भाषा अधिगम क्या है? भाषा अधिगम की आवश्यकता, कारक एवं सहायक तत्वों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
भाषा मुख्यतः व्यक्ति की आवश्यकता है। व्यक्ति को अभिव्यक्ति व सम्प्रेषण के लिए भाषा का प्रयोग करना सीखना होता है। शिशुकाल में खाना, पानी, चोट आदि सभी को रोकर बताता है। एक वर्ष के बच्चे कुछ शब्द तथा छोटे-छोटे वाक्य बोलने लग जाते हैं। भाषा मनुष्य का विकास करती है। मातृभाषा बच्चा मौखिक व लिखित दोनों रूप में सीखने की आवश्यकता है। जब बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है वहाँ औपचारिक रूप से भाषा शिक्षण किया जाता है। अक्षरों के प्रतीकों से सम्बन्धित ध्वनि की पहचान से सुनना, बोलना, पढ़ना व लिखना कौशलों तक की योग्यता छात्रों में डाली जाती है। भाषा को सिखाने के लिए अध्यापक विभिन्न विधियों क्रियाओं, अनुभवों, भूमिका निर्वाह चर्चा आदि का प्रयोग करते हैं । “भाषा को सम्प्रेषण के उचित रूप में धारा प्रवाह प्रयोग करने की योग्यता को ही भाषा को सीखना कहा जाता है।” सभी स्थिति के अनुसार भाषा के शब्दों, वाक्यों को बिना शंका के प्रयोग कर सकना । भाषा को सीखना जितना अधिक सफल होगा, छात्र उतना ही अच्छा वक्ता बन पाएगा प्रभावशाली सम्प्रेषण में भागीदार होगा । अतः छात्र के जीवन में भाषा को सीखना काफी महत्वपूर्ण है। भाषा को मौखिक व लिखित दोनों रूपों में कुशलतापूर्वक सीखना आवश्यक है क्योंकि भाषा ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को निर्धारित करती है। भाषा के सभी कौशल एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन सभी का शिक्षण साथ-साथ चलता है ताकि भाषा को प्रभावशाली रूप में सीखा जा सके और बच्चों का व्यक्तित्व भी प्रभावशाली बने ।
- भाषा अधिगम से भाषायी विकास होता है।
- भाषा अधिगम से सम्पर्क क्षेत्र में वृद्धि होती है।
- भाषा अधिगम व्यक्तित्व के विकास में सहायक है।
- भाषा अधिगम से बालक में श्रवण क्षमता का विकास होता है।
- भाषा अधिगम से बालक में वाक् दक्षता आती है।
- भाषा अधिगम से उच्चारण क्षमता में उन्नति होती है।
- भाषा अधिगम से व्याकरण सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त होता है।
- बालकों से वाद-विवाद, वार्तालाप, वाक् क्रियाएँ, उच्चारण समस्याओं का समाधान, नए शब्दों को प्रस्तुत करना ।
- बालकों के लिए रुचिपूर्ण स्थितियाँ उत्पन्न करने से बालक भाषा अधिगम में दक्षता प्राप्त करता है।
- बालकों के समक्ष मनोरंजक पुस्तकें प्रस्तुत करने से भाषा अधिगम के प्रति रुचि बढ़ती है।
- सम्पर्क हेतु आवश्यकता होने पर, भाषा अधिगंम होता है।
- बालकों की सुनने में रुचि बढ़ती है।
- रुचि (Interest) – किसी भी कार्य को करने हेतु उसमें रुचि होना अति आवश्यक है। बालक यदि अभिरुचि के साथ भाषा सीखता है तो वह उसके व्यवहार में उतर जाती है। रुचि होने से बालक स्वयं भाषा अधिगम के प्रति अभिप्रेरित होते हैं एवं भाषा के प्रति सम्मान रखते हैं।
- आवश्यकता (Need) – कहा जाता है कि “आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है” अर्थात् आवश्यकता, भाषा अधिगम में मुख्य सहायक तत्त्व है। भाषा अधिगम की आवश्यकता, ऐसा कोई प्राणी नहीं है जिसे न हो। भाषा अधिगम के अभाव में, वाक्यों में सार्थकता नहीं रहती है व अर्थ का अनर्थ होने की सम्भावना रहती है। एक-दूसरे के विचारों को जानना एवं समझना भाषा अधिगम के अन्तर्गत ही आता है।
- अभ्यास (Practice) – भाषा अधिगम सतत् प्रयास का सफल परिणाम है। सतत् अभ्यास से भाषा व्यावहारिक एवं स्वाभाविक रूप से स्थाई हो जाती है। निरन्तर प्रयास करने से भाषा अधिगम पूर्ण होता है एवं बालक के मस्तिष्क में स्थाई रूप से भाषा ठहरती है। भाषा अधिगम से भाषा पर धीरे-धीरे नियन्त्रण होने लगता है। धीरे-धीरे भाषा में दक्षता आने लगती है।
- सामाजिकता (Sociality) – बालक में सामाजिकता के गुणों का विकास करने के लिए उसे भाषा अधिगम में भाग लेना पड़ता है अर्थात् भाषा सीखनी पड़ती है। बालक को सामाजिक बनाने में भाषा का बहुत बड़ा योगदान होता है। भाषा ही व्यक्ति को समाज में रहने योग्य बनाती है । समाज में रहकर ही भाषा की उन्नति हो सकती है। भाषा के द्वारा संस्कारों एवं सभ्यता का भी ज्ञान होता है।
- सम्पर्क (Communication) – परस्पर सम्पर्क हेतु भाषा एक आवश्यक माध्यम है। भाषा सम्पर्क के लिए भाषा अधिगम उपयोगी है। भाषा अधिगम से उचित शब्दावली मस्तिष्क में बनती है। नए शब्दों का ज्ञान प्राप्त होता है, पारस्परिक सम्पर्क भाषा ही सबसे उत्तम भाषा है। वास्तव में भाषा अधिगम का मुख्य कारक सम्पर्क ही है क्योंकि मनुष्यों में आपस में विचार प्रदर्शन हेतु भाषा ही एक माध्यम है।
- शिशुकाल (Infancy Stage) – माता-पिता व परिवार के सदस्य चलना, बोलना, दौड़ना, खेलना, खाना-पीना, नहाना, कपड़े पहनना, बातचीत करना, अपने मन की बात करना आदि सभी भाषा द्वारा निर्देश देकर बच्चे को सिखाते हैं।
- बाल्यावस्था (Childhood) – बाल्यावस्था में बच्चा स्कूल जाने लगता है। वहाँ औपचारिक भाषा के साथ दूसरे विषय भी सिखाए जाते हैं। सबके लिए भाषा का मौखिक व लिखित रूप प्रयोग किया जाता है। छात्र भी आपस में खेलने, विषय सम्बन्धी समस्याओं को हल करने मदद करने, अध्यापक से अन्तःक्रिया करने आदि सभी में भाषा को आधार बनाता है।
- किशोरावस्था व प्रौढ़ावस्था ( Adolescence and Adulthood)- छात्र अध्ययन के साथ किशोरावस्था में रुचि के कार्यों को सीखते हैं। स्वयं के समाज के अलावा बाहरी समाज से वास्ता बढ़ता है। भविष्य के लिए जानकारी ढूँढते हैं। समाज के गुण व दोषों से अवगत होते हैं। समाज की समस्याओं को दूर करने में भागीदार बनते हैं तथा प्रौढ़ावस्था में जीवन को स्थिर बनाने की कोशिश में नौकरी, व्यवसाय आदि की तलाश करते हैं। परिवार की जिम्मेदारी निभाते हैं। एक अच्छा सामाजिक नागरिक बनते हैं।
इन सभी के लिए एक किशोर व प्रौढ़ को भाषा की मुख्य आवश्यकता होती है। भाषा प्रभावशाली है तो सभी कार्यों में स्वयं ही मदद मिल जाती है। जीवन के सभी क्षेत्र, जैसेखेल का मैदान, घर, पढाई, नौकरी, सामाजिक जीवन, व्यवसाय, अस्पताल, यातायात साधनों का प्रयोग किसी भी प्रकार की मदद लेना, स्कूल, पार्क, मन्दिर, सामाजिक मुद्दे आदि किसी भी क्षेत्र में भाषा के द्वारा ही सीखना होता है।
- उद्देश्यों की स्पष्टता (Clarity of the Objectives)— हमें अपने कार्य को सफल बनाने हेतु उद्देश्य या प्रत्येक कार्य के प्रयोजन को स्पष्ट करना पड़ता है। उद्देश्य अथवा विचारों आदि को स्पष्ट करने के लिए भाषा के माध्यम से अधिगम की आवश्यकता होती है ।
- निर्देशन का साधन (For Guidance) – शिक्षा अधिगम प्रक्रिया में एक मुख्य साधन है। निर्देशन छात्रों को किसी मार्ग पर अग्रसर होने एवं विशेष कार्य को करने की प्रेरणा प्रदान करता है। अध्यापक छात्रों को शिक्षण के दौरान निश्चित निर्देश देता है।
- अभिव्यक्ति का साधन (Means of Expession) — अपने मनोभावों को स्पष्ट करने, विषयवस्तु की जटिलता को स्पष्ट करने, किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए हमें एक ही साधन की आवश्कता होती है, वह है भाषा को सीखना ।
- निदानात्मक साधन (Diagnòstic Purpose ) – निदानात्मक साधनों का प्रयोग छात्रों की अधिगम सम्बन्धी समस्याओं का पता लगाने हेतु किया जाता है। निदानात्मक साधन का उददेश्य छात्रों की व्यवहारगत समस्याओं का पता लगाना है। यदि अधिगम वातावरण समस्याओं से भरा हुआ है तो छात्रों के लिए अधिगम करना कठिन हो जाता है।
- उपचारात्मक साधन (Remedial Purpose)-अधिगम को सफल बनाने के लिए आवश्यक है विद्यालय में एक अनुकूल अधिगम वातावरण का निर्माण किया जाए और बाधक तत्वों या समस्याओं का समाधान करना चाहिए। उपचारात्मक साधनों द्वारा समाधान किया जाता है।
- मूल्यांकन (Evaluation) – शिक्षा प्रक्रिया में तीन मुख्य बिन्दु हैं- 1) योजना, 2) क्रियान्वयन, 3) मूल्यांकन छात्रों को मूल्यांकन के लिए मौखिक व लिखित एवं प्रायोगिक कार्य किए जाएँ। यदि किसी उपलब्धि परीक्षा का निर्माण करना है तो उसकी भाषा में ही प्रश्न लिखे जाते हैं, निर्देश दिए जाते हैं, प्रश्नों के उत्तर दिए जाते हैं।
- अधिकतम अधिगमों के लिए (For Maximum Learning) – मूक व बधिर बच्चों के लिए विशेष अध्ययन सामग्री दी जाती है, उनका मूल्यांकन किया जाता है। यदि शिक्षक एक अच्छा वक्ता है तो छात्रों की रुचि निर्माण में कोई कठिनाई नहीं आती है।
- विषयवस्तु की स्पष्टता के लिए (Clarity of the Content ) – एक छोटा बच्चा छोटी से छोटी समस्या को दूसरों को बताने के लिए परिश्रम करता है। अध्यापक को योजना के लिए पूर्व ज्ञान परीक्षा, विषयवस्तु प्रस्तुतीकरण, पुनरावृत्ति एवं गृहकार्य के लिए भाषा की आवश्यकता पड़ती है।
- भाषा से अन्य भाषाएँ सीखना (Learned other Language through Language) – विश्व के सभी देशों की अपनी-अपनी राष्ट्र भाषा है। भारत ही एक ऐसा देश है जो विभिन्न भाषायी है। इसलिए एक भाषा के ज्ञान के माध्यम से ही अन्य भाषाओं का ज्ञान सरलता से प्राप्त कर लेते हैं तथा अन्य भाषाओं में रचित अच्छे ग्रन्थों का अनुवाद हिन्दी भाषा में किया गया है। इसी तरह एक भाषा को सीख कर दूसरी भाषा को सीख सकता है। उदाहरण के रूप में अंग्रेजी भाषा को जानने वाला हिन्दी भाषा सीखने की इच्छा रखता है तो उसे प्रत्येक हिन्दी के शब्द का अर्थ अंग्रेजी में समझाने की आवश्यकता होती है। एक भाषा दूसरी भाषा का सहारा लेकर ही विकसित होती है।
- भाषा से अन्य विषयों की ज्ञान प्राप्ति (Other Subjects learning Through Language) – एक भाषा सीखने से केवल दूसरी भाषा ही नहीं सीखी जाती अपितु विज्ञान, इतिहास, भूगोल, गणित, ज्योतिष, कला इत्यादि का ज्ञान भी भाषा के माध्यम से होता है जब तक बालक उचित रूप से भाषा का पठन, उच्चारण, बोध नहीं करेगा तब तक दूसरे विषयों का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता। आधुनिक युग विज्ञान का युग है इसलिए भाषा की पाठ्य पुस्तकों में विज्ञान से सम्बन्धित पाठों को रखा जाता है। इसी तरह इतिहास भूगोल की जानकारी भी प्राप्त करने के लिए उन ग्रन्थों का क्षेत्रीय भाषा में अनुवाद कर दिया जाता है।
दूसरी भाषाओं से रचे गए ग्रन्थों में छिपे ज्ञानवर्द्धक तथ्यों को सीखने के लिए उनका प्रत्येक क्षेत्र की मातृभाषा में अनुवाद कर दिया जाता है। अनुवाद करते समय ही यह ध्यान रखना चाहिए कि उसमें व्यर्थ की बातों पर जोर न दिया जाए तथा भाषा पाठक के मानसिक स्तर के अनुकूल हो। ज्ञान प्राप्ति में भाषा एक सर्वश्रेष्ठ साधन के रूप में प्रयोग की जाती है। शिक्षा की व्यवस्था में भाषाओं का स्वाभाविक स्थान है। पाठयक्रम में भी एक क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ अन्य दूसरी भाषाओं (अंग्रेजी भाषा, अन्य भारतीय भाषा) के अधिगम को शामिल किया गया है। उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है। केन्द्रीय सेवाओं के लिए भी अंग्रेजी भाषा का ज्ञान अनिवार्य है। इसलिए मातृभाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा को सीखना पाठयक्रम की दृष्टि से अनिवार्य किया गया है।
- भाषा के जीवन से जुड़े तथ्यों की जानकारी (Learning Life Related Facts Through Language)सार्थक ढंग से जीवन जीना एक कला है। बिना भाषा के जीवन अर्थपूर्ण ढंग से नहीं जिया जा सकता है। ज्ञान, भावना और कर्म का समन्वय ही जीवन है क्योंकि ज्ञान प्राप्ति के लिए भाषा अधिगम का कर्म करना अनिवार्य है। इस कर्म करने के पश्चात् ही शिक्षार्थी अपनी भावनाओं को शब्दों में व्यक्त कर सकेगा। जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान करने हेतु वह पुस्तकों का ही सहारा लेता है जो किसी न किसी भाषा में प्रकाशित होती है। इसलिए भाषा को सीखे बिना वह उस पाठ्य पुस्तक को पढ़ नहीं सकता। अतएव यह कथन अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं होगा कि भाषा के माध्यम से ही जीवन सम्बन्धित तथ्यों की जानकारी प्राप्त कर सकेगा।