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मानव रोग

मानव रोग

मानव रोग

मानव रोग

(i) परजीवी (Protozoa) के द्वारा होने वाले रोग
रोग प्रभावित अंग परजीवी वाहक मच्छर लक्षण
मलेरिया तिल्ली एवं RBC प्लाज्मोडियम मादा एनाफ्लीज ठंड के साथ बुखार
पायरिया मसूड़ एन्ट अमीबा जिन्जिवेलिस मसूड़ों से रक्त का निकलना
सोने की बीमारी मस्तिष्क ट्रिपेनोसोमा सी-सी मक्खी (Tse-Tse) बहुत नींद के साथ बुखार
पेचिस आँत एन्ट अमीबा हिस्टोलिटिका श्लेष्मा एवं खून के साथ दस्त
काला जार अस्थिमज्जा लीशमैनिया डोनावानी बालू-मक्खी तेज – बुखार
(ii) जीवाणु (Bacteria) के द्वारा होने वाले रोग
बीमारी प्रभावित अंग जीवाणु के नाम लक्षण
टिटनेस तंत्रिका तंत्र क्लांस्ट्रीडियम टेटेनी  तेज बुखार, शरीर में ऐंठन, जबड़ा बन्द होना
हैजा आँत विब्रिओ कालेरी लगातार दस्त और उल्टियां
टायफायड आँत सालमोनेला टाइफी तेज बुखार, सिरदर्द
क्षय रोग (टी.बी) फेफड़ा माइकोबैक्टिरियम बार-बार खाँसी के साथ कफ, रक्त निकलना
डिप्थीरिया श्वास नली कोरोनी बैक्टीरियम डिप्थीरी साँस लेने में कठिनाई एवं दम घुटना
प्लेग फेफड़ा पाश्चुरेला पेस्टिस बहुत तेज बुखार, शरीर पर गिल्टियाँ
काली खाँसी श्वसन तंत्र हीमोफिलस परटूसिस लगातार खाँसी आना
निमोनिया फेफड़ा डिप्लोकोकस न्यूमोनी तेज बुखार, फेफड़ों में सूजन
कोढ़ तंत्रिका तंत्र त्वचा माइकोबैक्टिरियम लेप्री शरीर पर चकत्ते, तंत्रिकाएँ प्रभावित
गोनोरिया मूत्र मार्ग नाइसेरिया गोनोरियाई मूत्र मार्ग में सूजन
सिफलिस शिशन ट्रैपोनमा पैलिडम शिश्न में घाव
◆ नोट : सन् 1882 ई. में जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने कॉलरा एवं टी.बी. के जीवाणुओं की खोज की।
◆ लुई पाश्चर के रेबीज का टीका एवं दूध के पाश्चुराइजेशन की खोज की।
◆ बच्चों को DPT टीका उन्हें डिप्थीरिया, काली खाँसी एवं टिटनेस रोग प्रतिरक्षीकरण (Immunization) के लिए दिया जाता है।
(iii) विषाणु (Virous) के द्वारा होने वाले रोग
बीमारी प्रभावित अंग विषाणु के नाम लक्षण
एड्स (AIDS) प्रतिरक्षा प्रणाली (WBC) HIV रोग प्रतिरोधक क्षमता का नष्ट होना
डेंगूज्वर (हड्डी तोड़ बुखार) सम्पूर्ण शरीर खासकर सिर, आँख एवं जोड़ अरबो वायरस आँखों, पेशियों, सिर तथा जोड़ों में दर्द
पोलियो गला, रीढ़, नाड़ी संस्थान पोलियो  ज्वर, बदन में दर्द, रीढ़ की हड्डी आँत कोशिकाएँ
इन्फ्लूएंजा सम्पूर्ण शरीर मिक्सो वाइरस (A.B.C.) गलशोथ, छींक, बैचेनी
चेचक सम्पूर्ण शरीर वैरिओला वायरस तेज बुखार, शरीर पर लाल- लाल दाने
छोटी माता सम्पूर्ण शरीर वैरिसेला वायरस हल्का बुखार, शरीर पर पित्तिकाएँ
गलशोथ पैराथाइराइड ग्रन्थि ज्वर के साथ मुँह खोलने में कठिनाई
खसरा सम्पूर्ण शरीर मोर्बिली वायरस शरीर पर लाल दाना
ट्रेकोमा आँख आँख लाल होना, आँख में दर्द
हिपैटाइटीस या पीलिया यकृत पेशाब पीला, आँख एवं त्वचा पीला हो जाता है।
रेबीज तंत्रिका तंत्र रैब्डो वायरस रोगी पागल हो जाता है, जीभ बाहर निकालता है
मेनिनजाइटिस मस्तिष्क तेज बुखार
हर्पीस त्वचा हरपीस त्वचा में सूजन हो जाती है
नोट : (i) AIDS – Acquired Immuno Deficiency Syndrome)
(ii) ELISA– Enzyme Linked Immune Solvent Assy – यह HIV वायरस की जाँच करने की एक प्रणाली है। इससे पता चलता है कि व्यक्ति एड्स पीड़ित है या नहीं। इसे एलिसा टेस्ट कहते हैं। वर्तमान में एड्स के उपचार के लिए एजिडोथाईमिडिन (AZT) औषधि का प्रयोग किया जा रहा है ।
हैल्मिन्थस (Helminthus ) द्वारा होने वाली बीमारी
(i) अतिसार (Diarrhoea) : इस रोग का कारण आँत में मौजूद एस्केरिस लुम्ब्रीकॉइडीज नामक अंतःपरजीवी प्रोटोजोआ (निमेटोड) है, जो घरेलू मक्खी द्वारा प्रसारित होता है। इसमें आँत में घाव हो जाता है। इसमें प्रोटीन पचाने वाला एन्जाइम ट्रिप्सिन नष्ट हो जाता है। यह रोग बच्चों में अधिक पाया जाता है।
(ii) फाइलेरिया (Filaria) : यह रोग फाइलेरिया बैन्क्रोफ्टाई नामक कृमि से होता है । इस कृमि का संचारण क्यूलेक्स मच्छरों के दंस से होता है। इस रोग में पैरों, वृषणकोषों तथा शरीर के अन्य भागों में सूजन हो जाता है। इस रोग को हाथीपाँव (Elephantiasis) भी कहते हैं।
कवक / फफूँद (Fungus) द्वारा होने वाली बीमारी
(i) दमा (Asthma) : मनुष्य के फेफड़ों में ऐस्पर्जिलस फ्यूमिगेटस नामक कवक स्पोर में पहुँचकर वहाँ जाल बनाकर फेफड़े का काम अवरुद्ध कर देते हैं। यह एक संक्रामक रोग है।
(ii) एथलीट फुट (Athlets’s Foot) : यह रोग टीनिया पेडिस नामक कवक होता है। यह त्वचा का संक्रामक रोग है, जो पैरों की त्वचा के फटने-कटने और मोटे होने से होता है।
(iii) खाज (Scabise) : यह रोग एकेरज स्केबीज नामक कवक से होता है। इसमें त्वचा में खुजली होती है तथा सफेद दाग पड़ जाते हैं।
(iv) गंजापन (Baldness) : यह टिनिया केपिटिस नामक कवक से होता है। इसमें सिर के बाल गिर जाते हैं।
(v) दाद (Ringworm) : यह रोग ट्राइकोफायटान लेरूकोसस नामक कवक से फैलता है। यह संक्रामक रोग है। इसमें त्वचा पर लाल रंग के गोले पड़ जाते हैं।
मनुष्यों में होने वाला आनुवंशिक रोग
(i) वर्णान्धता (Colourblindness) : इसमें रोगी को लाल एवं हरा रंग पहचानने की क्षमता नहीं होती है।
◆ इस रोग से मुख्य रूप से पुरुष प्रभावित होता है। स्त्रियों में यह तभी होता है जब इसके दोनों गुणसूत्र (XX) प्रभावित हों।
◆ इस रोग की वाहक स्त्रियाँ होती है।
(ii) हीमोफीलिया (Haemophilia)
◆ इस रोग में व्यक्ति चोट लगने पर आधा घंटा से 24 घंटे (सामान्य समय औसतन 2-5 मिनट) तक रक्त का थक्का (clotting) नहीं बनता है ।
◆ यह मुख्यतः पुरुषों में होता है। स्त्रियों में यह रोग तभी होता है, जब इसके दोनों गुणसूत्र (XX) प्रभावित हों।
◆ इस रोग की वाहक स्त्रियाँ है।
◆ हेल्डेन का मानना है कि यह रोग ब्रिटेन की महारानी विक्टोरयिा से प्रारंभ हुआ।
(iii) टर्नर सिन्ड्रोम (Turner’s Syndrome)
◆ यह रोग स्त्रियों में होता है। इस रोग से ग्रसित स्त्रियों में गुणसूत्रों की संख्या 45 होती है।
◆ इसमें शरीर अल्पविकसित, कद छोटा तथा वक्ष चपटा होता है। जननांग प्राय: अविकसित होता है, जिससे वे बाँझ (Sterile) होती हैं।
(iv) क्लीनेफेल्टर सिन्ड्रोम (Klinefelter’s Syndrome)
◆ यह रोग पुरुषों में होता है।
◆ इस रोग से ग्रसित पुरुषों में गुणसूत्रों की संख्या 47 होती है।
◆ इसमें पुरुषों का वृषण अल्पविकसित एवं स्तन स्त्रियों के समान विकसित हो जाता है।
◆ इस रोग से ग्रसित पुरुष नपुंसक होता है।
(v) डाउन्स सिन्ड्रोम (Down’s Syndrome)
◆ इस रोग से ग्रसित रोगी मन्द बुद्धि, आँखें टेढ़ी, जीभ मोटी तथा अनियमित शारीरिक ढाँचा वाला होता है।
◆ इसे मंगोलिज्म (Mangolism) भी कहते हैं।
(vi) पटाऊ सिन्ड्रोम (Patau’s Syndrome)
◆ इसमें रोगी के ऊपर का ओठ बीच से कट जाता है। तालु में दरार (Cleft Plate) हो जाता है।
◆ इस रोग में रोगी मन्द बुद्धि, नेत्ररोग आदि से प्रभावित हो सकता है।
कुछ अन्य रोग
1. पक्षाघात या लकवा (Paralysis) : इस रोग में कुछ ही मिनटों में शरीर के आधे भाग को लकवा मार जाता है। जहाँ पक्षाघात होता है, वहाँ की तंत्रिकाएँ निष्क्रिय हो जाती है। इसका कारण अधिक रक्तदाब के चलते मस्तिष्क की कोई धमनी का फट जाना अथवा मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त की आपूर्ति का न हो पाना है।
2. एलर्जी (Allergy) : कुछ वस्तु जैसे- धूल, धुआ, रसायन, कपड़ा, सर्दी किन्हीं विशेष व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो जाते हैं और उनके शरीर में विपरीत क्रिया होने लगती है, जिससे अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। खुजली, फोड़ा, फुन्सी, शरीर में सूजन आ जाना, काला दाग, एक्जिमा आदि एलर्जी के उदाहरण हैं।
3. साइजोफ्रेनिया (Schizophrenia) : यह मानसिक रोग है। जो प्रायः युवा वर्ग में होता है। ऐसा रोगी कल्पना को ही सत्य समझता है, वास्तविकता को नहीं। ऐसे रोगी आलसी, अलगावहीन, आवेशहीन होते हैं। विद्युत आक्षेप चिकित्सा इसमें काफी सहायक होती है।
4. मिर्गी (Epilepsy) : इसे अपस्मार रोग कहते हैं। यह मस्तिष्क के आंतरिक रोगों के कारण होती है। इस रोग में जब दौरा पड़ता है, तो मुँह से झाग निकलता है और मल-पेशाब भी निकलता है।
5. डिप्लोपिया (Diplopia) : यह रोग आँख की मांसपेशियों के पक्षाघात (Paralysis) के कारण होती है।
6. कैंसर (Cancer) : मनुष्य के शरीर के किसी भी अंग में, त्वचा से लेकर अस्थि तक, यदि कोशिका वृद्धि अनियंत्रित हो, तो इसके परिणामस्वरूप कोशिकाओं में अनियमित गुच्छा बन जाता है, इन अनियमित कोशिकाओं के गुच्छे को कैंसर कहते हैं। कैंसर को स्थापित होने में जो समय लगता हैं, उसे लैटेण्ट पीरियड कहते हैं।
◆ कैंसर मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं –
(i) कार्सीनोमास : इसकी उत्पत्ति उपकला ऊतकों से होती है।
(ii) सार्कोमास : यह कैंसर संयोजी ऊतकों, अस्थियों, उपास्थियों एवं पेशियों में होता है।
(iii) ल्यूकीमियास : यह ल्यूकोमाइट्स में असामान्य वृद्धि के कारण होता है।
(iv) लिम्फोमास : यह कैंसर लसीका गाँठों एवं प्लीहा में होता है।

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