1st Year

मीडिया की आवश्यकता एवं उपयोग पर चर्चा कीजिए। लैंगिक समाजीकरण में आवश्यक संचार साधनों की भूमिका बताइए। Discars the Need and Uses of Media. Explain the Essential Communication Media in Gender Socialisation

प्रश्न – मीडिया की आवश्यकता एवं उपयोग पर चर्चा कीजिए। लैंगिक समाजीकरण में आवश्यक संचार साधनों की भूमिका बताइए। Discars the Need and Uses of Media. Explain the Essential Communication Media in Gender Socialisation.
या
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। 
Write a short note on the followirig
(1) मीडिया के प्रकार (Types of Media) 
(2) मीडिया का महत्त्व (Importance of Media)
उत्तर- मीडिया की आवश्यकता (Qaod of Media)
  1. सामाजिक दृष्टि से जन सामान्य में जागरूकता उत्पन्न करने एवं सुदूर क्षेत्रों तक शीघ्रातिशीघ्र सूचनाओं को पहुँचाने के लिए।
  2. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पाठ्य-वस्तु या सूचनाओं को सरल, सुबोध बनाने के लिए।
  3. संचार माध्यमों के द्वारा एक ही समय में विशाल जनसमूह शिक्षित करने एवं व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिए।
  4. मानवीय सम्बन्ध प्रगाढ़ करने के लिए ताकि मानव सम्पूर्ण विश्व की प्रगति में सहायता करने में सक्षम हो सके।
  5. औपचारिक शिक्षा से सम्बन्धित कठिन पाठों को सर्वसुलभ बनाना ताकि शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारा जा सके।
  6. दिन-प्रतिदिन की देश-विदेश की घटनाओं से जनसामान्य  को अवगत करा कर उन्हें देश-विदेश से जोड़े रखना।
  7. शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति का ज्ञान प्राप्त  करने के लिए, अपनी योग्यताओं व क्षमताओं के उपयोग हेतु संचार के साधन आवश्यक है।
  8. मनोरंजन प्रदान करने के लिए।
संचार माध्यमों का उपयोग (Uses of Media)
  1. कठिन अवधारणाओं को तरल तथा व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करने के लिए।
  2. सामान्य व्यक्तियों को सरलता से ज्ञान प्रदान करने एवं सजग बनाने के लिए।
  3. नवसाक्षरों की रुचि को विभाग ने विवेक दर्पण महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। बनाए रखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक परियोजना द्वारा इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है
  4. सैद्धान्तिक पक्ष को जीवन से सम्बद्ध करने के लिए।
  5. प्रत्येक व्यक्ति को अन्तर्राष्ट्रीय   से जोड़ने के लिए।
  6. ऐसे स्थानों, कार्यों एवं जानकारियों से व्यक्ति को अवगत कराना जो उसकी पहुँच से बाहर है।
  7. शैक्षिक कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए
  8. कल्पना शक्ति, जिज्ञासा, रचनात्मक एवं सृजनात्मक के विकास के लिए |
  9. ज्ञान के विविध क्षेत्रों में होने वाले द्रुत विकास से अवगत कराने के लिए।
जनसाधारण को सामान्य रूप से जनसंख्या शिक्षा, यौन शिक्षा, कानूनी शिक्षा तथा पर्यावरण शिक्षा आदि की जानकारी प्रदान करने के लिए।

लैंगिक समाजीकरण में आवश्यक संचार साधन

  1. प्रिंट मीडिया (Print Media)- प्रिन्ट मीडिया का महत्त्व अक्षुण्ण है। उसकी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों से बालक का सर्वांगीण विकास होता है। शिक्षण संस्थाओं पाठ्यपुस्तकें ही शिक्षा का प्रमुख साधन है। दूरस्थ संस्थाओं के विद्यार्थी मुद्रित सामग्री द्वारा ही अनुदेशन प्राप्त करते हैं। इंटरनेट की सुविधा ने शिक्षा को भी ऑन लाइन कर दिया है लेकिन प्रिंट मीडिया का महत्त्व कम नहीं आँका जाता है। ये बालकों के स्व के विकास में विशेष स्थान रखता है। आवश्यकता है कि पठनीय सामग्री का निर्माण व्यक्तिगत भिन्नताओं के अनुसार होना चाहिए।
    1. समाचार पत्र के (Newspapers) – देश – विदेश दिन-प्रतिदिन के समाचार हमें समाचार-पत्रों से प्राप्त होते हैं। इससे विदेश की आर्थिक, राजनैतिक एवं व्यावसायिक प्रगति का पता लगता है। इसमें लेख, कहानियाँ, साहित्यिक, समीक्षाएँ, साक्षात्कार, खेल जगत की घटनाएँ छपती है, जिनसे बालक को विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित ज्ञान प्राप्त होता है तथा उनके भीतर जागरूकता विकसित होती है। शिक्षा से सम्बन्धित कई जानकारियों से भी बालक अवगत होते है। समाचार पत्र बालक के स्व निर्माण में बहुत ही महत्त्व रखता है। वस्तुतः समाचार पत्रों में विभिन्न विषयों पर भी सामग्री लेख कहानियाँ, सुविचार, कविताएँ और मनोरंजनात्मक प्रकरण भी प्रकाशित किए जाते हैं । इस प्रकार बालक के अन्दर जीवनमूल्यों का प्रवेश होता है। जिससे सकारात्मक स्व निर्माण को आधार मिलता है। इससे उसका ज्ञान कोष बढ़ता है। सामान्य ज्ञान का विस्तार होता है। उत्तरदायित्व पूर्व नागरिकता का विकास होता है। स्वाध्याय में रुचि विकसित होती है। अतः बालकों को नित्य समाचार पढ़ने की आदत विकसित करनी चाहिए तथा प्रत्येक विद्यालय में समाचार पत्र मँगवाने चाहिए।
    2. पत्र-पत्रिकाएँ (Magazines) – पत्र पत्रिकाएँ बालक के स्व के लिए महत्त्वपूर्ण है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ चालकों को न केवल नवीन ज्ञान प्रदान करती है अपितु उन्हें रचनात्मक कार्य करने के लिए भी प्रेरित करती है। इससे उनका विषय ज्ञान बढ़ता है। अतः प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकालय की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा नित्य पत्र-पत्रिकाएँ आनी चाहिए। शोध पत्रिकाएँ हमें नवीनतम ज्ञान प्रदान करती हैं ।
    3. साहित्यिक पुस्तकें (Literary Books)—साहित्यिक पुस्तकें बालक की स्वधारणा को सकारात्मक बनाती है। ये पुस्तके संदर्भित पुस्तकों का काम करती हैं । इससे विद्यार्थियों के विचार मौलिक एवं व्यापक बनते हैं, उनमें स्वाध्याय की आदत विकसित की जा सकती है। वह अपनी लेखन क्षमता विकसित कर सकते हैं। साहित्यिक पुस्तकें विद्यालय में उपलब्ध कर लेनी चाहिए। पढ़ने हेतु पुस्तकालय कालांश होना चाहिए। अतः कहा जा सकता है कि साहित्यिक पुस्तिकाएँ आधुनिक युग में शिक्षा का मुख्य आधार है।
    4. पुस्तकालय एवं वाचनालय (Library and Reading Rooms ) – पुस्तकालय ज्ञान की आधारशिला होता है। मुद्रित रूप में यहाँ पर ज्ञान का अनुपम भण्डार होता है। वाचनालयों में व्यक्ति परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करते हैं जो शैक्षिक पुनरुत्थान एवं विकास की दृष्टि से अति आवश्यक है।
    5. संग्रहालय (Museum)संग्रहालय में ऐतिहासिक, ज्ञानवर्द्धक एवं मनोरंजनात्मक वस्तुओं का संग्रह होता है जिन्हें आसानी से आस-पास के वातावरण में नहीं देखा जा सकता है।
  2. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (Electronic Media ) – वर्तमान समय में विज्ञान के विकास एवं संचार क्रान्ति के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भी विकास हुआ है। इन साधनों ने संचार क्रान्ति उत्पन्न कर दी गयी है। आज दुनिया की दूरी संकुचित हो गयी है। अमेरिका में होने वाली सूचना कुछ मिनटों में ही सम्पूर्ण भारत तथा दुनिया में पहुँच सकती है। इसलिए वर्तमान समय में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाती है । इलेक्ट्रानिक मीडिया के अन्तर्गत निम्नलिखित माध्यम आते हैं –
    1. कम्प्यूटर (Computer) – कम्प्यूटर शिक्षक के स्थानापन्न का कार्य करता है। इस रूप में छात्र सीधे कम्प्यूटर से व्यवहार करता है। इससे छात्र की विचार शक्ति का निर्माण होता है। उसे सही एवं गलत उत्तर की पहचान होती है जिससे वह उचित अनुचित में भेद कर है तथा निर्णय शक्ति की क्षमता का विकास होता है।
    2. दूरदर्शन (Television)दूरदर्शन भारत में शिक्षा का प्रचार प्रसार करने का कार्य अपने विभिन्न चैनलों के माध्यम से करता है। इसके द्वारा विभिन्न आयु-वर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग ज्ञानवर्द्धक मनोरंजनात्मक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। दूरदर्शन जनसंचार साधनों के अन्तर्गत उपलब्ध सभी साधनों में सबसे सशक्त माध्यम है क्योंकि इसमें सम्प्रेषण के. साथ-साथ दृश्य साधन भी उपलब्ध है। दूरदर्शन में समस्त संसार की जानकारी प्राप्त होती है इससे बालक के मस्तिष्क का विकास होता है तथा सोचने की शक्ति व कुछ करने की शक्ति को बढ़ावा मिलता है। उनमें सृजनात्मक शक्ति का विकास होता है।
    3. रेडियो (Radio) – भारत के सुदूर इलाकों एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक रेडियो की पहुँच है। रेडियो पर समय-सम पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम जैसे- कृषि कार्यक्रम, शिक्षाप्रद कार्यक्रम, सांस्कृतिक कार्यक्रम, देश-विदेश के समाचार आदि का प्रसारण किया जाता है। ये कार्यक्रम विभिन्न विषयों जैसे- अंग्रेजी, विज्ञान, भूगोल इतिहास से सम्बन्धित होते हैं जिसमें क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग होता हैं। इस प्रकार रेडियो के द्वारा व्यापक रूप से शिक्षा एवं नई-नई जानकारियों को विभिन्न आयु वर्ग, लिंग को ध्यान में रखते हुए मनोरंजनात्मक तरीके से प्रस्तुत करता है। रेडियो सबसे अधिक प्रभावशाली संचार का माध्यम है। रेडियो पर बालकों के विभिन्न विषयों से सम्बन्धित जानकरियाँ प्राप्त होती हैं। इससे सभी स्तर के व्यक्ति लाभान्वित हो सकते हैं। रेडियो द्वारा विद्यार्थियों को तथ्यात्मक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। बालक की रचनात्मक व सृजनात्मक क्षमता का विकास किया जा सकता है।
    4. मल्टीमीडिया (Multimedia)- मल्टीमीडिया एक प्रकार से एकत्रित रीट्राइव्ड एवं मैनिपुलेट की गयी सूचना है जिसमें प्लेन टेक्स्ट, पिक्चर, श्रव्य दृश्य और एनीमेशन टाइप की सूचनाएँ रहती हैं। इसके द्वारा शिक्षण सामग्री को चित्र साउण्ड व एनीमेशन आदि का प्रयोग कर रोचक बनाया जा सकता है। इस प्रकार के शिक्षण में बालक की कल्पना शक्ति का विकास होता है।
    5. इंटरनेट (Internet)- इंटरनेट कई नेटवर्कों का एक विशाल नेटवर्क है जो हजारों कम्प्यूटर से जुड़ा होता है। इंटरनेट ने आज मनुष्य के जीवन में क्रांति ला दी है, बैंकिग, रोजगार, यात्रा, शिक्षा आदि में उसने पैर जमा रखे हैं। इससे बालक को जो भी पाठ्य सामग्री की आवश्यकता होती है वह घर बैठे उपलब्ध हो जाती है। इससे बालक की अध्ययन क्षमता का विकास होता है। बालक में रुचि का विकास होता है। सुविचार व प्रेरक प्रसंगों द्वारा बालकों में नैतिक मूल्यों का विकास करना संभव है।
    6. मोबाइल (Mobile) – मोबाइल द्वारा बालक कक्षा के अतिरिक्त कहीं भी बैठकर सीख सकता है। इसमें उसे स्वयं करके सीखने की प्रवृत्ति का विकास होता है। इसके द्वारा अध्यापक कक्षा अन्तःक्रिया को बढ़ावा दे सकता है इससे बालक में आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे बालक में सीखने की प्रवृत्ति का विकास किया जा सकता है। बालक स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास कर सकता है। इससे उनमें तकनीकी कौशल की भी वृद्धि होती है।
मीडिया के प्रकार (Types of Media)
  1. प्रिंट मीडिया / मुद्रित सामग्री – विभिन्न दूरस्थ शिक्षा संस्थाएँ अपने कोर्स के लिए विभिन्न औपचारिक संस्थाओं की पाठ्य पुस्तकों के द्वारा नवीन मुद्रित सामग्री तैयार करके इनका प्रयोग करती हैं। मुद्रित सामग्री विशेषतः छात्राओं एवं पाठ्यक्रम की आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न विषय विशेषज्ञों के माध्यम से तैयार कराई जाती है। चूँकि इसमें शिक्षिकाओं एवं विद्यार्थियों के मध्य परस्पर कोई सम्पर्क नहीं होता है, अतः मुद्रित सामग्री का इस प्रकार निर्माण किया जाता है कि विद्यार्थी इससे स्व – अध्ययन करके सफलता प्राप्त कर सकें। प्रिंट मीडिया के प्रमुख साधन निम्न हैं –
    1. समाचार-पत्र,
    2. पत्रिकाएँ,
    3. समाचार पत्र,
    4. पुस्तक एवं अध्ययन सामग्री आदि ।
  2. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आधुनिक संचार युग में जन माध्यमों ने इलेक्ट्रॉनिक तकनीक को अपनाकर अपना प्रभाव क्षेत्र विस्तृत किया है। रेडियो इनमें पहला माध्यम है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का प्रयोग हुआ श्रव्य माध्यम है। ध्वनि तरंगों के माध्यम से दूर दराज के क्षेत्रों में सूचना- समाचारों का प्रसारण रेडियो के माध्यम से ही सम्भव हो पाया है। इस माध्यम से समाज में एक नई सूचना क्रान्ति आई है। मुद्रित माध्यमों की पहुँच सीमित क्षेत्र तक ही थी । वह केवल शिक्षित लोगों तक ही सीमित था किन्तु इलेक्ट्रॉनिक माध्यम साक्षर तथा निरक्षर दोनों को लाभान्वित कर रहा है। मैकब्राइट के अनुसार, “विकासशील देशों में रेडियो ही वास्तविक जनमाध्यम का रूप है एवं जनसंख्या के एक बड़े अनुपात पर इसकी पकड़ है। दूसरा कोई ऐसा बड़ा माध्यम नहीं है जो सूचना, शिक्षा, संस्कृति और मनोरंजन रूप में उस कुशलता के साथ पहुँचने की क्षमता रखता हो।” इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के प्रमुख साधन निम्न हैं –
    1. टेलीविजन,
    2. रेडियो,
    3. टेपरिकॉर्डर,
    4. वीडियो टेप एवं
    5. न्यूज चैनल आदि
मीडिया का महत्त्व (Importance of Media)
  1. मीडिया मनुष्य की अभिव्यक्ति व संवाद की सीमित क्षमताओं का असीमित एवं विस्तृत रूप है। बालक के सामाजिक, मानसिक, शारीरिक और नैतिक विकास में रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं, मोबाईल और इंटरनेट का भी बहुत अधिक योगदान रहता है। वैज्ञानिक युग में आज सामाजिक मीडिया का उपयोग अपने चरम पर है ।
  2. सामाजिक मीडिया, इंटरनेट की सहायता से अनेक व्यक्तियों और समुदायों को आपस में जोड़ने का माध्यम है। इसके द्वारा लोगों को अन्तःक्रिया और परस्पर सूचनाओं को साझा करने का मंच प्राप्त होता है।
  3. युवा वर्ग इस माध्यम का जमकर प्रयोग कर रहा है तथा लाभ उठा रहा है। फेसबुक, वाट्स एप, ट्विटर, यू-ट्यूब, फ्लिकर, ब्लॉग्स, पॉडकास्ट्स, गूगल, लिंक्डइन आदि कुछ मशहूर सामाजिक मीडिया के रूप हैं। इस माध्यम में संदेश, चित्र, ब्लॉग, चलचित्र आदि शामिल हैं।
  4. पारम्परिक मीडिया से अलग सामाजिक मीडिया की पहुँच अधिक लोगों तक है। इसकी विषय सामग्री में नवीनता के साथ स्थायित्व है। भौगोलिक दूरियों को इस माध्यम ने पाटकर रख दिया है।
  5. आज सोशल मीडिया के माध्यम से हर व्यक्ति सूचना का एक स्रोत बन गया है। डिजिटल माध्यमों की दिनों-दिन होती सर्वव्यापी पहुँच से इनके महत्त्व और उपयोग को कई नए आयाम मिले हैं।
  6. सामाजिक मीडिया ने विभिन्न वर्गों को आपस में जोड़ने में अपनी महती भूमिका निभाई है। इससे किशोरों में समरसता और समभाव के गुण पैदा हुए हैं। सामाजिक मीडिया सूचनाओं को सत्य की कसौटी पर खरा उतारता है।
  7. यह माध्यम बालकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है जिससे वो नकारात्मक संवेगों से हल्का महसूस करता है। इस माध्यम से किशोर अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं जिससे उनके जीवन में सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं ।
  8. इसने बहुत हद तक अकेलेपन की समस्या को दूर कर दिया है। मीडिया के इस नए प्रारूप ने सामाजिक समस्याओं पर विस्तार से संवाद कर उनका समाधान प्रस्तुत किया है। इस माध्यम से उनमें सामुदायिक भागीदारी बढ़ी है। इस प्रकार सोशल मीडिया ने सामाजिक संवाद के तौर-तरीकों को बदल कर रख दिया है।

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