निम्न माध्यमिक शिक्षा के व्यवसायीकरण की बात कही तो कहीं उच्च माध्यमिक शिक्षा के विशिष्टीकरण की, कहीं त्रिभाषा सूत्र को लागू करने का सुझाव दिया तो कहीं इस स्तर पर अंग्रेजी, फ्रेंच और रूसी भाषाओं की शिक्षा की व्यवस्था करने के लिए कहा गया। इन सभी बातों के पीछे कोई ठोस सिद्धान्त नहीं था ।
आयोग की सिफारिशों का भारतीय शिक्षा पर प्रभाव
आयोग की सिफारिशों के आधार पर भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण कर उसे 24 जुलाई, 1968 को घोषित कर दिया गया। पूरे देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू करने के प्रयास शुरू कर दिए गए। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् ने प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा के लिए आधारभूत पाठ्यचर्या तैयार की। कुछ प्रान्तों में इस आधार पर 10 वर्षीय शिक्षा की पाठ्यचर्या का निर्माण कर उसे लागू कर दिया गया। कुछ प्रान्तों में +2 स्तर पर व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की भी व्यवस्था की गई परन्तु इनमें सफलता नहीं मिल सकी। स्नातक कोर्स 3 वर्ष का कर दिया गया । उच्च शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने तथा प्रसार के लिए ठोस कदम उठाए गए । शिक्षक शिक्षा में सुधार किया गया तथा प्रौढ़ शिक्षा को व्यापक बनाया गया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 का निर्माण भी इसी आयोग के सुझावों के आधार पर किया गया ।
अन्ततः हम कह सकते हैं कि भारतीय शिक्षा आयोग ने भारत की शिक्षा के समस्त पहलुओं का गहनता से अध्ययन किया और उसके सम्बन्ध में ठोस सुझाव दिए । इन सुझावों के आधार पर सरकार ने 1986 में स्वतन्त्र भारत की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की तथा शिक्षा को राष्ट्रीय महत्त्व का विषय माना गया। देश के विकास पर सर्वाधिक बल दिया गया जिसके परिणामस्वरूप भारत में औद्योगीकरण को दिशा मिली जिससे देश का आर्थिक विकास हुआ और लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठा । वर्तमान में भी हमारे देश में तकनीकी शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता है जिससे देश औद्योगीकरण की तरफ तेजी से बढ़ रहा है और निरन्तर देश का आर्थिक विकास हो रहा है। इसलिए भारतीय शिक्षा आयोग का शिक्षा जगत में महत्त्वपूर्ण स्थान है।